Aasan Shuddhi Mantra or Purification Of Worship Seat



आसन शुद्धि मंत्र
किसी भी तरह की पूजा स्तुति और शुभारंभ से पहले जिस आसन पर आप विराजमान होना चाहते है उस पर बैठने से पहले नीचे दिए गए इस मंत्र से आसन को शुद्ध का लेना चाहिए तथा पूजन करने के लिए आसन का शुद्ध होना अति आवश्यक है।

आसन शुद्धि:- आसन अर्थात वह स्थान जहाँ से आप परम पिता परमेश्वर के आराधना करते है, अतएव आसन का शुद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। पूजा करने के आसन को शास्त्रों में उच्च स्थान का दर्जा प्राप्त है क्योंकि यही आसन परमेश्वर से मनुष्य के जुडाव का हेतु है। अत: इस सेतु अर्थात आसन की शुद्धि होना अति आवश्यक है।


Kusha Aashan
आसन शुद्धि मंत्र इस प्रकार से है :-

Mantra in Hindi:-
ऊँ पृथ्वीत्वया धृता लोकादेवि त्वं विष्णुना धृता,
त्वं च धारय मां देवि पवित्र कुरु चासनम् ||

Mantra in English:-
Ohm Prithvitvaya Dhrita Lokadevi Tvam Vishnuna Dhrita,
Tvam Cha Dharay Maam Devi Pavitra Kuru Chasanam ||

आसन शुद्धि करने हेतु इस मंत्र को बोलते समय जल से आसन पर जल के छीटें देवें। इस प्रकार से आसन कि शुद्धि होती है तथा आसन शुद्धि से ही पूजा तथा जप कि पवित्रता बढती है तथा उच्च विचारों का आवागमन होता है और शांति तथा ध्यान कि प्राप्ति होती है। यह शुद्धि आसन के साथ साथ आपके विचारों तथा मन के विचारणीय वेग को आध्यात्मिकता कि ओर अग्रसर कर जीवन को निर्मल कर देती है। अत: कभी भी पूजन अथवा स्तुति करते समय बिना शुद्धि किये आसन पर नहीं बैठना चाहिए।

Shuddhikaran Mantras, Devotion Mantras


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जानिये पैन कार्ड के बारे में



परमानेंट अकाउंट नम्बर कार्ड (PAN) आयकर विभाग द्वारा निर्गत 10 अंकों के अल्फा न्युमेरिक नम्बर युक्त एक फोटो पहचान पत्र है, जिसमें प्रत्येक कार्डधारी के लिए आवंटित की जाती है। आयकर के समुचित प्रबंधन के साथ साथ पैन टैक्स की चोरी और ब्लैकमनी पर नियंत्रण लगाने के लिए सबसे असरदार हथियार साबित हुआ है। इसका इसका विधयिक नियन्त्र भारत सरकार के वित्त मंत्रालय द्वारा किया जाता है और आयकर रिटर्न फ़ाइल करते समय पैन नंबर का उल्लेख करना आवश्यक होता है। इसके अलावे, पैन का उपयोग बैंक में खाता खुलवाने, पासपोर्ट बनवाने, ट्रेन में ई-टिकट के साथ यात्रा करते समय पहचान पत्र के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
नया पैन कार्ड (PAN card) बनवाने जा रहे लोगों के लिए अच्‍छी और बड़ी खबर है कि अब पैनकार्ड के लिए 15 से 20 दिनों का इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। अब मात्र 3 से 4 दिनों के भीतर आवेदनकर्ता को पैनकार्ड मिल जाएगा। इसके लिए पैन नंबर को आधार कार्ड से जोड़ा जा रहा है। जिसके चलते अब पैन कार्ड के लिए एप्‍लाई करने वाले व्‍यक्ति की जानकारी आधार कार्ड के जरिए तुरंत वैरिफाई कर ली जाएगी। अभी पैन कार्ड बनवाने में 15 से 20 दिन का समय लगता है। अब एनएसडीएल और यूटीआईएसएल की वेबसाइट पर पैन नंबर के लिए आवेदन देने पर उसे आधार नंबर के जरिए वेरिफाई किया जा सकेगा। ऐसा करने से समय की बचत होगी और आवेदकों को उनका पैन नंबर जल्द से जल्द मिल सकेगा।
Permanent Account Number
(Know About <abbr title="Permanent Account Number">PAN</abbr> Card)

