अच्‍छी बाते और अच्‍छे विचार



“Be like a postage stamp. Stick to one thing until you get there.”- Josh Billings (1818-1885)
“डाक टिकट की तरह बनिए, मंजिल पर जब तक न पहुंच जाएं उसी चीज़ पर जमे रहिए।”- जोश बिलिंग्स (१८१८-१८८५)
अच्‍छी बाते और अच्‍छे विचार

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“Be like a postage stamp. Stick to one thing until you get there.”- Josh Billings (1818-1885)
“डाक टिकट की तरह बनिए, मंजिल पर जब तक न पहुंच जाएं उसी चीज़ पर जमे रहिए।”- जोश बिलिंग्स (१८१८-१८८५)

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“We must accept finite disappointment, but never lose infinite hope.”- Martin Luther King, Jr. (1929-196), Black civil-rights leader
“हमें परिमित निराशा को स्वीकार करना चाहिए, लेकिन अपरिमित आशा को कभी नहीं खोना चाहिए।”- मार्टिन लूथर किंग, जूनियर (१९२९-१९६८), अश्वेत मानवाधिकारी नेता

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“The only way to find the limits of the possible is by going beyond them to the impossible.”- Arthur C Clarke
“संभव की सीमाओं को जानने का एक ही तरिका है कि उन से थोड़ा आगे असंभव के दायरे में निकल जाइए।”- आर्थर सी क्लार्क

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“Tact is the art of making guests feel at home when that's really where you wish they were.”
- George E Bergman
“व्यवहार कुशलता उस कला का नाम है कि आप महमानों को घर जैसा आराम दें और मन ही मन मनाते भी जाएं कि वे अपनी तशरीफ उठा ले जाएं।”

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“Art's a staple. Like bread or wine or a warm coat in winter. Those who think it is a luxury have only a fragment of a mind. Man's spirit grows hungry for art in the same way his stomach growls for food.”- Irving Stone
“रोटी या सुरा या लिबास की तरह कला भी मनुष्य की एक बुनियादी ज़रूरत है। उस का पेट जिस तरह से खाना मांगता है, वैसे ही उस की आत्मा को भी कला की भूख सताती है।”- इरविंग स्टोन

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“Don't believe that winning is really everything. It's more important to stand for something. If you don't stand for something, what do you win?"”- Lane Kirkland
“यह मत मानिए कि जीत ही सब कुछ है, अधिक महत्व इस बात का है कि आप किसी आदर्श के लिए संघर्षरत हों। यदि आप किसी आदर्श पर डट नहीं सकते तो आप जीतेंगे क्या?”- लेन कर्कलैंड

अच्‍छी बाते और अच्‍छे विचार


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स्‍वामी विवेकानंद जयंती (राष्‍ट्रीय युवा दिवस) पर एक प्रेरक प्रसंग




Swami Vivekananda
 
आज भारत के युवाओं के पथ प्रदर्शक महान दार्शनिक व चिंतक स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) की जयंती है, आज के दिन भारत में राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है। स्वामी जी बातें युवाओं में जोश और उम्मीद की नयी किरण पैदा करती है। युवाओं में आज के दौर मे जहाँ जिन्दगी खत्म होने जैसी लगती है वही स्वामी के साहित्‍यों के संगत में आकर एक नयी रौशनी का एहसास होता है। सन् 1893 में शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन 'पार्लियामेंट ऑफ रिलीजन्स' में अपने भाषण की शुरुआत उन्होंने 'बहनों और भाइयों' कहकर की। इस शुरुआत से ही सभी के मन में बदलाव हो गया, क्योंकि पश्चिम में सभी 'लेडीस एंड जेंटलमैन' कहकर शुरुआत करते हैं, किंतु उनके विचार सुनकर सभी विद्वान चकित हो गए।
 अमेरिका मे ही एक प्रसंग उनके साथ घटित होता है अक्सर हमारे साथ होता है कि विपत्ति के साथ माथे पर हाथ रख देते है किंतु विवेकानंद जी की जीवन की घटनाएं प्रेरक प्रसंग का काम करती है। प्रसंग यह था कि
अमेरिका में एक महिला ने उनसे शादी करने की इच्छा जताई, जब स्वामी विवेकानंद ने उस महिला से ये पूछा कि आप ने ऐसा ऐसा चाहती है ? उस महिला का उत्तर था कि वो स्वामी जी की बुद्धि से बहुत मोहित है और उसे एक ऐसे ही बुद्धिमान बच्चे की कामना है। इसलिए वह स्वामी से ये प्रश्न कि क्या वो उससे शादी कर सकते है और उसे अपने जैसा एक बच्चा दे सकते हैं?
स्वामी जी ने महिला से कहा कि चूँकि वो सिर्फ उनकी बुद्धि पर मोहित हैं इसलिए कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा प्रिये महिला, मैं आपकी इच्छा को समझता हूँ, शादी करना और इस दुनिया में एक बच्चा लाना और फिर जानना कि वो बुद्धिमान है कि नहीं, इसमें बहुत समय लगेगा इसके अलावा ऐसा हो इसकी गारंटी भी नहीं है कि बच्चा बुद्धिमान ही हो इसके बजाय आपकी इच्छा को तुरंत पूरा करने हेतु मैं आपको एक उपयुक्त सुझाव दे सकता हूँ.। आप मुझे अपने बच्चे के रूप में स्वीकार कर लें, इस प्रकार आप मेरी माँ बन जाएँगी और इस प्रकार मेरे जैसे बुद्धिमान बच्चा पाने की आपकी इच्छा भी पूर्ण हो जाएगी।
 निश्चित रूप से स्वामी जी जैसे व्यक्तित्व के बताये मार्ग पर चलना जरूरी है, ताकि भारत की गौरवशाली परम्परा पर हम अनंत काल तक गौरवान्वित हो सके।

स्वामी विवेकानंद पर अन्य लेख और जानकारियां


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अभिनंदन हे! मौन तपस्वी Abhinandan Hey Maun Tapasvi



अभिनंदन हे! मौन तपस्वी
अभिनंदन हे! मौन तपस्वी धीरोदात्त पुजारी!
तुम्हें जन्म दे धन्य हुई मां भारत भूमि हमारी!!
नव जीवन भर कर कण-कण में, बहा प्रेम रस धारा,
अमित राग मन में भर केशव साथर्क नाम तुम्हारा!
फिर बसंत की फूल रही है, आशा की फूलवारी…………
आज जागरण का स्वर लेकर मलियानिल के झोंके
प्रेम हृदय में भरते जाते कोटी कोटी सुमनों के
नव प्रभात हो रहा चतुदिर्क फैली फिर उजियारा ……।।१।। 
प्राची का मुख भी उज्ज्वल है केशव किरणें फैली
चला अंधेरा ले समेट कर अपनी चादर मैली
अंधकार अज्ञान ही त्यागी मिटी कालिमा सारी …………।। २।।
देव तुम्हारी पुण्य स्मृति में रोम रोम हषिर्त है
देव तुम्हारे पद पदमों पर श्रध्दांजलि अपिर्त है
केशव बन ध्रुव ज्योति दिखा दो जन मानस भवहारी…… ।।३।।


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नववर्ष के प्रथम शाम - एक यादगार वार्तालाप



