अवैध देह व्यापार से संबंधी कानून (The Illegal prostitution Related Law)



अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956

परिभाषा
वेश्यावृत्ति का अर्थ-किसी भी व्यक्ति का अर्थिक लाभ के लिये लैंगिक शोषण करने का वेश्यावृत्ति कहते हैं।
वेश्यागृह का अर्थ
किसी मकान, कमरे, वाहन या स्थान से या उसके किसी भाग से है, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिये किसी का लैंगिक शोषण या दुरूपयोग किया जाय या दो या दो से अधिक महिलाओं के द्वारा अपने आपसी लाभ के लिय वेश्यावृत्ति की जाती है।
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य अपराध हैं
  1. कोई व्यक्ति जो वेश्यागृह को चलाता है, उसका प्रबंध करता है या उसके रखने में और प्रबंध में मदद करता है तो उसे 3 साल तक का कठोर करावास व 2000 रूपये का जुर्माना होगा। यदि वह व्यक्ति दुबारा इस अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसको कम से कम 2 साल व अधिक से अधिक 5 साल का कठोर कारावास व 2000 रूपये जुर्माना होगा।
  2. कोई व्यक्ति जो किसी मकान या स्थान का मालिक, किरायेदार, भारसाधक, एजेंट है उसे वेश्यागृह के लिये प्रयोग करता है या उसे यह जानकारी है कि ऐसे किसी स्थान या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के लिये प्रयोग में लाया जायेगा या वह अपनी इच्छा से ऐसे किसी स्थान या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के रूप मे प्रयोग करने के लिएा भागीदारी देता है तो ऐसे व्यक्ति को 2 साल तक की जेल व 2000 रूपये का जुर्माना हो सकता है यदि वह दुबारा इस अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसको 5 साल का कठोर कारावास व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
वेश्यावृत्ति के कमाई पर रहना
कोई भी 18 साल की उम्र से अधिक व्यक्ति अगर किसी वेश्या की कमाई पर रह रहा है तो ऐसे व्यक्ति को 2 साल की जेल या 1000 रूपये का जुर्माना हो सकता है या दोनों।
अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे या नाबलिग द्वारा की गई वेश्यावृत्ति की कमाई पर रहता है तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 7 साल व अधिक से अधिक 10 सला की जेल हो सकती है।
कोई भी व्यक्ति जो 18 साल से अधिक उम्र का है: 
  1. वेश्या के साथ उसके संगत में रहता है या
  2. वेश्या की गतिविधियों पर अपना अधिकार, निर्देष, या प्रभाव इस प्रकार डालता है जिससे यह मालूम होता है कि वह वेश्यावृत्ति मे सहायता, प्रोत्साहन, या मजबूर करता है या
  3. जो व्यक्ति दलाल का काम करता है तो मान कर चला जायेगा जब तक इसके विपरीत सिद्ध न हो जायें कि ऐसे व्यक्ति वेश्यावृत्ति के कमाई पर रह रहे हैं।
    वेश्यावृत्ति के लिये किसी व्यक्ति को लान, फुसलाना या लेने की चेष्टा करना
    1. किसी व्यक्ति को उसकी सहमति, या सहमति के बिना वेश्यावृत्ति के लिये लाता है लाने की कोशिश करता है या
    2. किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए फुसलाता है, ताकि वह उससे वेश्यावृत्ति करवा सके तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 3 साल व अधिक से अधिक 7 साल के कठोर कारावास व 2000 रूपये के जुर्माने के दंडित किया जा सकता है और यह अपराध किसी व्यक्ति की सहमति के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी व्यक्ति को 7 साल की जेल जो अधिकतक 14 साल तक की हो सकतीर है दंडित किया जा सकता है और अगर यह अपराध किसी बच्चे के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी को कम से कम से 7 साल की जेल और उम्र कैद भी हो सकती है।
      वेश्यागृह में किसी व्यक्ति को रोकना
      1. वेश्यागृह में रोकता है
      2. किसी स्थान पर किसी व्यक्ति को किसी के साथ जो कि उसका पति या पत्नी नहीं है संभोग करने के लिये रोकना है तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 7 साल की जेल जो कि 10 साल या उम्र कैद तक हो सकती है और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
        अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ वेश्यागृह में पाया जाता है तो वह दोषी तब माना जायेगा जब तक इसके विपरीत सिद्ध नहीं हो जाता।
        अगर बच्चे या 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति वेश्यागृह में पाया जाता है और उसकी चिकित्सकीय जाँच के बाद यह सिद्ध होता है, कि उसका लैंगिक शोषण हुआ है तो यह माना जायेगा कि ऐसे व्यक्ति को वेश्यावृत्ति करवाने के लिये रखा गया है या उसका लैंगिक शोषण आर्थिक लाभ के लिये किया जा रहा है।
        अगर कोई व्यक्ति किसी महिला या लड़की का
        1. सामान जैसे गहने, कपड़े, पैसे या अन्य सम्पति आदि अपने पास रखता है। या
        2. उसको डराता है कि वह उसके विरूद्ध कोई कानूनी कार्यवाही शुरू करेगा अगर वह अपने साथ गहने, कपड़े, पैसे या अन्य सम्पत्ति जो कि ऐसे व्यक्ति द्वारा महिला या लड़की को उधार या आपूर्ति के रूप में या फिर ऐसे व्यक्ति के निर्देष में दी गई हो ले जायेगी। तो यह माना जायेगा कि ऐसे व्यक्ति ने महिला या लड़की को वेश्यागृह में या ऐसी जगह रोका है जहाँ वह महिला या लड़की को संभोग के लिये मजबूर कर सके।
          सार्वजनिक स्थानों या उसके आस-पास वेश्यावृत्ति करना
          यदि कोई व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है या करवाता है ऐसे स्थानों पर-
          1. जो राज्य सरकार ने चिन्हित किये हों, या
          2. जो कि 200 मीटर के अन्दर किसी सार्वजनिक पूजा स्थल, शिक्षाण संस्थान, छात्रावास, अस्पताल, परिचर्यागृह या ऐसा कोई भी सार्वजनिक स्थान जिसको पुलिस आयुक्त या मैजिस्ट्रेट द्वारा अधिसूचित किया गया हो - तो ऐसे व्यक्ति को 3 महीने तक का कारावास हो सकता है।
          कोई व्यक्ति यदि किसी बच्चे से ऐसा अपराध करवाता है तो उसको कम से कम 7 साल या अधिक से अधिक उम्र कैद या 10 साल तक की जेल हो सकती है तथा जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।

