विवाह एक ऐसा सामाजिक अवसर है जहां दो परिवार उपहारों का लेन-देन करते हैं। पर इन लेन-देनों में समानता नहीं होती, किसी एक पक्ष की ओर आमतौर पर झुकाव ज्यादा होता है। इसके अलावा विवाह के बाद भी काफी अर्से तक लेन-देन की यह प्रक्रिया चलती रहती है।
हमारे समाज में दहेज समुदाय के हर वर्ग तक पहुंच चुका है। इसका अमीरी-गरीबी से कोई ताल-मेल नहीं है और न ही सम्प्रदाय-जाति का भेद-भाव है। आज दहेज के रूप में मोटी रकम के साथ-साथ कार, फर्नीचर, कीमती कपड़े व भारी गहने भी वधू के परिवार से वर के परिवार भेजे जाते हैं। इसके अलावा वधू-पक्ष, वर-पक्ष एवं ब्याह के सारे खर्चे, जिसमें यात्रा खर्च भी शामिल होता है वहन करता है। यहीं नही वर-पक्ष को हक है कि वह कोई भी अप्रत्याशित मांग वधू के परिवार के सामने रखे और जिसे पूरी करना विवाह के लिए अनिवार्य समझा जाता है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की कुछ खास बातें
- दहेज का लेन-देन दोनों अपराध हैं। इसके लिए कम से कम पांच वर्ष कैद या पंद्रह हजार रुपये जुर्माना किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त दहेज की मांग करने पर भी छः मास सजा और दस हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।
- यह कानून महिलाओं को पति या ससुराल वालों से सम्पत्ति/सामान लेने की स्थिति में उनकी सुविधा के लिए बनाया गया है। इसके तहत महिला के नाम पर शादी के समय दी गई सारी सम्पत्ति/दहेज शादी के बाद तीन माह के भीतर महिला के नाम कर दिया जाएगा। अगर इस सम्पत्ति/दहेज की मिल्कियत पाने से पहले महिला की मौत हो जाती है तो महिला के वारिस इस सम्पत्ति/दहेज को वापस लेने की मांग कर सकते हैं। अगर विवाह के सात साल के अंदर महिला की मौत हो जाती तो सारा दहेज उसके माता-पिता या बच्चों को दिया जायेगा।
- दहेज हत्या के लिए सात साल की सजा दी जा सकती है। यह अपराध गैरजमानतीय है।
- दोषी व्यक्ति पर धारा 304 बी के साथ ही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या) 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) 44 ए (क्रूरता) और दहेज विरोधी कानून सेक्शन 4 लगाया जा सकता है।
- धारा 304बी : यह धारा दहेज हत्या के मामलों में सजा के लिए लागू की जाती है। दहेज हत्या का अर्थ है, अगर औरत की मौत जलने या किसी शारीरिक चोट के कारण हुई है या शादी के सात साल के अन्दर किन्हीं अन्य संदेहास्पद कारणों से हुई है। यह धारा उस समय भी लागू की जा सकती है, जब साबित हो जाए कि पति या उसके माता-पिता या अन्य संबंधी दहेज के लिए उसके साथ हिंसा और बदसलूकी कर रहे थे जिसके कारणवश औरत की मौत हो गई हो।
- धारा 302 : यह धारा दहेज हत्या के आरोप में सजा के मामले में लागू की जाती है जिसमें उम्र कै़द या फांसी की सजा हो सकती है।
- धारा 306 : यह धारा मानसिक और भावनात्मक हिंसा, जिसके फलस्वरूप औरत आत्महत्या के लिए मजबूर हो गई हो, के मामलों में लागू होती है। इसके तहत जुर्माना तथा 10 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है।
- धारा 498ए : यह धारा पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लालच में क्रूरता और हिंसा के लिए लागू की जाती है। यहां क्रूरता के मायने हैं औरत को आत्महत्या के लिए मजबूर करना, उसकी ज़िंदगी के लिए खतरा पैदाकरना व दहेज के लिए सताना व हिंसा। इस सभी धाराओं के अलावा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 113 ए, 174 (3) और धारा 176 भी दहेज व इससे जुड़ी हत्या की स्थिति में लागू की जा सकती है। इसके तहत दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने पर आत्महत्या या मौत की दूसरी वजह होने के बावजूद पुलिस छान-बीन, कानूनी कार्यवाही, लाश का पोस्टमार्टम आदि करने का आदेश दे सकती है; ख़ासतौर पर जब मौत विवाह के सात वर्ष के अन्दर हुई हो या फिर किसी पर दहेज हत्या का संदेह हो।
