स्वाध्याय के लिए सर्वश्रेष्ठ आध्यात्मिक विचारक एवं पुस्तकों



स्वाध्याय के लिए हमेशा सत्साहित्य का ही अध्ययन करना चाहिए। इसके लिए हमारे प्राचीन ऋषि – मुनियों का ग्रन्थ बहुत ही उपयोगी है किन्तु सभी संस्कृत में है तथा जिनका अनुवाद हुआ वह भी संस्कृत स्तर का ही है अतः उन्हें हर किसी के लिए समझ पाना थोड़ा कठिन होता है । फिर भी जो कोई भी इन ग्रंथो से स्वाध्याय करना चाहे कर सकता है । इनमें वेद, उपनिषद, गीता, योगवाशिष्ठ, रामायण आदि मुख्य है । जिन्हें इन्हें पढ़ने की सुविधा ना हो वह निम्नलिखित लेखकों के साहित्य का अध्ययन कर सकते है ।
 
  • महर्षि दयानंद – दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फ़रवरी टंकारा में सन् 1824 में मोरबी (मुम्बई की मोरवी रियासत) के पास काठियावाड़ क्षेत्र (जिला राजकोट), गुजरात में हुआ था। उनके पिता का नाम करशनजी लालजी तिवारी और माँ का नाम यशोदाबाई था। उनके पिता एक कर-कलेक्टर होने के साथ ब्राह्मण परिवार के एक अमीर, समृद्ध और प्रभावशाली व्यक्ति थे। दयानंद सरस्वती का असली नाम मूलशंकर था और उनका प्रारम्भिक जीवन बहुत आराम से बीता। आगे चलकर एक पण्डित बनने के लिए वे संस्कृत, वेद, शास्त्रों व अन्य धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन में लग गए। इनकी पुस्तके आपको आर्य समाज की किसी भी वेबसाइट पर मुफ्त में डाउनलोड करने अथवा पढ़ने के लिए मिल जाएगी। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कई धार्मिक व सामाजिक पुस्तकें अपनी जीवन काल में लिखीं। प्रारम्भिक पुस्तकें संस्कृत में थीं, किन्तु समय के साथ उन्होंने कई पुस्तकों को आर्यभाषा (हिन्दी) में भी लिखा, क्योंकि आर्यभाषा की पहुँच संस्कृत से अधिक थी। हिन्दी को उन्होंने 'आर्यभाषा' का नाम दिया था। उत्तम लेखन के लिए आर्यभाषा का प्रयोग करने वाले स्वामी दयानन्द अग्रणी व प्रारम्भिक व्यक्ति थे। स्वामी दयानन्द सरस्वती की मुख्य कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
    • सत्यार्थप्रकाश
    • ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका
    • ऋग्वेद भाष्य
    • यजुर्वेद भाष्य
    • चतुर्वेदविषयसूची
    • संस्कारविधि
    • पञ्चमहायज्ञविधि
    • आर्याभिविनय
    • गोकरुणानिधि
    • आर्योद्देश्यरत्नमाला
    • भ्रान्तिनिवारण
    • अष्टाध्यायीभाष्य
    • वेदाङ्गप्रकाश
    • संस्कृतवाक्यप्रबोध
    • व्यवहारभानु
  • स्वामी विवेकानंद – स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदान्त दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानन्द की वक्तृता के कारण ही पहुँचा। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्हें प्रमुख रूप से उनके भाषण की शुरुआत "मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों" के साथ करने के लिये जाना जाता है। उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।स्वामी विवेकानंद की बहुत सारी पुस्तके Internet archive पर उपलब्ध है । आप वहाँ से डाउनलोड कर सकते है।
  • स्वामी रामतीर्थ – स्वामी रामतीर्थ का जन्म सन् 1873 की दीपावली के दिन पंजाब के गुजरावालां जिले मुरारीवाला ग्राम में पण्डित हीरानन्द गोस्वामी के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके बचपन का नाम तीर्थराम था। विद्यार्थी जीवन में इन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया। भूख और आर्थिक बदहाली के बीच भी उन्होंने अपनी माध्यमिक और फिर उच्च शिक्षा पूरी की। पिता ने बाल्यावस्था में ही उनका विवाह भी कर दिया था। वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गए। सन् 1891 में पंजाब विश्वविद्यालय की बी० ए० परीक्षा में प्रान्त भर में सर्वप्रथम आये। इसके लिए इन्हें 90 रुपये मासिक की छात्रवृत्ति भी मिली। अपने अत्यंत प्रिय विषय गणित में सर्वोच्च अंकों से एम० ए० उत्तीर्ण कर वे उसी कालेज में गणित के प्रोफेसर नियुक्त हो गए।[3] वे अपने वेतन का एक बड़ा हिस्सा निर्धन छात्रों के अध्ययन के लिये दे देते थे। इनका रहन-सहन बहुत ही साधारण था। लाहौर में ही उन्हें स्वामी विवेकानन्द के प्रवचन सुनने तथा सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। उस समय वे पंजाब की सनातन धर्म सभा से जुड़े हुए थे।  तुलसी, सूर, नानक, आदि भारतीय सन्त; शम्स तबरेज, मौलाना रूसी आदि सूफी सन्त; गीता, उपनिषद्, षड्दर्शन, योगवासिष्ठ आदि के साथ ही पाश्चात्य विचारवादी और यथार्थवादी दर्शनशास्त्र, तथा इमर्सन, वाल्ट ह्विटमैन, थोरो, हक्सले, डार्विन आदि मनीषियों का साहित्य इन्होंने हृदयंगम किया था। इन्होंने अद्वैत वेदांत का अध्ययन और मनन प्रारम्भ किया और अद्वैतनिष्ठा बलवती होते ही उर्दू में एक मासिक-पत्र "अलिफ" निकाला। इसी बीच उन पर दो महात्माओं का विशेष प्रभाव पड़ा - द्वारकापीठ के तत्कालीन शंकराचार्य और स्वामी विवेकानन्द।वेदांत पर इनकी पुस्तके बहुत ही उपयोगी है । यह भी आप Internet archive से प्राप्त कर सकते है।
  • महर्षि अरविन्द – राष्ट्रीय आन्दोलन में लगे हुए विद्यार्थियों को शैक्षिक सुविधाएं प्रदान करने हेतु कलकत्ता में एक राष्ट्रीय महाविद्यालय स्थापित किया गया। श्री अरविन्द को 150 रु प्रति माह के वेतन पर इस कॉलेज का प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया। इस अवसर का लाभ उठाते हुए श्री अरविन्द ने 'राष्ट्रीय शिक्षा' की संकल्पना का विकास किया तथा अपने शिक्षा-दर्शन की आधारशिला रखी। यही कॉलेज आगे चलकर जादवपुर विश्वविद्यालय के रूप में विकसित हुआ। प्रधानाचार्य का कार्य करते हुए श्री अरविन्द अपने लेखन तथा भाषणों द्वारा देशवासियों को प्रेरणा देते हुए राजनैतिक गतिविधियों में भाग लेते रहे। 1908 ई में राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेने के कारण श्री अरविन्द गिरफ्तार हुए व जेल में रहे। उन पर मुकदमा चलाया गया तथा अदालत में दैवयोग से उनके मुकदमे की सुनवाई सैशन जज सी पी बीचक्राफ्ट ने की जो अरविन्द के ICS के सहपाठी रह चुके थे तथा अरविन्द की कुशाग्र बुद्धि से प्रभावित थे। अरविन्द के वकील चितरंजन दास ने जज बीचक्राफ्ट से कहा- "जब आप अरविन्द की बुद्धि से प्रभावित हैं तो यह कैसे संभव है कि अरविन्द किसी षडयन्त्र से भाग ले सकते हैं?" बीच क्राफ्ट ने अरविन्द को जेल से मुक्त कर दिया।महर्षि अरविन्द की पुस्तकों के संदर्भ में हम कुछ निश्चितता से कह नहीं सकते क्योंकि इनकी पुस्तके बहुत कम मिलती है । google search से आपको मिल जाएगी।
  • परमहंस योगानंद – परमहंस योगानन्द बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द प्रथम भारतीय गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने 1920 में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत (An Autobiography of a Yogi) की लाखों प्रतिया बिकीं और सर्वदा बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही हँ।इनकी पुस्तकें स्वाध्याय के लिए बहुत ही उपयोगी है । क्योंकि इनकी पुस्तकों में शास्त्रीय बातें कम और जीवन के अनुभव अधिक हुआ करते है ।
  • स्वामी शिवानन्द – स्वामी शिवानन्द सरस्वती वेदान्त के महान आचार्य और सनातन धर्म के विख्यात नेता थे। उनका जन्म तमिलनाडु में हुआ पर संन्यास के पश्चात उन्होंने जीवन ऋषिकेश में व्यतीत किया। स्वामी शिवानन्द का जन्म अप्यायार दीक्षित वंश में 8 सितम्वर 1887 को हुआ था। उन्होने बचपन में ही वेदान्त की अध्ययन और अभ्यास किया। इसके वाद उन्होने चिकित्साविज्ञान का अध्ययन किया। तत्पश्चात उन्होने मलाया में डाक्टर के रूप में लोगों की सेवा की। सन् 1924 में चिकित्सा सेवा का त्याग करने के पश्चात ऋषिकेष में बस गये और कठिन आध्यात्मिक साधना की। सन् 1932 में उन्होने शिवानन्दाश्रम और 1936 में दिव्य जीवन संघ की स्थापना की। अध्यात्म, दर्शन और योग पर उन्होने लगभग 300 पुस्तकों की रचना की। 14 जुलाई 1963 को वे महासमाधि लाभ किये।स्वामी शिवानन्द की सभी पुस्तके आप DSSV की वेबसाइट से डाउनलोड कर सकते है ।
  • पंडित श्री राम शर्मा आचार्य – पंडित श्री राम शर्मा आचार्य की पुस्तके सबसे अच्छी है क्योंकि इन्होने जीवन के हर पहलु पर ३००० से अधिक पुस्तके लिखी है । इनकी पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य ही मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास और विचारों का परिवर्तन है । गायत्री परिवार की अखण्डज्योति पत्रिका १९४० से आज भी नवीन साधकों के लिए संजीवनी का कार्य कर रही है । पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उनने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। उन्होने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
    • पुस्तकें
      •     अध्यात्म एवं संस्कृति
      •     गायत्री और यज्ञ
      •     विचार क्रांति
      •     व्यक्ति निर्माण
      •     परिवार निर्माण
      •     समाज निर्माण
      •     युग निर्माण
      •     वैज्ञानिक अध्यात्मवाद
      •     बाल निर्माण
      •     वेद पुराण एवम् दर्शन
      •     प्रेरणाप्रद कथा-गाथाएँ
      •     स्वास्थ्य और आयुर्वेद
    • आर्श वाङ्मय (समग्र साहित्य)
      •     भारतीय संस्कृति के आधारभूत तत्व
      •     समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान
      •     गायत्री महाविद्या
      •     यज्ञ का ज्ञान-विज्ञान
      •     युग परिवर्तन कब और कैसे
      •     स्वयं में देवत्व का जागरण
      •     समग्र स्वास्थ्य
      •     यज्ञ एक समग्र उपचार प्रक्रिया
      •     ईश्वर कौन है? कहाँ है? कैसा है?
      •     निरोग जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र
      •     जीवेम शरदः शतम्
      •     विवाहोन्माद : समस्या और समाधान
    • क्रांतिधर्मी साहित्य
      •     शिक्षा ही नहीं विद्या भी
      •     भाव संवेदनाओं की गंगोत्री
      •     संजीवनी विद्या का विस्तार
      •     आद्य शक्ति गायत्री की समर्थ साधना
      •     जीवन साधना के स्वर्णिम सूत्र
      •     नवयुग का मत्स्यावतार
      •     इक्कीसवीं सदी का गंगावतरण
      •     महिला जागृति अभियान
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग १
      •     इक्कीसवीं सदी बनाम उज्ज्वल भविष्य-भाग २
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग १
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार-भाग २
      •     सतयुग की वापसी
      •     परिवर्तन के महान् क्षण
      •     महाकाल का प्रतिभाओं को आमंत्रण
      •     प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया
      •     नवसृजन के निमित्त महाकाल की तैयारी
      •     समस्याएँ आज की समाधान कल के
      •     मन: स्थिति बदले तो परिस्थिति बदले
      •     स्रष्टा का परम प्रसाद-प्रखर प्रज्ञा
      •     जीवन देवता की साधना-आराधना
      •     समयदान ही युग धर्म
      •     युग की माँग प्रतिभा परिष्कार


