मुख्यमंत्री घूस निधि



मुख्यमंत्री घूस निधि

उत्तर प्रदेश सरकार के किसी भी विभाग के दफ्तर में, अधिकारी और बाबू के दस्तखत करने के रेट निर्धारित है, बिजली विभाग में बहुत जगह अपने प्रभाव से बिना "अधिकारी निधि" का भुगतान किये काम करवा लिए, अन्तोगत्वा चालान जमा करने एक 500 रु. का फॉर्म भरने के को कहा गया और यह पूछने पर कि फॉर्म कहाँ मिलेगा अमुक ठेकेदार के पास की सूचना मिली।
ठेकेदार के पास पहुंचने पर फॉर्म का मूल्य 1000 रु. हो चूका था जिसकी कोई रसीद मांगे जाने पर भी उपलब्ध नहीं थी, घूस देना और लेना दोनों कानूनन जुर्म है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से लिए जाने वाले घूस का क्या इलाज़ है? वास्तव में प्रदेश में किसी भी विभाग में बिना घूस के कोई काम संभव ही नहीं है।
एक सुझाव है कि प्रदेश में घूस प्रथा को कानूनी मान्यता दे देनी चाहिए. "मुख्यमंत्री घूस निधि" नाम से विभाग बने जहाँ पर निधारित कम के लिए घूस देकर रसीद जनता रसीद कटवा ले ताकि जनता को प्रत्येक पटल पर फुटकर में घूस देने बचना पड़े और घूस देना और लेना दोनों कानूनन जुर्म है के अपराध और अपराधी दोनों बचे रहे। एक माह में मुख्यमंत्री घूस निधि विभाग द्वारा एकत्र राशि को मंत्री, विधायक, अधिकारी और कर्मचारियों में औकातानुसार वितरित कर दिया जायेा। 


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गाँधी और सुभाष



गाँधी और सुभाष
गाँधी जी सुभाष बाबू की गतिविधियों सको लेकर बहुत चिंतित थे एक ख़ुफ़िया ब्रिटिश रिपोर्ट के अनुसार बम्बई में एक निजी बैठक में उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा- "मैं जनता हूँ कि देश में 'फारवर्ड ब्लॉक' एक जबरदस्त संगठन है सुभाष बाबू ने हमारे लिए बहुत जोखिम उठाया है किन्तु वे भारत में अपनी सरकार स्थापित करना चाहते है तो उन्हें रोकना पड़ेगा"
(ट्रांसफ़र ऑफ़ पॉवर-II क्र.  90.  26 मई 1942 को ख़ुफ़ियाविभाग की रिपोर्ट पृष्ट 35 )






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गलत काम सरकार करे और महाधिवक्ता ठीक पैरवी नहीं कर रहे है



गलत काम सरकार करे और महाधिवक्ता ठीक पैरवी नहीं कर रहे है

कुछ समाजवादी ऐसी करते है जैसे इन्कोउन्टर सिर्फ गुजरात में ही होते है... वास्तव में उत्तर प्रदेश तो तो आतंकियों को ही पुलिस, सेना और जनता का इन्कोउन्टर की पूरी छूट अखिलेश सरकार ने दिया हुआ है.. 
 
अखिलेश यादव सरकार ने 29 मामलों में 15 आरोपियों से मुकदमे वापस लेने की घोषणा की। जिन आरोपियों का मुकदमा वापस लेने की पहल की गयी उसमे 23 नवम्बर 2007 में फैजाबाद, वाराणसी और लखनऊ में हुए विस्फोटों के आरोपी तारिक काजमी, 2008 में रामपुर में सीआरपीएफ कैंप में हुए हमले के आरोपी जावेद उर्फ गुड्डू, ताज मोहम्मद और मकसूद शामिल हैं। इनके अलावा देश विरोधी गतिविधियों के आरोपी बिजनौर का रहने वाला नौशाद, याकूब और नासिर हुसैन शामिल है। इनके साथ ही अहमद हसन, शमीम, मो. कलीम अख्तर, अब्दुल मोईन, अरशद, सितारा बेगम और इम्तियाज अली के मुकदमों की वापसी विचाराधीन है।
 
इस मामले लखनऊ हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने एसपी सरकार से पूछा है आतंकी मामलों में बंद आरोपियों से मुकदमे वापस लेने के पीछे कौन है? कोर्ट ने सरकार से वे दस्तावेज तलब किए हैं जिनमें मुकदमे वापसी की कार्यवाही शुरू करने संबंधी नोटिंग की गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से विशेष तौर पर वह दस्तावेज तलब किया है जिसमें पहली बार आदेश किया गया कि आतंकवाद के आरोपियों से मुकदमे वापस लेने की कार्यवाही शुरू की जाए। हाईकोर्ट के बार-बार आदेश के बावजूद सरकार द्वारा मुकदमे वापसी से संबंधित मूल दस्तावेज अदालत में पेश न किए जाने पर 3 जजों की बेंच ने सख्त नाराजगी जाहिर की है। जस्टिस डीपी सिंह, जस्टिस अजय लाम्बा व जस्टिस अशोक पाल सिंह की बेंच ने सरकार से अगली तारीख तक विभिन्न जिलों में सरकार की ओर से लगाई गई अर्जियां व अन्य दस्तावेज पेश करने का आदेश देना पड़ा। इसके बाद अखिलेश सरकार को कड़ी फटकार लगते हुए 2 जजों की बेंच ने आतंकवाद के 19 आरोपितों से मुकदमे वापस लेने पर अंतरिम रोक लगा दी थी। ये है अखिलेश सरकार के कृत्य कि जबतक घोड़ी पर चाबुक इस्तेमाल न किया जाये वो काबू में नहीं आती है..

कोर्ट में सरकार के कुकृत्यों से अजीज आकर प्रदेश के महाधिवक्ता एसपी गुप्ता ने इस्तीफा दे दिया, आखिर बेइज्जती से लाल बत्ती बड़ी नहीं होती है और समाजवादी पार्टी के लोग बोल रहे है की श्री गुप्ता सरकार की ठीक पैरवी नहीं कर रहे थे ये बताइए हत्या, बलात्कार और दंगे और गलत काम सरकार करें और महाधिवक्ता ठीक पैरवी नहीं कर रहे है, सरकार गलत काम बंद करें पैरवी भी ठीक हो गाएगी..


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