आतंक की राह पर इस्लाम और कुरान



9/11 Ka Islamic Atack
फिर जब हराम के महीने बीत जाएं, तो 'मुश्रिकों'* को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और घात की जगह उनकी ताक में बैठो । फिर यदि वे ' तौबा ' कर लें नमाज कायम करें, और जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि:सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है । *मूर्तिपूजको (कुरान - '10 पार: 9 शूर: 5 वीं आयत) 
आतंक की राह पर इस्‍लाम और कुरान

यह बाते स्पष्ट रूप से कुरान में लिखी हुई, क्या किसी धार्मिक पुस्तक में इस तरह मार-काट का उल्लेख होना चाहिए? क्या ऐसी पुस्तकों को धर्म ग्रंथ का दर्जा दिया जाना चाहिए ? यह बहुत बड़ा प्रश्न है किन्तु उठना वाजिब है। इस पुस्तक का उपरोक्त भाग पढ़कर यही लग रहा है कि इसमें धर्म की बात न होकर आतंकवादी हमले का प्रशिक्षण दिया जा रहा हो। जहाँ मूर्तिपूजक मिले उनका कत्ल कर दो, घात लगा कर बैठो, यदि तौबा कर छोड़ दो। अल्लाह अपने भक्तों को आतंकवादी प्रशिक्षण दे रहा है, दूसरी ओर भक्तों के आतंक से जो लोग इस्लाम कबूल कर ले तो अल्लाह क्षमाशील हो जाता है, दयावान हो जाता है। क्या इस तरह भटकाओ का रास्ता बताना ही धर्म का मार्ग है ?

धर्म की सही व्याख्या करते हुये ईशोपनिषत् मे लिखा गया है-
ॐ ईशा वास्यमिदँ सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत् ।
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथा मा गृधः कस्यस्विद्धनम् ॥


अर्थात- अखिल विश्व में जो कुछ भी गतिशील अर्थात चर अचर पदार्थ है, उन सब में ईश्वर अपनी गतिशीलता के साथ व्याप्त है उस ईश्वर से सम्‍पन्‍न होते हुये से तुम त्याग भावना पूर्वक भोग करो। आसक्त मत हो कि धन अथवा भोग्‍य पदार्थ किसके है अथार्थ किसी के भी नहीं है ? अतः: किसी अन्य के धन का लोभ मत करो क्योंकि सभी वस्‍तुऐ ईश्वर की है। तुम्हारा क्या है क्या लाये थे और क्या ले जाओगे।

हिन्दू धर्म कभी किसी से नहीं कहता कि भगवान को न मानने वाले के साथ मार-काट करो हमारे भगवान तो-
सर्वे भवन्तु सुखिनः। सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

- की भावना में ही खुश रहता है। लाख कोई इस्लाम की पैरवी कर ले किन्तु जब तक भाव में आतंक का पर्याय समाप्त नहीं होगा, हिन्दू व अन्य धर्मों को गाली देने से अल्लाह तो खुश होगा किन्तु जनमानस नहीं खुश होगा। जैसा कि कुछ नुमाईदें कर रहे है। इस्लाम में अपनी कुछ अच्छाइयां है उसे हिन्दू समाज कभी अपनाने/मानने से पीछे नहीं हटा किन्तु दुनिया भी की दकियानूसी सोच को पाले रहने से इस्लाम का भला कर सकते हो तो करो किन्तु किसी अन्य धर्म को गलत सिद्ध करना ठीक नहीं।


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बुढे नेहरू का परिणाम विभाजन



 

