मोटर वाहन अधिनियम 1988 के तहत दंड की प्रावधान



कैबिनेट ने मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 को मंजूरी दी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 को मंजूरी दे दी है। इस संशोधन का उद्देश्य निम्नलिखित सुधार करना है:
  1. हर साल देश में 5 लाख सड़क दुर्घटनाओं की सूचना आती है जिसमें 1.5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। सरकार इन दुर्घटनाओं और मृत्यु संख्या को अगले पांच साल में 50 प्रतिशत तक कम करने के लिए प्रतिबद्ध है।
  2. सड़क सुरक्षा के मुद्दे का समाधान निकालने के लिए राजग सरकार के सत्ता में आने के तुरंत बाद ही एक ‘मसौदा सड़क परिवहन एवं सुरक्षा विधेयक’ तैयार किया गया था। हालांकि, ज्यादातर राज्यों ने अपने आपत्ति जाहिर किए।
  3. सड़क सुरक्षा के मुद्दे का समाधान करने और परिवहन विभागों का सामना करने के दौरान नागरिकों की सुविधा को बेहतर बनाने के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने राज्यों के परिवहन मंत्रियों के एक समूह (जीओएम) का गठन किया। राजस्थान के परिवहन मंत्री माननीय यूनुस खान की अध्यक्षता में इस जीओएम की तीन बैठकें आयोजित हुईं। विभिन्न राजनीतिक दलों के कुल 18 परिवहन मंत्रियों ने बैठकों में भाग लिया और उन्होंने तीन अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत कीं।
  4. इस जीओएम ने सिफारिश की कि सड़क सुरक्षा के गंभीर मुद्दे का निवारण करने और परिवहन परिदृश्य में सुधार लाने के लिए सरकार को तुरंत ही वर्तमान मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन करने चाहिए। जीओएम की सिफारिशों और अन्य अहम जरूरतों के आधार पर, सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने कैबिनेट के विचार के लिए मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 प्रस्तुत किया। आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमंडल ने इस विधेयक को स्वीकृत कर दिया है।
  5. वर्तमान मोटर वाहन अधिनियम में 223 धाराएं हैं जिनमें से इस विधेयक का लक्ष्य 68 धाराओं में संशोधन करना है। इसमें अध्याय 10 हटा दिया गया है और अध्याय 11 को नए प्रावधानों से बदला जा रहा है ताकि तीसरे पक्ष के बीमा दावों और निपटान की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सके।
  6. इन महत्वपूर्ण प्रावधानों में हिट एंड रन मामलों में मुआवजे की राशि को 25,000 रुपये से बढ़ाकर 2 लाख रुपये करना शामिल है। इसमें सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु पर 10 लाख रुपये के मुआवजे के भुगतान के लिए भी प्रावधान है।
  7. इस विधेयक में 28 नई धाराओं की प्रविष्टि का प्रस्ताव है। ये संशोधन मुख्य रूप से सड़क सुरक्षा में सुधार से जुड़े मसलों, परिवहन विभाग से व्यवहार के दौरान नागरिकों की सुविधा, ग्रामीण परिवहन का सुदृढीकरण करने, आखिरी मील तक कनेक्टिविटी व सार्वजनिक परिवहन, स्वचालन व कंप्यूटरीकरण और ऑनलाइन सेवाओं की सक्षमता पर केंद्रित है।
  8. सड़क सुरक्षा, यात्रियों की सु‌विधा, आखिरी मील तक परिवहन, सार्वजनिक परिवहन और ग्रामीण परिवहन को बढ़ावा देने के लिए राज्यों को स्टेज कैरिज और अनुबंध कैरिज परमिट में छूट देकर देश में परिवहन परिदृश्य में सुधार लाने का प्रस्ताव इस विधेयक में है।
  9. इस विधेयक में प्रस्ताव दिया गया है कि राज्य सरकार एक गुणक निर्दिष्ट कर सकती है, जो एक से कम और दस से अधिक नहीं हो, जिसे इस विधेयक के अंतर्गत हर जुर्माने और ऐसे ही संशोधित जुर्माने पर लागू किया जा सके।
  10. इस विधेयक में प्रस्तावित है कि राज्य सरकार पैदल चलने वालों के सार्वजनिक स्थल और परिवहन के ऐसे ही जरियों में गतिविधियों को विनियमित कर सकती है।
  11. ई-गवर्नेंस का उपयोग कर हितधारकों के लिए सेवाओं के वितरण में सुधार करना इस विधेयक के प्रमुख उद्देश्यों में से है। ऑनलाइन लर्निंग लाइसेंस देना, ड्राइविंग लाइसेंस की वैधता अवधि बढ़ाना, परिवहन लाइसेंस के लिए शैक्षिक योग्यता की आवश्यकता को खत्म करने जैसी सुविधाएं इसमें शामिल हैं।
  12. इस विधेयक में प्रस्ताव है कि किशोरों द्वारा किए गए अपराध के मामलों में अभिभावक / मालिक को दोषी माना जाए और किशोरों पर जेजे एक्ट के तहत मुकदमा चलाया जाए। मोटर वाहन का पंजीकरण रद्द कर दिया जाए।
  13. नए वाहनों के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया में सुधार करने के लिए डीलर के छोर पर पंजीकरण को सक्षम किया जा रहा है और अस्थायी पंजीकरण पर प्रतिबंध लगाया गया है।
  14. सड़क सुरक्षा के क्षेत्र में यातायात नियमों के उल्लंघन के खिलाफ निवारक के रूप में कार्य करने के लिए दंड बढ़ाने का प्रस्ताव इस विधेयक में है। किशोरों द्वारा गाड़ी चलाने, शराब पीकर गाड़ी चलाने, बिना लाइसेंस गाड़ी चलाने, खतरनाक ड्राइविंग, ओवर-स्पीडिंग, अधिक भार जैसे अपराधों के संबंध में सख्त प्रावधान प्रस्तावित किए जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक तौर पर उल्लंघनों का पता लगाने के प्रा‌वधान के साथ-साथ हेलमेट के लिए सख्त प्रावधान भी लाए गए हैं।
  15. सड़क दुर्घटना के शिकार लोगों की मदद करने के लिए “अच्छे नागरिक के दिशा-निर्देश” विधेयक में शामिल किए गए हैं। इस विधेयक में परिवहन वाहनों के लिए स्वचालित फिटनेस परीक्षण का प्रावधान भी है जो 1 अक्टूबर 2018 से प्रभावी होगा। इससे परिवहन विभाग में भ्रष्टाचार कम होगा जबकि वाहन की सड़क पात्रता में सुधार आएगा।
  16. सुरक्षा / पर्यावरण नियमों का जानबूझकर उल्लंघन करने और साथ ही बॉडी बिल्डरों और स्पेयर पार्ट आपूर्तिकर्ताओं के लिए दंड भी प्रस्तावित किया जा रहा है।
  17. पंजीकरण और लाइसेंस देने की प्रक्रिया की समरसता लाने के लिए “वाहन” और “सारथी” जैसे मंचों के माध्यम से ड्राइविंग लाइसेंस के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर और वाहन पंजीकरण के लिए राष्ट्रीय रजिस्टर बनाने का प्रस्ताव है। इससे देश भर में इस प्रक्रिया में एकरूपता की सुविधा होगी।
  18. वाहनों के परीक्षण और प्रमाण पत्र की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जाना प्रस्तावित है। इन परीक्षण एजेंसियों द्वारा वाहनों को मंजूरियां अब इस अधिनियम के दायरे में लाए गए हैं।
  19. ड्राइविंग प्रशिक्षण की प्रक्रिया को मजबूत किया गया है जिससे परिवहन लाइसेंस तेजी से जारी करने की सक्षमता प्राप्त होगी। इससे देश में वाणिज्यिक चालकों की कमी को दूर करने में मदद मिलेगी।
  20. दिव्यांगों के लिए परिवहन समाधानों को सुविधाजनक बनाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस देने के मामले में और दिव्यांगों के उपयोग हेतु वाहनों को फिट बनाने में विद्यमान बाधाओं को दूर कर दिया गया है।
  21. परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी ने कैबिनेट द्वारा मंजूर किए गए मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक 2016 को सड़क सुरक्षा एवं परिवहन के क्षेत्र में हुआ सबसे बड़ा सुधार करार दिया है। उन्होंने मार्गदर्शन और समर्थन के लिए माननीय प्रधानमंत्री के प्रति आभार व्यक्त किया है। इन संशोधनों को तैयार करने में राज्य परिवहन मंत्रियों के समूह द्वारा किए गए प्रयासों के लिए उन्होंने विशेष प्रशंसा व्यक्त की है। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया है कि संसद में अगले सप्ताह इन संशोधनों पर विचार किया जाएगा और उन्होंने सभी दलों से अपील की है कि इस विधेयक को समर्थन दें जो कि सुरक्षित और लोक-अनुरूप परिवहन व्यवस्था मुहैया करवाने के लिए सही दिशा में उठाया गया कदम है।
मोटर वाहन संशोधन विधेयक-2016 के अंतर्गत विभिन्न जुर्मानों में प्रस्तावित संशोधन
धारा
अपराध
पुराना प्रावधान/
जुर्माना
नया प्रस्तावित प्रावधान/ न्यूनतम जुर्माना
177
सामान्य
100 रुपये
500 रुपये
177
सड़क विनियमन उल्लंघन के नियम
100 रुपये
500 रुपये
178
बिना टिकट यात्रा
200 रुपये
500 रुपये
179
अधिकारियों के आदेशों की अवज्ञा
500 रुपये
2000 रुपये
180
बिना लाइसेंस वाहनों का अनधिकृत प्रयोग
1000 रुपये
5000 रुपये
181
बिना लाइसेंस ड्राइविंग
500 रुपये
5000 रुपये
182
अयोग्यता के बावजूद वाहन चालन
500 रुपये
10,000 रुपये
182बी
आकार से बड़े वाहन
नया
5000 रुपये
183
गति से ऊपर चलाना
400 रुपये
1000 रुपये एलएमवी के लिए, 2000 रुपये मध्यम यात्री वाहन के लिए
184
खतरनाक ड्राइविंग पर जुर्माना
1000 रुपये
5000 रुपये तक
185
शराब पीकर ड्राइविंग
2000 रुपये
10,000 रुपये
189
स्पीडिंग / रेसिंग
500 रुपये
5000 रुपये
192
बिना परमिट वाहन
5000 रुपये तक
10,000 रुपये तक
193
एग्रीगेटर (लाइसेंस शर्तों का उल्लंघन)
नया
25,000 रुपये से
1,00,000 रुपये
194
ओवरलोडिंग
2000 रु. और 1000 रु. प्रति अतिरिक्त टन
20,000 रुपये और 2000 रु. प्रति अतिरिक्त टन
194
यात्रियों की ओवरलोडिंग

1000 रुपये प्रति अतिरिक्त यात्री
194बी
सीट बेल्ट
100 रुपये
1000 रुपये
194सी
दुपहिया की ओवरलोडिंग
100 रुपये
2000 रुपये, 3 महीने लाइसेंस अयोग्य घोषित
194डी
हेलमेट
100 रुपये
1000 रुपये, 3 महीने लाइसेंस अयोग्य घोषित
194
आपातकालीन वाहनों को मार्ग प्रदान करना
नया
10,000 रुपये
196
बिना बीमा वाहन चलाना
1000 रुपये
2000 रुपये
199
किशोरों द्वारा अपराध
नया
अभिभावक/मालिक दोषी माना जाएगा। 25,000 रुपये का दंड और 3 साल कारावास। किशोर पर जेजे एक्ट के तहत केस चलेगा। मोटर वाहन का पंजीकरण रद्द होगा।
206
दस्तावेज ज़ब्त करने की अधिकारियों की शक्ति

धारा 183, 184, 185, 189, 190, 194सी, 194डी, 194 के तहत ड्राइविंग लाइसेंस रद्द
210बी
नियुक्त अधिकारियों द्वारा किए अपराध

प्रासंगिक धारा के अंतर्गत दोगुना जुर्माना
The Provision and Penalties under the Motor Vehicles Act 1988


क्र.अपराध का विवरणधारा / नियमकैद / जुर्माना की अधिकतम सजा अवधि
1.एक प्रभावी ड्राइविंग लाइसेंस पकड़े बिना ड्राइविंगS.3r/w.S181 of M.V. Act.3 महीने या रु. 500 या दोनों
2.एक कम आयु वर्ग के व्यक्ति (लघु ड्राइविंग वाहन) द्वारा ड्राइविंगS.4r/w.S.181 of M. V. Act.3 महीने या रु. 500 या दोनों
3.मालिक या एक वाहन के प्रभारी व्यक्ति एक बिना लाइसेंस व्यक्ति को या एक कम आयु वर्ग के व्यक्ति को इसे चलाने के लिए अनुमति देने वाले(माता पिता / अभिभावक / दोस्त)S.5r/w.S.180 of M. V. Act.3 महीने याRs.1000 या दोनों
4.एक ड्राइविंग लाइसेंस धारक किसी अन्य व्यक्ति को इसके प्रयोग कि अनुमति देने वालेS.6(2)r/w.S 177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
5.(i) अयोग्य करार दिया व्यक्ति को एक वाहन चालन के या
(ii) के लिए आवेदन करने या ड्राइविंग लाइसेंस या प्राप्त करने के
(iii) पहले आयोजित ड्राइविंग लाइसेंस पर बना पृष्ठांकन का खुलासा किए बिना एक लाइसेंस की मांग.