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अमर योद्धा नेताजी सुभाष चंद्र बोस - आजादी के प्रेरणास्त्रोत Subhash Chandra Bose Life Essay



23 जनवरी, 1897 को ओडिशा के कटक में जानकीनाथ बोस एवं प्रभावती के घर जन्मे सुभाष चंद्र बोस का जीवन अत्यंत संघर्ष पूर्ण, शौर्यपूर्ण और प्रेरणादायी है। बाल्यकाल से ही शोषितों के प्रति उनके मन में गहरी करुणा का भाव था। आठ साल की उम्र में वह स्वूफल के गेट पर खड़ी भिखारिन को रोजाना अपना आधा खाना खिला देते थे। गरीब, पीडि़त, शोषित जनता के लिए उनका दिल हमदर्दी से भरा था। क्रांतिकारियों के प्रति उनके मन में विशेष सम्मान था। विवेकानंद की शिक्षाओं का सुभाष पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। अपने विशिष्ट व्यक्तित्व एवं उपलब्धियों की वजह से सुभाष चन्द्र बोस भारत के इतिहास एक महत्वपूर्ण स्थान रखते है। सुभाष चन्द्र बोस का जन्म उस समय हुआ जब भारत में अहिंसा और असहयोग आन्दोलन अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थें। इन आंदोलन से प्रभावित होकर उन्होनें भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई। पेशे से बाल चिकित्सक डा. बोस ने नेताजी की राजनीतिक और वैचारिक विरासत के संरक्षण के उनके कोलकाता स्थित आवास में  नेताजी रिसर्च ब्यूरो की स्थापना की।
1939 में सुभाषचन्द्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आगमन
1939 में सुभाष चन्द्र बोस का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक में आगमन
सुभाष के बड़े भाई शरत चंद्र बोस और भाभी विभावती ने उनके विचारों को नई दिशा दी। शुरू से ही वह बहुत मेधावी छात्रा रहे।उनके राजनीतिक जीवन को दिशा देने में ‘देशबंधु’ चितरंजन का अहम योगदान था। शुरुवात में तो नेताजी की देशसेवा करने की बहुत मंशा थी, पर अपने परिवार की वजह से उन्होंने विदेश जाना स्वीकार किया। पिता के आदेश का पालन करते हुए वे 15 सितम्बर 1919 को लंदन गए और वहां कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन करने लगे। वहां से उन्होंने आई.सी.एस. की परीक्षा में गुणवत्ता श्रेणी में चौथा स्थान हासिल किया। भारत को आजादी दिलाने में सुभाष चंद्र बोस के योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उस समय की राजसी ठाठ-बाट वाली आइसीएस की नौकरी को छोड़कर अपने देश को मुक्त कराने के लिए निकल पड़े। लोकतांत्रिक ढंग से कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में चुने गए सुभाष ने गांधीजी की हठधर्मिता को देखते हुए उनकी इच्छा के पालन के लिए पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सुभाष चन्द्र बोस की सराहना हर तरफ हुई। देखते ही देखते वे एक युवा नेता बन गए। 3 मई 1939 को सुभाषचन्द्र बोस ने कलकता में फाॅरवर्ड ब्लाक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की।सितम्बर,1939 में द्वितीय विश्व युद्ध प्रांरभ हुआ। ब्रिटिश सरकार ने सुभाष के युद्ध विरोधी आन्दोलन से भयभीत होकर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। सन् 1940 में सुभाष को अंग्रेज सरकार ने उनके घर पर ही नजरबंद कर रखा था। नेताजी अदम्य साहस और सूजबूझ का परिचय देते हुए 17 जनवरी 1941 की सुबह वह अंग्रेजों की नजरबंदी तोड़कर कोलकाता के अपने घर से निकल गए। कोलकाता से दिल्ली, पेशावर होते हुए वह काबुल पहुंचे और वहां से जर्मनी। जर्मनी में उन्हें हिटलर ने पूरा सहयोग दिया। करीब दो दशक के राजनीतिक जीवन में से अगर जेल यात्राओं और देश निषकासन के 14 साल का समय निकाल दें तो उन्हें जनता के साथ मिलकर राजनीतिक कार्य करने के लिए करीब छह साल ही मिले। इतने कम समय में उन्होंने हिंदुस्तान के जनमानस को ऐसा आंदोलित किया, जिसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलती। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वह पनडुब्बी द्वारा जर्मनी से जापान के लिए रवाना हुए। साढ़े तीन माह की कठिन और खतरनाक यात्रा के बाद जून 1943 में जापान पहुंचकर उन्होंने वहां के प्रधानमंत्राी हिडेकी तोजो से मुलाकात की। तोजो सुभाष चंद्र बोस से अत्यंत प्रभावित हुए। सुभाष की सादगी, ओजस्विता, साहस और देश प्रेम की भावना ने जापानी प्रधानमंत्री पर अमिट छाप छोड़ी और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के सुभाष के मिशन में उन्हें भरपूर सहयोग दिया।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गान्धी के साथ हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में (सन् 1938) उन दोनों के बीच राजेन्द्र प्रसाद और नेताजी के वायें सरदार बल्लभ भाई पटेल भी दिख रहे हैं।
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस, महात्मा गांधी के साथ हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में (सन् 1938) उन दोनों के बीच राजेन्द्र प्रसाद और नेताजी के बाएं सरदार वल्लभ भाई पटेल भी दिख रहे हैं।
महान देशभक्त रासबिहारी बोस के मार्गदर्शन में सुभाष ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर के वैफथे नामक हॉल में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) का गठन किया। इस सरकार को जापान, इटली, जर्मनी, रूस, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मलेशिया सहित नौ देशों ने मान्यता प्रदान की। आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्ध मंत्री के पद की शपथ लेते हुए सुभाष ने कहा- मैं अपनी अंतिम सांस तक स्वतंत्रता यज्ञ को प्रज्वलित करता रहूंगा। नेताजी सुभाष के स्वतंत्रता संग्राम का सबसे अहम अध्याय है आजाद हिंद फौज का गठन करना और एक अविश्वसनीय युद्ध में जीत के मुहाने तक पहुंच जाना।
सुभाष का उनकी पत्नी के साथ दुर्लभ चित्र
सुभाष का उनकी पत्नी के साथ दुर्लभ चित्र
इस मुहिम में जापान ने उनकी हर तरह से सहायता की। विश्व इतिहास में आजाद हिंद फौज जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जहां 30-35 हजार युद्ध बंदियों को संगठित, प्रशिक्षित कर अंग्रेजों को पराजित किया। पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरू किया। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहां स्थानीय भारतीय लोगों से आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का और आर्थिक मदद करने का आहृान किया। रंगून के 'जुबली हॉल' में सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया भाषण सदैव के लिए इतिहास के पत्रों में अंकित हो गया जिसमें उन्होंने कहा था -"स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा। खून भी एक दो बूँद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूँ ।" द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत के ब्रिटिश सामराज्य पर आक्रमण किया। आजाद हिंदी फ़ौज ने जबरदस्त पराक्रम दिखाते हुए ब्रिटिश सेना को हराकर उन्होंने इंफाल और कोहिमा में करीब 1500 वर्ग मील के इलाके पर कब्जा कर लिया था। इंग्लैंड ने इस युद्ध को इतिहास का सबसे कठिन युद्ध माना। विश्व युद्ध के अंतिम चरण में जापान की हार के साथ समीकरण बदल गए। ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पीछे हटना पड़ा।
टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943
टोक्यो में सुभाष चंद्र बोस, 1943
प्रख्यात विद्वान सुब्रह्मण्यम स्वामी ने नेताजी के मृत्यु पर नया सनसनी खेज खुलासा किया है उनका का मानना है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की हत्या रूस में स्टालिन ने कराई थी और इसमें उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू का हाथ बताया और उनके पास इस संबध में दस्तावेज़ है जो नेताजी की जयंती पर वह मेरठ में सारे दस्तावेज और फाइलें सार्वजानिक करेगे। स्वामी का मानना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नेताजी को वार क्रिमिनल घोषित कर दिया गया तो उन्होंने एक फर्जी सूचना फ्लैश कराई गई कि प्लेन क्रैश में नेताजी की मौत हो गई। बाद में वे शरण लेने के लिए रूस पहुंचे, लेकिन वहां तानाशाह स्टालिन ने उन्हें कैद कर लिया। स्टालिन ने नेहरू को बताया कि नेताजी उनकी कैद में हैं क्या करें? इस पर उन्होंने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को इसकी सूचना भेज दी। कहा कि आपका वार क्रिमिनल रूस में है। साथ ही उन्होंने स्टालिन को इस पर सहमति दे दी कि नेताजी की हत्या कर दी जाए। स्वामी ने दावा किया कि नेहरू के स्टेनो उन दिनों मेरठ निवासी श्याम लाल जैन थे। 26 अगस्त 1945 को आसिफ अली के घर बुलाकर नेहरू ने उनसे यह पत्र टाइप कराया था। श्याम लाल ने खोसला आयोग के सामने यह बात तो रखी पर उनके पास सबूत नहीं थे। स्वामी का मानना है कि इसी अहसान में नेहरू हमेशा रूस से दबे रहे और कभी कोई विरोध नहीं किया। कहा कि नेताजी की मौत के रहस्य से पर्दा उठेगा। सच सामने आएगा कि देश के गद्दार कौन थे?
वास्तव में नेता जी की मृत्यु के संबंध में जो विवाद बना हुआ है कि 18 अगस्त 1945 के बाद का सुभाषचन्द्र बोस का जीवन/मृत्यु आज तक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है। 23 अगस्त 1945 को टोक्यो रेडियो ने बताया कि सैगोन में नेताजी एक बड़े बमवर्षक विमान से आ रहे थे कि 18 अगस्त को ताइहोकू हवाई अड्डे के पास उनका विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। विमान में उनके साथ सवार जापानी जनरल शोदेई, पायलट तथा कुछ अन्य लोग मारे गये। नेताजी गंभीर रूप से जल गये थे। उन्हें ताइहोकू सैनिक अस्पताल ले जाया गया जहाँ उन्होंने दम तोड़ दिया। कर्नल हबीबुर्रहमान के अनुसार उनका अंतिम संस्कार ताइहोकू में ही कर दिया गया। सितंबर के मध्य में उनकी अस्थियाँ संचित करके जापान की राजधानी टोक्यो के रैंकोजी मन्दिर में रख दी गयी। भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेज के अनुसार नेताजी की मृत्यु 18 अगस्त 1945 को ताइहोकू के सैनिक अस्पताल में रात्रि 21.00 बजे हुई थी। सुभाष चंद्र बोस के अंतिम समय को लेकर रहस्य बना हुआ है। माना जाता है कि हवाई हादसे में उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन सुभाष के बहुत से प्रशंसक इस थ्योरी में विश्वास नहीं रखते है।

