इलाहाबादी चिक्-चिक् का मतलब !



पिछले कई दिनो से जारी इलाहाबादी चिक-चिक बंद होने का नाम नहीं ले रही है। इलाहाबाद में सम्पन्न हुई ब्‍लागर मीट के बाद से शामिल होने वाले भी और न शामिल होने वाले लिखने पढ़ने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। कहने वाले कुछ भी कहे किन्तु यर्थात से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि या अध्यक्ष कौन थे यह ब्लॉगरों के मध्य चर्चा का विषय हो सकता है और हुआ भी है, किन्तु इन सब के बीच कुछ सबसे महत्वपूर्ण बात हम सब भूल रहे है, मै उसे याद दिलाना चाहूंगा।

पहली की सिद्धार्थ जी की पुस्तक सत्यार्थ मित्र का प्रकाशन, किसी ब्लॉगर ने उन्हें इनके इस साहसिक काम से लिये बधाई देना भी उचित नहीं समझा, सर्वप्रथम मै अपनी इस पोस्ट के माध्यम से बधाई देता हूँ। यह किताब इसलिए भी महत्वपूर्ण है, अभी तक ब्‍लाग पोस्‍ट पर आधारित यह पहली किताब है। यह एक जज्‍बा है कि कोई भी ब्लॉगर इस मुकाम को हासिल करने का प्रयास करेगा।

मै इसी बात पर मै अपनी चिट्ठकारी के सम्‍बन्‍ध में एक छोटी सी बात बताना चाहूँगा- मैने चिट्ठकारी को एक खेल के रूप शुरूवात किया था, पता नही था कि महाशक्ति इस मुकाम तक पहुँच जायेगी। चिट्ठकारी मे अपने ब्‍लाग के लिये सीढ़ी के स्‍टेप की भातिं अपने लक्ष्य निर्धारित किया। जब मै किसी ब्‍लाग पर ज्‍यादा टिप्‍पणी देखता था तो मन करता था कि ऐसा मेरे ब्‍लाग पर भी हो मैने यह लक्ष्‍य भी पूरा किया। जब किसी ब्लाग पर सभी महत्‍वपूर्ण ब्‍लाग पर यह देखता था कि सभी महत्‍पूर्ण ब्‍लागर(तत्कालीन समय के अनूप जी, जीतू भाई, अरूण जी, रवि रतलामी जी, उन्‍मुक्‍त जी सहित अनेको) के कमेन्‍ट है ऐसा मैने भी लक्ष्‍य बनाया और उसे प्राप्‍त किया। एक लक्ष्‍य मैने यह बनाया कि नारद और ब्‍लागवाणी पर मेरा ब्‍लाग टाप पर रहे तो मैने यह भी लक्ष्‍य पूरा किया। ब्‍लागवाणी पंसदगी में आप सबके सहयोग और स्‍नेह के कारण भी सर्वाधिक पंसद और पठनीयता के एक साल के आकडे में टॉप के 100 ब्‍लागो में अपना नाम बनाने में कामयाब रहा है। अन्‍य ब्‍लागरो को ब्‍लाग से पैसा बनाते देखा तो लक्ष्‍य रखा कि मै भी चिट्ठकारी से पैसा बनाऊँगा और उस लक्ष्‍य की मैने पूर्ति की और गूगल एडसेंस के जरिये पैसा भी बनाया और अपने लिये ई-बाईक भी खरीदी। लोगो को पेपर मे छपता देखा तो मेरे मन भी लालसा थी कि मै भी पेपर मे आऊँ और लक्ष्य बनाया और बीते महीने सर्वश्री ज्ञानजी सिद्धार्थ भाई से साथ पेपर में(फोटो के साथ) छपने का भी मौका भी मिला। जब कम्युनिटी ब्लॉग को देखा तो मेरे मन भी रहा कि मेरा भी एक कम्युनिटी ब्लॉग हो और मैने उस लक्ष्य को भी पूरा किया, महाशक्ति समूह के रूप में मेरे पास भी एक सामूहिक ब्‍लाग है। जब ब्लॉगर मीट होते देखता था तो लक्ष्य बनाया कि मै भी ऐसे मीट का हिस्सा बनूँ तो दिल्ली, फरीदाबाद, गुड़गांव, आगरा, कानपुर और जबलपुर जैसे शहरों में ब्लॉगर मीट भी किया। मै हिन्‍द युग्‍म जैसे महान समुदाय का सदस्य हूँ इस पर भी गर्व है। अपनी मजबूरियों के कारण इस महान समूह को समय नहीं दे पा रहा हूँ। ऐसे हर लक्ष्य को पूरा करने के बाद मै सोचता था कि अब चिट्ठाकारी को आराम से छोड़ सकता हूँ, क्योंकि जो भी मिलेगा उससे आराम से कहूँगा मैने चिट्ठकारी के हर लक्ष्य को पाया जो बड़े ब्लॉगर ने पाया है। मगर चिट्ठकारी छोडने का मुकाम अभी तक हासिल नही कर पाया हूँ, क्‍योकि हर पल नये नये मुकाम आ जाते है, सिद्धार्थ जी की पुस्‍तक आने के बाद एक लक्ष्‍य यह भी बना सकता हूँ कि अपनी भी एक किताब हो। यानी जब तक किताब नही छपती तब तब को चिट्ठकारी करनी ही पड़ेगी। श्रीश भाई काफी समय का अवकाश ले चुके है और हाल में ही वापसी की है, मेरा भी मन कर रहा है कि कुछ समय का अवकाश ले लिया जाये, जल्‍द ही इसके बारे में सोच रहा हूँ।

