What an Idea- जब यूपी से 4 मुख्यमंत्री निकल सकते है तो भारत से 10-12 प्रधानमंत्री निकल जाये तो क्‍या बुरा है ?



आंध्र प्रदेश के विभाजन की बात उठी ही थी कि हमारी बुआ मायावती ने उत्तर प्रदेश को चिन्‍दी चिन्‍दी करने की ठान ली। सरपट कलम लेकर बुंदेलखंड और हरित प्रदेश नाम के नये राज्य की चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिख डाली। चूंकि कांग्रेस भी नये राज्य का सारा श्रेय खुद लेना चाहती थी तो इसलिये दोनो अर्जियो को रद्दी की टोकरी में डाल दिया। प्रधानमंत्री के चपरासी ने उस टोकरी को खाली भी न कर पाया था कि हमारी गजगामिनी बुआ मायावती ने पूर्वांचल वाली चिट्ठी भी प्रधानमंत्री को भेज दिया, यह भी नहीं सोचा कि पूर्व की चिट्ठी का क्या हश्र हुआ था।
मायावती जी हरित प्रदेश, बुंदेलखंड और पूर्वांचल के जब अलग हो जाएंगे तो उत्‍तर प्रदेश बचेगा ही कहाँ ? मायावती का तर्क है कि राज्‍य काफी बड़ा और विकास होने में काफी दिक्कतें आती है। पूर्वांचल और हरित प्रदेश में आय का काफी अंतर दिखता है। अन्तर तो भारत के अन्‍य राज्‍यों में भी दिखाई पड़ रहा है, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्यों की विकास दर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड और उड़ीसा आदि से बहुत ज्यादा है। कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों की अलग अलग स्थिति है। मायावती 2.50 लाख वर्ग किमी क्षेत्रफल वाले राज्य को संभालने में दिक्कत महसूस कर रही है, अच्छा है कि हमारे प्रधानमंत्री के मन में 32 लाख किमी वाले भारत को चला पाने में दिक्कत महसूस नहीं कर रहे है। मायावती की स्थिति मनमोहन सिंह की होती तो अब वो भी भारत को कई भागों में बढ़ाने की मांग कर चुके होते है।
मायावती की सोच के हिसाब से भारत को भी कई देशों के बांट देना चाहिये क्योंकि आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भारत में उत्तर प्रदेश से ज्यादा भिन्नता है कि तो मांग के हिसाब से भारत को भी बांट देना चाहिए, मनमोहन जी हमारी राय पर भी विचार कीजियेगा, अगर 2.50 लाख वर्ग किमी के उत्तर प्रदेश में 5 नये मुख्यमंत्री के सपने देखे जा सकते है तो 32 लाख वर्ग किमी के भारत में 10-12 प्रधानमंत्री और निकल जाये तो क्या बुरा होगा ?


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राष्ट्र का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ



राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ जिसे आर.एस.एस (R.S.S.) जाना जाता है मुझे नहीं लगता कि किसी को संघ की पहचान बताने की जरूरत है। आज यह कहना ही उचित होगा कि इसके आलोचक ही इसकी मुख्य पहचान है। जब आलोचक संघ की कटु आलोचना करते नजर आते है तब तब संघ और मजबूत होता हुआ दिखाई पड़ता है। छद्म धर्मनिरपेक्षवादी लोगों को यही लगता है कि भारत उन्हीं के भरोसे चल रहा होता है किन्तु जानकर भी पागलों की भांति हरकत करते है जैसे उन्हें पता ही न हो कि संघ की वास्तविक गतिविधि क्या है ?
राष्ट्र का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
संघ के बारे थोड़ा बताना चाहूंगा उन धर्मनिरपेक्ष बंदरों को जो अपने आकाओ के इशारे पर नाचने की हमेशा नाटक करते रहते है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना सन् 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर डॉक्टर केशवराव बलिराम हेडगेवार उपाख्य डॉक्टर जी ने की थी। संघ के 5 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुई विश्व की पहली शाखा आज 50 हजार से अधिक शाखाओं में बदल गई और ये 5 स्‍वयंसेवक आज करोड़ो स्वयंसेवक के रूप में हमारे सामने है। संघ की विचारधारा में राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, हिंदू राष्ट्र, राम जन्मभूमि, अखंड भारत, समान नागरिक संहिता जैसे विजय है जो देश की समरसता की ओर ले जाता है। कुछ लोग संघ की सोच को राष्ट्र विरोधी मानते है क्योंकि उनका काम ही है यह मानता, नही मानेगे तो उनकी राजनीतिक गतिविधि खत्म हो जाती है।
राष्ट्र का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ की हमेशा अवधारणा रही है कि 'एक देश में दो प्रधान, दो विधान, दो निशान नहीं चलेंगे, नहीं चलेंगे' बात सही भी है। जब समूचे राष्ट्र और राष्ट्र के नागरिकों को एक सूत्र में बांधा गया है तो धर्म के नाम पर कानून की बात समझ से परे हो जाती है, संघ द्वारा समान नागरिक संहिता की बात आते ही संघ को सांप्रदायिक होने की संज्ञा दी जाती है। अगर देश के समस्त नागरिकों के लिये एक नियम की बात करना साम्प्रदायिकता है तो मेरी नजर में इस साम्प्रदायिकता से बड़ी देशभक्ति और नहीं हो सकती है।