          अगर कोई व्यक्ति जो -
          ऐसे सार्वजनिक स्थानों का प्रबंधक है वेश्याओं को व्यापार करने व वहाँ रूकने देता है।
          1. कोई किरायेदार, दखलदार, या देखभाल करने वाला व्यक्ति वेश्यावृत्ति के लिये ऐसे स्थानों के प्रयोग की अनुमति देता है।
          2. किसी स्थान का मालिक, ऐजेंट ऐसे स्थानों को वेश्यावृत्ति के लिये किराये पर देता है तो -
            1. वह तीन महीने की कारावास और 200 रूपये के जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
            2. यदि वह व्यक्ति फिर ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है, तो वह 6 महीने की जेल और 200 रूपये के जुर्माने से द.डित किया जा सकता है।
            3. अगर ऐसा अपराध किसी होटल में किया जाता है तो उस होटल का लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा।
          वेश्यावृत्ति के लिये किसी को फुसलाना या याचना करना
          अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर किसी व्यक्ति को किसी घर या मकान से इशारे, आवाज अपने आप को दिखाकर किसी खिड़की या बालकनी से वेश्यावृत्ति के लिये आर्कषित, फुसलाता या विनती करता है या छेड़छाड़ आवारागर्दी या इस प्रकार का कार्य करता है, जिससे वहाँ पर रहने वाले या आने जाने वालों को बाधा या परेशानी होती है तो उसको 6 महीने की जेल और 500 के जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
          अगर वह फिर से यह अपराध करता है तो उसके 1 साल की जेल और 500 रू0 जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
          अगर यह अपराध कोई पुरूष करता है तो वह कम से कम 7 दिन तथा अधिक से अधिक 3 महीने की जेल से दंडित किया जा सकता है।

          अपने संरक्षण में रहने वाल व्यक्ति को फुसलाना
          यदि कोई व्यक्ति अपने संरक्षण, देखभाल में रहने वाल किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए फुसलाता है, उकसाता है या सहायता करता है तो वह कम से कम 7 साल की जेल जो कि उम्र की कैद या 10 साल तक की हो सकती है जेल व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

          सुधार संस्था में भेजने का आदेश
          सार्वजनिक स्थानों, या उनके आस-पास वेश्यावृत्ति करना या वेश्यावृत्ति के लिये किसी को फुसलाना या याचना करने के संबंध में दोषी महिला को उसकी शारीरिक या मानसिक स्थिति के आधार पर न्यायालय उसको सुधार संस्था में भी भेजने का आदेश दे सकता है। सुधार संस्था में कम से कम दो साल व अधिक से अधिक पांच साल के लिये भेजा जा सकता है।

