मोदी और ओबामा की 'मन की बात'



मोदी-ओबामा की 'मन की बात' man ki baat modi obama
मोदी-ओबामा की 'मन की बात'
ओबामा से सवालः वापस जाने पर अपनी बेटियों को आप भारत के बारे में क्या बताएंगे? ओबामा से सवालः वापस जाने पर अपनी बेटियों को आप भारत के बारे में क्या बताएंगे?
जवाबः मेरी बेटियां भारत आने को उत्सुक थीं। स्कूल की परीक्षाओं में व्यस्तता के कारण वे नहीं आ सकीं। भारत के स्वाधीनता संग्राम से वह बेहद प्रभावित हैं। वापस जाकर उन्हें बताऊंगा कि भारत उनकी कल्पना के अनुरूप ही भव्य है। मुझे पूरा यकीन है कि वे अगली बार भारत आने की जिद जरूर करेंगी।

ओबामा से सवालः मोटापे और डायबिटीज जैसी चुनौतियों के खिलाफ मिशेल ओबामा काम कर रही हैं। आपका कार्यकाल खत्म होने के बाद भी क्या बिल गेट्स और उनकी पत्नी की तरह वे भारत में ऐसा काम करेंगी?
जवाबः मिशेल के प्रयासों पर मुझे गर्व है। मोटापे की समस्या पूरी दुनिया को चपेट में ले रही है। कुछ जगह छोटी उम्र में ही बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं। इस दिशा में भारत और अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेंगे।

मोदी से सवालः मैंने (पाठक) वाइट हाउस के बाहर एक पर्यटक के रूप में आपकी पुरानी फोटो देखी है। आप जब दोबारा वाइट हाउस गए तो कैसा महसूस हुआ?
जवाबः मुझे वाइट हाउस में एक बात ने छू लिया। बराक ने मुझे एक किताब दी थी। 1894 में वह किताब प्रसिद्ध हुई थी। किताब विवेकानंद के धर्म संसद में दिए भाषण का संकलन थी। ओबामा ने किताब देते हुए गर्व के साथ कहा कि मैं उस शिकागो से आता हूं जहां विवेकानंद आए थे। इसने मेरे दिल को छू लिया।

बराक से सवालः क्या आपने सोचा था कि एक दिन आप वाइट हाउस में बैठेंगे?
जवाबः मोदी जी आपकी तरह मैंने भी कभी नहीं सोचा था कि वाइट हाउस में रहूंगा। हम दोनों साधारण परिवारों में जन्में हैं। हमें अपने देश में मौजूद असाधारण संभावनाओं का लाभ मिला है। हम जैसे लाखों बच्चों को भी यह मौका मिलना चाहिए।

मोदी से सवालः कभी इस पद पर पहुंचेंगे, आपने यह कल्पना की थी?
जवाबः मैंने भी यह कभी कल्पना नहीं की थी। मैं भी सामान्य परिवार से आता हूं। कभी कुछ बनने नहीं करने के सपने देखने चाहिए। मैंने जीवन में कभी भी बनने का सपना नहीं देखा था।

मोदी से सवालः आप किस अमेरिकन नेता से प्रभावित हैं?
जवाबः बचपन में हम जॉन कैनेडी की फोटो देखते थे, मुझे वह अच्छे लगते थे। मैंने बेंजामिन प्रैंकलिन का जीवन चरित्र पढ़ा। वह अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं थे। उनका जीवन चरित्र मुझे बेहद प्रेरक लगा। इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। मुझे आज भी इससे प्रेरणा मिलती है।

ओबामा से सवालः इतनी कठिनाइयों के बाद भी आपकी खुशी और प्रेरणा का क्या राज है?
जवाबः मेरे पास वही समस्याएं आती हैं, जिन्हें हर कोई हल नहीं कर पाता। अगर वे आसान होतीं तो उन्हें कोई और हल कर चुका होता। मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देता है लोगों के जीवन में प्रेरणा लाना। कई बार लोग आपको धन्यवाद देते हैं, जिनकी आपने 4-5 साल पहले मदद की होती है। जो आपको याद भी नहीं होते। अगर आपकी मंशा लोक कल्याण की हो, तो इसके संतोष की सीमा नहीं है।

कार्यक्रम के आखिर में मोदी ने अपने जीवन का एक प्रसंग सुनाया, उन्होंने कहा, ' बचपन में एक परिवार बार-बार खाने के लिए बुलाता था, लेकिन मैं जाता नहीं था। मैं इसलिए नहीं जाता था, क्योंकि वह गरीब परिवार था। एक बार मैंने काफी जोर देने पर न्योता स्वीकार कर लिया। एक छोटी सी झोंपड़ी में बाजरे की रोटी और दूध दिया गया। उनका छोटा बच्चा दूध की ओर देख रहा है। मैंने दूध का कटोरा उसे दिया, तो वह उसे तुरंत पी गया। ऐसा लगा जैसे मां के दूध के सिवा उसने दूध देखा ही न हो। परिवार वाले नाराज थे कि उसने ऐसा क्यों किया। वे लोग मेरे लिए दूध खरीदकर लाए थे। मुझे यह घटना गरीबों के लिए काम करने की प्रेरणा देती है।

मोदी ने इस दौरान कम्युनिज्म की नई परिभाषा भी बताई। उन्होंने कहा, 'एक समय कम्युनिस्ट विचारधारा वाले दुनिया में आह्वान करते थे-दुनिया के कामगारो एक हो जाओ, आज मैं कहूंगा-युवाओ दुनिया को एक करो।'


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस



भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए, विदेशों में प्रयत्न करने के उद्देश्य से, विदेश जाने के पूर्व नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का इरादा पूजनीय डॉक्टर जी से विचार-विनिमय करने का था। जर्मनी, जापान आदि देशों से मदद लेकर आजाद हिंद सेना का गठन कर पूर्व की ओर से भारत पर आक्रमण कर उसे स्वतंत्र करने की व्यापक योजना तैयार की गई थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस
इस आक्रमण के समय ही भारत की क्रांतिकारी संगठित होकर देश में अंग्रेज सत्ता के विरुध्द बगावत खड़ी कर सकेंगे- आवश्यक हुआ ता गृहयुद्ध का सहारा भी लेंगे ताकि भारत को स्वाधीनता दिलाने का स्वप्न शीघ्र ही पूरा किया जा सके- इस दृष्टि से श्री सुभाष चन्द्र बोस ने अनेक क्रांतिकारियों से संपर्क साधा था- इसी संदर्भ में वे डॉक्टर जी से भी मिलना चाहते थे। 1938 के मई मास में उन्होंने भेंट करने का प्रयास भी किया किन्तु उन दिनों डॉक्टरजी अस्वस्थता के कारण देवळाली में थे, इसलिए वह भेंट नहीं कर हो पायी। बाद में 1940 के जून में जब श्री सुभाषचन्द्र बोस नागपुर आये, तब तो पू. डॉक्टर जी मरणासन्न स्थिति में थे, इसलिए श्री सुभाष चन्द्र दूर से ही डॉक्टर जी को प्रणाम कर लौट गए। नागपुर से कानपुर (या लखनऊ) गए, जहां उन्होंने एक गुप्त बैठक में भाग लिया। इस गुप्त बैठक में, उचित समय आने पर आंतरिक उठाव करने सम्बन्धी विचार-विनिमय होने की बात कानों कान सुनी गई। किन्तु ऐसी गुप्त बैठक के पूर्व श्री सुभाष चन्द्र बोस को डॉक्टरजी से विचार-विनिमय करने की आवश्यकता महसूस हुई। इससे यह प्रतीत होता है कि श्री सुभाष चन्द्र बोस को इस बात का पूर्ण विश्वास था कि क्रांतिकारियों ही गोपनीय योजनाओं का सफल क्रियान्वयन डॉक्टर जी के सहयोग से ही संभव है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस
ऐसे ही एक घटना है कि वर्मा की क्लंग घाटी पर आजाद हिन्द फौज का मुकाबला अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी से हो गया। आजाद हिन्द फौज के कुल तीन जवान और अंग्रेजों की 169 सैनिकों की भारी-भरकम टुकड़ी। इस भीषण परिस्थिति में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बैठे स्वामी विवेकानंद की पुस्तक पढ़ रहे थे। पुस्तक के इस अंश ने-जब संकटों के बादल सिर पर मंडरा रहे हों, तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं।” नेताजी को प्रकाश प्रेरणा से आलोकित कर दिया। घाटी से खबर आयी कि क्या तीनों सैनिक पीछे हटा लिये जाएँ? नेताजी के हृदय में छुपे विवेकानन्द के विचार फूट पड़े। वे बोले-प्रातः काल तो वे स्वयं मुठभेड़ की लड़ाई के लिए चढ़ दौड़े। जब उस चौकी पर पहुँचे तो देखा कि अंग्रेजी सेना के कुछ सिपाही तो मरे पड़े हैं, शेष अपना सामान छोड़कर भाग गये हैं।
सुभाष चन्द्र बोस हैं नहीं, पर स्वतंत्रता का सबसे पहला आनन्द उन्होंने ही लिया। मातृभूमि पर अपना सर्वस्व निछावर करने वाले अमर सेनानी के बारे में यदि यह कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्वामी विवेकानंद के साहित्य ने उन्हें चिरमुक्त बना दिया था। उनमें अगाध निर्भयता, धैर्य और साहस था। यह सब गुण उन्हें विवेकानन्द साहित्य से विरासत में मिले थे। उन्होंने जो कुछ भी पढ़ा, उसके एक-एक वाक्य को अपने जीवन का एक-एक चरण बना लिया। उसी का प्रतिफल था कि वह जापान, सिंगापुर और जर्मनी जहाँ कहीं भी गये, उनका स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद का अमेरिका और इंग्लैंड में। भारतीय जनमानस में अभी भी वे जीवंत व्यक्तित्व के रूप में रचे-बसे हैं और प्रकाश एवं प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। वस्तुतः यह श्रेय स्वाध्याय को ही है, जो सुभाष की जीवन शिला पर क्रियाशीलता बनकर खुद चुका था।

