भारतीय शिक्षा व्यवस्था का पतन मैकाले दोषी या हमारी अकर्मण्यता



मैकाले नाम हम अक्सर सुनते है मगर ये कौन था? इसके उद्देश्य और विचार क्या थे ?

मैकाले: मैकाले का पूरा नाम था ‘थॉमस बैबिंगटन मैकाले’....अगर ब्रिटेन के नजरियें से देखें...तो अंग्रेजों का ये एक अमूल्य रत्न था। एक उम्दा इतिहासकार, लेखक प्रबंधक, विचारक और देशभक्त.....इसलिए इसे लार्ड की उपाधि मिली थी और इसे लार्ड मैकाले कहा जाने लगा। अब इसके महिमामंडन को छोड़ मैं इसके एक ब्रिटिश संसद को दिए गए प्रारूप का वर्णन करना उचित समझूंगा जो इसने भारत पर कब्ज़ा बनाये रखने के लिए दिया था ...2 फ़रवरी 1835 को ब्रिटेन की संसद में मैकाले की भारत के प्रति विचार और योजना मैकाले के शब्दों में: "मैं भारत में काफी घुमा हूँ। दाएँ- बाएँ, इधर उधर मैंने यह देश छान मारा और मुझे एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं दिखाई दिया, जो भिखारी हो, जो चोर हो। इस देश में मैंने इतनी धन दौलत देखी है, इतने ऊँचे चारित्रिक आदर्श और इतने गुणवान मनुष्य देखे हैं की मैं नहीं समझता की हम कभी भी इस देश को जीत पाएँगे। जब तक इसकी रीढ़ की हड्डी को नहीं तोड़ देते जो इसकी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत है और इसलिए मैं ये प्रस्ताव रखता हूँ की हम इसकी पुराणी और पुरातन शिक्षा व्यवस्था, उसकी संस्कृति को बदल डालें, क्यूंकी अगर भारतीय सोचने लग गए की जो भी विदेशी और अंग्रेजी है वह अच्छा है और उनकी अपनी चीजों से बेहतर हैं, तो वे अपने आत्मगौरव, आत्म सम्मान और अपनी ही संस्कृति को भुलाने लगेंगे और वैसे बन जाएंगे जैसा हम चाहते हैं। एक पूर्णरूप से गुलाम भारत।"

कई बंधू इस भाषण की पंक्तियों को कपोल कल्पित कल्पना मानते हैं.....अगर ये कपोल कल्पित पंक्तिया है, तो इन काल्पनिक पंक्तियों का कार्यान्वयन कैसे हुआ ? मैकाले की गद्दार औलादें इस प्रश्न पर बगलें झाकती दिखती हैं और कार्यान्वयन कुछ इस तरह हुआ की आज भी मैकाले व्यवस्था की औलादें सेकुलर भेष में यत्र तत्र बिखरी पड़ी हैं। अरे भाई मैकाले ने क्या नया कह दिया भारत के लिए ?
भारत इतना संपन्न था की पहले सोने चांदी के सिक्के चलते थे कागज की नोट नहीं। धन दौलत की कमी होती तो इस्लामिक आतातायी श्वान और अंग्रेजी दलाल यहाँ क्यों आते... लाखों करोड़ रूपये के हीरे जवाहरात ब्रिटेन भेजे गए जिसके प्रमाण आज भी हैं मगर ये मैकाले का प्रबंधन ही है की आज भी हम लोग दुम हिलाते हैं 'अंग्रेजी और अंग्रेजी संस्कृति' के सामने। हिन्दुस्थान के बारे में बोलने वाला संस्कृति का ठेकेदार कहा जाता है और घृणा का पात्र होता है।

1. शिक्षा व्यवस्था में मैकाले प्रभाव : ये तो हम सभी मानते है की हमारी शिक्षा व्यवस्था हमारे समाज की दिशा एवं दशा तय करती है। बात 1825 के लगभग की है जब ईस्ट इंडिया कंपनी वितीय रूप से संक्रमण काल से गुजर रही थी और ये संकट उसे दिवालियेपन की कगार पर पहुंचा सकता था। कम्पनी का काम करने के लिए ब्रिटेन के स्नातक और कर्मचारी अब उसे महंगे पड़ने लगे थे। 1825 में गवर्नर जनरल विलियम बेंटिक भारत आया जिसने लागत घटने के उद्देश्य से अब प्रसाशन में भारतीय लोगों के प्रवेश के लिए चार्टर एक्ट में एक प्रावधान जुड़वाया की सरकारी नौकरी में धर्म जाती या मूल का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। यहाँ से मैकाले का भारत में आने का रास्ता खुला। अब अंग्रेजों के सामने चुनौती थी की कैसे भारतियों को उस भाषा में पारंगत करें जिससे की ये अंग्रेजों के पढ़े लिखे हिंदुस्थानी गुलाम की तरह कार्य कर सकें। इस कार्य को आगे बढाया जनरल कमेटी ऑफ पब्लिक इंस्ट्रक्शन के अध्यक्ष 'थोमस बैबिंगटन मैकाले' ने.... 1858 में लोर्ड मैकोले द्वारा Indian Education Act बनाया गया। मैकाले की सोच स्पष्ट थी, जो की उसने ब्रिटेन की संसद में बताया जैसा ऊपर वर्णन है। उसने पूरी तरह से भारतीय शिक्षा व्यवस्था को ख़त्म करने और अंग्रेजी (जिसे हम मैकाले शिक्षा व्यवस्था भी कहते है) शिक्षा व्यवस्था को लागू करने का प्रारूप तैयार किया। मैकाले के शब्दों में: "हमें एक हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है जो हम अंग्रेज शासकों एवं उन करोड़ों भारतीयों के बीच दुभाषिये का काम कर सके, जिन पर हम शासन करते हैं। हमें हिन्दुस्थानियों का एक ऐसा वर्ग तैयार करना है, जिनका रंग और रक्त भले ही भारतीय हों लेकिन वह अपनी अभिरूचि, विचार, नैतिकता और बौद्धिकता में अंग्रेज हों।"