          विशेष पुलिस अधिकारी एवं सलाहकार बाड़ी
          राज्य सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के संबंध में विशेष पुलिस अधिकारियों को नियुक्ति करेगी। सरकार कुछ महिला सहायक पुलिस अधिकारियों की भी नियुक्ति कर सकती है।

          इस अधिनियम के अंदर दिये गये सभी अपराध संज्ञेय हैं:
          इस अधिनियम के अन्दर दिये गये अपराध के दोषी व्यक्ति को विशेष पुलिस अधिकारी, या उसके निर्देष से बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

          तलाशी लेना
          विशेष पुलिस अधिकारी या दुव्र्यापार पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी स्थान की तलाशी तब ले सकते हैं, जब उनके साथ उस स्थान के दो या दो से अधिक सम्मानित व्यक्तियों जिसमें कम से कम एक महिला भी साथ हो।
          वहाँ पर मिलने वाले व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जायेगा। ऐसे व्यक्ति की आयु, लैंगिक शोषण, यौन संबंधी बीमारियों की जानकारी के लिये चिकित्सी जाँच करायी जायेगी।
          ऐसे स्थानों पर मिलने वाल महिलायें या लड़कियों से, महिला पुलिस अधिकारी ही पूछताछ कर सकती है।

          वेश्यागृह से छुडाना
          अगर मैजिस्ट्रेट को किसी पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति किसी व्यक्ति से सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति वेश्यावृत्ति कर रहा है या करवा रहा है तो वह पुलिस अधिकारी (जो इंस्पेक्टर के श्रेणी से उच्च का होगा) उस स्थान की तलाशी लेने और वहाँ मिलने वाले लोगों को उसके सामने पेश करने को कह सकता है।
          वेश्यागृह को बन्द करना
          मजिस्ट्रेटको पुलिस से या किसी अन्य व्यक्ति से सूचना मिलती है, कि कोई घर, मकान, स्थान आदि सार्वजनिक स्थान के 200 मीटर के भीतर वेश्यावृत्ति के लिये प्रयोग किया जा रहा है तो वह उस जगह के मालिक, किरायेदार, एजेंट या जो उस स्थान की देखभाल कर रहा है उसे नोटिस देगा कि वह 7 दिन के अन्दर जवाब दें कि क्यों न स्थान को अनैतिक काम के लिये प्रयोग किये जाने वाला घोषित किया जाये।
          संबंधित पक्ष को सुनने के बाद यदि यह लगता है कि वहाँ पर वेश्यावृत्ति हो रही है, तो मजिस्टेªट 7 दिन के अंदर उसको खाली करने या उसके अनुमति के बिना किराये पर न देने का आदेश दे सकता है।

          संरक्षण गृह में रखने के लिये आवेदन
          कोई व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है या जिससे वेश्यावृत्ति कराई जाती है वह मैजिस्ट्रेट से संरक्षण गृह में रखने या न्यायालय से सुरक्षा के लिये आवेदन कर सकता है।

          वेश्याओं को किसी स्थान से हटाना
          मैजिस्ट्रेट को सूचना मिलने पर यदि यह लगता है कि उसके क्षेत्राधिकार में कोई वेश्या रह रही है, तो वह उसको वहाँ से हटने या फिर उस स्थान पर न आने का आदेश दे सकता है।
          विशेष न्यायालयों की स्थापना
          इस अधिनियम के अंतर्गत किये गये अपराधों के लिये राज्य सरकार व केन्द्र सरकार विशेष न्यायालय की स्थापना भी कर सकती है। भारतीय द.ड संहिता के अंतर्गत भी महिलाओं एवं बच्चो को बेचने व खरीदने पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रावधान बनाये गये हैं।
          18 साल के कम उम्र के लड़की को गैर कानूनी संभोग के लिये फुसलाना (धारा-366-क)
          यदि कोई व्यक्ति किसी 18 से कम उम्र की लड़की को फुसलाता है किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को यह जानते हुये कि उसके साथ अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी संभोग किया जायेगा या उसके लिये मजबूर किया जायेगा तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल व जुर्माने से दंडित किया जायेगा।
          महिला की लज्जाशीलता भंग करने के आशय से आपराधिक बल का प्रयोग करना या हमला (धारा - 354)
          जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि एतद् द्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा वह 2 वर्ष के कारावास और जुर्माने से और दोनों से दंडित किया जा सकता है।
          विदेश से लड़की का आयात करना (धारा - 366 -ख)
          अगर कोई व्यक्ति किसी 21 साल से कम उम्र की लड़की को विदेश या जम्मू-कश्मीर से लाता है, यह जानते हुये कि उसके साथ गैर कानूनी संभोग किया जायेगा या उसके लिये उसे मजबूर किया जायेगा तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल ओर जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