राष्ट्र का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ
संघ ने हमेशा कई मोर्चों पर अपने आपको स्थापित किया है। राष्ट्रीय आपदा के समय संघ कभी यह नहीं देखता कि किसकी आपदा मे फसा हुआ व्यक्ति किस धर्म का है। आपदा के समय संघ केवल और केवल राष्ट्र धर्म का पालन करता है कि आपदा मे फसा हुआ अमुक भारत माता का बेटा है। गुजरात में आये भूकम्प और सुनामी जैसी घटनाओं के समय सबसे आगे अगर किसी ने राहत कार्य किया तो वह संघ का स्वयंसेवक था। संघ के प्रकल्पों ने देश को नई गति दी है, जहाँ दीन दयाल शोध संस्थान ने गांवों को स्वावलंबी बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई है। संघ के इस संस्‍थान ने अपनी योजना के अंतर्गत करीब 80 गांवों में यह लक्ष्य हासिल कर लिया और करीब 500 गांवों तक विस्तार किए जाने हैं। दीन दयाल शोध संस्थान के इस प्रकल्प में संघ के हजारों स्‍वयंसेवक बिना कोई वेतन लिए मिशन मानकर अपने अभियान में लगे है। सम्पूर्ण राष्ट्र में संघ के विभिन्न अनुषांगिक संगठनो राष्ट्रीय सेविका समिति, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय जनता पार्टी, बजरंग दल, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय सिख संगत, भारतीय मजदूर संघ, हिंदू स्वयंसेवक संघ, हिन्दू विद्यार्थी परिषद, स्वदेशी जागरण मंच, दुर्गा वाहिनी, सेवा भारती, भारतीय किसान संघ, बालगोकुलम, विद्या भारती, भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम सहित ऐसे संगठन कार्यरत है जो करीब 1 लाख प्रकल्पो को चला रहे है।
संघ की प्रार्थना भी भारत माता की शान को चार चाँद लगता है, संघ की प्रार्थना की एक एक लाईन राष्‍ट्र के प्रति अपनी सच्‍ची श्रद्धा प्रस्‍तुत करती है मेरी पोस्‍ट मुस्लिम भाई मै आप से अभिभूत हूँ पर संघ की प्रार्थना और उसके अर्थ को पढ़ा जा सकता है। संघ का गाली देने से संघ का कुछ बिगड़ने वाला नही है अप‍ितु गंदे लोगो की जुब़ान की गन्‍दगी ही परिलक्षित होती है।
राष्ट्र का संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

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आज मुम्‍बई या है पर हम भोपाल क्‍यो भूल रहे है ?



भोपाल झीलो के शहर की पहचाना जाता है किन्‍तु आज भोपाल की जो सबसे बड़ी पहचान है वह है भोपाल गैस कांड। भोपाल गैस कांड को आज 25 वर्ष हो गये है, यह विश्व की वह शर्मनाक घटना है जिसमें यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी से मिथाइल आइसोसाइनाइड लीक होने परिणाम स्‍वरूप 25 हजार लोग मारे गये थे तथा आज तक करीब 5 लाख से अधिक लोग इससे दुष्‍परिणाम प्रभावित हुये थे।

विश्व की बड़ी औद्योगिक त्रासदी के लिए ज़िम्मेदार मानी जाने वाली यूनियन कार्बाइड फैक्‍ट्री आज भले ही अस्तित्‍व मे न हो किन्‍तु इस घटना ने उसे लोगो के आक्रोश पटल पर हमेशा जिन्‍दा रखा है, ज्ञात हो कि यूनियन कार्बाइड को 2001 मे अमरीकी कंम्पनी डाउ कैमिकल्स ने ख़रीद लिया था और इसके साथ ही साथ डाउ कैमिकल्स ने 25 हजार लोगो के मौत की जिम्‍मेवारी और 5 लाख से ज्‍यादा घायलो की बद्दुआएं।

