मुस्लिम महिलाओं का दर्द




जो बात श्री गिरीश जी ने खत्म की थी वहीं से मै शुरूआत मैं उसी के आगे से करना चाहूँगा। बहुत से लोग ऐसे होते है, जो हिन्दु धर्म और संस्कृति को गाली देने में अपना बड़प्‍पन समझते है। उनकी यह समझ उतनी ही सही हो सकती है जितनी की गर्म तावे पर पड़ने वाली बूँद के अस्तित्‍व इतनी ही।

यहाँ मेरा किसी धर्म का विरोध प्रस्‍तुत करना नही है बस उतना ही प्रस्‍तुत करना चाहूँगा जितना कि सच है। इस्लाम मे महिलाओं की स्थिति क्‍या है किसी से छिपी नही है किसी को बताने की जरूरत भी नही है। शाहवानो से लेकर तस्लीमा तक सभी इस्लाम में आपकी स्थिति को बयान कर रही है। किसी को महिला को आपने शौहर के सम्पत्ति में जगह नही मिल पा रही है तो कोई महिला कठमुल्लाओं से आपने आबरू और प्राण की रक्षा के लिये जूझ रही है। इस्लाम में नारी की आबरू को नंगा करने में कोई कसर नही छोड़ी जा रही है, कुछ कठमुल्ले नारी के पति को उनकी औलाद तो कभी उसके स्वसुर को उसका पति घोषित कर देता है।
इस्लाम की वर्जनाएं समाप्‍त नही होती है हम महिलाओं के प्रति अत्याचार निम्‍न रूप में देख सकते है-