कोलकाता स्थित नेताजी भवन में रखी कार जिसमें बैठकर सुभाष चन्द्र बोस घर से फरार हुए
कोलकाता स्थित नेताजी भवन में रखी कार जिसमें बैठकर सुभाष चन्द्र बोस घर से फरार हुए

सुभाष चन्द्र बोस के अनमोल वचन
  • तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा!
  • दिल्ली चलो।
  • याद रखिये सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
  • याद रखें सबसे बड़ा अपराध अन्याय और गलत के साथ समझौता करना है।
  • प्रांतीय ईर्ष्या-द्वेष दूर करने में जितनी सहायता हिन्दी प्रचार से मिलेगी, दूसरी किसी चीज से नहीं।
  • राष्ट्रवाद मानव जाति के उच्चतम आदर्शों सत्यम् , शिवम्, सुन्दरम् से प्रेरित है।
  • याद रखिए सबसे बड़ा अपराध अन्याय सहना और गलत के साथ समझौता करना है।
  • इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श से कोई वास्तविक परिवर्तन हासिल नहीं हुआ है। 
 चित्रों में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
सुभाष का उन दिनों का चित्र जब वे सन् 1920 में इंग्लैण्ड आईसीएस करने गये हुए थे
सुभाष का उन दिनों का चित्र जब वे सन् 1920 में इंग्लैण्ड आईसीएस करने गये हुए थे
सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस का सन् 1905 का चित्र विकिमीडिया कॉमंस से
सुभाष के पिता जानकीनाथ बोस का सन् 1905 का चित्र विकिमीडिया कॉमंस से
सुभाषचन्द्र बोस का पोर्टेट उनके हस्ताक्षर सहित
सुभाष चन्द्र बोस का पोर्टेट उनके हस्ताक्षर सहित
कटक में सुभाष चन्द्र बोस का जन्मस्थान अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
कटक में सुभाष चन्द्र बोस का जन्म स्थान अब संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है।
जापान के टोकियो शहर में रैंकोजी मन्दिर के बाहर लगी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा
जापान के टोक्यो शहर में रैंकोजी मन्दिर के बाहर लगी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की प्रतिमा

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बुद्धिवर्धक देसी जड़ी बूटी शंखपुष्पी Homegrown Herbs Shankpushpi



आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी

आयुर्वेद में हर तरह के रोगों व विकारों का रामबाण इलाज यथासंभव है यह ऐलोपैथिक डॉक्टरों ने भी माना है। आयुर्वेद में वर्णित महत्वपूर्ण औषधि शंखपुष्पी (वानस्पतिक नाम :Convolvulus pluricaulis) स्मरणशक्ति को बढ़ाकर मानसिक रोगों व मानसिक दौर्बल्यता को नष्ट करती है। इसके फूलों की आकृति शंख की भांति होने के कारण इसे शंखपुष्पी कहा गया है। इसे लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा के नाम से जाना जाता है। शंखपुष्पी को स्मृति सुधा भी कहते हैं यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्प भेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। इसमें कनेर के फूलों से मिलती-जुलती खुशबू वाले 1-2 फूल सफेद या हल्के गुलाबी रंग के लगते हैं। फल छोटे, गोल, चिकने, चमकदार भूरे रंग के लगते हैं, जिनमें भूरे या काले रंग के बीज निकलते हैं। जड़ उंगली जैसी मोटी, चौड़ी और संकरी लगभग 1 इंच होती है। शंखपुष्पी को संस्कृत में क्षीरपुष्पी, मांगल्य कुसुमा, शंखपुष्पी, हिंदी में शंखाहुली, मराठी में शंखावड़ी, बंगाली में डाकुनी या शंखाहुली गुजराती में शंखावली और लैटिन में प्लेडेरा डेकूसेटा कहते है।
गुण : यह एक तरह की घास होती है जो गर्मियों में अधिक फैलती है। शंखपुष्पी की जड़ को अच्छी तरह से धोकर, पत्ते, डंठल, फूल, सबको पीसकर, पानी में घोलकर, मिश्री मिलाकर, छानकर पीने से दिमाग में ताज़गी और स्फूर्ति आती है। शंखपुष्पी का पौधा हिन्दुस्तान के जंगलों में पथरीली जमीन पर पाया जाता है। शंखपुष्पी का पौधा लगभग 1 फुट ऊंचा होता है। इसकी पत्तियां 1 से 4 सेंटीमीटर लम्बी, 3 शिराओं वाली होती है, जिसको मलने पर मूली के पत्तों जैसी गंध निकलती है। शंखपुष्पी की शाखाएं और तना पतली, सफेद रोमों से युक्त होती है। पुष्पभेद से शंखपुष्पी की 3 जातियां लाल, सफेद और नीले रंग के फूलों वाली पाई जाती है। लेकिन सफेद फूल वाली शंखपुष्पी ही औषधि प्रयोग के लिए उत्तम मानी जाती है। गुण : आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया, नींद नही आना, याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी, दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग, विषहर, मानसिक रोग, शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर, बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है। यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान होता है। नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
आयुर्वेद के अनुसार : शंखपुष्पी तीखी रसवाली, चिकनी, विपाक में मीठी, स्वभाव में ठंडी, वात, पित और कफ को नाश करती है, यह चेहरे की चमक, बुद्धि, शक्तिवर्धक, याददाश्त को शक्ति बढ़ाने वाली, तेजवर्द्धक, मस्तिष्क के दोष खत्म करने वाली होती है। यह हिस्टीरिया , नींद नही आना ,याददाश्त की कमी, पागलपन, मिर्गी , दस्तावर, पेट के कीड़े को खत्म करता है। शंखपुष्पी कुष्ठ रोग , विषहर, मानसिक रोग , शुक्रमेह, हाई बल्डप्रेशर , बिस्तर पर पेशाब करने की आदत में गुणकारी है।
यूनानी चिकित्सा पद्धति में- शंखपुष्पी का रस बलवान माना गया है। यह नाड़ियों को ताकत देने, याददाश्त बढ़ाने, मस्तिष्क की क्रियाशीलता बढ़ाने, पागलपन, मिर्गी, शंका और नींद दूर करने की यह एक अच्छी औषधि है।
वैज्ञानिकों के अनुसार : शंखपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि इसका सक्रिय तत्व एक स्फटिकीय एल्केलाइड शंखपुष्पी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें एक एशेंसियल ऑइल भी पाया जाता है। दिमागी शक्ति को बढ़ाने वाले उत्तम रसायनों में शंखपुष्पी को उत्तम माना जाता है। दिमागी काम करने वालों के लिए यह एक उत्तम टॉनिक है। मानसिक उत्तेजनाओं, तनावों को शांत करने में यह मददगार साबित हुई है।
शुद्धता की पहचान करना - श्वेत, रक्त एवं नील तीनों प्रकार के पौधों की ही मिलावट होती है । शंखपुष्पी नाम से श्वेत, पुष्प ही ग्रहण किए जाने चाहिए । नील पुष्पी नामक (कन्वांल्व्यूलस एल्सिनाइड्स) क्षुपों को भी शंखपुष्पी नाम से ग्रहण किया जाता है जो कि त्रुटिपूर्ण है । इसके क्षुप छोटे क्रीपिंग होते हैं । मूल के ऊपर से 4 से 15 इंच लंबी अनेकों शाखाएँ निकली फैली रहती हैं । पुष्प नीले होते हैं तथा दो या तीन की संख्या में पुष्प दण्डों पर स्थित होते हैं । इसी प्रकार शंखाहुली, कालमेघ (कैसकोरा डेकुसेटा) से भी इसे अलग पहचाना जाना चाहिए । अक्सर पंसारियों के पास इसकी मिलावट वाली शंखपुष्पी बहुत मिलती है । फूल तो इसके भी सफेद होते हैं पर पौधे की ऊँचाई, फैलने का क्रम, पत्तियों की व्यवस्था अलग होती है । नीचे पत्तियां लंबी व ऊपर की छोटी होती हैं । गुण धर्म की दृष्टि से यह कुछ तो शंखपुष्पी से मिलती है पर सभी गुण इसमें नहीं होते । प्रभावी सामर्थ्य भी क्षीण अल्पकालीन होती है।
संग्रह तथा संरक्षण एवं कालावधि - छाया में सुखाएं गए पंचांग को मुखंबद डिब्बों में सूखे शीतल स्थानों में रखते हैं । यह सूखी औषधि चूर्ण रूप में या ताजे स्वरस कल्क के रूप में प्रयुक्त हो सकती है । यदि संभाल कर रखी जाए तो 1 साल तक खराब नहीं होती।

शंखपुष्पी से विभिन्न रोगों में उपचार
  • उच्च रक्तचाप : शंखपुष्पी के पंचांग का काढ़ा 2-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करते रहने से कुछ ही दिनों में उच्चरक्तचाप में लाभ मिलता है।
  • थायराइड-ग्रंथि के स्राव से उत्पन्न दुष्प्रभाव : शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से धड़कन बढ़ने, कंपन, घबराहट, अनिंद्रा (नींद ना आना) में लाभ होगा।
  • गला बैठने पर : शंखपुष्पी के पत्तों को चबाकर उसका रस चूसने से बैठा हुआ गला ठीक होकर आवाज साफ निकलती है।
  • बवासीर : 1 चम्मच शंखपुष्पी का चूर्ण प्रतिदिन 3 बार पानी के साथ कुछ दिन तक सेवन करने से बवासीर का रोग ठीक हो जाता है।
  • केशवर्द्धन हेतु : शंखपुष्पी को पकाकर तेल बनाकर प्रतिदिन बालों मे लगाने से बाल बढ़ जाते हैं।
  • हिस्टीरिया : 100 ग्राम शंखपुष्पी, 50 ग्राम वच और 50 ग्राम ब्राह्मी को मिलाकर पीस लें। इसे 1 चम्मच की मात्रा में शहद के साथ रोज 3 बार कुछ हफ्ते तक लेने से हिस्टीरिया रोग में लाभ होता है।
  • कब्ज के लिए : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी के रस को लेने से शौच साफ आती हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को 3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी की जड़ का सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर हो जाती है।
  • कमज़ोरी : 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी का रस सुबह-शाम सेवन करने से कमज़ोरी मिट जाती है।
  • पागलपन : ताजा शंखपुष्पी के 20 मिलीलीटर पंचांग का रस 4 चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करने से पागलपन का रोग बहुत कम हो जाता है।
  • बुखार में बड़बड़ाना :शंखपुष्पी के पंचांग का चूर्ण और मिश्री को मिलाकर पीस लें। इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में पानी से प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करने से तेज बुखार के कारण बिगड़ा मानसिक संतुलन ठीक हो जाता है।
  • बिस्तर में पेशाब करने की आदत : शहद में शंखपुष्पी के पंचांग का आधा चम्मच चूर्ण मिलाकर आधे कप दूध से सुबह-शाम प्रतिदिन 6 से 8 सप्ताह तक बच्चों को पिलाने से बच्चों की बिस्तर पर पेशाब करने की आदत छूट जाती है।
  • मिर्गी में :ताजा शंखपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ते) का रस 4 चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम प्रतिदिन सेवन करने से कुछ महीनों में मिर्गी का रोग दूर हो जाता है।
  • शुक्रमेह में : आधा चम्मच काली मिर्च और शंखपुष्पी का पंचांग का 1 चम्मच चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम दूध के साथ कुछ सप्ताह सेवन करने से शुक्रमेह का रोग खत्म हो जाता है।
  • स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए : 200 ग्राम शंखपुष्पी के पंचांग के चूर्ण में इतनी ही मात्रा में मिश्री और 30 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन 1 कप दूध के साथ सेवन करते रहने से स्मरण शक्ति (दिमागी ताकत) बढ़ जाती है।
शंखपुष्पी का शर्बत घर पर कैसे बनाए
  • सर्वप्रथम 250 ग्राम सुखी साबुत या पीसी हुई शंखपुष्पी ले और जिन्हें कब्ज हो वह 150 ग्राम शंखपुष्पी +100 ग्राम भृंगराज ले सकते है।
  • रात्रि में 1.5 लीटर (डेढ़ लीटर) पानी मे डाल दे और सुबह धीमी आग पर पकाए। यदि मिट्टी के बर्तन सुलभ हो तो उसमे पकाना अधिक गुणकारी है।
  • इसे इतना पकाए कि पानी 1/3 भाग रह जाए। बचे हुए पानी को साफ़ कपड़े से छान ले । ठंडा होने पर कपड़े मे दबा कर बाकी पानी निकाल ले और बचे हुए को किसी पेड़ के नीचे डाल दे। खाद का काम करेगा।
  • इसके बाद प्राप्त शंखपुष्पी के काढ़े मे 1 ग्राम सोडियम बेंजोएट (SODIUM BENZOATE ) मिला दे, यह केमिस्ट के पास मिलेगा।
  • अब इस काढ़े को रात भर रख दे ताकि मिट्टी जैसा अंश नीचे बैठ जाएगा और अगले दिन इसमे 1 किलो खांड या मिश्री व 10 ग्राम छोटी इलायची मिलाकर धीमी आग पर पकाए। जब मीठा घुल जाए तब इसे उतार ले। ठंडा होने पर काँच या प्लास्टिक कि बोतल मे भर ले। 2 चम्मच से 4 चम्मच दूध मे मिलाकर पियें या पिलाए।