आज भी भोपाल गैस कांड के भुक्‍त भोगियों को न्‍याय नही मिल पा रहा है, इसके पीछे दोषी कौन है ? हमारी व्यवस्था कि, हमारी सरकारो की इच्‍छा शक्ति की या हमारी स्वयं की। आज हम मुम्बई हमले को बड़ी तत्परता से याद करते है करना भी चाहिये किन्‍तु ऐसे राष्ट्रीय बहस के मुद्दे की अनदेखी किया जाना, इस घटना के पीड़ितों के साथ सबसे बड़ा अन्याय है।


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351 पोस्‍टो में यादो के झरोखे से झाकती 25 पोस्‍टे



1 जुलाई 2006 से आज तक हमने करीब 351 लेख महाशक्ति ब्लॉग पर लिखे, और इन पोस्टो में 25 पोस्‍ट ऐसी रही जो कमेंट से महरूम रही। 14 मई 2008 के बाद ऐसी कोई पोस्ट नही नही जो टिप्पणी न प्राप्त कर सकी। कल अनायास ही ब्लॉग हिस्ट्री देखने बैठा था लगा कि क्यों न इस पोस्ट को भी याद कर लिया जाये।
किसी पोस्ट का सर्वश्रेष्ठ कहा जाये या नही ब्लॉग लेखकों में इसको लेकर मतभेद होगा किन्तु जहाँ तक मै मानता हूँ कि इन 25 पोस्ट में सबसे अच्छी पोस्ट भी है, उस समय मुझे बहुत दुख हुआ था कि वह टिप्‍पणी प्राप्‍त नही कर सकी थी।
वह दौर ऐसा था जिसमें टिप्‍पणी की अपेक्षा करना बहुत कठिन था, नारद जो आज इतिहास बन गया है, सभी पोस्‍टो की जानकारी के लिये उस पर निर्भर करते थे, आप परिदृश्य बिल्कुल बदल गया है, पोस्ट को पढने के नये नये तरीके सामने आ गये है। उस समय तो हमे पोस्टिंग करनी भी नही आती थी कई पोस्‍ट तो हमने बिना शीर्षक के किये थे।
जन्‍मदिन 24 नम्वम्‍बर को बीत गया, महाशक्ति समूह, जबलपुर परिवार, ब्‍लाग परिवार की सनेह बधाईयाँ और शुभकामनाऍं मिली, आर्कुट, फेसबुक और फोन आदि पर भी मित्रो ने अपार प्रेम दिया। वाकई बहुत अच्‍छा लगा। सभी को हृदय से धन्‍यवाद देता हूँ।
ये 25 पोस्‍टे निम्‍न है, जो टिप्‍पणी प्राप्‍त न कर सकी और इन 25 में क्रमांक 6, 9, 10,11,21 और 22 नम्‍बर की पोस्‍टे मैने बहुत ही मन से लिखी थी। तब टिप्‍पणी न मिलने पर हमने पोस्‍ट में लिखा था कि जब टिप्‍पणी न मिले तो समझना चाहिये कि पोस्‍ट इतनी अच्‍छी थी कि उसमें टिप्‍पणी करने लायक ही कुछ नही था।



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ऊपर वाला “खुदा” है तो देर से अंधेर भली



muslim women violence

एक बात से तो कोई इन्‍कार नही कर सकता है कि भारत मे सुनामी और भूकंप आने पर इतना हल्‍ला नही मचता है जितना कि फतवा जारी होने पर, जैसे फतवा न हो गया अल्‍लाह की जुलाब की घुट्टी हो गई पीते ही दस्‍त शुरू। आज के समय में यही देखने पर लग रहा है कि यह कैसा दकियानूसी समुदाय है, जो फतवों पर जीता है। फतवा अरबी का लफ्ज़ है। इसका मायने होता है- किसी मामले में आलिम ए दीन की शरीअत के मुताबिक दी गयी राय होती है जिसे स्‍वीकार करना या न करना राय मागने वाले पर ही निर्भर करता है पर भारत में इसे अल्‍लाह की वाणी जैसा महत्‍व दिया जा रहा है। फतवा कोई मांगता है तो दिया जाता है, फतवा जारी नहीं होता है। हर उलेमा जो भी कहता है, वह भी फतवा नहीं हो सकता है। फतवे के साथ एक और बात ध्‍यान देने वाली है कि हिन्‍दुस्‍तान में फतवा मानने की कोई बाध्‍यता नहीं है। फतवा महज़ एक राय है। मानना न मानना, मांगने वाले की नीयत पर निर्भर करता है। लेकीन हिन्दुस्तान मे फतवा मुस्लमाने के लिये हिन्दुस्तान का संविधान से भी ज्यादा महत्वपुर्ण है

muslim women violence 

21 शताब्दी मे कुछ जारी फतवे और इस्लामिक न्यायिक निर्णयों पर गौर करेंगे तो पाएंगे कि इस्लाम में अल्लाह, मुहम्मद साहब, फतवा और पुरुषों के अलावा कोई भी चीज पाक नही है। गुनाह अगर पुरुष करता है तो स्त्री पर थोप दिया जाता है कि अमुक स्त्री के आकर्षण के कारण पुरुष की नीयत खराब हो गई तो इसमें पुरुष की क्या दोष है ? इसे कहते है खुदा का न्याय।