  1. पैगंबर मोहम्मद ने कहा था की यदि नमाज़ पढ़ते समय आपके सामने से गधा, कुत्ता या औरत निकले तो नमाज़ हराम है। दो औरतों की गवाही एक पुरुष की गवाही के बराबर है. नरक में 95 प्रतिशत महिलाएं हैं।
  2. एक मुस्लिम महिला की जुब़ानी उसी की कहानी - हादिया के बयान और हक़ीकत बिल्कुल बरअक्स हैं. इस्लाम में औरतों की हालत किसी मुस्लिम लड़की के बाप या भाई से पूछो। हमारी ज़िंदगी से तो मौत अच्छी. हर बात पर हमारी औकात बता दी जाती है. मेरा भाई एक ईसाई लड़की से शादी करना चाहता था, वो एक बार मुझसे बाहर मिली और जब मैने उसे अपने तौर तरीके बताए तो उसके चेहरे का रंग उतर गया. उसके मां बाप ने इसके बाद मेरे भाईजान को अपने घर बुलाकर बात चीत की। मुझे पता चला कि मेरा भाई उनके सवालों का कोई जवाब नहीं दे सका। उस दिन के बाद वो मेरे भाई से दुबारा नहीं मिली. मेरा भाई, मेरे अब्बा से बहुत ज़्यादा उखड़ चुका है. अब ये हाल है कि मेरा भाई जो पाँच वक़्त का नमाज़ी था, मज़हब के नाम से ही चिढ़ने लगा है. बड़ी बात नहीं अगर मुझे पता चले कि उसने अपना मज़हब बदल लिया है। सच पूछो तो मुझे अपने भाई से बहुत हमदर्दी है मगर मुस्लिम लड़कियों की ज़िंदगी अख़बार मे छपने वाली बातें नहीं हक़ीकत होती है, जो ना तो रंगीन है और ना ही सपनीली।
  3. एक और महिला कहती है - बहुत बहुत शुक्रिया आप सब का. जब किसी औरत ने अपने उपर हुए ज़ुल्म की वजह से कराहने की जुर्रत की तो सभी लगे मशविरे देने. खुदा करे आप सब एक बार ज़रूर औरत की ज़ात में पैदा हों. तब दर्द का अहसास होगा.मु‍स्लिम धर्म में महिलाओं पर ज्‍यातियॉं स्‍वयं ही धर्म बन चुकी है, आज यह स्थिति है कि एक महिला को मुस्लिम हो सिर्फ कुछ लोगो की जा‍गीर मात्र बन कर रह गई है।
  4. हिन्दुस्तान तरक्की की ऊचाइयाँ छू रहा है वहीं देश का अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय विशेषकर मुस्ल्मि महिलाएँ पिछड़ा हुआ जीवन व्यतीत करने पर अभिशप्त हैं। अशिक्षा, गरीबी, बेरोज़गारी, अधिकारों के प्रति अनभिग होने के कारण हमारे समाज की 14.6 प्रतिशत आबादी (कुल मुस्लिम आबादी, 27 जनवरी 2011 की जनगड़ना के आधार पर) शैक्षिक, आर्थिक एंव सामाजिक रूप से अत्यन्त पिछड़ी हुई है। यदि मुस्लिम महिलाओं का विकास नही हुआ तो पूरे वर्ग को खाई मे गिरने से कोई नही रोक सकता।
  5. कुरान और सही हदीस को देखे तो मालूम होगा कि इस्लाम ने सामाजिक, आर्थिक, नागरिक, कानूनी एंव पारिवारिक मामलों मे जितने अधिकार महिलाओं को दिए है; लिखित रूप से किसी भी धर्म मे नही दिए गए हैं। इन सब के बावजूद आज मुस्लिम महिलाओं को पिछड़ापन, अशिक्षा, बंदिश और पारिवारिक प्रातारणा जैसे चैतरफा दबाव झेलने पड़ते हैं। इस्लाम मे औरतो को उच्च शिक्षा ग्रहण करने और आवश्यकता पड़ने पर घर की चहारदीवारी से बाहर निकल कर रोज़गार करने मे कोई मनाही नही है; पर इसके लिए कुछ शरई (इस्लामी) कानून बनाए गए हैं जिनका पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। शरीयत के हिसाब से महिलाएँ अंग प्रदर्शन न करते हुए अपने शरीर को अच्छी तरह से ढ़के। इसके यह ज़रूरी नहीं कि सर से पैर तक बुर्का पहना जाए। वे अपना हाथ और चेहरा खोल कर बाहर जा कर कार्य कर सकती हैं, परन्तु मुस्लिम बुद्धिजीवियों और उलेमा ने इस्लाम को जटिल स्वरूप दे दिया है। बचपन से ही बच्चियों के मासूम ज़हन मे ऐसी मानसिकता गढ़ दी जाती है कि वे डरी, सहमी और स्वयं को अयोग्य महसूस करती है। उन्हें यह सिखाया जाता है कि वे पुरूषों की कभी बराबरी नही कर सकतीं और उनके सहारे के बिना वे बेबस और लाचार हैं। उन्हें केवल उतनी ही शिक्षा ग्रहण कराई जाती है जिससे वे निकाह के बाद अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकें।
