भारतीय दंड संहिता की धारा 503, 504 व 506 के अधीन अपराध एवं सजा



भारतीय दंड संहिता की धारा 503, 504 व 506 के अधीन अपराध एवं सजा
 
आईपीसी की धारा 503 - आपराधिक अभित्रास 
सजा/दंड - जो कोई किसी अन्य व्यक्ति के शरीर, ख्याति या सम्‍पत्ति को या किसी ऐसे व्यक्ति के शरीर या ख्याति को, जिससे कि वह व्यक्ति हितबद्ध हो कोई क्षति करने की धमकी उस अन्य व्यक्ति को इस आशय से देता है कि उसे संत्रास कारित किया जाए, या उससे ऐसी धमकी के निष्पादन का परिवर्जन करने के साधन स्वरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से आबद्ध न हो, या

किसी ऐसे कार्य को करने का लोप कराया जाए, जिसे करने के लिए वह वैध रूप से हकदार हो, वह आपराधिक अभित्रास करता है । स्पष्टीकरण--किसी ऐसे मॄत व्यक्ति की ख्याति को क्षति करने की धमकी जिससे वह व्यक्ति, जिसे धमकी दी गई है, हितबद्ध हो, इस धारा के अन्तर्गत आता है ।
 
आईपीसी की धारा 504 - लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से साशय अपमान
सजा/दंड -  जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा और तद्द्वारा उस व्यक्ति को इस आशय से, या यह सम्भाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शान्ति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
 
आईपीसी की धारा 506 - आपराधिक अभित्रास के लिए सजा (आपराधिक धमकी )
सजा/दंड - जो कोई आपराधिक अभित्रास का अपराध करेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा या
यदि धमकी मृत्यु या घोर उपहति कारित करने की या अग्नि द्वारा किसी संपत्ति का नाश कारित करने की या मृत्युदंड से या आजीवन कारावास से या सात वर्ष की अवधि तक के कारावास से दंडनीय अपराध कारित करने की, या
किसी स्त्री पर असतीत्व का लांछन लगाने की हो, तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि सात वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

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भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत बलात्कार पर कानून और दंड ( Indian Law- IPC 1860)



 भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (Section 375 in The Indian Penal Code, 1860)
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 (Section 375 in The Indian Penal Code, 1860)
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अन्‍तर्गत जब कोई पुरुष किसी स्त्री के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध संभोग करता है तो उसे बलात्कार कहते हैं। संभोग का मतलब पुरुष के लिंग का स्त्री की योनि में प्रवेश होना ही संभोग है। किसी भी कारण से सम्भोग क्रिया पूरी हुई हो या नहीं वह बलात्कार ही कहलायेगा। बलात्कार तब माना जाता है यदि कोई पुरुष किसी स्त्री साथ निम्नलिखित परिस्थितियों में से किसी भी परिस्थिति में मैथुन करता है वह पुरुष बलात्कार करता है, यह कहा जाता है-
  • उसकी इच्छा के विरुद्ध
  • उसकी सहमति के बिना
  • उसकी सहमति डरा धमकाकर ली गई हो
  • उसकी सहमति नकली पति बनकर ली गई हो जबकि वह उसका पति नहीं है
  • उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो
  • उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं हो
  • यदि वह 16 वर्ष से कम उम्र की है, चाहे उसकी सहमति से हो या बिना सहमति के
  • 15 वर्ष से कम उम्र की पत्नी के साथ पति द्वारा किया गया संभोग भी बलात्कार है
  • बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक मैथुन गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है ।
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (Section 376 in The Indian Penal Code, 1860)
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 बलात्संग के लिए दण्ड का प्रावधान बताती है। इसके अन्तर्गत बताया गया है कि
  • भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 की उपधारा (1) द्वारा उपबन्धित मामलों के सिवाय बलात्संग करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिनकी अवधि सात वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन के लिए दस वर्ष के लिए हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा, किंतु यदि वह स्त्री जिससे बलात्संग किया गया है, उसकी पत्नी है और बारह वर्ष से कम आयु की नहीं है तो वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी अथवा वह जुर्माने से या दोनों से दण्डित किया जाएगा। परंतु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से जो निर्णय में उल्लिखित किए जाएंगे, सात वर्ष से कम की अवधि के कारावास का दण्ड दे सकेगा। बलात्कार केस जिनमें अपराध साबित करने की जिम्मेदारी दोषी पर हो न कि पीडि़त स्त्री पर। यानि वे केस जिनमें दोषी व्यक्ति होने को अपने निर्दोष होने का सबूत देना हो।
  • भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 उपधारा (2) के अन्तर्गत बताया गया है कि जो कोई
    • पुलिस अधिकारी होते हुए- उस पुलिस थाने की सीमाओं के भीतर जिसमें वह नियक्त है, बलात्संग करेगा, या किसी थाने के परिसर में चाहे वह ऐसे पुलिस थाने में, जिसमें वह नियुक्त है, स्थित है या नहीं, बलात्संग करेगा या अपनी अभिरक्षा में या अपने अधीनस्थ किसी पुलिस अधिकारी की अभिरक्षा में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा, या
    • लोक सेवक होते हुए, अपनी शासकीय स्थिति का फायदा उठाकर किसी ऐसी स्त्री से, जो ऐसे लोक सेवक के रूप में उसकी अभिरक्षा में या उसकी अधीनस्थ किसी लोक सेवक की अभिरक्षा में है, बलात्संग करेगा, या
    • तत्समय प्रवृत्त किसी विधि द्वारा यह उसके अधीस्थापित किसी जेल, प्रति प्रेषण गृह या अभिरक्षा के अन्य स्थान के या स्त्रियों या बालकों की किसी संस्था के प्रबंध या कर्मचारी वृंद में होते हुए अपनी शासकीय स्थिति का फायदा उठाकर ऐसी जेल, प्रति प्रेषण गृह स्थान या संस्था के किसी निवासी से बलात्संग करेगा, या
    • किसी अस्पताल के प्रबंध या कर्मचारीवृंद में होते हुए अपनी शासकीय स्थिति का लाभ उठाकर उस अस्पताल में किसी स्त्री से बलात्संग करेगा,या
    • किसी स्त्री से, यह जानते हुए कि वह गर्भवती है, बलात्संग करेगा या
    • किसी स्त्री से, जो बारह वर्ष से कम आयु की है, बलात्संग करेगा या
    • सामूहिक बलात्संग करेगा।
    • जब गर्भवती महिला के साथ बलात्संग किया गया हो
भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 376 दंड का प्रविधान 
  • वह कठोर कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो आजीवन हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। परंतु न्यायालय ऐसे पर्याप्त और विशेष कारणों से, जो निर्णय में उल्लिखित किये जाऐंगे, दोनों में से किसी भांति के कारावास को, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम की हो सकेगी दण्ड दे सकेगा।
  • इस धारा में तीन स्पष्टीकरण दिये गए है,
    • प्रथम स्पष्टीकरण के अंतर्गत बताया गया है कि जिन व्यक्तियों के समूह में से एक या अधिक व्यक्तियों द्वारा सबके सामान्य आशय को अग्रसर करने में किसी स्त्री से बलात्संग किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्तियों में से हर व्यक्ति के बारे में यह समझा जाएगा कि उसने उस उपधारा के अर्थ में सामूहिक बलात्संग किया है।
    • द्वितीय स्पष्टीकरण के अंतर्गत बताया गया है कि स्त्रियों या बालकों को किसी संस्था से स्त्रियों और बालकों को ग्रहण करने और उनकी देखभाल करने के लिए स्थापित या अनुरक्षित कोई संस्था अभिप्रेत है, चाहे वह उसका नाम अनाथालय हो या उपेक्षित स्त्रियों या बालकों के लिए गृह हो या विधवाओं के लिए गृह या कोई भी अन्य नाम हों।
    • तृतीय स्पष्टीकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि अस्पताल से अस्पताल का अहाता अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत ऐसी किसी संस्था का आहता है जो उल्लंघन(आरोग्य स्थापना) के दौरान व्यक्तियों को या चिकित्सीय ध्यान या पुर्नवास की अपेक्षा रखने वाले व्यक्तियों का ग्रहण करने और उनका आचार करने के लिए है।
बम्‍बई हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है अगर कोई शिक्षित और 18 वर्ष की उम्र से बड़ी लड़की रिलेशनशिप में सहमति से संबंध बनाती है तो रिश्ते खराब होने के बाद वो बलात्कार का आरोप नहीं लगा सकती है। न्यायालय के मुताबिक समाज में यौन संबंधों को सही नहीं माना जाता है तब भी यदि कोई महिला यौन संबंधों के लिये 'न' नहीं कहती है तो उसे सहमति से बनाया संबंध माना जाएगा।