आज कितने ऐसे मैकाले व्यवस्था की नाजायज श्वान रुपी संताने हमें मिल जाएंगी... जिनकी मात्रभाषा अंग्रेजी है और धर्मपिता मैकाले। इस पद्दति को मैकाले ने सुन्दर प्रबंधन के साथ लागू किया। अब अंग्रेजी के गुलामों की संख्या बढने लगी और जो लोग अंग्रेजी नहीं जानते थे वो अपने आप को हीन भावना से देखने लगे क्योंकि सरकारी नौकरियों के ठाठ उन्हें दिखते थे, अपने भाइयों के जिन्होंने अंग्रेजी की गुलामी स्वीकार कर ली और ऐसे गुलामों को ही सरकारी नौकरी की रेवड़ी बँटती थी। कालांतर में वे ही गुलाम अंग्रेजों की चापलूसी करते करते उन्नत होते गए और अंग्रेजी की गुलामी न स्वीकारने वालों को अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया। विडम्बना ये हुई की आजादी मिलते मिलते एक बड़ा वर्ग इन गुलामों का बन गया जो की अब स्वतंत्रता संघर्ष भी कर रहा था। यहाँ भी मैकाले शिक्षा व्यवस्था चाल कामयाब हुई अंग्रेजों ने जब ये देखा की भारत में रहना असंभव है तो कुछ मैकाले और अंग्रेजी के गुलामों को सत्ता हस्तांतरण कर के ब्रिटेन चले गए ..मकसद पूरा हो चुका था.... अंग्रेज गए मगर उनकी नीतियों की गुलामी अब आने वाली पीढ़ियों को करनी थी और उसका कार्यान्वयन करने के लिए थे कुछ हिन्दुस्तानी भेष में बौद्धिक और वैचारिक रूप से अंग्रेज नेता और देश के रखवाले (नाम नहीं लूँगा क्यूंकी एडविना की आत्मा को कष्ट होगा) कालांतर में ये ही पद्धति विकसित करते रहे हमारे सत्ता के महानुभाव ..इस प्रक्रिया में हमारी भारतीय भाषाएँ गौड़ होती गयी और हिन्दुस्थान में हिंदी विरोध का स्वर उठने लगा। ब्रिटेन की बौद्धिक गुलामी के लिए आज का भारतीय समाज आन्दोलन करने लगा। फिर आया उपभोगतावाद का दौर और मिशिनरी स्कूलों का दौर चूँकि 200 साल हमने अंग्रेजी को विशेष और भारतीयता को गौण मानना शुरू कर दिया था तो अंग्रेजी का मतलब सभ्य होना, उन्नत होना माना जाने लगा। हमारी पीढियां मैकाले के प्रबंधन के अनुसार तैयार हो रही थी और हम भारत के शिशु मंदिरों को सांप्रदायिक कहने लगे क्यूंकी भारतीयता और वन्दे मातरम वहां सिखाया जाता था। जब से बहुराष्ट्रीय कंपनिया आयीं उन्होंने अंग्रेजो का इतिहास दोहराना शुरू किया और हम सभी सभ्य बनने में, उन्नत बनने में लगे रहे मैकाले की पद्धति के अनुसार ..अब आज वर्तमान में हमें नौकरी देने वाली हैं अंग्रेजी कंपनिया जैसे इस्ट इंडिया थी। अब ये ही कंपनिया शिक्षा व्यवस्था भी निर्धारित करने लगी और फिर बात वही आयी कम लागत वाली, तो उसी तरह का अवैज्ञानिक व्यवस्था बनाओं जिससे कम लागत में हिन्दुस्थानियों के श्रम एवं बुद्धि का दोहन हो सके।

एक उदहारण देता हूँ: कुकुरमुत्ते की तरह हैं इंजीनियरिंग और प्रबंधन संस्थान ..मगर शिक्षा पद्धति ऐसी है की 1000 इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियरिंग स्नातकों में से शायद 10 या 15 स्नातक ही रेडियो या किसी उपकरण की मरम्मत कर पायें, नयी शोध तो दूर की कौड़ी है.. अब ये स्नातक इन्ही अंग्रेजी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास जातें है और जीवन भर की प्रतिभा 5 हजार रूपए प्रति महीने पर गिरवी रख गुलामों सा कार्य करते है ...फिर भी अंग्रेजी की ही गाथा सुनाते है.. अब जापान की बात करें 10वीं में पढने वाला छात्र भी प्रयोगात्मक ज्ञान रखता है ...किसी मैकाले का अनुसरण नहीं करता.. अगर कोई संस्थान अच्छा है जहाँ भारतीय प्रतिभाओं का समुचित विकास करने का परिवेश है तो उसके छात्रों को ये कंपनिया किसी भी कीमत पर नासा और इंग्लैंड में बुला लेती है और हम मैकाले के गुलाम खुशिया मनाते हैं की हमारा फला अमेरिका में नौकरी करता है। इस प्रकार मैकाले की एक सोच ने हमारी आने वाली शिक्षा व्यवस्था को इस तरह पंगु बना दिया की न चाहते हुए भी हम उसकी गुलामी में फसते जा रहें है।

इस Indian Education Act की ड्राफ्टिंग लोर्ड मैकोले ने की थी। लेकिन उसके पहले उसने यहाँ (भारत) के शिक्षा व्यवस्था का सर्वेक्षण कराया था, उसके पहले भी कई अंग्रेजों ने भारत के शिक्षा व्यवस्था के बारे में अपनी रिपोर्ट दी थी। अंग्रेजों का एक अधिकारी था G.W.Litnar और दूसरा था Thomas Munro, दोनों ने अलग अलग इलाकों का अलग-अलग समय सर्वे किया था। 1823 के आसपास की बात है ये Litnar , जिसने उत्तर भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा है कि यहाँ 97% साक्षरता है और Munro, जिसने दक्षिण भारत का सर्वे किया था, उसने लिखा कि यहाँ तो 100 % साक्षरता है और उस समय जब भारत में इतनी साक्षरता है और मैकोले का स्पष्ट कहना था कि: "भारत को हमेशा-हमेशा के लिए अगर गुलाम बनाना है तो इसकी देशी और सांस्कृतिक शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त करना होगा और उसकी जगह अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी और तभी इस देश में शरीर से हिन्दुस्तानी लेकिन दिमाग से अंग्रेज पैदा होंगे और जब इस देश की यूनिवर्सिटी से निकलेंगे तो हमारे हित में काम करेंगे।"

और मैकोले एक मुहावरा इस्तेमाल कर रहा है - "कि जैसे किसी खेत में कोई फसल लगाने के पहले पूरी तरह जोत दिया जाता है वैसे ही इसे जोतना होगा और अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था लानी होगी।"