          वेश्यावृत्ति आदि के लिय बच्चों को बेचना (धारा - 372)

          अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे को वेश्यावृत्ति या गैरकानूनी संभोग या किसी कानून के विरूद्ध ओर दुराचारी काम में लाये जाने या उपयोग किये जाने के लिये उसको बेचता है या भाड़े पर देता है, तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल ओर जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
          यदि कोई व्यक्ति किसी 18 साल की कम उम्र की लड़की को किसी वेश्या या किसी व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेचता है, भाडे़ पर देता है तो यह माना जायेगा कि उस व्यक्ति ने लड़की की वेश्यावृत्ति के लिये बेचा है, जब तक के लिये इसके विपरित साबित न हो जाये।
          वेश्यावृत्ति आदि के लिये बच्चों को खरीदना (धारा - 373)
          अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चों को वेश्यावृत्ति या गैर कानूनी संभोग, या किसी कानून के विरूद्ध और दुराचारिक काम में लाये जाने या उपयोग किये जाने के लिये उसको खरीदता है या भाडे़ पर देता है तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।
          न्यायालों के देह व्यापार से संबंधित निर्णय:
          1. उच्चतम न्यायालय ने गौरव जैन बनाम भारत संघ में कहा है कि वेश्यावृत्ति एक अपराध है। लेकिन जो महिलाओं देह व्यापार करती है उनको दोषी कम और पीडि़त ज्यादा माना जायेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी परिस्थितियों में रहने वाली महिलाओं एवं उसके बच्चों को पढ़ायी के अवसर और आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिये तथा उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये उनकी शादियाँ भी करवानी चाहिये जिससे बाल देह व्यापार में कमी हो सके।
          2. उच्चतम न्यायालय ने प.न. कृष्णलाल बनाम केरल राज्य में कहा कि राज्य के पास यह शक्ति है कि वह कोई भी व्यापार या व्यवसाय जो गैर कानूनी, अनैतिक या समाज के लिये हानिकारक है उस पर रोक लगा सकती है।
            बलात्संग/बलात्कार (धारा - 376)
            कोई पुरूष एतस्मिसन् पश्चात् अपवादित दशा के सिवाय किसी स्त्री के साथ निम्नलिखित छह भाँति की परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में मैथुन करता है, वह पुरूष बलात्संग/बलात्कार करता है यहा कहा जाता है:-
            1. उस स्त्री की इच्छा के विरूद्ध।
            2. उस स्त्री की की सम्मति कि बिना।
            3. तीसरा - उस स्त्री की सम्मति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहित के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है।
            4. उस स्त्री की सम्मति से जबकि वह पुरूष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सम्मति इसलिए दी है कि वह ऐसा पुरूष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वस करती है।
            5. उस स्त्री की सम्मति से, जबकि ऐसी सम्मति देने के समय वह विकृतचित या मतता के कारण या उस पुरूष द्वारा व्यक्तिगत रूप में या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कोई सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है।
            6. उस स्त्री की सम्पति से या बिना सम्मति के, जबकि वह सोलह वर्ष से कम आयु की है।
            स्पष्टीकरण : बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक मैथुन गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।
            अपवाद : पुरूष का अपनी पत्नी के साथ मैथुन बलात्संग नहीं है कि जबकि पत्नी पन्द्रह वर्ष से कम आयु की नहीं है।
              अप्राकृतिक इंद्रीय भोग (धारा - 377)
              जो कोई किसी पुरूष, स्त्री या जीव जन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरूद्ध स्वेच्छया इन्द्रीय भोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              मानहानि (धारा- 499/500)
              जो कोई बोले गये या पढ़े जाने के लिये आषयित शब्दों द्वारा या संकेत द्वारा या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगता है या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति को अपहानि की जाये या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, अपवादित दशाओ को छोड़कर मानहानि करता है तो वह 2 वर्ष तक के साधारण कारावास या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              शब्द, अंग विक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित हैं (धारा - 509)
              जो कोई किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्वनि या अंग विक्षेप करेगा या कोई वस्तु प्रदर्षित करेगा, इस आशय से की ऐसी स्त्री द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाये या ऐसा अंग विक्षेप या वस्तु देखी जाये अथवा ऐसी स्त्री की एकंातता का अतिक्रमण करेगा, वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