‘’मैने कल्पना तक नहीं की थी कि ऐसा होगा मै जीते जी पाकिस्तान देख सकूँगा।‘’ ये शब्द पाकिस्तान की मांग करने वाले जिन्ना के है, यहाँ जिन्ना या मुस्लिम लीक को पाकिस्तान का निर्माता कहना बेमानी होगा क्योंकि पाकिस्तान का निर्माता और कोई नही नेहरू और कांग्रेस का कमजोर नेतृत्व था।
तत्कालीन काँग्रेस नेतृत्व थक चुका था यह बात नेहरू द्वारा 1960 में लियोनार्ड मोसले के साथ बात के दौरान हुई थी। नेहरू कहते है – ‘ सच्चाई यह है कि हम थक चुके थे और आयु भी अधिक हो चुकी थी। हम में से कुछ ही लोग फिर कारावास में जाने की बात कर सकते थे और यदि हम अखण्‍ड भारत पर डटे रहते जैसा कि हम चाहते थे तो स्पष्ट है कि हमें कारागार जाना ही पड़ता। हमने देखा कि बंटवारे की आग भड़क रही है और सुना कि प्रतिदिन मार काट हो रही है। बंटवारे की योजना ने एक मार्ग निकालना जिसे हमने स्वीकार कर लिया।‘ नेहरू के ये वाक्य कांग्रेस की कमजोरी तथा उनकी सत्ता लोलुपता का बयां कर रहे थे, क्योंकि कांग्रेस चाहती थी किसी प्रकार से स्वतंत्रता लेना चाहती थी चाहे वह विभाजन से ही क्यो न हो।
 
कांग्रेस की कमजोरी के सम्बन्ध में श्री न.वि. गाडगिल कहते है- देश की मुख्य राजनीतिक शक्ति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस थी, उसके नेता बूढ़े हो चुके थे, थक चुके थे। वे रस्सी को इतना अधिक नहीं खींचना चाहते थे कि वह टूट जाये और किये धरे पर पानी फिर जाए। श्री गाडगिल का उक्‍त कथन कांग्रेस की आजादी की लड़ाई के काले अध्याय की ओर हमें ले जाती है। कांग्रेस और काग्रेंसी खास कर नेहरू अपनी महत्वाकांक्षाओं की नैया पर इतना बोझ लाद चुके थे कि अपनी नैया को बचाने के लिये पाकिस्तान की मांग स्वीकार कर लिया।
नेहरू की महत्वकांक्षाओ के सामने गांधी जी भी टूट चुके थे, मैंने कई बार गांधी जी को विभाजन के लिए दोषी ठहराया है और आज भी ठहराता हूँ, गांधी जी भारत विभाजन रोक सकते थे, इसके लिये गांधी जी को अपने जीवन का सबसे बड़ा बलिदान करना पड़ता, हो सकता है कि उनके प्राण चले जाते किंतु गांधी के बल पर भारत टूटने से बच सकता था ये प्राण लेने वाला कोई गोडसे कांग्रेस ही होता। गांधी जी को भारत विभाजन के प्रस्‍ताव पर बहुत दर्द था वे दर्द के साथ कहते है- ‘मै भारत विभाजन का विरोधी हूँ किन्‍तु हमारे नेताओं ने इसे स्‍वीकार कर लिया है, और अब हमें भी इसे स्‍वीकार कर लेना चाहिये। मै इस स्थिति मे नही हूँ कि वर्तमान काग्रेंस के नेतृत्‍व को बदल सकूँ, यदि मेरे पास समय होता तो क्‍या मै इसका विरोध नही करता ? मेरे पास नया नेतृत्व देने के लिये विकल्प ही नहीं था कि मै कह सकूँ कि यह लीजिए यह रहा वैकल्पिक नेतृत्व। ऐसे विकल्प के निर्माण का मेरे पास समय नही हर गया, इसलिए मुझे इस नेतृत्व के फैसले को कड़वी औषधि की भाति पीना ही होगा, आज मेरे में ऐसी शक्ति नही, अन्यथा मै अकेला ही विद्रोह कर देता।‘ भले गांधी जी उक्त बात करते समय नेताजी सुभाष का नाम लिये हो किंतु निश्चित रूप से नेहरू के पंगु विकल्प के रूप से गांधी जी नेताजी को जरूर याद किये होगे।निश्चित रूप से गांधी जी को अपने नेतृत्व चयन पर कष्ट हुआ होगा।
 