नेता जी सुभाषचंद्र बोस सम्बंधित आतिरिक्त लेख -


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ताजमहल नही तेजोमहालय : एक प्राचीन शिव मंदिर तथ्य और चित्र



मेरे पूर्व के लेख ताजमहल एक शिव मंदिर में मैने प्रसिद्ध राष्‍ट्रवादी इतिहासकार प्रो. पुरूषोत्‍तम नाथ ओक जी की किताब पर आधारित एक लेख तैयार किया था जिसमे तर्को के साथ ताज महल के प्राचीन शिव मंदिर तेजोमहालय और अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर नामक शिव लिंग होने की बात कहते है। श्री ओक साहब ने इस सम्बन्‍ध में एक याचिका भी दायर की थी, जिसमें उन्होंने ताज को एक हिन्दू स्मारक घोषित करने एवं कब्रों तथा शील्ड कक्षों को खोलने व यह देखने कि उनमें शिव लिंग, या अन्य मन्दिर के अवशेष हैं, या नहीं पता लगाने की अपील थी किंतु माननीय सर्वोच्च न्‍न्यायालय द्वारा उनकी इस याचिका को अस्वीकार कर दिया गया। माननीय सवोच्च न्‍न्यायालय द्वारा उनकी याचिका को अ‍स्‍वीकार करने के सम्‍बन्‍ध मे अनेक प्रत्‍यक्ष और अप्रत्यक्ष तत्‍कालीन कारण हो सकते है।
ताजमहल
ताजमहल और गुम्बद के सामने का दृश्य
ताजमहल के अंदर पानी का कुंवा
ताजमहल का आकाशीय दृश्य
प्रो. ओक आपने तथ्यों के आधार पर जोर देकर कहते हैं कि हिंदू मंदिरों में ही पूजा एवं धार्मिक संस्कारों के लिए भगवान शिव की मूर्ति, त्रिशूल, कलश और ॐ आदि वस्तुएँ प्रयोग की जाती हैं। ताजमहल मे ऐसी बहुत सी आकृतियों और शिल्प सम्बन्धी तथ्य और दृश्य इस बात की ओर इंगित करते हैं जो इस बात को सोचने की ओर विवश करते है कि ताजमहल विशाल मकबरा न होकर विशेषतः हिंदू शिव मन्दिर है.

ताजमहल के शिखर के ठीक पास का दृश्य
ताजमहल के शिखर की आँगन में छायाचित्र कि बनावट
ताजमहल के प्रवेश द्वार पर बने लाल कमल 

ताज महल के गुम्बद और शिखर के पास का दृश्य
ताजमहल को श्री रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा ”समय के गाल पर, एक आँसू” के रूप में वर्णित किया गया था ताजमहल का ऐसा विवरण हिन्दू समाज की तात्कालिक बेबसी को उजागर करता है बटेश्वर से मिला एक संस्कृत शिलालेख से ताजमहल के मूलतः शिव मंदिर होने का उल्लेख मिलता है । इस शिलालेख को बटेश्वर शिलालेख कहा जाता है, वर्तमान में यह शिलालेख लखनऊ अजायबघर के सबसे ऊपर मंज़िल स्थित कक्ष में संरक्षित है, इस शिलालेख के अनुसार : “एक विशाल शुभ शिव मंदिर ने भगवान शिव को ऐसा मोहित किया कि उन्होंने वहाँ आने के बाद फिर कभी अपने मूल निवास स्थान कैलाश वापस न जाने का निश्चय कर लिया।”

ताज के बेल-बूटों में हिन्दू चिन्ह गणेश, हाथी, कमल

शाहजहाँ के आदेशानुसार सन् 1155 के इस शिलालेख को तात्कालिक शिव मंदिर की वाटिका से उखाड़ दिया गया और शिव मंदिर को मकबरे में तब्दील कर दिया गया। यह शिलालेख बटेश्वर में कैसे पहुँचा इस सम्बन्ध में विभिन्न मत हो सकते है सम्भवत: यह भी हो सकता कि किसी शिव भक्त द्वारा इसे संरक्षित करने के उद्देश्य से ही बटेश्वर लाया गया हो। वास्तविकता तो यह है कि इस शिलालेख का नाम ‘तेजोमहालय शिलालेख’ होना चाहिये क्योंकि यह तेजो-महालय शिव मंदिर की वाटिका में जड़ा हुआ था और शाहजहाँ के आदेश से इसे निकाल कर फेंक दिया गया था। बटेश्वर अपने आंचल में रामायण और महाभारत कालीन इतिहास को समेटे रहा है, तीर्थ बटेश्वर ने मुगलों के कई आक्रमणों को झेला है और मंदिर ध्वंश करने की मुग़ल-कालीन परंपरा का अडिग हो हिन्दू धर्म की पुर्रर की आस्था का उद्धरण पेश किया। ताजमहल के नाम पर शिव मंदिर तेजो महालय को मिटा देने की सदियों पुरानी षडयंत्रो से बटेश्वर सेप्राप्‍त शिलालेख ने पर्दा उठाने का काम किया है। उलटी दिशा में बहती यमुना और इसके किनारे स्थापित 101 शिव मंदिर आज भी श्रद्धालुओं की आस्था को जीवित रखे हुए हैं।

ताजमहल में पीछे की खिड़कियाँ और बंद दरवाजों का दृश्य
ताज के पिछले हिस्से का दृश्य और बाइस कमरों का समूह
ताजमहल में वैदिक शैली मे निर्मित गलियारा
इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जय सिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था, इस तथ्य को आजतक छुपाये रखा गया | विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में “तेज-लिंग” का वर्णन आता है। ताजमहल में “तेज-लिंग” प्रतिष्ठित था इसलिये उसका नाम तेजो-महालय पड़ा था। तेजो महालय मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान शिव को समर्पित था और आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था। ताज महल में आज भी संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित है मन्दिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 1985 में न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के दरवाजे की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यह दरवाजा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है।

