मुख्यमंत्री पीड़ित सहायता कोष (Chief Minister Distress Relief Fund)



मुख्यमंत्री पीड़ित सहायता कोष खाता विवरण
(Chief Minister Distress Relief Fund Account Details)

  1. ACCOUNT NAME : CHIEF MINISTER'S DISTRESS RELIEF FUND
  2. BANK NAME : CENTRAL BANK OF INDIA
  3. BRANCH NAME : C.B.I. CANTT. ROAD, LUCKNOW
  4. ACCOUNT NUMBER : 1378820696
  5. IFSC : CBIN0281571
  6. BRANCH CODE : 281571
  7. TEL. PHONE : 0522-2226359


Donate to Chief Minister's Distress Relief Fund-COVID CARE FUND: Online Collection Facility

  1. [SBI] "Chief Minister's Distress Relief Fund-COVID CARE FUND" [Click Here]
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    Scan the QR Code to donate funds easily through any UPI Payment app.
  3. Account Detail
    UTTAR PRADESH CIVIL SECRETARIAT BRANCH, LUCKNOWSTATE BANK OF INDIA
    A/c No - 39245983072
    A/c. Name - Chief Minister's Distress Relief Fund-COVID CARE FUND
    IFSC CODE - SBIN0006893


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धारा 44 आईपीसी मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी



मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी

 
मजिस्ट्रेट द्वारा गिरफ्तारी
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 44 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को गिरफ्तार करने संबंधी शक्तियां दी गई हैं। इन शक्तियों के अधीन मजिस्ट्रेट गिरफ्तारी कर सकता है। धारा 44 में वर्णित उपबंध के अधीन कार्य पालक मजिस्ट्रेट तथा न्यायिक मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी करने के लिए विशेष रूप से अधिकृत किया गया है।

  1.  जब कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में उसकी अधिकारिता के अन्दर कोई अपराध किया जाता है तब वह अपराधी को स्वयं गिरफ्तार कर सकता है या गिरफ्तार करने के लिए किसी व्यक्ति को आदेश दे सकता है और तब, जमानत के बारे में इसमें अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अपराधी को अभिरक्षा के लिए सुपुर्द कर सकता है।
  2. कोई कार्यपालक या न्यायिक मजिस्ट्रेट किसी भी समय अपनी स्थानीय अधिकारिता के भीतर किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है, या अपनी उपस्थिति में उसकी गिरफ्तारी का निर्देश दे सकता है, जिसकी गिरफ्तारी के लिए वह उस समय और उन परिस्थितियों में वारण्ट जारी करने के लिए सक्षम है। मजिस्ट्रेट की धारा 44(1) के अधीन शक्तियाँ प्रशासकीय अथवा कार्यपालक है, यद्यपि इनका प्रयोग न्यायिकतः ही किया जाना चाहिए। यदि मजिस्ट्रेट अन्तरस्थ (अल्टिरियर मोटीव) हेतु से अपनी स्थानीय अधिकारिता से बाहर शक्ति का प्रयोग करता है तो वह मिथ्या कारावास की गलती करता है तथा अपकृत्य (टार्ट्स) विधि में हरजाना देने के लिए उत्तरदायी है तथा उसे न्यायिक अधिकारी संरक्षण अधिनियम की धारा 1 के अधीन पूर्ण संरक्षण प्राप्त नहीं है।


