अदिति ने क्यो मारा ?
अभी कुछ देर पहले सभी लोग चाय पी रहे थे और सुबह की घटना की चर्चा हुई। पता चला कि अदिति ने छोटी बिट्टी को क्यों मारा। कारण यह था कि छोटी बिट्टी ने बेड गंदा कर दिया था। अदिति ने अम्मा जी से ये शिकायत की थी कि मै उसकी बड़ी बहन हूँ उसको सहूर सिखा रही थी। ये पे हमका छोटे चाचा मारे है।
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राष्ट्रहित एवं स्थाई सरकार के लिये घर से निकले पपप
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जबलपुर में दूसरा दिन - महेन्द्र, सलिल व ब्लागर मीट
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जबलपुर की यात्रा - प्रथम दिन
जबलपुर में मै 4 अप्रैल सायं 6 बजे तक पहुँच गया था। मेरे मित्र ताराचंद्र मुझे स्टेशन पर लेने पहुँच गये थे। स्टेशन पर एक लड़का जो इलाहाबाद से मेरे साथ था, उसे हमारा साथ बिछड़ने का गम था। जब उसे पता चला कि मै पहली बार अलेके यात्रा कर रहा हूँ तो वह और भी चिंतित हो गया। मैने उसे भरोसा दिलाया कि मै जबलपुर पहली बार जरूर जा रहा हूँ पर यहाँ मुझे एक दर्जन से ज्यादा लोग जानते है। उसकी कुछ चिंता कम होती है। जाते जाते मैने उसका नंबर लिया और संपर्क बनाए रखने की बात की। 4 अप्रैल के बाद से मैंने उसे दो बार बात कर चुका हूँ, वह भी मुम्बई पहुँच गया था।
जब मै ताराचंद्र के साथ चल तो जबलपुर की रौनक देखते ही बनती थी। मेरे मन में जो जबलपुर के प्रति धारणा थी वह बदल रही थी। कुछ देर में मै अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच गया। ताराचंद्र को भी अपने काम पर जाना था मै भी जबलपुर को स्थिर तौर पर देखना चाहता था। मै भी पैदल निकल पड़ा, करीब 8 से 12 किमी पैदल चलकर जबलपुर शहर को देखा और रात्रि 10 बजे वापस पहुँचा। जहाँ मै रूका था अगर उसका जिक्र न करूँ तो प्रथम दिन चर्चा अधूरी रह जायेगी। मै उस परिवार के प्रति आभार प्रकट करता हूँ। सहृदय धन्यवाद देता हूँ, जहाँ मुझे परिवार जैसा वातावरण मिला।
शहर का पूरा माहौल भक्तिमय था, जावरा की यात्रा देखना सुखद था। करीब 2 दर्जन मंदिरों में माथा टेक प्रसाद ग्रहण किया। जबलपुर को संस्कारधानी ऐसे ही नही कहा गया। प्रथम दिन कई जबलपुर के ब्लॉगरों को अपने पहुँचने की सूचना दिया और अगले दिन का कार्यक्रम तय किया। रात्रि के 10 बजे के बाद सोने का टाइम हो गया था, और फिर मै सो गया।
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श्री रामानुजाचार्य जी का जीवन परिचय
रामानुज ने कहा-‘नारायण! रमानाथ! श्रीनिवास! जनार्दन आपको मेरा साष्टांग प्रणाम है। मैं आपके दर्शन से ही कृतार्थ हो गया। आप धर्म के रक्षक हैं। ब्रह्माजी और महादेवजी भी जिन्हें यथार्थरूप में नहीं जानते, तीनों वेदों को भी जिनका ज्ञान नहीं हो पाता, वे ही परमात्मा आप आज मेरे समक्ष आकर मुझे अपने दर्शन से कृतार्थ कर रहे हैं-इससे बढ़कर और कौन सा वरदान हो सकता है। प्रभो! मैं तो इतने से ही कृतकृत्य हो गया हूँ, फिर भी आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए मैं यही वर मांगता हूँ कि आपके युगल चरणविन्दों में मेरी अविचल भक्ति बनी रहे।’ श्रीभगवान् ने कहा-‘‘एवमस्तु’’। मुझमें तुम्हारी दृढ़ भक्ति होगी। प्रारब्धानुसार जब इस शरीर का अंत होगा, तब तुम्हें मेरे स्वरूप की प्रप्ति होगी। प्रभु का यह वरदान पाकर रामानुज धन्य-धन्य हो गये। उन्होंने बड़ी विनय के साथ भगवान से कहा-‘प्रभो! आपके भक्तों के लक्षण क्या हैं, किस कर्म से उनकी पहचान होती है-यह मैं सुनना चाहता हूँ।’’
भगवान विष्णु बोले-‘‘ जो समस्त प्राणियों के हितैषी हैं, जिनमें दूसरों के दोष देखने का स्वभाव नहीं है, जो किसी से भी द्वैष नहीं रखते और ज्ञानी, निःस्पृह तथा शांतचित्त हैं, वे भगवद् भक्त हैं। जो मन-वाणी व क्रिया द्वारा दूसरों को पीड़ा नहीं देते और जिनमें संग्रह करने का स्वभाव नहीं है, जो उत्तम मानव माता-पिता की सेवा करते हैं, देवपूजा ें तत्पर रहते हैं, जो भगवत्पूजन के कार्य में सहायक होते हैं और कहीं भी पूजन होता देखकर मन में आनंद मनाते हैं, वे भगवद्भक्तों में सर्वश्रेष्ठ हैं। जो ब्रह्मचारियों और संन्यासियों की सेवा करते हैं तथा दूसरांे की निन्दा कभी नही करते/सुनते हैं जो सबके लिए हितकर वचन बोलते हैं और जो लोक में सद्गुणों के ग्रहक हैं, वे उत्तम भगवद्भक्त है, जो सभी प्राणियों को अपने समान देखते हैं तथा शत्रु और मित्र में समभाव रखते हैं, वे सभी उत्तम भगवद् भक्त हैं। जो एकादशी का व्रत करते, मेरे लिए सत्कर्मों का अनुष्ठान करते, मेरे भजन के लिए लालायित रहते तथा सदैव मेरे नामों के स्मरण में तत्पर होते हैं, वे उत्तम भागवदभक्त हैं। सद्गुणों की ओर जिनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है, वे सभी श्रेष्ठ भक्त हैं।’’
इस प्रकार उपदेश देकर भगवान विष्णु अन्तध्र्यान हो गये। मुनिवर रामानुज ने आकाशगंगा के तट पर रहकर भगवान् के भजन में ही शेष आयु व्यतीत की। अंत में करूणामय भगवान् कृपा से उन्हें सारूप्य मुक्ति प्राप्त हुई।
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मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं के फैसले के खिलाफ अपील पर निर्णय
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