ताजमहल के अन्दर ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान
ताजमहल के अन्दर बंद कमरे की वैदिक शैली में निर्मित छत
ताजमहल के अन्दर दरवाजों में लगी गुप्त दीवार, जिससे अन्य कमरों का सम्पर्क था
ताजमहल के मकबरे के पास संगीतालय
इस शिव मन्दिर को शाहजहाँ ने जयपुर के महाराज जय सिंह से अवैध तरीके से छीन लिया था, इस तथ्य को आजतक छुपाये रखा गया | विश्वकर्मा वास्तुशास्त्र नामक प्रसिद्ध ग्रंथ में शिवलिंगों में “तेज-लिंग” का वर्णन आता है। ताजमहल में “तेज-लिंग” प्रतिष्ठित था इसलिये उसका नाम तेजो-महालय पड़ा था। तेजो महालय मुग़ल बादशाह के युग से पहले बना था और यह भगवान शिव को समर्पित था और आगरा के राजपूतों द्वारा पूजा जाता था। ताज महल में आज भी संगमरमर की जाली में 108 कलश चित्रित है मन्दिर परंपरा में 108 की संख्या को पवित्र माना जाता है। 1985 में न्यूयार्क के पुरातत्वविद प्रो. मर्विन मिलर ने ताज के दरवाज़े की लकड़ी की कार्बन डेटिंग के आधार पर यह सिद्ध किया कि यह दरवाज़ा सन् 1359 के आसपास अर्थात् शाहजहाँ के काल से लगभग 300 वर्ष पुराना है।

ताजमहल के ऊपरी तल पर स्थित एक बंद कमरा
ताजमहल निचले तल पर स्थित संगमरमरी कमरों का समूह
ताजमहल की दीवारों पर बने हुए फूल जिनमे छुपा हुआ है ओम् ( ॐ )
ताजमहल के अंदर कमरों के मध्य 300 फीट लंबा गलियारा
ताजमहल के अंदर निचले तल पर जाने के लिए सीढियां

ताजमहल के अंदर कमरों के मध्य 300 फीट लंबा गलियारा
ताजमहल के अंदर २२ गुप्त कमरों में से एक कमरे का आतंरिक दृश्य
आज भी ताजमहल के बहुत से कमरे शाहजहाँ के काल से बंद पड़े हैं, जो आम जनता की पहुँच से परे हैं। ताज महल के सम्बन्ध में यह आम किवदंत्ती प्रचलित है कि ताजमहल के अन्दर जहाँ मुमताज की कब्र मानी जाती है। वहाँ पर सदैव बूँद बूँद कर पानी टपकता रहता है, यदि यह सत्य है तो पूरे विश्व मे किसी भी कब्र पर बूँद बूँद कर पानी नही टपकाया जाता, जबकि प्रत्येक हिंदू शिव मन्दिर में ही शिव लिंग पर बूँद बूँद कर पानी टपकाने की व्यवस्था की जाती है। ताजमहल की यह बनावट वास्तव मे किसी प्राचीन शिव मंदिर के आधार पर ही है जो शिव लिंक के जल अभिषेक की प्रक्रिया का निर्वाहन करती है।
 
ईंटों से बंद किया गया विशाल रोशनदान

बादशाहनामा के अनुसार इस स्थान पर मुमताज को दफनाया गया
बहुत से साक्ष्यों को छुपाने के लिए,गुप्त ईंटों से बंद किया गया दरवाजा
बुरहानपुर मध्य प्रदेश मे स्थित महल जहाँ मुमताज-उल-ज़मानी कि मृत्यु हुई थी
दरवाजों में लगी गुप्त दीवार से अन्य कमरों का सम्पर्क था
नोट - मेरे विरोध के बाद भी विकिपीडिया कुछ तथाकथित सेक्युलर एवं वामपंथी तत्वों द्वारा मेरे विरोध के बाद भी गुंडागर्दी वाली भाषा के साथ "क्या ताजमहल एक शिव मंदिर है" विषयक लेख को ज़बरदस्ती हटा दिया गया। मुझे लगा कि यह मु‍हीम रूकनी नही चाहिये और अन्य तथ्यों के साथ इस विषय पर लेख लिखे जाने की अवाश्यकता है।
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सद्विचार संकलन विवेकानन्द साहित्य से