एक कहावत है कि ऊपर वाले के यहाँ देर है अंधेर नही, यदि ऊपर खुदा ही बैठा है तो देर से अंधेर ही भली जो स्त्रियों को दोयम दर्जे पर स्थापित करता है और कही बलात्कार की शिकार लड़की को 200 कोड़े तो कहीं पैंट पहनने पर मारे गए 40 कोड़े और तो और मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को फतवा जारी कर दिया जाता है। आपको हाल की कुछ खबरों की ओर ले जाता हूँ -बलात्कार की शिकार लड़की को 200 कोड़े मारने की सजा जेद्दाह : जेद्दाह में एक सऊदी अदालत ने पिछले साल सामूहिक बलात्कार की शिकार लड़की को 90 कोड़े मारने की सजा दी थी। उसके वकील ने इस सजा के खिलाफ अपील की तो अदालत ने सजा बढ़ा दी और हुक्म दिया: '200 कोड़े मारे जाएं।' लड़की को 6 महीने कैद की सजा भी सुना दी। अदालत का कहना है कि उसने अपनी बात मीडिया तक पहुंचाकर न्याय की प्रक्रिया पर असर डालने की कोशिश की। कोर्ट ने अभियुक्तों की सजा भी दुगनी कर दी। इस फैसले से वकील भी हैरान हैं। बहस छिड़ गई है कि 21वीं सदी में सऊदी अरब में औरतों का दर्जा क्या है? उस पर जुल्म तो करता है मर्द, लेकिन सबसे ज्यादा सजा भी औरत को ही दी जाती है।

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महिलाओं को पैंट पहनने पर मारे गए 40 कोड़े!खार्तूम। सूडान में कुछ महिलाओं को पैंट पहनना काफी महंगा पड़ गया। दरअसल कुछ सूडानी महिलाएं पैंट पहनकर रेस्टोरेंट में खाना खाने गई थीं। तभी वहां पर करीब 30 की संख्या में पुलिसकर्मी पहुंचे और इन्हें गिरफ्तार कर लिया। इन महिलाओं को 40-40 कोड़े लगाने का आदेश दिया गया।
वेबसाइट ‘डेलीमेल डॉट को डॉट यूके’ के मुताबिक ये महिलाएं देश की राजधानी खार्तूम के एक रेस्टोरेंट में बैठी थीं तभी अचानक पुलिस वहां पहुंची और 13 महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। कुछ महिलाओं ने तो गलती मानते हुए माफी मांग ली तो उन्हें 10 कोड़े लगाकर छोड़ दिया गया लेकिन कुछ ऐसी थी जिन्होंने अपनी गलती स्वीकार नहीं की तो उन्हें 40 कोड़ों की सजा दी गई।
मालूम हो कि गिरफ्तार की गई महिलाओं में से एक लुबना अहमद अल-हुसैन नाम की एक पत्रकार भी थी। उसने बताया कि कैसे पुलिस ने बिना सूचना के बिल्डिंग पर धावा बोल पैंट पहने महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया। उस पत्रकार महिला ने बताया कि मैंने पैंट पहनी थी और मेरी तरह 10 महिलाओं ने भी पैंट पहनी थी। लुबना अहमद एल-हुसैन काफी जानीमानी रिपोर्टर हैं और सूडानी अखबार में कॉलम भी लिखती हैं। ये देश दो भागों में बंटा है। खार्तूम में मुसलमान हैं और दक्षिण में ईसाई हैं। जिन महिलाओं को दोषी पाया गया वो ज्यादातर दक्षिण से थीं। वहां पर गैर मुसलमान भी शरिया कानून का विरोध नहीं कर सकते। 