सर्वप्रथम लोचको तथा आलोचकों को नववर्ष की बहुत बहुत बधाई व शुभकामनाएं, नवरात्रि के प्रथम दिन की संध्‍या पर नीशू तिवारी का फोन आया। बड़ी गर्मजोशी के साथ जयरमी हुई बधाईयों को आदान प्रदान हुआ और चर्चाओ और परिचर्चा को दौर भी शुरू हुई। हमारे और नीशू के बीच अत्यधिक आत्मीय सम्बन्ध होने के कारण हम सभी विषयों पर खुलकर चर्चा करने है। यह जरूर खेद जनक रहा कि वर्ष 2010 की जुलाई मे मेरे दिल्‍ली मे रहने पर वह व मिथलेश जी दिल्‍ली में मिलने नही आये और उस समय न मिल पाने का कारण मुझे दिसम्‍बर 2010 में मिथलेश जी के साथ लखनऊ में उनके आवास पर ठहरने पर पता चला, कारण मुझे जैसे पता चला वैसे ही मिथलेश जी जितनी फजीहत किया वो मिथलेश जी ही बता सकते है। फिर नीशू जी की बात आई उनका उनका फोन काफी समय से नही मिल रहा था और मैने मिथलेश जी से कहा कि नीशू जी से जैसे भी हो सूचित करे कि मेरे से बात हो, नीशू जी का 5-6 घन्‍टे के अंदर फोन आ गया। बात करते हुये पता चला कि एक दो दिन मे इलाहाबाद मे आ रहे है तो दिल्‍ली मे न मिलने के कारण पर इलाहाबाद मे ही चर्चा होगी, जब इलाहाबाद आये नीशू तो जब दिल्‍ली का जिक्र मैने किया तो वो भी मुँह बना कर रह गये और और मैने कहा कि अब कोई भी बात कभी होगी आप मेरे से जिक्र जरूर करोगे।

इसी तर्ज पर नीशू जी ने कहा प्रमेन्द्र भाई मै चाह रहा हूँ कि आप दो तीन महीने के अंदर जबलपुर घूम जाइये मिलने का बड़ा मन कर रहा है और मैने और तारा जी ने मुंबई जाने का प्लान बनाया है, हाल मे ही जबलपुर से मुम्बई के लिये हवाई सेवा भी प्रारंभ हुई है। मैने बीच मे ही बात काटते हुए कहा कि भाई दिसंबर में लखनऊ से लौटा हूं, जनवरी में ही आवश्यक काम से के लिए आगरा जाने के लिये घर मे अनुमति लेनी है और फरवरी में फिर से ही अन्‍य आवश्‍यक काम से मुरैना जाने के लिए लेनी होगी। और अब आप भी प्रवास के लिए कह रहे हो यदि ऐसा ही चलता रहा तो हमारे लिये स्थाई आवास की व्यवस्था आपको करनी पड़ेगी और रही वायुयान की यात्रा का प्रश्‍न तो मुझे ऐसा लगता है कि जिस दिन मै यात्रा करूँगा और वो उड़ेगा तो.......... इस बात से ही मै सहम जा रहा हूँ। नीशू जी ने कहा प्रमेन्द्र भाई ऐसा कुछ नहीं होगा, आप कार्यक्रम तो बनाइये।

अभी अभी प्रात: नवभारत पर एक खबर (स्‍क्रीन शॉट) देखा तो इसके बाद क्‍या कहा जाये - :)



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इस्लाम की शिक्षा मूर्ति तोड़ना पवित्र कार्य



आज हमारे पाठ्यक्रम की पुस्तकें और तथाकथित बुद्धिजीवी इस्लामी विचारधारा को उदारवादी बताने के लिए तर्क देते हैं कि जब मुसलमानों ने मंदिर और मूर्तियां तोड़ी थी तो वो केवल धन लूटना चाहते थे, इस्लाम तो एक शांतिपूर्ण संप्रदाय है। इनके पूर्वज इतिहास कार ऐसे दोगले नहीं थे। वो मूर्तियों और मंदिरों को तोड़ना इस्लाम की शान समझते थे क्योंकि उन्हें कुरान और मोहम्मद के आदेश भली भांति पता थे। अपने इन घिनौने कृत्यों को वो अपनी एक उपलब्धि और इस्लाम की सेवा के रूप में करते थे और गर्व अनुभव करते थे।
जिस समय महमूद गज़नी सोमनाथ के मंदिर की मूर्ति को तोड़ने लगा तो वहाँ के ब्राह्मणों ने उस से आग्रह किया कि इस मूर्ति के प्रति लाखों हिंदुओं की श्रद्धा है इसलिए इसे न तोड़े, इसके लिए ब्राह्मणों ने उसे अपार धन देने का प्रस्ताव रखा। किंतु महमूद ने उनके प्रस्ताव को ये कह कर ठुकरा दिया कि वो इतिहास में बुत शिकन (मूर्ती तोड़ने वाला) के नाम से प्रसिद्द होना चाहता है, बुत फरोश (मूर्ति व्यापारी) के नाम से नहीं। उसने पवित्र लिंगम के टुकड़े टुकड़े कर दिए और उन में से दो टुकड़ों को गज़नी की जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर फेंकने के लिए और दो को मक्का और मदीना की मुख्य गलियों में फेंकने के लिए भेज दिया ताकि जब मुसलमान वहाँ से जाएँ तो उन टुकड़ों को अपने पैरों से रौंदते हुए जाएँ। तारीख - ऐ - फ़रिश्ता - १, पृष्ठ ३३ 

उस समय का इतिहासकार अल बेरुनी लिखता है:-
महमूद ने सन १०२६ में मूर्ति को नष्ट किया। उसने मूर्ति के ऊपरी भाग को तोड़ने का आदेश दिया और बचे हुए को, जिस में सोना, आभूषण और सुन्दर वस्त्र चढ़े हुए थे। इस का कुछ भाग, चक्रद्वामी की मूर्ति जोकि कांसे से बनी थी और थानेसर (स्थानेश्वर) से लायी गयी थी, नगर के घोड़ों के मैदान में फेंक दी गयी। सोमनाथ से लायी मूर्ति का एक टुकड़ा गज़नी की मस्जिद दे द्वार पर पड़ा है, जिस पर अपने पांवों की मिट्टी और पानी साफ़ करते हैं।
अल बेरुनी - २, पृष्ठ १०३, खंड - १, पृष्ठ ११७
चलिए देखें कि औरंगज़ेब मूर्तियों के साथ क्या करता था। उस के जीवन से सम्बंधित मासिर - इ - आलमगिरी के अनुसार:-
जनवरी १६७० में, संप्रदाय के शंशाह ने मथुरा के मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया। भारी श्रम का के, उस के अधिकारियों ने कुछ ही समय में कुफ्र के उस घर का नाश कर दिया। उसके स्थान पर एक विशाल मस्जिद का निर्माण किया गया। छोटी और बड़ी मूर्तियां, जिन में मूल्यवान आभूषण जड़े थे और जो इस मंदिर में स्थापित थीं, आगरा ले आयी गयीं और बेगम साहिब की मस्जिद (जहानारा मस्जिद) की सीढ़ियों के नीचे दबा डि गयीं ताकि इमानवालों के पैरों तले रौंदी जाती रहें। मथुरा का नाम इस्लामाबाद रख दिया गया।
उल्लेखनीय है कि इस मंदिर का नवीनीकरण राजा वीर सिंह बुंदेला ने उस काल में ३३ लाख रुपये से करवाया था।
सिकंदर लोदी के समकालीन और उस के बाद के इतिहासकार बताते हैं कि सिकंदर लोदी ने हिन्दू मंदिरों की मूर्तियां तोड़ कर उनके टुकड़े मुसलमान कसाइयों को माँस तोलने के लिए दिए थे। जब वो एक राजकुमार था, तब उसने थानेसर (कुरुक्षेत्र) में हिंदुओं के स्नान पर्व पर निषेध की इच्छा जताई थी और सूर्य ग्रहण पर एकत्रित हिन्दुओं का वध करने की आज्ञा दी थी लेकिन उसे स्थगित कर दिया था। मथुरा और अन्य कई स्थानों पर हिन्दू मंदिरों को मस्जिदों और मुसलमान सरायों में परिवर्तित कर दिया था। कुछ मंदिरों को मदरसे और बाज़ार बना दिया था।

