नारद जी - आप बधाई के पात्र है



 


सही कहूं तो मुझे आपसे साहसिक निर्णय की उम्मीद नहीं थी, किंतु पता था कि नारद की उक्त कार्यवाही कई लोगों को नागवार गुजरेगी, और उन्हें सबसे ज्यादा जिन्‍होने नारद की उदारता को अपनी ताकत समझ रखा था। मुझे भी चिट्ठाकारिता में आये एक साल होने को है किंतु मैंने कभी भी किसी को अहात नही किया। किन्तु जिस प्रकार कुछ लोगों ने लामबंद होकर अकारण ही अपने हिन्दू विरोधी रवैया अपना कर, शांत जल में पत्थर मारने का काम किया है। शांत जल मे पत्थर मारने से पानी ही नही उसमे रहने वाले जीव भी विचलित हो जाते है। हम तो जीवों की सबसे ऊँची योनी मे जन्‍म लिये मनुष्य है। इन लोगों के हिन्दू विरोधी तालीबानी लेखों ने न केवल लोगों को आहत किया वरन एक विरोधी आवाज को उकसाया कि एक अलग आवाज ने जन्म लिया। जिस प्रकार एक एक करके इन्‍होने गुजरात, मोदी, को लेकर हिन्‍दी चिट्ठाकारों के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी किया था वह बर्दाश्त के बाहर थी।

चूकिं हिन्‍दी चिठ्ठाकरिता का समय ज्‍यादा बड़ा नही है और मुझे भी इस माह एक साल हो जाएगा इस कारण किन्तु कुछ बंधु मुझे भी काफी पुराना और अपने से वरिष्ठ जानते है पर मै नही कभी अपने से नये साथियों को अपने से नया या अपने को वरिष्ठ नहीं माना किंतु पिछले साल से आज की तुलना मे मेरे अन्दर एक बड़ा परिवर्तन देखने को मिला है। भले ही मेरी आदत विवादों को तूल देने अथवा विवाद करने वालों से लोहा लेने वाली रही हो किन्तु मैने कभी किसी के दुखती रग को नहीं छेड़ा जिससे कि कोई आहत हुआ हो। किंतु कुछ लोग ऐसे है जो लोग नाम को प्रसिद्ध करने के लिये काफी नीचे के स्‍तर तक गिर सकते है यह मैने पिछले कुछ माह देखा है, कि किस प्रकार अपनी गन्‍दी लेखनी से हिनदू धर्म के देवी देवताओं से लेकर संजय भाई, पंकज भाई और सागर भाई को भी नही छोड़ा, हद तो तब हुई मक्‍कार पत्रकारों ने पत्रकारिता के मापदण्‍ड को धता देते हुऐ एक माननीय न्‍यायधीश तक को नही बक्सा, जिसे भारत के लोकतंत्र के भगवान की संज्ञा दी गई है।

मै नारद के द्वारा बाजार को नारद पर प्रतिबंधित करने की कार्यवाही का पूर्ण रूप से समर्थन करता हूँ, और पूरी नारद टीम मुझे इस फैसले मे अपने साथ समझे। नारद का यह फैसला समाज में द्वेष फैलाने वालों के मुँह पर तमाचा है। जहां तक बाजार को स्पष्टीकरण देने के लिये समय नही दिया गया तो मै इस बात से इत्तेफाक नहीं रखता हूँ, क्योंकि क्या बाजार ने एक बार भी सोचा कि उनकी लेखनी से सामने वाले पर क्या बीतती है। बाजार ने जो किया था भूत मे, वह उनके लिये चेतावनी थी। मै सदैव व्यक्तिगत आक्षेप के खिलाफ रहा हूँ। मै इतने दिनों से हूँ कई से मेरे संबंध अच्छे नहीं है किन्तु कभी कोई कह दे कि महाशक्ति या प्रमेन्द्र न मुझे भला बुरा कहा हो।

जिन बेगानी बंधुओं को लेकर यह मामला गर्म हुआ मै भी नही जानता था कि वे भाई है। इन दोनो से भी मेरा विवाद हुआ किन्‍तु पंकज भाई भी मेरे ब्लॉग पर आते है और कहते है कि और गर्व से कहते है कि पहली बार टिप्पणी कर रहा हूँ कि मै आपसे सहमत हूँ। जीतू भाई और मेरे बीच विवाद सर्वविदित था पर मैंने कभी भी उनको कभी गलत नहीं कहा। मेरे और जीतू भाई के बीच लगातार 6 माह तक किसी प्रकार का मेल व सम्पर्क बंद था, और मैंने ही पहल करके नव वर्ष पर उसे पाटने की कोशिश की। अफलातून जी और मेरे बीच विचारों की भिन्नता सर्वविदित है किन्तु हमने कभी गाली गलौज नही किया। विचारों कि भिन्नता के बाद भी हम एक दूसरे को अपने से वरिष्ठ मानते है।