मस्जिद में नमाज अदा करने पर महिलाओं को मिला फतवा गुवाहाटी (टीएनएन)
असम के हाउली टाउन में कुछ महिलाओं के खिलाफ फतवा जारी किया गया क्योंकि उन्होंने एक मस्जिद के भीतर जाकर नमाज अदा की थी। असम के इस मुस्लिम बाहुल्य इलाके की शांति उस समय भंग हो गई , जब 29 जून शुक्रवार को यहां की एक मस्जिद में औरतों के एक समूह ने अलग से बनी एक जगह पर बैठकर जुमे की नमाज अदा की। राज्य भर से आई इन महिलाओं ने मॉडरेट्स के नेतृत्व में मस्जिद में प्रवेश किया। इस मामले में जमाते इस्लामी ने कहा कि कुरान में महिलाओं के मस्जिद में नमाज पढ़ने की मनाही नहीं है। जिले के दीनी तालीम बोर्ड ऑफ द कम्युनिटी ने इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि इस तरीके की हरकत गैरइस्लामी है। बोर्ड ने मस्जिद में महिलाओं द्वारा नमाज करने को रोकने के लिए फतवा भी जारी किया। 

कम कपड़े वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह
मौलवी मेलबर्न (एएनआई) : एक मौलवी के महिलाओं के लिबास पर दिए गए बयान से ऑस्ट्रेलिया में अच्छा खासा विवाद उठ खड़ा हुआ है। मौलवी ने कहा है कि कम कपड़े पहनने वाली महिलाएं लावारिस गोश्त की तरह होती हैं , जो ' भूखे जानवरों ' को अपनी ओर खींचता है। रमजान के महीने में सिडनी के शेख ताजदीन अल-हिलाली की तकरीर ने ऑस्ट्रेलिया में महिला लीडर्स का पारा चढ़ा दिया। शेख ने अपनी तकरीर में कहा कि सिडनी में होने वाले गैंग रेप की वारदातों के लिए के लिए पूरी तरह से रेप करने वालों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। 500 लोगों की धार्मिक सभा को संबोधित करते हुए शेख हिलाली ने कहा , ' अगर आप खुला हुआ गोश्त गली या पार्क या किसी और खुले हुए स्थान पर रख देते हैं और बिल्लियां आकर उसे खा जाएं तो गलती किसकी है , बिल्लियों की या खुले हुए गोश्त की ?'

कामकाजी महिलाएं पुरुषों को दूध पिलाएं : फतवा
काहिरा : मिस्र में पिछले दिनों आए दो अजीबोगरीब फतवों ने अजीब सी स्थिति पैदा कर दी है। ये फतवे किसी ऐरे-गैरे की ओर से नहीं बल्कि देश के टॉप मौलवियों की ओर से जारी किए जा रहे हैं।
देश के बड़े मुफ्तियों में से एक इज्ज़ात आतियाह ने कुछ ही दिन पहले नौकरीपेशा महिलाओं द्वारा अपने कुंआरे पुरुष को-वर्करों को कम से कम 5 बार अपनी छाती का दूध पिलाने का फतवा जारी किया। तर्क यह दिया गया कि इससे उनमें मां-बेटों की रिलेशनशिप बनेगी और अकेलेपन के दौरान वे किसी भी इस्लामिक मान्यता को तोड़ने से बचेंगे।

गले लगाना बना फतवे का कारण
इस्लामाबाद (भाषा) : इस्लामाबाद की लाल मस्जिद के धर्मगुरुओं ने पर्यटन मंत्री नीलोफर बख्तियार के खिलाफ तालिबानी शैली में एक फतवा जारी किया है और उन्हें तुरंत हटाने की मांग की है। बख्तियार पर आरोप है कि उन्होंने फ्रांस में पैराग्लाइडिंग के दौरान अपने इंस्ट्रक्टर को गले लगाया। इसकी वजह से इस्लाम बदनाम हुआ है। 

