प्रयागराज के महत्वपूर्ण धर्मस्थल





प्रयाग का प्राचीन इतिहास
वैसे तो प्रयाग क्षेत्र वैदिक और पौराणिक काल में समादृत रहा है, लेकिन ऐतिहासिक काल में भी इसके महत्व की चर्चा अनेक इतिहासकारों ने की है। जैन धर्म की श्रमण परम्परा में तीर्थंकर आदिनाथ का अक्षयवट के नीचे कैवल्य प्राप्त करना और बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध का धर्म प्रचार हेतु यहां आना इस क्षेत्र की महत्ता का परिचायक है। प्रयाग के प्रतिष्ठानपुर (वर्तमान झूसी), वत्स देश (कौशाम्बी), अलर्कपुर (अरैल), प्राचीन राज्यों में रहे हैं। प्रतिष्ठानपुर की समकालीनता अयोध्या के सूर्यवंशी नरेश इक्ष्वाकु से मानी गयी है। कहा जाता है कि उस समय यहां के राजा इला थे। वत्स देश के महाराजा उदयन का वर्णन भी अनेक ग्रंथों में । सम्राट अशोक के शिलालेख स्तम्भ प्रयाग में आज भी सुरक्षित हैं। गुप्तकाल के बाद महाराजा हर्षवर्धन के शासनकाल में प्रयाग की कीर्ति पताका पूरे विश्व में लहरायी थी। कहते हैं कि महाराजा हर्षवर्धन ने ही दो महाकुंभ पर्वों के बीच छठवें वर्ष पर कुंभ पर्व आयोजित कराने की परम्परा का सूत्रपात किया था। मध्यकालीन इतिहास में अकबर के दरबारी अबुल फजल ने आईने-अकबरी में लिखा है कि हिन्दू लोग प्रयाग को तीर्थराज कहते हैं, यहीं पर गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों का संगम है।
प्रयाग और स्वतंत्रता संग्राम भारत के स्वतंत्रता संग्राम में प्रयाग की अहम भूमिका रही है। उस समय के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में श्री मदन मोहन मालवीय, सर अयोध्या नाथ, सर सुंदर लाल, मोती लाल नेहरू आदि ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था धीरे धीरे इलाहाबाद स्वाधीनता आंदोलन का केंद्र बनता गया हिन्दी की प्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती यहीं से प्रकाशित हुई। अभ्युदय, स्वराज्य जैसे क्रान्तिकारी समाचार पत्र भी इसी धरती से प्रकाशित स्वाधीनता आंदोलन में अपनी भूमिका निभाई। साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में प्रयाग यानी इलाहाबाद का अद्वितीय योगदान है।

प्रयाग का नामकरण एवं माहात्म्य
हमारा देश भारत विश्व की आत्मा कहलाता है और प्रयाग भारत का प्राण कहा गया है। हमारे देश को जीवनदायी शक्तियाँ इसी धरती से मिलती रही हैं। जिस तरह से सनातन धर्म अनादि कहा जाता है, उसी प्रकार प्रयाग की भी महिमा का कोई आदि अंत नहीं है। अरण्य और नदी संस्कृति के बीच जन्म लेकर ऋषियों-मुनियों की तपोभूमि के रूप में पंच तत्वों को पुष्पित-पल्लवित करने वाली प्रयाग की धरती देश को हमेशा ऊर्जा देती रही है।
प्रकृष्टं सर्वेभ्यः प्रयागमिति गीयते।
दृष्ट्वा प्रकृष्टयागेभ्यः पुष्टेभ्यो दक्षिणादिभिः।
प्रयागमिति तन्नाम कृतं हरिहरादिभिः ।
उत्कृष्ट यज्ञ और दान दक्षिणा आदि से सम्पन्न स्थल देखकर भगवान विष्णु एवं भगवान शंकर आदि देवताओं ने इसका नाम प्रयाग रख दिया। ऐसा उल्लेख कई पुराणों से मिलता है। तीर्थराज प्रयाग एक ऐसा पावन स्थल है, जिसकी महिमा हमारे सभी धर्मग्रंथों में वर्णित है। तीर्थराज प्रयाग को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदाता कहा गया है। यह सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है-यह वर्णन ब्रह्म पुराण में प्राप्त होता है :
प्रकृष्टत्वात्प्रयागोऽसौ प्राधान्यात् राजशब्दवान्।
अपने प्रकृष्टत्व अर्थात् उत्कृष्टता के कारण यह "प्रयाग" है और प्रधानता के कारण "राज" शब्द से युक्त है।

प्रयाग की महत्ता वेदों और पुराणों में सविस्तार बतायी गयी है। एक बार शेषनाग से ऋषियों ने भी यही प्रश्न किया था कि प्रयाग को तीर्थराज क्यों कहा जाता है, जिस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया कि सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी। उस समय भारत में समस्त तीर्थों को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयाग को एक पलड़े पर, फिर भी प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर, वहाँ भी प्रयाग वाला पलड़ा भारी रहा। इस प्रकार प्रयाग की प्रधानता सिद्ध हुई और इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा। इस पावन क्षेत्र में दान, पुण्य, तप कर्म, यज्ञादि के साथ साथ त्रिवेणी संगम का अतीव महत्व है। यह सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र स्थान है, जहाँ पर तीन-तीन नदियाँ, अर्थात गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं और यहीं से अन्य नदियों का अस्तित्व समाप्त हो कर आगे एकमात्र नदी गंगा का महत्व शेष रहा जाता है। इस भूमि पर स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञादि कार्य सम्पन्न किये। ऋषियों और देवताओं ने त्रिवेणी संगम कर अपने आपको धन्य समझा। मत्स्य पुराण के अनुसार धर्म राज युधिष्ठिर ने एक बार मार्कण्डेय जी से पूछा, ऋषिवर यह बतायें कि प्रयाग क्यों जाना चाहिए और वहां संगम स्नान का क्या फल है इस पर महर्षि मार्कण्डेय ने उन्हें बताया कि प्रयाग के प्रतिष्ठान से लेकर वासुकि के हृदयोपरि पर्यन्त कम्बल और अश्वतर दो भाग हैं और बहुमूलक नाग हैं। यही प्रजापति का क्षेत्र है, जो तीनों लोकों में विख्यात है। यहाँ पर स्नान करने वाले दिव्य लोक को प्राप्त करते हैं, और उनका पुनर्जन्म नहीं होता है। पद्मपुराण कहता है कि यह यज्ञ भूमि है देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में यदि थोड़ा भी दान किया जाता है तो उसका फल अनंत काल तक रहता है।
प्रयाग की श्रेष्ठता के संबंध यह भी कहा गया है कि जिस प्रकार ग्रहों में सूर्य और नक्षत्रों में चंद्रमा श्रेष्ठ होता है, उसी तरह तीर्थों में प्रयाग सर्वोत्तम तीर्थ है। ग्रहाणां च यथा सूर्यो नक्षत्राणां यथा शशी।
तीर्थानामुत्तमं तीर्थ प्रयागाख्यमनुत्तमम् ।। पद्म पुराण के ही अनुसार प्रयाग में, गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है। इन नदियों के संगम में स्नान करने और गंगा जल पीने से मुक्ति मिलती है इसमें किंचित भी संदेह नहीं है। इसी तरह स्कंद पुराण, अग्नि पुराण, शिव पुराण, ब्रह्म पुराण, वामन पुराण, बृहन्नारदीय पुराण, मनुस्मृति, वाल्मीकीय रामायण, महाभारत, रघुवंश महाकाव्यम् आदि में भी प्रयाग की महत्ता का विस्तार से वर्णन किया गया है। वाल्मीकि रामायण में कहा गया है कि श्री राम अपने वनवास काल में जब ऋषि भारद्वाज से मिलने गए तो वार्तालाप में ऋषिवर ने कहा हे राम गंगा, यमुना के संगम का जो स्थान है, वह बहुत ही पवित्र है, आप वहां भी रह सकते हैं। श्री रामचरितमानस में तीर्थराज प्रयाग की महत्ता का वर्णन बहुत ही रोचक तरीके से और विस्तार से किया गया है-
माघ मकरगत रवि जब होई। तीरथ पतिहिं आव सब कोई।।
देव-दनुज किन्नर नर श्रेनी। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनी।।
पूजहिं माधव पद जल जाता। परसि अछैवट हरषहिं गाता।।
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिवर मन भावन।।
तहां होइ मुनि रिसय समाजा। जाहिं जे मज्जन तीरथ राजा।।
माघ के महीने में त्रिवेणी संगम स्नान का यह रोचक प्रसंग कुम्भ के समय साकार होता है। माघ में साधु संत प्रातःकाल संगम स्नान करके कथा कहते हुए ईश्वर के विविध स्वरूपों और तत्वों की विस्तार से चर्चा करते हैं।

माघ में संगम स्नान क्यों
Kumbh Sangam Prayagraj
Kumbh Sangam Prayagraj

तीर्थराज प्रयाग में माघ के महीने में विशेष रूप से कुंभ के अवसर पर गंगा, यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम में स्नान का बहुत ही महत्व बताया गया है। अनेक पुराणों में इसके प्रमाण भी मिलते हैं। ब्रह्म पुराण के अनुसार संगम स्नान का फल अश्वमेध यज्ञ के समान कहा गया है। अग्नि पुराण के अनुसार प्रयाग में प्रतिदिन स्नान का फल उतना ही है, जितना कि प्रतिदिन करोड़ों गायें दान करने से मिलता है। मत्स्यपुराण में कहा गया है कि दस हजार या उससे भी अधिक तीर्थों की यात्रा का जो पुण्य मिलता है, उतना ही माघ के महीने में संगम स्नान से मिलता है। पद्म पुराण में माघ मास में प्रयाग का दर्शन दुर्लभ कहा गया है और यदि यहां स्नान किया जाए तो वह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। यहां पर मुंडन कराना भी श्रेष्ठ फलदायी कहा गया है। मत्स्य पुराण कहता है कि प्रयाग में मुंडन के पश्चात् संगम स्नान करना चाहिए। स्कंद पुराण के काशी खण्ड में भी प्रयाग में मुंडन की महत्ता बतायी गयी है। जैन धर्म मानने वाले यहाँ केशलुंचन को महत्वपूर्ण मानते हैं। आदि तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षयवट के नीचे केशलुंचन किया था।

प्रयागराज के अन्य महत्वपूर्ण धर्मस्थल
प्रयाग में द्वादश माधव और विष्णुपीठ
प्रयागराज के मुख्य देवता विष्णु कहे गये हैं। इन्हें अलग-अलग नामों से जाना जाता है। प्रयाग क्षेत्र को स्थानीय स्तर पर माधव क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
1. श्री त्रिवेणी संगम आदिवट माधव
2. श्री असि माधव (नागवासुकि मन्दिर
3. श्री संकष्ट हर माधव (प्रतिष्ठान पुरी)
4. शंख माधव (छतनाग मुंशी बागीचा)
5. श्री आदिवेणी माधव (अरैल)
6. श्री चक्र माधव (अरैल)
7. श्री गदा माधव (छिवकी गाँव)
8. श्री पद्म माधव (बीकर देवरिया)
9. श्री मनोहर माधव (जानसेनगंज)
10. श्री बिन्दु माधव (द्रौपदी घाट)
11. श्री वेणी माधव (निराला मार्ग, दारागंज)
12. अनन्त माधव (ऑर्डिनेन्स डिपो फोर्ट)

प्रयागराज क्षेत्र में आठ नायकों का भी उल्लेख मिलता है -
त्रिवेणी माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकिम् ।
वन्देऽक्षयवट शेषं प्रयागं तीर्थनायकम् ।। 