तारीख - ऐ - दौड़ी पृष्ठ ३९, ९६-९९। मख्जान - ऐ - अफगाना पृष्ठ ६५-६६, १६६। तबकात - इ - अकबरी पृष्ठ ३२३, ३३१, ३३५-३६। तारीख - ऐ - फ़रिश्ता - १, पृष्ठ १८२, १८५-८६। तारीख-इ-सलातीन-इ-अफगाना पृष्ठ ४७, ६२-६३
इतिहासकार शम्स सिराज अफिफ, जिसने सुलतान के साथ होने के कारण ऐसी घटनाएं देखी थी, मोहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक के लिए लिखता है: 
इन्हें ईमानदार मुसलमानों में से अल्लाह ने खासतौर से चुना है, इन्होने अपनी सल्तनत में जहां भी मंदिर और मूर्तियां देखीं, उन्हें तोड़ दिया।
Elliot and Dowson, Vol। 3, pp - 318
फिरोज तुगलक को इस घृणित कार्य के लिए किसी और की प्रशंसा की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि वो अपने इस पवित्र कार्य का वर्णन अपने शब्दों में इस प्रकार कर रहा है:
जहां भी काफिर और मूर्ति पूजक (मुशरिक) मूर्ति पूजा करते थे, वहाँ अल्लाह के रहम से अब मुसलमान सच्चे अल्लाह की नमाज़ करते हैं। मैंने काफिरों की मूर्तियों और मंदिरों को नष्ट कर के उनके स्थान पर मस्जिदें बना दी हैं।
तारीख ऐ फ़िरोज़ शाही (ELLIOT & DOWSON VOL।3, PP 380)
मुसलमानों द्वारा गर्व से लिखे गए उनके शब्द यहाँ बताने का उद्देश्य भारतवासियों को ये दिखाना है कि किस प्रकार एक आसुरी प्रवृति ने हमारे पूर्वजों पर अन्याय किया था। मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ने का उद्देश्य था हिंदुओं को नीचा दिखाना और उनका मनोबल तोड़ना। हिन्दू सभ्यता पर ये अत्याचार इतिहास के पन्नों से मिटा दिया गया है।
ये सब आसुरी शासक वही सब कर रहे थे जो बारहवीं सदी के अंत में दिल्ली पर विजय प्राप्त करने वाले सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक ने किया था। उसने सबसे पहला जो आदेश दिया वो था भव्य निर्माण का ताकि नए जीते गए लोगों पर धाक बैठाई जा सके। भवन निर्माण को मुसलमान राजनैतिक शक्ति और विजय का प्रतीक मानते थे। जो पहले दो निर्माण उन्होंने किये वो थे क़ुतुब मीनार और मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम। इस मस्जिद का निर्माण ११९५ में आरम्भ हुआ और इसे बनाने में २७ हिन्दू और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया।
यहाँ दो तथ्य ध्यान देने योग्य हैं, पहला तो जो इस मस्जिद का नाम है कुव्वत उल इस्लाम उस का अर्थ है इस्लाम की शक्ति। दूसरा कि इसके लिए २७ हिन्दू और जैन मंदिरों की सामग्री का उपयोग किया गया है, ये आज भी वहाँ फ़ारसी में शान से लिखा हुआ है।
क़ुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुद्दीनऐबक के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा किया और इसमें भी वैसी ही सामग्री का प्रयोग है। नक्काशी किये हुए पत्थरों को बिगाड़ कर अथवा उन्हें उल्टा लगा कर इस का निर्माण किया गया है।


इन के निर्माण के लगभग १२५ वर्ष पश्चात जब इब्न बतूता नामक यात्री भारत आया तो वो मस्जिद कुव्वत उल इस्लाम के संबंध में लिखता है:
पूर्वी द्वार के पास दो विशाल मूर्तियां पड़ी हैं जो ताम्बे से निर्मित हैं और पत्थरों के द्वारा परस्पर जुड़ी हैं। हर कोई आने जाने वाला इन पर पाँव रख कर जाता है। इस मस्जिद के स्थान पर एक बुतखाना (मंदिर), अर्थात मूर्ति घर था। दिल्ली की फतह के बाद इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया गया।
Ibn Battutah, p। 27; Rizvi Tughlaq Kalin Bharat, vol। I, p। १७५
ये जो गिनी चुनी घटनाएं यहाँ प्रस्तुत की हैं, ऐसी ही दुःख और बेबसी से भरी घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है। इन घटनाओं में कहीं ऐसा प्रतीत होता है कि ये दरिंदगी से भरे कृत्य धन के लोभ में किये गए थे। लेकिन यदि आप सरकारी पदों और विश्वविद्यालयों पर आसीन इतिहासकारों से इस विषय में पूछेंगे तो उन्हें ये घटनाएँ या तो दिखाई नहीं देती अथवा वो हिंदुओं द्वारा किये गए घृणित कार्यों की दुहाई देने लगते हैं। लेकिन उन से इस के प्रमाण मांगो तो वो उनके पास नहीं होते।

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ठंडे पानी से स्‍नान की बात ही कुछ और है ....



ठंडी मे जो मजा ठंडे पानी नहाने का वह गर्म पानी से नही, अभी 10 मिनट पहले नहाया हूँ, नहाने के बाद ठंड नाम की कोई चीज लग ही नहीं रही है। दो वर्ष पूर्व घर मे ही किसी ने कहा कि माघ मास में गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए जो पानी सामान्य तरीके से प्राप्त हो उसी से नहाना चाहिए।
Kumbh Mela Shahi Snan

माघ मास में प्रयागराज (इलाहाबाद) मे लाखो करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते है और गंगा मां के आंचल में स्नान करते है। माघ मास के सन्दर्भ में पौराणिक माहात्म्य का वर्णन किया गया है कि व्रत दान व तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी माघ मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान मात्र से होती है।चूंकि यह भी कहा जाता है कि यह ऐसा पुण्य मास होता है कि आपको जहाँ भी उपलब्ध जल मिला वह गंगा जल की भांति पुण्य दायक होता है।

मै तो कहूंगा कि जिनको ठंड ज्यादा लगती है वो ठंडे पानी से प्रातः: 6 बजे तक स्नान आदि कर ले, ठंड तो उन्हें लगेगी नहीं और माघ मास में स्नान से मिलने वाले पुण्य से भी वो लाभान्वित होते रहेंगे। :)


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मनमोहन की हठ - जेपीसी नही पीसीए