आज महाशक्ति के पास अपना डोमेन है, अपने पाठक है, पिछले 30 दिनो में महाशक्ति और महाशक्ति समूह पर कुल 11 लेख प्रकाशित हुये और इन पर करीब 6 हजार पेज लोड हुये प्रति पोस्‍ट के हिसाब से 550 पाठक और 30 दिनो के हिसाब से प्रतिदिन औसत 200 पाठक मिल रहे है, जब कि मै एक एक्टिव ब्‍लागर नही हूँ। मुझे एक ब्‍लागर के रूप में इससे ज्‍यादा और कुछ भी नही चाहिये, और दिनो दिन ज्‍यादा मिल ही रहा है।



पुन: इलाहाबादी ब्लॉगर मीट पर आना चाहूँगा, कार्यक्रम कैसा भी था कार्यक्रम सम्पन्न हुआ इसके लिये सिद्धार्थ जी बधाई के पात्र है। निमंत्रण पाकर कार्यक्रम में शामिल होने की अपेक्षा हर किसी की होती है, मेरी भी हुई, और होनी भी चाहिए। राजा दक्ष की पुत्री और भगवान शिव की पत्नी सती को भी बिन बुलाये का परिणाम झेलना पड़ा था। मेरे घर में गृह निर्माण का काम चल रहा था, और मुझे कार्यक्रम में विषय में बिल्कुल भी याद नही था, कार्यक्रम के सम्बन्ध में अंतिम बार करीब 10-15 दिनों पूर्व मोबाइल पर ही बात हुई थी, उसके बाद कोई भी बात नहीं हुई थी। इन दिनों इंटरनेट पर मेरी सक्रियता नाम मात्र की ही थी, ईमेल देख पाना ही मात्र हो पाता है। मेरा प्रिय आर्कुट भी मेरी उपस्थिति से महरूम है। इस बीच किसी माध्यम से मुझे कार्यक्रम की सूचना नहीं मिल पाई। 23 तारीख की 10.30 बजे के आस पास सुदर्शन ब्लॉग के श्री मिश्र जी कार्यक्रम के सम्बन्ध में फोन आया और मुझे कार्यक्रम की जानकारी मिली और उसके तुरंत बाद इलाहाबाद के पत्रकार ब्‍लागर हिमांशु जी फोन आया दोनों मित्रों को मैने शाम को खाली होने पर कार्यक्रम पर पहुँचने की बात कही, और शाम को समय मिलने के साथ कार्यक्रम में पहुँचा भी, और इसी प्रकार अगले दिन भी मैने उपस्थिति दर्ज करायी। इसके लिये किसी को दोष देने का कोई मतलब नही है क्‍योकि ऐसे बड़े कार्यक्रम में थोड़ा बहुत ऊँच नीच हो होती है, कम से कम मेरे पहुँचने या न पहुँचने को लेकर इस प्रकार का विवाद नही ही होता चाहिये। सिद्धार्थ जी से मेरे अच्‍छे सम्‍बन्‍ध है हम चिट्ठकारी के सम्‍बन्‍ध में अपनी छोटी बड़ी बाते शेयर करते आये है, साथ चाय भी पिया है और बिस्‍कुट और नमकीन भी खाया है। :) छोटा हूँ तो बड़े भाई से कुछ अपेक्षा करता हूँ तो गलत नही है।

