क्षणिकाएँ - संवेदना




 
(1)
तस्‍ब्‍बुर है रवानी है,
ये जो मेरी कहानी है।
मै जलता हुआ आग हूँ,
वो बहता हुआ पानी है।

(2)
जिन्‍दगी के हर सफर में,
हम बहुत मजबूत थे।
अ‍ांधियों का था सफ़र,
और हम सराबोर थे।
टूट कर बिखर गये,
जाने कहॉं खो गये।

(3)

हर सफर में तुम्‍हारे साथ था,
जिधर गया तुम्‍हारे पास था।
रास्‍ते अनेक देखे,
गया जिस पर तुम्‍हारा निवास था।


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6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बढ़िया! माशाअल्लाह बहुत खूब लिखा है।

Divine India ने कहा…

वाहSSS
सुंदर है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

क्षणिकाओं को बहुत बढिया ढंग से कहा है।बधाई।
बहुत अच्छी लगी-


हर सफर में तुम्‍हारे साथ था,
जिधर गया तुम्‍हारे पास था।
रास्‍ते अनेक देखे,
गया जिस पर तुम्‍हारा निवास था।

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा लगा.

राज कुमार ने कहा…

प्रतीक जी अभी तो लिखना शुरू किया है, अभी खूब लिखना तो बाकी है।
डिवाइन इडिंया जी, परमजीत जी, व उड़न तश्‍तरी जी आपका धन्‍यवाद। आशा है कि आप सब पुन: आयेगें।

MEDIA GURU ने कहा…

raj acchi hai maza aa gya