इसलिए उसने सबसे पहले गुरुकुलों को गैरकानूनी घोषित किया, जब गुरुकुल गैरकानूनी हो गए तो उनको मिलने वाली सहायता जो समाज के तरफ से होती थी वो गैरकानूनी हो गयी, फिर संस्कृत को गैरकानूनी घोषित किया और इस देश के गुरुकुलों को घूम घूम कर ख़त्म कर दिया उनमे आग लगा दी, उसमें पढ़ाने वाले गुरुओं को उसने मारा-पीटा, जेल में डाला। 1850 तक इस देश में 7 लाख 32 हजार गुरुकुल हुआ करते थे और उस समय इस देश में गाँव थे 7 लाख 50 हजार, मतलब हर गाँव में औसतन एक गुरुकुल और ये जो गुरुकुल होते थे वो सब के सब आज की भाषा में Higher Learning Institute हुआ करते थे उन सबमे 18 विषय पढाया जाता था और ये गुरुकुल समाज के लोग मिल के चलाते थे न कि राजा, महाराजा, और इन गुरुकुलों में शिक्षा निःशुल्क दी जाती थी। इस तरह से सारे गुरुकुलों को ख़त्म किया गया और फिर अंग्रेजी शिक्षा को कानूनी घोषित किया गया। फिर कलकत्ता में पहला कॉन्वेंट स्कूल खोला गया, उस समय इसे फ्री स्कूल कहा जाता था, इसी कानून के तहत भारत में कलकत्ता यूनिवर्सिटी बनाई गयी, बम्बई यूनिवर्सिटी बनाई गयी, मद्रास यूनिवर्सिटी बनाई गयी और ये तीनों गुलामी के ज़माने के यूनिवर्सिटी आज भी इस देश में हैं और मैकोले ने अपने पिता को एक चिट्ठी लिखी थी बहुत मशहूर चिट्ठी है वो, उसमें वो लिखता है कि: "इन कॉन्वेंट स्कूलों से ऐसे बच्चे निकलेंगे जो देखने में तो भारतीय होंगे लेकिन दिमाग से अंग्रेज होंगे और इन्हें अपने देश के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने संस्कृति के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने परम्पराओं के बारे में कुछ पता नहीं होगा, इनको अपने मुहावरे नहीं मालूम होंगे, जब ऐसे बच्चे होंगे इस देश में तो अंग्रेज भले ही चले जाएँ इस देश से अंग्रेजियत नहीं जाएगी"

और उस समय लिखी चिट्ठी की सच्चाई इस देश में अब साफ़-साफ़ दिखाई दे रही है और उस एक्ट की महिमा देखिये कि हमें अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है, अंग्रेजी में बोलते हैं कि दूसरों पर रोब पड़ेगा, अरे हम तो खुद में हीन हो गए हैं जिसे अपनी भाषा बोलने में शर्म आ रही है, दूसरों पर रोब क्या पड़ेगा।

लोगों का तर्क है कि अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है, दुनिया में 204 देश हैं और अंग्रेजी सिर्फ 11 देशों में बोली, पढ़ी और समझी जाती है, फिर ये कैसे अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। शब्दों के मामले में भी अंग्रेजी समृद्ध नहीं दरिद्र भाषा है। इन अंग्रेजों की जो बाइबिल है वो भी अंग्रेजी में नहीं थी और ईशा मसीह अंग्रेजी नहीं बोलते थे। ईशा मसीह की भाषा और बाइबिल की भाषा अरमेक थी। अरमेक भाषा की लिपि जो थी वो हमारे बंगला भाषा से मिलती जुलती थी, समय के कालचक्र में वो भाषा विलुप्त हो गयी। संयुक्त राष्ट संघ जो अमेरिका में है वहां की भाषा अंग्रेजी नहीं है, वहां का सारा काम फ्रेंच में होता है। जो समाज अपनी मातृभाषा से कट जाता है उसका कभी भला नहीं होता और यही मैकोले की रणनीति थी।

2. समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव : अब समाज व्यवस्था की बात करें तो शिक्षा से समाज का निर्माण होता है। सन् 1836 में लार्ड मैकाले अपने पिता को लिखे एक पत्र में कहता है: "अगर हम इसी प्रकार अंग्रेजी नीतिया चलाते रहे और भारत इसे अपनाता रहा तो आने वाले कुछ सालों में 1 दिन ऐसा आएगा की यहाँ कोई सच्चा भारतीय नहीं बचेगा।" (सच्चे भारतीय से मतलब......चरित्र में ऊँचा, नैतिकता में ऊँचा, धार्मिक विचारों वाला, धर्मं के रस्ते पर चलने वाला)।
 
भारत को जय करने के लिए, चरित्र गिराने के लिए, अंग्रेजो ने 1758 में कलकत्ता में पहला शराबखाना खोला, जहाँ पहले साल वहाँ सिर्फ अंग्रेज जाते थे। आज पूरा भारत जाता है। सन् 1947 में 3.5 हजार शराबखानो को सरकार का
लाइसेंस। सन् 2009-10 में लगभग 25,400 दुकानों को मौत का व्यापार करने की इजाजत। चरित्र से निर्बल बनाने के लिए सन् 1760 में भारत में पहला वेश्याघर 'कलकत्ता में सोनागाछी' में अंग्रेजों ने खोला और लगभग 200 स्त्रियों को जबरदस्ती इस काम में लगाया गया। आज अंग्रेजों के जाने के 64 सालों के बाद, आज लगभग 20,80,000 माताएँ, बहनें इस गलत काम में लिप्त हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद जहाँ इनकी संख्या में कमी होनी चाहिए थी वहीं इनकी संख्या में दिन दुनी रात चौगुनी वृद्धि हो रही है ।

शिक्षा अंग्रेजी में हुए तो समाज खुद ही गुलामी करेगा, वर्तमान परिवेश में 'MY HINDI IS A LITTLE BIT WEAK' बोलना स्टेटस सिम्बल बन रहा है जैसा मैकाले चाहता था की हम अपनी संस्कृति को हीन समझे ...मैं अगर कहीं यात्रा में हिंदी बोल दूँ, मेरे साथ का सहयात्री सोचता है की ये पिछड़ा है ..लोग सोचते है त्रुटी हिंदी में हो जाए चलेगा मगर अंग्रेजी में नहीं होनी चाहिए ..और अब हिंगलिश भी आ गयी है बाज़ार में..क्या ऐसा नहीं लगता की इस व्यवस्था का हिंदुस्थानी 'धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का' होता जा रहा है। अंग्रेजी जीवन में पूर्ण रूप से नहीं सिख पाया क्यूंकी विदेशी भाषा है...और हिंदी वो सीखना नहीं चाहता क्यूंकी बेइज्जती होती है। हमें अपने बच्चे की पढाई अंग्रेजी विद्यालय में करानी है क्यूंकी दौड़ में पीछे रह जाएगा। माता पिता भी क्या करें बच्चे को क्रांति के लिए भेजेंगे क्या ?? क्यूकी आज अंग्रेजी न जानने वाला बेरोजगार है ..स्वरोजगार के संसाधन ये बहुराष्ट्रीय कंपनिया ख़त्म कर देंगी फिर गुलामी तो करनी ही होगी..तो क्या हम स्वीकार कर लें ये सब?? या हिंदी या भारतीय भाषा पढ़कर समाज में उपेक्षा के पात्र बने?? शायद इसका एक ही उत्तर है हमें वर्तमान परिवेश में हमारे पूर्वजों द्वारा स्थापित उच्च आदर्शों को स्थापित करना होगा। हमें विवेकानंद का "स्व" और क्रांतिकारियों का देश दोनों को जोड़ कर स्वदेशी की कल्पना को मूर्त रूप देने का प्रयास करना होगा, चाहे भाषा हो या खान पान या रहन सहन पोशाक। अगर मैकाले की व्यवस्था को तोड़ने के लिए मैकाले की व्यवस्था में जाना पड़े तो जाएँ ....जैसे मैं 'अंग्रेजी गूगल' का इस्तेमाल करके हिंदी लिख रहा हूँ और इसे 'अँग्रेजी फ़ेसबुक' पर शेयर कर रहा हूँ .....क्यूंकी कीचड़ साफ करने के लिए हाथ गंदे करने होंगे। हर कोई छद्म सेकुलर बनकर सफ़ेद पोशाक पहन कर मैकाले के सुर में गायेगा तो आने वाली पीढियां हिन्दुस्थान को ही मैकाले का भारत बना देंगी। उन्हें किसी ईस्ट इंडिया की जरुरत ही नहीं पड़ेगी गुलाम बनने के लिए और शायद हमारे आदर्शो 'राम और कृष्ण' को एक कार्टून मनोरंजन का पात्र। आज हमारे सामने पैसा चुनौती नहीं बल्कि भारत का चारित्रिक पतन चुनौती है। इसकी रक्षा और इसको वापस लाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