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एनडीए - अच्छी नौकरी के साथ-साथ देश सेवा का जज्बा NDA - Good Job with the Passion to Serve the Country



 

थल सेना हो, नौसेना हो या वायु सेना, सेना में ऑफिसर बनना छात्रों का ख्वाब होता है। अपने इस ख्वाब को वे हकीकत में बदल सकते हैं नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) के माध्यम से। यूपीएससी द्वारा इसके लिए साल में दो बार प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। सेना में नौकरी का अलग ही क्रेज है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश सेवा का बेहतरीन अवसर मिलता है। अब सैलरी भी काफी दमदार हो गयी है। यही कारण है कि अधिकतर युवा इस नौकरी को पाने के लिये प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते है। एनडीए में नौकरी करने का एक अलग ही क्रेज होता है। इस नौकरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आपको कम उम्र मे ही कई अहम जिम्मेदारियां मिल जाती है। करीब छह दशक पूर्व अपनी स्थापना से लेकर आज तक नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) सेना के तीनों विंग्स - आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के ऑफिसर कैडेट को ट्रेनिंग देने में अग्रणी रहा है। भारतीय सशस्त्र सेना के अधिकांश ऑफिसर आज इसी संस्थान के पूर्व छा़त्र है।


 

तकनीकी विकास के अनुरूप कैडेट्स को बेहतर ट्रेनिंग देने के मद्देनजर अपनी स्थापना से लेकर अब तक इस संस्थान के स्वरूप में काफी बदलाव आया है। संस्थान की 2500 छात्रों को प्रशिक्षित करने की क्षमता भी अब बढ़कर 3000 हो चुकी है। खास बात यह है कि बेहतर ट्रेनिंग और समझ के लिये संस्थान द्वारा विश्व के अन्य प्रमुख मिलिट्री संस्थानों, जैसे यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री एकेडमी, आस्ट्रेलियन डिफेंस एकेडमी आदि के साथ मिलकर संयुक्त अभियान भी चलाया जाता है। इसके अलावा संस्थान द्वारा विभिन्न देशों, जैसे अफगानिस्तान, ईरान, इराक, नेपाल, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान आदि के कैडेट्स को भी ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान का हिस्सा आप भी बन सकते है, एनडीए की प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त करके।


डिफरेंट एग्जाम, डिफरेंट प्रिपरेशन

एनडीए की परीक्षा अन्य परीक्षाओं से काफी अलग होती है। अन्य परीक्षाओं में जहां मानसिक मजबूती देखी जाती है, तो वहीं इस परीक्षा में शारीरिक और मानसिक दोनों की मजबूती आवश्यक है। यही कारण है कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले स्टूडेंट्स कम उम्र में ही सैन्य अधिकारी बन जाते है।


बारहवीं उत्तीर्ण जरूरी

एनडीए एंट्रेंस टेस्ट के लिए अभ्यर्थी की आयु जारी अधिसूचना के अनुसार साढ़े 16 से 19 वर्ष के बीच होनी चाहिए। जो अभ्यर्थी आर्मी में प्रवेश पाना चाहते है, उनके लिए किसी भी संकाय से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। एयरफोर्स और नेवी में जाने के इच्छुक छात्रों के लिए मैथमेटिक्स और फिजिक्स से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। 12वीं की परीक्षा दे चुके छात्र भी एंट्रेंस टेस्ट के लिए अप्लाई कर सकते है। लेकिन उन्हें एसएसबी इंटरव्यू के समय 12वीं उत्तीर्ण करने का प्रमाण देना होगा। आवेदन करते समय छात्रों को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि वे किस विंग में जाना चाहते है। हालांकि अंतिम चयन लिखित परीक्षा और एसएसबी में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर ही होता है।


एग्जाम पैटर्न

एनडीए में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को तीन चरणों में एंट्रेंस टेस्ट से गुजरना होता है। सबसे पहले उन्हें यूपीएससी द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा में बैठना होता है। इसमें दो पेपर होते है- मैथ्स (300 अंकों का) और जनरल एबिलिटी (600 अंकों का)। दोनों ही पेपर ढाई-ढाई घंटे के होते है। सभी प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाइप के होंगे और गलत उत्तरों के लिये अंक काटे जाएंगे।


एसएसबी से ओएलक्यू की जाँच

रिटेन टेस्ट क्लियर करने वाले अभ्यर्थियों को सेना के सर्विस सेलेक्शन बोर्ड यानी एसएसबी द्वारा इंटरव्यू और व्यक्तित्व परीक्षण के लिये कॉल किया जाता है। इसका उददेश्य अभ्यर्थी की पर्सनैलिटी, बुद्धिमता और सेना में एक ऑफिसर के रूप में उसकी ऑफिसर लाइक क्वालिटी (ओएलक्यू) को जांचना होता है। एसएसबी के सेंटर कई शहरों में है और अभ्यर्थी को उसके निकटवर्ती सेंटर पर ही बुलाया जाता है। आमतौर पर एसएसबी इंटरव्यू पांच दिनों तक होता है, लेकिन इसमें पहले दिन स्क्रीनिंग टेस्ट ही होता है, जिसमें साइकोलॉजिस्ट टेस्ट देने होते है। इस दौरान उनका ग्रुप डिस्कशन यानी जीडी, साइकोलॉजिस्ट टेस्ट, इंटरव्यू बोर्ड तथा ग्रुप टास्क ऑफिसर द्वारा उनकी ओएलक्यू को जांचा-परखा जाता है। एनडीए परीक्षा के आधार पर अंतिम रूप् से चुने गये अभ्यर्थियों को नेशनल डिफेंस एकेडमी, खडगवासला, पुणे में तीन वर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान वे अपनी स्ट्रीम के अनुसार ग्रेजुशन की पढाई भी पूरा करते है। इसके लिये उनके पास फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ एवं कम्प्यूटर साइंस विष्यों के साथ बीएससी का या पोलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स, हिस्ट्री आदि विषयों के साथ बैचलर ऑफ़ आट्र्स यानी बीए का विकल्प होता है। हालांकि, ट्रेनिंग के पहले वर्ष में तीनों सेनाओं के लिये चयनित अभ्यर्थियों को एक ही कोर्स की पढाई करनी होती है। दूसरे साल में उनके द्वारा चुने गये बिंग यानी आर्मी, नेवी या एयरफोर्स के आधार पर उनके कोर्स का लिेबस बदल जाता है। एनडीए में तीन वर्ष की ट्रेनिंग के उपरान्त कैडेट्स को उनके द्वारा चुनी गई बिंग की विशेष जानकारी के लिये स्पेशल ट्रेनिंग पर भेजा जाता है। इसके तहत् आर्मी के लिये चयनित कैंडिडेट्स को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (देहरादून), एयरफोर्स के कैंडिडैट्स को एयरफोर्स एकेडमी (हाकिमपेट) तथा नेवी के लिये चुने गए कैंडिडेट्स को नेवल एकडमी (लोनावाला) भेजा जाता है। ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले कैडेट्स को उनके द्वारा चुने गए सेना के किसी एक बिंग में कमीशंड ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया जाता है। अगर आप इस पद के लिये गंभीर है, तो इसकी तैयारी शुरू कर दें।


तैयारी कैसे करें


मैथमेटिक्स मैथमेटिक्स के प्रश्नों को हल करने के लिए कॉन्सेप्ट क्लियर रखें तथा तीन राउंड में प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें। इससे आप अधिक से अधिक प्रश्नों का सही जवाब दे सकते है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है। मैथ्स के लगभग सभी टॉपिक से प्रश्न पूछे जाते है। इसलिए पूरे सिलेबस पर अपनी कमांड बनाए रखें।

अंग्रेजी के पेपर में अधिक अंक आएं, इसके लिए रीडिंग पर खूब ध्यान देना चाहिए। इससे कॉम्प्रिहेंशन सवालों को हल करने में मदद मिलती है। इसके अलावा वोकाबुलरी को मजबूत बनाने, एंटोनीम्स और सिनोनिम्स सेंटेंस में ग्रामर संबंधी गलतियां पहचानने और टेंस व प्रीपोजीशन की प्रैक्टिस करने पर काफी ध्यान देना चाहिए। बेहतर रीडिंग के लिए इन बातों का ध्यान रखें। किसी समाचार-पत्र के संपादकीय को नियमित रूप से पढ़े। साथ ही सामान्य पत्र-पत्रिकाएं भी पढ़ते रहें। फिक्शन, साइंस स्टोरी आदि पढ़ने का भी अभ्यास किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। वोकाबुलरी की तैयारी के दौरान प्रत्येक सिटिंग में 49-50 शब्द याद करें और फिर हर दूसरे-तीसरे दिन उन्हें दोहराते भी रहें। जो वड्र्स याद न हो, उन्हें फिर से याद करने की कोशिश करें। ऐसे शब्दों को लिखकर दीवार पर टांग दें, ताकि नजर बार-बार उन पर जाए। इडियम्स ऐंड फे्रजैज पर खास घ्यान दें।

जनरल नॉलेज में साइंस बैकग्राउंड वाले छात्रों के मुकाबले आर्ट बैकग्राउंड के छात्रों को जनरल नॉलेज में अधिक मेहनत करने की जरूरत होती है। विज्ञान विषयों में कांसेप्ट क्लियर होना चाहिए, जबकि आर्ट्स विषयों में सेलेक्टिव स्टडी फायदेमंद होती है। मॉडल प्रश्न-पत्र से यह आकलन किया जा सकता है कि किस सेक्शन से अधिक प्रश्न पूछे जाते है। करंट अफेयर्स की तैयारी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों से नियमित रूप से करनी चाहिए। जनरल नॉलेज की तैयारी के लिए 11वीं - 12वीं स्तर की किताबों का अध्ययन ठीक ढंग से करें।

एग्जाम टिप्स


टेस्ट के दौरान किसी भी प्रॉब्लम पर ज्यादा देर तक रुके रहना बहुमूल्य समय को बर्बाद करना है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रश्न-पत्र को तीन राउंड से सॉल्व करें। पहले राउंड (10 से 12 मिनट) में सबसे आसान प्रश्नों को हल करें। साथ ही मार्क करते जाए कि किन प्रश्नों को दूसरे राउंड में हल करना है। इस राउंड में कुछ मुश्किल प्रश्न हल हो जाएंगे। इसके बाद बचे हुए समय में यानी तीसरे राउंड में मुश्किल प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें।