सद्विचार संकलन विवेकानन्द साहित्य से
  • हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्, अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की है। हे विद्वान! डरो मत; तुम्हारा नाश नहीं हैं, संसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैं, वही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (वि.स. ६/८)
  • बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओ, हुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक है, किसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं है, माँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात का? किसका भय? वज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।(विवेकानन्द साहित्य खण्ड-४ पन्ना-३१५) (४/३१५)
  • तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उध्दार में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का है? नहीं है, नहीं है, कहने से सांप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहीं' हो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दुनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते - तमाम संसा हिल उठता। क्या करूँ धीरे - धीरे अग्रसर होना पड रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स. ४/३८७)
  • किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अंतिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कुशलता के साथ काम करते रहो। (वि.स.४/३२०)
  • लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दा, लक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न हो, तुम्हारा देहांत आज हो या एक युग मे, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। (वि.स.६/८८)
  • श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। -- प्रलय मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनिया भर में प्रलय मच जायेगा, वाह! गुरु की फतेह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानि, उन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बडे - बडे बह गये, अब गडरिये का काम है जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता है; अपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानृतं, सत्येन पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं; सत्य के ही बल से देवयान मार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा।
  • वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिद्धि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्य, मनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहो, और तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो -- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत है, इसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। (वि.स. ४/३९५)
  • इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगी? दुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है -- बडा आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है -- एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता है, और हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही हो, ऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँ, मैं ही शिव हूँ। )
  • मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चे, मैं जितना उन्नत बन सकता था, उससे सौ गुना उन्नत बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँ, अवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालन, ध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना -- इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (वि.स.६/३५२)
  • मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसी को श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषयों में व्यावहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुना, कबीरदास के दोहे में है- "हाथी चले बाजार में, कुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिं, जो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। (वि.स.३/३८१)
  • अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठान पद्धति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिक भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोड़ना होगा। मैं मरू चाहे बचूँ, देश जाऊँ या न जाऊँ, तुम लोग अच्छी तरह याद रखना कि, सार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दूसरों के धर्म का द्वेष न करना"; नहीं, हम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहना, दूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्ति, परन्तु कट्टरता छोड़कर, दिखानी होगी, याद रखना उनकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा।
  • जिस तरह हो, इसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुद्ध चरित्र हों।
  • नीतिपरायण तथा साहसी बनो, अन्तःकरण पूर्णतया शुध्द रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो -- प्राणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैं, वीर पुरुष कभी भी पापा अनुष्ठान नहीं करते -- यहां तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चो, तुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरता, पाप, असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिए, बाक़ी आवश्यक वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।(वि.स.१/३५०)
  • शक्तिमान, उठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्म, निरन्तर कर्म; संघर्ष , निरंतर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो -- सारा धर्म इसी में है। (वि.स.१/३७९)
  • क्या संस्कृत पढ़ रहे हो? कितनी प्रगति होई है? आशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो। (वि.स.१/३७९-८०)
  • शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेजी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। (वि.स.४/३१९)
  • बच्चों, धर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता है, व्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करना, इसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता है, वह नहीं, किन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडे, तो उससे विचलित न होना, मुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी। (वि.स.१/३८०)
  • बालकों, दृढ़ बने रहो, मेरी संतानों में से कोई भी कायर न बने। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है - सदा उसी का साथ करो। बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता है? समय, धैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाता, जिससे तुम्हारे हृदय उछल पड़ते, किन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँ, जो कभी कम्पित न हो। दृढ़ता के साथ लगे रहो, प्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानंद। (वि.स.४/३४०)
  • जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। (वि.स.१/३८६)
  • जिस प्रकार स्वर्ग में, उसी प्रकार इस नश्वर जगत में भी तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो, क्योंकि अनन्त काल के लिए जगत में तुम्हारी ही महिमा घोषित हो रही है एवं सब कुछ तुम्हारा ही राज्य है। (वि.स.१/३८७)
  • पवित्रता, दृढता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ। (वि.स.४/३४७)
  • भाग्य बहादुर और कर्मठ व्यक्ति का ही साथ देता है। पीछे मुडकर मत देखो आगे, अपार शक्ति, अपरिमित उत्साह, अमित साहस और निस्सीम धैर्य की आवश्यकता है- और तभी महत कार्य निष्पादन किये जा सकते हैं। हमें पूरे विश्व को उद्दीप्त करना है। (वि.स.४/३५१)
  • पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बाधाएँ दूर हो जाती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि महान कार्य सभी धीरे धीरे होते हैं। (वि.स.४/३५१)
  • साहसी होकर काम करो। धीरज और स्थिरता से काम करना -- यही एक मार्ग है। आगे बढो और याद रखो धीरज, साहस, पवित्रता और अनवरत कर्म। जब तक तुम पवित्र होकर अपने उद्देश्य पर डटे रहोगे, तब तक तुम कभी निष्फल नहीं होओगे -- माँ तुम्हें कभी न छोडेगी और पूर्ण आशीर्वाद के तुम पात्र हो जाओगे। (वि.स.४/३५६)
  • बच्चों, जब तक तुम लोगों को भगवान तथा गुरू में, भक्ति तथा सत्य में विश्वास रहेगा, तब तक कोई भी तुम्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता। किन्तु इनमें से एक के भी नष्ट हो जाने पर परिणाम विपत्तिजनक है। (वि.स.४/३३९)
  • महाशक्ति का तुममें संचार होगा -- कदापि भयभीत मत होना। पवित्र होओ, विश्वासी होओ, और आज्ञापालक होओ। (वि.स.४/३६१)
  • बिना पाखण्डी और कायर बने सबको प्रसन्न रखो। पवित्रता और शक्ति के साथ अपने आदर्श पर दृढ रहो और फिर तुम्हारे सामने कैसी भी बाधाएं क्यों न हों, कुछ समय बाद संसार तुमको मानेगा ही। (वि.स.४/३६२)
  • धीरज रखो और मृत्युपर्यन्त विश्वासपात्र रहो। आपस में न लडो! रुपये - पैसे के व्यवहार में शुध्द भाव रखो। हम अभी महान कार्य करेंगे। जब तक तुममें ईमानदारी, भक्ति और विश्वास है, तब तक प्रत्येक कार्य में तुम्हे सफलता मिलेगी। (वि.स.४/३६८)
  • जो पवित्र तथा साहसी है, वही जगत् में सब कुछ कर सकता है। माया-मोह से प्रभु सदा तुम्हारी रक्षा करें। मैं तुम्हारे साथ काम करने के लिए सदैव प्रस्तुत हूँ एवं हम लोग यदि स्वयं अपने मित्र रहें तो प्रभु भी हमारे लिए सैकड़ों मित्र भेजेंगे, आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुः। (वि.स.४/२७६)
  • ईर्ष्या तथा अहंकार को दूर कर दो -- संगठित होकर दूसरों के लिए कार्य करना सीखो। (वि.स.४/२८०)
  • पूर्णतः निस्वार्थ रहो, स्थिर रहो, और काम करो। एक बात और है। सबके सेवक बनो और दूसरों पर शासन करने का तनिक भी यत्न न करो, क्योंकि इससे ईर्ष्या उत्पन्न होगी और इससे हर चीज़ बर्बाद हो जाएगी। आगे बढो तुमने बहुत अच्छा काम किया है। हम अपने भीतर से ही सहायता लेंगे अन्य सहायता के लिए हम प्रतीक्षा नहीं करते। मेरे बच्चे, आत्मविश्वास रखो, सच्चे और सहनशील बनो।(वि.स.४/२८४)
  • यदि तुम स्वयं ही नेता के रूप में खडे हो जाओगे, तो तुम्हे सहायता देने के लिए कोई भी आगे न बढेगा। यदि सफल होना चाहते हो, तो पहले 'अहं' ही नाश कर डालो। (वि.स.४/२८५)
  • पक्षपात ही सब अनर्थों का मूल है, यह न भूलना। अर्थात् यदि तुम किसी के प्रति अन्य की अपेक्षा अधिक प्रीति-प्रदर्शन करते हो, तो याद रखो उसी से भविष्य में कलह का बीजारोपण होगा। (वि.स.४/३१२)
  • यदि कोई तुम्हारे समीप अन्य किसी साथी की निन्दा करना चाहे, तो तुम उस ओर बिल्कुल ध्यान न दो। इन बातों को सुनना भी महान् पाप है, उससे भविष्य में विवाद का सूत्रपात होगा। (वि.स.४/३१३)