3. कानून व्यवस्था में मैकाले प्रभाव : मैकाले ने एक कानून हमारे देश में लागू किया था जिसका नाम है Indian Penal Code (IPC). ये Indian Penal Code अंग्रेजों के एक और गुलाम देश Ireland के Irish Penal Code की फोटोकॉपी है, वहां भी ये IPC ही है लेकिन Ireland में जहाँ "I" का मतलब Irish है वहीं भारत में इस "I" का मतलब Indian है, इन दोनों IPC में बस इतना ही अंतर है बाकि कौमा और फुल स्टॉप का भी अंतर नहीं है।
मैकोले का कहना था कि भारत को हमेशा के लिए गुलाम बनाना है तो इसके शिक्षा तंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त करना होगा और आपने अभी ऊपर Indian Education Act पढ़ा होगा, वो भी मैकोले ने ही बनाया था और उसी मैकोले ने इस IPC की भी ड्राफ्टिंग की थी। ये बनी 1840 में और भारत में लागू हुई 1860 में। ड्राफ्टिंग करते समय मैकोले ने एक पत्र भेजा था ब्रिटिश संसद को जिसमे उसने लिखा था कि: "मैंने भारत की न्याय व्यवस्था को आधार देने के लिए एक ऐसा कानून बना दिया है जिसके लागू होने पर भारत के किसी आदमी को न्याय नहीं मिल पायेगा। इस कानून की जटिलताएं इतनी है कि भारत का साधारण आदमी तो इसे समझ ही नहीं सकेगा और जिन भारतीयों के लिए ये कानून बनाया गया है उन्हें ही ये सबसे ज्यादा तकलीफ देगी और भारत की जो प्राचीन और परंपरागत न्याय व्यवस्था है उसे जड़मूल से समाप्त कर देगा।"

वो आगे लिखता है कि "जब भारत के लोगों को न्याय नहीं मिलेगा तभी हमारा राज मजबूती से भारत पर स्थापित होगा।"

ये हमारी न्याय व्यवस्था अंग्रेजों के इसी IPC के आधार पर चल रही है और आजादी के 64 साल बाद हमारी न्याय व्यवस्था का हाल देखिये कि लगभग 4 करोड़ मुक़दमे अलग-अलग अदालतों में पेंडिंग हैं, उनके फैसले नहीं हो पा रहे हैं। 10 करोड़ से ज्यादा लोग न्याय के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन न्याय मिलने की दूर-दूर तक सम्भावना नजर नहीं आ रही है, कारण क्या है? कारण यही IPC है। IPC का आधार ही ऐसा है।     (संकलित )


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भारतीय राजव्यवस्था के कुछ तथ्य



  • राजनीति विज्ञान की दृष्टि से भारत है- एक राज्य
  • उत्तर प्रदेश है- एक प्रांत या इकाई
  • भारत है- एक गणराज्य
  • गणराज्य का अर्थ है- राज्य का सर्वोच्च पदाधिकारी जनता द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित हो।
  • भारत में राज्य का प्रधान है- राष्ट्रपति
  • भारत में शासन का प्रधान है- प्रधानमंत्री
  • राष्ट्रपति नाम मात्र का शासक है जबकि प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद वास्तविक ।
  • भारत में संसदात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है जबकि अमेरिका में  अध्क्षात्मक को।
  • संसदात्मक शासन व्यवस्था में वास्तविक कार्यपालिका संसद में से ली जाती है तथा उसी के प्रति उत्तरदायी होती है।
  • राष्ट्रपति निर्वाचित होता है जबकि प्रधानमंत्री नियुक्त।
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रुप से होता है।
  • राष्ट्रपति के निर्वाचन में संसद के दोनो सदनों व प्रांतीय विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं।
  • मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।
  • प्रांतीय विधान परिषदों  के सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं।
  • राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत प्रणाली से होता है।
  • राष्ट्रपति बनने के लिए लोकसभा सदस्य बनने के लिए आवश्यक योग्यता तथा 35 वर्ष की आयु चाहिए।
  • राष्ट्रपति के पुनर्निवाचन पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
  • राष्ट्रपति को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश शपथ दिलाते हैं।
  • राष्ट्रपति का कार्यकाल शपथ ग्रहण की दिनांक से प्रारंभ होता है न कि निर्वाचित होने की दिनांक से।
  • राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है।
  • राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति तथा उनकी भी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति के रुप में कार्य करते हैं।
  • राष्ट्रपति के वेतन तथा भत्ते भारत की संचित निधि पर भारित होते हैं।
  • भारत में दो निधियां हैं- संचित तथा आकस्मिक निधि।
  • महाभियोग केवल राष्ट्रपति पर लगाया जाता है अन्य पदाधिकारियों पर केवल पद से हटाने का प्रस्ताव पारित किया जाता है।
  • महाभियोग से पूर्व राष्ट्रपति को 14 दिन का नोटिस देना आवश्यक है।
  • राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सौंपते हैं।
  • मंत्रिपरिषद संवैधानिक संस्था है जबकि मंत्रिमण्डल गैरसंवैधानिक।
  • मंत्रिपरिषद में 3 स्तर के मंत्री होते हैं- केबीनेट,राज्य तथा उप मंत्री।
  • मंत्रिमण्डल में केवल केबीनेट स्तर के।
  • प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • संसद के सदस्य बने बिना कोई व्यक्ति 6 माह तक प्रधानमंत्री या मंत्री रह सकता है।
  • किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न होने अथवा बहुमत दल में कोई सर्वमान्य नेता उपलब्ध न होने की स्थिति में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति में स्वविवेक का प्रयोग कर सकते हैं।
  • मंत्रियों की नियुक्ति में राष्ट्रपति स्वविवेक का प्रयोग नहीं कर सकते हैं।
  • आपात काल के 3 प्रकार हैं- राष्ट्रीय, राज्य तथा वित्तीय।
  • आपात काल मंत्रिपरिषद के लिखित परामर्श पर राष्ट्रपति द्वारा लागू किया जाता है।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में मनोनीत सदस्य भी भाग लेते हैं।
  • उपराष्ट्रपति के चुनाव में केवल संसद के सदस्य भाग लेते हैं, राज्य विधानसभा सदस्य नहीं।
  • उपराष्ट्रपति को अपने पद का कोई वेतन नहीं मिलता, उन्हे राज्यसभा के सभापति होने के नाते वेतन मिलता है।
  • राज्यसभा का सदस्य ना होते हुए भी उपराष्ट्रपति इसके पदेन सभापति होते हैं।