कोई जरूरी नहीं कि पूरे नियम से ही किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ा जाये। कई बार विकल्पों पर नजर डालने से भी आपको थोड़े से मेंटल कैलकुलेशन से उत्तर का पता चल जाता है। इससे मुश्किल सवालों को हल करने के लिए समय की बचत होती है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है।

प्रैक्टिस का फायदा तो होता ही है। इसलिए मॉडल प्रश्न-पत्रों को हल करने का अधिक से अधिक प्रयास करें।

चूंकि सवाल 11 - 12वीं स्तर के होते हैं। इसलिए संबंधित सिलेबस की पढ़ाई शुरू से ही ठीक ढंग से करें।

वर्बल एबिलिटी को इम्प्रूव करें। बेहतर अंक लाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।



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प्रेरक प्रसंग लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story



प्रेरक प्रसंग - लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story 

नन्हीं बच्ची की मुस्कान ने बदला जीने का नजरिया

एक आदमी हर दिन ऑफिस जाने के लिए कालोनी के बाहर बस स्टॉप पर खड़ा रहता है। एक दिन उसने देखा कि एक महिला अपनी बच्ची के साथ वहाँ खड़ी थी। उसने उससे बस की जानकारी मांगी। आदमी ने बसों के क्रम के अनुसार उनके नंबर बता दिए। इस दौरान उस बच्ची ने उसे प्यारी-सी स्माइल दी, जो उसके मन को छू गई, उसने जेब से चॉकलेट निकालकर उसे दे दी, जो वह अकसर घर के लिए ले लिया करता था। उस बच्ची ने उसे थैंक्यू कहा। अब लगभग हर दिन बस स्टॉप पर उस व्यक्ति की उस महिला और उसकी बच्ची से नजरें मिल ही जाती थी। वह बच्ची स्माइल करती और गुड बाय बोलकर अपनी माँ के साथ बस में चली जाती थी। कुछ दिनों में पता चला कि वह बच्ची उस कालोनी में ही रहती थी। वह अकसर अन्य के साथ खेलती दिख जाती थी।
फिर एक दिन बस स्टॉप पर वह दोनों नहीं दिखे। उस आदमी ने सोचा कि हो सकता है बच्ची की छुट्टी वगैरह हो। कुछ दिन बीत गए, लेकिन वह बच्ची और उसकी माँ बस स्टॉप पर नहीं आई। वह मैदान में अन्य बच्चों के साथ भी नहीं दिखी। आदमी की जिज्ञासा बढ़ गई, उसने उनके बारे में जानकारी निकाली। पता चला कि वह महिला दुनिया छोड़ कर चली गई। महिला का पति उसे धोखा देकर छोड़ गया था। उसके पास कोई नौकरी वगैरह नहीं थी, माँ-बेटी की गुजर-बसर नहीं हो पा रही थी। अकेलेपन और तनावभरी जिंदगी से उसने हार मान ली थी। उस आदमी ने उसकी बच्ची के बारे में पूछा, तो पता चला कि उसे अनाथालय में रखा गया है क्योंकि उसका कोई नहीं था और कोई उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए भी तैयार नहीं था।
अगले ही दिन वह आदमी अनाथालय पहुँच गया। वहाँ उसने उस बच्ची के बारे में पूछा, तो उसे इशारे से बताया गया। वह अन्य बच्चों के साथ बगीचे में खेल रही थी। उसकी नज़रें उस व्यक्ति पर पड़ी, उसने फिर वही स्माइल दी। फिर वह उसके पास आई और कहने लगी - मेरी चॉकलेट कहाँ है। आदमी मुस्कुरा दिया और उसके लिए खरीदी चॉकलेट उसे दे दी। उसने फिर मधुर आवाज में उसे थैंक्यू कहा और वह चली गई। आदमी उसे खेल ते और मस्ती करते देखता रहा। रास्ते भर वह अपनी परेशानियों के बारे में सोचता रहा। वह उनके बारे में सोचता रहा, जिन्होंने उसे तकलीफ पहुँचाई। फिर भी उसे अब सब आसान लग रहा था। उसने सोचा, ये बच्ची इस हालात में भी मुस्कुरा सकती है, तो मैं क्यों नहीं। इस तरह उसने अपनी जिंदगी से निगेटिव सोच निकाल दी और अब पहले से ज्यादा खुश रहता है।
किसी काम को छोटा न समझे
नेपोलियन कहीं जा रहा था। रास्ते में उसकी नजर एक दृश्य पर पड़ी। वह रूक गया। कई कुली मिलकर भारी-भारी खंभों को उठाने का प्रयास कर रहे थे। और मारे पसीने के तरबतर थे। पास में खड़ा एक आदमी उन सबको तरह-तरह के निर्देश दे रहा था।
नेपोलियन ने उस आदमी के करीब जाकर कहा, "भला आप क्यों नहीं इन बेचारों की कुछ मदद करते ?"
उसे गुस्सा आ गया और झिड़कते हुए वह बोला, "तुझे मालूम है, मैं कौन हूँ ?"
"नहीं भाई, मैं तो अजनबी हूँ, मैं क्या जानूं कि आप कौन हैं ?" नेपोलियन ने विनम्रता से कहा।
"मैं इस काम का ठेकेदार हूँ", रोब जमाते हुए उसने कहा। नेपोलियन बिना कुछ कहे मजदूरों की तरफ चला गया और उन मजदूरों के काम में हिस्सा बांटने लगा। जब वह जाने लगा तो ठेकेदार से पूछा, "और तू कौन है ?"
"ठेकेदार साहब, बंदे को लोग नेपोलियन कहते हैं" नेपोलियन का नाम सुनते ही ठेकेदार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उसने अपनी असभ्यता के लिए उससे माफी मांगी। नेपोलियन ने उसे समझाया,"किसी भी काम को अपने ओहदे से नहीं देखना चाहिए और न ही किसी काम को छोटा समझना चाहिए।"


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जामुन - प्राकृतिक अनमोल औषधि (Berries - Natural Precious Medicine)



जामुन (वैज्ञानिक नाम : Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है और यह भारतवर्ष में प्रायः सब जगह पैदा होते हैं। वनों में उगने वाली जामुन छोटी और खट्टी होती है और बगीचों में उगने वाली बड़ी और मीठी होती है। एक जामुन की जाति नदी किनारे लगती है जिसकी पत्ती कनेर के पत्तों जैसी होती है, इसे जल-जामुन कहते हैं। इस की दूसरी जाति के पत्ते आम के पत्तों के बराबर होते हैं और फल मध्यम होते हैं। इसकी तीसरी जाति के पत्ते पीपल के पत्तों के बराबर होते हैं और चिकने तथा चमकदार होते हैं। इसका फल बड़े जामुन के रूप में होता है। जामुन की कई किस्में हैं। कुछ जामुन के पत्ते मौलसिरी के पत्तों जैसे भी होते हैं। वैशाख और ज्येष्ठ मास में इनमें फल आते हैं, इसके फलों को जामुन कहते हैं। जामुन का रंग ऊपर से काला और अन्दर से लाल होता है। अन्दर इसमें गुठली होती है। गुणों में सभी जामुन फल एक जैसे गुणकारी होते हैं और बडे़ स्वादिष्ट व मीठे होते हैं। जामुन के वृक्ष बहुत बड़े-बड़े होते हैं। इसकी लकड़ी चिकनी, सुंदर तथा कमजोर होती है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त और वर्षा ऋतु के प्रारंभ में इसके फल झड़ते हैं, जिन्हें लोग इसकी गुठलियों के लिए संग्रह करते हैं। गुठली औषधियों में प्रयोग होती है।
Jamun Information and Facts - Specialty Produce
जामुन को संस्कृत में जम्बू, सुरभीपला, महांस्कन्द्दवा, मेघमोदिनी, राजफला और शुकप्रिया कहते हैं। हिन्दी में जामुन, जामन, काला जामन, फलांदा और फलिंद कहते हैं। गुजराती में जांबू, बंगला में जाम, मराठी में जांभूल, तमिल में जंबुनावल, कर्नाटकी में नीरल या केंपुजं बीनेरलु, तेलिंगी में नेरेदु, मलयालम में नेतुजांबल या नावल, लैटिन में जांबोलेमन या सिजि़जीयम् और अंग्रेजी में जांबुल ट्री या जेम्बोल कहते हैं। जामुन का छत्र काफी घना होने के कारण इसे सड़कों के किनारे, खेतों में और खाली भूमि पर लगाया जाता है। पत्तियां गहरे हरे रंग की और चमकदार होती हैं। छाल स्लेटी-कत्थई होती है। यह नदी तट के पास बाढ़ से प्रभावित भूमि पर अधिक पैदा होता है व नदी, तालों के किनारे और दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है। सुन्दर छायादार छत्र और सदापर्णी वृक्ष होने के कारण जामुन सड़कों के किनारे बहुतायत से रोपा जाता है।
Syzygium cumini, Syzygium jambolanum, Eugenia cumini, Eugenia jambolana
जामुन एक मध्यम आकार का वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 32 मी. तक और व्यास 100 से.मी. या इससे अट्टिाक तक होता है। अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेड एवम् 875 से 5,000 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्र जामुन के लिए अनुकूल होते हैं। यह प्रजाति जलवायु की दृष्टि से बहुत सहनशील है। यह कंकरीली, क्षारीय और नमकयुक्त मृदा के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार की पृदा में पनप सकता है। जामुन छाया सहन कर सकता है। यह तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है। जामुन के बीज अंकुरण क्यारियों में एक से.मी. के अन्तराल पर पतली नालियों में बोए जाते हैं। 6-7 से.मी., ऊँचे हो जाने पर बिजौलों को अंकुरण क्यारियों से निकाल कर प्रतिरोपण क्यारियों में प्रतिरोपित कर देते हैं। पॉलीथीन थैलों में सीट्टो बीज बोकर भी इसकी पौध तैयार की जाती है इसकी समय-समय पर सिंचाई, गुड़ाई व निराई करते रहना चाहिए। एक वर्ष की पौध रोपण हेतु उपयुक्त होती है। पौट्टाशालाओं में शाखा अट्टिाक होने की स्थिति में नीचे से 1/3 ऊँचाई तक शाखाओं को तेज धार चाकू से काट देना चाहिए।
Fruit Warehouse | Jamblang  ( Syzygium cumini )
जामुन की लकड़ी भारी और मजबूत होने के कारण इमारती लकड़ी के रूप में भी उपयोगी है। बैलगाड़ी के पहिए और नावें भी जामुन की लकड़ी से बनती है। खेती के औजारों के दस्ते बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे ईंधन के रूप में भी काम में लाया जाता है। जामुन की छाल, चमड़ा पकाने और रंगने के काम आती है। इसके पके हुए फल बहुत स्वादिष्ट होते है। इसका सिरका भी बनाया जाता है। पेट के विकारो के लिए जामुन के फल और इनका सिरका अचूक दवा माना गया है।

उपयोगिता और मान्यता
आयुर्वेद के अनुसार, जामुन की छाल कसैली, मल रोधक, मधुर, पाचक, रुक्ष, रूचिकारक तथा पित्त और दाह को दूर करने वाली होती है। इसके फल मधुर, कसैले, रूचिकारक, रूखे, मलरोधक, वातवर्धक और कफ, पित्त जीवपनोपयोगी फल: जामुन तथा अफरे को दूर करने वाले होते हैं। जामुन की गुठली मधुर, मलरोधक और मधुमेह (शक्कर की बीमारी) को नष्ट करती है।