  • गंभीरता के साथ शिशु सरलता को मिलाओ। सबके साथ मेल से रहो। अहंकार के सब भाव छोड दो और साम्प्रदायिक विचारों को मन में न लाओ। व्यर्थ विवाद महापाप है। (वि.स.४/३१८)
  • बच्चे, जब तक तुम्हारे हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास- ये तीनों वस्तुएँ रहेंगी -- तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनोदिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स.४/३३२)
  • किसी को उसकी योजनाओं में हतोत्साह नहीं करना चाहिए। आलोचना की प्रवृत्ति का पूर्णतः परित्याग कर दो। जब तक वे सही मार्ग पर अग्रेसर हो रहे हैं; तब तक उन्के कार्य में सहायता करो; और जब कभी तुमको उनके कार्य में कोई गलती नज़र आये, तो नम्रतापूर्वक गलती के प्रति उनको सजग कर दो। एक दूसरे की आलोचना ही सब दोषों की जड़ है। किसी भी संगठन को विनष्ट करने में इसका बहुत बड़ा हाथ है। (वि.स.४/३१५)
  • किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओ; जब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर है, कौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता है? यदि तुम अपनी अंतिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स. ४/३२०)
  • क्या तुम नहीं अनुभव करते कि दूसरों के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं है। बुद्धिमान व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढ़ता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चाहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा। (वि.स. ४/३२८)
  • बच्चे, जब तक हृदय में उत्साह एवं गुरू तथा ईश्वर में विश्वास - ये तीनों वस्तुएं रहेंगी - तब तक तुम्हें कोई भी दबा नहीं सकता। मैं दिनों दिन अपने हृदय में शक्ति के विकास का अनुभव कर रहा हूँ। हे साहसी बालकों, कार्य करते रहो। (वि.स. ४/३३२)
  • आओ हम नाम, यश और दूसरों पर शासन करने की इच्छा से रहित होकर काम करें। काम, क्रोध एंव लोभ -- इस त्रिविध बन्धन से हम मुक्त हो जाएं और फिर सत्य हमारे साथ रहेगा। (वि.स. ४/३३८)
  • न टालो, न ढूँढो -- भगवान अपनी इच्छा अनुसार जो कुछ भेजो, उसके लिए प्रतीक्षा करते रहो, यही मेरा मूलमंत्र है। (वि.स. ४/३४८)
  • शक्ति और विश्वास के साथ लगे रहो। सत्यनिष्ठा, पवित्र और निर्मल रहो, तथा आपस में न लडो। हमारी जाति का रोग ईर्ष्या ही है। (वि.स. ४/३६९)
  • एक ही आदमी मेरा अनुसरण करे, किन्तु उसे मृत्युपर्यन्त सत्य और विश्वासी होना होगा। मैं सफलता और असफलता की चिन्ता नहीं करता। मैं अपने आंदोलन को पवित्र रखूँगा, भले ही मेरे साथ कोई न हो। कपटी कार्यों से सामना पडने पर मेरा धैर्य समाप्त हो जाता है। यही संसार है कि जिन्हें तुम सबसे अधिक प्यार और सहायता करो, वे ही तुम्हे धोखा देंगे। (वि.स. ४/३७७)
  • मेरा आदर्श अवश्य ही थोडे से शब्दों में कहा जा सकता है - मनुष्य जाति को उसके दिव्य स्वरूप का उपदेश देना, तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उसे अभिव्यक्त करने का उपाय बताना। (वि.स. ४/४०७)
  • जब कभी मैं किसी व्यक्ति को उस उपदेश वाणी (श्री रामकृष्ण के वाणी) के बीच पूर्ण रूप से निमग्न पाता हूँ, जो भविष्य में संसार में शांति की वर्षा करने वाली है, तो मेरा हृदय आनन्द से उछलने लगता है। ऐसे समय मैं पागल नहीं हो जाता हूँ, यही आश्चर्य की बात है।(वि.स. १/३३४, ६ फ़रवरी, १८८९)
  • 'बसन्त की तरह लोग का हित करते हुए' - यही मेरा धर्म है। "मुझे मुक्ति और भक्ति की चाह नहीं। लाखों नरकों में जाना मुझे स्वीकार है, बसन्तवल्लोकहितं चरन्तः- यही मेरा धर्म है।" (वि.स.४/३२८)
  • हर काम को तीन अवस्थाओं में से गुज़रना होता है -- उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है, लोग उसे निश्चय ही ग़लत समझते है। इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं; परन्तु मुझे दृढ और पवित्र होना चाहिए और भगवान में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए, तब ये सब लुप्त हो जायेंगे। (वि.स.४/३३०)
  • यदि कोई भंगी हमारे पास भंगी के रूप में आता है, तो छुतही बीमारी की तरह हम उसके स्पर्श से दूर भागते हैं। परन्तु जब उसके सिर पर एक कटोरा पानी डालकर कोई पादरी प्रार्थना के रूप में कुछ गुनगुना देता है और जब उसे पहनने को एक कोट मिल जाता है-- वह कितना ही फटा-पुराना क्यों न हो-- तब चाहे वह किसी कट्टर से कट्टर हिन्दू के कमरे के भीतर पहुँच जाय, उसके लिए कहीं रोक-टोक नहीं, ऐसा कोई नहीं, जो उससे सप्रेम हाथ मिलाकर बैठने के लिए उसे कुर्सी न दे! इससे अधिक विडंबना की बात क्या हो सकता है? आइए, देखिए तो सही, दक्षिण भारत में पादरी लोग क्या गज़ब कर रहें हैं। ये लोग नीच जाति के लोगों को लाखों की संख्या मे ईसाई बना रहे हैं। ...वहाँ लगभग चौथाई जनसंख्या ईसाई हो गयी है! मैं उन बेचारों को क्यों दोष दूँ? हे भगवान, कब एक मनुष्य दूसरे से भाईचारे का बर्ताव करना सीखेगा। (वि.स.१/३८५)
  • प्रायः देखने में आता है कि अच्छे से अच्छे लोगों पर कष्ट और कठिनाइयाँ आ पड़ती है। इसका समाधान न भी हो सके, फिर भी मुझे जीवन में ऐसा अनुभव हुआ है कि जगत में कोई ऐसी वस्तु नहीं, जो मूल रूप में भली न हो। ऊपरी लहरें चाहे जैसी हों, परन्तु वस्तु मात्र के अन्तरकाल में प्रेम एवं कल्याण का अनन्त भण्डार है। जब तक हम उस अंतराल तक नहीं पहुँचते, तभी तक हमें कष्ट मिलता है। एक बार उस शान्ति-मंडल में प्रवेश करने पर फिर चाहे आंधी और तूफान के जितने तुमुल झकोरे आएँ, वह मकान, जो सदियों की पुरानी चट्टान पर बना है, हिल नहीं सकता। (वि.स.१/३८९)
  • यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरंत (ईश्वर न करे) तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचाएंगे। मेरे जैसे भावुक व्यक्ति अपने सगे - स्नेहियों द्वरा सदा ठगे जाते हैं।(वि.स)
  • मेरी केवल यह इच्छा है कि प्रतिवर्ष यथेष्ठ संख्या में हमारे नवयुवकों को चीन जापान में आना चाहिए। जापानी लोगों के लिए आज भारतवर्ष उच्च और श्रेष्ठ वस्तुओं का स्वप्न राज्य है। और तुम लोग क्या कर रहे हो? ... जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ विवाद करने वालो, तुम लोग क्या हो? आओ, इन लोगों को देखो और उसके बाद जाकर लज्जा से मुँह छुपा लो। सठियाव बुद्धि वालों, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जाएगी! अपनी खोपड़ी में वर्षों के अंधविश्वास का निरंतर वृद्धिगत कूडा-कर्कट भरे बैठे, सैकड़ों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करने वाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो? ...किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी - गीरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी - जान से तडप रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बड़ी महत्वाकांक्षा है। जिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्ड बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तडपते हुए उन्हें घेर कर ' रोटी दो, रोटी दो ' चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकर मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उसके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकडों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को जड़ - मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनो। कूपमंडूकता छोडो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम्हें मनुष्य से प्रेम है? यदि 'हाँ' तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हो। पीछे मुडकर मत देखो; अत्यंत निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पीछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हज़ार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं। परमात्मा ने तुम्हारी इस निश्चेष्ट सभ्यता को तोड़ने के लिए ही अंग्रेज़ी राज्य को भारत में भेजा है... ( वि.स.१/३९८-९९)
  • न संख्या-शक्ति, न धन, न पाण्डित्य, न वाक्चातुर्य, कुछ भी नहीं, बल्कि पवित्रता, शुद्ध जीवन, एक शब्द में अनुभूति, आत्म-साक्षात्कार को विजय मिलेगी! प्रत्येक देश में सिंह जैसी शक्तिमान दस-बारह आत्माएँ होने दो, जिन्होंने अपने बन्धन तोड डाले हैं, जिन्होने अनन्त का स्पर्श कर लिया है, जिसका चित्र ब्रह्म अनुसंधान में लीन है, जो न धन की चिंता करते हैं, न बल की, न नाम की और ये व्यक्ति ही संसार को हिला डालने के लिए पर्याप्त होंगे। (वि.स.४/३३६)
  • यही रहस्य है। योग प्रवर्तक पतंजलि कहते हैं, " जब मनुष्य समस्त अलौकिक दैवी शक्तियों के लोभ का त्याग करता है, तभी उसे धर्म मेघ नामक समाधि प्राप्त होती है। वह परमात्मा का दर्शन करता है, वह परमात्मा बन जाता है और दूसरों को तदरूप बनने में सहायता करता है। मुझे इसी का प्रचार करना है। जगत् में अनेक मतवादों का प्रचार हो चुका है। लाखों पुस्तकें हैं, परन्तु हाय! कोई भी किंचित् अंश में प्रत्यक्ष आचरण नहीं करता। (वि.स.४/३३७)
  • एक महान रहस्य का मैंने पता लगा लिया है -- वह यह कि केवल धर्म की बातें करने वालों से मुझे कुछ भय नहीं है। और जो सत्य द्र्ष्ट महात्मा हैं, वे कभी किसी से बैर नहीं करते। वाचालों को वाचाल होने दो! वे इससे अधिक और कुछ नहीं जानते! उन्हे नाम, यश, धन, स्त्री से सन्तोष प्राप्त करने दो। और हम धर्मोपलब्धि, ब्रह्म लाभ एवं ब्रह्म होने के लिए ही दृढ़व्रत होंगे। हम आमरण एवं जन्म-जन्मान्तर में सत्य का ही अनुसरण करेंगे। दूसरों के कहने पर हम तनिक भी ध्यान न दें और यदि आजन्म यत्न के बाद एक, देवल एक ही आत्मा संसार के बंधनों को तोड़कर मुक्त हो सके तो हमने अपना काम कर लिया। (वि.स. ४/३३७)
  • जो सबका दास होता है, वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच - नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अंत नहीं है, जो ऊँच - नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है। (वि.स. ४/४०३)
  • वत्स, धीरज रखो, काम तुम्हारी आशा से बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा। हर एक काम में सफलता प्राप्त करने से पहले सैकड़ों कठिनाइयों का सामना करना पडता है। जो उद्यम करते रहेंगे, वे आज या कल सफलता को देखेंगे। परिश्रम करना है वत्स, कठिन परिश्रम! काम कांचन के इस चक्कर में अपने आप को स्थिर रखना, और अपने आदर्शों पर जमे रहना, जब तक कि आत्मज्ञान और पूर्ण त्याग के साँचे में शिष्य न ढल जाये निश्चय ही कठिन काम है। जो प्रतीक्षा करता है, उसे सब चीजें मिलती हैं। अनन्त काल तक तुम भाग्यवान बने रहो। (वि.स. ४/३८७)
  • अकेले रहो, अकेले रहो। जो अकेला रहता है, उसका किसी से विरोध नहीं होता, वह किसी की शांति भंग नहीं करता, न दूसरा कोई उसकी शांति भंग करता है। (वि.स. ४/३८१)
  • मेरी दृढ़ धारणा है कि तुममें अंधविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और भी अन्य लोग आयेंगे। 'साहसी' शब्द और उससे अधिक 'साहसी' कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार - बार पुकारे, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है? (वि.स. ४/४०८)
सदविचार संकलन विवेकानन्द साहित्य से


