दहेज एवं दहेज हत्या पर कानून



 
दहेज पर कानून 
दहेज प्रतिशोध अधिनियम, 1961 के अंतर्गत इस विषय पर कानून बना है। इसके अंतर्गत जब शादी से संबंधित जो भी उपहार दबाव या जबरदस्ती के कारण दूल्हे या दुल्हन को दिये जाते हैं, उसे दहेज कहते है। उपहार जो मांग कर लिया गया हो उसे भी दहेज कहते हैं।
  • दहेज लेना या देना या लेने देने में सहायता करना अपराध है। शादी हुई हो या नहीं इससे फर्क नहीं पड़ता है। इसकी सजा है पाँच साल तक की कैद, पन्द्रह हजार रुपये जुर्माना या अगर दहेज की रकम पन्द्रह हजार रुपये से ज्यादा हो तो उस रकम के बराबर जुर्माना।
  • दहेज मांगना अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या जुर्माना।
  • दहेज का विज्ञापन देना भी एक अपराध है और इसकी सजा है कम से कम छः महीनों की कैद या पन्द्रह हजार रूपये तक का जुर्माना।


 दहेज हत्या पर कानून 
भारतीय दंड संहिता की धारा 304ख व 306 दहेज हत्या पर दंड का प्रविधान है इसके अंतर्गत यदि-
  • शादी के सात साल के अन्दर अगर किसी स्त्री की मृत्यु हो जाए
  • गैर प्राकृतिक कारणों से, जलने से या शारीरिक चोट से, आत्महत्या की वजह से हो जाए-और उसकी मृत्यु से पहले उसके पति या पति के किसी रिश्तेदार ने उसके साथ दहेज के लिए क्रूर व्यवहार किया हो, तो उसे दहेज हत्या कहते हैं। दहेज हत्या के संबंध में कानून यह मानकर चलता है कि मृत्यु ससुराल वालों के कारण हुई है।
इन अपराधों की शिकायत कौन कर सकता हैः-
  1. कोई पुलिस अफसर
  2. पीडि़त महिला या उसके माता-पिता या संबंधी
  3.  यदि अदालत को ऐसे किसी केस का पता चलता है तो वह खुद भी कार्यवाई शुरू कर सकता है।
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