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              हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956



              समाजिक सुधार और हिन्दू महिलाओं को पूर्ण अधिकार दिलाने की दिषा में 9 सितम्बर, 2005 का दिन एक विषेष महत्व रखेगा। इस दिन से एक अधिनियम जिसका नाम है ‘‘हिन्दु उतराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005’’ अस्तित्व में आ गया है। जिसके अन्तर्गत हिन्दू महिलाओं को पुरूषों के बराबर पूर्ण अधिकार दिया गया है। क्योंकि यह नया अधिनियम हिन्दू समाज की अभी तक की प्रचलित मान्यताओं के एकदम विपरीत है और इससे हिन्दू महिलाओं को सम्पति में नए अधिकार प्राप्त हुए हैं इसलिए इस संशोधन के द्वारा हिन्दू महिलओं के अधिकारों मे जो परिवर्तन किए गए है, उसका वर्णन इस लेख में नीचे किया जा रहा है। 
              हिन्दू महिला संयुक्त परिवार में जन्म से ही सहभागी 
              इस नये संशोधन कानून से हिन्दू उतराधिकार कानून 1956 की धारा-6 के स्थान पर एक नई धारा स्थानापन्न की गई है, जिसके अनुसार 9 सितम्बर 2005 से हर हिन्दू पुत्री जन्म से ही संयुक्त परिवार में पुत्र के बराबर भागीदार गिनी जायेगी और उसे संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र के बराबर अधिकार रहेगा। इसके साथ-साथ पुत्र के बराबर ही उस सम्पति में जो देनदारियाँ होगी। उनमें भी वह सहभागिनी होगी। लेकिन यदि किसी संयुक्त परिवार का विभाजन 20 दिसम्बर 2004 से पहले हो गया है, अर्थात जो पुराने हिन्दू कानून के अन्तर्गत हो गया है, जिसके अन्तर्गत पुत्रियों को संयुक्त परिवार की सम्पति में कोई अधिकार नहीं था तो ऐसा विभाजन रदद नहीं किया जाएगा। परन्तु 9 सितम्बर, 2005 से हिन्दू परिवार के विभाजन में जो हक पुत्र को प्राप्त होगा, वही हक पुत्री को भी प्राप्त रहेगा और उसे उतना ही हिस्सा दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाता है। इसी प्रकार यदि किसी पुत्री का देहान्त पहले हो जाता है जो संयुक्त परिवार के विभाजन के समय जीवित थी और जिस प्रकार दिंवगत पुत्र की सम्पति उसके पुत्रों और उसके उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है, उसी प्रकार दिवगंत पुत्री के उतराधिकारीयों में भी वह सम्पति बांटी जाएगी।
              संशोधन के पश्चात निम्न बातें प्रमुख हैं: 
              1. वसीयत का अधिकार - हिन्दू महिला को संयुक्त परिवार की सम्पति में अपने हिस्से को अपनी वसीयत के अनुसार बांटने का पूरा हक रहेगा। इस प्रकार एक हिन्दू महिला की मृत्यु के समय संयुक्त परिवार की सम्पति का विभाजन उसी प्रकार होगा जैसे वह मृत्यु के दिन जीवित थी और उसका जो भी हिस्सा उस समय बनता था वही उसके उतराधिकारीयों में विभाजित होगा जैसे कि पुत्र का होता है।
              2. बुजुर्गो के ऋण हेतू हिन्दू जिम्मेदार नहीं - अब नये कानून के पश्चात कोई भी न्यायालय किसी भी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरूद्ध कोई फैसला नहीं करेगी, केवल इसलिए कि ऐसा पुत्र आदि का एक पवित्र कर्तव्य था, कि वह अपने पिता के ऋणों को चुकाये। यदि कोई ऋण 9 सितम्बर 2005 से पूर्व पिता आदि ने लिया है तो पूर्व कानून के अनुसार कोई भी लेनदार पुत्र, या प्रपौत्र के खिलाफ कोर्ट में मुकद्दमा कर सकता है, जैसे कि यह नया संशोधन कानून पास ही नहीं हुआ हो।
              3. हिन्दु महिलाओं को मकान विभाजन का अधिकार - अब हिन्दू महिला संयुक्त परिवार के रिहायषी मकान का विभाजन मांग सकती है।
              4. कृषि भूमि का विभाजन हिन्दू महिला द्वारा संभव - हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 4(2) समाप्त कर दी गई है, जिसका असर यह होगा कि 9 सितम्बर 2005 से यदि हिन्दू महिलाओं को कृषि भूमि में उत्तराधिकार के रूप में कोई हक मिलेगा तो उसे कृषि भूमि के विभाजन का पूरा हक रहेगा, जैसे कि एक पुत्र को रहता है।
              5. हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह पर उत्तराधिकार की असुविधा नहीं - इस नये संशोधन अधिनियम के अनुसार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 24 को समाप्त कर दिया गया है, जिससे पूर्व दिवंगत पुत्र की विधवा स्त्री आदि या पूर्व दिवंगत पुत्र के दिवंगत पुत्र या भाई की विधवा को पुनर्विवाह पर सम्पति उत्ताधिकार का अधिकार नहीं मिलता था। अब ऐसी विधवा को उसके पुनर्विवाह के पश्चात भी अपने पिता या संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र केबराबर हिस्सा प्राप्त करने का पूरा अधिकार रहेगा।
              भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