S.23r/w.S.182(1) of M. V. Act.3 महीने याRs.500
6.(i) अयोग्य करार दिया कंडक्टर कंडक्टर के रूप में अभिनय या
(ii) के लिए आवेदन करने या एक कंडक्टर का लाइसेंस या प्राप्त करने के
(iii) पहले आयोजित लाइसेंस पर बना पृष्ठांकन का खुलासा किए बिना एक लाइसेंस की मांग
S.36r/w.S. 182 of M. V. Act.एक महीने याRs.100 या दोनों
7.एक लाइसेंस के बिना ड्राइविंग स्कूल चलानाR.24 of C.M.V. नियम r/w
S.177 of M.V. Act.
Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
8.अत्यधिक गति में वाहन चालनS.112r/w S.183(1) of M.V. Act.Rs.400 पहले अपराध के लिए
Rs.1,000 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
9.कोई भी व्यक्ति अपने कर्मचारी को या अपने नियंत्रण के अधीन एक व्यक्ति अत्यधिक गति में वाहन चलाने के लिए अनुमति देनाS. 112 r/w S.183 (2) of M. V. Act.Rs.300 पहले अपराध के लिए
Rs.500 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
10.अतिरिक्त भार ले जाने के लिए एक वाहन ड्राइव करने अनुमति देनाSs.113(3),114,115 r/w S.194(1) of M. V. Act.न्यूनतमRs.2,000 और अतिरिक्तRs.1,000 अतिरिक्त लोड की प्रति टन साथ में बंद लदान अतिरिक्त भार के लिए प्रभार के साथ.
11.पूर्व तौल के लिए लोड वजन या हटाने के लिए अपने वाहन को रोकने और जमा करने से इनकारS.114 r/w S.194 (2) of M. V. Act.Rs.3,000
12.कोई भी व्यक्ति एक बाएं हाथ स्टीयरिंग नियंत्रण के साथ किसी भी वाहन चालन या ड्राइव करने की अनुमति देना जब तक की एक निर्धारित प्रकृति का एक डिवाइस से लैस न हो.S.120 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
13.खतरनाक तरीके से ड्राइविंग / इसके लिए उकसानेS.184/S.188 of M. V. Act.6 महीने याRs.1,000 पहले अपराध के लिए या दोनों
2 साल याRs.2,000 दूसरे या बाद के अपराध के लिए 3 साल अंतर्गत पिछले आयोग की या दोनों
14.एक शराबी व्यक्ति या नशीली दवाओं के प्रभाव में एक व्यक्ति द्वारा ड्राइविंगS.185/S.188 of M. V. Act.6 महीने याRs.2,000 पहले अपराध के लिए या दोनों. 2 साल याRs.3000 पिछले आयोग की 3 साल के भीतर प्रतिबद्ध दूसरे या बाद के अपराध के लिए या दोनों.
15.जब मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से अयोग्य ड्राइव करना / उकसानाS.186/S.188 of M. V. Act.Rs.200 पहले अपराध के लिए
Rs.500 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
16.बिन बीमा के वाहन चालानS.146 r/w. S. 196 of M. V. Act.3 महीने याRs.1,000 या दोनों
17.यातायात संकेत (रेड लाइट जंपिंग, पीली लाइन का उल्लंघन, संकेत के बिना लेन को बदलने, आदि) पालन ना करने के लिएS.119 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए.
18.निर्धारित अवसरों पर निर्धारित संकेत ना करने के लिएS.121 r/w. S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
19.निर्दिष्ट सड़कों / क्षेत्रों पर HTVs पर समय के प्रतिबंध का उल्लंघनS.115 r/w S. 194 of M. V. Act.Rs.2,000
20.चालक द्वारा किसी भी व्यक्ति को वाहन के अपने नियंत्रण में रूकावट डालने के लिए अनुमति (ड्राइविंग आदि में बाधा के रूप में तो एक जगह पर बैठे)S.125 r/w S.177 of M. v. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
21.दुपहिया वाहन / मोटर साइकिल चालक खुद के अलावा एक व्यक्ति से अधिक सवारी बैठने पर (तीन सवारी)S.128 (1) r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए.
22.बिना हेलमेट के चालक और पीछे की सीट पर बैठने परS.129 r/w S. 177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
23.कोई भी व्यक्ति या किसी वाहन के प्रभारी व्यक्ति किसी भी वाहन या ट्रेलर को किसी भी सार्वजानिक स्थान पर अवैध तरीके से छोड़ने पर या इसकी अनुमति देने परSs.122, 127 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए (मालिक भी रस्सा लागत के लिए उत्तरदायी होगा)
24.कोई भी व्यक्ति या किसी वाहन के प्रभारी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति को चल रहे बोर्ड पर ले जाने पर या इसकी अनुमति देने पर .S.123(1) r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
25.एक वाहन रखने या आवश्यक सावधानियों के बिना एक वाहन स्टेशनरी रखना या रखने के लिए अनुमति देनाS.126 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
26.असुरक्षित रेलवे फाटक पर सावधानी बरतने की विफलताS.131 r/w S. 177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
27.कुछ दशाओं में रोकने के लिए ड्राइवर की विफलताS.132 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
28.एक वाहन ड्राइविंग करते समय मोबाइल फोन का उपयोग करनाR.21(25) of C.M.V. rules r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
29.माल गाड़ी में बैठने की क्षमता से अधिक व्यक्तियों कोले जानाR.21(10) of C.M.V. Rules r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
30.ऑटोरिक्शा / टैक्सी द्वारा अधिक किराया की मांगR.21(23) of C. M. V. Rules r/w S. 177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
31.नंबर प्लेट के बिना मोटर वाहन ड्राइविंग (नंबर प्लेट न दिखना )R.50 of C.M.V. Rules r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
32.परिवहन वाहन में विस्फोटक और अत्यधिक ज्वलनशील पदार्थ का को ले जानाS. 177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
33.कोई व्यक्ति चल रहे बोर्ड पर या शीर्ष पर या एक मोटर वाहन के बोनट पर जा के सफ़र करनाS.123(2) r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
34.यातायात के मुक्त प्रवाह के लिए बाधा पैदा करने के लिए किसी भी सार्वजनिक स्थान में एक निष्क्रिय वाहन रखने वाले व्यक्ति पर.S. 201 of M.V. Act.Rs.50 प्रति घंटे रस्सा शुल्क के अलावा
35.निर्धारित समय के भीतर एक वाहन के मालिक से व्यापार के निवास या जगह के परिवर्तन को सूचित करने में विफलता.S.49 r/w S.177 of M.V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए (हालांकि, राज्य सरकार ने देरी की अवधि को ध्यान में रखते हुए अलग अलग मात्रा में निर्धारित कर सकते हैं)
36.निर्धारित समय के भीतर वाहन के हस्तांतरण के पंजीकरण प्राधिकारी तथ्य को रिपोर्ट करने में विफलताS.50 r/w S.177 of M. V. Act.Rs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए (हालांकि, राज्य सरकार ने देरी की अवधि को ध्यान में रखते हुए अलग अलग मात्रा में निर्धारित कर सकते हैं)
37.वाहन में अनधिकृत परिवर्तन (ईंधन का एक अलग प्रकार से इसके संचालन की सुविधा सहित)S.52 r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए (हालांकि, राज्य सरकार ने देरी की अवधि को ध्यान में रखते हुए अलग अलग मात्रा में निर्धारित कर सकते हैं)
38.चालक, एक सार्वजनिक स्थान में, वर्दी में किसी भी पुलिस अधिकारी की मांग पर, अपने लाइसेंस दिखाने में विफलS.130(1) r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
39.किसी भी सार्वजनिक स्थान में कंडक्टर, मोटर वाहन विभाग के किसी भी अधिकारी द्वारा, मांग पर, अपने लाइसेंस दिखाने में विफलS.130(2) r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
40.मोटर वाहन के मालिक या प्रभारी द्वारा किसी भी पंजीयन प्राधिकारी, या किसी अन्य अधिकारी द्वारा मांग पर
(1) वाहन के बीमा का प्रमाण पत्र, अगर हाथन परिवन वाहन है तो
(2) फिटनेस का प्रमाण पत्र, और
(3) परमिट, दिखाने में असमर्थ होने पर
S.130(3) r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
41.किसी भी मोटर वाहन चालक द्वारा किसी सार्वजानिक स्थान पर मोटर वाहन विभाग के अधिकारियों के या वर्दी में एक पुलिस अधिकारी के द्वारा मांग पर,
(क) बीमा का प्रमाण पत्र.
(ख) पंजीकरण का प्रमाण पत्र.
(ग) ड्राइविंग लाइसेंस और एक परिवहन वाहन के मामले में.
(घ) फिटनेस का प्रमाण पत्र और
(ई) परमिट
के दिखाने में असमर्थ पाये जाने पर.
S.158 r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए.
Rs.300 दूसरे या बाद के अपराध के लिए.
42.जब एक मोटर वाहन के ड्राइवर या कंडक्टर एमवी एक्ट के तहत किसी अपराध का आरोप लगाया जाता है. ऐसे में वाहन के मालिक द्वारा एक पुलिस अधिकारी द्वारा मांग पर नाम और पते की और ड्राइवर या कंडक्टर द्वारा रखे लाइसेंस के बारे में जानकारी देने में असमर्थ होने पर.S.133 r/w S.187 of M. V. Act3 महीने याRs.500 पहले अपराध के लिए या दोनों.