फतवा: ससुर को पति पति को बेटा
एक फतवा की शिकार मुजफरनगर की ईमराना भी हुई। जो अपने ससुर के हवस का शिकार होने के बाद उसे अपने ससुर को पति और पति को बेटा मानने को कहा और ऐसा ना करने पे उसे भी फतवा जारी करने की धमकी मिली।
मौत का फतवा और तस्लीमा नसरीन बांग्लादेश की निर्वासित लेखिका तस्लीमा नसरीन इस समय दुनिया की सबसे विवादित और चर्चित लेखिका हैं। बांग्लादेश में तो उनकी हत्या का फ़तवा इस्लामी कट्टरपंथियों ने तभी जारी कर दिया था जब उन्होंने ‘लज्जा’ नामक उपन्यास लिखा था। जान बचाने के लिए उन्हें अपना देश छोड़कर नॉर्वे में शरण लेनी पड़ी थी. यह वर्ष 1993 की बात है।
देश में इससे ज्यादा स्तब्ध कर देने वाली घटना और क्‍या हो सकती है जब किसी की हत्या के लिये फतवा दिया जाता है। ऐसा ही तस्लीमा के विरोध की कमान एक भारतीय इमाम ने किया था। ये कोलकाता की टीपू सुल्तान मस्जिद के इमाम हैं और इनका नाम एसएसएनआर बरकती है। बरकती ने तस्लीमा की हत्या का फ़तवा जारी किया था । यह वही है जिन्‍होने तस्लीमा नसरीन का मुँह काला किए जाने और जूतों की माला पहनाए जाने का फ़तवा जारी किया था और इस बार की तरह ही 50 हज़ार रुपयों का इनाम भी घोषित किया था।
जब तस्‍लीमा का मुँह काला किया गया तो मानवाधिकारी कहाँ थे? भारत की सरकार भी पुरुषार्थ रूप को त्याग कर अपनी नई भूमिका में आ जाती है। भारत सरकार भी चीन को धमकी दे सकती है पर मुस्लिम कट्टरपंथ के खिलाफ कार्यवाही नही कर सकती है। भारत सरकार भी जानती है कि कि चीन हमला करेगा तो सेना देखेगी और मुसलमान जब हमला करेगा तो देखना तो हमें ही पड़ेगा।
जब खुले आज ऐसे फतवे दिये जाते है तो समाज के वे तथाकथित सेक्युलर किन्नर फौज का भी पता नही चलता है कि वे किस दरबे में घुसी हुई है जो मोदी को गरियाने में आगे रहते है, उनके मुँह से मोदी के लिये ऐसी बद्दुआ निकलती है जैसा कि किन्नरों के सम्बन्ध में विख्यात है। इन सेक्‍युलर वेश्याओं के भली तो रेड लाइट एरिया की वेश्‍या है जो अपना धंधा हिंदू मुसलमान देख कर तो नहीं करती। उनका का तो सिर्फ धंधा करना होता है।



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अल्लाह की शक्ति का अतिक्रमण करता भारतीय संविधान, कठमुल्लों फतवा जारी करो



मुस्लिमों द्वारा वन्दे मातरम् को लेकर जो गंदा खेल खेला जा रहा है, उसके पीछे देश के एकीकृत ढाचे को तोड़ने की मंशा दिखाई देती है। वन्दे मातरम् कोई गीत मात्र नहीं है बल्कि देश की आजादी के समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में जोश भर देने वाला मंत्र था, जिसे गर्व से हिन्दू भी गाता था और मुसलमान भी और इसके साथ साथ स्वतंत्रता की लडाई लड़ने वाला हर भारतीय ने इसे स्वाभिमान के साथ स्वीकार किया। वंदे मातरम बोलते समय भगत सिंह अशफाक उल्ला के स्वर एक साथ फूटते थे और सीना चौड़ा कर अग्रेजो बत्तीसी तोड़ने की माद्दा रखते थे। ये असर थ वन्दे मातरम् का।
अल्लाह की शक्ति का अतिक्रमण करता भारतीय संविधान, कठमुल्लों फतवा जारी करो
 
कल सुरेश जी का लेख इस्लाम के "सच्चे" फ़ॉलोअर्स से आपका परिचय बहुत जरूरी है को मैने पढ़ा और वकाई इस्‍लाम के बारे में ऐसी बात जानने को मिली जिसकी जिन्दा ही की जानी चाहिये। इस्‍लामकि खलीफाओ की दादागीरि सिर्फ महिलाओ पर ही होती है। 112 का बुड्डा 17 साल की लड़की से शादी कर रहा है। और भी ऐसी बातें आप सुरेश जी के लेख में बेहतर पढ़ सकते है।

आज कुछ तुगलकी मुसलमान, ये कह रहे है कि वन्देमातरम गाने से वे नापाक हो जाएंगे तो वे कब का नापाक हो चुके है, जितनी बार वन्देमातरम का विरोध करते है उतनी बार ही भारत माता को प्रणाम भी करते है। देश का हर प्रकार के भोजन मे वंदे मातरम का गान गूँज रहा है और इसे मुसलमान भी खा रहे और और हिन्दू भी। आज मुसलमान हिंदुओं के साथ रह रहे है, जबकि इस्लाम मे कहा गया है जहाँ भी मूर्तिपूजक मिले उन्हें मार डालो, जब तक कि वे अल्‍लाह की पनाह मे न आ जाये। अरे नामकूलो 80 करोड़ हिन्दुओ के साथ रह कर अल्‍लाह के नियम को तुम कब का तोड़ चुके हो, तुम अल्लाह के गुनहगार हो गये हो, तुम न तो 80 करोड़ हिन्दुओ के मार सके और न ही उन्हें अल्लाह का गुलाम बना सके। अल्लाह के प्रति तुम लोग कितना अनैतिक काम किये जा रहे है, तब पर अल्लाह तुम पर रहम किये हुये है, तुम्हे हूरो से बद्दुआये नहीं दिलवा रहा, तुम गर्व से वंदे मातरम् गाओ, इस पर भी अल्लाह नाराज नही होगा।