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पेट्रोल की कीमतें एकदम से कम क्यों न किया जाए !



 पेट्रोल की कीमतें एकदम से कम क्यों न किया जाए

मेरे एक मित्र ने प्रश्न किया कि 145 डालर प्रति बैरल तो पेट्रोल 71 रु लीटर अब 45 डालर प्रति बैरल तो पेट्रोल 61 रु क्यों भाई ??? मेरे भी मन में यह बात आई कि इस कीमत पर पेट्रोल की कीमत यह होनी चाहिए.
डीमांड और सप्लाई पर कीमत निर्धारित होती है, आज की डेट में पेट्रोल की कीमत कम क्यों हुई यह देखने की जरूरत है, विश्व के सबसे बड़े तेल आयातक देश अमेरिका ने तेल आयात करना बंद कर दिया है.. क्योकि उसने बालू और पत्थर से तेल निकलने की तकनीकी विकसित की है.. जिसमे उसे 60 से 70 डालर प्रति बैरल तेल पड़ रहा है.. जब अमेरिका को इस तकनीक से 115 की अपेक्षा 60 से 70 डालर प्रति बैरल तेल मिल रहा है तो वह ओपेक देशो से क्यों तेल आयात करेंगा.. मगर ज्यादा दिन तक तेल की कीमत 50 डालर प्रति बैरल रही तो अमेरका को अपने निर्णय पर विचार कर तेल फिर से आयात करने के विषय पर सोचना होगा क्योकि खुद की तकनीकी से तेल उसे 20 डालर प्रति बैरल तक महगा पड़ रहा है.
ओपेक की नीतियों के हिसाब से अभी निर्धरित उत्पादन कम नहीं किया जा सकता और ईरान और सऊदी अरब के अपने कारण है जो तेल का उत्पादन कम नही हो रहा है और कीमते गिर रही है. अगर भारत में भी कीमते एका एक गिरेगी तो खपत आत्याधिक होगी और अत्यधिक आयत भी करना पड़ेगा और जब आयत बढेगा तो निश्चित रूप से तेल की कीमते अपने आप बढ़ेगी.. तेल की कीमते गिरनी चहिये पर नीतियों के हिसाब से दीर्घ कालिक सोच के साथ हमें चलना होगा.
अगर आज भारत में तेल की कीमते कम होगी तो महगाई कम नहीं होने वाली, किन्तु वैश्विक नीतियों के यदि फिर से पेट्रोल व डीजल की कीमते बढ़ी तो महगाई का स्तर फिर से काफी बढेगा जिसका बोझ सिर्फ आम जनता पर ही पड़ेगा जैसा कि सामान्य उदाहरण के तौर पर इलाहबाद में ऑटोरिक्शा का किराया तेल की कीमतों के बढ़ने पर दूरी के हिसाब से 1 से 5 रूपये की वृद्धि हुई किन्तु तेल की कीमते 10 रूपये कम होने पर किराया बिल्कुल भी कम नहीं हुआ. इसी प्रकार दाम कम होने पर किराये में कोई कमी नहीं आएगी अपितु कभी कीमत बढ़ी तो किराये जरूर बढ़ेगे और इससे महगाई भी..



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तनाव : समस्या और समाधान



तनाव क्या है?

तेज़ी से बदलते माहौल में हमारे शरीर और मन पर जो असर पड़ता है, उसे तनाव कहते है। तनाव दो तरह का होता है। पहला – अच्छा तनाव और दूसरा – बुरा तनाव। जहां अच्छे तनाव की वजह से आप अपनी नौकरी में प्रमोशन पाते है, वहीं बुरे तनाव में आप किसी से गुस्से में बहस कर लेते है।

परिवार, पैसा, काम और स्कूल - ये तनाव के सामान्य कारण है। ज्यादा तनाव आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक होता है और इसकी वजह से आपके परिवार और दोस्तों से संबंध भी बिगड़ सकते है। कई बार जब लोग लगातार तनाव भरी परिस्थितियों से गुज़रते है, तो उनका गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता।

तनाव क्या है?

तनाव के लक्षण क्या हैं?

डॉक्टर से नियमित चेकअप कराएं। नीचे दिए लक्षण किसी और कारण से भी हो सकते है। खराब स्वास्थ्य भी आपके तनाव को बढ़ा सकता है।

  1. सिरदर्द व पीठदर्द
  2. नींद नआना
  3. गुस्सा और हताश होना
  4. किसी एक चीज़ पर ध्यान न लगा पाना
  5. रोना
  6. दूसरों को नज़रअंदाज़ करना
  7. पेट खराब होना या अल्सर होना
  8. रैशेज़ (लाल चकते होना)
  9. हायब्लडप्रेशर, हृदयरोग, स्ट्रोक

तनाव के लक्षण क्या हैं?

तनाव से कैसे निपटें?

  1. नियमित रूप से 20 से 30 मिनट शारीरिक व्यायाम (चलना, दौड़ना या उठना बैठना) करें। इससे आपके दिमाग को सोचने का वक्त मिलेगा। अगर आप तनाव भरे माहौल में काम करते है, तो दोपहर का खाना खाने के बाद या चाय के दौरान थोड़ा टहलें।
  2. मेडिटेशन कीजिए (ध्यान लगाइए) राहत भरा संगीत सुनिए। 10-20 मिनट तक आंखें बंद करके शांति का अनुभव कीजिए। गहरी सांस लीजिए। दिमाग को शांत करें, और तनाव भरी बातें दिमाग से निकाल दें।
  3. अख़बार पढ़िए या किसी से बात कीजिए। अपनी भावनाओं को कागज़ पर लिखने से, या किसी से बात करने पर आप ये जान पाएंगे कि आपके तनाव के कारण क्या है।
  4. ‘न’ कहना सीखें। जो ज़िम्मेदारियां और चीजें आप संभाल ना पाएं, उन्हें ना लें।

 

तनाव कम करना है तो छोड़ दें ये बुरी आदतें

  1. देर तक सोना तनाव की शुरुआत आपकी सुबह से ही हो सकती है अगर आप रोज देर से सोकर उठते हैं। डॉक्टर भी मानते हैं कि देर से उठने वाले लोगों का मेटाबॉलिज्म ठीक नहीं रहता है जिससे उन्हें थकान, तनाव और उदासीनता अधिक सताती है। शोधों में भी यह माना गया है कि देर से उठने वाले लोग अक्सर सुबह का नाश्ता छोड़ते हैं जिससे उनका बॉडी साइकिल गड़बड़ होता है और वे जल्द तनावग्रस्त होते हैं।
  2. घंटों टीवी देखना आपको तनाव और अवसाद की स्थिति तक पहुंचाने के लिए काफी है। बजाय घंटों तक टीवी देखने के आप अपना समय परिवार के साथ बिताएंगे या सैर करेंगे तो तनाव से कोसों दूर रहेंगे।
  3. धूम्रपान आपका तनाव बढ़ाती है। धूम्रपान से धड़कन तेज हो जाती है जिससे तनाव बढ़ता है।
  4. जरूरत से ज्यादा काम -ऑफिस में काम का दबाव तो हर किसी की जिंदगी में होता है लेकिन जो लोग काम और परिवार में काम का संतुलन नहीं बैठा पाते और रुटीन में काम के अलावा कुछ नया नहीं कर पाते हैं, उन्हें तनाव और अवसाद होना तो वाजिब ही है। ऑफिस के काम के अलावा भी बहुत कुछ है, अपने शगल को मरने न दें।
  5. गलत खानपान जुड़ी ये आदतें तनाव बढ़ाने और आपको कई रोगों का शिकार बनाने के लिए काफी हैं।
  6. तनाव की समस्या, समाधान क्या है
  7. तनाव के कारण शरीर असंतुलित हो जाता है, जिसके कारण बदहजमी और पेट दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  8. मानसिक तनाव के कारण चेहरे की मांसपेशियों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है, जिसके कारण त्वचा में झुर्रियों की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  9. तनाव रक्तचाप को बढ़ाता है जो हृदय रोग का कारण बनता है।
  10. तनावग्रस्त होने पर व्यक्ति को नींद न आने की समस्या हो जाती है, जो उसके स्वास्थ्य को हानि पहुंचाती है।
  11. तनाव सिरदर्द की समस्या को उत्पन्न करता है।
  12. तनाव व्यक्ति की भूख को समाप्त कर देता है, जिसके कारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।
  13. तनाव मुंहासों की समस्या को उत्पन्न करने में भूमिका निभाता है।अत्यधिक तनाव आयु को कम करता है।