पैन का उपयोग इन कार्यों के लिए अनिवार्य रूप से किया जाता है:
  1. आयकर (आईटी) रिटर्न दाखिल करने के लिए,
  2. शेयरों की खरीद-बिक्री हेतु डीमैट खाता खुलवाने के लिए,
  3. एक बैंक खाता से दूसरे बैंक खाता में 50,000 रुपये या उससे अधिक की राशि निकालने अथवा जमा करने अथवा हस्तांतरित करने पर,
  4. टीडीएस (टैक्स डिडक्शन एट सोर्स) जमा करने व वापस पाने के लिए।
  5. अगर किसी की सालाना आमदनी टैक्सेबल है तो उसे पैन लेना अनिवार्य है। ऐसे लोग अगर एम्प्लॉयर को पैन उपलब्ध नहीं कराते हैं तो एम्प्लॉयर उनका स्लैब रेट या 20 फीसदी में से जो ज्यादा है, उस दर से टीडीएस काट सकता है।
  6. आय यदि कर योग्य (टैक्सेबल) नहीं है, तो पैन लेना अनिवार्य नहीं है। फिर भी बैंकिंग और दूसरी तरह के फाइनैंशल ट्रांजैक्शन के मामलों (जैसे : बैंक अकाउंट खोलना, प्रॉपर्टी बेचना-खरीदना, इनवेस्टमेंट करना आदि) में पैन की जरूरत होती है, इसलिए पैन सभी को ले लेना चाहिए।
  7. अब म्यूचुअल फंड के सभी निवेशकों को अपने पैन (परमानेंट एकाउंट नंबर) का ब्योरा अनिवार्य तौर पर देना होगा, भले ही निवेश का आकार कितना ही बड़ा या छोटा हो।
  8. पैन कार्ड के लिए कौन आवेदन कर सकता है
  9. पत्येक भारतीय नागरिक पैन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है। कोई भी व्यक्ति, फर्म या संयुक्त उपक्रम पैन कार्ड के लिए आवेदन कर सकता है।
  10. आवेदक का किसी नौकरी, व्यवसाय या कारोबार से संलग्न रहना आवश्यक नही है
  11. इसके लिए कोई न्यूनतम अथवा अधिकतम उम्र सीमा नहीं है। आयु, लिंग, शिक्षा, निवास स्थान पैन कार्ड आवेदन के लिए बाधक नहीं है।
  12. बालको और नवजात बच्चों के लिए भी पैन कार्ड बनवाया जा सकता है।
  13. पैन कार्ड आवेदन के लिए आवश्यक दस्तावेज और औपचारिकताये
  14. अच्छी गुणवत्ता वाली पासपोर्ट आकार की दो रंगीन फोटो
  15. शुल्क के रूप में 94 रुपये का डिमांड ड्राफ्ट या चेक
  16. व्यक्तिगत पहचान के प्रमाण की छायाप्रति
  17. आवासीय पता के प्रमाण की छायाप्रति
पैन कार्ड के लिए व्यक्तिगत पहचान व आवासीय पता पहचान दोनों सूची में से अलग-अलग दो दस्तावेज जमा करना होता है दोनों की सूची अलग से संलग्न है
  1. व्यक्तिगत पहचान के लिए प्रमाण
  2. विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र
  3. मैट्रिक का प्रमाणपत्र
  4. मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थान की डिग्री
  5. डिपोजिटरी खाता विवरण
  6. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  7. बैंक खाते का विवरण/ बैंक पासबुक
  8. पानी का बिल
  9. राशन कार्ड
  10. संपत्ति कर मूल्यांकन आदेश
  11. पासपोर्ट
  12. मतदाता पहचान पत्र
  13. ड्राइविंग लाइसेंस
  14. सांसद अथवा विधायक अथवा नगरपालिका पार्षद अथवा राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण पत्र।
आवासीय पता के प्रमाण के लिए
  1. बिजली बिल
  2. टेलीफोन बिल
  3. डिपोजिटरी खाता विवरण
  4. क्रेडिट कार्ड का विवरण
  5. बैंक खाता विवरण/ बैंक पास बुक
  6. घर किराये की रसीद
  7. नियोक्ता का प्रमाणपत्र
  8. पासपोर्ट
  9. मतदाता पहचान पत्र
  10. संपत्ति कर मूल्यांकन आदेश
  11. ड्राइविंग लाइसेंस
  12. राशन कार्ड
  13. सांसद अथवा विधायक अथवा नगरपालिका पार्षद अथवा राजपत्रित अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित पहचान प्रमाण पत्र।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि यदि आवासीय पता के प्रमाण के लिए क्रम संख्या 1 से 7 तक में उल्लिखित दस्तावेज का उपयोग जा रहा हो, तो वह जमा करने की तिथि से छः माह से अधिक पुराना नहीं होनी चाहिए।