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निबंध - योग का महत्व




 निबंध - योग का महत्व
 
प्राचीन काल मे योग विद्या सन्यासियों या मोक्ष मार्ग के साधको के लिए ही समझी जाती थी तथा योगाभ्यास के लिए साधक को घर को त्याग कर वन मे जाकर एकांत में वास करना होता था । इसी कारण योगसाधना को बहुत ही दुर्लभ माना जाता था। जिससे लोगो में यह धारणा बन गयी थी कि यह योग सामाजिक व्यक्तियों के लिए नही है। जिसके फलस्वरूप यह योगविद्या धीरे-धीरे लुप्त होती गयी। परन्तु पिछले कुछ वर्षो से समाज में बढते तनाव, चिन्ता, प्रतिस्पर्धा से ग्रस्त लोगों को इस गोपनीय योग से अनेको लाभ प्राप्त हुए और योग विद्या एकबार पुनः समाज मे लोकप्रिय होती गयी। आज भारत में ही नही बल्कि पूरे विश्व भर में योगविद्या पर अनेक शोध कार्य किये जा रहे है और इससे लाभ प्राप्त हो रहे है। योग के इस प्रचार-प्रसार में विशेष बात यह रही कि यहां यह योग जितना मोक्षमार्ग के पथिक के लिये उपयोगी था, उतना ही साधारण मनुष्य के लिए भी महत्व रखता है। आज के आधुनिक एवं विकास के इस युग में योग में अनेक क्षेत्रों में विशेष महत्व रखता है जिसका उल्लेख निम्नलिखित विवरण से किया जा रहा हैं-
  1. स्वास्थ्य क्षेत्र में - वर्तमान समय में भारत ही नहीं अपितु विदेशों में भी योग का स्वास्थ्य के क्षेत्र में उपयोग किया जा रहा है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में योगाभ्यास पर हुए अनेक शोधों से आये सकारात्मक परिणामों से इस योग विद्या को पुनः एक नयी पहचान मिल चुकी है आज विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बात को मान चुका है कि वर्तमान में तेजी से फैल रहे मनोदैहिक रोगो में योगाभ्यास विशेष रूप से कारगर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि योग एक सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक जीवन शैली है। जिसे अपना कर अनेक प्रकार के प्राणघातक रोगों से बचा जा सकता है। योगाभ्यास के अंतर्गत आने वाले षट्कर्मो से व्यक्ति के शरीर में संचित विषैले पदार्थों का आसानी से निष्कासन हो जाता है। वहीं योगासन के अभ्यास से शरीर मे लचीलापन बढता है व नस- नाड़ियो में रक्त का संचार सुचारु होता है। प्राणायामों के करने से व्यक्ति के शरीर में प्राणिक शक्ति की वृद्धि होती है, साथ -साथ शरीर से पूर्ण कार्बन डाई ऑक्साइड का निष्कासन होता है। इसके अतिरिक्त प्राणायाम के अभ्यास से मन की स्थिरता प्राप्त होती है जिससे साधक को ध्यान करने मे सहायता प्राप्त होती है और साधक स्वस्थ मन व तन को प्राप्त कर सकता है।
  2. रोगोपचार के क्षेत्र में- निस्संदेह आज के इस प्रतिस्पर्धा व विलासिता के युग में अनेक रोगो का जन्म हुआ है जिन पर योगाभ्यास से विशेष लाभ देखने को मिला है। संभवतः रोगो पर योग के इस सकारात्मक प्रभाव के कारण ही योग को पुनः प्रचार -प्रसार मिला। रोगों की चिकित्सा में इस योगदान में विशेष बात यह है कि जहाँ एक ओर रोगों की एलौपैथी चिकित्सा में कई प्रकार के दुष्प्रभाव के लाभ प्राप्त करता है वहीं योग हानि रहित पद्धति है। आज देश ही नही बल्कि विदेशों में अनेको स्वास्थ्य से सम्बन्धित संस्थाएं योग चिकित्सा पर तरह - तरह के शोध कार्य कर रही है। आज योग द्वारा दमा, उच्च व निम्नरक्तचाप, हृदय रोग, संधिवात, मधुमेह, मोटापा, चिन्ता, अवसाद आदि रोगों का प्रभावी रूप से उपचार किया जा रहा है। तथा अनेकों लोग इससे लाभान्वित हो रहे है।