गांधी जी की नेतृत्‍व चयन की भूल और नेहरू की महत्‍वकांक्षाओं का परिणाम था कि आज विभाजित भारत हम देख रहे है, आज 18 करोड़ मुसलमान मौज के साथ रह रहे है आज से 60 साल पहले 4-5 करोड़ मुसलमान भी रह सकते थे। कांग्रेस सत्ता भोगी नेतृत्व का ही परिणाम हमारे सामने है। तत्कालीन समय में अंग्रेजों का भारत छोड़ना अपरिहार्य हो गया था किन्तु वास्तव में विभाजन अपरिहार्य नही था।


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द्विवेदी जी के कानून के दोहरे मापदण्‍ड



हिन्दी चिट्ठाकारी का कोई विशेष पैमाना नही रहा है, हर पैमाने का समय के हिसाब से अपने स्वयं के पैमाने तय कर लेता है। श्री दिनेश राय द्विवेदी जी की दो अलग अलग टिप्पणी मुझे पढ़ने को मिली थी, दोनों टिप्पणी को एक साथ पढ़ने पर आश्चर्य होना स्वाभाविक ही है।मै पहली टिप्पणी के रूप में कुछ माह पहले की गई एक टिप्‍पणी का जिक्र करना चाहूंगा, जिस पर श्री द्विवेदी जी ब्लॉगवाणी आरोप लगाते हुए कहते है कि - ब्लागवाणी पक्षपात भी करे तो क्या? निजी है। निश्चित रूप से यह प्रश्न वाजिब है क्या किसी को पक्षपात करने का पूरा अधिकार है ?

श्री द्विवेदी ब्लॉगवाणी पर पक्षपात का आरोप लगाना समझ से परे है क्योंकि ब्लॉगवाणी किसके साथ पक्षपात कर रही है ? ब्लॉगवाणी एक ऐसा मंच है जो अपनी नीतियों के हिसाब से किसी ब्लॉग को अपने एग्रीगेटर पर शामिल करता है, यदि वह किसी को शामिल नहीं करता है तो उस पर पक्षपात का अरोप लगाना गलत ही है। क्योंकि ब्‍लावाणी ने स्‍पष्‍ट रूप से कहा है कि हम अपनी मर्जी के मालिक है।

आज श्री द्विवेदी जी यह कहा रहे है किन्तु आज से करीब 18-20 महीने पहले श्री द्विवेदी जी की एक टिप्‍पणी मुझे चिट्ठकार के सम्बन्ध में पढ़ने को मिली थी - देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद।मैं उनके इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे की संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उसकी सहमति से कर रहे हैं। आप एक लाइसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।

श्री द्विवेदी जी विद्वान अधिवक्‍ता है उनकी बात को कटाना हमारे बस में नही है किन्तु उपरोक्‍त उनकी यह दूसरी टिप्पणी ब्लॉगवाणी का स्वयं समर्थन कर रही है, वह अपने निर्णय लेने को स्वतंत्र है। किन्तु यह मै एक बात कहना चाहूंगा कि ब्लॉगवाणी मंच अपनी कोई बात रखने के लिए सदस्यता नहीं देता है, किंतु जिस चिट्ठकार के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था वह अपनी बात को रखने के लिए सदस्यता देता है और किसी सदस्य को मंच से हटाये जाने के पर सदस्य को पूरा अधिकार है कि वह इस बात की जानकारी प्राप्त करें कि उसे किस बात के लिये हटाया गया ? जब मैने उक्त बात जाननी चाही थी तो श्री द्विवेदी जी बिना पूरी बात जाने अथवा जानकर भी बड़े ब्लॉगर के महिमा मंडन के मोह से छूट न सके और मुझे कानून की घुट्टी पिला गये।