6 महीने orRs.1,000 बाद के अपराध के लिए या दोनों
43.किसी वाहन दुर्घटना में किसी भी व्यक्ति को चोट आता है या किसी तीसरे पक्ष के किसी भी संपत्ति का नुक्सान होता है तो वाहन चालाक या प्रभारी व्यक्ति पर
(क) दुर्घटना का शिकार हुए व्यक्ति को चिकित्सा सहायता मुहैया नहीं कराने पर.
(ख) एक पुलिस अधिकारी द्वारा या नजदीकी पुलिस स्टेशन पर मांग पर दुर्घटना के बारे में जानकारी न देने पर.
(ग) बीमा कंपनी को दुर्घटना के बारे में जानकारी नहीं देने पर.
S.134 r/w S.187 of M. V. Act3 महीने याRs.500 पहले अपराध के लिए या दोनों
6 महीने orRs.1,000 बाद के अपराध के लिए या दोनों.
44.प्रभावी पंजीकरण के बिना कोई भी व्यक्ति ड्राइविंग या मालिक वाहन ड्राइव करने की अनुमति देने पर किसी भी सार्वजनिक या किसी अन्य जगह में झूठी पंजीकरण चिह्न प्रदर्शित करने पर ("अपंजीकृत वाहन" का प्रयोग या "आवेदित किया गया है" दिखाने पर)S.39(1) r/w S. 192(1) of M. V. Actपहले अपराध के लिएRs.5,000 लेकिन कम से कमRs.2,000 एक साल या दूसरे या बाद के अपराध के लिएRs.10,000 लेकिन कम से कमRs.5,000 तक या दोनों
45.12 महीने से अधिक एक वाहन को दूसरे राज्य के पजीकरण चिन्ह के साथ चलाने परS.47 r/w S.177 of M. V. ActRs.100 पहले अपराध के लिए.
Rs.300 बाद के अपराध के लिए.
46.किसी भी व्यक्ति द्वारा आवश्यक परमिट के बिना एक वाहन चालन या चालान करने की अनुमति देना उस मार्ग या क्षेत्र में या जिस उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जा रहा है.S. 66(1) r/w S.192-A of M. V. Actपहले अपराध के लिएRs.5,000 लेकिन कम से कमRs.2,000 एक साल तक
लेकिन कम से कम 3 महीने नहीं होनी चाहिए, दूसरे या बाद के अपराध या बाद के अपराध के लिएRs.10,000 या कम से कमRs.5000
47.घटिया लेख या प्रक्रिया का उपयोग करने पर किसी भी निर्माता परS. 109(3) r/w S.182-A of M.V. ActRs.1,000 पहले अपराध के लिए
Rs.5,000 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
48.Aकोई भी व्यक्ति, ड्राइविंग या किसी भी सार्वजनिक स्थान पर एक दोषपूर्ण मोटर वाहन या ट्रेलर में ड्राइव करने की अनुमति किसी भी व्यक्ति द्वारा दिया जाने इस तरह के दोष के परिणाम स्वरुप किसी दुर्घटना में शारीरिक चोट या संपत्ति को नुकसान होता है तो.S. 190 (1) of M. V. Act3 महीने या Rs.1,000 या दोनों
49.किसी भी व्यक्ति को ड्राइविंग या किसी भी सार्वजनिक स्थान में सड़क सुरक्षा, शोर और वायु प्रदूषण के नियंत्रण के संबंध में निर्धारित मानकों का उल्लंघन करती है, जो किसी भी मोटर वाहन ड्राइव करने की अनुमति. (दोषपूर्ण या चुप्पी के बिना, आदि के साथ वाहन का प्रयोग)S. 190(2) of M. V. ActRs.1,000 पहले अपराध के लिए
Rs.2,000 दूसरे या बाद के अपराध के लिए
50.कोई भी व्यक्ति, किसी भी सार्वजनिक स्थान पर ड्राइविंग या ड्राइविंग की अनुमति देकर खतरनाक सामान से संबंधित एमवी कानून या नियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तोS.190(3) of M. V. Actएक वर्ष कीRs.3,000 पहले अपराध के लिए या दोनों
3 साल orRs.5,000 for second or subsequent offence or both.
51.कोई भी आयातक या डीलर मोटर वाहन या ट्रेलर ऐसी हालत या परिवर्तित हालत में जिससे कि एक सार्वजनिक स्थान में इसके उपयोग से उल्लंघन होगा बेचने या वितरित करने या वितरित करने कि पेशकश करता हैS. 191 of M. V. ActRs.500
52.कोई भी व्यक्ति बिना टिकट या पास के या मांग पर टिकट न लेने वाले एक स्टेज कैरिज वाहन में यात्रा करने पर.S. 124 r/w S.178(1) of M. V. ActRs.500
53.एक स्टेज कैरिज के कंडक्टर जानबूझकर या लापरवाही से किराया स्वीकार करने में असफल रहने या टिकट की समस्या है या एक कम मूल्य की टिकट देता है या निरीक्षक द्वारा जानबूझकर या लापरवाही से जांच से करने से इनकार ता असमर्थ है.S. 178(2) of M. V. ActRs.500
54.एक परमिट धारक या स्टेज कैरिज चलने से मन या यात्री ले जेन से मना करती है:
(क) दोपहिया वाहन या तीन पहिया वाहनों के मामले में
(ख) दूसरों के मामले में
S.178(3) of M. V. ActRs.50
Rs.200
55.किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी सशक्त, या एमवी एक्ट के तहत अपने कार्यों के निर्वहन में किसी भी व्यक्ति या प्राधिकारी निरोधक द्वारा दिए गए निर्देशों की अवहेलना किसी भी व्यक्ति द्वाराS. 179(1) of M. V. ActRs.500
56.किसी भी यात्री आवश्यक जानकारी रोक या झूठी जानकारी देने परS. 179(2) of M. V. Actएक महीने याRs.500 or both
57.रेसिंग और गति के परीक्षणS. 189 of M. V. Actएक महीने याRs.500 या दोनों
58.एजेंट के के रूप में खुद को उलझाने वाले व्यक्ति पर या उसके तहत बनाए गए S 93 उल्लंघन करते प्रार्थकS. 93r / wS.193 of M.V. Act.Rs.1,000 पहले अपराध के लिए 6 महीने orRs.2000 दूसरे या बाद के अपराध के लिए या दोनों.
59.अधिकार के बिना वाहन लेते हुएS. 197 of M. V. Act3 महीने याRs.500 या दोनों
60.वाहन के साथ अनधिकृत हस्तक्षेपS.198 of M.V. ActRs.100

स्कूल बस के संचालन के संबंध में दिशा निर्देश
मोटरयान अधिनियम 1988 की धारा-2-47 के अनुसार एक शैक्षिक संस्थान बस एक परिवहन वाहन है और इसलिए सड़क पर इसके परिवहन के लिए एक परमिट की आवश्यकता है। यह परमिट बिना फिटनेस टेस्ट के हर साल इसका नवीनीकरण नहीं होना चाहिए। इसके लिए स्कूल बसों के चालकों को यातायात अनुशासन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वह विधि अनुसार कार्यवाही करें । इसलिए माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा बच्चो को ले जाने संबंधी स्कूल बसों की सुरक्षा के संबंध में कुछ दिशा निर्देश निर्धारित किये गये है जो निम्नलिखित है-
  1. स्कूल बसों में पीले रंग चित्रित किया जाना चाहिए।
  2. स्कूल बस वापस और बस के मोर्चे पर लिखा होना चाहिए। यह बस काम पर रखा जाता है तो स्कूल ड्यूटी पर स्पष्ट रूप से संकेत दिया जाना चाहिए।
  3. बस एक प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स होना चाहिए।
  4. बस निर्धारित मानक की गति राज्यपाल के साथ सुसज्जित किया जाना चाहिए।
  5. बस की खिड़कियां क्षैतिज ग्रिल्स के साथ सुजज्ति किया जाना चाहिए।
  6. बस में एक आग बुझाने की कल होना चाहिए।
  7. स्कूल का नाम और टेलीफोन नंबर बस पर लिखा होना चाहिए।
  8. बस के दरवाजे विश्वसनीय ताले के साथ सुसज्जित किया जाना चाहिए।
  9. सुरक्षित रूप से स्कूल बेग रखने के लिए सीटों के नीचे फिट स्थान नहीं होना चाहिए।
  10. बच्चो को भाग लेने के लिए बस में एक योग्य परिचर होना चाहिए।
  11. बस या एक शिक्षक में बैंठे किसी भी माता पिता या अभिभावक भी इन सुरक्षा नियमों को सुनिश्चित करने के लिए यात्रा कर सकते हैं।
  12. चालक भारी वाहनों ड्राइविंग के अनुभव के कम से कम 5 साल होनी चाहिए।
  13. लाल बत्ती कूद लेन अनुशासन का उल्लंघन या अनधिकृत व्यक्ति को ड्राइवर के लिए अनुमति देता है। जैसे अपराधों के लिए एक वर्ष में दो बार से अधिक चालान किया गया है जो एक ड्राइवर नियोजित नहीं किया जा सकता।
  14. अधिक तेजी, शराबी ड्राइविंग और खतरनाक ड्राइविंग आदि के अपराध के लिए एक बार भी चालान किया गया है जो एक ड्राइवर नियोजित नहीं किया जा सकता।


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नौकासन योग विधि, लाभ और सावधानियां



नौकासन क्या है ?