हिन्‍दी चिठ्ठा‍क‍ारी आपने आप में सहयोग की भावना से कार्य करती थी किन्तु इन लोगों ने प्रेम से संचालित परिवार में दीमक बन कर उपज गये है। और इन दीमकों को समय पर ही मार डालना था। किन्तु आपसी विरोधाभासों के कारण यह संभव नहीं हो सका, पर आज सही समय पर सही फैसला लिया गया। बाजार को प्रतिबन्धित करके न सिर्फ अन्‍य विषराजों के फनों को कुचला गया और इसके साथ ही साथ यह चेतावनी भी दी गई कि अब इनकी अराजकता बर्दाश्त नहीं की जायेगी। मै तो माँग करता हूँ कि पुरा लेखों के आधार पर मोहल्ले को भी सार्वजनिक रूप से निष्कासित एवं बहिष्कृत किया जाये।

आज बाजार प्रकरण पर कई बंधु नारद के फैसले को सही नहीं मान रहे ? उनका कहना है कि नारद की कार्यवाही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रहार है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अगर गाली देना या किसी की भावनाओं को चोट पहुँचना है तो मै पुरजोर इसका विरोध करता हूँ। अभिव्यक्ति के स्वतंत्रता के कई माध्‍यम है मैने पहले भी चुनौती दे चुका हुँ कि आप ये पत्रकार आपने माध्‍यम के द्वारा अपनी अभिव्यक्ति को उठाये, पर नहीं लगता कि इन्‍हे मेरी चुनौती स्वीकार है। यह तो वही कहावत चरितार्थ करते है कि थोथा चना बाजे घना :) । अपने कई ऐसे वरिष्ठ लोग भी इनके साथ है और कहते है कि ये ठीक कर रहे है जिन्‍हे मै काफी अच्छी तरह से जानता हूँ, और इनकी बातें पढ़ कर काफी हतप्रभ भी हूँ। ऐसे चिठ्ठो को संरक्षण देना सांप को दूध पिलाने जैसा है। जो कभी भी अपने लाभ के लिये संरक्षण देने वाले को भी डसने में संकोच नहीं करेगा। आज समय आ गया है कि इन सांपों की पूरी नस्ल को कुचल दिया जाना चाहिए।

अंत मे मै स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हम हवाओं को इतना कमजोर न समझो कि हवाएं केवल शीतलता ही प्रदान करनी है, अगर ये हवाऐ अपने पर उतर आये तो तूफान का रूप ले सकती है जो पृथ्वी के एक बड़े भूभाग को तहस- नहस करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है। तूफान आपने समाने आये आये लोगों में यह अंतर नहीं करता कि कौन दोषी है या कौन निर्दोष, वह सम्पूर्ण जगत को अपने मे लपेट लेती है। इसलिये इनके बेतुकी गालियों का समर्थन करने वालों को सावधान रहना चाहिए कि वे भी तूफान के लपेटे में न आये, और यदि आयेगें तो फिर हमें दोष न देंना। ऐसा नहीं है कि इन विष पुरुष की कारस्तानियों हमारी नजर में नही है हम उसे अपने बैंक के बचत खाते में जमा कर रहे हैऔर समय आने पर उन्हें ब्याज सहित लौटा भी दिया जायेगा।



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8 टिप्‍पणियां:

संजय बेंगाणी ने कहा…

बड़े दिनो बाद काफी लम्बा लिखा है.
अच्छा लिखा है.
शाबास.

बेनामी ने कहा…

आपको भी नारद के इस फैसले की प्रशंसा करते देख बहुत खुशी हो रही है, मुझे लगता है कि अब कोई भी उदारता को कमजोरी मानकर इस प्रकार "गैंगवार" नहीं करेगा।

ईश्वर इनको समझ दें।

Sagar Chand Nahar ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है छोटे,
जो गया सो गया अब वापस नहीं आयेगा आप चिन्ता ना करो।

ePandit ने कहा…

बिल्कुल सही लिखा आपने। वो भी क्या दिन थे जब चिट्ठाजगत में हर तरफ दोस्ती का माहौल था। कुछ लोग आए और हर तरफ अराजकता फैला दी।

खैर समय उन्हें उनके किए की सजा देगा।

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

सही समय पर सही फ़ैसला !

Laxmi ने कहा…

मैं आपके लेख का पूरा समर्थन करता हूँ। किसी भी प्रकार के संचार माधयम के लिये शिष्टता अत्यन्त आवश्यक है। राहुल को जो कुछ कहना था वह बिना बदतमीज़ी से भी कहा जा सकता था।

amitabh tripathi ने कहा…

अत्यन्त परिपक्व और प्रशंसनीय लेख है।

बेनामी ने कहा…

Bahut Badia Jai Shri Ram