 
श्री द्विवेदी जी के न्‍याय के पैमाने के मै समझ पाने की कोशिश कर रहा हूँ तो पाता हूँ कानून अंधा ही नही बहरा भी होता है। आज ब्‍लागवाणी का पक्षपात उन्‍हे समझ में आ रहा है किन्‍तु तब का पक्षपात उन्‍हे क्‍यो नही दिखा जब मैने उस बात को जानने का प्रयास किया कि मुझे चिट्ठाकार से निकालाने की बात पूछी थी ? तब तो श्री द्विवेदी जी ने किसी कि सम्पत्ति कहते हुये उसे चिट्ठकार के मालिक के अनैतिक कृत्‍य को मनमानी का पूरा मालिकाना अधिकार दे गये थे। न्‍याय का मतालब यही है कि बतालकारी के अरोपी को पता नही है कि आखिर बलात्‍कार हुआ किसका है ? न्‍याय की यह प्रक्रिया सिर्फ चिट्ठकारो की चौपट नगरी में ही सम्‍भव है, जहॉं समय के अनुसार कानून बदल जाता है। ब्‍लागवाणी पर ऊँगली उठाने से पहले यह सोचना चाहिये कि सर्वप्रथम यह कि ब्‍लागवाणी कोई सार्वजनिक चर्चा मंच नही है और न ही वह किसी को सदस्‍यता देता है, उसके सदस्‍यता देना सिर्फ पाठक के लिये है न कि किसी ब्‍लागर के लिये। हो सकता है कि तब और आज के टिप्‍पणी में अंतर इसलिये हो क्‍योकि तब वे चिट्ठाकारी के खेला के नये खिलाड़ी थे और आज वे इस खेला के माहिर खिलाडियो में शामिल हो चुके है और इसलिये नियम, कानून और पक्षपत की परिभाषा बदल चुकी है।

श्री द्विवेदी जी की दोनो टिप्‍पणी प्रस्‍तुत है - चिट्ठकार के सम्‍बन्‍ध में



ब्‍लागवाणी के सम्‍बन्‍ध में



यहाँ ब्‍लागों के लिंक देना उचित नही समझता क्‍योकि इससे अन्‍य सम्‍बन्धित लिंको को भी देना पड़ेगा।

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ब्लॉगवाणी बंनी गंदी राजनीति का शिकार
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सबसे आगे है नारद


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संघ गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो॥
युग के साथ मिल के सब, कदम बढ़ाना सीख लो।
एकता के स्वर में गीत, गुनगुनाना सीख लो।
भूलकर भी मुख में, जाति-पंथ की न बात हो।
भाषा, प्रांत के लिए, कभी न रक्तपात हो॥
फूट का भरा घड़ा है, फोड़कर बढ़े चलो ॥१॥
संगठन गढ़े चलो.............॥

आ रही है आज, चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग, मातृभूमि के लिए अपार॥
कष्ट जो मिलेगा, मुसकुराकर सब सहेंगे हम।
देश के लिए सदा, जियेंगे और मरेंगे हम।
देश का ही भाग्य, अपना भाग्य है, यह सोच लो॥२॥
संगठन गढ़े चलो.................॥