 
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 376 क (Section 376A of Indian Penal Code, 1860)
    पृथक रहने के दौरान किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ सम्भोग करने की दशा में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ख (Section 376B of Indian Penal Code, 1860)
    लोक सेवक द्वारा अपनी अभिरक्षा में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करने की दशा में जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की ही हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 376 ग (Section 376C of Indian Penal Code, 1860)
    जेल, प्रतिप्रेषण गृह आदि के अधीक्षक द्वारा सम्भोग की स्थिति में वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा 376 घ (Section 376D of Indian Penal Code, 1860)
    अस्पताल के प्रबंधक या कर्मचारीवृन्द आदि के किसी सदस्य द्वारा उस अस्पताल में किसी स्त्री के साथ सम्भोग करेगा तो वह दोनों में किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि पांच वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।


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क्‍या है आईपीसी की धारा 377 और क्या कहता है कानून



Know What is Section 377 of Indian Penal Code

क्‍या है आईपीसी की धारा 377
 
 प्रकृति विरुद्ध अपराध के बारे में है जो यह बताती है कि जो कोई किसी पुरुष, स्त्री या जीव वस्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरुद्ध स्वेच्छया इन्द्रिय-भोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। यह अपराध संजेय अपराध की श्रेणी में आता है और गैरजमानती है।
 
हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में आईपीसी की धारा 377
2 जुलाई 2009 को एक संस्था नाज फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि दो व्‍यस्‍क आपसी सहमति से एकांत में समलैंगिक संबंध बनाते है तो वह आईपीसी की धारा 377 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा कोर्ट ने सभी नागरिकों को समानता के अधिकारों की बात की थी। इसके विपरीत 4 साल बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने 11 दिसंबर 2013 को होमो सेक्सुअलिटी के मामले में दिए गए अपने ऐतिहासिक जजमेंट में समलैंगिकता मामले में उम्रकैद की सजा के प्रावधान के कानून को बहाल रखने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया था जिसमें दो बालिगो के आपसी सहमति से समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर माना गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा जबतक धारा 377 रहेगी तब तक समलैंगिक संबंध को वैध नहीं ठहराया जा सकता। 
 
धारा 377 के पक्ष और विपक्ष मे संवाद
आईपीसी की धारा 377 का विरोध किसी खास जाति, वर्ग या धर्म के लोग कर रहे हैं बल्कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के नेताओं ने न सिर्फ समलैंगिकता को एक गंभीर खतरा माना है, बल्कि भारत के धार्मिक, सांस्कृतिक, नैतिक और सामाजिक मूल्यों को नष्ट कर देने वाला भी बताया है। जहां कुछ स्वास्थ्य वैज्ञानिकों के अनुसार समलैंगिकता का उपचार संभव है, और इस उपचार पद्धति को रिपैरेटिव चिकित्सा कहा जाता है वहीं दूसरी तरफ कुछ डॉक्टर मानते हैं कि समलैंगिकता एक चिकित्सीय जरूरत है और इसे कतई अप्राकृतिक नहीं माना जा सकता है और यही तर्क धारा 377 के विरुद्ध सबसे मजबूत पहलू है। डॉक्टरों का कहना है कि समलैंगिकों को अक्सर पथभ्रष्ट के रूप में ब्रांडेड किया जाता है जबकि वे भी आम आदमी होते हैं और उन पर सामाजिक प्रतिबंध लगाने की जरूरत नहीं है।
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