2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन विवाद संसद क्या रुकी प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि संसदीय प्रणाली खात्मे की ओर है। कांग्रेस भी करीब 10 साल विपक्ष की भूमिका मे रही है और उसने भी सरकार के समक्ष विपक्ष की भूमिका निभाई है किन्तु भ्रष्टाचार में लिप्त यूपीए सरकार ने जिस प्रकार विपक्ष की जेपीसी की मांग को खारिज कर रही है उससे तो यही प्रतीत होता है कि वाकई सरकार पर दाग गहरे है। आज जनता जानने को उत्सुक है कि अ‍ाखिर क्यो सोनिया ने कहा कि जेपीसी नहीं है, तो मनमोहन का कहना भी स्वाभाविक है कि जेपीसी नही, किन्तु आज सरकार सबसे बड़ी बात यह बताने में विफल रही कि जेपीसी क्यो नही है? आखिर क्या बात है कि यह वही प्रधानमंत्री है जो कि लोक लेखा समिति पीएसी के समक्ष हाजिर होने के तैयार हो जाते है किन्तु जेपीसी के सामना नही करना चाहते है।
जहाँ तक निष्‍पक्षता की बात आती है तो पीएसी को तो लोकसभा के अध्‍यक्ष की अनु‍मति के बिना मंत्रियों को भी बुलाने का अधिकार नहीं है प्रधानमंत्री की बात ही दूर है प्रधानमंत्री लाख पीएसी के समक्ष उ‍पस्थित होने की बात कहे किन्‍तु बिना लोकसभा अध्‍यक्ष की अनुमति के बिना पीएसी के अध्‍यक्ष उन्‍हे बुला नही सकते। मनमोहन की पीएसी के समक्ष जाने की जिद्द तो यही कहती है कि छोटा बच्‍चा मोतीचूर के लड्डू के लिये कर बैठता है चाहे उसे कितनी ही कीमती सामान न दो वो उसी लड्डू के लिये के लिये ही हठ किये बैठा रहेगा। अगर प्रधानमंत्री को लगता है कि पीएसी ही उचित मंच है तो मनमोहन जी को चाहिये कि पीएसी के समक्ष उपस्थित होने की क्‍या जरूरत है जरूरी है कि एक पंचायत बुला ले जो पंच कह देगे वही मान्‍य होगा।


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भाजपा के प्रदेश दफ्तर मे अमर उजाला का चाटुकार पत्रकार



लखनऊ यात्रा के दौरान एक दिन भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर जाना हुआ। साथ में एक सम्मानित पत्रकार थे जिन्‍होने कही कि चल कर कुछ मित्र नेताओं की फोटो ले लिया जाये। मैने भी हामी भर दी, जब वहाँ पहुँचे तो भाजपा के बड़े नेता ने उन पत्रकार महोदय ये पूछा कि महोदय यह क्या करवा रहे है? (मजाकिये लहजें) उन पत्रकार महोदय ने कोई उत्तर न दिया मेरे मुँह से निकल आया कि सर अपने मोस्‍ट वॉन्‍टेड के चित्र संग्रह कर रहे है। हल्की सी मुस्कान के साथ बात खत्म हो रही थी किन्तु वहाँ उन नेताजी के साथ घूम रहे एक अमर उजाला के पत्रकार उम्र करीब 30 की रही होगी, मेरी बात उनको बहुत खराब लग गई।
नेताजी के सामने अपना कद और मै नेताजी का हितैषी हूँ साबित करने के लिये तपाक से मेरे से बोले कि तमीज से बात करो, जान नहीं रहे हो कि किससे बात कर रहे हो।
मैने भी उनकी तमीज उनके मुँह पर दे मारी और बोला कि अपनी लमीज अपने पास रखों और ये देखो की बात का माहौल किस लहजे का है।
फिर उनको अपनी चटुकारिका की पत्रकारिता का दम्भ दिखा और बोले कि फोटोग्राफर हो, फोटोग्राफर की तरह रहो।
मैने भी बोल दिया कि जिस हद(चाटुकारिता) की पत्रकारिता कर सकते तो तुम वही कर रहे हो, और जब किसी को फोटोग्राफर कभी लेकर टहल सकना तो किसी को फोटोग्राफर कहना।
उसने कहा कि तुम हो कौन ?
इसी बीच मामला गंभीर होता जा रहा था, हमारे साथ के वरिष्ठ पत्रकार ने हस्तक्षेप करते हुए, मेरा परिचय दिया कि फला मेरे मित्र है और इलाहाबाद से आये और अधिवक्ता है मेरे आग्रह पर कुछ चित्र लेने चले आये।
यह बात सुनकर अमर उजाला के चाटुकार का चेहरा मुझे घूरे जा रहा था पता नहीं क्यों ? और हम वहाँ से मंद मंद मुस्करा दिये और अपने काम को संपन्न कर वहाँ से चल दिये पर वो अभी तक मुझे देख रहा था।
मेरे मन ने मन ही मन में कहा कि वाह पत्रकारिता (चाटुकारिता)


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एक कुत्ते की बात



आज से दो दिन पहले मे गेट से बाहर निकला तो एक कुत्ता काटने को दौडा, और मै किसी प्रकार पहले बचाव किया, फिर जैसे ही उसी मारने के लिये ईट उठाने की कोशिश की तो वो फिर काटने को दौड़ा पर मैने भी किसी प्रकार से दो ईट उठा ली और उससे दो-दो हाथ खड़ा हो गया। मैने ईट उसके पेट में मारने की कोशिश की तो पता नहीं कैसे अपना सिर बीच मे ले आया और ईट उसके सिर पर जाकर ठीक से लगी, जैसे ही उसे ईंट लगी कुत्ते की सारी बकैती ऐसे गायब हुयी जैसे गधे के सिर से सींग और ऐसा भागा कि जब तक की आँख से ओझल न हो गया।
मेरी ईंट उसके सिर पर लगने का अफसोस था क्योंकि जानवरों के सिर पर चोट लगने से वो बच कम पाते है पर उसे ईंट लगने पर खुली चोट नहीं लगी थी इसी से मुझे थोड़ी तसल्ली थी। वह दो दिन से गायब रहा मुझे चिंता हो रही थी कि वो कहीं मर न गया हो। जब यह बात मैंने भैया को बताई तो भैया ने हंसते हुए कहा कि चोट दिमाग पर लगी है तो कहीं याददाश्त न भूल गया हो।

 
कल रात्रि वह कुत्ता मुझे फिर दिखा और एक टकटकी निगह से मुझे फिर देख रहा था, भौका भी नही। अचानक मैने जैसे ही एक ईट का टुकड़ा उठाने की कोशिश की वह उसी रफ्तार से भागा जैसे उस दिन भागा था और तब तक भागता रहा जब तक की आखो से ओझल न हो गया। मुझे यकीन हो गया कि वह ठीक और उसकी याददाश्त भी नही खोई। :)


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कहाँ है सेक्‍यूलर रूदालियाँ और मीडिया - बांग्लादेश में उपद्रवियों ने काली मंदिर तोड़ा



हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। वहां हिंदू विरोधी माहौल बनता जा रहा है। बांग्लादेश में हिंदुओं के पवित्र पूजा स्थलों पर हमले हो रहे हैं। रविवार की सुबह देश की राजधानी ढाका में बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के उपद्रवी सदस्यों ने रंगदारी वसूलने के मामले में विवाद बढ़ने पर ऐतिहासिक रामना काली मंदिर को तोड़ दिया।