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              भक्ति आन्दोलन में कबीर का योगदान



              भक्ति आन्दोलन वह आंदोलन है जिसमें भागवत धर्म के प्रचार और प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। भक्ति आन्दोलन ने जन सामान्य को सम्मान पूर्वक जीने का रास्ता दिखाया, आत्मगौरव का भाव जगाया और जीवन के प्रति सकारात्मक आस्था पूर्ण दृष्टिकोण विकसित किया। देश की अखण्डता और समस्त देशवासियों के कल्याण तथा मानव के समान अधिकारों को अभिव्यक्ति दी। भक्ति आन्दोलन के सम्बन्ध में शिव कुमार मिश्र लिखते हैं - "यह भक्ति आन्दोलन, सच पूछा जाए तो अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों की अनिवार्य देन था। वह युग जीवन की ऐतिहासिक माँग बनकर आया। इस तथ्य का अनुमान महज इस बात से लगाया जा सकता है कि इससे न केवल अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक जड़ता को तोड़ा, चली आती हुई सांस्कृतिक जीवन की धारा के साथ विजेताओं की नई संस्कृति को घुलाते-मिलाते हुए पहली बार जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण आदि से निरपेक्ष एक मानव धर्म तथा एक मानव संस्कृति की परिकल्पना सामने रखी। इसने शताब्दियों से कुंठित और अपमानित देश के करोड़ों-करोड़ साधारण जनों के लिए उनकी सामाजिक मुक्ति तथा आध्यात्मिकता के द्वार भी उन्मुक्त कर दिए, समाज तथा धर्म के ठेकेदारों ने जिन्हें उनके लिए कब का बन्द कर रखा था। इस आधार पर यदि यह कहा जाए कि एक स्तर पर यह भक्ति-आन्दोलन रूढि़ग्रस्त धर्म तथा उसके द्वारा अभिशप्त एक अनैतिक और अमानवीय समाज व्यवस्था के प्रति सामान्य जन के सात्विक शेष तथा उसकी दुर्दम जिजीविषा की भावात्मक अभिव्यक्ति था, तो अतिशयोक्ति न होगी।"

              Dhan Dhan Jai Satguru Kabir Ji Maharaj

              इन परिस्थितियों में कबीर के आविर्भाव को रेखांकित करते हुए शिव कुमार मिश्र लिखते हैंः  "समझौते का रास्ता छोड़कर विद्रोह का रास्ता अपनाते हुए निर्गुण भक्ति की जो धारा भक्ति-आन्दोलन की स्रोतस्वनी से फूटी कबीर उसकी सबसे ऊँची लहर के साथ सामने आए। समझौता उनकी प्रकृति में नहीं था। विद्रोह और क्रांति की ज्वाला उनकी रग-रग में व्याप्त थी सिर पर कफन बाँधकर, अपना घर फूंककर वे अलख जगाने निकले थे। उन्हें समझौता परस्तों की नहीं, अपना घर फूंक कर साथ चलने वालों की जरूरत थी वे लुकाठी लिए सरे बाजार गुहार लगा रहे थे।"

               कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ।
              जो घर जारे आपना चले हमारे साथ।।

              भक्ति आन्दोलन के व्यापक पटल पर कबीर का मूल्यांकन और उनका योगदान रेखांकित करने के लिए हमें कबीर को अन्दर से देखना-परखना होगा, क्योंकि कबीर ऊपर से एक नजर में जो दिखाते हैं उससे कहीं अधिक वो हैं। कबीर को केवल दार्शनिक, निर्गुण ब्रह्म के प्रतिपादक, समाज सुधारक, हिन्दू-मुस्लिम एकता और समन्वय के पुरोधा तथा एक संत के रूप में देखना कबीर के साथ अन्याय करना होगा।