नौकासन पीठ के बल लेट कर किये जाने वाले आसनों में एक महत्वपूर्ण योगासन है। इस आसन के अभ्यास के समय व्यक्ति का आकार नाव के समान हो जाता है, इसलिए इसे नौकासन (Naukasana) कहते हैं। इस आसन के अभ्यास से नाभि पर बल अधिक पड़ता है तथा शरीर का पूरा भार नाभि पर रहता है। इसको नावासन के नाम से भी जाना जाता है। इसके फायदे अद्भुत हैं। यह पेट की चर्बी को कम करने के लिए बहुत ही प्रवभाशाली योगाभ्यास है। यह पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है और साथ ही साथ सिर से लेकर पैर की अंगुली तक फायदा पहुँचाता है। इसके जितने भी लाभ गिनाये जाए कम है। इसलिए चाहिए कि हर योग साधक नियमित रूप से इस योगासन का अभ्यास करना चाहिए।
Benefits of the Naukasana
लाभ - Benefits
इस आसन में शरीर की आकृति नाव के समान हो जाती है। इसलिए इसे नौकासन कहा जाता है। इस आसन में पूरे शरीर का भार पेट पर आ जाता है। बाकी शरीर आगे-पीछे से ऊपर उठ जाता है, जिससे पेट की मांसपेशियों की ताकत बढ़ती है व पाचन संस्थान स्वस्थ व बलिष्ठ हो जाता है। आमाशय, लिवर, आंतें, पेडू़, पेन्क्रियाज व किडनी को बल मिलता है। यह जठराग्नि को तीव्र करने में सहायक है। इससे हृदय व फेफड़ों को बल मिलता है। शरीर में रक्त का संचार सुचारू रूप से होने लगता है। कमर पीछे की ओर मोड़ने के कारण उसकी शक्ति व लचीलापन बढ़ता है और कमर की मांसपेशियों को बल मिलता है। कमर दर्द की रोकथाम होती है व नर्वस सिस्टम स्वस्थ बना रहता है। यह अभ्यास हनिर्या की रोकथाम में भी मददगार है।

हिंदी में नौकासन के फायदे : Naukasana Ke Fayde in Hindi
  1. नौकासन पेट की चर्बी को कम करने के लिए बहुत ही उम्दा योगाभ्यास है। इसका नियमित रूप से अभ्यास किया जाये तो बहुत जल्द पेट की चर्बी से निज़ात पाया जा सकता है।
  2. नौकासन का नियमित अभ्यास करने से पेट की चर्बी ही कम नहीं होती बल्कि पुरे शरीर का वजन घटता है और आप मोटापा को कंट्रोल कर सकते हैं।
  3. नौकासन ऐसा योग है जो किडनी को लाभ पहुंचाता है, नियमित रूप से इस आसन को करने से किडनी स्वस्थ रहता है और साथ ही साथ शरीर का यह अंग बेहतर तरीके से काम करता है।
  4. नौकासन योगाभ्यास आपके पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है और पाचन से संबंधित रोग जैसे कब्ज, एसिडिटी, गैस आदि से छुटकारा दिलाता है।
  5. नौकासन का आरंभिक अभ्यास पहले कमर में थोड़ी बहुत परेशानी हो सकती है लेकिन धीरे धीरे यह आपके कमर को मजबूत बनाता है।
  6. नौकासन कब्ज को कम करने में बहुत मददगार है क्योंकि एंजाइम के स्राव में बड़ी भूमिका निभाता है।
  7. नौकासन रीढ़ की हड्डी के लिए यह बहुत लाभकारी है। यह आपके मेरुदंड को लचीला बनाता है।
  8. नौकासन हर्निया के लिए बहुत ही लाभदायक है।
  9. नौकासन पूरे शरीर को सिर से लेकर पैर तक फायदा पहुंचाता है।
  10. नौकासन मधुमेह (डायबटीज) दूर करने, पाचनक्रिया को ठीक करने, शरीर में स्फूर्ति लाने तथा भूख को बढ़ाने में भी यह आसन लाभकारी है।
  11. नौकासन फेफड़े व सांस से सम्बन्धित बीमारियों को दूर कर फेफड़ों में शुद्ध ऑक्सीजन को पहुंचाता है।
  12. नौकासन शरीर के सभी अंगों में खून के बहाव को तेज करता है, जिससे मांसपेशियां लचीली बनती है।
  13. नौकासन जिगर व तिल्ली के दोषों को दूर कर शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है।
  14. नौकासन से कमर व गर्दन का दर्द ठीक होता है।
Naukasana
नौकासन की विधि : Naukasana Ki Vidhi
  1. नौकासन के अभ्यास के लिए सर्वप्रथम जमीन पर चटाई या दरी बिछाकर पेट के बल लेट जाएं।
  2. इसके पश्चात् अपने दोनों हाथों को आपस में नमस्कार की स्थिति में जोड़कर सिर की सीध में आगे की ओर करके रखें और एड़ियों व पंजों को मिलाकर व तानकर रखे।
  3. फिर सांस लेते हुए धीरे-धीरे पैर तथा शरीर के अगले हिस्से को जितना संभव हो ऊपर उठाएं। (लगभग 30 डिग्री)
  4. इस तरह शरीर को इतना उठाएं कि शरीर का पूरा भार नाभि पर रहें तथा पैर व सिर ऊपर की ओर रखें। इस स्थिति में शरीर का आकार ऐसा हो जाना चाहिए, जैसे किसी नाव का आकार होता है।
  5. इसके बाद पहले हाथों को हिलाएं फिर पैरों को भी हिलाएं। परंतु शरीर का आकार नाव की तरह ही बनाएं रखें। सांस को जितनी देर तक अंदर रोक सकते हैं, रोक कर इस स्थिति में रहे और फिर शरीर को धीरे-धीरे नीचे सामान्य स्थिति में लाकर सांस को छोड़ते हुए पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें। इस तरह से इस क्रिया को 3 बार करें।
नौकासन की सावधानियां : Naukasana Ki Savdhaniya
  1. जब कमर में दर्द हो तो नौकासन नहीं करनी चाहिए।
  2. हर्निया के रोगियों को यह आसन किसी विशेषज्ञ के निगरानी में करनी चाहिए।
  3. रीढ़ की हड्डी में कोई समस्या हो तो इस आसन को करने से बचें।
  4. नौकासन करने के बाद भुजंगासन करनी चाहिए।
  5. इस आसन का अभ्यास अल्सर, कोलाइटिस वाले रोगियों को नहीं करना चाहिए।
  6. शुरुआत में शरीर को पूर्ण रूप से ऊपर उठाने में कठिनाई हो सकती है इसलिए शुरू में अपनी क्षमता के अनुसार ही शरीर को ऊपर की ओर उठाएं।
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महामना मदन मोहन मालवीय की जीवनी एवं निबंध




महामना मदन मोहन मालवीय की जीवनी एवं निबंध;
Biography and Essay of Mahamana Madan Mohan Malaviya
भारत माता आदिकाल से ही महान आत्माओं को जन्म दे रही है और न जाने कितने कर्मवीरों और तपस्वियों को इसने जन्म देकर अपने आदर्श, चरित्र, त्याग और सेवा से संसार का मार्गदर्शन किया तथा उन्हें अंधकार से निकालकर ज्ञान का दीपक दिखाया है। भारत के ऐसे ही देव पुत्रों में से एक पत्रकार समाज सुधारक, देशभक्त, धार्मिक नेता और शिक्षाविद पं. मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर 1861 ई. को सूर्य कुण्ड या लालडिंग के कूंचा सांवल-दास मोहल्ले में बृजनाथ जी के घर संध्या को 6 बजकर 54 मिनट पर प्रयाग में हुआ। इनकी माता भूना देवी थी। बी.जे. अकद के कथानुसार - "यह भारत माता के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षण था, जब 25 दिसम्बर 1861 को इलाहाबाद में पं. बृजनाथ के घर एक नन्हें से बच्चे ने जन्म लिया था।" कौन जानता था कि वह छोटा-सा निर्बल बालक एक दिन देश की स्वतन्त्रता और आत्मनिर्भरता के लिए सिंह गर्जना करेगा। बचपन से ही इनके माता-पिता को ऐसा प्रतीत होता था कि भविष्य में यह बालक बहुत ही होनहार होगा। एक कहावत भी चरितार्थ है कि "होनहार बिखान के होत चिकने पात" मालवीय जी ने इस कहावत को अपने जीवन में चरितार्थ किया था। पाँच वर्ष की आयु से ही उनकी शिक्षा आरम्भ हुई थी। उस समय प्रयाग में अहिपापुर मौहल्ले में कोई पाठशाला न थी। लाला मनोहर दास रईस की कोठी के चबूतरे पर, जो तीन सवा तीन फीट चैड़ा और दस पन्द्रह फीट लम्बा था, उसी पर टाट बिछा कर एक गुरु जी लड़कों को पढ़ाया करते थे। उन्हें वहां से हरदेव जी की पाठशाला जिसका नाम धर्मोपदेश पाठशाला था। जहाँ से स्थायी रूप से मदन मोहन मालवीय जी ने अपना विद्याध्ययन शुरू किया था। मदन मोहन मालवीय जी ने संस्कृत काव्य, गीता एवं अन्य धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन किया था। इनमें से मालवीय जी को संस्कृत काव्य ने अधिक प्रभावित किया था। यह उनकी अमूल्य निधि थी।
महामना पंडित मदन मोहन मालवीय का एक सामाजिक-राजनीतिक सुधारक के रूप में ऐसे समय उदय हुआ जब पूरा देश विकट परिस्थितियों में गुजर रहा था। युगपुरुष महामना मदनमोहन मालवीय का जीवन अत्यंत उतार-चढ़ाव भरा रहा। गरीबी झेलते हुए उन्होंने न सिर्फ ज्ञानार्जन किया, बल्कि स्वयं को शिखर पर पहुंचाया। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कवि, शिक्षक, पत्रकार, वकील के रूप में ऐसी अमिट छाप छोड़ी, कि हर कोई आज भी उससे प्रेरणा ले रहा है। 15वीं सदी में वे उत्तर प्रदेश चले आए। मालवा का होने के कारण वे लोग मल्लई कहलाते थे, जो बाद में मालवीय हो गया। मालवीय जी की आरंभिक शिक्षा इलाहाबाद में पूरी हुई। उन्होंने मकरंद के नाम से 15 वर्ष की आयु में कविता लिखना आरंभ कर दिया था और सोलह सत्तरह वर्ष की आयु में उन्होंने एंट्रेंस की परीक्षा पास की। ऐंट्रस पास करने के बाद मालवीय जी म्योर सेंट्रल कालेज में पढ़ने लगे। परिवार के लिए कालेज की पढ़ाई का आर्थिक बोझ वहन करना कठिन था, पर माता ने कठिनाई सहकर, अपने जेवर गिरवी रखकर अपने बच्चे को पढ़ाने का निश्चय किया। प्रिंसीपल हैरिसन ने उन्हें एक मासिक वजीफा दिया। फिर भी मदनमोहन मालवीय को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। चाहे मालवीय जी के शिक्षा क्षेत्र में कितनी भी कठिनाई क्यों न आई हो, उन्होंने बैरिस्टर तक की शिक्षा ग्रहण की। विनोद: कालेज में एक बार आर्यनाटक मण्डली की ओर से 'शकुंतला' नाटक का अभिनय हुआ, इसमें मदन मोहन मालवीय को शकुन्तला का पार्ट दिया गया। परदा उठने पर प्रियम्वदा और अनुसूया सखियों के साथ शकुन्तला हाथ में घड़ा लिए रंगमंच पर आयी, तब दर्शक दंग रह गये। शृंगार और करुणा दोनों रसों के हाव-भाव दिखला कर शकुंतला के अभिनेता ने दर्शकों को मुग्ध कर दिया।