तनाव कम करना है तो छोड़ दें ये बुरी आदतें

 तनाव कम करने के उपाय

  1. सूर्योदय से पहले उठें, घूमने जाएँ, हल्का व्यायाम या योग करें।
  2. आप रोज कम से कम 30 मिनट भी योग करें तो आप काफी हद तक तनाव पर काबू पा सकते हैं। इससे आप शारीरिक तौर तो फिट रहेंगे ही साथ ही आपको मानसिक शांति भी मिलेगी।
  3. प्रातःकाल व सोते समय 15 मिनट ईश्वर का ध्यान करें।
  4. अपने अंदर छुपी रूचि को विकसित करने का प्रयास करें और हमेशा सकारात्मक चिंतन करें क्योकि नकारात्मक सोच से ऊर्जा नष्ट होती है।
  5. उत्साह एवं आत्मविश्वास के साथ काम करें। व्यवस्थित दिनचर्या की आदत डालें।
  6. तनाव पर काबू पाने के लिए किताबें पढ़ना भी एक अच्छा उपाय है। आप अपनी पसंदीदा किताबें पढ़ें जिससे काफी हद तक आपका तनाव कम होगा।
  7. कभी भी किसी विषय पर अत्यधिक गंभीर न हों।
  8. नींद न आना या फिर कम सोना भी तनाव का महत्वपूर्ण कारण है, इसलिए भरपूर नींद लें, नींद न आती हो तो सोने से पूर्व अच्छी पुस्तक का अध्ययन करें।
  9. नियमित सैर व एक्सरसाइज की आदत डालें।
  10. आदतों में बदलाव लाने का प्रयास करें, कभी-कभी हमारी गलत आदतें और स्वयं हमारा व्यवहार भी हमें तनावग्रस्त करता है।
  11. स्वयं को काम में व्यस्त रखें। व्यर्थ बातों को सोचकर तनावग्रस्त न हों।
  12. प्रात: जल्दी उठकर ताजी हवा में सांस लें।
  13. तनाव कम करने के लिए पूरी नींद लेना बेहद जरूरी होता है। रोजाना कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर पूरी करें।

टेंशन मुक्ति की अचूक तरकीब

 इन दिनों भाग-दौड़ की जिंदगी में अमूमन लोग कुछ हद तक टेंशन (तनाव) में रहते है। तनाव पैदा होने की कई वजह हो सकती है, जैसे किसी तरह का टकराव, बढ़ती प्रतिस्पर्धा काम करने की समय सीमा धन कमाने की होड़ दुख, नाउम्मीद आदि। ऐसे समय में आप खुद को पहचानिए और अपनी क्षमता के अनुसार काम में लचीला रूख अपनाइए ताकि आप लगातार उत्साहित होते रहे। बहरहाल टेंशन से निजात पाने के लिए सहज तरकीब के जरिये आपको इससे मिलेगी मुक्ति और मानसिक शांति।

  1. सकारात्मक सोच : आप नकारात्मकता को उत्सर्ग कर सकारात्मक सोच रखें। यह सोच हमेशा हमें मन मस्तिष्क के अंदर-बाहर किसी भी बात से परेशान होने नहीं देती और दिशा निर्देश दे कर शांति स्तर पर पहुंचती है जबकि नकारात्मक सोच हमारी जिन्दगी को दिग्भ्रमित कर देती है।
  2. प्राणायाम या व्यायाम : मन-मस्तिष्क को तरोताजा रखने के लिए प्राणायाम या व्यायाम एक बेहद उपयोगी साधन है। इसके यमित अभ्यास करने से कांतिमय तो होते ही है। साथ ही हम हल्का फुल्का महसूस करते है और अंदर मौजूद ऊर्जा का सदुपयोग कर पाते हैं तथा मानसिक तनाव रहित हो जाते हैं।
  3. प्रसन्नता : हर दर्द की दवा है प्रसन्नता। टेंशन मुक्ति के लिए हास-परिहास को जिंदगी में शामिल कर प्रसन्नचित रहिए। यह आपके क्रोध, चिंता, खिन्नता, निराशा और चिड़चिड़ेपन आदि पर मरहम का काम करता है।
  4. दिनचर्या का बदलाव : नित्य एक ही काम करने या एक ही जगह ठहरने से मानव स्वभाव बदलाव चाहता है तो रुचि के अनुसार दिनचर्या का बदलाव करें। इससे अपने बारे में अच्छा महसूस करेंगे और जीवन की एकरसता टूटेगी।
  5. अपने लिए वक्त : भाग दोड़ की जिंदगी में अपने लिए वक्त निकाले। यह आपका हक है जिसके आधार पर आप तय कर सकते हैं कि आपकी मंजिल क्या है? यह आपकी निजी खोज है।इसे कोई छीन नहीं सकता।
  6. नयी पहल : अक्सर अवसर चूक जाने के पश्चात पछतावे के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगता इसलिए जो बीत गई सो बात गई, वाला कथन अपनाइए और आगे की सुधि लेते हुए नई पहल करें।
  7. रचनात्मक कार्य : खाली समय मूड का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। अत: सदैव दिमाग को रचनात्मक कार्यों में लगा देने से मूड खुशनुमा बना रहता है और मानसिक बाधाए दूर हो जाती है। अगर आप उपरोक्त टिप्स पर अमल करें तो निश्चय ही जिंदगी की भागम भाग में सबसे सद्भूत तथा टेंशन मुक्त होकर तरोताजा दिखेंगे।
  8. खुल कर करें मेल : मिलाप अक्सर देखने में आता है कि व्यक्ति काम की अधिकता और व्यस्तता के कारण परिवार और मित्रों के साथ के लिये भी वक्त नहीं निकाल पाता। होना यह चाहिये कि प्रतिदिन, चाहे आधा घंटा ही सही पर अपने प्रियजनों के लिये वक्त अवश्य निकालना चाहिये। अपनों के साथ अपने सुख-दु:ख बांटने से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  9. संगीत में स्नान : संगीत को सिर्फ मनोरंजन मानना बहुत बड़ी भूल है। संगीत सिर्फ कला ही नहीं वह ध्यान, चिकित्सा पद्धति और आध्यात्मिक साधना सब कुछ एक साथ है। प्रतिदिन 20 से 30 मिनट तक कोई अच्चा संगीत अवश्य सुने। संगीत ऐसा हो जो आपके दिमाग से विचारों की उथल-पुथल को शांत करके आपको गहरे मौन और ध्यान की गहराइयों में पहुंचा सके।
  10. मेडिटेशन : अगर कहा जाए कि संसार की अधिकांश समस्याओं को सिर्फ ध्यान के बल पर ठीक किया जा सकता है तो इसमें कोई भी अतिशयोक्ति नहीं है। नियमित ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति में इंसानियत और मानवीयता के सद्गुणों का जन्म होता है। ध्यान से मानसिक तनाव को दूर करना सबसे अधिक कारगर और अचूक उपाय है।

 

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क्या मुस्लिम वास्तव में देश भक्त है ??