मंदिर टूटने से बांग्लादेशी हिंदुओं में नाराजगी है। हालांकि, बांग्लादेश में हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों और त्योहारों पर हमले का मामला नया नहीं है। कुछ हफ्तों पहले दुर्गा पूजा के दौरान भी कई हिंदुओं पर हमले की बात सामने आई थी। वहीं, इस साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भी शाम तक ही पूजा खत्म करने के सरकार के आदेश से भी हिंदुओं को ठेस लगी थी। लीग पर आरोप है कि इसके कार्यकर्ताओं ने रामना मंदिर इलाके में दो मूर्तियों को तोड़ डाला और आसपास की दुकानों में तोड़फोड़ मचा दी।
बांग्लादेश में हिंदुओं के दमन पर एमनेस्टी इंटरनेशनल भी चिंतित है। एमनेस्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनल पार्टी के समर्थकों द्वारा अक्टूबर के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं। इसकी वजह है कि नेशनल पार्टी के समर्थकों को लगता है कि हिंदू अवामी लीग का समर्थन कर सकते हैं। एमनेस्टी ने इसके लिए बांग्लादेश सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि हिंदुओं पर हमले करने वाले लोगों को सज़ा भी नहीं मिल रही है।
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। देश की आबादी पंद्रह करोड़ है जिसमें करीब 8 फीसदी हिंदू हैं और अन्य बौद्ध, ईसाई और आदिवासी हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और दमन का असर उनकी आबादी पर भी देखा जा सकता है। बांग्लादेश में हिंदुओं की तादाद लगातार घटती जा रही है। बांग्लादेश में 1941 में हिंदुओं की आबादी जहां 28 फीसदी थी वही 1991 में घटकर 10.5 फीसदी हो गई। हिंदुओं की आबादी 1961 से 1991 के बीच करीब 8 फीसदी घट गई।
एक आकलन के मुताबिक 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में करीब 30 लाख हिंदुओं का हत्या हो चुकी है। डॉ. सब्यसाची घोष दस्तीदार की किताब 'इंपायर्स लास्ट कैजुअलटी' में दावा किया गया है कि हिंदुओं के इस्लामीकरण के चलते इनमें से ज्यादातर हत्याएं हुईं।
बांग्लादेश में आज हिंदुओं के सामने न सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था को बचाए रखने की चुनौती है बल्कि उन्हें नरसंहार, अपहरण, फिरौती, रंगदारी, सार्वजनिक तौर पर अपमान जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। किताब में कहा गया है कि बांग्लादेश में हिंदू जजों, पेशेवर लोगों, अध्यापकों, वकीलो और सिविल सर्वेंट को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि बांग्लादेश में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लड़के हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनसे जबरदस्ती शादियां कर रहे हैं।


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संपादक महोदय अमित मतलब अमिताभ बच्चन ही नहीं होता



आज विश्व के सबसे बड़े हिन्‍दी समाचार पत्र दैनिक जागरण के वेबको देख कर चौंक गया कि गुजरात के ब्रांड एंबेसडर अमिताभ की फोटो गुजरात के पूर्व गृह मंत्री की जगह लगा दिया, ऐसे विश्व स्तरीय समाचार पत्र से ऐसी त्रुटि की उम्मीद नही ही की जा सकती।


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इलाहाबाद हाई कोर्ट मे पहला दिन



नवरात्रि पर्व की पंचम, दिन मंगलवार आंग्ल तिथि के अनुसार 12 अक्टूबर को आज एक अधिवक्ता के रूप-वेश मे कोर्टरूम में प्रथम दिन था। एक लिहाज से बहुत अटपटा लगा रहा था, क्योंकि यह वेश थोड़ा नया प्रतीत हो रहा था। लेकिन कोर्ट परिसर में मेरे सीनियर और पिताजी के जूनियर्स के बीच हमारी अच्छी आव-भगत और उसका पूरा आर्थिक बोझ लंच हमारे भैया पर पड़ा।
एक लिहाज से पहला दिन बहुत अच्‍छा रहा मुख्‍य न्‍यायधीश कोर्ट मे तालाबंदी थी पता चला कि सीजे लखनऊ मे है। कुछ कोर्ट बैठी थी तो कुछ नही बैठी इसी के साथ उच्‍च न्‍यायालय का दशहरा अवकाश भी प्रारम्‍भ हो गया। प्रात कोर्ट जाने के पूर्व घर मे बड़ो के आशीर्वाद लेकर मंदिर मे प्रसाद के लिये गया और वही पर अपने एक अन्‍य अधिवक्‍ता मित्र जो कि लखनऊ मे उनसे भी बात किया, फिर प्रसाद लेकर अपने दोस्‍तो के घर पर उनके माता-पिता का आशीर्वाद लेने गया।

व्‍यस्‍ताओ के मध्‍य बहुत कुछ काम जो मै नेट पर करना चाहता था किन्‍तु नही कर सका, इधर वर्धा की रिर्पोटो की आज फोटो सुरेश जी के ईमेल से मिली तो याद आया कि मै कुछ बाते भेजना चाह रहा था लेकिन वो भी भूल गया, कार्यक्रम मे सुरेश जी खुश‍ दिख रहे है तो लगता है कि सब अच्‍छा ही हुआ है, सफल कार्यक्रम की सिद्धार्थ जी व अन्‍य आयोजको को बहुत शुभकामनाऍं। अब तक ब्‍ल‍ागिंग की पारी देख रहा था आज से नयी पारी स्‍टार्ट की है चाहूँगा कि उनमे नये मुकामो को छूऊ।

शेष फिर


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महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक



The Great Indian Freedom Fighter Lokmanya Bal Gangadhar Tilak
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
भारत के महान स्‍वातंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने देश सेवा तथा समाज सुधार का बीड़ा बचपन में ही उठा लिया था। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को हुआ था। पहले उनका नाम बलवंत राव था। वे अपने देश से बहुत प्यार करते थे। उनके बचपन की एक ऐसी ही घटना है, जिससे उनके देशप्रेम का तो पता चलता ही है, साथ ही यह भी पता चलता है कि छोटी-सी अवस्था में ही तिलक में कितनी सूझ-बूझ थी।

बाल गंगाधर तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।

उस समय भारत अंगरेजों का गुलाम था, लेकिन देश में कुछ व्यक्ति ऐसे भी थे, जो उनकी गुलामी सहने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने छोटे-छोटे दल बनाए हुए थे, जो अंगरेजों को भारत से बाहर निकालने की योजनाएं बनाते थे और उन्हें अंजाम देते थे। ऐसा ही एक दल बलवंत राव फड़के ने भी बनाया हुआ था। वह अपने साथियों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देते थे, ताकि समय आने पर अंगरेजों का डटकर मुकाबला किया जा सके। गंगाधर भी उनके दल में शामिल हो गए और टे्रनिंग लेने लगे। जब वह अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में सिध्दहस्त हो गए, तो फड़के ने उन्हें बुलाया और कहा कि अब तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हुआ। तुम शपथ लो कि देश सेवा के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर दोगे। इस पर गंगाधर बोले, 'मैं आवश्यकता पड़ने पर अपने देश के लिए जान भी दे सकता हूं, लेकिन व्यर्थ में ही बिना सोचे-समझे जान गंवाने का मेरा इरादा नहीं है। अगर आप यह सोचते हैं कि केवल प्रशिक्षण से ही अंगरेजों का मुकाबला हो सकता है, तो यह सही नहीं है। अब तलवारों का जमाना गया। अब बाकायदा योजनाएं बनाकर लड़ाई के नए तरीके अपनाने होंगे।' यह कहकर गंगाधर तेज कदमों से वहां से चले आए। फिर उन्होंने योजनाबध्द तरीके से देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी।
Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Indian Freedom Fighter
  तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए। वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंने हिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। महाराष्ट्र में उन्होंने सार्वजनिक गणेश पूजा की परम्परा प्रारम्भ की ताकि लोगों तक स्वराज का संदेश पहुँचाने के लिए एक मंच उपलब्ध हो। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई। उनके निधन पर लगभग 2 लाख लोगों ने उनके दाह-संस्कार में हिस्सा लिया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया।


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Allahabad High Court Judgement on Ayodhya सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज



इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तीन जजों की बेंच ने अयोध्या मामले में सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज 2-1 से खारिज, हाई कोर्ट ने कहा-मंदिर तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद।

सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज
  • लखनऊ बेंच के तीन जजों की बेंच ने 2-1 सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड का दावा खारिज किया।
  • सुन्नी वक्फ बोर्ड का दावा खारिज कर दिया गया है।
  • जजमेंट में यह भी कहा गया है कि मंदिर तोड़कर बनाई गई थी मस्जिद।
  • जहां रामलला विराजमान हैं वही राम जन्मभूमि है।
  • जमीन 3 भागों में बांटी जाएगी।
  • जहां रामलला विराजमान हैं वह और आसपास की जमीन मंदिर को दी जाएगी।
  • एक तिहाई जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड को।
  • एक तिहाई निर्मोही अखाड़ा को। इसमें राम चबूतरा और सीता रसोई भी शामिल है।
  • जहां रामलला विराजमान हैं वह स्थान मंदिर को।
  • कोर्ट ने यह माना कि विवादित स्थान पर मूर्ति बाहर से रखी गई थी।
  • मंदिर बनने और पूजा करने पर कोई रोक नहीं।
  • कोर्ट ने 3 महीने तक यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा है।
  • मंदिर तोड़ कर बनाई गई थी मस्जिदः हाई कोर्ट
  • राम लला परिसर देव परिसर है - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • राम का जन्‍मस्‍थान है आयोध्‍या - न्‍यायमूर्ति खान
  • पूरा परिसर मिले राम को - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • विवादित स्थल को राम का जन्म भूमि बताया - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • विवादित भवन का निर्माण बाबर ने किया था, लेकिन कब करवाया था इसकी जानकारी नहीं - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • विवादित स्थल पर जो ढांचा बना है वो पुराने ढांचे के ऊपर बनाया गया था। इसमें शिव जी की मूर्ति मिली थी, इसके सबूत भी मिल चूके है। - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • 22 व 23 दिसंबर 1949 को विवादित स्थल पर रात में मूर्तियां रखी गई थी। - न्‍यायमूर्ति शर्मा
  • बाबर के आज्ञा के अनुसार ही विवादित स्थल पर मस्जिद बनाई गई थी- न्‍यायमूर्ति खान
  • गवाहों या सबूतों से यह साफ नहीं होता कि विवादित ढांचा बाबर या किसी और व्यक्ति के अंतर्गत बनवाई गई थी- न्‍यायमूर्ति खान
  • मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को ध्वस्त नहीं किया गया था- न्‍यायमूर्ति खान
  • मस्जिद का निर्माण होने के बहुत समय पहले वहां मंदिर था जो खंडहर हो चुका था और इसलिए उस मंदिर के खंडहर की सामग्री मस्जिद बनाने में उपयोग में लाई गई थी- न्‍यायमूर्ति खान
  • विवादित स्थल के बड़े भूभाग के बारे में हिंदूओं का मानना था कि इस बड़े भूभाग में कोई छोटा सा हिस्सा है जो भगवान राम का जन्म स्थल है। जबकि यह विश्वास विवादित स्थल के किसी भी हिस्से सें संबंधित नहीं है विशेषकर उस विवादित हिस्से से तो बिलकुल नहीं- न्‍यायमूर्ति खान
  • मस्जिद के निर्माण के बाद हिंदूओं को पता चला कि यह वही स्थान है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था- न्‍यायमूर्ति खान
  • सन 1855 से बहुत पहले राम चबूतरा व सीता रसोई वहां पर अस्तित्व में था और लोग इसकी पूजा करते थे । यह बड़ी अजीबो गरीब स्थिति है कि मस्जिद के कंपाउंड के अंदर हिंदूओं का धार्मिक स्थल है और वहां मुस्लिम नमाज अदा करते हैं- न्‍यायमूर्ति खान
  • उपरोक्त सार के अनुसार दोनों समुदायों हिंदूओं और मुस्लिमों को संयुक्त कब्जा होना चाहिए- न्‍यायमूर्ति खान
  • सन 1949 से दशकों पहले हिंदूओं का विश्वास था कि मस्जिद के गुंबद के ठीक नीचे भगवान राम का जन्म हुआ था- न्‍यायमूर्ति खान
  • 23 दिसबंर 1949 में पहली बार मस्जिद के गुंबद के नीचे भगवान की मूर्तियां रखी गई- न्‍यायमूर्ति खान
  • यह सब देखते हुए दोनों समुदायों को विवादित स्थल पर संयुक्त कब्जा दे दिया गया है। तथा गुंबद के नीचे का स्थान जो श्रीराम का जन्म स्थल माना गया है वह भी हिंदूओं को दे दिया गया है - न्‍यायमूर्ति खान


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क्‍या मिलता है फोन पर परेशान करने से?



कल मेरे बी एस एन एल वाले नंबर पर एक कॉल आया मैंने काल लिया तो कोई नहीं बोला करीब 20-25 सेकंड के बाद कॉल काट दिया। फिर मैंने भाई के नम्बर से उसी नंबर पर डायल किया तो एक-दो सेकंड में कॉल रिसीव करके काट देता था।

उन महोदय का नंबर भी 9415480643 बी एस एन एल का है, माना कभी गलती से नंबर लग जाता है किन्तु इस प्रकार किसी को काल परेशान करना ठीक नही, पता नही ऐसे लोगों को मजा क्या मिलता है?


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भगवा को गाली देते कांग्रेसी



क्‍या आतंक का कोई रंग हो सकता है ? भारत के केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने जिस प्रकार आतंक के रंग को व्याख्या की है वह न सिर्फ निंदनीय है अपितु धार्मिक उन्माद भड़काने वाला भी है। जिस व्यक्ति के हाथ मे देश की आंतरिक सुरक्षा हो वह व्‍यक्ति स्वयं अराजकता फैला रहा हो, उस व्यक्ति के खिलाफ नैतिकता तो यही कहती है कि प्रधानमंत्री इस्तीफा मांगे अन्यथा मंत्री को बर्खास्त कर देना चाहिये। इस विषय पर प्रधानमंत्री का मौन पूरे कैबिनेट के द्वारा गृह मंत्री के बयान को मौन स्वीकृति प्रदान कर रहा है। आखिर कब तक इस देश के हिन्दू समाज को उकसाया जाता रहेगा ? कि वह ईंट का जवाब पत्थर से दे जिस प्रकार गोधरा के बाद गुजरात हुआ।

गृहमंत्री को भगवा शब्‍द के उपयोग से पहले भगवा के गौरवशाली इतिहास को भी पढ़ना चाहिये था, क्‍योकि चिदंबरम जैसे लोगो को क्‍या पता है कि वास्‍तव मे भगवा का महत्‍व हिन्‍दु धर्म के किस तरह महत्‍व रखता है। जिस भगवा की पताका हर घर मे पूजा के समय छत पर पहराई जाती है, यही भगवा पताका थी तो महाभारत के युद्ध मे रथो पर पहरा रही थी, यह वही रंग जो आज भी भारत के राष्‍ट्रीय ध्‍वज मे विद्यामान है। आज कांग्रेस सरकार बहुत मत मे है उसे लगता है कि भगवा रंग आतंक का पर्याय है तो अवलिम्ब संविधान संशोधन करके राष्‍ट्रीय ध्‍वज मे से भगवा रंग को निकलवा देना चाहिये क्‍योकि वास्‍वत मे यह ध्‍वज भी भगवा अंश लेने के कारण आतंक का पर्याय हो हरा है।
वास्‍तव मे भारतीय संस्कृति के प्रतीक भगवा रंग को आतंकवाद से जोड़कर कांग्रेस गठबंधन सरकार द्वारा मुस्लिम तुष्ठिकरण नीति का पालन कर प्राचीन संस्कृति को बदनाम करने का कुचक्र रचा जा रहा है। जहाँ तक कांग्रेस के ‘भगवा आतंकवाद’ कहे जाने का सवाल है तो हकीकत यह है कि कांग्रेस वास्तविक आतंकवादियों का बचाने के लिए यह प्रचारित कर रही है। यह कांग्रेस आस्तिनो मे सॉप पाल रही है तो जो देश भक्त है उन्‍हे आतंकवादी धोषित कर रही है। निश्चित रूप से कांग्रेस का यह कृत्‍य हिन्‍दु समुदाय कभी नही भूलेगा और निश्चित रूप से हिन्‍दुओ को आपमानितक करने का परिणाम उसे भोगना ही पड़ेगा।