यार तुम्हारा अल्लाह न हो गये हो गये छुई-मुई जब देखो तब किसी न किसी बात से नाराज हो जाते है कभी महिलाओ द्वारा पुरूष से सेक्‍स से इंकार करने पर भी अल्लाह नाराज हो जाता है तो कभी वंदे मातरम गाने से, अल्लाह को सर्वशक्तिमान बने रहने दो छुई-मुई मत बनाओ, अगर तुम लोग अल्लाह को छुई-मुई बनाओ के तो जरूर अल्लाह नाराज हो जायेगा।

हिन्‍दी चिट्ठकारी मे एक सनकी महाराज है, जब सनक सवार होती है तो एक घटिया पोस्‍ट डाल देते है अब वो कर रहे है कि देशभक्ति जताने के लिए मुसलमान 'वन्दे-मातरम्' के मुहताज नहीं है। अब वो देश भक्ति की बात भी करते है और अल्लाह भक्ति की भी जबकि उनके अनुसार इस्लाम सिर्फ अल्लाह की भक्ति की बात ही करता है। बन्देमातरम् गाकर देशभक्ति नही कर सकते तो गोलियों के दम देश से देश भक्ति न करो। वन्दे मारम् न गाने की बात अब हम पाकिस्‍तानी से सीखेगे वो हमे बतायेगा कि हम वन्दे मातरम् क्‍यो न गाये। जिस बड़े विद्वान डॉ. जाकिर अब्दुल करीम नाइक की बात हो रही है उसे मुसलमानों ने ही पिछले साल इलाहाबाद और लखनऊ मे घुसने नही दिया, इसलिए कि खुद मुसलमान इससे नफरत करते है।


आज सरकार और उनके गृह मंत्री के सामने यह सब हो रहा है और लज्जाहीन गृहमंत्री अपने सामने होने की बात से इंकार कर रहे है इससे ज्यादा शर्म की बात और क्‍या हो सकती है? कांग्रेसी नीति देश तोड़ो राज करो की नीति थी, आखिर कांग्रेस पैदाइश तो है अंग्रेजो की ही। गृहमंत्री को बाबरी ढांचा याद आता है गुजरात याद आ जाता है किन्तु वो कांग्रेसियो द्वारा सिखों पर हमले को वो भूल जाते है, आखिर क्यों ? क्योंकि खुद के दामन पर दाग आता है। जब तक देश में देश विरोधी शक्तियाँ सत्ता मे रहेगी 20 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यक रहेंगे और 2 करोड़ सिखों के साथ अन्याय किया जाता रहेगा।

आज वंदे मातरम गलत है तो कल को भारत के संविधान के खिलाफ फतवा जारी हो सकता है क्योंकि संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है चाहे वो पुरुष हो या स्त्री पर इस्लाम की किताबो में लिखा है कि एक पुरूष की बयान दो महिलाओ के बराबर होती है। इस्लाम की कुछ ऐसी बातें जिसे संविधान प्रतिरोध करता है-
एक रखैल अपने मालिक की सम्पत्ति है, वह उसको कोड़े मार सकता है और बेच सकता है ।

भारतीय सविधान के अनुसार ऐसा कृत्‍य अपराध होगा।
वह एक बलात पत्नी है और वह अपने मालिक को उसकी इच्छानुसार उसके साथ संभोग करने से इंकार नहीं कर सकती, नही वह वहाँ से भाग सकती थी क्योकि भगोड़े दासों से संबंधित कानून वस्तुत: बहुत कठोर था।

महिला आयोग ही दंडा लेकर पीछे पड़ जायेगी।
यदि कोई स्त्री अपने पति से बुलाए जाने पर शय्या पर न आए तो वह फरिश्तों की बद्दुआओं का निशाना बन जाती है । यदि वह अपने पति की शय्या त्याग कर चली जाती है तो भी ठीक ऐसा ही होगा । ( बोखारी, खण्ड 7 पृष्ठ 93 )

आज के समय में स्त्रियाँ चाहे बद्दुआओं का निशाना बने या न बने, ऐसा कृत्‍य करने वाले इस्लामिक पुरूषो को महिला आयोग जरूर बद्दुआओं के शिकार हो जाएंगे।
फिर जब हराम के महीने बीत जाएं, तो 'मुशरिकों'* को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और घात की जगह उनकी ताक में बैठो । फिर यदि वे ' तौबा ' कर लें नमाज कायम करें, और जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि: सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है । *मूर्तिपूजको (कुरान - '10 पार: 9 शूर: 5 वीं आयत)