  6. मुस्लिम समुदाय मे युगों से चली आ रही औरतों की दुर्दशा मे नाम मात्र का भी सुधार नही हुआ है। बात केवल उनकी शिक्षा, आज़ादी एंव अधिकार की नही है-ज़रा सी बात पर शौहर का तलाक के तीन शब्द कह कर बीवी को घर से बाहर करना, आकारण एक से अधिक विवाह करना, शौहर के क्रूर व्यवहार और बात-बात पर हाथ उठाने के बावजूद चुपचाप सब सहना, मेहर न अदा करना, शौहर के जनाज़े पर ज़बरदस्ती मेहर माफ कराना, उसकी मृत्यु के पश्चात बीवी के पुनर्विवाह पर परिवार वालो की तरफ से मनाही आदि कई गैर इस्लामी एंव गैर इन्सानी रवायते हैं जिन्हे इस्लाम हरगिज़ सही नही ठहराता। अल्लाह के प्यारे नबी (स0 अ0) का इरशाद है-‘‘ औरतो के साथ सद्व्यवहार की ताकीद करो’’। आपने (स0 अ0) फरमाया-‘‘नमाज़ और औरतों का ख्याल रखना’’।
  7. इस्लाम के अलावा किसी भी धर्म मे लिखत रूप से औरतो को पैतिृक सम्पत्ति मे हिस्सेदार नही बनाया गया है और न ही तलाकशुदा एंव विधवा को दोबारा विवाह करने का अधिकार दिया गया है। ये सारी आज़ादी एंव अधिकार इस्लाम ने औरतों के हित साघन मे दिये है। तलाक को लेकर मुस्लिम समुदाय मे यह मान्यता है कि शौहर यदि एक साथ तीन बार तलाक बोल देता है तो सम्बन्ध विच्छेद हो गया पर यह बिल्कुल गलत हैै । इसके लिए यह शरई कानून है कि एक ही वाक्य मे एक साथ तीन तलाक का देना हराम है और ऐसा करने वाला व्यक्ति अल्लाह के नज़र मे बहुत बड़ा गुनाहगार है। इसका सही तरीका यह है कि पहली और दूसरी बार अलग-अलग समय पर तलाक देने के पश्चात यदि एक माह के भीतर रूजु कर ले अर्थात शौहर-बीवी अपनी गलती का एहसास कर के आपसी रज़ामंदी से पति-पत्नी के रिशते मे बंधे रहना चाहें तो रह सकते है और यदि शैहर ने तीसरी तलाक दे दी तो पति-पत्नी का रिशता खत्म हो जाता है। जहाँ तक मेहर का सवाल है; तलाक देने से पहले या अपनी मृत्यु से पहले शैहर को पूरी रकम (चाहे गहनो या प्रपर्टी के रूप मे हो) बीवी को भुगतान करना आवश्यक है। इसी तरह इस्लाम मे निकाह के लिए औरत और मर्द दानो की रज़ामंदी ज़रूरी करार दिया गया है। ज़बरजस्ती किसी के ज़ोर देने पर हामी भरना कतई गलत बताया गया। अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि निकाह से पहले औरते अपने होने वाले शौहर को एक नज़र देख सकती हैं। शरई तौर पर इतना मज़बूत आधार मिलने के बावजूद कैसे मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है, यह किसी से छिपा नही है।
  8. इस मामले मे मलेशिया ऐसी रूढ़ीवादी परम्पराओं को सिरे से नकार कर एक पूर्ण विकसित देश के रूप मे उभर कर सामने आया है। 60-65 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाले इस देश मे महिलाएँ इस्लामिक शिक्षा के साथ-साथ दुनियावी उच्च शिक्षा भी ग्रहण करती है और हर क्षेत्र मे पुरूषों के बराबर खड़ी नज़र आती हैं। वे अपने अधिकारों के प्रति सजग है और इसमे पुरूष वर्ग उनका भरपूर सहयोग करता है। ओवरकोट और स्कार्फ पहने महिलाएँ युनिवर्सिटी, काॅलेज, दफतर एंव प्रशासन मे ऊँचे ओहदे पर प्रतिष्ठित होने के साथ-साथ नमाज़, कुरान, रोज़ा व अन्य इस्लामिक अपेक्षाओं को पूरी श्रद्धा के साथ करती है। सर्वेक्षण के आधार पर साफ दिखलाई पड़ता है कि आर्थिक विकास के मामले मलेशिया हमसे कई गुना आगे है और वहाँ महिलाएँ हमारे देश की भाँति इतनी अधिक संख्या मे शोषित और प्रताडि़त भी नही होती।
  9. इस्लाम मे दूसरों का हक मारना बहुत बड़ा पाप है। अल्लाह की नज़र मे हर इब्ने-आदम (बाबा आदम की संतान) एक समान है। जिस प्रकार मर्दों को बिन माँगे उनके जायज़ हक (उचित अधिकार) मिलते है उसी प्रकार औरतों को भी बिना किसी भेद-भाव के उनके जायज़ हक मिलने चाहिए।


