पवित्रीकरण मंत्र - ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ‘स्नान’ एक अहम कार्य है। यदि यह आध्यात्मिक नियमों के अनुसार किया जाए तो ही फलदायी होता है। इसके अनुसार स्नान करने का सही समय सुबह 4 बजे का है जिसे ‘ब्रह्म मुहूर्त’ कहा जाता है। गंगा के तट पर पानी में लगातार डुबकियां लगाता इंसान क्या सोचता है? शायद वह यही सोचता है कि यही वो मार्ग है जो उसे जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष पाने में सहायक होगा। यह मार्ग उसके जीवन-मरण के चक्र को खत्म कर उसे संसार के जंजाल से बाहर निकालने में मदद कर सकेगा।ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
(हरिभक्तिविलस ३।३७, गरुड़ पुराण)
Om Apavitrah Pavitro Vaa Sarva-Avasthaam Gato-[A]pi Vaa |
Yah Smaret-Punnddariikaakssam Sa Baahya-Abhyantarah Shucih ||
Whether all places are permeated with purity or with impurity,
whosoever remembers the lotus-eyed Lord (Vishnu, Rama, Krishna) gains inner and outer purity.
चाहे (स्नानादिक से) पवित्र हो अथवा (किसी अशुचि पदार्थ के स्पर्श से) अपवित्र हो, (सोती, जागती, उठती, बैठती, चलती) किसी भी दशा में हो, जो भी कमल कमल नयनी (विष्णु, राम, कृष्ण) भगवान का स्मरण मात्र से वह (उस समय) बाह्म (शरीर) और अभ्यन्तर (मन) से पवित्र होता है |
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