ये भारतीय दंड संहिता की धाराओ का उल्‍लंघन करती है।
ये तो कुछ ही बाते है जो भारतीय संविधान की भावना का अतिक्रमण करने है और भारतीय संविधान इसका अतिक्रमण करता है। इस लहजे से जब वंदेमातरम से अल्लाह नाराज हो जाता है तो भारतीय संविधान द्वारा अल्लाह के पावर में हस्तक्षेप कैसे अल्लाह और उनके कठमुल्ले कैसे बर्दाश्त कर सकते है? फतवा तो संविधान के खिलाफ होना चाहिए। मुसलमानों का संविधान के प्रति फतावा जरूरी भी है, क्योंकि देशभक्ति जताने के लिये बंदेमातरम) जरूरी नही है उसी प्रकार मुस्लिमों के अनुसार देश में रहने के लिये संविधान भी जरूरी नही है। वैसे भी संविधान गैर इस्‍लामिक हो गया है, और मुस्लिमों के लिये भारत उनका कब रहा ही है जो वो संविधान से बंधे रहे?
और अंत में आज मुझे अपने हिन्दू होने और कहने पर गर्व है कि मै सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष किसी के भी प्रति कृतज्ञता प्रकट कर सकता हूँ, जिससे हमें कुछ मिल रहा है हमारा धर्म हमें यही सिखाता भी है। क्योंकि हमारा ईश्वर छुई-मुई जो नही है, कि छूने से ही मुरझा जाये।


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क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?




मै भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे क्रिकेट की बात नही कर रहा हूँ। मै आज बात करने जा रहा हूँ, मुम्बई और पंजाब के बीच खेले जा रहे रणजी किक्रेट मैच की। मै रणजी की बात कर रहा हूँ, मुझे मूर्ख ही कहा जाएगा क्योंकि भारत में रणजी की बात करने वाले को मूर्ख ही कहा जाता है। वो भी तब जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वनडे मैच आ रहा हो और भारत के सामने 350 रनों का विशाल लक्ष्य हो।
जिसे जो कहना हो कहे पर मै तो बात आज रणजी की ही करूँगा। आज पेपर में कल के मुंबई और पंजाब खेल खत्म होने पर खबर थी - पंजाब का पलटवार शीर्षक था पंजाब ने मुंबई के 244 के स्कोर पर सात विकेट ले लिए थे और पंजाब 14 रनों की बढ़त पर था। पर आज के तीसरे दिन जब मुम्बई न बैटिंग 244 के स्कोर पर सात पर शुरू की तो 471 के स्कोर पर 9 विकेट पर मुंबई को घोषित करनी पड़ी, अर्थात 7 और 8 वें विकेट की साझेदारी में कुल 227 रन बने, वाकई है न किक्रेट अनिश्चितता का खेल ? नौवें नंबर पर बैटिंग करने उतरे रमेश पोवार ने शतक लगा कर 125 पर नाबाद रहे।
रणजी के खेल के प्रति न तो बीसीसीआई अपनी रूच‍ि दिखाती है और न ही सरकार, यही कारण है कि रणजी जैसे घरेलू महत्‍पूर्ण मैच के खिलाडियो के प्रदर्शन का नकार दिया जाता है। चेतेश्‍वर पुजारा ने रणजी ट्राफी के नौ मैच में 82.36 की औसत से 906 रन बनाए जिसमें चार शतक शामिल हैं। चोपड़ा ने रणजी और विजय हजारे दोनों में 60 से अधिक औसत से रन बनाए लेकिन यह चयनकर्ताओं का ध्यान खींचने के लिए पर्याप्त नहीं था। गुजरात के पार्थिव पटेल ने तो विकेट के आगे और विकेट के पीछे दोनों भूमिकाओं में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। 
भारत के वर्तमान समय के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज अजीत अगरकर को भी लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि वो अपने 300 वे विकेट से मात्र 12 विकेट दूर है, और लगातार रणजी में उम्दा प्रदर्शन कर रहे है। गुजरात के स्पिनर मोहनीश परमार [पिछले रणजी सत्र में 42 विकेट], ने अपने प्रदर्शन से कई पूर्व क्रिकेटरों को कायल बनाया लेकिन वह भी बालाजी [36 विकेट] और सिद्धार्थ त्रिवेदी [34 विकेट] की तरह चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। आखिर ये क्रिकेटर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे है तो भी उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह क्यो नही मिल रही है ?
क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?
 


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