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तुलसी रचित श्री राम चरित् मानस के चुनिंदा अंश



  • "बचन परम हित सुनत कठोरे। सुनहिं जे कहहिं ते नर प्रभु थोरे।।"
    सुनने में कठोर परन्तु हितकारी वचन कहने व सुनने वाले मनुष्य बहुत थोडे हैं।
  • "नारि सुभाउ सत्य सब कहहिं। अवगुन आठ सदा उर रहहीं।।
    साहस अनृत चपलता माया। भय अबिबेक असौच अदाया।।"

    नारी के हृदय में आठ अवगुण सदा रहते हैं-साहस, झूठ, चंचलता, छल, भय, अविवेक,अपवित्रता व निर्दयता।
  • "प्रीति विरोध समान सन करिअ नीति असि आहि।
    जौं मृगपति बध मेडुकन्हि भल कि कहई कोउ ताहि।।"

    प्रीति और वैर बराबरी वालों से ही करना चाहिए, नीति ऐसी ही है; सिंह यदि मेंढकों के मारे तो क्या उसे कोई भला कहेगा।
  • "काल दंड गहि काहु न मारा हरइ धर्म बल बुद्धि बिचारा।"काल दंड(लाठी) लेकर किसी को नहीं मारता; वह तो धर्म,बल बुद्धि व विचार को हर लेता है।
  • "सुत, बित, नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।
    अस बिचारि जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।"

    पुत्र,धन,स्त्री,घर और परिवार; ये जगत में बार-बार होते हैं और जाते हैं,परन्तु जगत में सहोदर भाई बार बार नहीं मिलता।
  • "पर उपदेस कुसल बहुतेरे। जे आचरहिं ते नर न घनेरे।।’
    पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपवाद।ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद।।"

    जो दूसरों से द्रोह करते हैं, परायी स्त्री, पराया धन, परायी निन्दा में आसक्त रहते हैं वे पापमय मनुष्य नर शरीर धारण किए हुए राक्षस ही हैं।
  • "श्री मद बक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि।
    मृग लोचनि के नैन सर को अस लाग न जाहि।।"

    लक्ष्मी के मद् ने किसको टेढा और प्रभुता ने किसको बहरा न कर दिया? ऐसा कौन है जिसे मृगनयनी के नेत्र बाण न लगे हों।
  • "नारि बिबस नर सकल गौसाईं। नाचहिं नट मर्कट की नाईं।।"
    सभी मनुष्य स्त्रियों के विशेष वश में हैं और (कलियुग में) बाजीगर के बंदर की तरह नाचते हैं।


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भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान के प्रश्न उत्तर