मालवीय जी का विवाह 16 वर्ष की आयु में उनके चाचा पंडित गजाधर प्रसाद जी के माध्यम से मिर्जापुर के पंडित नन्दलाल जी की कन्या कुनन देवी से हुआ। वे माता-पिता के दुलार में पली थी। लड़कपन में उन्हें किसी प्रकार के कष्ट का अनुभव नहीं था। ससुराल की आर्थिक दशा ने उन्हें बड़े धैर्य और साहस से निर्धनता के कष्ट सहन करने को बाध्य किया। उन्हें आधा पेट खा कर संतोष करना पड़ता था। फटी धोतियों सी कर पहननी पड़ती थी। एक दिन बहुत वर्षों बाद मालवीय जी ने उनसे पूछा, तुमने अपनी सास से कभी खाने-पीने पहनने की शिकायत नहीं की? इस पर देवी जी ने उत्तर दिया, 'शिकायत करके क्या करती? वे कहाँ से देती? घर का कोना-कोना जितना वे जानती थी, उतना मैं भी जानती थी। मेरा दुख सुनकर वे रो देती और क्या करती?' देवी जी को धैर्य के साथ-साथ पतिदेव का स्नेह तथा भगवद्भक्ति के प्रति अनुराग भी प्राप्त था। जैसा कि मालवीय जी ने पंडित रामनरेश त्रिपाठी को बताया, पति पत्नी दोनों वैवाहिक जीवन के प्रारम्भ से ही रामकृष्ण के उपासक थे। दोनों कोई भी काम करते, चाहे दूध पीते, चाहे पानी पीते, रामकृष्ण का स्मरण किए बिना नहीं करते। पतिदेव की तरह पतिव्रता साध्वी ने भी भगवान की भक्ति में कई दोहे कहे थे, वे कहती थी- 'ऐसा कोई घर नहीं, जहां न मेरा राम।'
वर्ष 1868 में उन्होंने प्रयाग सरकारी हाई स्कूल से मैट्रिक परीक्षा पास की। इसके उपरान्त उन्होंने मायर सेंट्रल कालेज में प्रवेश लिया। कालेज में पढ़ाई करते हुए वर्ष 1880 में उन्होंने अपने गुरु पं॰ आदित्यराम भट्टाचार्य के नेतृत्व में हिंदू समाज नामक सामाजिक सेवा संघ स्थापित किया। वे स्कूल के साथ-साथ कालेज में भी कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेते रहे। उन्होंने लिखा है, "मैं एक गरीब ब्राह्मण कुल में पैदा हुआ। इसलिए पढ़ाई का खर्च पूरा करने के लिए एक सेठ के छोटे बच्चे को पढ़ाने जाता था। धार्मिक भावों के प्रति मेरा रुझान बचपन से था। स्कूल जाने के पहले मैं रोज हनुमान जी के दर्शन करने जाता था।" वे भारतीय विद्यार्थी के मार्ग में आने वाली भावी मुसीबतों को जानते थे। उनका कहना था, "छात्रों की सबसे बड़ी कठिनता यह है कि शिक्षा का माध्यम हमारी मातृभाषा न होकर एक विदेशी भाषा है। सभ्य संसार के किसी भी अन्य भूभाग में उन समुदाय की शिक्षा का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है।"
भारतीय स्वातंत्रय आन्दोलन के इतिहास में महामना का व्यक्तित्व स्वतः साक्ष्य रूप में प्रत्येक आन्दोलन से संबंधित रहा है चाहे राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रश्न रहा हो अथवा अछूतोद्धार या दलित वर्ग की समस्या रही हो या हिन्दू-मुस्लिम एकता की। चाहे औद्योगिक, आर्थिक अथवा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का विषय रहा हो या राष्ट्रीय शिक्षा के उन्नयन का अथवा विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार का। इन सभी क्षेत्रों में महामना एक सच्चे सिपाही की भाँति अग्रणी रहे हैं। पंडित मदन मोहन मालवीय महापुरुष और श्रेष्ठ आत्मा थे। उन्होंने समर्पित जीवन व्यतीत किया तथा धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक आदि बहुत से क्षेत्रों में अपने लोगों की उत्कृष्ट सेवाएं की। धमकियों से निडर और प्रलोभनों से अनाकृर्षित उन्होंने अन्याय और क्ररताओं से संघर्ष किया तथा साहस और दृढ़तापूर्वक अपने उद्देश्य की नैतिकता पर दृढ़विश्वास के साथ अपने देशवासियों के सामूहिक हित और उत्कर्ष के लिए 50 वर्ष से अधिक काम किया निःसंदेह उनका व्यक्तित्व उनकी महान् उपलब्धियों से कहीं अधिक प्रतिष्ठित था। वे आध्यात्मिक सद्गुणों नैतिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक उत्कर्ष के असाधारण संश्लेषण थे।
मदनमोहन मालवीय जी का पूरा जीवन भले ही गरीबी में बीता हो लेकिन उसने कभी भी अपने मन में हीन भावना नहीं आने दी और सदा राजा कर्ण जैसी दानवीर की सोच रखी। अपने आप में यह बहुत बड़ी बात है कि अगर किसी के पास धन हो तो वह दान कर सकता है। उसमें कोई बड़ी बात नहीं लेकिन जो आदमी अपने परिवार को तीनों समय का भोजन भी पूर्णरूपेण न दे सके और वह आदमी फिर भी दानवीर की सोच रखता हो, यह सबसे बड़ी बात है। मालवीय जी ने चाहे विद्या का दान हो, चाहे किसी गरीब आदमी की मदद की बात हो, समाज उत्थान की बात हो, समाज की कुरीतियों की बात हो, किसी भी क्षेत्र में वे पीछे नहीं हटे। उन्होंने जी भरकर लोगों की मदद की।
मदन मोहन मालवीय को महामना की उपाधि किसने दी
महात्मा गाँधी का महामना के लिए बहुत आदर था और मदनमोहन का हृदय से सम्मान करते थे वह उनकी कोई बात नहीं टालते थे। उन्होंने ही मदनमोहन मालवीय को 'महामना' की उपाधि दी।। उन्होंने महामना के लिए लिखा- 'जब मैं अपने देश में कर्म करने के लिए आया तो पहले लोकमान्य तिलक के पास गया। वे मुझे हिमालय से ऊँचे लगे। मैंने सोचा हिमालय पर चढ़ना मेरे लिए संभव नहीं और मैं लौट आया। पिफर मैं गोखले के पास गया। वे मुझे सागर के समान गंभीर लगे। मैंने देखा कि मेरे लिया इतने गहराई में पैठना संभव नहीं और मैं लौट आया। अंत में मैं महामना मालवीय के पास गया। मुझे वे गंगा की धारा के समान पारदर्शी निर्मल लगे। मैंने देखा इस पवित्र धारा में स्नान करना मेरे लिये असंभव नहीं है। मालवीय ऐसे व्यक्तित्व की ही, मैं तलाश कर रहा था।'
मालवीय जी अहिंसा के प्रबल समर्थक महात्मा गांधी के श्रद्धा पात्र एवं नियम विधान के पाबंद थे। मालवीय जी उन चंद महापुरुषों में से थे, जिनके गांधी जी चरण स्पर्श करते थे। दोनों ही अपने सिद्धांतों पर अटल रहा करते थे और कभी-कभी इसके चलते उनमें वैचारिक मतभेद भी उत्पन्न हो जाते थे। परन्तु परस्पर सम्मान पर कायम उनके संबंधों में यह भी बाधक नहीं बना।
महामना ने अपनी वेशभूषा, व्यक्तित्व विचारों और अपने संपूर्ण जीवन से भारतीय संस्कृति और धर्म का जो आदर्श हमारे सामने प्रस्तुत किया है, उसका अनुसरण करना तो दूर रहा, आधुनिकता के नाम पर पाश्चात्य सभ्यता के अंधानुकरण में हम ठीक उसकी विपरीत दिशा में पागलों की तरह भागकर अर्द्ध पतित हुए चले जा रहे हैं, जिसमें महामना द्वारा प्रतिपादित नैतिक और आध्यात्मिक जीवन मूल्यों को कोई स्थान नहीं है। महामना राष्ट्र की स्वतंत्रता के अडिग पुजारी, शिक्षा के अनन्य सेवक, कुशल पत्रकार एवं विधिवेत्ता तथा समस्त भारतीय समाज में चेतना का स्पफुर्लिंग प्रज्वलित करने वालों में प्रमुख कर्णधार थे। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने महामना के प्रति अपने उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा है कि 'भारत को अभिमान तुम्हारा, तुम भारत के अभिमानी।' महामना ने भारतीय राजनीति के नीलाकाश पर अपने शुभ्र धवल व्यक्तित्व की पुनीत आभा से विराट भास्कर की भाँति दिप्ती बिखेरी थी। धर्म, समाज, राजनीति सभी क्षेत्रों में अजातशत्रु महामना का व्यक्तित्व निष्कलंक था। वे जब तक जिये मनसा, वाचा, कर्मणा जनता की सेवा की। 'सागरः सागरोयम' भाँति उनका व्यक्तित्व अनुपमेय था। 28 दिसम्बर 1886 को कलकत्ता के टाउन हाल में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन की अध्यक्षता ब्रिटिश संसद के प्रथम भारतीय सांसद दादा भाई नैरोजी ने की। महामना की आयु तब केवल 25 वर्ष की थी और इस अधिवेशन में अपने प्रथम भाषण में उन्हेांने अपने श्रोताओं को मंत्रामुग्ध कर दिया। उनके भाषण के बारे में कांग्रेस के संस्थापक ए.ओ.ह्यूम ने 1886 की रिपोर्ट में लिखा, 'जिस भाषण को श्रोताओं ने अत्यन्त उत्साह से सुना, संभवतः वह भाषण पं. मदन मोहन मालवीय का था जो एक उच्च जातीय ब्राह्माण थे और जिनके मोहक सुकुमार और गौर वर्ण व्यक्तित्व तथा विद्वतापूर्ण संबोधन ने सभी को आकर्षित किया।' दादा भाई का कहना था, 'भारत माता की आवाज इस युवक की आवाज में स्वयं प्रतिध्वनित हो गई है।' सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कहा, 'यह भाषण मेरे सुने गये भाषणों में सर्वश्रेष्ठ है।'

पंडित मदन मोहन मालवीय के महान योगदान
देश की दशा, प्रारम्भिक जीवन, राजनीतिक जागृति
19वीं सदी में भारतीय सभ्यता के मूल मूल्यों का पतन हो रहा था और अज्ञानता के कारण देश में अन्धविश्वास, कन्या वध, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवाओं की दयनीय दशा, नर बली, छुआछूत सरीखी कुप्रथाएँ समाज को खोखला किए जा रही थी। 1857 के पश्चात् तो भारत में जैसे उथल-पुथल-सी मच गई थी। आतंक और दमन के बादल आकाश में मंडराए हुए थे। अंग्रेजों का विचार था अब भारत में सिर उठाने वाला कोई नहीं रहा। उनका ऐसा सोचना किसी सीमा तक उचित भी था, क्योंकि उन्होंने देश भक्तों को जिस प्रकार से कुचला, फांसी पर लटकाया और खून की नदियाँ बहाई उसका उदाहरण विश्व इतिहास में नहीं मिलता। फिर भी ब्रिटिश सरकार के न चाहते हुए भी बदलती परिस्थितियों के फलस्वरूप भारतवासियों के रहन-सहन, वेशभूषा और विचारधारा में काफी परिवर्तन आ गया था। ऐसे समय में पंडित मदन मोहन मालवीय का जन्म हुआ।