चरक के शास्त्र में जामुन की छाल को मूत्रसंग्रह और पुरीष रंजनीय बतलाया है। सुश्रुत के शास्त्र में रक्त पित्त नाशक, दाहनाशक, योनिदोषनाशक, वृष्य और संग्रही माना है। वैद्य लोग जामुन के सिरके को पेट की पीड़ा का नाश करने वाला और मूत्र अधिक लानेवाला मानते हैं। जामुन कृमि नाशक, रक्तप्रदर और रक्तातिसार का शामक है। जामुन का रस पीने से दस्त बंद हो जाती है। जामुन खून को साफ करता है और इसमें विजातीय तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने की अद्भुत क्षमता होती है।
 Jamun or Java plum - beneficial in chronic diarrhea
जामुन में निहीत तत्व व खनिज
जामुन के 100 ग्राम गूदे में लगभग 94 ग्राम पानी होता है। 14 ग्राम कार्बोहाईड्रेट (शर्करा), 14 मि ग्रा कैल्शियम, 14 मिग्रा फास्फोरस और अल्पमात्रा में लोहा पाया जाता है। प्रोटीन की मात्रा 0.7 ग्राम, वसा की मात्रा 0.3 ग्राम होती है। कुछ महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्वों के साथ 0.9 ग्राम रेशे भी पाए जाते हैं। जामुन के रस में विटामिन ‘सी’ 10 मिलीग्राम तथा कैरोटीन, थायमिन, रिबोफ्लेविन और नियासिन जैसे विटामिन भी मिलते हैं। इन सब तत्त्वों के कारण-जामुन के 100 ग्राम गूदे से 62 कैलोरी उर्जा मिल जाती है।
कुछ औषधीय प्रयोग
  1. मधुमेह (डायबिटीज) पर- जामुन की गुठली और गुड़मार बूंटी, दोनो समभाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण गर्म पानी के साथ प्रातः सायं सेवन करने से मधुमेह रोग मिट जाता है।
  2. स्वप्नदोष पर- जामुन की गुठली पीसकर चूर्ण बना लें, प्रातः सायं दो चम्मच (छः ग्राम) चूर्ण पानी से लें तथा रात्रि में दूध के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है, वीर्य के रोग दूर होते हैं तथा शीघ्रपतन व स्वप्नदोष मिट जाता है। जामुन की गुठली पंसारी या हकीमी अत्तार की दुकान से जितनी चाहें उतनी प्राप्त की जा सकती हंै।
  3. शैया मूत्र पर- निद्रावस्था में बालक-बालिका, बहुत से बड़े हो जाने के बाद भी बिस्तर में पेशाब कर देते हैं। कोई बड़ी उम्र के भी पेशाब कर देते हैं, इसे शय्यामूत्र रोग कहते हैं, इसके उपचार में जामुन की गुठली को कूटपीस कर चूर्ण बनालें, इस चूर्ण को प्रातः सायं एक चम्मच फांककर पानी पीलें, ऐसा करने से एक हफ्ते में बिस्तर में पेशाब करना मिट जायेगा।
  4. पुरानी बैठी हुई गले की आवाज पर- जामुन की गुठली का चूर्ण आधा चम्मच शहद में मिलाकर प्रातः सायं लेने से पुरानी बैठी हुई आवाज साफ हो जाती है। गायकों, वक्ताओं के लिए यह उपचार लाभकारी है।
  5. मधुमेह में- जामुन की गुठली सूखी तथा सूखे आंवले दोनों को कूटपीस कर चूर्ण बना लें। दोनों समभाग (बराबर-बराबर) ले लें। प्रातः निराहार (खाली पेट) गाय के दूध के साथ 6 ग्राम (दो चम्मच) चूर्ण फांककर दूध पी लें। ऐसा कुछ दिन करने से मधुमेह रोग समाप्त हो जाता है।
  6. चर्मरोगों पर- जामुन की गुठली बारीक पीस कर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है।
  7. कान से पानी बहने पर- जामुन की गुठली को पीसकर सरसों के तेल में डालकर गरम करें। ठण्डा होने पर सूती कपडे़ से छानकर शीशी भर लें। ड्रापर से कान में डालने से कुछ ही दिनों में कान बहना बन्द हो जाता है।
  8. मुंह के छाले- जामुन के नरम और ताजे पत्तों को पानी में पीसकर, और पानी बढ़ाकर कपड़े से छान लें, उस पानी से कुल्ले करने से मुंह के खराब से खराब छाले ठीक हो जाते हैं।
  9. बवासीर में- दस ग्राम जामुन के पत्तों को गाय के दूध में घोंटकर दस दिन तक प्रातः पीने से बवासीर में गिरने वाला खून बन्द हो जाता है।
  10. अफीम का नशा- दस ग्राम जामुन के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से अफीम का नशा उतर जाता है।
  11. जूते से काटने पर- अगर किसी के पाँव में चमड़े के जूते से काटने पर जख्म हो जाता है तो जामुन की गुठली पानी में पीसकर लगाने से जख्म ठीक हो जाता है।
  12. दस्त में- जामुन की गुठली व आम की गुठली से उसकी गिरी फोड़कर निकाल लें, दोनो समभाग लेकर चूर्ण बनालें, दूध के साथ इसकी फंकी लेने से लगातार आ रही दस्तें बन्द हो जाती है।
  13. पेट में बाल या लोहे का अंश चला जाने पर पक्के जामुन खाना चाहिए, जामुन इन्हें पेट में गला देता है। जामुन खाना स्वास्थ्य वर्द्धक है।
  14. पेट के रोगों में- पन्द्रह दिन तक लगातार दिन में जामुन फल खाने से पेट के रोगों का शमन हो जाता है और मधमेह की शिकायत हो तो वह भी मिट जाती हैं।
  15. यदि गर्भवती स्त्री को अतिसार ( दस्तों) की शिकायत हो तो जामुन फल (पके हुए) खिलाने से राहत मिलती है। शांति मिलती है।
  16. बिच्छु के दंश पर- जामुन के पत्तों का रस लगाना चाहिए।
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बाबर के समय में भी था ताजमहल अर्थात तेजोमहालय !




प्रथमतः ताजमहल राज-प्रासाद होने के कारण स्मारक की भांति जन-सामान्य के लिए खुला नहीं था जैसा कि वह अब है और वह सतर्कता से आरक्षित था। वह केवल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आमन्त्रण पर ही अधिगम्य था, या फिर विजेता के लिए। इसलिए इन दिनों के विज्ञापन एवं संचार-व्यवस्था के युग के समान कोई उसके विषय में प्रसंगों की प्राप्ति की अपेक्षा नहीं कर सकता। दूसरा उत्तर यह है कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में विस्मय विमुग्ध कर देने वाले आकर्षक भवन, प्रासाद और मन्दिर इतनी अधिक संख्या में थे कि मात्र वर्णन के आधार पर उन्हें एक-दूसरे से वरीयता नहीं दी जा सकती थी। वह सब जो हम तक पहुंचा अथवा किसी यात्री द्वारा उल्लेख किया गया वह यही है कि "वे अवर्णनीय रूप से सुन्दर है" या "आश्चर्यजनक, आकर्षक, भव्य है।" 
मुस्लिम इतिहासों में एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मुहम्मद गजनी कहता है कि मथुरा का भव्य कृष्ण मन्दिर तो 200 वर्षों में भी पूर्ण नही हो पाया होगा और विदिशा (वर्तमान भिलसा) का मन्दिर तो 300 वर्ष में पूरा हो पाया होगा। वे जो कहते हैं, कि हमें शाहजहां से पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का उल्लेख नहीं मिलता उनसे हम प्रतिप्रश्न करते हैं कि मुस्लिम आक्रामकों से पूर्व मथुरा और विदिशा के उन भव्य मन्दिरों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता? इनका उत्तर सरल है। या तो पहले के विवरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर किसी विवरण विशेष को इसलिए सुरक्षित रखने की चिन्ता नहीं की गई, क्योंकि भारत में ऐसे मन्दिरों की भरमार थी।
ताज महल की सच्चाई की कहानी
ताज महल की सच्चाई की कहानी
हमारा तीसरा उत्तर यह है कि पूर्ववर्ती इतिहास में ताजमहल एवं, अन्य भवनों के सम्बन्ध में, यद्यपि स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होते हैं, तदपि कपटपूर्ण, पारम्परिक प्रशिक्षण द्वारा बुद्धि के कुण्ठित हो जाने के कारण हम उनके महत्व को ग्रहण करने में असमर्थ रहे। ताजमहल के सम्बन्ध में यही बात है। 

बादशाह बाबर अपने संस्मरण भाग-2, पृष्ठ 192 पर हमें बताता है "गुरुवार (10 मई 1526) को मध्याह्नोत्तर मैंने आगरा में प्रवेश किया और सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में निवास किया।" उसके बाद पृष्ठ 251 पर बाबर आगे लिखता है- "ईद के कुछ ही दिनों बाद हमने सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में (11 जुलाई 1526) बड़े हाल में, जो कि पत्थर के श्रृंखलायुक्त स्तम्भों से सज्जित हैं, गुम्बद की नीचे विराट भोज का आयोजन किया।"
यहाँ स्मरणणीय है कि बाबर ने दिल्ली और आगरा पर, इब्राहीम लोदी को पानीपत में पराजित करने पर, अधिकार किया था इस प्रकार उसने उन हिन्दू प्रासादों पर अधिकार लिया जिन पर एक अन्य विदेश विजेता इब्राहीम लोदी अधिकार किए हुए था। इसलिए बाबर आगरा के उस प्रासाद को जिस पर उसने अधिकार किया था, इब्राहीम का प्रासाद कहता है।
उसका विवरण देते हुए बाबर कहता है कि राजप्रासाद पत्थरों का श्रृंख्लाबद्ध स्तम्भों से सज्जित है। यह ताजमहल के स्तम्भ-पीठ के कोनों पर स्थित चार सुन्दर श्वेत स्तम्भों की ओर स्पष्ट संकेत है। फिर उसने एक भव्य महाकक्ष का विवरण दिया है जो स्पष्टतया वह कक्ष है जिसमें मुमताज और शाहजहां की बनावटी कब्रें हैं। बाबर आगे कहता है कि इसके मध्य में एक गुम्बद है। हमें विदित है कि केन्द्रीय बनावटी मकबरों वाले कक्ष में गुम्बद है। यह मध्य में स्थित माना जाता है, क्योंकि यह चारों और से इस प्रकार कमरों से घिरा हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाबर 10 मई 1526 से अपनी मृत्यु-पर्यन्त 26 दिसम्बर 1530 तक उस प्रासाद में रहा था, जो
वर्तमान में ताजमहल नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह सिद्ध हुआ कि मुमताज(ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग 1630 में मृत्यु से कम-से-कम 100 वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते है कि दुखी शाहजहां ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।
बाबर द्वारा ताजमहल का उल्लेख करना ताजमहल के प्राचीन प्रासाद होने का चौथा स्पष्ट प्रमाण है। पहले तीन स्पष्ट प्रमाण थे- शहाजहां के दरबारी इतिहास-लेखो का यह निर्देश कि ताजमहल मानसिंह और जयसिंह का राजप्रासाद था, इसी के समान, मियां नूरुल हसन सिद्की की पुस्तक 'दि सिटी आफ ताज' के पृष्ठ 31 पर और 'ट्रेवल्स इन इंडिया' नाम पुस्तक के पृष्ठ 111 पर टैवर्नियर का वक्तव्य कि मकबरें से सम्बन्धित पूर्ण कार्य की अपेक्षा मचान बंधवाने का खर्च अधिक था, स्वीकारोक्ति है। उस वक्तव्य की विशेषता के विषय में हम पहले स्पष्ट कर चुके हैं।
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा यहीं बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत 
तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जो ताजमहल शाहजहां के प्रतितामह बाबर के अधिकार में था, किस प्रकार इस परिवार के अधिकार से निकलकर शहाजहां के समय में जयसिंह के अधिकार में आया? इसका स्पष्टीकरण यह है कि बाबर के पुत्र हुमायूं को अपने पिता बाबर की विजयों के लाभ से वंचित होकर उसे भारत छोड़कर भगोड़े की तरह भागना पड़ा था। वह पुनः भारत तो लौटा किन्तु अपनी दिल्ली विजय के 6 मास के भीतर ही परलोक सिधार गया। इसलिए बाबर की मृत्यु के तुरन्त बाद अनेक क्षेत्र, नगर और भवन हिन्दुओं के अधिकार में आ गए। इनमें फतेहपुर सीकरी, आगरा और ताजमहल थे। यह स्मरणीय है कि बाबर के पौत्र अकबर को पुनः स्वयं नए सिरे से सब कुछ करना पड़ा था। दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी का अधिकार प्राप्त करने से पूर्व अकबर को पानीपत में हिन्दू सेनापति हेमू के विरुद्ध निर्णायक युद्ध द्वारा विजय प्राप्त करनी पड़ी थी। उस समय आगरा का ताजमहल जयपुर के शासक-परिवार के अधिकार में चला गया जिसे कालान्तर में अकबर के हरम के लिए अपनी कन्या देने को बाध्य होना पड़ा था। जयपुर राज्य-परिवार का वंशज मानसिंह जो अकबर का समकालीन और उसका गुलाम था, उस समय ताजमहल का स्वामी था, और बादशाहनामा के अनुसार मानसिंह के पौत्र जयसिंह से मुमताज को दफनाने के बाद ताजमहल को हथियाया गया था।