पैन कार्ड के लिए शुल्क व भुगतान की प्रक्रिया

  1. पैन आवेदन के लिए शुल्क 94 रुपये है (85.00 रुपये + 10.3% सेवा शुल्क)
  2. शुल्क का भुगतान डिमांड ड्राफ्ट, चेक अथवा क्रेडिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है,
  3. डिमांड ड्राफ्ट या चेक NSDL- PAN के नाम से बना हों,
  4. डिमांड ड्राफ्ट मुम्बई में भुगतेय होनी चाहिए और डिमांड ड्राफ्ट के पीछे आवेदक का नाम तथा पावती संख्या लिखा होना चाहिए,
  5. चेक द्वारा शुल्क का भुगतान करनेवाले आवेदक देशभर में एचडीएफसी बैंक के किसी भी शाखा (दहेज को छोड़कर) पर भुगतान कर सकते हैं। आवेदक को जमा पर्ची पर NSDLPAN का उल्लेख करनी चाहिए।


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मनुस्मृति वर्णित विवाह



मनुस्मृति वर्णित विवाह
वि’ उपसर्ग पूर्वक ‘वह्’ प्रापणे धातु से घ प्रत्यय के योग से विवाह शब्द निष्पन्न होता है। विवाह अर्थात् विशिष्ट ढंग से कन्या को ले जाना। विवाह-संबंधी शब्द परिणय या परिणयन (अग्नि की प्रदक्षिणा करना) एवं पाणिग्रहण कन्या का हाथ पकड़ना) विवाह सम्बन्धी शब्द है यद्यपि ये शब्द विवाह संस्कार का केवल एक-एक तत्व बताते हैं। संस्कार शब्द पहले स्पष्ट किया जा चुका है विवाह संस्कार अर्थात् वर व वधू के शरीर व आत्मा को सुविचारों से अलंकृत कर इस योग्य बनाना कि वो गृहस्थाश्रम का निर्वहण कर सकें। आज विवाह संस्कार एक संस्कार न होकर परम्परा का निर्वहण मात्र रह गया है। इस संस्कार की मर्यादा आज छिन्न-भिन्न हो गयी है परिणामतः गृहस्थ जीवन में स्वर्ग जैसा सुख अब दिखाई नहीं पड़ता। गृह्यसूत्रों, धर्मसूत्रों एवं स्मृतियों के काल से ही विवाह आठ प्रकार के कहे गये हैं-

ब्राह्मो दैवस्तथैवार्षः प्राजापत्यस्तथाऽसुरः।
गान्धर्वोराक्षश्चैव पैशाचश्चाष्टमोऽधमः।। मनुस्मृति 3/21 
अर्थात् ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गन्धर्व, राक्षस, पैशाच ये विवाह आठ प्रकार के होते हैं।

महर्षि मनु द्वारा वर्णित विवाह पद्धतियां इस प्रकार हैं-
चतुर्णामपि वर्णानां प्रेत्य चेह हिताहितान।
अश्ताविमान्स मासेन सत्रीविवाहान्निबोधत ।।
चारों वर्णों के लिए हित तथा अहित करने वाले इन आठ प्रकार के स्त्रियों से होने वाले विवाहो को संक्षेप से जानो, सुनो

ब्राह्म अथवा स्वयंवर विवाह 
आच्छाद्य चार्चयित्वा च श्रुतिशीलवते स्वयं
आहूय दानं कन्याया ब्राह्मो धर्म: प्रकीर्तित: 
कन्या के योग्य सुशील, विद्वान पुरुष का सत्कार करके कन्या को वस्त्रादि से अलंकृत करके उत्तम पुरुष को बुला अर्थात जिसको कन्या ने प्रसन्न भी किया हो उसको कन्या देना - वह 'ब्राह्म' विवाह कहलाता है।
दैव विवाह
यज्ञे तु वितते सम्यगृत्विजे कर्म कुर्वते
अलं कृत्य सुतादानं दैवं धर्मं प्रचक्षते 
विस्तृत यज्ञ में बड़े बड़े विद्वानों का वरण कर उसमे कर्म करने वाले विद्वान् को वस्त्र आभूषण आदि से कन्या को सुशोभित करके देना 'दैव विवाह' कहा जाता है। विशेष टिप्पणी - ऋत्विक शब्द का अर्थ प्रसंग के अनुकूल किया जाता है और यहाँ प्रसंग के अनुसार विवाह के लिए आए सभी विद्वानों से है न कि केवल ब्राह्मणों के लिए