मालवीय जी का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में मालवीय जी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान शिक्षा के क्षेत्र में रहा। मालवीय जी के अनुसार जनता की बदहाली का कारण अशिक्षा है। 20वीं सदी के पहले दशक में उन्होंने विशेष रूप से हिंदुओं के लिए तथा सामान्य रूप से सभी के लिए एक ऐसा हिंदु विश्वविद्यालय बनाने का निर्णय लिया जहां हिंदु धर्म और संस्कृति के अलावा प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान की उच्च शिक्षा प्रदान की जा सके और जो भारत की प्राचीन गुरुकुल पद्धति को आधुनिक रूप से आगे बढ़ाए। इसके लिए उन्होंने स्वयं ही धन एकत्रित करने का बीड़ा उठाया। विश्वविद्यालय के लिए हिंदुओं की आस्था नगरी वाराणसी को चुना गया। वाराणसी के तत्कालीन नरेश ने इस कार्य के लिए 1,300 एकड़ भूमि उन्हें दान में दी। मालवीय जी भारत के कोने-कोने में घूम कर विश्वविद्यालय के लिए धन एकत्रित करते रहे। इसलिए उन्हें भारत का भिक्षु सम्राट कहा जाने लगा। उनके अथक परिश्रम के कारण 04 फरवरी, 1916 को वसंत पंचमी के दिन बनारस हिंदु विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर भवन की नींव तत्कालीन भारत के वाइस राय लार्ड हार्डिंग द्वारा रखी गई। विश्वविद्यालय का नाम बनारस हिंदू विश्वविद्यालय रखा गया। लगभग तीन दशक तक कुलपति के रूप में उन्होंने विश्वविद्यालय का मार्गदर्शन किया। मदन मोहन मालवीय जी ने काशी हिंदु विश्वविद्यालय के रूप में देश में पहली बार एक पूर्ण आवासीय विश्वविद्यालय की स्थापना की पहल की। जिस तरह से नालंदा एवं तक्षशिला विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व करता है। इसके एक ही परिसर में कला, विज्ञान, वाणिज्य, कृषि विज्ञान, तकनीकी, संगीत और ललित कलाओं की पढ़ाई संभव हुई।
मालवीय जी का उदार हिंदुत्व किसी धर्म या समुदाय का विरोधी नहीं था। हिंदू जागरण के अग्रणी नायक के रूप में उनका नाम प्रसिद्ध है। लेकिन वह सभी धर्मों और समुदायों की अधिकार रक्षा के प्रति सजग भी रहे। हिंदू महासभा से जुड़े होने पर भी वे मुस्लिम लीग के अधिवेशन में भी भाग लेते थे। हिंदुओं की जाति-वर्ण संबंधी रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए उन्होंने दलितों को मंत्र दीक्षा देने का ऐतिहासिक कार्य भी किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने छात्रों को निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की। मालवीय जी का उदार हिंदुत्व किसी धर्म या समुदाय का विरोधी नहीं था। हिंदू जागरण के अग्रणी नायक के रूप में उनका नाम प्रसिद्ध है। लेकिन वह सभी धर्मों और समुदायों की अधिकार रक्षा के प्रति सजग भी रहे। हिंदू महासभा से जुड़े होने पर भी वे मुस्लिम लीग के अधिवेशन में भी भाग लेते थे। हिंदुओं की जाति-वर्ण संबंधी रूढ़ियों पर प्रहार करते हुए उन्होंने दलितों को मंत्र दीक्षा देने का ऐतिहासिक कार्य भी किया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय में उन्होंने छात्रों को निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की।
मालवीय जी ने संस्कृत में एम.ए. की परीक्षा पास करके अपने पिता की तरह धर्म प्रचार में अपना जीवन लगा देना चाहते थे ओर इसलिए उन्होंने अपने चचेरे भाई जय गोविन्द जी के आग्रह पर भी गवर्नमैंट स्कूल में अध्यापक का काम करने से इन्कार कर दिया। पर जब उनकी माता को इसका पता चला और वे उनसे कहने आई, तब उनकी सभी कल्पनाएँ माँ के आँसुओं में डूब गई ओर वे नौकरी करने के लिए राजी हो गए। 40 रुपए के मासिक वेतन पर उन्होंने गवर्नमैंट हाई स्कूल में, जहां उन्होंने पढ़ा था, अध्यापक की नौकरी कर ली। बाद में उनका मासिक वेतन 60 रुपए हो गया। इस आमदनी का अधिकांश भाग वे अपनी माता को परिवार के भरणपोषण के लिए दे देते थे। दो रुपए मासिक वे अपनी धर्मपत्नी को उसके निजी खर्च के लिए देते थे और बाकी अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति में तथा सार्वजनिक कार्यों के लिए खर्च कर देते थे।
मालवीय जी का कहना था कि पुरुषों की शिक्षा से स्त्रियों की शिक्षा कहीं अधिक अर्थवान है। उन्होंने कहा था, "स्त्रियां हमारे भावी राजनीतिज्ञों, विद्वानों, तत्वज्ञानियों, व्यापार तथा कला-कौशल के नेताओं की प्रथम शिक्षिका है। उनकी शिक्षा का प्रभाव भारत के भावी नागरिकों की शिक्षा पर विशेष रूप से पड़ेगा।" उनका मानना था कि पुरुषों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण स्त्रियों की शिक्षा है, क्योंकि वे ही देश की भावी संतानों की माताएं हैं।
मालवीय जी सफल अध्यापक सिद्ध हुए। वे अपने पठनीय विषय को भली-भांति तैयार करके उसे बहुत रोचक ढंग से पढ़ाते थे तथा सदा विद्यार्थियों के प्रति स्नेह-भावना बनाए रखते थे। उनके एक प्रसिद्ध नागरिक छात्र का कहना है कि छात्रों के ऊपर उनकी स्नेहपूर्ण कृपा का, कोमल व्यवहार का, वाणी कि माधुर्य का तथा उनके आकर्षक व्यक्तित्व का बहुत प्रभाव था। सभी उनका सम्मान करते थे।
सार्वजनिक कार्य
प्रोफेसर आदित्य राम भट्टाचार्य के प्रोत्साहन से मालवीय जी ने सन 1880 में ही सार्वजनिक कार्यों में सक्रिय योगदान करना प्रारम्भ कर दिया था। उन्होंने अपने गुरु के आदेश पर 'प्रयाग हिन्दू समाज' नाम की संस्था के संचालन में काफी काम किया। पंडित बालकृष्ण भट्ट के सम्पादकत्व में प्रकाशित होने वाले पत्र में मालवीय जी ने धार्मिक और सामाजिक विषयों पर लेख लिखने प्रारम्भ किए। उन्होंने सन् 1882 में स्वयं स्वदेशी का व्रत लेकर उसका प्रचार करना शुरू कर दिया। इसी समय उनके कतिपय मित्रों ने देशी तिजारत कम्पनी खोली, जो कई वर्ष तक चलती रही। इस काम में वे अपने मित्रों को यथासम्भव परामर्श और सहयोग देते रहे। सन् 1884 में पंडित आदित्यराम भट्टाचार्य ने 'इडियन युनियन' के नाम से अंग्रेजी में एक साप्ताहिक निकालना प्रारम्भ किया। इसके सम्पादक का सारा भार उन्हें ही वहन करना पड़ता था। इसे देखकर उनके आदेश पर मालवीय जी ने उसके सम्पादन का बहुत कुछ भार अपने ऊपर ले लिया।
नागरी लिपि हिंदी के अथक साधक
मालवीय जी ने हिंदी साहित्य की भी सेवा की। तब वे मकरंद और झक्कड़ सिंह उपनाम से लिखते थे। उनका कथन था कि "जहां लोग हिंदी जानते हैं वहां आपस में हिंदी में वार्तालाप न करना देशद्रोह के समान अपराध है।" आधुनिक काल में हिंदी के निर्माण और विकास का सर्वाधिक श्रेय स्वामी दयानन्द, महात्मा गांधी और मदनमोहन मालवीय को दिया जाता है। मालवीय जी की मातृभाषा हिंदी थी। देश की एकता के लिए उन्होंने प्राचीन वैदिक संस्कृति और आर्य भाषा हिंदी को सम्बल दिया। वर्ष 1919 में मुम्बई में राष्ट्रभाषा के संबंध में उन्होंने कहा था, "वह कौन-सी भाषा है, जो वृन्दावन, बद्रीनारायण, द्वारका, जगन्नाथपुरी इत्यादि चारों धामों तक एक समान धार्मिक यात्रियों को सहायता देती है? वह एक हिंदी भाषा है। लिंग्वा फ्रेंका, लिंग्वा फ्रेंका ही क्यों लिंग्वा इंडिका है। गुरु नानकजी लंका, तिब्बत, मक्का और मदीना, चीन इत्यादि सब देशों में गये। वहां उन्होंने किस भाषा में उपदेश दिया था? यही हिंदी भाषा थी। इससे जान पड़ता है कि उस समय भी हिंदी भाषा राष्ट्रभाषा थी, और उसका सार्वजनिक प्रचार था।" मालवीय जी हिंदु और मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उनका कहना था, "हम दोनों में जितना ही बैर या विरोध या अनेकता रहेगी, उतने ही हम दुर्बल रहेंगे। इसीलिए जो जाति इन्हें परस्पर लड़ाने का प्रयत्न करती है, वह देश की शत्रु है।" उनका कहना था, "हिंदु और मुसलमान दोनों ही साम्प्रदायिकता से दूर रहें और अपने धर्म के साथ-साथ देश की उपासना करें।"
उन्होंने अनेक संगठनों की स्थापना की तथा सनातन धर्म के हिंदू विचारों को प्रोत्साहन देने तथा भारत को सशक्त और दुनिया का विकसित देश बनाने के लिए उच्च स्तर की पत्रिकाओं का संपादन भी किया। उन्होंने प्रयाग हिंदू समाज की स्थापना की और समकालीन मुद्दों और देश की समस्याओं पर अनेक लेख लिखे। वर्ष 1884 में "हिंदी-उद्धारिणी-प्रतिनिधि-मध्य-सभा" प्रयाग में खुली। इसका उद्देश्य नागरिकों को उसका अधिकार दिलाया था। मालवीय जी ने इसमें दिल खोलकर काम किया, व्याख्यान दिये, लेख लिखे और अपने मित्रों को भी इस काम में भाग लेने के लिए उत्प्रेरित किया। मालवीय जी ने अपने ही देश में विदेशी भाषाओं के स्थान पर नागरी को समुचित स्थान दिलाने का प्रयास में हिंदी का प्रचलन अपने ही प्रदेश में आरंभ किया।
मालवीय जी के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान वर्ष 1886 में कोलकाता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के दूसरे वार्षिक अधिवेशन से हुई। वहां उन्होंने जो भाषण दिया, उससे कालाकांकर के राजा रामपाल सिंह प्रभावित हुए। वे 'हिन्दुस्तान' नामक एक साप्ताहिक समाचार पत्र निकालते थे। इसे वे दैनिक बनाना चाहते थे। उन्होंने मालवीय जी से इसका संपादक बनने का प्रस्ताव रखा। मालवीय जी बेहद स्वाभिमानी थे और अपने सिद्धांत के साथ समझौता नहीं करते थे। उन्होंने अपनी कुछ शर्तों सहित इसे स्वीकार किया।
वे एक प्रखर पत्रकार थे और हिंदी पत्रकारिता करते हुए उन्होंने राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार का काम किया। मालवीय जी को हिंदी के अखबारों का जनक कहना भी अतिशयोक्ति न होगी। कालाकांकर के हिंदुस्तान का संपादन करने के बाद प्रयाग से वर्ष 1907 में प्रकाशित "अभ्युदय" व उसके बाद "मर्यादा" ने अपने समाचार पत्र संपादकीय से जो अतिशय सफलता पाई वह बाद में प्रकाशित होने वाले अन्य समाचार पत्रों के लिए मार्गदर्शक बनी। वर्ष 1909 में उन्होंने 'लीडर" नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ किया और वर्ष 1924 से 1946 तक दिल्ली से प्रकाशित हिन्दुस्तान टाइम्स से भी संबद्ध रहे। साथ ही "किसान" और "मर्यादा" नामक पत्रों का संपादन किया। "लीडर" के हिंदी संस्करण "भारत" और "हिन्दुस्तान टाइम्स" का हिंदी संस्करण "हिन्दुस्तान" निकला।