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बिनु हनुमाना न पूर्ण होई राम काजा



अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर जल्द बने इस हेतु सम्पूर्ण भारत वर्ष में हनुमत शक्ति जागरण अभियान का आयोजन हो रहा है। इस आयोजन में 16 अगस्त से 19 नवंबर के मध्य संपूर्ण भारत मे हनुमंत जागरण पाठ किया जाएगा और हर हिन्‍दुस्‍थानी के घर पर हनुमान चालीसा का वितरण भी किया जाएगा। निश्चित रूप से इस अभियान से एक आंदोलन तो होगा ही साथ ही साथ भक्ति आंदोलन का भी आगाज होगा। यह भक्ति आंदोलन 19 नवम्बर तक चलेगा। इसके तहत देश के करीब तीन लाख गांवों के मंदिरों में हनुमान चालीसा का पाठ किया जाएगा। इस कार्यक्रम में करीब 8 करोड़ लोग शामिल होंगे।

 

आप भी इस अभियान से जुड़े और इस कार्यक्रम को सफल बनाये


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विभूति नारायण की कहानी पत्रकारिता के चौपट पत्रकारों की जुबानी



कितना अच्छा लगता है न जब नारी को छिनार बनाने वाले लोग ही किसी विशेष परिस्थिति में नारी को छिनार कहे जाने पर विरोध करें, ऐसे ही कुछ मीडिया के महानुभाव लोग "छिनार मुक्ति मोर्चा" का गठन किये हुये है। जब तक स्‍वयं छिनार बनाओ आंदोलन छेड़ा हुआ था तब तक तो ठीक था किन्तु जब किसी ने वर्तमान परिदृश्य को छूने की कोशिश की तो यह बुरा लगने वाला प्रतीत हो रहा है।
आज की जो परिस्थिति है वह बहुत ही निंदनीय और सोचनीय है, आज मोहल्ला ब्लॉग समूह बड़ी तेजी से विभूति नारायण को कुलपति पद से हटवाने के पीछे पड़ा हुआ है। यह वही मोहल्ला है जिसने पूर्व के वर्षों में अपनी गंदगी से काफी समय पूर्व तक बदबू फैला हुआ था, ऐसा है मोहल्ला जहाँ की सड़ांध से लोग दूर भागते फिरा करते है।
बात यहाँ विभूति की नही है बल्कि बात यहाँ उनके कुलपति के पद की है, अगर विभूति नारायण कुलपति न होते तो शायद ही इतना बड़ा मुहिम उनके खिलाफ चलाया गया होता। व्‍यक्ति की अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता भी कुछ होती है और उस व्‍यक्ति ने पिछले कुछ समय से कुछ ऐसी महिलाओ को कहा जो अनर्गल लेखन का सहारा ले रही है। यदि इस देश मे फिदा हुसैन जैसे लोगो को अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता का अधिकार है कि हिन्‍दुओ के आराध्‍यों के नग्न चित्र बनाया जा सकता है किन्‍तु अन्‍य व्यक्ति मर्मस्‍पर्सी भावनाओ को अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता नही कहा जा सकता है। अब कुछ ऐसे महानुभाव लोग यह कहते है कि अब अगर मकबूल फिदा हुसैन हिंदू को पेंटिंग में नहीं, इंटरव्‍यू में गाली देते तो उनका भी शर्तिया विरोध होता इसी प्रकार के विचित्र प्राणी भी इसी धरा पर विराजते है यह आज पता चला, कि दोहरे मापदंड ऐसे निकाले जाते है।
यह किसी को इसलिये पेंट मे दर्द नही हो रहा कि पिछले कुछ वर्षो की कुछ लेखिकाएँ छिनार हो गई अपितु पेंट के दर्द का असली कारण यह कि है कोई संवैध‍ानिक दायित्‍व(कुलपति) पर बैठा व्‍यक्ति कैसे यह कह सकता है, इसका सारा अधिकार तो मोहल्‍ला के पत्रकारो का ही कि वो किसे छिनार बोलवाये और किसे नही, क्‍योकि पत्रकार बन्‍धु लोग तो पत्रकारिता की छात्राओं के साथ छेड़खानी करते है तो किसी नार‍ी के दामन दंगा न ही होता अपुति उस समय पत्रकार उसी शोभा मे चार चांद लगाने का प्रयास कर रहा होता है।
बात यहाँ विभूति नारायण की नही है बात यहाँ महात्मा गांधी विश्वविद्यालय में अपनी दाल गलाने की, पूर्व में कभी दाल नहीं गली रही होगी तो आज कलम के सिपाहीगण, कमल की धार के बल पर विभूति नारायण सामाजिक बलात्‍कार करने में जुट गये, समकालीन मे कुछ पत्रकारों को तरह तरह के बलात्कार करने प्रचलन ही चल गया है, कभी कोई स्त्री का करता है तो कभी नाजायज स्त्री विमर्श का विरोध करने वाले है इसी प्रकार लगातार कुछ लोगों के कारण झूठे का बोल-बाला और सच्‍चे का मुँह काला किया जा रहा है। क्योंकि आज पत्रकारिता की कलम कुछ ऐसे ही अंधेर नगरी के चौपट राजाओ के हाथ लग गई है।


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तुम्‍हारी पालिटिक्‍स क्‍या है पार्टनर !