क्या सही है और क्या गलत ? इसकी शुरूआत कहाँ से हो ? ऐसी व्यर्थ विडम्बनाओं मे सिर खपाने से बेहतर है कि हम कुरान और हदीस देखें। उसका अर्थ समझे, अपने समुदाय की आधी आबादी की भावनाओं को समझे, उनके अधिकार को समझे फिर फैसला लें। ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा कि हम इस्लाम की दुहाई भी दें और उसके उसूलों के खिलाफ औरतों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर उनके अधिकारों का हनन भी करें। यह भी गलत है कि जहाँ पुरूष वर्ग का इस्लामिक कानून मे फायदा है वहाँ वह उसे माने और जहाँ इस्लामिक कानून औरतों के पक्ष मे है वहाँ भारतीय संविधान को प्राथमिकता दें।


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अद‍िति




पता नही कैसे पोस्‍ट हो गया ????




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शह‍ीदी दिवस पर उधम सिंह को नमन



आज शहीद उधम सिंह का शहीदी दिवस है। शहीद उधम सिंह चंद्रशेखर आजाद राजगुरु सुखदेव और भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश हुक्मरान को ऐसी चोट दी, जिसके निशान यूनियन जैक पर दशकों तक नजर आए। स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में 13 अप्रैल 1919 का दिन आंसुओं से लिखा गया है जब अंग्रेजों ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में सभा कर रहे भारतीयों पर अंधाधुंध गोलियां चलाकर सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। उधम सिंह ने इस नरसंहार का बदला लेने का प्रण लिया। इन्‍हे अपने सैकड़ों भाई-बहनों की मौत का बदला लेने का मौका 1940 में मिला। जलियांवाला बाग हत्याकांड के 21 साल बाद 13 मार्च 1940 को रायल सेंट्रल एशियन सोसायटी की लंदन के काक्सटन हाल में बैठक थी जहां माइकल ओ डायर भी वक्ताओं में से एक था। 4जून 1940 को उधम सिंह को हत्या का दोषी ठहराया गया और 31 जुलाई 1940 को उन्हें पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई। इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया। 1974 में ब्रिटेन ने उनके अवशेष भारत को सौंप दिए। आज भारत की ऐसी दशा है, कि नेहरू गांधी के मरघटों को देवालय की तरह पूजा जाता है और उधम सिंह जैसे वीर सपूतो को याद करने के लिये वक्‍त भी नही मिलता। अमर शहीद उधम सिंह नमन ।


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समलैगिंक बनो पर अजीब रिश्‍ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो



समलैंगिकता एक जटिल प्रश्न है, किन्तु यह जिस प्रकार हमारे समाज पर हावी हो रहा है यह विचारणीय हो सकता है, जब दिल्‍ली हाईकोर्ट फिर उच्चतम न्यायालय भी रूल 377 को हटाने का फैसला कर चुके है तो अब कोई अदालत नहीं बचती कि वहाँ इसके खिलाफ अपील की जाए।


मैंने अभी तक किसी को पढ़ा उन्होंने लिखा था समलैंगिकता भले ही अपराध न हो किन्तु अनैतिक जरूर है, मै इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ। तथा यह भी जोडना चाहूंगा कि समलैंगिकता को सामाजिक चोला पहनाना उससे भी बड़ा अनैतिक है। वह दृश्य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल अप्राकृतिक सेक्स के लिये समलैंगिक विवाह करेंगे, अर्थात संतान की इच्‍छा विवाह का आधार नहीं होगा।
आज हम अपने मित्र के साथ आराम से गले में हाथ डालकर रास्ते में चल सकते थे किन्तु कोर्ट के इस फैसले के बाद अब तो ऐसा करने से डर लगता है, कहीं लोग हमें ऐसा देख कर यह न कहे- देखो-देखो गे कपल जा रहे है। निश्चित रूप से कोर्ट के इस फैसले के बाद दोस्ती शर्मसार होगी। आज कल आपसी दोस्तो के मध्य समलैंगिक चर्चा आम हो गई है। हम आराम से आज समलैंगिक चर्चा कर लेते है कि- यार इतना चिपक कर क्यों बैठ रहे हो?
 
कम से कम भारत के संदर्भ में यह चित्र उचित नहीं है जिस प्रकार खुले आम किया गया।

समलैंगिक होना गुनाह नही है, समलैंगिक भी इंसान है, और हो सकता है आम आदमी से ज्यादा ईमानदार। कोर्ट के फैसले के बाद जिस प्रकार से समलैंगिक शादियों का दौर चला वह निंदनीय था। धारा 377 जब गुनाह था तो भी समलैगिंक सेक्‍स होता था, आज भी सम्‍भव है, इसके लिये सामाजिक मान्यता देना गलत है और आज आवश्यकता कि सहमति से स्‍थापित समलैंगिक सेक्‍स दण्‍ड से दूर रखा जाता न कि विवाह की मान्यता देना।