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दस करोड़ की लाटरी



90 वर्षीय एक सज्जन की दस करोड़ की लाटरी लग गई। इतनी बड़ी खबर सुनकर कहीं दादाजी खुशी से मर न जाएं, यह सोचकर उनके घरवालों ने उन्हें तुरंत जानकारी नहीं दी। सबने तय किया कि पहले एक डॉक्टर को बुलवाया जाए फिर उसकी मौजूदगी में उन्हें यह समाचार दिया जाए ताकि दिल का दौरा पड़ने की हालत में वह स्थिति को संभाल सके।
शहर के जानेमाने दिल के डॉक्टर से संपर्क किया गया । डॉक्टर साहब ने घरवालों को आश्वस्त किया - आप लोग चिंता मत करें । दादाजी को यह समाचार मैं खुद दूंगा । उन्हें कुछ नहीं होगा, मेरी गारंटी है।
डॉक्टर साहब दादाजी के पास गए । कुछ देर इधर - उधर की बातें कीं फिर बोले - दादाजी, मैं आपको एक शुभ समाचार देना चाहता हूं। आपके नाम दस करोड़ की लाटरी निकली हैं।
दादाजी बोले - अच्छा ! लेकिन मैं इस उमर में इतने पैसों का क्या करूंगा । पर अब तूने यह खबर सुनाई है तो जा, आधी रकम मैंने तुझे दी।
डॉक्टर साहब धम् से जमीन पर गिरे और उनके प्राण पखेरू उड़ गए ।
एक मित्र द्वारा भेजा हुआ


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ब्‍लागवाणी बंनी गंदी राजनीति का शिकार



आज न चाहते हुये बहुत कुछ लिखना पड़ रहा है, वो भी दुख के साथ, दुख इस बात का नही कि ब्लॉगवाणी बंद हो गया है, दुख इस बार का कि किसी की महत्वाकांक्षा और छिछोरापन के कारण एक फलती फूलती साइट का अंत हो गया। ब्लॉगवाणी एक साईट नही थी वह एक परिवार थी, परिवार के नियम के अनुसार हम सदस्य चलते थे, जो पारिवारिक सदस्यों नियमों को नहीं मानता था उसके साथ सख्ती की जाती थी। खैर मै किसी नियम के पचड़े में नहीं पड़ना चाहूँगा।

ब्लॉगवाणी को समाप्त करने से पहले ब्लॉगवाणी मंडल को सोचना चाहिए था, जो कदम उन्होंने उठाया, हो सकता है वह समय कि मांग रही हो, किन्तु आज जनभावना की मांग है कि ब्लॉगवाणी को आज जन के समक्ष लाया जाये। जब कुछ लोग गूगल ग्रुप आदि को अपनी निजी संपत्ति बता कर इठला सकते है कि ब्लॉगवाणी के मंच को भी अपने नियम शर्तों के लिये स्वतंत्र है, किसी को शामिल करना व न करना ब्लॉगवाणी की इच्छा पर निर्भर करता है न कि ब्लागर की गुंडई और दबंगई पर, जो कि आम दिनो में देखने को मिला।

याद समझ में नह‍ी आता कि पंसद 1 हो या 25 यह जरूरी है कि ब्‍लाग कि गुणवत्‍ता, कुछ छद्म मानसिकता वाले लोग, इस प्रकार के कृत्‍य में लगे थे जिससे इस प्रकार का दूषित वातावरण तैयार हो रहा था। आशा करता हूँ कि ब्‍लागवाणी जल्‍द ही हमारे बीच होगा।


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नवरात्रि पर मिलिये अदिति की बहन से



ये हे अदिति की बहन अभी नाम नही रखा गया है, ये नौ महीने की पूरी हो गई है, आठ दांत निकल आया है, खड़ी होने लगी है, चार-छ: कदम चल भी लेती है। अभी बोलना नही आता है, इनके मुँह से पहला शब्‍द निकला अबुवा, अब अम्मा शब्‍द बोल लेती है। हम सभी छोटी बिट्टी कहते है। आज नवरात्रि की अष्टमी के पावन अवसर पर ब्‍लाग जगत में पहली बार छोटी बिट्टी को ला रहा हूँ। ये चित्र जनवरी 2009 के है, जब वह 2 महीने की थी।



आप आज छोटी बिट्टी से मिल ही चुके किन्‍तु बड़ी बिट्टी अदति को को भूलियेगा मत वो भी आपके बीच पिछले 4 साल से है, मौजूद रही है।


 
जय माता दी


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