  3. खेलकूद के क्षेत्र में - योग अभ्यास का खेल कूद के क्षेत्र में भी अपना एक विशेष महत्त्व है। विभिन्न प्रकार के खेलो में खिलाड़ी अपनी कुशलता, क्षमता व योग्यता आदि बढाने के लिए योग अभ्यास की सहायता लेते है। योगाभ्यास से जहाँ खिलाड़ी में तनाव के स्तर, में कमी आती है, वहीं दूसरी ओर इससे खिलाड़ियों की एकाग्रता व बुद्धि तथा शारीरिक क्षमता भी बढती है। क्रिकेट के खिलाड़ी बल्लेबाजी में एकाग्रता लाने, शरीर में लचीलापन बढाने तथा शरीर की क्षमता बढाने के लिए रोजाना योगाभ्यास को समय देते है। यहाँ तक कि अब तो खिलाड़ियों के लिए सरकारी व्यय पर खेल-कूद में योग के प्रभावों पर भी अनेको शोध हो चुके हैं जो कि खेल-कूद के क्षेत्र में योग के महत्त्व को सिद्ध करते है।
  4. शिक्षा के क्षेत्र में - शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों पर बढते तनाव को योगाभ्यास से कम किया जा रहा है। योगाभ्यास से बच्चों को शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी मजबूत बनाया जा रहा है। स्कूल व महाविद्यालयों में शारीरिक शिक्षा विषय में योग पढ़ाया जा रहा है। वहीं योग-ध्यान के अभ्यास द्वारा विद्यार्थियों में बढ़ते मानसिक तनाव को कम किया जा रहा है। साथ ही साथ इस अभ्यास से विद्यार्थियों की एकाग्रता व स्मृति शक्ति पर भी विशेष सकारात्मक प्रभाव देखे जा रहे है। आज कम्प्यूटर, मनोविज्ञान, प्रबंधन विज्ञान के छात्र भी योग द्वारा तनाव पर नियंत्रण करते हुए देखे जा सकते है। शिक्षा के क्षेत्र में योग के बढ़ते प्रचलन का अन्य कारण इसका नैतिक जीवन पर सकारात्मक प्रभाव है आजकल बच्चों में गिरते नैतिक मूल्यों को पुनः स्थापित करने के लिए योग का सहारा लिया जा रहा है। योग के अंतर्गत आने वाले यम में दूसरों के साथ हमारे व्यवहार व कर्तव्य को सिखाया जाता है, वहीं नियम के अंतर्गत बच्चों को स्वंय के अन्दर अनुशासन स्थापित करना सिखाया जा रहा है। विश्व भर के विद्वानों ने इस बात को माना है कि योग के अभ्यास से शारीरिक व मानसिक ही नहीं बल्कि नैतिक विकास होता है। इसी कारण आज सरकारी व ग़ैरसरकारी स्तर पर स्कूलों में योग विषय को अनिवार्य कर दिया गया है।
  5. पारिवारिक महत्त्व- व्यक्ति का परिवार समाज की एक महत्त्वपूर्ण इकाई होती है तथा पारिवारिक संस्था व्यक्ति के विकास की नींव होती है। योगाभ्यास से आये अनेकों सकारात्मक परिणामों से यह भी ज्ञात हुआ है कि यह विद्या व्यक्ति में पारिवारिक मुल्यों एवं मान्यताओं को भी जागृत करती है। योग के अभ्यास व इसके दर्शन से व्यक्ति में प्रेम, आत्मीयता, अपनत्व एवं सदाचार जैसे गुणों का विकास होता है और निःसंदेह ये गुण एक स्वस्थ परिवार की आधारशिला होते हैं। वर्तमान में घटती संयुक्त परिवार प्रथा व बढ़ती एकल परिवार प्रथा ने अनेकों प्रकार की समस्याओं को जन्म दिया है आज परिवार का सदस्य संवेदनहीन, असहनशील, क्रोधी, स्वार्थी होता जा रहा है जिससे परिवार की धुरी धीरे-धीरे कमजोर होती जो रही है। लेकिन योगाभ्यास से इस प्रकार की दुष्प्रवृत्तियां स्वतः ही समाप्त हो जाती है। भारतीय शास्त्रों में तो गुहस्थ जीवन को भी गृहस्थयोग की संज्ञा देकर जीवन में इसका विशेष महत्त्व बतलाया है। योग विद्या में निर्देशित अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय व ईश्वर प्रणिधान पारिवारिक वातावरण को सुसंस्कारित और समृद्ध बनाते है।
  6. सामाजिक महत्त्व- इस बात में किसी प्रकार का संदेह नहीं है कि एक स्वस्थ नागरिक से स्वस्थ परिवार बनता है तथा एक स्वस्थ व संस्कारित परिवार से एक आदर्श समाज की स्थापना होती है। इसीलिए समाजोत्थान में योग अभ्यास का सीधा देखा जा सकता है। सामाजिक गतिविधियाँ व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक दोनों पक्षों को प्रभावित करती है। सामान्यतः आज प्रतिस्पर्धा के इस युग में व्यक्ति विशेष पर सामाजिक गतिविधियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। व्यक्ति धन कमाने, व विलासिता के साधनों को संजोने के लिए हिंसक, आतंकी, अविश्वास व भ्रष्टाचार की प्रवृत्ति को बिना किसी हिचकिचाहट के अपना रहा है। ऐसे यौगिक अभ्यास जैसे- कर्मयोग, हठयोग, भक्तियोग, ज्ञानयोग, अष्टांग योग आदि साधन समाज को नयी रचनात्मक व शान्तिदायक दिशा प्रदान कर रहे है। कर्मयोग का सिद्धांत तो पूर्ण सामाजिकता का ही आधार है “सभी सुखी हो, सभी निरोगी हो” इसी उद्देश्य के साथ योग समाज को एक नयी दिशा प्रदान कर रहा है।