शंकराचार्य मठ

विद्वता और तपस्या की साक्षात प्रतिमूर्ति स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती का नाम कौन नहीं जानता होगा? ज्योतिर्मठ बदरिकाश्रम को अपने तपोबल से जाग्रत करने वाले इन शंकराचार्य ने प्रयाग के महत्व को समझते हुए यहाँ एक मठ की स्थापना का संकल्प लिया। उन्होंने देखा कि अलोप शंकरी देवी के सामने एक शिव मंदिर है। स्वामी ब्रह्मानन्द जी को यह स्थान उपयुक्त लगा। यहाँ ज्योतिर्मठ का कार्यालय बनाया गया। स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती जी के ब्रह्मलीन होने के पश्चात उनके शिष्य स्वामी विष्णुदेवानंद सरस्वती ने इस मठ की गरिमा को बनाए रखा और उनके शिष्य शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती यहां निवास किया करते हैं।

शंकर विमान मण्डपम
Shankar Viman Mandapam - Prayagraj
Shankar Viman Mandapam - Prayagraj  
गंगा तट पर त्रिवेणी बांध में खंभे वाले मंदिर की चर्चा करते ही आदि शंकर विमान मण्डपम् की आकृति आँखों के सामने उभरने लगती है कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चंद्रशेखर सरस्वती की देखरेख में निर्मित यह मंदिर प्रयाग की गरिमा को और उन्नत करता है। अभी तक अपने प्रकार का यह यहां अकेला मंदिर है। इसमें दक्षिण भारत के मंदिरों की शैली की सुंदर मूर्तियों के दर्शन होते है।

बड़े हनुमान जी
Bade Hanuman Ji Temple Prayagraj
Bade Hanuman Ji Temple Prayagraj

गंगा, यमुना तथा अदृश्य सरस्वती के पावन संगम तट पर, त्रिवेणी बांध के नीचे 'बड़े हनुमान जी का मंदिर स्थित है। इस मूर्ति के बारे में एक जनश्रुति है कि एक वणिक जो निःसंतान था, हनुमान जी की एक विशालकाय प्रतिमा बनवाकर नाव में लादकर ले जा रहा था। ऐसा कहा जाता है कि उस वैश्य की नाव इसी स्थान पर, जहाँ हनुमान जी का मंदिर स्थित है रूक गयी। रात्रि -स्वप्न में वैश्य को यह दिखाई दिया कि वह मूर्ति को इसी स्थान पर छोड़कर चला जाये । वणिक ऐसा करने के उपरान्त घर को लौट गया। इस प्रकार उस निःसन्तान वैश्य की मनोकामना पूर्ण हुई और इसी स्थान पर बाघम्बरी बाबा को हनुमान जी की मूर्ति का आभास हुआ। उन्हीं के संरक्षण में खुदाई से 'बड़े हनुमान जी की प्रतिमा मिली, उस स्थान से मूर्ति को उठाने का प्रयास किया गया, किन्तु मूर्ति उस स्थान से हिली भी नहीं। प्रयास असफल हो गया। अंततोगत्वा वहीं हनुमान जी के मंदिर का निर्माण कराया गया।

श्री तुलसीदास जी का बड़ा स्थान
तीर्थराज प्रयाग के परम पावन देवी स्थलों में 'श्री तुलसीदास जी का बड़ा स्थान' का अपना एक अलग ही महत्व है। यह स्थान वैष्णव सम्प्रदाय के उपासकों की पूजा स्थली है। प्रयाग के दारागंज मोहल्ले के दक्षिणी छोर पर स्थित यह स्थल पूरे देश में विख्यात है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना मानस-रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी के समकालीन श्री देव मुरारी जी ने की थी, जो स्वयं को सिद्ध महात्मा थे। उनके गुरु का नाम श्री तुलसीदास था। उन्हीं के नाम पर इस स्थल का नाम "श्री तुलसीदास का बड़ा स्थान" पड़ा।

रामानन्दाचार्य मठ
प्राचीन भारतीय संतों, आचार्यों की श्रृंखला में श्री शंकराचार्य, माधवाचार्य, रामानुजाचार्य तथा निम्बार्काचार्य का नाम उल्लेखनीय है। स्मरणीय है कि प्राचीन भारतीय आचार्यों की श्रृंखला में उत्तर भारत के सर्वप्रथम नेतृत्व का श्रेय श्री रामानंदाचार्य को जाता है। आप ने राम भक्ति धारा को पूरे देश में संचारित कर उत्तर भारत के गौरव को जीवित रखा। उत्तर भारत में रामभक्ति रसधारा को प्रवाहित करने वाले श्री रामानंद प्रयाग के प्रथम नागरिक थे, जिन्होंने सम्पूर्ण भारत को राममय बनाया। आचार्य रामानंद की स्मृति में श्री रामानंदाचार्य मठ का निर्माण हुआ। वर्तमान समय में त्रिवेणी बांध के दक्षिणी किनारे पर किले से सटा श्री रामानंदाचार्य मठ प्रयाग के गौरव में अभिवृद्धि कर रहा है।
जंगमबाड़ी मठ नगर के दारागंज मुहल्ले में जंगमबाड़ी मठ की शाखा स्थापित है। वीरशैव मतावलंबियों का यह स्थान दशाश्वमेध घाट के पास है। कहा जाता है कि वीरशैव मत के प्रतिपादक स्वयं भगवान शिव थे। वीरशैव मतावलंबियों की विशेषता यह है कि वे अपने शरीर में सदैव शिवलिंग धारण किये रहते हैं।

शिव और सिद्धेश्वर महादेव मंदिर
संगम के निकट दारागंज मुहल्ले में स्थित शिवमठ सुदूर प्रांत में रहने वाले एक तपस्वी के भक्ति भाव और संस्कृति प्रेम का परिणाम है। शिव मठ का निर्माण उन्होंने अपनी सारी संपत्ति लगाकर स्थापित किया। दक्षिण भारत के तिरुनेलवेली जिले के वाहकुलम गाँव निवासी श्री वेंगा शिवन जो, आज से लगभग 160 वर्ष पूर्व अपनी सारी संपत्ति शिव मंदिर को समर्पित करने हेतु प्रयाग आ गये और धार्मिक वातावरण देखकर यहीं बसने का संकल्प किया। संस्कृत के विद्वान श्री वेंगा शिवन ने दक्षिण भारतीय तीर्थयात्रियों के निवास के उद्देश्य से शिव मठ की स्थापना की।

नागवासुकि
प्रयाग के अत्यन्त प्राचीन और पौराणिक स्थलों में नागवासुकि का पुष्ट प्रमाण है। वर्तमान समय में नागवासुकि का मंदिर दारागंज (बक्शी) मोहल्ले में स्थित है, जहां नागवासुकी की प्राचीन मूर्ति है वासुकि मध्य में प्रतिष्ठित हैं। उनके दोनों ओर नाग-नागिन के चार जोड़े कामदशाओं में उत्कीर्ण हैं। मंदिर के पूर्वी द्वार पर देहली में शंख बजाते हुए दो कीचक उत्कीर्ण हैं, जिनके बीच दो हाथियों के साथ कमल बना हुआ है। मन्दिर के गर्भगृह में फण धारी नाग-नागिन की पुरानी मूर्ति है। मंदिर में विघ्ननाशक गणेश जी की भी प्रतिमा है।
Nag Vasuki Temple Prayagraj

शक्तिपीठ
  1. अलोप शंकरी देवी - प्रयाग की ललिता पीठ के अलोप शंकरी देवी का अत्यधिक महत्व है। अलोपी बाग मोहल्ले में महानिर्वाणी पंचायती अखाड़े के अधीन देवी अलोपशंकरी का मन्दिर स्थित है। मंदिर में कोई प्रतिमा नहीं है, यहां एक चौकोर चबूतरा है, चबूतरे के मध्य एक कुंड है, जिसमें जल भरा रहता है। इस कुंड के ऊपर मंदिर की छत से लटका हुआ एक झूला है। मंदिर में इसी झूले और कुण्ड की पूजा की जाती है।
    Alopashankari Maa Temple Prayagraj
  2. माँ ललिता देवी - तीर्थराज प्रयाग स्थित ललिता पीठ अत्यन्त प्राचीन है, जिसका वर्णन मत्स्य पुराण, ब्रह्म पुराण, कुब्जिका तंत्र, रुद्रयामल तंत्र, तंत्र चूड़ामणि, शाक्तानन्द तरंगिणी, गन्धर्व तंत्र, देवी भागवत आदि ग्रन्थों में पाया जाता है। 51 शक्तिपीठों में वर्णित ललिता पीठ के सम्बन्ध में सती की उंगलियों के गिरने वाली एक कथा पायी जाती है, जिसका वर्णन पुराणों में है। प्रयाग के मीरापुर मोहल्ले में यह मंदिर स्थित है।
    Maa Lalita Devi Shakti Peeth Prayagraj
     Maa Lalita Devi Shakti Peeth Prayagraj
  3. कल्याणी देवी - अलोपशंकरी देवी के प्रसंग में 51 पीठों की कथा के क्रम में माँ कल्याणी का भी वर्णन आया है। मत्स्य पुराण के 108 वें अध्याय में कल्याणी देवी का वर्णन पाया जाता है। प्रयाग माहात्म्य के अनुसार कल्याणी और ललिता एक ही हैं, किन्तु यहाँ पृथक अस्तित्व पाया जाता है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के तृतीय खण्ड में वर्णित प्रसंग के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य ने प्रयाग में भगवती की आराधना करके माँ कल्याणी देवी की 32 अंगुल की प्रतिमा की स्थापना की है। यह मंदिर नगर के कल्याणी देवी मोहल्ले में स्थित है।
    Shakti Peeth Maa Kalyani Devi Temple Prayagraj
    Shakti Peeth Maa Kalyani Devi Temple Prayagraj
भरद्वाज आश्रम
Bhardwaj Muni Ashram Prayagraj
Bhardwaj Muni Ashram Prayagraj
 महर्षि भरद्वाज को कौन नहीं जानता। वे महान तपस्वी और ज्ञानी आचार्य थे। प्रयाग में भारद्वाज जी की चर्चा श्री राम के वनगमन के प्रथम लक्ष्मण समय मिलती है। यह भी पुष्ट प्रमाण है कि बार राम कथा ऋषि याज्ञवल्क्य ने भारद्वाज को सुनाई थी। जब श्रीराम, सीता और के साथ वन गमन कर रहे थे तो प्रयाग आने पर उन्होंने लक्ष्मण को बताया कि अग्नि की लपटें उठ रही हैं, लगता है कि भरद्वाज मुनि यहीं पर हैं। फिर जानकी समेत श्रीराम, और लक्ष्मण उनके आश्रम दर्शन हेतु पहुंचे थे।

सरस्वती कूप
संगम क्षेत्र में किले के अन्दर सरस्वती कूप स्थित है। माना जाता है सरस्वती नदी यहां इस कूप में दृश्य हैं। इसी प्रकार गंगा के पूर्वी तट पर प्रतिष्ठानपुरी (झूसी) में हंस कूप या हंसतीर्थ स्थित है। इस पवित्र कूप का उल्लेख वाराह और मत्स्य पुराणों में मिलता है। मत्स्य पुराण के अध्याय-106 में हंसकूप का वर्णन किया गया है, जिसे हंस प्रपतन नाम दिया गया है। इस कूप के निकट एक शिलालेख खुदा हुआ है, जिसका तात्पर्य यह है कि हंस रूपी बावली में स्नान करने तथा इसका जल पीने से हंसगति, अर्थात-मोक्ष प्राप्त होता है।
Saraswati Koop Prayagraj
Saraswati Koop Prayagraj
रामचरित मानस में भी गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- "भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा।" वर्तमान में महर्षि भरद्वाज का आश्रम कर्नलगंज मोहल्ले में आनंद भवन के समीप स्थित है, जिसमें भारद्वाज की कोई प्रतिमा तो नहीं है, लेकिन भरद्वाजेश्वर शिवलिंग एवं सहस्र फणधारी शेषनाग की मूर्ति है । मंदिर के आस-पास की भौगोलिक संरचना से स्पष्ट होता है कि गंगा किसी समय यहीं से बहती रही होगी, क्योंकि आश्रम ऊँचाई पर स्थित है और आस-पास काफी ढलान है। कहा जाता है कि जो प्रयाग आने पर भरद्वाज आश्रम नहीं जाता, उसकी यात्रा का फल कम होता है।