क्या मुस्लिम वास्तव में देश भक्त है ??
यह किसी पेज का स्क्रीन शॉट है जिसमे प्रश्न पूछा गया है कि आपको क्या होने पर गर्व है 1. भारतीय, 2. हिन्दू 3. मुस्लिम और इसमें 10 लोगो के कमेन्ट दिख रहा है जिसमेंं 5 हिन्दू और 5 मुस्लिम है। चित्र में सभी मुस्लिमो ने मुस्लिम (पीले रंग में) होने पर गर्व होने की बात कही उसी में मु‍स्लिम ने मुस्लिम और भारतीय होने पर गर्व होने की बात कही, सभी हिन्दूओं ने भारतीय होने में गर्व की बात कही और उसी मे से एक हिन्दू ने भारतीय के साथ हिन्दू होने की बात कही।
यह चित्र उस मुस्लिम चेहरे का प्रतिनिधित्व करता है उसकी सोच को दर्शाता है कि वास्तव देश इस्लाम की अपेक्षा आज भी उनके लिये दोयम दर्जे पर है। ज्‍यादातर मुस्लिम देश की मुख्‍य धारा मे जुडे ही नही और जुडना भी नही चाहते है। ज्‍यादातर मुस्लिमो को भारतीय होने ज्‍यादा मु‍सलमान हाने पर गर्व है। मुस्लिमो की यह सोच धर्मनिपेक्षता की श्रेणी मे आता हैै यह साम्‍प्रा‍यिकता की श्रेणी में यह तथाकथित वोट बैंक सेक्‍युलर नेताओ के लिये सोचने का विषय है।देश के मुस्लिमोे के नाम पर बटवारे के बाद भी आज मुुस्लिम भारत परस्‍त नही है, उनकी निष्‍ठा आज भी देश से ज्यादा इस्‍लाम पर है। भारत देश की रचना इसलिये पंथनिरपेक्ष राष्‍ट्र की नही रखी गर्इ कि धर्म कोे देश के से उपर रखा जाये।
घिन आती है तुच्‍छ धर्मिक मानसिकता पर जब देश में ही तिरंगे को पैरों तले रौदा जाता है और पाकिस्‍तानी झंडे को लहराया जाता है। कही न कही गडबड जरूर है भारत केे मुस्लिम बुरे नही है उनकी मानसिकता बुरी है। विश्‍व के कई देशो यहां तक कि इस्‍लामिक देशो में मुसलमान इस्‍लाम की पोंगापंथी को त्‍याग कर देश की मुख्‍यधारा जुडे हुये है। यह विचार करने की जरूरत है कि भारत जैसे देश मे जहां उनको सारी सहुलियत मौजूद है जोे उनको इस्‍लामिक देश मे नही है वहाँ उनकी मुस्लिम मानसिकता देश से सर्वोपरि है। आज जरूरत है कि रोग को पहचान कर उनका इलाज करने कीए कठोर निर्णय लेने की। जिससे पोंगा पंथी विचारधारा से मुक्ति की परिवर्तन हवा सभी तक पहुॅचे। बाकी जरूरत करने की जरूरत है ज्‍यादा कुछ कहने की नही है।


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रामनरेश यादव - राज्यपाल मध्य प्रदेश व पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश



 

श्री रामनरेश यादव का जन्म एक जुलाई 1928 ई. को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, जिले के गांव आंधीपुर(अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। आपका बचपन खेत-खलिहानों से होकर गुजरा। आपकी माता श्रीमती भागवन्ती देवी जी धार्मिक गृहिणी थीं और पिता श्री गया प्रसाद जी महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डा. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। आपके पिताजी प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक थे तथा सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। श्री यादव को देशभक्ति, ईमानदारी और सादगी की शिक्षा पिताश्री से विरासत में मिली है। आपका भारतीय राजनीति में विशिष्ट स्थान है। आप कर्मयोगी और जनप्रिय नेता हैं। स्वदेशी एवं स्वावलंबन आपके जीवन का आदर्श है। आपके बहुमुखी कृतित्व एवं व्यक्तित्व के कारण आप बाबूजी'' के नाम से जाने जाते हैं।

श्री रामनरेश यादव का विवाह सन् 1949 में श्री राजाराम यादव निवासी ग्राम-करमिसिरपुर (मालीपुर) जिला-अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)की सुपुत्री सुश्री अनारी देवी जी ऊर्फ शांति देवी जी के साथ हुआ। आपके तीन पुत्र और पांच पुत्रियां हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के विद्यालय में हुई और आपने हाईस्कूल की शिक्षा आजमगढ़ के मशहूर वेस्ली हाई स्कूल से प्राप्त की। इन्टरमीडिएट, डी.ए.वी. कालेज, वाराणसी से और बी.ए., एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की। उस समय प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक एवं विचारक आचार्य नरेन्द्र देव काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं जनक पंडित मदनमोहन मालवीय जी के गीता पर उपदेश तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं तत्कालीन प्रोफेसर डॉ. राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन पर व्याख्यान की गहरी छाप आप पर विद्यार्थी जीवन में पड़ी।

श्री यादव ने स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वाराणसी में चिन्तामणि एंग्लो बंगाली इन्टरमीडिएट कालेज में प्रवक्ता के पद पर तीन वर्षों तक सफल शिक्षक के रूप में कार्य किया। आप पट्टी नरेन्द्रपुर इंटर कालेज जौनपुर में भी कुछ समय तक प्रवक्ता रहे। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद सन् 1953 में आपने आजमगढ़ में वकालत प्रारम्भ की और अपनी कर्मठता तथा ईमानदारी के बल पर अपने पेशे तथा आम जनता में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया।

श्री यादव ने छात्र जीवन से समाजवादी आन्दोलन में शामिल होकर अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की शुरूआत की। आजमगढ़ जिले के गांधी कहे जाने वाले बाबू विश्राम राय जी का आपको भरपूर सानिध्य मिला। श्री यादव ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डाक्टर रामनोहर लोहिया के विचारों को अपना आदर्श माना है। आपने समाजवादी विचारधारा के अन्तर्गत विशेष रूप से जाति तोड़ो, विशेष अवसर के सिद्धान्त, बढ़े नहर रेट, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा, आमदनी एवं खर्चा की सीमा बांधने, वास्तविक रूप से जमीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने, अंग्रेजी हटाओ आदि आन्दोलनों को लेकर अनेकों बार गिरफ्तारियां दीं। आपातकाल के दौरान आप मीसा और डी.आई. आर के अधीन जून 1975 से फरवरी 1977 तक आजमगढ़ जेल और केन्द्रीय कारागार नैनी इलाहाबाद में निरूद्ध रहे। आप अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में विभिन्न दलों एवं संगठनों तथा संस्थाओं से संबद्ध रहे। राज्यसभा सदस्य तथा संसदीय दल के उपनेता भी रहे। आप अखिल भारतीय राजीव ग्राम्य विकास मंच, अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग कमीशन कर्मचारी यूनियन और कोयला मजदूर संगठन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ग्रामीणों और मजदूर तबके के कल्याण के लिये लम्बे समय तक संघर्षरत रहे। बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में एक्सिक्यूटिव कॉसिंल के सदस्य भी थे। अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) रेलवे कर्मचारी महासंघ के आप राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, और आप जनता इंटर कालेज अम्बारी आजमगढ़ (उ.प्र.) के प्रबंधक हैं तथा अनेकों शिक्षण संस्थाओं के संरक्षक भी हैं तथा गांधी गुरूकुल इन्टर कालेज भंवरनाथ, आजमगढ़ के प्रबंध समिति के अध्यक्ष भी हैं।

श्री रामनरेश यादव 23 जून 1977 को उत्तरप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। मुख्यमंत्रित्व काल में आपने सबसे अधिक ध्यान आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के उत्थान के कार्यों पर दिया तथा गांवों के विकास के लिये समर्पित रहे। आपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों के अनुरूप उत्तरप्रदेश में अन्त्योदय योजना का शुभारम्भ किया। श्री यादव सन् 1988 में संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य बने एवं 12 अप्रैल 1989 को राज्यसभा के अन्दर डिप्टी लीडरशिप,पार्टी के महामंत्री एवं अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की।

आपने मानव संसाधन विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पहले अध्यक्ष के रूप में आपने स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के चहुंमुखी विकास को दिशा देने संबंधी रिपोर्ट सदन में पेश की। केन्द्रीय जन संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत गठित हिन्दी भाषा समिति के सदस्य के रूप में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया। वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण नारकोटिक्स समिति के सदस्य के रूप में सीमावर्ती राज्यों में नशीले पदार्थों की खेती की रोकथाम की पहल की। प्रतिभूति घोटाले की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य के रूप में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। पब्लिक एकाउंट कमेटी (पी.ए.सी.), संसदीय सलाहकार समिति (गृह विभाग), रेलवे परामर्शदात्री समिति और दूरभाष सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में आप कार्यरत रहे। आप कुछ समय तक कृषि की स्थाई संसदीय समिति के सदस्य तथा इंडियन काँसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च की जनरल बाडी तथा गवर्निंग बाडी के सदस्य भी रहे। आपका लखनऊ में अम्बेडकर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने में काफी योगदान था।

श्री रामनरेश यादव ने सन् 1977 में आजमगढ़ (उ.प्र.) से छठी लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। आप 23 जून 1977 से 15 फरवरी 1979 तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। आपने 1977 से 1979 तक निधौली कलां (एटा) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया तथा 1985 से 1988 तक शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) से विधायक रहे। श्री यादव 1988 से 1994 तक (लगभग तीन माह छोड़कर) उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य रहे और 1996 से 2007 तक फूलपुर(आजमगढ़) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। सम्प्रति श्री रामनरेश यादव मध्यप्रदेश के राज्यपाल हैं।



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