आर्ष विवाह
एकं गोमिथुनं द्वे वा वरादादाय धर्मत:
कन्या प्रदानं विधिवदार्षो धर्म: स उच्यते 
जो वर से धर्म अनुसार एक गाय बैल का जोड़ा अथवा दो जोड़े लेकर विधि अनुसार कन्या का दान करना है वह आर्ष विवाह कहा जाता है।

प्राजापत्य विवाह सहोभौ चरतां धर्ममिति वाचानुभाष्य च
कन्याप्रदानमभ्यचर्य प्राजापत्यो विधि: स्मृत: 
कन्या और वर को, यज्ञशाला में विधि करके सब के सामने 'तुम दोनों मिलके गृहाश्रम के कर्मों को यथावत करो', ऐसा कहकर दोनों की प्रसन्नता पूर्वक पाणिग्रहण होना - वह प्राजापत्य विवाह होता है।

आसुर विवाह 
ज्ञातिभ्यो द्रविणं दत्त्वा कन्यायै चैव शक्तितः।
कन्याप्रदानं स्वाच्छन्द्यासुरो धर्म उच्यते ।। 
वर की जाति वालों और कन्या को यथाशक्ति धन दे कर अपनी इच्छा से अर्थात वर अथवा कन्या की प्रसन्नता और इच्छा की उपेक्षा कर ,के होम आदि विधि कर कन्या देना 'आसुर विवाह' कहलाता है।

गान्धर्व विवाह 
इच्छयाअन्योन्यसन्योग: कन्यायाश्च यरस्य च।
गान्धर्व: स तू विज्ञेयी मैथुन्य: कामसंभव: ।।
वर और कन्या की इच्छा से दोनों का संयोग होना और अपने मन में यह मान लेना कि हम दोनों स्त्री पुरुष हैं, ऐसा काम से उत्पन्न विवाह 'गान्धर्व विवाह कहलाता है।

राक्षस विवाह हत्वा छित्त्वा च भित्त्वा च क्रोशन्तीं रुदतीं गृहात।
प्रसह्य कन्याहरणं राक्षसो विधिरुच्यते।। 
हनन छेदन अर्थात कन्या के रोकने वालों का विदारण कर के, रोती, कांपती और भयभीत कन्या का घर से बलात अपहरण करके विवाह करना राक्षस विवाह कहा जाता है।

पिशाच विवाह 
सुप्तां मत्तां प्रमत्तां वा रहो यत्रोपगच्छति ।
स पापिष्ठो विवाहानां पैशाचश्चाष्टमोअधम: ।। 
जो सोती, पागल हुई अथवा नशे में उन्मत्त हुई कन्या को एकांत पाकर दूषित कर देना है, यह सब विवाहों में नीच से नीच विवाह 'पिशाच विवाह' कहा जाता है।

प्रथम चार विवाह उत्तम हैं
ब्राह्मादिषु विवाहेषु च्तुष् र्वेवानुपूर्वशः।
ब्रह्मवर्चस्विनः पुत्रा जायन्ते शिष्टसंमता ॥ 
ब्रह्म, दैव, आर्ष तथा प्राजापत्य ; इन चार विवाहों में पाणिग्रहण किए हुए स्त्री पुरुषों से जो सन्तान उत्पन्न होती है वह वेदादि विद्या से तेजस्वी, आप्त पुरुषों के संगति से अत्युत्त्म होती है।

रूपसत्तवोवुणोपेता धनवन्तो यशस्विनः।
पर्याप्तभोगा धर्मिष्ठा जीवन्ति च शतं समाः॥ 
वे सन्तानें सुन्दर रूप, बल - पराक्रम, शुद्ध बुद्धि आदि उत्तम गुणों से युक्त, बहुधन युक्त, कीर्तिमान और पूर्ण भोग के भोक्ता धर्मात्मा हो कर सौ वर्ष तक जीते हैं।

अन्य चार विवाह अधम अथवा निंदनीय हैं
इतरेषु तु शिष्टेषु नृशंसानृतवादिनः।
जायन्ते दुर्विवाहेषु ब्रह्मधर्मद्विषः सुताः॥ 
उपरोक्त चार विवाहो से इतर जो अन्य चार - असुर, गंधर्व, राक्षस और पैशाच विवाह हैं, इन चार दुष्ट विवाहो से उत्पन्न हुए संतान निन्दित कर्म कर्ता, मिथ्यावादी, वेद धर्म के द्वेषी अत्यंत नीच स्वभाव वाले होते हैं।


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