सुरेश जी की एक पोस्‍ट मेरे सम्‍बन्‍ध में आयी थी, उन्‍होने पोस्‍ट में मुझसे क्षमा माँगा था। मै उस दिन को काले अध्याय मानूँगा जब मै अपेक्षा करूँ कि मेरे बड़े भाई चाहे वो सुरेश जी हो या सिद्वार्थ जी जिनसे मै अपेक्षा करूँ कि वे क्षमा मॉगे, अगर मेरी चिट्ठाकारी में वो दिन आता है तो मेरा वह आखिरी दिन होगा।

सुरेश जी की उस पोस्ट का मै उतना ही समर्थन करता हूँ जितना कि सिद्धार्थ भाई का। उन्होंने जो कुछ भी कहा ब्‍लागरो का एक बड़ा वर्ग उनके समर्थन में है, नामवर सिंह जी को लेकर जो भी बाते समाने आयी हो। अगर ब्‍लागर समुदाय इसमें आपत्ति दर्ज करता है तो मै भी सभी ब्‍लगारो के साथ हूँ। जो व्यक्ति चिट्ठकार और चिट्ठकारी के सम्‍बन्‍ध मे सही राय न रखता हो इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है ? श्री सिद्धार्थ भाई के प्रयास से यदि कुछ आर्थिक सहयोग मिल गया और कार्यक्रम सम्पन्न हुआ तो इसके लिये मै उन्हे धन्यवाद देता हूँ।

मुझे नहीं लगता कि ब्‍लागर इतने कमजोर है कि उन्हे किसी मीट के लिये सरकारी या किसी संस्‍था से आर्थिक सहयोग की अपेक्षा करे। जो ब्‍लागर एक महीने में 500 से लेकर 3000 रुपये तक का मासिक इंटरनेट कनेक्शन ले सकता है साल में एक बार आयोजित होने वाली ब्लॉगर मीट के लिये खर्च वहन नहीं कर सकता। इलाहाबाद में आयोजित मीट में मेरे हिसाब से करीब 25 पूर्ण रूप से आर्थिक संपन्न ब्‍लागर थे जो सामूहिक रूप से किसी भी प्रकार के कार्यक्रम का आयोजन कर सकते थे , और भविष्‍य में ऐसा प्रयास होना चाहिए। जरूरी यही है कि चिक-चिक का अंत हो।

आज बहुत लंबी पोस्ट हो गई, दिल से लिखी पोस्ट है, बुरा लगे तो भी बुरा मत मानिएगा।

नोट- आज से 4 दिनों पूर्व यह पोस्ट लिखी थी पिछले 4 दिनों से इंटरनेट कनेक्‍शन पूरे क्षेत्र में खराब था जिससे यह आज पब्लिश कर पर रहा हूँ।


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आतंक की राह पर इस्लाम और कुरान