भारतीय राजव्यवस्था
  1. लोक सभा तथा राज्यसभा की संयुक्त बैठक कब होती है? → संसद का सत्र शुरू होने पर
  2. किस व्यक्ति ने वर्ष 1922 में यह माँग की कि भारत के संविधान की संरचना हेतु गोलमेज सम्मेलन बुलाना चाहिए? → मोती लाल नेहरू
  3. कांग्रेस ने किस वर्ष किसी प्रकार के बाह्य हस्तक्षेप के बिना भारतीय जनता द्वारा संविधान के निर्माण की मांग को लेकर प्रस्ताव पारित किया था? → 1936
  4. वर्ष 1942 में किस योजना के तहत यह स्वीकार किया गया कि भारत में एक निर्वाचित संविधान सभा का गठन होगा, जो युद्धोपरान्त संविधान का निर्माण करेगी? → क्रिप्स योजना
  5. राज्यसभा के लिए नामित प्रथम फ़िल्म अभिनेत्री कौन थीं? → नरगिस दत्त
  6. संविधान संशोधन कितने प्रकार से किया जा सकता है? → 5
  7. संविधान सभा के लिए चुनाव कब निश्चित हुआ? → जुलाई 1946
  8. संविधान सभा को किसने मूर्त रूप प्रदान किया? → जवाहरलाल नेहरू
  9. भारत में कुल कितने उच्च न्यायालय हैं? → 21
  10. संविधान सभा की प्रथम बैठक कब हुई थी? → 9 दिसम्बर, 1946
  11. राष्ट्रपति चुनाव संबंधी मामले किसके पास भेजे जाते हैं? → उच्चतम न्यायालय
  12. प्रथम लोकसभा का अध्यक्ष कौन था?→ जी. वी. मावलंकर
  13. पहली बार राष्ट्रपति शासन कब लागू किया गया? → 20 जुलाई, 1951
  14. संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकता के सम्बन्ध में संसद ने एक व्यापक नागरिकता अधिनियम कब बनाया? → 1955
  15. प्रधानमंत्री बनने की न्यूनतम आयु है? → 25 वर्ष
  16. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन कब हुआ?→ सितम्बर 1946
  17. मुस्लिम लीग कब अंतरिम सरकार में शामिल हुई? → अक्टूबर 1946
  18. संविधान सभा की पहली बैठक किस दिन शुरू हुई? → दिसम्बर 1946
  19. संविधान सभा का पहला अधिवेशन कितनी अवधि तक चला? → 9 दिसम्बर 1946 से 23 दिसम्बर 1946
  20. देश के स्वतंत्र होने के पश्चात संविधान सभा की पहली बैठक कब हुई? → 31 अक्टूबर 1947
  21. संविधान सभा का अस्थायी अध्यक्ष किसे चुना गया? → सच्चिदानन्द सिन्हा
  22. संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष कौन था? → डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  23. संविधान निर्माण की दिशा में पहला कार्य ‘उद्देश्य प्रस्ताव’ था 22 जनवरी 1947 को यह प्रस्ताव किसने प्रस्तुत किया? → जवाहरलाल नेहरू
  24. भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का चुनाव किया गया था? → संविधान सभा द्वारा
  25. भारतीय संविधान की प्रस्तावना के अनुसार, भारत के शासन की सर्वोच्च सत्ता किसमें निहित्त है?→ जनता
  26. भारत के प्रथम सिख प्रधानमंत्री कौन है? → मनमोहन सिंह
  27. प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम व्यक्ति कौन हैं?→ मोरारजी देसाई
  28. भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कौन करता है? → राष्ट्रपति
  29. भारतीय संविधान के किस भाग को उसकी ‘आत्मा’ की आख्या प्रदान की गयी है?→ प्रस्तावना
  30. केरल का उच्च न्यायालय कहाँ स्थित है? → एर्नाकुलम
  31. राज्यसभा के लिए प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का निर्वाचन कौन करता है? → विधानसभा के निर्वाचित सदस्य
  32. 31वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या कितनी निर्धारित की गयी है? → 545
  33. हरियाणा राज्य कब बना था? → 1 नवम्बर, 1966
  34. दीवानी मामलों में संसद के सदस्यों को किस दौरान गिरफ्तार नहीं किया जा सकता? → संसद के सत्र के दौरान, संसद के सत्र आरम्भ होने के 40 दिन पूर्व तक, संसद के सत्र आरम्भ होने के 40 दिन बाद तक
  35. संघीय मंत्रिपरिषद से त्यागपत्र देने वाले प्रथम मंत्री कौन थे?→ श्यामा प्रसाद मुखर्जी
  36. भारत के संपरीक्षा और लेखा प्रणालियों का प्रधान कौन होता है? → भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
  37. लोकसभा के अध्यक्ष को कौन चुनता है? → लोकसभा के सदस्य
  38. कौन उत्तर प्रदेश की प्रथम महिला मुख्यमंत्री बनी? → सुचेता कृपलानी
  39. प्रथम लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या कितनी थी?→ 1874
  40. भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री कौन रहे हैं? → सरदार वल्लभ भाई पटेल
  41. सबसे लम्बी अवधि तक एक ही विभाग का कार्यभार संभालने वाले केंद्रीय मंत्री कौन थे? → राजकुमारी अमृत कौर
  42. दादरा एवं नगर हवेली किस न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आता है? → मुंबई उच्च न्यायालय
  43. मूल संविधान में राज्यों को कितने प्रवर्गों में रखा गया? → 4
  44. लोकसभा की सदस्यता के लिए उम्मीदवार को कितने वर्ष से कम नहीं होना चाहिए?→ 25 वर्ष
  45. भारतीय संविधान किस दिन से पूर्णत लागू हुआ? → 26 जनवरी, 1950
  46. पहली बार राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कब की गई? → 26 अक्टूबर, 1962
  47. डोगरी भाषा किस राज्य में बोली जाती है? → जम्मू और कश्मीर
  48. भारत के नागरिकों को कितने प्रकार की नागरिकता प्राप्त है? → एक
  49. भारतीय स्वाधीनता अधिनियम को किस दिन ब्रिटिश सम्राट की स्वीकृति मिली? → 21 जुलाई 1947
  50. भारतीय संविधान कितने भागों में विभाजित है? → 22
  51. केन्द्र और राज्य के बीच धन के बँटवारे के सम्बन्ध में कौन राय देता है?→ वित्त आयोग
  52. किस तरह से भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है? → जन्म, वंशानुगत, पंजीकरण
  53. भारतीय संविधान ने किस प्रकार के लोकतंत्र को अपनाया है? → लोकतांत्रिक गणतंत्र
  54. केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का अध्यक्ष कौन होता है? → प्रधानमंत्री
  55. जब भारत स्वतंत्र हुआ, उस समय कांग्रेस का अध्यक्ष कौन था? → जे. बी. कृपलानी
  56. मूल संविधान में राज्यों की संख्या कितनी थी? → 27
  57. 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम द्वारा प्रस्तावना में किन शब्दों को नहीं जोड़ा गया? → गुटनिरपेक्ष
  58. किस राज्य के विधान परिषद की सदस्य संख्या सबसे कम है? → जम्मू-कश्मीर
  59. भारत में किस प्रकार की शासन व्यवस्था अपनायी गयी है? → ब्रिटिश संसदात्मक प्रणाली
  60. भारत की संसदीय प्रणाली पर किस देश के संविधान का स्पष्ट प्रभाव है? → ब्रिटेन
  61. राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों की प्रेरणा किस देश के संविधान से मिली है? → आयरलैण्ड
  62. भारतीय संविधान की संशोधन प्रक्रिया किस देश के संविधान से प्रभावित है? → दक्षिण अफ्रीका
  63. भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया 28वाँ राज्य कौन-सा है। → झारखण्ड
  64. हिमाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा कब प्रदान किया गया? → 1971 में
  65. पहला संवैधानिक संशोधन अधिनियम कब बना? → 1951
  66. राष्ट्रपति पद के निर्वाचन हेतु उम्मीदवार की अधिकतम आयु कितनी होनी चाहिए? → कोई सीमा नहीं
  67. भारत का संविधान कब अंगीकृत किया गया था? → 26 नवम्बर,1949
  68. किस वर्ष गांधी जयंती के दिन केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना की गयी? → 1985
  69. विधान परिषद को समाप्त करने वाला आखिरी राज्य कौन है? → तमिलनाडु
  70. लोकसभा का सचिवालय किसकी देखरेख में कार्य करता है? → संसदीय मामले के मंत्री
  71. ‘विधान परिषद’ का सदस्य होने के लिए कम से कम कितनी आयु होनी चाहिए? → 30 वर्ष
  72. “राज्यपाल सोने के पिंजरे में निवास करने वाली चिड़िया के समतुल्य है।” यह किसका कथन है? → सरोजिनी नायडू
  73. देश के किस राज्य में सर्वप्रथम गैर-कांग्रेसी सरकार गठित हुई? → 1957, केरल
  74. किस राज्य की विधान परिषद की सदस्य संख्या सर्वाधिक है? → उत्तर प्रदेश
  75. प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जाति और जनजातियों की सूची कौन तैयार करता है? → प्रत्येक राज्य के राज्यपाल के परामर्श से राष्ट्रपति
  76. भारतीय संविधान में तीन सूचियों की व्यवस्था कहाँ से ली गयी है? → भारत शासन अधिनियम 1935 से
  77. किस वर्ष सिक्किम को राज्य का दर्जा दिया गया था? → 1975 में
  78. जनता पार्टी के शासन के दौरान भारत के राष्ट्रपति कौन थे? → नीलम संजीव रेड्डी
  79. कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, इसका निर्णय कौन करता है?→ लोकसभा का अध्यक्ष
  80. दल-बदल से सम्बन्धित किसी प्रश्न या विवाद पर अंतिम निर्णय किसका होता है? → सदन के अध्यक्ष
  81. 1922 में किस व्यक्ति ने मांग की थी कि भारत की जनता स्वयं अपने भविष्य का निर्धारण करेगी? → महात्मा गांधी
  82. संसद पर होने वाले ख़र्चों पर किसका नियंत्रण रहता है? → नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
  83. राज्यसभा की पहली महिला महासचिव कौन हैं? → वी. एस. रमा देवी
  84. संसद का कोई सदस्य अपने अध्यक्ष की पूर्वानुमति लिये बिना कितने दिनों तक सदन में अनुपस्थित रहे, तो उसका स्थान रिक्त घोषित कर दिया जाता है? → 60 दिन
  85. पांडिचेरी को किस वर्ष भारतीय संघ में सम्मिलित किया गया? → 1962
  86. भारत का संविधान भारत को किस प्रकार वर्णित करता है? → राज्यों का संघ
  87. वह कौन सी सभा है, जिसका अध्यक्ष उस सदन का सदस्य नहीं होता है? → राज्य सभा
  88. पूरे देश को कितने क्षेत्रीय परिषदों में बाँटा गया है? → 5
  89. क्या पंचायतों को कर लगाने का अधिकार है? → हाँ
  90. जवाहरलाल नेहरू के निधन के पश्चात किसने प्रधानमंत्री पद ग्रहण किया? → गुलजारी लाल नन्दा
  91. राजस्थान में पंचायती राज व्यवस्था की शुरुआत किस ज़िले से हुई? → नागौर
  92. किसकी सिफारिश पर संविधान सभा का गठन किया गया? → कैबिनेट मिशन योजना
  93. संविधान सभा में विभिन्न प्रान्तों के लिए 296 सदस्यों का निर्वाचन होना था। इनमें से कांग्रेस के कितने प्रतिनिधि निर्वाचित होकर आए थे? → 208
  94. कैबिनेट मिशन योजना के अनुसार, संविधान सभा के कुल कितने सदस्य होने थे? → 389
  95. किसी क्षेत्र को ‘अनुसूचित जाति और जनजाति क्षेत्र’ घोषित करने का अधिकार किसे है? → राष्ट्रपति
  96. पुनर्गठन के फलस्वरूप वर्ष 1947 में संविधान सभा के सदस्यों की संख्या कितनी रह गयी? → 299
  97. संविधान सभा में किस देशी रियासत के प्रतिनिधि ने भाग नहीं लिया था?→ हैदराबाद
  98. भारतीय संविधान में किस अधिनियम के ढांचे को स्वीकार किया गया है? → भारत शासन अधिनियम 1935
  99. मुस्लिम लीग ने संविधान सभा का बहिष्कार किस कारण से किया? → मुस्लिम लीग मुस्लिमों के लिये एक अलग संविधान सभा चाहता था
  100. वर्ष 1938 में किस व्यक्ति ने व्यस्क मताधिकार के आधार पर संविधान सभा के गठन की मांग की? → जवाहरलाल नेहरू 