कौन कहता है कि भारतीय नारी पिछड़ी है ? आदमी तो आदमी नारियों में भी है यह बीमारी

हिन्दू विवाह का उद्देश्य सिर्फ विवाह का उद्देश्य सिर्फ सेक्‍स ही नही सन्‍तानोत्‍पत्ति भी है, बिना संतान उत्पत्ति के विवाह का उद्देश्य अपूर्ण है। अब आदमी का आदमी के साथ और औरत का औरत का विवाह वो भी सिर्फ अप्राकृतिक सेक्‍स यह तो उचित नही जान पड़ता है। वे आपस में दोस्‍त बन रहे, सेक्‍स करे या भाड़ मे जाये यह उन पर निर्भर करता है, किंतु ऐसे सम्‍बन्‍धो को विवाह का नाम देना विवाह जैसे पवित्र बंधन हो गाली देना होगा।

चित्र विभिन्‍न सूत्र से साभार


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चिट्ठकारी की दुकान चलाना हर किसी के बस में नही



चिट्ठकारी की दुकान कुछ की बहुत तेजी से चल रही है तो कुछ की सुप्‍तावस्‍था में तो कुछ की बंद भी हो गई। हिन्‍दी चिट्ठाकारी में बड़े बड़े समूहों ने हाथ आजमाने की कोशिश की उसी में एक जो‍श18 समूह का गरम चाय> जून 2006 से चलते चलते अप्रेल 2009 में बंद हो गया। आज चिट्ठाकारों के द्वारा चिट्ठाकारी बंद करना तो समझ में आता है किन्‍तु इतने बड़े समूह द्वारा चली चलाई चिट्ठकाकारी बंद करना समझ से परे है। खैर जो कुछ भी है चिट्ठाकारी को शुरू करने के समय उत्‍साह और बंद करने के कारणों पर विचार करना चाहिये।


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ब्‍लॉंगवाणी को लेकर इतनी टेंशन क्‍यो ? मेरे ब्‍लाग को हटाने से मुझे आपत्ति नही।



मेरी कल की TimeLoss की पोस्‍ट पर वयस्‍क समग्री- क्रिकेटर गाली भी देते है!!! (वयस्‍क समग्री कृपया जाने से पहले सोचे) पर ज्ञान जी ( अपने मानसिक हलचल वाले ज्ञान जी नही है, उनके पास टाईम कहाँ ) तो विफर ही पड़े है, मै समझ नही पा रहा हूँ क्यो ? शायद क्रिकेटरों के द्वारा दी गई गली उन्हें हजम नहीं हो रही है, मेरे पास हाजमोला भी नही है। मै भी स्वीकार करता हूँ कि गालियाँ वास्तव में खराब है, और मैंने पोस्ट करते हुए अपनी बात को लिखा भी था। हो सकता है ज्ञान जी गंभीर के गंभीर प्रशासन होगा या अफरीदी के जो उन्हें गालियां अच्छी नही लग रही, मै किसी का प्रशंसक नही हूँ, किन्तु मुझे भी गालियाँ अच्छी नहीं लग रही, किन्तु क्रिकेट खिलाडियों के ये वारदात किसी को हँसने से रोक नहीं पा रही है। यह पोस्ट मैंने सिर्फ मनोरंजन और हकीकत रखने के लिये किया था न कि गालियों के समृद्धि विकास और उन्नयन के लिये इस पर तो उनका बिफरना नाहक है।
थोड़ा पोस्‍ट के वीडियो पर भी लिखना चाहूँगा, यह वीडियो यूट्यूब पर April 03, 2009 को डाला गया है। अभी तक यह विडियों विद्यमान है अर्थात यूट्यूब द्वारा अश्लीलता या अशिष्टता की श्रेणी में नही है, अगर यह जब भी यूट्यूब समूह द्वारा यूट्यूब पर द्वारा हटाया जायेगा स्‍वत: ही मेरे ब्लॉग से हट जायेगा। इस विडियों में गाली थी, जिसकी सूचना मैने अपने पोस्‍ट में कर दी थी। बहुत से पाठक/दर्शक आये, ब्‍लाग पोस्‍ट को देखा, आनंद लिया, कुछ ने पंसद किया और टिप्‍पणी करना उचित न समझ कर चले गये। मैने इस पोस्‍ट को मर्यादा के दायर में रख कर तैयार किया था, चेतवनी भी लिख थी कि टाईम लॉस के नाम कोई अनैच्छिक साम्रगी न देख ले, और उसे ग्‍लानि का एहसास हो, अगर आप चेतवनी के बाद देखते है और अन्‍य लोगो के मध्‍य देखने को प्रचारित करते है तो आपकी गलती है।