9/11 Ka Islamic Atack
फिर जब हराम के महीने बीत जाएं, तो 'मुश्रिकों'* को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और घात की जगह उनकी ताक में बैठो । फिर यदि वे ' तौबा ' कर लें नमाज कायम करें, और जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि:सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है । *मूर्तिपूजको (कुरान - '10 पार: 9 शूर: 5 वीं आयत) 
आतंक की राह पर इस्‍लाम और कुरान

यह बाते स्पष्ट रूप से कुरान में लिखी हुई, क्या किसी धार्मिक पुस्तक में इस तरह मार-काट का उल्लेख होना चाहिए? क्या ऐसी पुस्तकों को धर्म ग्रंथ का दर्जा दिया जाना चाहिए ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है किन्तु उठना वाजिब है। इस पुस्तक का उपरोक्त भाग पढ़कर यही लग रहा है कि इसमें धर्म की बात न होकर आतंकवादी हमले का प्रशिक्षण दिया जा रहा हो। जहाँ मूर्तिपूजक मिले उनका कत्ल कर दो, घात लगा कर बैठो, यदि तौबा कर छोड़ दो। अल्लाह अपने भक्तों को आतंकवादी प्रशिक्षण दे रहा है, दूसरी ओर भक्तों के आतंक से जो लोग इस्लाम कबूल कर ले तो अल्लाह क्षमाशील हो जाता है, दयावान हो जाता है। क्या इस तरह भटकाओ का रास्ता बताना ही धर्म का मार्ग है ?

धर्म की सही व्याख्या करते हुये ईशोपनिषत् मे लिखा गया है-
ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥


अर्थात- अखिल विश्व में जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब में ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्‍पन्‍न होते हुये से तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो। आसक्त मत हो कि धन अथवा भोग्‍य पदार्थ किसके है अथार्थ किसी के भी नहीं है ? अतः: किसी अन्य के धन का लोभ मत करो क्योंकि सभी वस्‍तुऐ ईश्वर की है। तुम्हारा क्या है क्या लाये थे और क्या ले जाओगे।

हिन्दू धर्म कभी किसी से नहीं कहता कि भगवान को न मानने वाले के साथ मार-काट करो हमारे भगवान तो-
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

- की भावना में ही खुश रहता है। लाख कोई इस्लाम की पैरवी कर ले किन्तु जब तक भाव में आतंक का पर्याय समाप्त नहीं होगा, हिन्दू व अन्य धर्मों को गाली देने से अल्लाह तो खुश होगा किन्तु जनमानस नहीं खुश होगा। जैसा कि कुछ नुमाईदें कर रहे है। इस्लाम में अपनी कुछ अच्छाइयां है उसे हिन्दू समाज कभी अपनाने/मानने से पीछे नहीं हटा किन्तु दुनिया भी की दकियानूसी सोच को पाले रहने से इस्लाम का भला कर सकते हो तो करो किन्तु किसी अन्य धर्म को गलत सिद्ध करना ठीक नहीं।


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बुढे नेहरू का परिणाम विभाजन



 

‘’मैने कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसा होगा मै जीते जी पाकिस्तान देख सकूँगा।‘’ ये शब्द पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना के है, यहाँ जिन्ना या मुस्लिम लीक को पाकिस्तान का निर्माता कहना बेमानी होगा क्योंकि पाकिस्तान का निर्माता और कोई नही नेहरू और कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व था।
तत्कालीन काँग्रेस नेतृत्व थक चुका था यह बात नेहरू द्वारा 1960 में लियोनार्ड मोसले के साथ बात के दौरान हुई थी। नेहरू कहते है – ‘ सच्चाई यह है कि हम थक चुके थे और आयु भी अधिक हो चुकी थी। हम में से कुछ ही लोग फिर कारावास में जाने की बात कर सकते थे और यदि हम अखण्‍ड भारत पर डटे रहते जैसा कि हम चाहते थे तो स्पष्ट है कि हमें कारागार जाना ही पड़ता। हमने देखा कि बंटवारे की आग भड़क रही है और सुना कि प्रतिदिन मार काट हो रही है। बंटवारे की योजना ने एक मार्ग निकालना जिसे हमने स्वीकार कर लिया।‘ नेहरू के ये वाक्य कांग्रेस की कमजोरी तथा उनकी सत्ता लोलुपता का बयां कर रहे थे, क्योंकि कांग्रेस चाहती थी किसी प्रकार से स्वतंत्रता लेना चाहती थी चाहे वह विभाजन से ही क्यो न हो।
 