भारतीय विधि से संबधित महत्वपूर्ण लेख



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भारतीय संसद के तीन अंग राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा



The Parliament of India is the supreme legislative body in India. Indian-Parliament-President-Rajya-Sabha-and-Lok-Sabha
संसद (पार्लियामेंट) भारत का सर्वोच्च विधायी निकाय है। यह द्विसदनीय व्यवस्था है। भारतीय संसद में राष्ट्रपति तथा दो सदन- लोकसभा (लोगों का सदन) एवं राज्यसभा (राज्यों की परिषद) होते हैं। राष्ट्रपति के पास संसद के दोनों में से किसी भी सदन को बुलाने या स्थगित करने अथवा लोकसभा को भंग करने की शक्ति है। भारतीय संसद का संचालन 'संसद भवन' में होता है। जो कि नई दिल्ली में स्थित है। लोक सभा में राष्ट्र की जनता द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि होते हैं जिनकी अधिकतम संख्या ५५२ है। राज्य सभा एक स्थायी सदन है जिसमें सदस्य संख्या २५० है। राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन / मनोनयन ६ वर्ष के लिए होता है। जिसके १/३ सदस्य प्रत्येक २ वर्ष में सेवानिवृत्त होते है। भारत की राजनीतिक व्यवस्था को, या सरकार जिस प्रकार बनती और चलती है, उसे संसदीय लोकतंत्र कहा जाता है। 

From the Roli Archives: The Indian Parliament under construction.

सन 1883 के चार्टर अधिनियम में पहली बार एक विधान परिषद के बीज दिखाई पड़े। 1853 के अंतिम चार्टर अधिनियम के द्वारा विधायी पार्षद शब्दों का प्रयोग किया गया। यह नयी कौंसिल शिकायतों की जांच करने वाली और उन्हें दूर करने का प्रयत्न करने वाली सभा जैसा रूप धारण करने लगी।  1857 की आजादी के लिए पहली लड़ाई के बाद 1861 का भारतीय कौंसिल अधिनियम बना। इस अधिनियम को ‘भारतीय विधानमंडल का प्रमुख घोषणा पत्र’ कहा गया। जिसके द्वारा ‘भारत में विधायी अधिकारों के अंतरण की प्रणाली’ का उद्घाटन हुआ। इस अधिनियम द्वारा केंद्रीय एवं प्रांतीय स्‍तरों पर विधान बनाने की व्यवस्था में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए। अंग्रेजी राज के भारत में जमने के बाद पहली बार विधायी निकायों में गैर-सरकारी लोगों के रखने की बात को माना गया।


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मेरी प्रिय कविता - सुमित्रा नंदन पन्त रचित "नारी"



मेरी प्रिय कविता - सुमित्रा नंदन पन्त रचित "नारी"

यदि स्वर्ग कहीं है पृथ्वी पर, तो वह नारी उर के भीतर,
दल पर दल खोल हृदय के अस्तर
जब बिठलाती प्रसन्न होकर
वह अमर प्रणय के शतदल पर!
मादकता जग में कहीं अगर, वह नारी अधरों में सुखकर,
क्षण में प्राणों की पीड़ा हर,
नव जीवन का दे सकती वर
वह अधरों पर धर मदिराधर।
यदि कहीं नरक है इस भू पर, तो वह भी नारी के अन्दर,
वासनावर्त में डाल प्रखर
वह अंध गर्त में चिर दुस्तर
नर को ढकेल सकती सत्वर!


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GK TRICKS कवक से होने वाले रोग



TRICK-"गंजा दामाद खाए फ्रूट"
  1. गंजा-गंजापन
  2. दामा-दमा
  3. द-दाद
  4. खाए-खाज
  5. फ्रूट- हाथी पाँव(फुट) या एलीफीएन्टेसिस रोग


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GK TRICK - प्रोटोजोआ द्वारा होने वाले रोग



TRICK-"कल आम पानी में पका"
  1. कल-काला अजार
  2. आम-अमिबी पेचिश
  3. पा-पायरिया
  4. नी-निद्रा रोग
  5. में-मलेरिया ज्वर
  6. पका-पेचिश 
  • नोट-सभी रोग प्रोटोजोअन से होते है।


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GK TRICKS विषाणुओ द्वारा होने वाले रोग