कोटी तीर्य (शिवकुटी)
प्रयाग में गंगा के दक्षिणी तट पर स्थित तीर्थ को कोटि तीर्थ कहा गया है। आधुनिक शिवकुटी ही कोटितीर्थ है। पद्मपुराण के अनुसार यहाँ कोटि-कोटि तीर्थों का निवास है। इस कोटितीर्थ के देवता कोटि तीर्थेश्वर भगवान शिव कहे गये हैं। इसी स्थान के उत्तर में भार्गव, गालव और चामर तीर्थों का भी उल्लेख मिलता है।

श्री हनुमत निकेतन
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj

Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
Hanumat Niketan Temple, Civil Lines - Temples in Prayagraj
नगर के सिविल लाइंस क्षेत्र के कमला नेहरू रोड और स्टेनली रोड के मध्य ऐतिहासिक पुरुषोत्तम दास टंडन पार्क के समीप स्थित "हनुमत-निकेतन" साढ़े तीन एकड़ के क्षेत्र में सुन्दर वाटिकाओं से सुसज्जित है। तीर्थयात्रियों, पर्यटकों व नगर निवासियों की श्रद्धा के केंद्र श्री हनुमत् निकेतन के संस्थापक रामलोचन ब्रह्मचारी जी थे, जिन्होंने बल, बुद्धि, विद्या व ब्रह्मचर्य के प्रतीक, श्री हनुमान जी के दक्षिण भाग में श्रीराम, लक्ष्मण व जानकी और उत्तर भाग में सिंह वाहिनी दुर्गा की मूर्ति वाले इस मन्दिर को राष्ट्र को समर्पित कर दिया है।

समुद्र कूप
Samudrakup of Prayagraj is the Historical
हंस कूप के दक्षिण की ओर निकट ही एक और कुआँ है, जिसका नाम समुद्र कूप है। लोगों का विश्वास है कि यह कूप गुप्त नरेश समुद्रगुप्त ने बनवाया था, इसलिए इसका नाम समुद्र कूप है। यद्यपि अधिकांश लोग यह मानते हैं कि इसका सम्बन्ध समुद्र से है। यह बहुत गहरा कुआं है। मत्स्य पुराण मिलता है।

अक्षयवट
इसका वर्णन पद्म पुराण अनुसार सृष्टि के प्रलय काल में भी यह वृक्ष स्थित रहता है, इसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए इसे अक्षयवट कहा गया है। यह प्रयाग की अमूल्य निधियों में से एक है और इसका सर्वाधिक महत्व है। पद्म पुराण में अक्षयवट को श्याम वट का नाम भी दिया गया है और इसकी महत्ता इस प्रकार बतायी गयी है -
akshayavat
श्यामो वटोऽश्यामगुणं वृणोति, स्वच्छायया श्यामलया जनानाम् ।
श्यामः श्रमं कृन्तति यत्र दृष्टः स तीर्थराजो जयति प्रयागः ।।
तात्पर्य यह है कि जहां श्याम वट यानी अक्षयवट अपनी श्यामल छाया से मनुष्यों को दिव्य सत्व गुण प्रदान करता है, जहां माधव अपने दर्शन करने वालों का पाप-ताप नष्ट कर देते हैं, उस तीर्थराज प्रयाग की जय हो। अक्षयवट का वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। महाराजा हर्षवर्धन के काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था, उसने भी अपने लेख में अक्षयवट का वर्णन किया है।

पातालपुरी मंदिर
संगम के निकट स्थित किले के पूर्व भाग में तहखाने में स्थित देव मंदिर का पातालपुरी मंदिर है। इसका निर्माण कब और किसके द्वारा कराया गया, यह विवरण नहीं मिलता, लेकिन इसकी प्राचीनता ह्वेनसांग के एक अभिलेख से झलकती है। वह लिखता है कि "नगर में एक शिव मंदिर है, जो अपनी सजावट और चमत्कारों के लिए प्रसिद्ध है। इसके बारे में कहा जाता है कि यदि कोई यहां पैसा चढ़ाता है तो स्वर्ग चला जाता है। मंदिर के आंगन में एक विशाल वृक्ष (अक्षयवट) है, जिसकी शाखाएं और पत्तियां दूर दूर तक फैली हुई हैं।

patalpuri-temple
वर्तमान स्थिति यह है कि किला भारतीय सेना के अधीन है और मंदिर केवल माघ के महीने में आम जनता के लिए खोला जाता है। मंदिर की लम्बाई 84 फिट एवं चौड़ाई 46.5 फिट है। खंभों के ऊपर टिकी हुई छत की ऊंचाई मात्र साढ़े छह फीट है। मंदिर के अंदर गणेश, गोरखनाथ, नरसिंह, शिवलिंग आदि समेत कुल 46 मूर्तियाँ हैं।

श्री मनकामेश्वर मंदिर (Sri Mankameshwar Mandir)
मनकामेश्वर प्रयाग के प्रमुख तीर्थों में से एक है। यमुना-तट पर स्थित मनकामेश्वर भगवान शिव का मंदिर है, जिसमें मनकामेश्वर महादेव अवस्थित हैं। पुराण वर्णित इस तीर्थ का इसलिए विशेष महत्व है, क्योंकि मनकामेश्वर महादेव के स्मरण और पूजन से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
 
Sri Mankameshwar Mandir

 


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सांस की बदबू



क्यों आती है सांसों में बदबू? (Why Do You Have Bad Breath?)
साँस की दुर्गंध या मुंह की दुर्गन्ध के रोगी के मुख से एक विशेष दुर्गन्ध (बदबू) आती है जो, सांस के साथ मिली होती है। सांसों की दुर्गन्ध ग्रसित व्यक्ति में चिन्ता का कारण बन सकती है। यह एक गंभीर समस्या बन सकती है किंतु कुछ साधारण उपायों से साँस की दुर्गंध को रोका जा सकता है। साँस की दुर्गंध उन बैक्टीरिया से पैदा होती है, जो मुँह में पैदा होते हैं और दुर्गंध पैदा करते हैं। नियमित रूप से ब्रश नहीं करने से मुँह और दांतों के बीच फंसा भोजन बैक्टीरिया पैदा करता है। लहसुन और प्याज जैसे कुछ खाद्य पदार्थां में तीखे तेल होते हैं। इनसे साँसों की दुर्गंध पैदा होती है, क्योंकि ये तेल आपके फेफड़ों में जाते हैं और मुँह से बाहर आते हैं। साँस की दुर्गंध का एक अन्य प्रमुख कारण धूम्रपान है। साँस की दुर्गंध पर काबू पाने के बारे में अनेक धारणाएं प्रचलित हैं।
सांस की बदबू

कारण
साँसों की अधिकांश दुर्गंध आपके मुंह से शुरू होती है। सांसों की दुर्गंध के कई कारण होते हैं। इनमें से कुछ कारण निम्नलिखित हैं-
  1. दांतों की खराब सफाई और दांत की बीमारियां साँसों की दुर्गंध का कारण हो सकती हैं।
  2. यदि हर दिन ब्रश और कुल्ला नहीं करते हैं, तो भोजन के टुकड़े आपके मुँह में रह जाते हैं।वे बैक्टीरिया पैदा करते हैं और हाइड्रोजन सल्फाइड भाप बनाते हैं। आपके दांतों पर बैक्टीरिया (सड़न) का एक रंगहीन और चिपचिपा फिल्म जमा हो जाता है।
  3. दांतों में और इसके आसपास भोजन के टुकड़ों के टूटने से दुर्गंध पैदा हो सकती है।
  4. पतले तैलीय पदार्थ युक्त भोजन भी साँसों की दुर्गंध के कारण हो सकते हैं।
  5. प्याज और लहसुन इसके सबसे अच्छे उदाहरण हैं, लेकिन अन्य सब्जियां और मसाले भी साँसों में दुर्गंध पैदा कर सकते हैं।
  6. जब ये भोजन पचते हैं और तीखे गंध वाले तेल आपके खून में शामिल होते हैं, तो वे आपके फेफड़ों तक पहुंचते हैं और तब तक आपकी साँसों से बाहर निकलते रहते हैं, जब तक कि वह भोजन आपके शरीर से पूरी तरह खत्म न हो जाये।
  7. प्याज और लहसुन खाने के 72 घंटे बाद तक साँसों में दुर्गंध पैदा कर सकते हैं।
  8. धूम्रपान से आपका मुंह सूखता है और उससे एक खराब दुर्गंध पैदा होती है।
  9. तंबाकू का सेवन करने वालों को दांतों की बीमारी भी होती है, जो सांसों की दुर्गंध का अतिरिक्त स्रोत बनती है।
  10. फेफड़े का गंभीर संक्रमण और फेफड़े में गांठ से साँसों में बेहद खराब दुर्गंध पैदा हो सकती है। अन्य बीमारियां, जैसे कुछ कैंसर और चयापचय की गड़बड़ी से भी साँसों में दुर्गंध पैदा हो सकती है।
  11. साँसों की दुर्गंध का संबंध साइनस संक्रमण से भी है, क्योंकि आपके साइनस से नाक होकर बहने वाला द्रव आपके गले में जाकर सांसों में दुर्गंध पैदा करता है।
  12. लार से आपके मुँह में नमी रहने और मुँह को साफ रखने में मदद मिलती है। सूखे मुँह में मृत कोशिकाओं का आपकी जीभ, मसूड़े और गालों के नीचे जमाव होता रहता है। ये कोशिकाएं क्षरित होकर दुर्गंध पैदा कर सकती हैं। सूखा मुँह आमतौर पर सोने के समय होता है।
उपाय
  1. अत्यधिक कॉफी पीने से बचना चाहिए।
  2. दांतों के डॉक्टर या फार्मासिस्ट द्वारा अनुशंसित माउथवॉश का उपयोग करें।
  3. इलायची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।
  4. गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गंध दूर भगाने में यह कारगर है।
  5. जीभ साफ करने के लिए जीभी का उपयोग करें और जीभ के अंतिम छोर तक सफाई करें।
  6. ताजी और रेशेदार सब्जियां खाएं।
  7. दुग्ध उत्पाद, मछली और मांस खाने के बाद अपने मुँह को साफ करें।
  8. नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।
  9. नियमित रूप से अपने दांतों के डॉक्टर के पास जाएं और अपने दांतों की अच्छी तरीके से सफाई करायें।
  10. नियमित रूप से दातुन करें।
  11. ब्रश करने के अलावा दांतों के बीच की सफाई के लिए कुल्ला भी करते रहें।
  12. मुँह और दांतों की साफ-सफाई का उच्च स्तर बनाए रखें।
  13. मुँह सूखने लगे, चीनी-मुक्त मुँह गम का इस्तेमाल करें,
  14. सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।
घरेलू उपाय
इलायची खाएं, खाना खाने के बाद ज्यादा पानी न पिएं, तुलसी के पत्ते और जामुन के पत्ते को बराबर मात्रा में लेकर चबाए, नींबू और गरम पानी का घोल पियें, पान में पुदीना के पत्ते का इस्तेमाल करें, मुलेठी चूसें, लौंग चूसें और सौंफ खाएं।