              कबीर का मूल्यांकन उन "मूल्यों" के आधार पर करना चाहिए जिन्हें विकसित और पल्लवित करने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उस वैचारिक पृष्ठभूमि के आधार पर करना चाहिए जिसके आधार वे अकेले इतना जबर्दस्त विद्रोह कर सके। तमाम सामन्तीय जीवन प्रणाली और पुरोहिती दंभ क े विरुद्ध जन सामान्य की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान की घोषणा कर सके। सदियों से अनुप्राणित उस कठोर जमीन को तोड़ने और एक नई उर्वर जमीन को बनाने के प्रयास के आधार पर करना चाहिए जिसे उन्होंने अपने रक्त के आँसुओ से सींचा।

              सोई आँसू साजणां, सोई लोक बिडाहिं।
              जे लोइण लोई चुवैं, तो जाणो हेत हियाहिं।।

              कबीर का मूल्यांकन उनकी इस करुणा के आधार पर करना चाहिए जो समस्त मानवता के प्रति थी। चुपचाप खा-पीकर चैन से सोने वाले इस संसार की सदियों की इस नींद पर, इस जड़ता पर अन्याय को चुपचाप सहने की आदत पर और भविष्य के प्रति उदासीनता की सोच पर कबीर रात-रात भर जागते हैं और आँसू बहाते हैं।

              सुखिया सब संसार है, खावे औ सोवे।
              दुखिया दास कबीर है, जागै औ रोवे।।

              यहाँ कबीर जाग रहे हैं और रो रहे हैं शेष सब खा रहे हैं और सो रहे हैं। कबीर का यह जागना और रोना बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में कबीर देश के सांस्कृतिक नवजागरण के अग्रदूत थे। डॉ. रामविलास शर्मा ने भक्ति युग को प्रथम नव-जागरण की संज्ञा दी है। कबीर इस नवजागरण के पुरोधा थे। कबीर ने अपने समय में जिस युग सत्य का साक्षात्कार किया था उसे देखकर कबीर जैसा संवेदनशील निष्ठावान व्यक्ति रो ही सकता है। कबीर के विद्रोही होने का एक कारण यह रुदन भी है।

              कबीर अहंकार से मुक्ति में मानव-जीवन की बृहत्तर सार्थकता देखते हैं। अहं से मुक्ति उनकी प्रखर विचारधारा से जुड़ा प्रश्न है, चूँकि मध्यकालीन समाज अहं परिचालित था। वर्ग-भेद आधारित जहाँ अमीर-गरीब का अंतर है, धर्म और जाति का अंतर है। सामन्तीय-पुरोहितवाद ने अपने को सुरक्षित करने के लिए मानव-मानव के बीच कई दीवारें खड़ी कीं। इसलिए कबीर कहते हैं- अपने से बाहर निकलो, सीमाओं का अतिक्रमण कर व्यापक समाज में पहुंचा जहाँ उच्चतर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा है:

              हद चले सो मानवा, बेहद चले सो साध।
              हद बेहद दोऊ तजे, ताकर मता अगाध।।

              सहजता और सहिष्णुता जैसे मानवीय मूल्य अहं के साथ नहीं चल सकते। इन मूल्यों के अभाव में न ईश्वर मिल सकता और न सांसारिक सुख। कबीर के यहाँ "राम" ईश्वरत्व की अपेक्षा उच्चतर मूल्य-समुच्च के प्रतीक हैं। कबीर ‘राम’यानि मानवीय मूल्यों को पाने का जो रास्ता बताते हैं वह है प्रेम का। कबीर के यहाँ प्रेम भी एक जीवन मूल्य के रूप में प्रतिपादित है:

              पोथी पढि़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय।
              ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पण्डित होय।।

              इस प्रेम की अर्थ व्यंजना गहरी है और इसका आधार ईमानदार संवेदन है जो आचार-विचार की मत्रैी के लिए आवश्यक है। कबीर प्रेम को कई तरह से परिभाषित करते हैं:

              कबीर यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
              सीस उतारे भुईं धरे, सो घर पैठे आहिं।।


              प्रेम के घर में बैठने के लिए जो शर्त है वह प्रेम को उस जीवन मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित करती है जिसके बिना जीवन चल नहीं सकता। सीस काटकर जमीन पर रखने की क्षमता हो तो प्रेम को पा सकते हो।

              प्रेम न खेतो नीपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
              राजा-परजा जिस रुचै, सिर दे सौ ले जाय।।