विधि और कानून पर आधारित अन्य लेख
- आईपीसी (इंडियन पैनल कोड) की धारा 354 में बदलाव
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय का इतिहास
- RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे
- उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956
- बलात्कार (Rape) क्या है! कानून के परिपेक्ष में
- प्रथम सूचना रिपोर्ट/देहाती नालिशी, गिरफ्तारी और जमानत के सम्बन्ध में नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144
- धारा 50 सी.आर.पी.सी. के अधीन हिरासत व जमानत सम्बन्धित अधिकार
- वाहन दुर्घटना के अन्तर्गत मुआवजा
- भरण-पोषण का अधिकार अंतर्गत धारा 125 द.प्र.स. 1973
- हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956
- अवैध देह व्यापार से संबंधी कानून
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 108
- भारतीय दंड संहिता की धारा 188
- जमानतीय एवं गैर जमानती अपराध
- विवाह, दहेज और कानून
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498 व 498 ए
- भारतीय दंड संहिता (I.P.C.) की महत्वपूर्ण धाराएं
- IPC में हैं ऐसी कुछ धाराएं, जिनका नहीं होता इस्तेमाल
- RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे
- क्या है आईपीसी की धारा 377 और क्या कहता है कानून
- भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत बलात्कार पर कानून और दंड
- भारतीय दंड संहिता की धारा 503, 504 व 506 के अधीन अपराध एवं सजा
- विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अंतर्गगत दंड प्रविधान
- दहेज एवं दहेज हत्या पर कानून
- भारतीय संसद - राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा
- भारतीय सविधान के अनुसार राज्यपाल की स्थिति
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 का दर्द
- भारतीय संसद के तीन अंग राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा
- भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान के प्रश्न उत्तर
- जनहित याचिका / Public Interest Litigation
- संवैधानिक उपबंध सार
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 243 और उसके महत्व
Share:
1 टिप्पणी:
Hamare par jhuta mukadma 498a 323ipc lagaya gaya fir fasla ho gaya aor final report lag gayi fir os mukadma ko adalat ne complent cas darj kar chala diya humara 5 logo ke name tha jisma ek mari maa ek mari sister ek brother jinki waif ne mukadma likh waya tha ek mara father aor ek main sabka talbi adash huwa fir humra wakil ne humari zamante kar di fir hume koi ek admi mila jisne khud ko wakil bataya aor kaha tumha adalat jana ki zarurat nahi hai main sara cas niptadunga eska liya osne humse kafi moti rakam bhi lee 1 saal taak khuch nahi huwa par ek saal bad humra sabka warrant jari ho gaya aor huma koi suchna bhi nahi mili hum bachta raha os admi ne police se santh ghanth karka huma bachaya 1 saal tak fir ek saal ke baad police mara father aor mujha giraftar karke lay gayi aor hume zamant karni padi fir bhai ko jail bhaja gayi onki bhi zamant huyi mari mother ko jail bhaja gaya onki bhi zamant karni padi abhi mari sister ko surander nahi kiya hai kiya mari sister bhi jail jaygi kiya osko koi narmi milagi jabki ya mukadma jhuta hai aor wo bhi ek ladki hai aor ya bhi ek ladki hai jisne mukadma lagaya hai kiya jo ladki patni ban jati hai sara kanon osi ke liya hota hai
NOT :::: fasla hona ka 3 saal bad comlate cas adalat ne chalu kiya tha
Mujha batayi ya esma kiya ho sakta hai aor huma kiya karna chahiya
एक टिप्पणी भेजें