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मोच आने पर करे यह उपचार



अक्सर चलते-दौड़ते वक्त अक्सर मोच आ जाती है। दर्द होता है और हम मजबूर हो जाते हैं अपना पैर पकड़ कर बैठने के लिए। घुटना और टखना शरीर के दो ऐसे जोड़ हैं, जो चोटिल होते रहते हैं। पैर और पंजे को जोड़ने का काम करता है टखना। टखने के भीतरी लिगामेंट्स बहुत मजबूत होते हैं, जो कम ही परिस्थितियों में चोटिल होते हैं। बाहरी लिगामेंट्स तीन भाग में बंटे होते हैं- सामने, मध्य और पीछे। आमतौर पर मोच आने पर सामने और बीच वाले लिगामेंट्स ही चोटिल होते हैं। टखने के लिगामेंट्स के घायल होने की घटनाएं तब होती हैं, जब पंजा अंदर की ओर मुड़ जाता है। ऐसा असमान भूमि पर चलने से होता है और शरीर का पूरा वजन इन लिगामेंट्स पर पड़ने से वे चोटिल हो जाते हैं।
सामान्य परिस्थितियों में छह से आठ सप्ताह का समय पूरी तरह मोच ठीक होने मे लग जाता है। कई लोगों में लंबे समय तक मोच बनी रहती है। मोच आने पर इंसान एक जगह अपना पैर पकड़कर बैठ जाता है और उसे काफी दर्द झेलना पड़ता है। पैरों में मोच या फिर खिंचाव आने पर काफी सूजन और दर्द पैदा हो जाता है। यह कभी भी हो सकता है, चाहे कुछ ऐसे घरेलू नुस्खे लेकर आए हैं जिन्हें अपनाकर पैर में आई हुई मोच से जल्दी आराम पाया जा सकता है। खेल-कूद में लीन हो या फिर चलते चलते पैर मुड़ जाए और ऐसा होने पर टखनों की मोच आ जाती है जो काफी दर्द भरी होती है।
मोच आने पर अगर हम तुरंत डॉक्टर के पास न जा सके तो उसका भी समाधान है। कुछ खास घरेलू नुस्खों को अपनाकर पैर में आई हुई मोच से जल्दी आराम पाया जा सकता है। यह नुस्‍खे काफी पुराने हैं जिसमें किचन में रखी हुई सामग्रियां काम आ सकती हैं। मोच आने पर इन नुस्खों को आजमाएं और ढेर सारा आराम करें, जिससे कुछ ऐसे घरेलू नुस्खे लेकर आए हैं जिन्हें अपनाकर पैर में आई हुई मोच से जल्दी आराम पाया जा सकता है। जल्द ही ठीक हो सके। इसके बाद अगर ठीक ठाक चल सकने की स्थिति न हो तो तो डॉक्टर के पास जाना बिल्कुल नहीं भूलना चाहिए।

 उपचार
  1. 48 घंटो तक मोच वाली जगह पर किसी भी तरह का दबाव न डालें।
  2. आधा चम्मच हल्दी को दूध के साथ तुरंत सेवन करने से हड्डियों के अंदर की चोट को आराम मिलता है।
  3. एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच फिटकरी मिलाकर इसका सेवन करने से मोच काफी जल्दी ठीक हो जाएगी।
  4. तुलसी की कुछ पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें और उसको मोच वाले स्थान पर लगाएं। ऐसा करने से काफी आराम महसूस होगा।
  5. तुलसी के पत्तों के रस तथा सरसों के तेल को एक साथ मिलाकर गर्म कर के मोंच वाले भाग पर रखें। ऐसा दिन में 4-5 बार करें।
  6. थोड़े से बर्फ के टुकड़ों को किसी एक कपड़े में रखकर सूजन वाले जगह पर लगाएं। इससे सूजन कम हो जाती है और दर्द धीरे-धीरे कम होने लगता है।
  7. दो चम्‍मच हल्‍दी में थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को हल्का गर्म करके मोच वाली जगह पर लगाएं। फिर 2 घंटे के बाद पैरों को गुनगुने पानी से धो लें।
  8. नमक और सरसों के तेल को गरम करें और मोंच पर रखें। फिर इसे किसी कपड़े से बांध कर रात में सो जाएं, आराम मिलेगा।
  9. पान के पत्ते पर सरसों का तेल लगा कर, उस पत्ते को हल्का गर्म कर के मोच वाले अंग पर बांध लें।
  10. पीड़ा और सूजन में कमी लाने के लिए मोच खाए अंग पर हर घंटे बाद बर्फ या ठंडे पानी की भीगी हुई पट्टियाँ रखें। इससे पीड़ा और सूजन में कमी आती है।
  11. पैर पर अगर मोच आई तो हमेशा पैर को सोते वक्त थोड़ा ऊंचाई पर रखें। इससे मोच की वजह से आई पैर की सूजन में कमी आती है।
  12. पैरों के नीचे तकिया रखें जिससे आपका पैर थोड़ा ऊपर उठ सके। इससे खून एक जगह पर नहीं जम पाएगा और वह पूरे शरीर में सर्कुलेट होगा। इससे पैरों की सूजन कम हो जाएगी।
  13. फिटकरी का आधा चम्‍मच ले कर उसे एक गिलास गर्म दूध में मिक्‍स कर के पी जाएं, इससे चोट जल्दी ठीक हो जाएगी ।
  14. मोच को बैंडेज या पट्टी से बांधने से राहत मिलती है। पैरों में प्लास्टिक बैंडेज बांधिये जिससे पैरों में ब्‍लड सर्कुलेशन भी ठीक रहे। मोच को कस के नहीं बांधना चाहिए नहीं तो उससे खून का दौरा धीमा पड़ जाता है। अगर बैंडेज को कस के बांध लिया तो दर्द बढ जाएगा।
  15. मोच खाए जोड़ को ठीक करने के लिए इलास्टिक की पट्टियों से बांधे।
  16. मोच खाए टखने पर एड़ी से शुरू कर पट्टी को ऊपर की ओर बांधें, ध्यान रहे कि पट्टी बहुत सख्त न हो और हर दो घंटे में खोलते रहें। यदि दर्द और सूजन 48 घंटे में कम न हो तो चिकित्सा सहायता लें।
  17. मोच खाए या टूटे अंग की मालिश कभी भी न करें। इससे कोई लाभ नहीं होता, बल्कि हानि पहुँच सकती है।
  18. मोच वाले स्थान पर एलोवेरा जेल लगाने से आराम मिलेगा।
  19. यदि मोच लगने के तुरंत बाद ही उस जगह पर बर्फ लगा कर सिकाई की जाए तो उस जगह पर सूजन नहीं आती। दर्द को दूर करने के लिये हर 1-2 घंटे में 20 मिनट की बर्फ से सिकाई करनी चाहिये। बर्फ को हमेशा किसी कपड़े में लपेट कर लगाना चाहिए।
  20. शहद और चूने दोनों को बराबर मात्रा में मिला कर मोच वाली जगह पर हल्की मालिश करें।
  21. सूजन को कम करने के लिए बर्फ या आइस पैक को दिन में 4-8 बार जरूर लगाएं।
  22. हल्दी लगाने से पैरों की सूजन कम हो जाती है। हल्दी एक एंटीसेप्टिक गुणों वाला मसाला है जो लंबे समय से प्रयोग में लाई जा रही है। इसे लगाने से आपको मोच में काफी आराम मिल सकता है। 2 चम्‍मच हल्‍दी में थोड़ा सा पानी मिला कर पेस्ट बना कर हल्का गर्म करें और मोच पर लगाएं। फिर 2 घंटे के बाद पैरों को गर्म पानी से धो लें।
मोच आने पर घर में करें ये व्यायाम
  1.  अपना पंजा दरवाजे के पास इस तरह रखें, जिससे एड़ी जमीन पर रहे और पंजा 45 डिग्री के कोण के साथ दरवाजे से थोड़ा ऊंचाई पर रहे। सपोर्ट के लिए दरवाजे को पकड़ लें। अब घुटने को मोड़ते हुए दरवाजे के करीब लाएं। इस खिंचाव को दो मिनट तक बनाए रखें। यदि सुविधाजनक नहीं लग रहा है तो एक ब्रेक लेकर दोबारा ऐसा करें। अगर आप लगातार दो मिनट तक स्ट्रेच कर रहे हैं तो ऐसा एक बार ही करें।
  2. टखने का लचीलापन और उसको गति देने के बाद अब बैठने का व्यायाम करें। एक चटाई बिछा लें। पैरों को पीछे की ओर मोड़ लें। ध्यान रखें कि पैरों की उंगलियां पीछे की ओर से सीधी रहें, अंदर की ओर मुड़ी न हों। अब कूल्हे के हिस्से को एड़ियों पर टिका कर बैठ जाएं। इससे जमीन पर पंजे के सामने के हिस्से पर स्ट्रेच उत्पन्न होगा। स्ट्रेच अधिक बढ़ाने के लिए शरीर के वजन को कूल्हों पर रखें और दो मिनट तक इसी स्थिति में रहें। शुरुआत में इसे कम समय के लिए कर सकते हैं।
  3. पंजे से दीवार पर इसी तरह दबाव बनाए रखें। अब घुटने को अंदर और बाहर की ओर गोल घुमाएं। ऐसा करते हुए दबाव टखने के पीछे के हिस्से की ओर पड़ना चाहिए। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो अपनी स्थिति को ठीक करें और इसे दोबारा दोहराएं।
प्रश्‍नोत्तरी
  1. मोच आ जाए तो क्या लगाना चाहिए?
    बर्फ से सिकाई - मोच लगने के तुरंत बाद उस जगह पर बर्फ की सिकाई करने से सूजन नहीं आती है। इसके लावा बर्फ की सिकाई करने से दर्द भी दूर हो जाती है। ऐसे में मोच आने पर हर एक से दो घंटे में बर्फ से सिकाई करनी चाहिए। हालांकि सीधे ही बर्फ से सिकाई नहीं करनी चाहिए।
  2. मोच की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
    Arnica और कोलेजन गोल्ड जेल - [7 Oz] एक बहुत ही प्रभावी जेल की ट्यूब। चोट, सूजन, मांसपेशियों की कठोरता, मोच और तनाव के लिए आपकी सबसे अच्छी शर्त।
  3. पैर की मोच कितने दिन में ठीक होती है?
    पैर की मोच कितने दिन में ठीक होती है? पैर की मोच ठीक होने में लगने वाला समय आपकी चोट की गंभीरता पर निर्भर करता है। मामूली मोच दो सप्ताह में ठीक हो सकती है, लेकिन गंभीर मोच को ठीक होने में 6 से 12 सप्ताह लग सकते हैं।
  4. मोच आने पर कौन सी दवाई लेनी चाहिए?
    फिटकरी: एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच फिटकरी मिलाकर इसका सेवन करें। इसका सेवन करने से मोच काफी जल्दी ठीक हो जाएगी। इमली का पत्ता: इमली के पत्तों में एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-सेप्टिक गुण पाए जाते हैं जो मोच के दर्द में लाभकारी होते हैं। इमली के पत्तों को पीसकर इसमें गुनगुना पानी मिलाकर पेस्ट बना लें।
  5. आपको कैसे पता चलेगा कि यह मोच है या टूट गई है?
    यदि आप कोई हड्डी तोड़ते हैं, तो आपको चटकने की आवाज सुनाई दे सकती है। दर्द का स्रोत। यदि आपको जो दर्द महसूस हो रहा है वह किसी जोड़ के आसपास के मुलायम ऊतकों में है, तो संभवतः यह मोच है। यदि हड्डी पर हल्का दबाव डालने से अत्यधिक दर्द होता है, तो चोट संभवतः फ्रैक्चर है।
  6. क्या मोच वाला पैर रात भर ठीक हो सकता है?
    अधिकांश छोटी-से-मध्यम चोटें 2 से 4 सप्ताह के भीतर ठीक हो जाएंगी। अधिक गंभीर चोटें, जैसे ऐसी चोटें जिनमें कास्ट या बूट की आवश्यकता होती है, को ठीक होने में 6 से 8 सप्ताह तक का लंबा समय लगेगा।
  7. क्या हल्दी मोच के लिए अच्छी है?
    हल्दी: यह हमारे भोजन में अनोखा स्वाद लाने के अलावा और भी बहुत कुछ करती है। इससे हमें दर्द से भी राहत मिलेगी और मोच के कारण होने वाली सूजन भी शांत होगी । इससे रक्त के थक्कों से बचा जा सकता है, रक्त की आपूर्ति बढ़ सकती है और त्वचा और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं का समाधान हो सकता है।
    पैर, घुटने, हाथ, उंगली या बाजुओं में अगर आपको किसी प्रकार की चोट, मोच या अंदरूनी घाव महसूस हो रहा है तो आप गेहूं के आटे, घी और हल्दी के लेप का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस लेप के इस्तेमाल से आपको बहुत जल्द दर्द में आराम मिलेगा।
  8. पैर में मोच आने के बाद मैं कब चल सकता हूं?
    टखने की मोच का दर्द और सूजन अक्सर 48 घंटों के भीतर ठीक हो जाता है। उसके बाद, आप अपने घायल पैर पर वापस वजन डालना शुरू कर सकते हैं। अपने पैर पर केवल उतना ही वजन डालें जितना शुरू में आरामदायक हो। धीरे-धीरे अपने पूरे वजन तक पहुंचें।
  9. बर्फ से सिकाई कब करनी चाहिए?
    अगर कोई पुरानी चोट भी तुरंत पैदा हुई हो, तो वहां भी बर्फ लगाया जा सकता है, लेकिन ध्‍यान रखना होगा कि तुरंत तेज दर्द हो तभी। चोट वाली जगह पर अगर खून बह रहा हो तब तो जरूर बर्फ से सिकाई करनी चाहिए। लेकिन ध्‍यान रखें कि बर्फ को सीधे कभी चोट पर नहीं रखना चाह‍िए। तौल‍िए में आइस को लपेटकर ही लगाएं।
  10. मोच या हड्डी की चोटों में क्या नहीं करना चाहिए?
    मोच लगने वाली जगह पर कभी भी मसाज न करें। इस दौरान किसी भी तरह की एक्ससाइज करने से बचें। मोच वाले हिस्से को गर्मी न दें। बहुत से लोग मोच करने पर स्टीमबाथ लेते हैं, लेकिन ऐसा करने से बचना चाहिए।
  11. मोच के स्थान पर बर्फ से सिकाई करने से क्या फायदा होता है?
    अगर आपको कहीं मोच आ जाए तो बर्फ की स‍िकाई कर सकते हैं। बर्फ से स‍ेकने पर नसों को आराम म‍िलता है और मोच जल्दी ठीक होती है। अगर कहीं चोट लग जाए तो आइस लगा देनी चाहिए। इससे खून का फ्लो उस जगह रुक जाता है।
  12. क्या मोच चोट लगने से ज्यादा खराब होती है?
    कभी-कभी, मोच टूटने से भी ज्यादा दर्दनाक हो सकती है। मोच आघात के कारण होती है जो स्नायुबंधन को अत्यधिक खींचती है और जोड़ पर तनाव डालती है।
  13. मोच किस प्रकार की चोट है?
    मोच , स्नायुबंधन की चोटें हैं जो किसी जोड़ के भींचने या मुड़ने से उत्पन्न होती हैं । खिंचाव मांसपेशियों या कण्डरा की चोटें हैं, और अक्सर अत्यधिक उपयोग, बल या खिंचाव के कारण होती हैं। टखना सबसे आम तौर पर मोच या खिंचाव वाला जोड़ है।
  14. मोच आने का क्या कारण होता है?
    मोच जोड़ में चोट लगने के कारण अस्थिबंध (लिगामेंट) की क्षमता से अधिक खीच जाने या मॉसपेशीयॉ के फटने के कारण होता है। इस तरह की बीमारियों का किसी तरह के आघात से खास रिश्ता होता है। चोट लगने के साथ ही सूजन शुरू हो जाती है। मोच किसी भी जोड़ में हो सकता है पर ऐड़ी और कलाई के जोड़ पर ज्यादा मोच आती है।
  15. क्या नमक का पानी मोच वाले टखने के लिए अच्छा है?
    कुछ दिनों के बाद, आप अपने टखने को एप्सम नमक के साथ गर्म स्नान में भिगो सकते हैं। चोट लगने के बाद पहले कुछ दिनों के दौरान ठंड लगाना महत्वपूर्ण है। एप्सम नमक दर्द वाली मांसपेशियों और संयोजी ऊतकों को शांत करने में मदद कर सकता है, और यह जोड़ों की कठोरता में मदद कर सकता है। प्रतिदिन 1-2 बार गर्म या थोड़े गर्म स्नान में एप्सम नमक मिलाने का प्रयास करें।
  16. सरसों का तेल मोच के लिए अच्छा है?
    गठिया और गठिया के दर्द से छुटकारा पाने के लिए सरसों के तेल से मालिश करने की सलाह दी जाती है - जो अपने सूजन-रोधी गुणों के लिए जाना जाता है। यह टखनों की मोच और अन्य जोड़ों के दर्द से भी राहत दिला सकता है । सेलेनियम नामक ट्रेस खनिज की उपस्थिति जोड़ों और त्वचा की सूजन से राहत दिलाने में मदद करती है।
  17. मोच वाले टखने में कितनी देर तक चोट लगती है?
    यदि यह सीधी चोट थी, मूल्यांकन की आवश्यकता नहीं थी और आपको कोई झटका नहीं लगा था, तो आप उम्मीद कर सकते हैं कि लिगामेंट ठीक होने तक लक्षण 10 से 12 सप्ताह तक बने रहेंगे। एक बार जब आपके टखने में मोच आ गई, तो भविष्य में चोट लगने की संभावना अधिक होती है। टखने की आस्तीन या लेस-अप ब्रेस अतिरिक्त समर्थन और स्थिरता प्रदान कर सकता है।
  18. मोच आए हुए स्थान पर कितने देर तक बर्फ से सिकाई करनी चाहिए?
    अगर मोच लगने के तुरंत बाद आप उस जगह पर बर्फ की सिकाई कर दें तो सूजन नहीं आती। इसके अलावा बर्फ की सिकाई करने से पेन में भी आराम मिलता है। ऐसे में मोच आने पर हर एक से 2 घंटे मे बर्फ से सिकाई करनी चाहिए।
  19. क्या गर्म पानी सूजन को कम करता है?
    गर्म पानी में भीगना कई कारणों से काम करता है। यह जोड़ को दबाने वाले गुरुत्वाकर्षण बल को कम करता है, दर्द वाले अंगों को 360-डिग्री समर्थन प्रदान करता है, सूजन और सूजन को कम कर सकता है और परिसंचरण को बढ़ा सकता है। तो, आपको कितनी देर तक भिगोना चाहिए? लगभग 20 मिनट के बाद अधिकतम लाभ मिलता हुआ प्रतीत होता है।
  20. मोच और खिंचाव के दौरान प्राथमिक उपचार क्या है?
    आराम: घायल हिस्से को तब तक आराम दें जब तक दर्द कम न हो जाए। बर्फ: एक तौलिये में आइसपैक या ठंडा सेक लपेटें और तुरंत चोट वाले हिस्से पर रखें। इसे एक बार में 20 मिनट से अधिक न जारी रखें, दिन में चार से आठ बार। संपीड़न: घायल हिस्से को कम से कम 2 दिनों के लिए इलास्टिक संपीड़न पट्टी से सहारा दें।
  21. मोच या फ्रैक्चर कौन सा बदतर है?
    हालांकि मोच को आमतौर पर फ्रैक्चर की तुलना में कम गंभीर चोट माना जाता है , लेकिन इसे ठीक होने में अधिक समय लग सकता है। क्यों? स्नायुबंधन में रक्त की आपूर्ति बहुत सीमित होती है। मोच की गंभीरता के आधार पर, पूर्ण उपचार में एक वर्ष तक का समय लग सकता है।
  22. मोच या खिंचाव कौन सा बदतर है?
    एक तकनीकी रूप से दूसरे से बदतर नहीं है । खिंचाव टेंडन को प्रभावित करता है (इसे याद रखने का एक आसान तरीका है sTrains = टेंडन या मांसपेशियां), और मोच स्नायुबंधन को प्रभावित करता है। कण्डरा और स्नायुबंधन दोनों संयोजी ऊतक हैं, और दोनों को गंभीरता से मापा जाता है।
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दस्त/डायरिया के लक्षण और उपचार