कांग्रेस की कमजोरी के सम्बन्ध में श्री न.वि. गाडगिल कहते है- देश की मुख्य राजनीतिक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, उसके नेता बूढ़े हो चुके थे, थक चुके थे। वे रस्सी को इतना अधिक नहीं खींचना चाहते थे कि वह टूट जाये और किये धरे पर पानी फिर जाए। श्री गाडगिल का उक्‍त कथन कांग्रेस की आजादी की लड़ाई के काले अध्याय की ओर हमें ले जाती है। कांग्रेस और काग्रेंसी खास कर नेहरू अपनी महत्वाकांक्षाओं की नैया पर इतना बोझ लाद चुके थे कि अपनी नैया को बचाने के लिये पाकिस्तान की मांग स्वीकार कर लिया।
नेहरू की महत्वकांक्षाओ के सामने गांधी जी भी टूट चुके थे, मैंने कई बार गांधी जी को विभाजन के लिए दोषी ठहराया है और आज भी ठहराता हूँ, गांधी जी भारत विभाजन रोक सकते थे, इसके लिये गांधी जी को अपने जीवन का सबसे बड़ा बलिदान करना पड़ता, हो सकता है कि उनके प्राण चले जाते किंतु गांधी के बल पर भारत टूटने से बच सकता था ये प्राण लेने वाला कोई गोडसे कांग्रेस ही होता। गांधी जी को भारत विभाजन के प्रस्‍ताव पर बहुत दर्द था वे दर्द के साथ कहते है- ‘मै भारत विभाजन का विरोधी हूँ किन्‍तु हमारे नेताओं ने इसे स्‍वीकार कर लिया है, और अब हमें भी इसे स्‍वीकार कर लेना चाहिये। मै इस स्थिति मे नही हूँ कि वर्तमान काग्रेंस के नेतृत्‍व को बदल सकूँ, यदि मेरे पास समय होता तो क्‍या मै इसका विरोध नही करता ? मेरे पास नया नेतृत्व देने के लिये विकल्प ही नहीं था कि मै कह सकूँ कि यह लीजिए यह रहा वैकल्पिक नेतृत्व। ऐसे विकल्प के निर्माण का मेरे पास समय नही हर गया, इसलिए मुझे इस नेतृत्व के फैसले को कड़वी औषधि की भाति पीना ही होगा, आज मेरे में ऐसी शक्ति नही, अन्यथा मै अकेला ही विद्रोह कर देता।‘ भले गांधी जी उक्त बात करते समय नेताजी सुभाष का नाम लिये हो किंतु निश्चित रूप से नेहरू के पंगु विकल्प के रूप से गांधी जी नेताजी को जरूर याद किये होगे।निश्चित रूप से गांधी जी को अपने नेतृत्व चयन पर कष्ट हुआ होगा।
 
गांधी जी की नेतृत्‍व चयन की भूल और नेहरू की महत्‍वकांक्षाओं का परिणाम था कि आज विभाजित भारत हम देख रहे है, आज 18 करोड़ मुसलमान मौज के साथ रह रहे है आज से 60 साल पहले 4-5 करोड़ मुसलमान भी रह सकते थे। कांग्रेस सत्ता भोगी नेतृत्व का ही परिणाम हमारे सामने है। तत्कालीन समय में अंग्रेजों का भारत छोड़ना अपरिहार्य हो गया था किन्तु वास्तव में विभाजन अपरिहार्य नही था।


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