  7. आर्थिक दृष्टि से महत्त्व - प्रत्यक्ष रूप से देखने पर योग का आर्थिक दृष्टि से महत्त्व गौण नजर आता हो लेकिन सूक्ष्म रूप से देखने पर ज्ञात होता है कि मानव जीवन में आर्थिक स्तर और योग विद्या का सीधा सम्बन्ध है। शास्त्रों में वर्णित “पहला सुख निरोगी काया, बाद में इसके धन और माया” के आधार पर योग विशेषज्ञों ने पहला धन निरोगी शरीर को माना है। एक स्वस्थ्य व्यक्ति जहाँ अपने आय के साधनांे का विकास कर सकता है, वहीं अधिक परिश्रम से व्यक्ति अपनी प्रति व्यक्ति आय को भी बढ़ा सकता है। जबकि दूसरी तरफ शरीर में किसी प्रकार का रोग न होने के कारण व्यक्ति का औषधियों व उपचार पर होने वाला व्यय भी नहीं होता है। योगाभ्यास से व्यक्ति में एकाग्रता की वृद्धि होने के साथ -साथ उसकी कार्य क्षमता का भी विकास होता है। आजकल तो योगाभ्यास के अंतर्गत आने वाले साधन आसन, प्रणायाम, ध्यान द्वारा बड़े-बड़े उद्योगपति व फिल्म जगत के प्रसिद्ध लोग अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाते हुए देखे जा सकते है। योग जहाँ एक ओर इस प्रकार से आर्थिक दृष्टि से अपना एक विशेष महत्त्व रखता है, वहीं दूसरी ओर योग क्षेत्र में काम करने वाले योग प्रशिक्षक भी योग विद्या से धन लाभ अर्जित कर रहे है। आज देश ही नहीं विदेशों में भी अनेको योगकेन्द्र चल रहे है जिनमे शुल्क लेकर योग सिखाया जा रहा है। साथ ही साथ प्रत्येक वर्ष विदेशों से सैकड़ों सैलानी भारत आकर योग प्रशिक्षण प्राप्त करते है जिससे आर्थिक जगत् को विशेष लाभ पहुँच रहा है।
  8. आध्यात्मिक क्षेत्र में - प्राचीन काल से ही योग विद्या का प्रयोग आध्यात्मिक विकास के लिए किया जाता रहा है। योग का एकमात्र उद्देश्य आत्मा-परमात्मा के मिलन द्वारा समाधि की अवस्था को प्राप्त करना है। इसी अर्थ को जानकर कई साधक योग साधना द्वारा मोक्ष, मुक्ति के मार्ग को प्राप्त करते है। योग के अंतर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि को साधक चरणबद्ध तरीके से पार करता हुआ कैवल्य को प्राप्त कर जाता है। योग के विभिन्न महत्त्वो देखने से स्पष्ट हो जाता है कि योग वास्तव में वैज्ञानिक जीवन शैली है, जिसका हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष पर गहराई से प्रभाव पड़ता है। इसी कारण से योग विद्या सीमित तौर पर संन्यासियों की या योगियों की विद्या न रह कर, पूरे समाज तथा प्रत्येक व्यक्ति के लिए आदर्श पद्धति बन चुकी है। आज योग एक सुव्यवस्थित व वैज्ञानिक जीवन शैली के रूप् में प्रमाणित हो चुका है। प्रत्येक मनुष्य अपने स्वास्थ्य को बनाये रखने के लिए,रोगो के उपचार हेतु, अपनी कार्य क्षमता को बढ़ाने, तनाव - प्रबंध, मनोदैहिक रोगो के उपचार आदि में योग पद्धति को अपनाते हुए देखा जा रहा है। प्रतिदिन टेलीविजन कार्यक्रमों में बढ़ती योग की मांग इस बात को प्रमाणित करती है कि योग वर्तमान जीवन में एक अभिन्न अंग बन चुका है। जिसका कोई दूसरा पर्याय नहीं हैं। योग की लोकप्रियता और महत्त्व के विषय में हजारों वर्ष पूर्व ही योगशिखोपनिषद् में कहा गया है- "योगात्परतंरपुण्यं यागात्परतरं शित्रम्।योगात्परपरंशक्तिं योगात्परतरं न हि।।"
    अर्थात् योग के समान कोई पुण्य नहीं, योग के समान कोई कल्याणकारी नही, योग के समान कोई शक्ति नही और योग से बढ़कर कुछ भी नही है। वास्तव में योग ही जीवन का सबसे बड़ा आश्रम है।


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