अभी तक तस्‍लीमा नसरीन और मकबूल फिदा हुसैन की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर जो जार-जार आंसू बहा रहे थे, सत्ता के दमन को जी-भर कोस रहे थे, छिनाल प्रकरण के बाद वह खुद बेपर्दा हो गये। विभूति राय ने जो कहा वह तो अलग विमर्श की मांग करता है लेकिन जिस तरह सजा का एलान करते हुये स्वनाम धन्य लोग विभूति के पीछे लग लिये उसने कई सारे सवाल पैदा कर दिये।
विभूति राय की टिप्पणी के बाद विरोध का पूरा का पूरा माहौल ही दरबारीनुमा हो गया। ज्यादातर, एक सुर मेरा भी मिलो लो की तर्ज पर विभूति की लानत मलानत में जुटे हैं। हमारे कई साथी तो इस वजह से भी इस मुहिम का हिस्सा बन लिये की शायद इसी बहाने उन्हें स्त्रियों के पक्षधर के तौर पर गिना जाने लगे। लेकिन एक सवाल हिन्‍दी समाज से गायब रहा कि- विभूति की‍ टिप्‍प़डी़ के सर्न्‍दभ क्‍या हैं। इस तरह एक अहम सवाल जो खड़ा हो सकता था, वह सामने आया ही नहीं।
जबकि विभूति ने साक्षात्कार में यह अहम सवाल उठाया कि महिला लेखिकाओं की जो आत्‍मकथाएं स्त्रियों के रोजाना के मोर्चा पर जूझने, उनके संघर्ष और जिजाविषा के हलाफनामे बन सकते थे आखिर वह केलि प्रसंगों में उलझाकर रसीले रोमैण्टिक डायरी की निजी तफसीलों तक क्‍यूं समिति कर दिये गये। इस पर कुछ का यह तर्क अपनी जगह बिल्‍कुल जायज हो सकता है कि आत्‍मकथाएं एजेण्‍डाबद्व ले‍खन का नतीजा नहीं होंती लेकिन अगर सदियों से वंचित स्‍त्रियों का प्रतिनिधित्‍व करने वाली लेखिकाएं सिर्फ केलि प्रसंग के इर्द-गिर्द अपनी प्रांसगिकता तलाशने लगे तो ऐसे में आगे कहने को कुछ शेष नहीं बचता। हम पाठकों के लिए स्‍त्री विर्मश देह से आगे औरतों की जिन्‍दगी के दूसरे सवालों की ओर भी जाता हैं। हमें यह लगता है कि धर्म, समाज और पितसत्‍तामक जैसी जंजीरों से जकड़ी स्‍त्री अपने गरिमापूर्ण जीवन के लिए कैसे संघर्ष पर विवश है उसकी तफलीसें भी बयां होनी चाहिये। मन्‍नू भण्‍डारी, सुधा अरोडा, प्रभा खेतान जैसी तमाम स्‍त्री रचानाकारों ने हिन्‍दी जगत के सामने इन आयमों को रखा है।अन्‍या से अनन्‍या तो अभी हाल की रचना है जिसमें प्रभा खेतान के कन्‍फेस भी हैं लेकिन बिना केलि-प्रंसगों के ही यह रचना स्‍त्री अस्तित्‍व के संघर्ष को और अधिक मर्मिम बनाती है।
अगर यही सवाल विभूति भी खडा करते हैं तो इसका जवाब देने में सन्‍नाटा कैसा। जबकि एक तथाकथित लंपट किस्म के उपन्यासकार को ऐसी टिप्पणी पर जवाब देने के लिए कलम वीरों को बताना चाहिये कि- हजूर ! आपने जिन आत्मकथात्मक उपान्‍यासों का जिक्र किया है उसमें आधी दुनिया के संघर्षों की जिन्दादिल तस्वीर हैं और यौन कुंठा की वजह से आपको उनके सिर्फ चुनिंदा रति-प्रसंग ही याद रह गये।
मकबूल फिदा हुसैन का समर्थन करके जिस असहमति के तथाकथित स्‍पेस की हम हमेशा से दुहाई सी देते आये इस प्रकरण के बाद इस मोर्चे पर भी हमारी कलई खुल गयी। तमाम बड़े नामों को देखकर यह साफ हो गया कि अभी भी हमारे भीतर असहमति का कोई साहस नहीं है और अतिक्रमण करने वाले के खिलाफ हम खाप पंचायतों की हद तक जा सकते हैं। इन सबके बीच कुछ साथी छिनाल शब्द के लोकमान्यता में न होने की बात कहते हुये भी कुलपति को हटाने की मांग की लेकिन आज अगर आज लोकमान्यता के प्रतिकूल शब्द पर कुलपति हटाए जाते हैं तो हुसैन साहब की बनाई तस्‍वीरों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर हम कैसे आगे बचा सकेंगे क्योंकि लोकमान्यता के सामान्य अर्थों में शायद ही कोई हिन्दू सीता की नग्‍न तस्‍वीर देखना पसंद करें। और इसी तरह फिर शायद हम तस्‍लीमा के लिए भी सीना नहीं तान सकेंगे क्योंकि शायद ही कोई मुसलमान लोक मान्यता के मुताबिक धर्म को लेकर उनके सवालों से इत्‍तेफाक करेगा।
पहले ही कह चुका हूं कि विरोध को लेकर माहौल ऐसा दरबारीनुमा हो गया है कि प्रतिपक्ष में कुछ कहना लांछन लेना है। बात खत्‍म हो इसके पहले डिस्‍कमेलटर की तर्ज पर यह कहना जरूर चाहूंगा कि विभूति नारायण राय से अभी तक मेरी कुछ जमा तीन या चार बार की मुलाकात है, जो एक साक्षात्‍कार के लिए हुयी थी। इसका भी काफी समय हो चुका है और शायद अब विभूति दिमाग पर ज्यादा जोर देने के बाद ही मुझे पहचान सकें। तथाकथित स्त्री विमर्श के पक्ष में चल रही आंधी में मेरे यह सब कहना मुझे स्त्री विरोधी ठहर सकता है लेकिन इस जोखिम के साथ यह जानना जरूर चाहूंगा कि आखिर, पार्टनर! तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है….
हिमांशु पाण्डेय, इलाहाबाद में पत्रकार है।


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नही जमी - "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई"



Once Upon A Time In Mumbaai के बारे में जितना सुना उतना मिला नहीं। जहाँ तक मै जानता हूँ कि मुंबई के नाम पर फिल्म बने तो वह औसत हिट हो ही जायेगी। शुरू से लेकर अंत तक फिल्म के कुछ हिस्से छोड़ दिये जाये तो दर्शकों को बांधने मे असफल रही है। पता नहीं वह कौन सा समय था जब मुम्बई काली दुन‍िया के खौफ से बेखौफ होकर घूमती थी ?
नही जमी - "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई"

फिल्म शुरुआत होती है, एक एम्बेसडर कार के समुद्र के निकलने से, यह कार मुंबई के एएसपी एग्नेल विल्सन की होती है। उनका ही सहकर्मी यह कहता है कि यह आत्महत्या है न की एग्नेल विल्सन पर कोई हमला, यह विल्सन के सीनियर इस बात को जानना चाहते है कि कारण क्या है तो सूत्रधार के रूप में एग्नेल विल्सन फिल्‍म की कहानी शुरू करते है।
एग्नेल विल्सन के रूप में अभिनेता रणदीप हुड्डा का काम मुझे पसंद आया, अभिनेत्री कंगना राणावत भी अपना ग्लैमर छोड़ने में सफल रही,कंगना जितनी सेक्सी और हसीन दिख सकती थी फिल्म में इससे भी ज्यादा नज़र आयी। फिल्‍म मे कंगना फिल्म मे सबसे अधिक सुन्दर अजय देवगन के साथ भाषण के समय लगी। प्राची देसाई भी रोल के हिसाब से औसत का किया।
अजय देवगन की बात ही निराली है, उनके बारे कुछ कह ही नही सकता, अभिनय अच्छा रहा। मेरी यह इमरान हाशमी की पहली फिल्म थी जिसे मैने देखा, उसका काम भी ठीक था। अन्तोगत्वा फिल्म को बहुत उम्दा नहीं कहा जा सकता है, मेरे नजर मे पैसा बेकर फिल्‍म थी।छ हटकर - कुछ दिनो से मूड ठीक नहीं था और मै सो रहा था, कल रात मे दोस्त संजू का फोन आया कि कल दोपहर 1.50 की फिल्म का टिकट ले ले रहा हूँ। मैने भी नींद मे कहा ले लो और फोन कट गया। आज सुबह 10 बजे फिर फोन आया चल रहे हो न, मैने पूछा कहाँ ? उसने कहा कि भूल गये क्‍या ? :)
आखिर बात खत्म हुई और मै 1.45 पर पीवीआर पहुँच गया जहां वो इंतजार कर रहा था। अच्छा लगा मूड ठीक नहीं था पर दोस्त का साथ हमेशा सब कुछ खराब होने पर भी सब ठीक कर देता है। जब फिल्म शुरू हुई तो एक लड़का अपनी गर्लफ्रेंड के साथ आया और मशगूल होकर मेरे ऊपर बैठने लगा, मैंने कहा भाई साहब देख करके। अच्छा हुआ उसकी गर्लफ्रेंड ने बैठने की कोशिश नहीं की। :)
नही जमी - "वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई"
फिल्‍म का ब्रेक मे हम कुछ खाने के लिये चल दिये लौट कर आये तो देखा कि एक नेपाली लड़का हमारी सीट पर बैठा था हमने कहा भाई साहब यहाँ कहाँ ? पता चला कि वो हॉल 2 में बैठा था और चला आया 3 मे :) खैर फिल्‍म देखा और अब मूड काफी कुछ अच्छा लग रहा है यही कारण है कि आज पोस्‍ट भी लिख रहा हूँ।


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