राष्ट्रभाषा हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रति उनका अटूट प्रेम था। मालवीय जी के प्रयास से सन् 1896 में सर एण्टनी मेकडानल ने प्रान्तीय सरकार की सन् 1877 की वह आज्ञा वापस ले ली, जिसने सरकारी दफ्तर में दस रुपए या उससे अधिक की नौकरी पाने के लिए उर्दू या फारसी में एंग्लो-वर्नाकुलर मिडिल परीक्षा पास करना अनिवार्य बना दिया था। मालवीय जी के प्रयास से 2 मार्च सन् 1898 को अयोध्या नरेश महाराज प्रताप नारायण सिंह, माण्डा के राजा राम प्रताप सिंह, आवागढ़ के राजा बलवंत सिंह, पंडित सुन्दरलाल तथा मालवीय जी का एक डेपूटेशन सर एण्टोनी मेकडसलसे, जो उस समय उनके प्रान्त के लेफ्टिनेंट गवर्नर थे, मिले और मालवीय जी ने उसकी ओर से नागरी लिपि के संबंध में प्रार्थना पत्र उन्हें पेश किया। सर एण्टोनी ने प्रार्थना पत्र पर विचार करने का वादा किया और 14 अप्रेल सन् 1900 ई. को अदालतों में फारसी लिपि के साथ नागरी लिपि के भी चलन की आज्ञा जारी कर दी। वे हिंदी में भाषण दिया करते थे। मालवीय जी ने काशी नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे अंतिम क्षणों तक इसका मार्ग दर्शन करते रहे। वर्ष 1910 में मालवीय के सहयोग से इलाहाबाद में अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन की नींव पड़ी। वे अखिलभारतीय सनातन धर्म महासभा के संस्थापक व आजीवन अध्यक्ष रहे। उन्होंने संगीत विद्या को भी कोठे की चारदिवारियों से बाहर निकाल कर पहली बार काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्रतिष्ठापित किया। वर्ष 1919 में, प्रयाग में कुंभ के पावन अवसर पर उन्होंने श्रद्धालुओं की सेवा के लिए प्रयाग सेवा समिति की शुरुआत की। मालवीय जी स्वदेशी आंदोलन की भी नींव डालने वालों में अग्रणी थे। वर्ष 1881 में उन्होंने देशी तिजारत कंपनी का गठन किया। इसके बाद 1907 में उन्होंने इंडियन इंडस्ट्रियल कांफ्रेंस का भी आयोजन किया।
इस दशक में उनका महत्त्वपूर्ण कार्य अदालतों में देवनागरी लिपि के प्रयोग को सरकार द्वारा स्वीकृत कराना था। इसके लिए उन्हें लगातार तीन वर्ष तक कठिन परिश्रम करके एक प्रार्थना पत्र तैयार करना पड़ा। इस प्रार्थना पत्र में उन्होंने बहुत से विद्वानों और प्रकाशकों के विचारों तथा बहुत से तथ्यों के आधार पर नागरी लिपि के दावों को सिद्ध करने का प्रयत्न किया। उन्होंने बताया कि प्रोफेसर मोनिपर विलियम्स, सर आइजैक पिटमैन, चीफ जस्टिस अर्सकिन पेरी जैसे विद्वान नागरी लिपि की सर्वांगपूर्णता स्वीकार करते थे। उन्होंने यह भी बताया कि इन अक्षरों की मनोहरता, सुन्दरता, स्पष्टता, पूर्णता और शुद्धता निर्विवाद है। प्रार्थना पत्र में यह भी बताया गया कि 'यदि यह भी मान लिया जाए कि फारसी में अधिक शीघ्रता से काम चलता है' तो भी नागरी के गुणों तथा स्वत्वों को भुलाया नहीं जा सकता। बहुत से प्रमाणों से हिन्दी भाषा की व्यापकता को सिद्ध करते हुए प्रार्थनापत्र में कहा गया कि हिन्दी ही उत्तर भारत की भाषा है और नागरी अक्षरों का प्रचार पश्चिम तौर प्रान्त और अवध (मौजूदा उत्तर प्रदेश) में शिक्षा के प्रसार के लिए नितान्त आवश्यक है।
भारती भवन पुस्तकालय, प्रयाग म्यूनिस्पैलिटी छात्रावास का निर्माण आदि में मालवीय जी का भरपूर सहयोग रहा। मुसलमानों ने सरकार की आज्ञा का विरोध करते हुए मालवीय जी पर साम्प्रदायिकता का दोष लगाया और नागरी लिपि तथा हिन्दी की तरह-तरह से हिजो की। पर एक दिन मालवीय जी ने एक अरबी की नजीर नागरी लिपि में लिख कर हाइकोर्ट में पढकरर इस तरह ठीक-ठीक सुनाई कि मौलवी जामिन अला, जो कि मशहूर वकील थे, मुकदमा खत्म होने पर उनसे कोर्ट के बरामदे में मिले और उनका हाथ पकड़कर कहने लगे- "पंडित साहब, आज मैं नागरी अक्षरों की उमदगी का कायल हो गया, लेकिन मैं पब्लिक में यह नहीं कहूँगा।"
प्रयाग के सांस्कृतिक जीवन की अभिवृद्धि के लिए मालवीय जी ने बाबू पुरुषोत्तमदास टण्डन को हिन्दी साहित्य सम्मेलन के कार्यालय को प्रयाग में स्थापित कर उसका संचालन करने को प्रोत्साहित किया। ठण्डन जी से मालवीय जी के बहुत ही मधुर संबंध थे। वे तो एक प्रकार से टण्डन जी के राजनीतिक गुरु थे। उन्हीं से टण्डन जी ने विद्यार्थी जीवन में सार्वजनिक सेवा की प्रथम प्रेरणा प्राप्त की थी। टण्डन जी संयमी, दृढ़प्रतिज्ञ, कर्तव्य परायण, निस्पृही राष्ट्रसेवी थे। किसानों के प्रति उनकी विशेष सहानुभूति थी। वे स्वतन्त्रता संग्राम के वीर सेनानी और नायक थे। जमींदारों की लूटखसोट के प्रतिरोध के लिए किसानों का संगठन तथा किसान आन्दोलन का नेतृत्व उनके राजनीतिक क्रियाकलापों का महत्त्वपूर्ण अंग था। हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तो वे प्राण ही थे। वे ही उसके प्रमुख कर्ता-धर्ता थे। उन्होंने स्वतंत्र भारत में कांग्रेस के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया।
भारतीय समाज एवं दलित
मालवीय जी दलितों के मंदिरों में प्रवेश निषेध की बुराई के विरोध में संपूर्ण राष्ट्र में आंदोलन चलाया। 1 अगस्त, 1936 को काशी में महात्मा गांधी के एक वर्षीय हरिजनोद्धार कार्यक्रम के समापन पर आयोजित सभा में मालवीय जी ने एक रूढ़िवादी विद्वान के भाषण के जवाब में अपने भाषण में कहा, "मेरी समझ में नहीं आता कि करोड़ो गरीब हिंदुओं को धर्माचरण और देवदर्शन से वंचित रखना कौन-सा धर्म है। यह वही काशी नगरी है, जहां रैदास और कबीर जैसे भक्त हुए हैं, जहां स्वयं शंकर भगवान ने चांडाल का वेष धरकर भगवान शंकराचार्य को सब जीवों की एकता का उपदेश दिया। उस नगरी में एक विद्वान धर्माचार्य कैसे इतने बड़े अधर्म की बात कहता है? कैसे वह भगवान को भक्त से दूर रखने का साहस करता है। कैसे वह छुआछूत के नाम पर पवित्र राम-नाम और शिव का नाम लेने से उन्हें रोकता है, जिसके उच्चारण से उन्हें मुक्ति मिलती है?"
दलित अर्थात "जिसका दमन किया गया हो" जातियों की श्रेणी में वे जातियाँ आती है जो वर्ण व्यवस्था में सबसे निचली पायदान पर थी तथा जिनका विभिन्न प्रकार से सामाजिक, आर्थिक शोषण सदियों से होता चला आ रहा है। संवैधानिक भाषा में इन्हें अनुसूचित जाति कहा गया। भारत की जनसंख्या में 16 प्रतिशत दलित है। पिछले 6-7 दशको में दलित पद का अर्थ काफी बदल गया है। विभिन्न समाज सुधारकों व नेताओं के प्रयास एवं आन्दोलनों के पश्चात् यह शब्द हिन्दू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर स्थित हजारों वर्षो से अस्पृश्य समझी जाने वाली तमाम जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयोग होता है। अपनी सभ्यता के इतिहास में भारत ने अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने विचारों को आचरण में उतार कर मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया इन्हीं महापुरुषों के श्रेणी में एक अतुल्यनीय नाम श्री महामना मदन मोहन मालवीय जी का भी है जिन्होंने सामाजिक शोषण, दलितों की समाज में स्थिति तथा उनके उत्थान के विषयों में कई प्रयास कियें। इस प्रपत्र के माध्यम से मालवीय जी के द्वारा दलित उत्थान में किये प्रयासों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
दलित से अभिप्राय, उन लोगों से है जिन्हें जाति या वर्णगत भेदभाव के कारण सदियों से स्वस्थ एवं समुन्नत सामाजिक जीवन से वंचित, तिरस्कृत और समाज के हाशिये पर रखकर अपेक्षित जीवन जीने के लिए विवश रखा गया है। इतिहास के पन्ने को पलटने से यह साफ पता चलता है कि भारतीय सभ्यता के निर्माता वैदिक जन थे, वैदिक काल में समस्त मानव जीवन को एक व्यवस्था में सुन्दर समाज में बांधने के लिए चार आश्रमों की व्यवस्था की गयी इन्हीं चार आश्रमों की तरह चार वर्णों को भी बांटा गया-
  1. ब्राह्मण - समाज को शिक्षा प्रदान करे।
  2. क्षत्रिय - समाज की रक्षा करे।
  3. वैश्य - व्यापार तथा वस्तु की पूर्ति।
  4. शूद्र - सेवा का कार्य।
वेदकाल से ही जाति तथा प्रथा जैसी बुराई का प्रारम्भ हो चुका था जो मनुस्मृति काल में पनपकर विकसित हो गया। मनुस्मृति में सभी शूद्रों - अछूत जातियों के साथ पशुवत व्यवहार करने की व्यवस्था की गयी है। हिन्दू समाज व्यवस्था में वर्ण व्यवस्था के उल्लंघन पर निम्न वर्ण के लोगों के लिए हिन्दू मानस दण्ड का विधान मनुस्मृति में है। आज भी वह विधान गाँवों में हिन्दुओं के निजी कानून के रूप में व्यवहार में है जो कि कितने हिंसक और क्रुरतम आदेश है। वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज का सबसे बड़ा अभिशाप रहा इसके क्रम में दलितों का जो स्थान था, वह पशु से भी गया गुजरा था। दलित जीवन की भयावह पीड़ा ने प्राचीन काल से ही अकांक्षी और संवेदन शील समाज सुधारकों का ध्यान अपनी ओर खींचा। महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, स्वामी दयानन्द, राजा राममोहन राय, महात्मा ज्योतिबा फूले, नारायण गुरू, महात्मा गाँधी एवं डा0 बाबा साहब अम्बेडकर आदि ने अछूतों की स्थितों को समझ्ाने की कोशिश की और उसे बदलने का भी संघर्ष किया।
दलित समाज का उत्थान
प्राचीन काल में कार्य अनुसार वर्ण व्यवस्था का प्रादुर्भाव हुआ, यह व्यवस्था केवल कार्य विभाजन पर आधारित थी किन्तु जनसंख्या विस्फोट औद्योगीकरण एवं नगरीकरण की तीव्र होती प्रक्रिया के पश्चात कार्य विभाजन के सिद्धांत में अनवरत परिवर्तन परिलक्षित हो रहे है।