अतिसार या डायरिया में या तो बार-बार मल त्याग करना पड़ता है या मल बहुत पतले होते हैं या दोनों ही स्थितियां हो सकती हैं। पतले दस्त, जिनमें जल का भाग अधिक होता है, थोड़े-थोड़े समय के अंतर से आते रहते हैं। अतिसार का मुख्य लक्षण और कभी-कभी अकेला लक्षण, विकृत दस्तों का बार-बार आना होता है। तीव्र दशाओं में उदर के समस्त निचले भाग में पीड़ा तथा बेचैनी प्रतीत होती है अथवा मल त्याग के कुछ समय पूर्व मालूम होती है। धीमे अतिसार के बहुत समय तक बने रहने से, या उग्र दशा में थोड़े ही समय में, रोगी का शरीर कृश हो जाता है और जल ह्रास (डिहाइड्रेशन) की भयंकर दशा उत्पन्न हो सकती है। खनिज लवणों के तीव्र ह्रास से रक्तपूरिता तथा मूर्छा (कोमा) उत्पन्न होकर मृत्यु तक हो सकती है।
डायरिया के लक्षण - डायरिया से जूझ रहे व्यक्ति द्वारा इनमे से एक या इससे अधिक लक्षण हो सकते हैं: पानी का मल, पेट में ऐंठन या ऐंठन होना, मतली और उल्टी, बुखार, निर्जलीकरण और भूख में कमी

उपचार 
  1.  अदरक का रस नाभि के आस-पास लगाने से दस्त में आराम मिलता है।
  2. अनार के बीजों को चबाएं। दिन भर में कम से कम दो बार अनाज का जूस पिएं। अनार की पत्तियों को पानी में उबाल लें। इस पानी को छानकर पीने से भी दस्त में आराम मिलता है।
  3. आधा चम्मच सौंठ को छाछ के साथ लें। इस मिश्रण को दिन में दो-तीन बार लेने से डायरिया से राहत मिलती है।
  4. इससे पेट की गर्मी छंट जाएगी और दस्त की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी। यह पाउडर खाली पेट दो से तीन दिनों तक लेना चाहिए। बहुत जल्दी आराम मिलता है।
  5. एक गिलास छाछ में थोड़ा नमक, एक चुटकी काली मिर्च, जीरा और थोड़ी हल्दी डालकर पीने से दस्त में आराम मिलता है। दिन में दो से तीन बार ऐसी एक गिलास छाछ बनाकर पीना चाहिए।
  6. एक नीबू के रस में एक चम्मच नमक और थोड़ी चीनी मिलाकर अच्छे से मिक्स करने के बाद पिएं। हर एक घंटे में ये घोल बनाकर पीने से डायरिया में बहुत जल्दी आराम मिलता है। इस नुस्खे को अपनाने के साथ ही हल्का खाना लें। इससे इस समस्या से जल्दी छुटकारा मिल जाता है।
  7. एक-चौथाई चम्मच मेथी दाना पाउडर ठंडे पानी से लें।
  8. कच्चा पपीता उबालकर खाने से दस्त में आराम मिलता है।
  9. कच्चे पपीते को छीलकर छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर उबाल लें। इस पानी को छानकर पिएं। दस्त बंद हो जाएंगे। यह पानी दिन भर में दो से तीन बार पीना चाहिए।
  10. कुकर में बने चावल को ताजे दही के साथ खाएं। दिन भर में दो से तीन बार दही-चावल खाने से दस्त की समस्या से मुक्ति मिल जाती है।
  11. खाना खाने के बाद एक कप लस्सी में एक चुटकी भुना जीरा और काला नमक ड़ालकर पीएं। दस्त में आराम आयेगा।
  12. जब भी दस्त की समस्या हो, दिन भर में कम से कम दो से तीन चम्मच शुद्ध शहद खाएं। एक चम्मच शहद में आधा चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर लेने पर भी दस्त से राहत मिलती है।
  13. ताजा लौकी के रस को छानकर दिन में दो-तीन बार पिएं। दस्त की समस्या खत्म हो जाएगी।
  14. बेल की पत्तियों या बेल के फलों का पाउडर दस्त में दवा का कामकरता है। 25 ग्राम बेल के पाउडर को शहद में मिलाकर लेने से दस्त से राहत मिलती है। दिन में कम से कम चार बार बेल पाउडर का सेवन करें।
  15. मिश्री और अमरूद खाने से भी आराम मिलता है।
  16. सरसों के एक-चौथाई चम्मच बीजों को एक कप पानी में भिगो दें। एक घंटे बाद इस पानी को छानकर पी लें। यह नुस्खा एक दिन में दो से तीन बार दोहराएं। डायरिया की समस्या से बहुत जल्दी आराम मिल जाएगा।


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पेट में गैस बनने के कारण, लक्षण और उपाचार