विंसेंट स्मिथ हमें बताता है- " बाबर के संघर्षमय जीवन का उसके आगरा स्थित उद्यान-प्रासाद में शातिंमय अन्त हुआ।" पुनः यह एक ज्वलन्त प्रमाण है कि बाबर का अन्त ताजमहल में हुआ। आगरा में केवल ताजमहल ही एक ऐसा प्रासाद है, जिसमें सुरम्य उद्यान था। बादशाहनामा इसका उल्लेख 'सब्ज जमीनी' के रूप में करता है जिसका अभिप्राय होता है हरा-भरा, विस्तीर्ण वैभवशाली, रसीला, प्राचीरों से घिरा उद्यान।
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
बाबर भारत में नवागुन्तुक होने के कारण अपनी पश्चिम एशिया स्थित मातृभूमि के प्रति अनुरक्त था, इसलिए उसने इच्छा व्यक्त की थीं कि उसको काबुल के समीप दफनाया जाय। तदनुसार उसका शव वहां ले जाया गया। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो सम्भव है मुगलों की भारत में अपहरणकारी प्रवृत्ति के अनुसार ताजमहल में ही, जहां उसकी मृत्यु हुई थी, उसे दफनाया जाता। यदि वह वहां दफनाया गया होता तो हमारा इतिहास ये बतलाता कि हुमायूं ने अपने पिता के प्रति महान् धार्मिक आदरभावना के वशीभूत उसके लिए ताजमहल जैसे अद्भुत मकबरे का निर्माण कराया।
यदि मुमताज की अपेक्षा शाहजहां की दूसरी पत्नी सरहन्दी बेगम, जो कि वर्तमान में ताजमहल के बाहरी भाग मे दफन है, वह 1630 में मरी होती तो तब कदाचित् यह कहा जाता कि हथियाए गए हिन्दू प्रासाद के गुम्बद वाले केन्द्रीय कक्ष में उसे दफनाया गया था। उस स्थिति में हमारा इतिहास मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति शाहजहां के प्रेम का कपोल-कल्पित वर्णन करता।
इस प्रकार ताजमहल एक बार सन् 1530 में बाबर का मकबरा बनने से बचा और फिर एक बार 100 वर्ष के बाद सरहन्दी बेगम के मकबरे के रूप में भी भावी पीढ़ी में प्रख्यात होने से बचा। यदि ऐसा हो गया होता तो हमारा इतिहास और पर्यटक-साहित्य हुमायूं के अपने पिता बाबर के प्रति अथवा शाहजहां का मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति अगाध प्रेम का कोई-न-कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण रच ही लेता। ऐसी वे कपोल-कल्पानाएं हैं जो वर्तमान मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अपने काल्पनिक अनुमानों को प्रमाणित करने के लिए दुलकी चाल हैं। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ताजमहल में रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई। इसकी पुष्टि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा, एनैट एसव्म् बेबेरिज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित हुमायूं के इतिहास, से भी होती है।
गुलबदन बेगम के इतिहास के अनूदित संस्करण पृष्ठ 109 और 110 पर अंकित है कि (बाबर की) " मृत्यु सोमवार 26 दिसम्बर, 1530 को हुई। उन्होंने हमारी बाबुओं और माताओं का इस बहाने से वहां से बाहर भेज दिया कि चिकित्सक देखने के लिए आ रहे हैं सब उठ गए। वे सभी बेंगमों और मेरी माताओं को बड़े भवन में ले गए।" (पृष्ठ 109 पर अंकित टिप्पणी में 'ग्रेट-हाउस को प्रासाद के रूप में लिखा है।) "मृत्यु को गुप्त रखा गया। शुक्रवार 29 दिसंबर, 1530 को हुमायूं सिहासन पर बैठा" पृष्ठ 110 पर अंकित टिप्पणी कहती है- " बाबर का शव पहले वर्तमान ताजमहल से नदी के दूसरी और राम अथवा आराम बाग में रखा गया था। बाद में उसको काबुल ले जाया गया।"
उपरिलिखित उ़द्धरण से स्पष्ट है कि बाबर की मृत्यु ताजमहल में हुई थी। जब यह विदित हो गया कि उसकी मृत्यु हो गई तो हरम की औरतें जो अन्यत्र रहती थीं, प्रासाद अर्थात् ताजमहल में लाईं गयीं। बाद में हुमायूं को ताजमहल में मुकुट पहनाना था इसलिए बाबर का शव ताजमहल से उठाकर यमुना नदी के उस पार राम बाग अथवा आराम बाग नामक प्रासाद में ले जाया गया। इतिहासकारों और पुरातत्त्ववेत्ताओं की यह धारणा कि आगरा के राम बाग प्रासाद का बाबर की मृत्यु से कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य है, उसका इस उद्धरण से स्पष्टीकरण होता है।
हिन्दल (बाबर का पुत्र और बादशाह हुमायूँ का भाई) के विवाह के भोज के सम्बन्ध में गुलबदन बेगम लिखती है-" रत्नजडि़त सिंहासन जिसे मेरी मलिका ने भोज के लिए दिया उसे भव्य भवन के सामने वाले चौक में रखा गया और एक स्वर्ण-जडि़त दीवान उसके सामने रखा गया (जिस पर) बादशाह सलामत और उनकी प्रियतमा साथ-साथ बैठ, भवन (रहस्यमय) के अष्टकोणीय कक्ष में एक रत्नजडि़त सिंहासन स्थापित था और इसके ऊपर तथा नीचे स्वर्ण-जडि़त झालरें और मोती की लडि़याँ लटक रही थीं।"
रहस्यमय भवन का अष्टकोषीय कक्ष स्पष्टतया ताजमहल का वह मध्यवर्ती कक्ष है जिसमें 100 वर्ष बाद शाहजहां ने मुमताज की कब्र बनवाई और 1666 में ओरंगजेब ने अपने पिता बादशाह शाहजहां को दफनाया। ताजमहल रहस्यमय भवन इसलिए कहलाता है क्योंकि इसका मूल शिव-मन्दिर जैसा प्रतीत होता है। वही भवन विशाल भवन भी कहलाता है, क्योकि यह भव्य राजकीय आवास था। 
सुप्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो.पी. एन. ओक ने अपनी पुस्तक "ताजमहल मन्दिर भवन है" से जनजागरण हेतु प्रकाशित 
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बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि



बकुची (Psoralea corylifolia)
बकुची (Psoralea corylifolia) के छोटे-छोटे पादप, वर्षा ऋतु में समस्त भारत वर्ष में अपने आप उगते हैं तथा जगह-जगह इसकी खेती भी की जाती है। साधारणतया बाकुची के पौधे एक वर्षायु होते हैं, परन्तु उचित देखभाल करने से 4-5 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। औषधि कर्म में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। इस पर शीतकाल में पुष्प लगते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में पुष्प फलों में बदल जाते हैं।
Bakuchi for a perfect Skin
बाह्मस्वरूप - बाकुची के 1-4 फुट तक ऊंचे सीधे खडे़ कोमल पौधे होते हैं, परन्तु शाखाएं अपेक्षाकृत कड़ी और ग्रंथि बिन्दुकित होती हैं। पत्रा साधारण, सवृन्त, 1-3 लम्बी गोलाकार, प्रायः चिकनी दोनों पृष्ठों पर कृष्ण बिन्दुकित होती है। पुष्प नीली झाई लिये, हलके बैंगनी रंग के पत्राकोण से उद्भूत, मंजरियों पर 10-30 की संख्या में लगते हैं। फली छोटी-छोटी काले रंग की, लम्बी, गोल, चिकनी होती हैं तथा प्रत्येक फली में एक बीज, फली के ही आकार का कृष्ण वर्ण एवं बेल फल की भांति सुगन्धित होता है।
रासायनिक संघठन - बाकुची के बीजों में एक उड़नशील तेल, एक राल या रेबिन, एक स्थिर तेल तथा दो क्रिस्टलाइन सत्व सोरालेन पाये जाते हैं। फल के छिलके से सोरोलिडिन सत्व भी प्राप्त किया गया है। बाकुची के कुष्ठघ्न एवं कृमिघ्न कर्म इन्हीं दोनों तत्वों के कारण होते हैं।
विभिन्न रोगों में लाभ 
गुणधर्म - बाकुची मधुर, कड़वी, पाक में तिक्त, कटु रसायन, बिष्टम्भनाशक, शीतल, रुचिकारी, दस्तावर,रूखी, हृदय को हितकारी और कफ रक्तपित्त, श्वास, कोढ़, प्रमेह, ज्वर तथा कृमि को नष्ट करने वाली है। 1 फल पित्तवर्धक, केश तथा त्वचा को हितकारी, चरपरा, कुष्ठ, कफ वात, वमन, श्वास, खांसी शोथ, आम और पांडु रोग विनाशक है।
दंतकृमि - बाकुची की जड़ को पीसकर जरा सी मात्रा में भुनी हुई फिटकरी मिला लें, सुबह शाम इससे मंजन करने से दांत के कीड़े नष्ट हो जायेंगे।
श्वास - आधा ग्राम बीजों का चूर्ण अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। कफ ढीला होकर निकल जाता है।
दस्त और पेचिश - बाकुची के पत्तों का साग सुबह शाम नियमित रूप से कुछ सप्ताह खिलाते रहने से बहुत लाभ होता है।
पीलिया - 10 मिलीलीटर पुनर्नवा के रस में आधा ग्राम पिसी हुई बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम प्रतिदिन सेवन करने से लाभ होता है। ज्यादा बाकुची का सेवन वमन पैदा करता है।
अर्श - 2 ग्राम हरड़, 2 ग्राम सोंठ और 1 ग्राम बाकुची के बीज लेकर पीस लें, आधे चम्मच की मात्रा में गुड़ के साथ सुबह शाम सेवन करने से लाभ मिलेगा।
बांझपन - मासिक धर्म से शुद्ध होने के पश्चात बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनि में रखने से गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
गांठ -  बाकुची के बीजों को पीसकर गांठ पर बांधते रहने से गांठ बैठ जायेगी।