हम शनैः शनैः वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल और अब तक का लम्बा सफर तय कर आये है परन्तु अभी तक रूढ़िवादी प्राचीन परम्पराओं को अपने से दूर नहीं कर पाये। न तो इसमें अपेक्षित परिवर्तन मध्यकाल में आया और न ही आधुनिक काल, जबकि इस अन्तराल में अनेक महान सामाजिक चिन्तन वादियों का उदय हुआ, फिर भी इस समस्या को जिस सीमा तक दूर करना चाहिए था, दूर नहीं कर पाये। अपवादों को छोड़कर चिन्तनवादी परिवर्तन करने की दिशा में असफल रहें। भारत के संविधान निर्माताओं ने संविधान निर्माण के समय देश के कमजोर अथवा दलित वर्ग का विशेष ध्यान रखा और उनके विकास और उत्थान के लिए संविधान में अनेक प्रावधान किये।
मालवीय जी एवं दलित चिंतन
आचरण का उपदेश वचनों के आदेश से अधिक प्रभावशाली होता है, अपने एक गीता प्रवचन में पूज्य महामना ने यह बात कही थी; सन्दर्भ भगवान श्री कृष्ण थे, जिनका पृथ्वी पर अवतार अपने आचरण का उपदेश देने के लिए हुआ था। अपने सभ्यता- इतिहास में भारत ने अनेक महापुरुषों को जन्म दिया है जिन्होंने अपने विचारों को आचरण में उतार कर मानवता के कल्याण का मार्ग प्रशस्त किये। मालवीय जी को महामना की उपाधि उनके विराट हृदय और मानवीय संवेदना युक्त आचरण के लिए मिला था, उनके हृदय में दलित, स्त्री और समाज के कमजोर तबके इंसानों के प्रति अपार करुणा थी।
हिन्दू समाज की सनातन वर्ण व्यवस्था के अनुयायी होते हुए भी उनका साफ मानना था कि अस्पृश्यता हिन्दू समाज व्यवस्था का अंग नहीं है और जाति व्यवस्था और छुआछूत दोनो अलग-अलग बातें है। ऐसी कुरीति प्राचीन भारत में कभी नहीं रही इस समस्या के मूल में धर्म की रूढ़िवादी व्याख्या और अहंकारी सामंती प्रवृत्ति को जिम्मेदार ठहराते हुए उनका साफ मानना था कि जब तक दलितों की सामाजिक स्तर पर स्वीकार्यता नहीं होगी तब तक छुआछूत की समस्या दूर नहीं हो सकती। वे अस्पृश्यता को शास्त्रविध घोषित करते हुए आजीवन रूढ़िवादी विद्वानों को शास्त्रार्थ की चुनौती देते रहें और उनके बताये गये धर्मग्रन्थों से ही श्लोकों, उक्तियों, प्रमाणों, वचनों आदि को उद्धृत करके उन्हें निरुत्तर करते रहें। मालवीय जी अपने वचनों में कहते थे- " शुद्ध स्त्री और निर्बल, ईश्वर के हृदय में बसते है जबकी अन्य धार्मिक उनकी कृपा के पात्र होते है।"
एक बार एक सभा में मालवीय जी से "समाज में शूद्रों का स्थान" विषय पर सीधा प्रश्न हुआ तो उन्होंने उत्तर दिया कि यदि शूद्र प्रभु चरण से उत्पन्न है और हम उनके चरणों की पूजा करते है, चरणामृत लेते है, तो शूद्रों को तिरस्कृत व उपेक्षित करने का कोई औचित्य नहीं है। सभी वर्गों को अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए। इससे सामंजस्य और सद्भाव बढ़ेगा।
वर्ण व्यवस्था एवं मालवीय जी
वर्ण के विषय में मालवीय जी का विचार स्पष्ट था। वह जन्म के आधार पर पैतृक कर्म या प्रकृति को वर्ण व्यवस्था का आधार मानते थे। उनके अनुसार यदि ब्राह्मण के गुण शूद्र में पाये जाये तो वह शूद्र नहीं है और यदि ब्राह्मण के गुण नहीं पाये जाये तो वह ब्राह्मण नहीं हैं अतः उदाहरण देते हुए मालवीय जी ने कर्म के आधार पर वर्णों के सामाजिक महत्व को स्वीकार किया है उनके अनुसार मनुष्य पुण्य कर्म से वर्ण के उत्कर्ष को तथा पाप कर्म से वर्ण के अपकर्ष को प्राप्त होता है। मालवीय जी वर्णों के गुण के अनुसार ऊपर उठना उच्च वर्ण में स्वीकार करते थे। मालवीय जी ने कहा था- "हमारे वेद पुकार-पुकार कर कहते है कि हमारी हिन्दू जाति के अन्दर सब जातियाँ अर्थात् ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र एक ही शरीर के अंग है अतः सबसे प्रेम करना चाहिए। मालवीय जी वर्णो में गतिशीलता-सिद्धांत के समर्थक थे। उन्होंने कहा था कि मैं मनुष्यता का पूजक हूँ। मनुष्यत्व के आगे मैं जात-पात को नहीं मानता। उनका कहना था कि गरीब की सेवा करनी चाहिए द्वेष नहीं। उनके अनुसार- शीलं प्रधानं पुरूषे अर्थात् शील ही मनुष्य में प्रधान है। शीलं परंभूषणम् अर्थात् शील ही मनुष्य का सबसे उत्तम आभूषण है। शील सम्पन्न मनुष्य ही अपने जीवन का समुचित उत्कर्ष तथा समाज की सेवा कर सकता है।
दलित हजारों वर्षों तक अस्पृश्य या अछूत समझे जाने वाली उन तमाम शोषित जातियों के लिए सामूहिक रूप से प्रयुक्त होता है जो कि हिन्दू समाज व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर स्थित है। आज दलितों को भारत में जो भी अधिकार मिले है उसकी पृष्ठभूमि इसी शासन की देन थी। भारत में दलितों के उद्धार के लिए कदम उठाने वालो में विभिन्न समाज सुधारकों का नाम आता है मालवीय जी का अपने मानवीय मूल्यों की वजह से समाज में अलग स्थान रखते है मालवीय जी ने समय समय पर दलितों के उत्थान के लिए विभिन्न आवश्यक कदम उठाये। शिक्षा, धर्म, अस्पृश्यता आदि क्षेत्र में दलितों की समस्या का कैसे निष्कारण हो इसका उचित प्रयास किया। इनके सार्थक प्रयासों से दलित के प्रति सामाजिक बुराइयों में अधिकाधिक सुधार द्रष्टव्य है।
मालवीय जी और स्वतन्त्रता आन्दोलन
भारत की स्वतन्त्रता के वीर सेनानियों एवं देश के निर्माताओं में मालवीय जी का स्थान बहुत ऊंचा रहेगा। वे भारत की स्वतन्त्रता के लिए लड़े और इस विश्वास के साथ लड़े कि उसे अपने जीवन में ही प्राप्त कर लेंगे। लेकिन अपने जीवन काल में प्राप्त नहीं कर सके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, जिसे उनके महत्तम कार्यों में से एक समझा जाता है। वस्तुतः एक ऐसी अनुल्लंघनीय दीवार है, जो उनके विविध विषयों के व्यापक कार्य क्षेत्र पर दर्शकों की दृष्टि पड़ने नहीं देती। उनमें एक महापुरुष के व्यापक गुणों का अद्भुत एवं दुर्लभ सामंजस्य था। यह भी सही है कि ऊपर देखने पर भारतीय स्वतन्त्रता के भवन में मालवीय जी हाथ उतना अधिक प्रत्यक्ष नहीं दिखलाई पड़ता, जितना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी या नेता जी सुभाष चंद्र बोस का, क्योंकि नींव तो किसी को दिखलायी नहीं देती, किन्तु बिना नींव के भवन की कल्पना भी तो असम्भव है। इसी बात को लक्ष्य कर नेता जी सुभाषचंद्र बोस ने एक बार नवयुवकों को आह्वान करते हुए कहा था- "आज जिस अग्नि के चंदन की लकड़ी का काम किया है, इसे कभी मत भूलना। नेहरू जी ने लगभग इसी प्रकार के भाव व्यक्त किए थे- "भारतीय स्वतन्त्रता का जो शानदार भवन आज खड़ा हुआ है, नींव से लेकर ऊपर तक उसकी रचना मालवीय जी के हाथों हुई है। वर्ष-प्रतिवर्ष, ईंट पर ईंट, पत्थर पर पत्थर रखते हुए भारतीय स्वतन्त्रता के इस आधुनिक विशाल भवन का निर्माण उन्होंने किया था। वह असाधारण रूप से महापुरुष थे।
मालवीय जी कानून के भी अच्छे जानकार थे। वर्ष 1891 में वह बैरिस्टर बने और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत आरंभ की। वकालत के दौरान उन्हें गरीबों का वकील कहा जाता था। वह झूठा मुकदमा नहीं लेते थे। इन दिनों उन्होंने कई महत्वपूर्ण मुकदमों में पैरवी भी की। वर्ष 1913 में उन्होंने वकालत छोड़ दी थी लेकिन ब्रिटिश राज से आजादी के लिए राष्ट्र की सेवा करने का फैसला लिया। लेकिन जब गोरखपुर के ऐतिहासिक चैरीचैरा कांड में 170 लोगों को फांसी की सजा हुई तब इलाहाबाद हाइकोर्ट में मालवीय जी ने अपनी बहस से इनमें से 150 लोगों को फांसी के फंदे से बचा लिया।वे निःसंदेह अजातशत्रु थे।
मालवीय जी हिंदु और मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। उनका कहना था, "हम दोनों में जितना ही बैर या विरोध या अनेकता रहेगी, उतने ही हम दुर्बल रहेंगे। इसीलिए जो जाति इन्हें परस्पर लड़ाने का प्रयत्न करती है, वह देश की शत्रु है।" उनका कहना था, "हिंदु और मुसलमान दोनों ही साम्प्रदायिकता से दूर रहें और अपने धर्म के साथ-साथ देश की उपासना करें।" स्वतंत्रता के कुछ माह पूर्व 12 नवम्बर, 1946 को मालवीय जी का निधन हो गया। उनकी मृत्यु को राष्ट्रीय क्षति बताते हुए महात्मा गांधी ने कहा, "मालवीय जी ने देश को अपनी महान सेवाएं प्रदान की। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदु विश्वविद्यालय की स्थापना उनकी सबसे महान सेवा व उपलब्धि रही। यह कार्य उन्हें प्राणों से भी प्रिय था, जिसके लिए उन्होंने अथक प्रयास किए। सभी जानते हैं कि मालवीय जी को भिक्षु सम्राट के नाम से जाना जाता है। ईश्वर की कृपा से उन्होंने स्वयं के लिए कोई इच्छा नहीं की अतः उन्हें कभी किसी चीज का अभाव भी नहीं रहा। उक्त कार्य को उन्होंने अपना कर्तव्य माना और स्वेच्छा से भिक्षु भी बने। इसीलिए ईश्वर ने भी उनके पात्र को सदा जरूरत से ज्यादा भरे रखा।" इस दृष्टि से भारत के इस लोकतांत्रिक युग के लिए मालवीय जी का व्यक्तिक और सार्वजनिक जीवन लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के लिए अवश्य ही अनुकरणीय है। उनकी तत्परता, दृढ़ता, भद्रता तितिक्षता और कर्तव्‍य-परायणता तथा निर्भीकता और निस्वार्थ सेवा भावना का अनुकरण अवश्य ही इस देश के लोकतांत्रिक जीवन को ऊँचा उठा सकता है। इस तरह मालवीय जी का जीवन आज भी हमारे लिए उतना ही प्रासंगिक है, जितना वह स्वतन्त्रता से पहले था।


Madan Mohan Malaviya Slogans/मदन मोहन मालवीय जी के नारे
Hindi – सत्यमेव जयते. English – Satyameva Jayate.
Madan Mohan Malaviya Images/ मदन मोहन मालवीय जी के चित्र



महामना मदन मोहन मालवीय के दुर्लभ चित्र






















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