पेट में गैस बनना आम बात है लेकिन कई बार इसकी वजह से सीने में भी दर्द होने लगता है। गैस भयंकर तरीके से सिर में चढ़ जाती है और उल्टियां तक आने लगती है। दरअसल, गैस बनने से पेट फूलने लगता है और पाचन संबंधी दिक्कत पैदा हो जाती है। अगर आपको ज्यादा गैस बनती है तो इसे बिल्कुल भी हल्के में न लें क्योंकि इसकी वजह से आपको घातक पेट के रोग हो सकते हैं। पेट फूलने और गैस बनने पर आप घर में ही मौजूद चीजों से इसका इलाज कर सकते हैं और इस बीमारी से जड़ से छुटकारा पा सकते हैं।


पेट में गैस की समस्या होने पर आमतौर पर यह लक्षण दिखते हैं- उलटी, बदहज़मी, दस्त होना, पेट फूलना
  1. बदबूदार सांसें आना और पेट में सूजन रहना तथा भूख न लगना और पेट में गैस होने पर जब ऊपर बताए गए लक्षण दिखते तो आपको शर्मिंदा होना पड़ता है। ऐसे में आप जरूर चाहेंगे कि जल्द से जल्द आप इस समस्या से निजात पा लें। तो आइए, जानते हैं पेट में गैस की समस्या से छूटकारा पाने के आसान से घरेलू उपाय-अजवायन और काला नमक को समान मात्रा में मिलाकर गर्म पानी से पीने से पेट का अफारा ठीक होता है।
  2. आप दूध में काली मिर्च मिलाकर भी पी सकते हैं।
  3. इस सभी उपचार के अलावा सप्ताह में एक दिन उपवास रखने से भी पेट साफ रहता है और गैस की समस्या पैदा नहीं होती।
  4. इसके अलावा सेब का सिरका भी गर्म पानी में मिलाकर पीने से लाभ होगा।
  5. ऐसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए भोजन के बाद 3-4 मोटी इलायची के दाने चबाकर ऊपर से नींबू पानी पीने से पेट हल्का होता है।
  6. काली मिर्च का सेवन करने पर पेट में हाजमे की समस्या दूर हो जाती है।
  7. छाछ में काला नमक और अजवाइन मिलाकर पीने से भी गैस की समस्या में काफी लाभ मिलता है।
  8. दालचीनी को पानी मे उबालकर, ठंडा कर लें और सुबह खाली पेट पिएं। इसमें शहद मिलाकर पिया जा सकता है।
  9. दिनभर में दो से तीन बार इलायची का सेवन पाचन क्रिया में सहायक होता है और गैस की समस्या नहीं होने देता।
  10. नींबू के रस में 1 चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर सुबह के वक्त खाली पेट पिएं।
  11. पुदीने की पत्तियों को उबालकर पीने से गैस से निजात मिलती है।
  12. रोज अदरक का टुकड़ा चबाने से भी पेट की गैस में लाभ होता है।
  13. रोजाना नारियल पानी सेवन करना गैस का फायदेमंद उपचार है।
  14. लहसुन भी गैस की समस्या से निजात दिलाता है। लहसुन को जीरा, खड़ा धनिया के साथ उबालकर इसका काढ़ा पीने से काफी फायदा मिलता है। इसे दिन में 2 बार पी सकते हैं।
  15. सुबह-शाम सवा चम्मच त्रिफला का चूर्ण गर्म पानी के साथ लेने से पेट नरम होता है।


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रक्ताल्पता (एनीमिया) लक्षण, कारण, उपचार और रोकथाम



रक्ताल्पता (एनीमिया) का साधारण मतलब रक्त (खून) की कमी है। यह लाल रक्त कोशिका में पाए जाने वाले एक पदार्थ (कण) रुधिर वर्णिका यानी हीमोग्लोबिन की संख्या में कमी आने से होती है। हीमोग्लोबिन के अणु में अनचाहे परिवर्तन आने से भी रक्ताल्पता के लक्षण प्रकट होते हैं। हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन को प्रवाहित करता है और इसकी संख्या में कमी आने से शरीर में ऑक्सीजन की आपूर्ति में भी कमी आती है जिसके कारण व्यक्ति थकान और कमजोरी महसूस कर सकता है। एनीमिया एक गंभीर बीमारी है। इसके कारण महिलाओं को अन्य बीमारियां होने की संभावना और बढ़ जाती है।
  1. एनीमिया से पीड़ित महिलाओं की प्रसव के दौरान मरने की संभावना सबसे अधिक होती है।
  2. किशोरावस्था और रजोनिवृत्ति के बीच की आयु में एनीमिया सबसे अधिक होता है।
  3. गर्भवती महिलाओं को बढ़ते शिशु के लिए भी रक्त निर्माण करना पड़ता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को एनीमिया होने की संभावना होती है।
  4. भारत में 80 प्रतिशत से अधिक गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं।
  5. यह तब होता है, जब शरीर के रक्त में लाल कणों या कोशिकाओं के नष्ट होने की दर, उनके निर्माण की दर से अधिक होती है।

लक्षण
  1. कमजोरी एवं बहुत अधिक थकावट।
  2. चक्कर आना- विशेषकर लेटकर एवं बैठकर उठने में।
  3. चेहरे एवं पैरों पर सूजन दिखाई देना।
  4. जीभ,नाखूनों एवं पलकों के अंदर सफेदी।
  5. त्वचा का सफेद दिखना।
  6. बेहोश होना।
  7. सांस फूलना।
  8. हृदय गति का तेज होना।
कारण - किसी भी कारण रक्त में कमी, जैसे-
  1. पेट के अल्सर से खून जाना।
  2. पेट के कीड़ों व परजीवियों के कारण खूनी दस्त लगना।
  3. बार-बार गर्भ धारण करना।
  4. मलेरिया के बाद जिससे लाल रक्त कारण नष्ट हो जाते हैं।
  5. माहवारी में अधिक मात्रा में खून जाना।
  6. शरीर से खून निकलना (दुर्घटना, चोट, घाव आदि में अधिक खून बहना)
  7. शौच, उल्टी, खांसी के साथ खून का बहना।
  8. सबसे प्रमुख कारण लौह तत्व वाली चीजों का उचित मात्रा में सेवन न करना।
उपचार तथा रोकथाम
  1.  अगर एनीमिया मलेरिया या परजीवी कीड़ों के कारण है, तो पहले उनका इलाज करें।
  2. एनीमिया के रोगियों के लिए शहद बहुत लाभदायक होता है। इसके नियमित सेवन से खून की कमी दूर हो जाती है।
  3. एनीमिया में मेवे खाने से शरीर में आयरन का स्तर तेजी से बढ़ता है।
  4. काली चाय एवं कॉफी पीने से बचें।
  5. गर्भवती महिलाओं एवं किशोरी लड़कियों को नियमित रूप से 100 दिन तक लौह तत्व व फॉलिक एसिड की 1 गोली रोज रात को खाने खाने के बाद लेनी चाहिए।
  6. गुड़ भी आयरन का अच्छा स्रोत है। एनीमिया से ग्रस्त लोगों को रोज गुड़ जरूर खाना चाहिए। खाने के बाद थोड़ा सा गुड़ खाने से भी एनीमिया दूर होता है।
  7. चुकंदर लौह तत्त्व से भरपूर होता है इसीलिए एनीमिया के मरीजों को अपनी रोज की खुराक में थोड़ा चुकंदर जरूर शामिलकरना चाहिए। चुकंदर को सब्जी के अलावा सलाद के रूप में या जूस बनाकर भी लिया जा सकता है।
  8. जल्दी-जल्दी गर्भधारण से बचना चाहिए।
  9. टमाटर को सलाद के रूप में खाया जा सकता है। इसके अलावा जूस या सूप बनाकर पीना भी अच्छा होता है।
  10. पालक की सब्जी एनीमिया में दवा की तरह काम करती है। हरी सब्जियों में पालक डालें। साथ ही, सलाद के रूप में भी इसका सेवन किया जा सकता है। पालक को उबालकर उसका सूप भी बनाया जा सकता है। इसका सूप पीने से बहुत जल्दी खून बढ़ता है।
  11. भोजन के बाद चाय के सेवन से बचें, क्योंकि चाय भोजन से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्वों को नष्ट करती है।
  12. लौह तत्वयुक्त चीजों का सेवन करें।
  13. विटामिन 'ए' एवं 'सी' युक्त खाद्य पदार्थ खाएं।
  14. संक्रमण से बचने के लिए स्वच्छ पेयजल ही इस्तेमाल करें।
  15. खजूर दोनों में ही पर्याप्त मात्रा में आयरन पाया जाता है। रोज सेब और खजूर खाने से कुछ दिनों में एनीमिया दूर हो जाता है।
  16. सोयाबीन से भरपूर मात्रा में आयरन मिलता है इसलिए एनीमिया में यह बहुत लाभदायक है।
  17. स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करें।