कुष्ठ रोग
  1. बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग, दोनों को चूर्ण कर गोमूत्रा में घोंटकर श्वेत दागों पर लगाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
  2. बाकुची और पवाड़ समभाग लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाने से दाग में लाभ होता है।
  3. बाकुची, गंधक व गुड्मार को बराबर की मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें तथा 12 ग्राम चूर्ण को रात्रि में जल में भिगो दें तथा प्रातःकाल निथरा हुआ जल सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ श्वेत दागों पर लगाते रहने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  4. बाकुची तेल दो भाग, तुवरक तेल दो भाग, चंदन तेल एक भाग मिलाकर रख लें, इस तेल के लगाने से सामान्य त्वक् रोग तथा श्वेत कुष्ठ आदि रोग नष्ट होते हैं।
  5. शुद्ध बाकुची चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में आंवले अथवा खैर त्वक के 100 मिलीग्राम क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  6. बाकुची को तीन दिन तक दही में भिगोकर पिफर सुखाकर रख लें। इसका आतशी शीशी में तेल निकाल लें। इस तेल में नौसादर मिलाकर श्वेत दागों पर लेप करें।
  7. बाकुची, कलौंजी, धतूरे के बीज समभाग लेकर आक के पत्तों के रस में पीसकर श्वेत दागों पर लगाने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  8. बाकुची, इमली, सुहागा और अंजीर मूलत्वक् समभाग लेकर जल में पीसकर सफेद दागों पर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  9. बाकुची, पवांड, गेरू समभाग लेकर कूट पीसकर अदरक के रस में खरल कर सफेद दागों पर लगाकर धूप सेंकने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  10. बाकुची, गेरू और गंधक समभाग लेकर, पीसकर अदरक के रस में खरल कर 10-10 ग्राम की टिकिया बनाकर एक टिकिया रात्रि को 30 मिली जल में डाल दें प्रातः ऊपर का स्वच्छ जल पी लें तथा नीचे की बची हुई औषधि को श्वेत दागों पर मालिश कर धूप सेंकने से श्वित्र (धवल) रोग नष्ट होता है।
  11. बाकुची, अजमोद, पवांड तथा कमल गट्टा समान भाग लेकर कूट पीस, मधु मिलाकर गोलियां बना लें। एक से दो गोली तक प्रातः सायं अंजीर मूल त्वक् क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है।
  12. शुद्ध बाकुची 1 ग्राम तथा काले तिल 3 ग्राम लेकर 2 चम्मच मधु मिला, प्रातः सायं सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  13. शुद्ध बाकुची, अंजीर की जड़ की छाल, नीम की छाल तथा पत्रा समभाग लेकर कूट पीसकर खैर छाल के क्वाथ में खरल करके रख लें। दो से पांच ग्राम तक की मात्रा जल के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  14. बाकुची पांच ग्राम, केसर एक भाग लेकर दोनों को कूट पीसकर गोमूत्रा में खरल कर गोली बना लें। यह गोली जल में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभप्रद है।
  15. बाकुची 100 ग्राम, गेरू 25 ग्राम, पवांड़ के बीज 50 ग्राम लेकर सबको कूट पीसकर वस्त्रा पूत चूर्ण कर भांगरे के रस की 3 भावनाएं देकर रख लें। प्रातः सायं गोमूत्रा में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभ होगा।
  16. बाकुची चूर्ण को अदरक के रस में घिसकर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  17. बाकुची दो भाग, नीला थोथा तथा सुहागा एक एक भाग लेकर कपड़छान चूर्ण कर एक सप्ताह भांगरे के रस में घोंटकर रख लें। इसको नींबू स्वरस में मिला श्वित्र पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट होते हैं। यह प्रयोग तीक्ष्ण है, अतः इसके प्रयोग के फलस्वरूप फाले होने पर यह प्रयोग बन्द कर देवें।
  18. शुद्ध बाकुची चूर्ण की एक ग्राम मात्रा, बहेड़े की छाल तथा जंगली अंजीर मूल छाल के क्वाथ में मिलाकर निरन्तर सेवन करते रहने से श्वित्र तथा घोर पुंडरीक में लाभ होता है।
  19. बाकुची हल्दी, अर्कमूलत्वक् समान भाग लेकर महीन चूर्ण कर कपड़छान कर लें। इस चूर्ण को गोमूत्रा या सिरका में पीसकर श्वित्र के दागों पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट हो जाते हैं। यदि लेप उतारने पर जलन हो तो तुबरकादि तेल लगाएं।
  20. बाकुची एक किलोग्राम को जल में भिगोकर, छिलके रहित करके पीसकर 8 किलो गौदुग्ध तथा 16 लीटर जल में पाक करें। जल के जल जाने पर दूध मात्रा लेकर उसमें जामन लगाकर जमा दें। मक्खन निकालकर उसका घी बना लें। एक चम्मच घी की मात्रा मधु मिलाकर चाटने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  21. बाकुची तेल की 10 बूंदे बताशे में डालकर प्रतिदिन कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वित्र रोग में लाभ होता है।
  22. बाकुची को गोमूत्र में भिगोकर रखें तथा तीन-तीन दिन बाद गोमूत्रा बदलते रहें, इस तरह कम से कम 7 बार करने के बाद उसको छाया मे सुखाकर पीसकर रखें। उसमें से 1-1 ग्राम सुबह शाम ताजे पानी से खाने से एक घंटा पहले सेवन करें, इससे श्वित्र (सफेद दाग) में निश्चित रूप से लाभ होता है, अनुभूत है।
  23. 1 ग्राम बाकुची और 3 ग्राम काले तिल को मिलाकर एक वर्ष तक दिन में दो बार सेवन करने से कुष्ठ रोग नष्ट होता है।
महत्वपूर्ण लेख
  1. बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि
  2. बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)
  3. उत्तम रोगनाशक रामबाण औषधि - रससिंदूर (Ras Sindoor)
  4. गुर्दे की पथरी का औषधीय चिकित्सा (Pharmacological Therapy of Kidney Stones)
  5. स्वप्नदोष रोकने का आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक इलाज
  6. हाथ और बाँह की सुन्दरता के लिए प्राकृतिक उपचार
  7. उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार
  8. सतावर के प्रमुख औषधीय उपयोग
  9. रात्रि भोजन एवं शयन के मुख्य नियम
  10. मधुमेह नाशिनी जामुन के अन्य लाभ
  11. स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है बरगद, पीपल और गूलर
  12. जटिल समस्या के लिए अचूक औषधि है अलसी
  13. औषधीय गुणों से युक्त अदरक
  14. हिस्टीरिया (Hysteria) : कारण और निवारण
  15. जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा
  16. घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज


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बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)



सही खुराक व खेलकूद बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। आजकल बच्चों को न तो संतुलित आहार ही मिल रहा है और न ही खेलने-कूदने का पर्याप्त समय ही, जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास किसी न किसी रूप में अवश्य ही प्रभावित होता है।
A Healthy Approach to Your Child's Diet...
बढ़ती उम्र में संतुलित भोजन की अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि लड़कों में 50 प्रतिशत मांसपेशियां व लड़कियों में इस उम्र में चर्बी जमा होती है। संतुलित आहार मोटापे, हाई ब्लडप्रेशर, दिल के रोग, शुगर, हड्डियों की कमजोरी, एनीमिया व विटामिन की कमी आदि से बचाता है।
भोजन की मात्रा कार्य के आधार पर होनी चाहिए। अगर थोड़ा काम करके पूरी खुराक या ज्यादा खुराक बच्चा लेगा तो वह मोटा हो जायेगा। अंदर जाने वाली कैलोरीज व कार्य के रूप में बाहर आने वाली कैलोरीज समान होनी चाहिए।
 Secrets of the benefits of the fruit on health
संतुलित भोजन में 50 प्रतिशत सलाद, सब्जियां व फल होने चाहिए। 25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट जैसे रोटी, चावल, व 25 प्रतिशत प्रोटीन जैसे दाल, दूध, पनीर आदि होना चाहिए। भोजन में अधिक फाइबर होने चाहिए व सॉफ्ट ड्रिंक को भोजन में कोई जगह न दें।
पौष्टिक और संतुलित भोजन
  • कार्बोहाइड्रेट:- कार्बोहाइड्रेट भोजन में सबसे अधिक होता है व ऊर्जा के सर्वाधिक होता हैं  फल, सब्जियां, मक्का, गेहूं, चावल। बच्चों के भोजन में इन खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
  • वसा:- वसा एसैंशियल फैटी एसिड का खजाना होता है। अनसैच्युरेटिड फैट बच्चों को दें जैसे सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, सोयाबीन का तेल आदि। सैच्युरेटिड़ फैट से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है।
  • प्रोटीन:- बढ़ते बच्चों को प्रोटीन प्रतिदिन देना चाहिए, जैसे दालें, फलियां, सोयाबीन, पनीर, दूध, दही आदि डेयरी प्रोडक्ट्स इसके प्रमुख होता हैं।
  • आयरन:- आयरन की कमी बढ़ती उम्र में एनीमिया की वजह बन सकती है। आयरन हरी पत्तेवाली सब्जियों, अनाज, फलियों, ड्राई प्रूफड्स आदि से प्राप्त होता है। इनका सेवन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में कराएं।
  • कैल्सियम:- हड्डियों की ग्रोथ बढ़ती उम्र में होती है। इस समय एक दिन में 1300 मिग्रा. कैल्सियम की आवश्यकता होती है, पर खाने में कैल्सियम की मात्रा इतनी नहीं होती है और कोल्ड ड्रिंक्स तथा कॉफ़ी ज्यादा पीने से कैल्सियम की और कमी हो जाती है। कैल्सियम दूध, पनीर, दही, केला व डेयरी उत्पाद से प्राप्त होता है।
  • जिंक:- जिंक बढ़ते बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत आवश्यक है। दालें, पनीर, दूध आदि से आसानी से इसे प्राप्त किया जा सकता है। बच्चों के भोजन में इन चींजों को शामिल करें।

नाश्ता जरूर दें:- नाश्ते का जीवन में सर्वाधिक महत्व है। यह दिमाग के लिए जरूरी है। नाश्ता करने से चुस्ती-पफुर्ती बनी रहती है और शरीर मोटा नहीं होता है। नाश्ता न करने से मोटापा घटने के बजाय और बढ़ जाता है। नाश्ता हल्का और पौष्टिक दें।
  • नाश्ते में पफास्ट फ़ूड को शामिल न करें। इनमें कैलोरीज अधिक होती हैं और फाइबर्स न के बराबर होते हैं। इन्हें खाने से मोटापा, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग और मधुमेह की बीमारी आदि हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स से दांत खराब होते हैं और हड्डियां भी कमजोर होती हैं। इनमें मिले केमिकल अन्य रोग भी पैदा करते हैं।
  • फ्रूट्स चाट, अंकुरित दालों की चाट, ड्राई फ्रूट्स की चाट बनाकर बच्चों को नाश्ते में दे सकते हैं।
  • कम फैट व कम ऊर्जा वाली चीजें ही बच्चों को नाश्ते में दें।
  • बच्चों को टी. वी. अधिक देर तक न देखने दें क्योंकि वे बैठे-बैठे जंक फ़ूड खाते व कोल्ड ड्रिक्स पीते हैं। और ऊर्जा का व्यय नहीं हो पाता है। अगर टी. वी. देखना है तो खेलना-कूदना भी जरूरी है। प्रतिदिन 30 से 40 मिनट तक शारीरिक श्रम के रूप में बच्चों को खेलने-कूदने दें और पसीना आने दें। पसीना आना बहुत जरूरी है। इससे शरीर निरोग हो जाता है और बच्चों की नींद भी गहरी आती है और नींद अच्छी आने से बच्चों का पाचन संस्थान ही नहीं बल्कि शारीरिक व मानसिक विकास भी समुचित रूप से होता है। खुराक व श्रम के संतुलन से ही बढ़ती उम्र के बच्चे स्वस्थ रहते हैं।
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