ब्‍लागवाणी को लगता है जन भावना के आधार पर मेरी उस पोस्‍ट जो टाईम लॉस पर आई थी के कारण ब्‍लागवाणी से हटाने योग्‍य है तो हटा दिया जाये, मुझे कोई आपत्ति नही है। क्‍योकि जन भावना को ध्‍यान में रखकर किये गये कार्य में मुझे क्‍या आपत्ति होगी। ब्‍लागवाणी के अनुसार करीब 35 लोगों द्वारा यह पोस्‍ट पढ़ी करीब 10 लोगो द्वारा पंसद की गई। (लेख लिखे जाने तक) जहाँ तक ब्लॉगवाणी को हिन्दू वाणी और संतवाणी के नामकरण का सम्बन्ध है तो यह काम ब्लॉगवाणी के संचालको का है, वो इतने समर्थवान है कि सब कर सकते है, किसी के अनुशंशा की आवश्यकता नही है। अब कोई इस बात पर अड़ा रहे कि इनकी गंदगी ब्लागवाणी पर आयी मेरी नही तो यह कहना गलत बात है। वो पोस्ट कोई गंदगी न होकर क्रिकेटिया खिलाड़ियों के बीच की बात था, जो सच था और सब न मैच मै लाईव देखा रहा होगा, किन्तु आज इतना ज्यादा हुआ है किसी ओठ की भाषा को पढ़ पाने वाले जानकार ने अपने शब्द भर दिये है, इन महाशय को यह बुरा लग रहा है।

रही ब्लॉग बात ब्लॉग को फ्लैग करने की तो झंडा इसलिए लिये लगाया जाता है, ताकि शोक काल में उसे झुकाया जा सके है, मेरे उक्त ब्लॉग से जिसे शोक हो आराम से झंडा लहराए मुझे कोई दिक्कत नहीं है। आगे भी अच्छी-खराब (कोशिश होगी कि ज्यादा से ज्‍यादा अच्‍छी ही हो किन्तु क्रिकेटर जैसे क्रिकेट प्रेमियों के भगवान ऐसा अवतार) बाते आपके सामने लाता रहूँगा।


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लुघु पोस्‍ट - हो गये चिट्ठाकारी को तीन साल



आज चिट्ठाकारी में मुझे 3 साल पूरे हो गये, चौथे साल में प्रवेश कर रहा हूँ। तब से अब तक में बहुत कुछ बदल गया, सबसे ज्यादा सक्रियता। एक समय ऐसा था कि 2007 August ही अकेले 32 पोस्ट हुई थी, आज की गति ये है कि आधा साल बीतने को है 34 पोस्ट ही लिख पाया हूँ। आत्मसंतोष की घंटी बजा सकता हूँ कि आज-तक चिट्ठाकारी जारी है। ब्‍लाग के आर्चीव2009 (34), 2008 (114), 2007 (152) व 2006 (28) पोस्‍टों के साथ चार साल के दर्शन कर भविष्य में चिटठकारी के लाईफ टाईम अचीवमेंट की दौड़ में आगे बने रहने ख्वाब पाल सकता हूँ। :)

आज बहुत ज्यादा लिखने का इरादा नहीं है, लघु पोस्ट से ही काम चला लीजिए। जल्द ही मिलूँगा, आप सभी के स्नेह व प्रोत्साहन लिये धन्यवाद। चूंकि यह पोस्ट कल ही आनी थी, 30 जून को ही मैंने चिट्ठाकारी प्रारम्भ की थी, किन्तु कल का दिन व्यस्तता भरा होने के कारण पोस्ट नहीं कर सका।


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