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दिल को स्वस्थ बनाएं



व्यस्त जीवन शैली में संतुलित खानपान के साथ व्यायाम भी जरूरी है। इससे दिल तंदुरुस्त रहता है और स्वस्थ व लंबी उम्र हो सकती है। जीवन की जिम्मेदारियों व करियर में तरक्की की होड़ में हंसना-मुस्कुराना न भूलें। जानें कैसे रख सकते हैं हृदय को स्वस्थ।
    हृदय के स्वास्थ्य के लिए आहार (Diet for healthy heart)
    1.  अंडे का सफेद भाग खाया जा सकता है उसके पीला भाग का सेवन एक दिल के रोगी के लिए अच्छा नहीं होता।
    2. अनाज और दालों का सेवन सीमित मात्रा में ही करें।
    3. एक ह्रदय रोगी को अपने आहार में कम प्रोटीन और कम कोलेस्ट्रॉल का सेवन करना चाहिए। उन्हें क्या, कब और कितनी मात्रा में खाना चाहिए आज हम इसी के बारे में आपको बताएंगे। क्योंकि उनकी जरा सी बदपरहेजी उनकी जान तक ले सकती है।
    4. गाजर (carrot), मटर (peas) और चुकंदर (beetroot) जैसी सब्जियां।
    5. चपाती बनाते समय चने के आटे / जौ के आटे को मिलाकर रोटी बनाएं।
    6. चिकन या मछली लगभग 50-60 ग्राम, सप्ताह में 2-3 बार ग्रील्ड, उबला हुआ, भुना हुआ रूप में लिया जा सकता है ये आपको बहुत ज्यादा फायदा करेगा।
    7. दिन भर में एक चम्मच घी से ज्यादा न खाएं।
    8. दूध (Milk) और दूध से बने उत्पादों का सेवन भी एक सीमित मात्रा में करें।
    9. नारियल पानी और टमाटर के रस का सेवन करें लेकिन सीमित मात्रा में।
    10. पकी हुई दालें और साबुत दालों को खाएं। दिन में एक बार स्प्राउट्स को जरूर खाना चाहिए। सीमित मात्रा में ली जाने वाली चीजें
    11. पपीता (papaya,), संतरा (orange), अमरूद (guava), सेब (apple), अनानास (pineapple), तरबूज (watermelon), नाशपाती (pear) आदि फल प्रतिदिन 100 ग्राम तक इनमें से किसी भी फल को खा सकते हैं।
    12. सलाद और उबली हुई सब्जियां जैसे टमाटर, खीरा, मूली, हरी पत्तेदार सब्जियां, गोभी, शिमला मिर्च, लौकी आदि।
    13. सूखे मेवों में बादाम और मूंगफली ली जा सकती है।
    14. सूप, रसम, नींबू पानी, छाछ, सब्जियों का रस, सोडा आदि।
    15. अनार के रस को मिश्री में मिलाकर हर रोज सुबह-शाम पीने से दिल मजबूत होता है।
    16. अलसी के पत्ते और सूखे धनिए का क्वाथ बनाकर पीने से हृदय की दुर्बलता मिट जाती है।
    17. उच्च रक्तचाप की समस्या से निजात पाने के लिए सिर्फ गाजर का रस पीना चाहिए। इससे रक्तचाप संतुलित हो जाता है।
    18. खाने में अलसी का प्रयोग करने से दिल मजबूत होता है।
    19. गाजर के रस को शहद में मिलाकर पीने से निम्न रक्तचाप की समस्या नहीं होती है और दिल मजबूत होता है।
    20. छोटी इलायची और पीपरामूल का चूर्ण घी के साथ सेवन करने से दिल मजबूत और स्वस्थ रहता है।
    21. दिल को मजबूत बनाने के लिए गुड को देसी घी में मिलाकर खाने से भी फायदा होता है।
    22. प्रतिदिन लहसुन की कच्ची कली छीलकर खाने से कुछ दिनों में ही रक्तचाप सामान्य हो जाता है और दिल मजबूत होता है।
    23. बादाम खाने से दिल स्वस्थ रहता है।
    24. लौकी उबालकर उसमें धनिया, जीरा व हल्दी का चूर्ण तथा हरा धनिया डालकर कुछ देर पकाकर खाइए। इससे दिल को शक्ति मिलती है।
    25. शहद दिल को मजबूत बनाता है। कमजोर दिलवाले एक चम्मच शहद का सेवन रोज करें तो उन्हें फायदा होगा। लोग भी शहद का एक चम्मच रोज ले सकते हैं, इससे वे दिल की बीमारियों से बचे रहेंगे।
    26. सर्पगंधा को कूटकर रख लीजिए। इस पाउडर को सुबह-शाम 2-2 ग्राम खाने से बढ़ा हुआ रक्तचाप सामान्य हो जाता है।
    27. सेब का जूस और आंवले का मुरब्बा खाने से दिल मजबूत होता है और दिल अच्छे से काम करता है।
    इन खाद्य पदार्थ का सेवन ना करें
    1.  उच्च कैलोरी वाले फल जैसे केला (banana), आम (mango), सपोटा (sapota) , अंगूर (grapes), कस्टर्ड सेब (custard apple) आदि इनका सेवन कम मात्रा में ही करें।
    2. कार्बोनेटेड वाले पेय पदार्थ, दूध के शेक, फलों के जूस आदि इनका सेवन बहुत कम करें।
    3. चीनी, गुड़, जैम, जेली, मिठाई जैसे लड्डू, बर्फी, खीर, रसगुल्ला, जलेबी, आइसक्रीम इन सभी का सेवन कभी-कभी ही करें।
    4. डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ जैसे सॉस, पिज़्ज़ा टॉपिंग आदि का सेवन कम करें।
    5. तली हुई चीजें जैसे समोसा, पोड़ी, परांठे, पकोड़ा आदि।
    6. तेल में बने किसी भी तरह के अचार का सेवन ना करें।
    7. दूध से बने उत्पाद जैसे खोआ, क्रीम, प्रोसेस्ड चीज़ इत्यादि भी बहुत कम ही खाएं।
    8. मक्खन और देसी घी से बनी चीजें,  बेकरी आइटम जैसे केक, पेस्ट्री आदि का सेवन बिल्कुल भी ना करें।
    9. मक्खन, देसी घी, वनस्पति, नारियल तेल।
    10. रेड मीट, हैम, बेकन, मछली आदि का सेवन भी एक कम मात्रा में करें, क्योंकि इससे आपकी किडनी पर भी बुरा असर पड़ता है।
    11. सूखे मेवे जैसे काजू, किशमिश, अखरोट आदि इनका सेवन बहुत ज्यादा बिल्कुल ना करें ।
    12. स्टार्च वाले खाद्य पदार्थ जैसे मकई का आटा, अरारोट, रिफाइंड आटा, कस्टर्ड पाउडर इनके सेवन से बचें।


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    मुंहासे के लक्षण, कारण और घरेलू उपचार



    मुंहासे या पिटिका (Pimples or Acne) त्वचा की एक स्थिति है जो सफेद, काले और जलने वाले लाल दाग के रूप में दिखते हैं। यह लगभग 14 वर्ष से शुरू होकर 30 वर्ष तक कभी भी निकल सकते हैं। ये निकलते समय तकलीफ दायक होते हैं व बाद में भी इसके दाग-धब्बे चेहरे पर रह जाते हैं। मुहांसों के कई रूप होते है जैसे-पसदार मुंहासे, बिना पस कील के रूप में, काले खूटे के रूप में आदि। मुहांसों की शुरुआत भी अजीब होती है। पहले ये छोटे-छोटे दानों के रूप में चेहरे पर उभरते हैं। चेहरे में भी ललाट, गालों और नाक पर इनकी मात्रा ज्यादा होती है। यदि रोग की तीव्रता ज्यादा हो तो कंधे, पीठ और हाथ-पैरों पर हो सकते हैं। कुछ रोगियों में मुंहासे दाने के आकार से बड़े होकर पीव युक्त गांठों के रूप में भी हो जाते हैं। इन मवाद युक्त गांठों में दर्द, जलन, सूजन और लालिमा पाई जाती है। कुछ मुंहासे काले सिर वाले होते हैं जिन्हें "कील" कहा जाता है। यदि इनको दबाया जाए, तो काले सिर के साथ-साथ भीतर से सफेद रोम जैसा पदार्थ बाहर निकलता है और इससे पैदा होने वाला छेद स्थाई हो जाता है।
    मुंहासे के लक्षण, कारण और घरेलू उपचार

    पिंपल/मुंहासे के लक्षण
    1.  व्हाइटहेड्स (बंद छिद्रित छिद्र)
    2. ब्लैकहेड्स (खुली छिद्रित छिद्र)
    3. छोटे लाल, टेंडर बम्प
    पिंपल/मुंहासे होने के कारण
    एलोपैथिक चिकित्सा विज्ञान के अनुसार मुंहासों का कारण होता है - वसा ग्रंथियों (सिबेसियस ग्लैंड्स) से निकलने वाले स्राव का रुक जाना। यह स्राव त्वचा को स्निग्ध रखने के लिए रोम छिद्रों से निकलता रहता है। यदि यह रुक जाए तो फुंसी के रूप में त्वचा के नीचे इकट्ठा हो जाता है और कठोर हो जाने पर मुंहासा बन जाता है। इसे 'एक्ने वल्गेरिस' कहते हैं। इसमें पस पड़ जाए तो इसे कील यानी पिम्पल कहते हैं। पस निकल जाने पर ही यह ठीक होते हैं। क्रीम, लोशन, एक्सपायरी क्रीम का अधिक उपयोग करने से मुंहासे आ जाते है। व्यक्ति का नींद पूरा ना होने के कारण मुंहासे निकल जाते है। पाचन तंत्र में परेशानी होने के कारण भी चेहरे पर मुंहासे आ जाते है। हार्मोन में बदलाव होने के कारण लड़कों और लड़कियों को मुंहासे आ जाते है। व्यक्ति के त्वचा पर पहले से मुंहासे है, तो तनाव होने के कारण मुंहासे और बढ़ जाते है

    मुहांसों के प्रभाव को कैसे कम करें?
    1.  अगर कोई पिंपल निकले तो उसे दबाए नहीं। ऐसा करने से पिंपल अन्य जगहों पर फैल सकता है।
    2. अपने मेकअप ब्रश को अच्छी तरह से धोने की आदत डालें। इससे ब्रश में बैक्टीरिया नहीं पनपते हैं।
    3. कच्ची सब्जियां व कम से कम 10-12 गिलास पानी दिन में पीएं।
    4. गर्म चीजों का सेवन न करें।
    5. चिकनाई वाले कॉस्मेटिक उत्पाद न लगाएं।
    6. चेहरे को किसी अच्छे मैडीकेटेड साबुन से धोएं।
    7. चेहरे को धोकर गर्म पानी से भाप लें, ब्लैकहेड रिमूवर से कील दबाकर निकाल दें, अब रूई से कील वाले स्थान पर स्किन टोनर लगाएं। बाद में ठंडे पानी से मुँह धो लें व फेस पैक लगा लें।
    8. ज्यादा नमक खाने से पिंपल हो सकता है इसलिए सीमित मात्रा में नमक का सेवन करें।
    9. ज्यादा मीठा, चाय-कॉफी, मिर्च मसाले भी कब्ज पैदा करते हैं। जिससे मुंहासे होते हैं। अत: इनका सेवन न करें।
    10. तनाव मुक्त रहें क्योंकि तनाव व नींद पूरी न होने से भी मुंहासे बढ़ते हैं।
    11. प्रात: काल ताजी स्वच्छ हवा में घूमें व व्यायाम करें।
    12. बालों में रूसी न होने पाए, इस बात का ध्यान रखें।
    13. भोजन में ज्यादा घी, तेल, मसालों का प्रयोग न करें।
    14. मुंहासे ज्यादा हों, तो कुछ दिन के लिए बालों में तेल न लगाएं।
    15. मुंहासों को दबाने, फोड़ने या रगड़ने से बचने का प्रयास करें।
    16. मुंहासे की शुरुआत होते ही सर्वप्रथम किसी चर्म रोग विशेषज्ञ से परामर्श ले।
    17. हाथ या उंगलियों से चेहरे को छूने से परहेज करें।
    18. होम्योपैथिक चिकित्सा भी इस समस्या में लाभकारी होती है।
    घरेलू उपचार
    1.  एक चम्मच हल्दी पाउडर में थोड़ा सा पानी मिलाकर गाढ़ा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को पिंपल्स पर लगाएं। कुछ मिनट के लिए लगा रहने दें। फिर ठंडे पानी से चेहरा धो लें। ऐसा एक हफ्ते तक करें। पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।
    2. एक पपीते को छिलकर मिक्सर में पीस लें और चेहरे पर लगाएं। पपीते का जूस भी चेहरे पर लगाया जा सकता है। पंद्रह से बीस मिनट चेहरे पर लगा रहने दें। फिर ठंडे पानी से चेहरा धो लें।
    3. कॉटन बॉल को शहद में डुबोकर चेहरे पर लगाएं। सूखने पर चेहरा धो लें। पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।
    4. जब भी पिंपल्स की समस्या हो, चार-पांच दिनों तक दिन में दो बार चेहरे पर भाप लें। पिंपल्स खत्म हो जाएंगे और चेहरा चमकने लगेगा।
    5. टमाटर को पीसकर उसका जूस बना लें। इस जूस को छानकर चेहरे पर लगाएं। सूखने पर चेहरा धो लें। दिन में कम से कम दो बार ऐसा करें। पिंपल्स पर असर दिखाई देने लगेगा।
    6. दालचीनी का पाउडर बना लें। इस पाउडर को पानी में पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं। ऐसा दिन में कम से कम दो बार करें। पिंपल्स दूर हो जाएंगी।
    7. दो मध्यम आकार के नींबू लेकर उनका जूस निकाल लें। नींबू के रस को कॉटन में भिगोकर चेहरे पर लगा लें। सूख जाए तो ठंडे पानी से धो लें। दिन में दो बार इसे तीन-चार दिनों तक लगाएं। पिंपल्स दूर हो जाएंगे।
    8. नीम की पत्तियों को धोकर उसका पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को चेहरे पर लगाएं। आधे घंटे बाद चेहरा धो लें।
    9. पुदीने की कुछ पत्तियों को मिक्सर में पीस लें। इसका पेस्ट बनाकर उसे चेहरे पर रात को सोने से पहले लगा लें या इसे छानकर जूस निकालकर भी चेहरे पर लगा सकते हैं। इसे रात भर चेहरे पर लगा रहने दें। सुबह चेहरा धो लें। ऐसा हफ्ते में एक बार जरूर करें। धीरे-धीरे पिंपल्स खत्म हो जाएंगी।
    10. बर्फ के टुकड़े को कॉटन में लपेटकर चेहरे पर हल्के से मालिश करें। तीन-चार दिन तक दिन में दो बार बर्फ से मालिश करने से पिंपल्स की ठीक हो जाएंगे।
    11. रात को सोने से पहले पिंपल्स पर टूथपेस्ट लगाएं। सुबह ठंडे पानी से चेहरा धो लें। पिंपल्स पर इसका असर साफ दिखाई देगा। पिंपल्स पर सिर्फ सफेद टूथपेस्ट लगाना चाहिए।
    12. लहसुन की दो कलियां और एक लौंग पीस लें। इस पेस्ट को सिर्फ पिंपल्स पर लगाएं। कुछ देर लगा रहने दें। फिर चेहरा धो लें। ऐसा करने से पिंपल्स खत्म हो जाएंगे।
    13. संतरे के छिलकों को छांव में सुखाकर पाउडर बना लें। इस पाउडर को एक से दो चम्मच पानी में मिलाकर चेहरे पर लगाएं। आधे घंटे के बाद चेहरा धो लें। ऐसा दिन में दो से तीन बार करें।
    टैग - मुँहासे के लिए सबसे अच्छी क्रीम, मुंहासे का खुद इलाज करने के तरीके, मुंहासे हटाने के उपाय, मुंहासे दाग-धब्बे हटाने के उपाय, कील मुंहासे हटाने की विधि, मुंहासे की दवाएं, मुंहासे के विशेषज्ञ तथा मुंहासे कितने प्रकार के होते हैं