              प्रेम के मार्ग में सम्पूर्ण समर्पण की बात कबीर बार-बार करते हैं, यह बात ध्यान देने लायक है। सम्पूर्ण भक्ति काव्य में ही नहीं हिन्दी साहित्य में बहुत कम कविताओं में प्रेम के लिए सिर काट कर रखने की शर्त मिलेगी। भक्ति काव्य में अन्य कवियों ने प्रेम में प्रिय के प्रति समर्पण की बात तो चित्रित की है, परन्तु प्रेम के लिए दुर्दम शर्त सिर्फ कबीर ही रख सकते थे। इसका कारण था यहाँ यह प्रेम व्यक्तिगत भावना या किसी एक के प्रति तरल भावनात्मक अनुभूति मात्र नहीं है। यहाँ तो वह एक ऐसी विचारधारा है, एक ऐसा दृष्टिकोण है, एक ऐसा सूत्र है जिसके आधार पर ही मानव-मानव कहा जा सकता है। आपस में मनुष्य सत्य को लेकर जी सकता है। कबीर ने एक ऐसे देश की कल्पना की जहां मनुष्य मात्र समानता के सिद्धांत पर जिये जहाँ कोई ऊंच-नीच, भेदभाव कोई विषमता और विश्रृंखलतायें न होंः

              अवधू, बेगम देश हमारा
              राजा रंक फकीर-बादशाह, सबसे कहौं पुकारा।
              जो तुम चाहो परम पद को, बसिहों देस हमारा।।

              कबीर का यह आध्यात्मिक देश उच्चतम मानव मूल्यों का देश है। सामाजिक स्तर पर जहाँ व्यक्ति का सामाजिक चेतना में पर्यवसान होना ही मानवीय मूल्यों का प्रतीक है।

              व्यक्ति के माध्यम से कबीर ने कुछ बड़ी सामाजिक-सांस्कृतिक चिंताएँ कीं और इस दृष्टि से वे अपनी अनगढ़ता में भी कुछ मूल्य स्थापनाएँ कर सके, जिसे हम उनका विशिष्ट योगदान कह सकते हैं। कबीर भक्ति काव्य की उस परम्परा के सबसे प्रखर स्वर हैं, जिसका आरंभ सिद्ध-नाथ साहित्य से हुआ। साधारण सामान्य वर्ग से आए इन कवियों ने अपने समय-समाज के प्रति तीव्र असंतोष व्यक्त किया और उन्होंने सामाजिक संस्कृति पर बल देते हुए, मध्यकाल के लिए एक नए मानववादी विकल्प का संकेत दिया।

              कबीर का सीधा आग्रह सरल जीवन पर है। सारे आडम्बर ताम-झाम से मुक्त, सामंती-पुरोहितवादी अलंकरण का निषेध। उन्होंने उन छोटी जातियों को विशेष रूप से सम्बोधित किया जिनकी कोई सामाजिक, आर्थिक पहचान नहीं थी। उन्होंने वे सामान्य विषय चुने जो मध्यकाल में उनके समक्ष मौजूद थे। वे मूलभूत प्रश्न थे - जातिवाद, पुरोहितवाद, आडम्बर, हर प्रकार का भ्रष्टाचार और शोषण-उत्पीड़न और सबसे महत्वपूर्ण जन सामान्य की प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान। इस प्रकार कबीर का यथार्थ ऊपर-ऊपर नहीं तैरता वे प्रश्नों की गहराई में उतरते हैं और एक संवेदनशील विचारक के रूप में सामने आते हैं।

              समय का यथार्थ महत्वपूर्ण रचना की अनिवार्यता है कबीर अपने युग सत्य से सबसे अधिक गहराई से जुड़े प्रतीत होते हैं। यह भोगा हुआ यथार्थ है जिसे वे अपनी विद्रोही वाणी में अभिव्यक्त करते हैं। उनका सर्वाधिक आक्रोश सामंतवाद में नए पनपे सम्प्रदायवाद, वर्ग-विभेद और दो मँहुेपन के प्रति व्यक्त हुआ है।

              कबीर मानवीय संवेदना के प्रत्येक स्पंदन से परिचित थे। पण्डितों, मुल्लाओं और अछूतों के कर्मकाण्ड और पाखण्ड उनके लिए ‘आँखों देखी’ प्रमाण थे। पहले से चले आ रहे बाह्याचारों से सामाजिक जड़ता का विकास हो रहा था। इ सीलिए मनुष्य को मनुष्य समझने और उसे संवेद्य बनाने की सार्थक चेष्टा कबीर का सबसे बड़ा योगदान है।

              यह भी पढ़े - कबीर दास जी का परिचय एवं उनके काव्य की विशेषताएँ



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