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    प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में कुंभ




    प्रयागराज में कुम्भ
    प्रयाग की महत्ता वेदों और पुराणों में सविस्तार बतायी गयी है। एक बार शेषनाग से ऋषियों ने भी यही प्रश्न किया था कि प्रयाग को तीर्थराज क्यों कहा जाता है, जिस पर शेषनाग ने उत्तर दिया कि एक ऐसा अवसर आया कि सभी तीर्थों की श्रेष्ठता की तुलना की जाने लगी। उस समय भारत में समस्त तीर्थों को तुला के एक पलड़े पर रखा गया और प्रयाग को एक पलड़े पर, फिर भी प्रयाग का पलड़ा भारी पड़ गया। दूसरी बार सप्तपुरियों को एक पलड़े में रखा गया और प्रयाग को दूसरे पलड़े पर, वहाँ भी प्रयाग वाला पलड़ा भारी रहा। इस प्रकार प्रयाग की प्रधानता सिद्ध हुई और इसे तीर्थों का राजा कहा जाने लगा। इस पावन क्षेत्र में दान, पुण्य, तपकर्म, यज्ञादि के साथ साथ त्रिवेणी संगम का अतीव महत्व है। यह सम्पूर्ण विश्व का एकमात्र स्थान है, जहाँ पर तीन-तीन नदियाँ, अर्थात् गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती मिलती हैं और यहीं से अन्य नदियों का अस्तित्व समाप्त हो कर आगे एक मात्र नदी गंगा का महत्व शेष रहा जाता है। इस भूमि पर स्वयं ब्रह्मा जी ने यज्ञादि कार्य सम्पन्न किये। ऋषियों और देवताओं ने त्रिवेणी संगम कर अपने आपको धन्य समझा। मत्स्य पुराण के अनुसार धर्म राज युधिष्ठिर ने एक बार मार्कण्डेय जी से पूछा, ऋषिवर यह बतायें कि प्रयाग क्यों जाना चाहिए और वहां संगम स्नान का क्या फल है इस पर महर्षि मार्कण्डेय ने उन्हें बताया कि प्रयाग के प्रतिष्ठान से लेकर वासुकि के हृदयोपरि पर्यन्त कम्बल और अश्वतर दो भाग हैं और बहुमूलक नाग हैं। यही प्रजापति का क्षेत्र है, जो तीनों लोकों में विख्यात है। यहाँ पर स्नान करने वाले दिव्य लोक को प्राप्त करते हैं, और उनका पुनर्जन्म नहीं होता है। पद्मपुराण कहता है कि यह यज्ञ भूमि है देवताओं द्वारा सम्मानित इस भूमि में यदि थोड़ा भी दान किया जाता है तो उसका फल अनंत काल तक रहता है। माघी अमावस्या को मकर में सूर्य, चन्द्र और बृहस्पति मेष राशि में हो, तभी यह कुम्भ योग पड़ता है -
    मेषराशि गते जीवे मकरे चन्द्र-भास्कर ।
    अमावस्या तदा योग कुंभख्यस्तीर्थ नायके ।।
    अथर्व वेद के अनुसार मनुष्य को सर्व सुख देने वाला कुम्भ प्रदान किया गया था। कुम्भ स्नान पर्व का भी अपना महत्व और मुहूर्त होता है। संक्रांति के पूर्व और बाद की सोलह घड़ियों में पुण्यकाल माना गया है। मुहूर्त तिथि आधी रात से पहले हो तो पहले दिन तीसरे प्रहर में पुण्य काल बताया गया है और यदि मुहूर्त तिथि यदि आधी रात के बाद हो तो पुण्य काल प्रातः काल माना जाता है। इसके अलावा मकर संक्रांति का पुण्य काल चालीस घड़ी, कर्क संक्रांति का पुण्य काल तीस घड़ी और तुला और मेष का संक्रांति का पुण्य काल बीस-बीस घड़ी पहले और बाद में बताया गया है।

    हरिद्वार में कुंभ
    हरिद्वार उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है। यह एक पुराण प्रसिद्ध स्थान है जहां माँ गंगा हिमालय की विशाल श्रेणियों को भेदती हुई मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती हैं। यहां हर की पौड़ी पर गंगा प्रवाह का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है।
    कुंभ राशि गते जीवे तथा मेषे गते रवौ। हरिद्वार कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम् ।
    तात्पर्य यह है कि कुंभ राशि का बृहस्पति हो और मेष राशि में सूर्य-संक्रांति हो, तब हरिद्वार में कुम्भ होता है। यहां पर यह स्थिति मेष - संक्रांति के समय अर्थात-चैत्र या वैशाख मास में होती है।

    उज्जैन में कुंभ
    मेष राशि गते सूर्ये सिंह राशि बृहस्पति । पौर्णिमा या भवेत् कुंभ उज्जयिन्यां सुखप्रदः । अर्थात मेष राशि जब सूर्य हो और सिंह राशि में बृहस्पति हो तब उज्जैन में कुंभ-योग पड़ता है। यहां यह स्थिति वैशाख मास की पूर्णिमा को होती है। उज्जैन मध्य प्रदेश राज्य में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है जहां महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग विराजमान है।
    नासिक में कुंभ
    सिंह राशि गते सूर्ये सिंह चंद्र-बृहस्पतौ गोदावर्यां भवेत्कुंभो भुक्ति–मुक्ति प्रदा कः।। अर्थात जब सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति तीनों सिंह राशि में हों, तब गोदावरी तट नासिक में कुंभ योग होता है। भाद्रपद भादो) मास की अमावस्या को स्थिति आती है। नासिक महाराष्ट्र राज्य में गोदावरी नदी के तट पर बसा है।


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    बवासीर के कारण, लक्षण और उपचार



    बवासीर या पाइल्स एक ख़तरनाक बीमारी है। बवासीर 2 प्रकार की होती है। आम भाषा में इसको खूनी और बादी बवासीर के नाम से जाना जाता है। कहीं पर इसे महेशी के नाम से जाना जाता है।
    1. खूनी बवासीर :- खूनी बवासीर में किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है केवल खून आता है। पहले पखाने में लगके, फिर टपक के, फिर पिचकारी की तरह से सिर्फ खून आने लगता है। इसके अन्दर मस्सा होता है। जो कि अन्दर की तरफ होता है फिर बाद में बाहर आने लगता है। टट्टी के बाद अपने से अन्दर चला जाता है। पुराना होने पर बाहर आने पर हाथ से दबाने पर ही अन्दर जाता है। आखिरी स्टेज में हाथ से दबाने पर भी अंदर नहीं जाता है।
    2. बादी बवासीर :- बादी बवासीर होने पर पेट खराब रहता है। कब्ज बना रहता है। गैस बनती है। बवासीर की वजह से पेट बराबर खराब रहता है। न कि पेट गड़बड़ की वजह से बवासीर होती है। इसमें जलन, दर्द, खुजली, शरीर में बेचैनी, काम में मन न लगना इत्यादि। टट्टी कड़ी होने पर इसमें खून भी आ सकता है। इसमें मस्सा अंदर होता है। मस्सा अंदर होने की वजह से पखाने का रास्ता छोटा पड़ता है और चुनन फट जाती है और वहाँ घाव हो जाता है उसे डॉक्टर अपनी भाषा में फिशर भी कहते हैं। जिससे असहाय जलन और पीड़ा होती है। बवासीर बहुत पुराना होने पर भगन्दर हो जाता है। जिसे अंग्रेजी में फिस्टुला कहते हैं। फिस्टुला प्रकार का होता है। भगन्दर में पखाने के रास्ते के बगल से एक छेद हो जाता है जो पखाने की नली में चला जाता है। और फोड़े की शक्ल में फटता, बहता और सूखता रहता है। कुछ दिन बाद इसी रास्ते से पखाना भी आने लगता है। बवासीर, भगन्दर की आखिरी स्टेज होने पर यह कैंसर का रूप ले लेता है। जिसको रिक्टम कैंसर कहते हें। जो कि जानलेवा साबित होता है।

    उपचार
    • 50 ग्राम बड़ी इलायची को तवे पर रखकर भूनते हुए जला लीजिए। ठंडी होने के बाद इस इलायची को पीस लीजिए। प्रतिदिन सुबह इस चूर्ण को पानी के साथ खाली पेट लेने से बवासीर में बहुत आराम मिलता है।
    • एक चम्मच आंवले का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ लेने से भी बवासीर में लाभ प्राप्त होता है।
    • एक छोटी चम्मच धुले काले तिल ताजा मक्खन के साथ लेने से बवासीर में खून आना बंद हो जाता है।
    • एक पके केले को बीच से चीरकर उसके दो टुकड़ेकर लें फिर उस पर कत्था पीसकर छिड़क दें। शाम को इस केले को खुले आसमान के नीचे रख दें। सुबह शौच के बाद उस केले को खा लें। एक हफ्ते तक लगातार करने से भयंकर से भयंकर बवासीर भी समाप्त हो जाती है।
    • करीब दो लीटर मट्ठा लेकर उसमें 50 ग्राम पिसा जीरा और थोड़ा सा सेंधा नमक मिला दें। पूरे दिन पानी की जगह यह मट्ठा पियें। पाँच-सात दिन तक यह प्रयोग करें, मस्से ठीक हो जाएंगे।
    • खूनी बवासीर में एक नीबू को बीच में से काटकर उसमें लगभग 4-5 ग्राम कत्था पीसकर डाल दीजिए। इन दोनों टुकड़ों को रात में छत पर खुला रख दीजिए। सुबह उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद इन दोनों टुकड़ों को चूस लीजिए। पांच दिन तक इस प्रयोग को कीजिए, बहुत फायदा होगा।
    • छोटी पिप्पली को पीसकर उसका चूर्ण बना ले, इसे शहद के साथ लेने से भी आराम मिलता है।
    • जिमीकंद को देसी घी में बिना मसाले के भुरता बनाकर खाएं, शीघ्र ही लाभ मिलेगा।
    • जीरे को पीसकर मस्सों पर लगाने से भी फायदा मिलता है। जीरे को भूनकर मिश्री के साथ मिलाकर चूसने से भी फायदा मिलता है।
    • नागकेसर, मिश्री और ताजा मक्खन को रोजाना बराबर मिलाकर 10 दिन तक खाने से बवासीर में बहुत आराम मिलता है।
    • नियमित रूप से गुड़ के साथ हरड़ खाने से बवासीर में जल्दी ही फायदा होता है।
    • नीम का तेल मस्सों पर लगाने और 4-5 बूँद रोज पीने से बवासीर में बहुत लाभ होता है।
    • नीम के छिलके सहित निंबौरी के पाउडर का 10 ग्राम रोज सुबह बासी पानी के साथ सेवन करें, लाभ होगा। लेकिन इसके साथ आहार में घी का सेवन आवश्यक है।
    • बवासीर दो प्रकार की होती है, खूनी और बादी वाली। खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है और उनसे खून गिरता है, जबकि बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है और मस्सों में खाज पीड़ा और सूजन होती है।
    • सुबह खाली पेट मूली का नियमित सेवन से बवासीर को खत्म कर देता है।


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