TRICK-"रेखा हमे हिट करके पोएचे (पीछे) छोड़ गई"
  1. रे-रेबीज
  2. खा-खसरा
  3. ह-हर्पीस
  4. में-मेनिनजाईटिस
  5. हि-हिपेटाइटीस
  6. ट-ट्रेकोमा (पोथकी/रोहे) "करके-silent"
  7. पो-पोलियो
  8. ए-एड्स
  9. चे-चेचक (बड़ी माता)
  10. छो-छोटी माता
  11. ड-डेंगू ज्वर (पित्त ज्वर)
  12. ग-गलसोध (mumps)
  13. ई-इन्फ्लुन्ज़ा (स्वाइन फ्लू N1H1)


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GK TRICKS - जीवाणुओ द्वारा होने वाले रोग



TRICK- "टिंकू सिडी में बनी है पटाका"
  1. टि- टिटेनस (धनुस्तम्भ), टि.बी. (क्षय/तपेदिक)
  2. कू-कुष्ट रोग (कोढ़)
  3. सि-सिफिलिस (फिरंग रोग)
  4. डी-डिप्थीरिया
  5. में-मेनिन जाइटीस
  6. ब-बोट्युलिस्म (भोजन विषाक्तता)
  7. नी-निमोनिया
  8. है-हैजा
  9. प-प्लेग
  10. टा-टायफाइड (मोतीझरा/मियादी बुखार)
  11. का-काली खांसी (कुक्कर खांसी)


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TRICK गंगा नदी में मिलने वाली प्रमुख नदियाँ



"यशोदा को राम शा कंगन चाहिए"
  1. य-यमुना
  2. सो-सोन
  3. दा-दामोदर
  4. को-कोसी (नेपाल में सप्तकोसी और बिहार का शोक)
  5. रा-रामगंगा
  6. म-महानंदा
  7. शा-शारदा (काली गंगा)
  8. क-करनाली (घाघरा/कौरियाला)
  9. गन-गण्डक (नेपाल में शालिग्राम तथा मैदानी भाग में नारायणी)
  10. चाहिए- silent word...


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मक्का काबा मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग



काबा और भगवान शिव 
'काबा' अरब का प्राचीन मन्दिर है। जो मक्का शहर में है। विक्रम की प्रथम शताब्दी के आरम्भ में रोम के इतिहास लेखक 'द्यौद्रस् सलस्' लिखता है - यहाँ इस देश में एक मंदिर है, जो अरबों का अत्यंत पूजनीय है। इस कथन से इस बात को बल मिलता है कि काबा और भगवान शिव का कोई न कोई प्राचीन जुड़ाव जरूर है। पूरा विश्व आज काबा का सच को जानने को उत्सुक है किंतु वर्तमान परिदृश्य में काबा में गैर-इस्लामिक या कहे कि गैर मुस्लिम का जाना प्रतिबंधित है इस कारण काबा के अंदर क्या है और इसके पीछे सच का बहुत खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।
क्या मक्का पहले मक्केश्वर महादेव शिवलिंग था 
क्या मक्का पहले मक्केश्वर महादेव शिवलिंग था
मक्का मदीना का सच 
मक्का मदीना का सच
makkeshwar shivling (मक्केश्वर शिवलिंग)
Makkeshwar Shivling मक्केश्वर शिवलिंग Makka Madina Shivling

इस्लामिक मान्यता से इतर काबा शरीफ का इतिहास
संपूर्ण विश्व क्या भारत के लोग ही यह कटु सत्य स्वीकार नहीं कर सकते कि इस्लाम ने हिन्दू की आस्था माने जाने वाले असंख्य मंदिर तोड़े है और उनके स्थान पर उसी मंदिर के अवशेष से मस्जिदों को निर्माण करवाया। मक्का का इतिहास के बारे इसी बात से पता चलता है कि इस्लामिक विध्वंसक गतिविधियाँ इतनी प्रचंडता के साथ की जाती थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय और सोमनाथ मंदिर विध्वंस किये गये, तो भारत से हजारों किलो मीटर दूर काबा और मक्‍का मे क्या हुआ होगा, इसके बारे में कह पाना बिना अध्ययन के बहुत उचित नहीं होगा।

इस्लाम नींव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का अनादर करने और उनको नेस्तनाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जिद और मकबरे का निर्माण किया जाए। इस काम बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाये। भले ही वे लोग मुस्लिमों को परेशान न करते हो। मुहम्मद साहब और मुसलमानों के हमले से मक्का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया। इस्लाम एक तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा और इसका अंत भी उस से ही होगा किंतु पी एन ओक ने सिद्ध कर दिया है मक्केश्वर शिवलिंग ही हजे अस्वद है। मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं।

काबा में शिव और मक्का मदीना का रहस्य
द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मानना है कि मक्का में मक्केश्वर महादेव मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा थी, वह इसके बहुत विरोधी थें। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के काबा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इराक और सीरिया में सुबी नाम से एक जाति थी यही साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम। माना जाता है कि भारतीय मूल के लोग बहुत बड़ी संख्या में यमन में आबाद थे, जहां आज भी श्याम और हिन्द नामक किले मौजूद हैं। विद्वानों के अनुसार सऊदी अरब के मक्का में जो काबा है, वहां कभी प्राचीन काल में 'मुक्तेश्वर' नामक एक शिवलिंग था जिसे बाद में 'मक्केश्वर' कहा जाने लगा।
अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)
अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।

मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैरकानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं। मक्का मदीना के शिवलिंग का रहस्य क्‍या है इसे इस्लाम पंथियों द्वारा सदा से छिपाया जा रहा है।

मुसलमानों के पैगम्बर मुहम्मद एक ऐसे विध्वंसक गिरोह का नेतृत्व करते थे जो धन और वासना के पुजारी थे। मोहम्मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय मूर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरदस्त नरसंहार किया। मक्का का मदीना के अपना अलग अस्तित्व था किन्तु मुहम्मद साहब के हमले के बाद मक्का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। जबकि मक्का के लोग जो कि शिव के उपासक माने जाते है। मुहम्मद की टोली ने मक्का में स्थापित कर वहां पे स्थापित की हुई 360 में से 359 मूर्तियाँ नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्लिमों द्वारा पूजा जाता है। उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी मुहम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामों निशान नहीं है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था। उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम श्रद्धालु अपना शीश जुकाते है। किसी हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है।
मक्‍का मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग
जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी आराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी आराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

मक्का मदीना का सच
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इस सम्बन्ध में प्रख्यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। पैगंबर मुहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्दूओं का पवित्र शिवलिंग है। वास्तव में इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी।
 काबा के अंदर क्या है
काबा और भगवान शिव
मक्का शिव मंदिर
मक्‍केश्‍वर महादेव शिव
एक प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार है कि काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण महापंडित रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चंद्रमा के महात्मा को समझता था और यह जानता था कि कभी शिव को गंगा से अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसे लंका में स्थापित करने का कहा और बाद जब रावण आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दोबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकटेश पंडित के अनुसार यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है।
मक्का मदीना की फोटो जिसमें मक्केश्वर महादेव है
मक्का मदीना की फोटो जिसमें मक्केश्वर महादेव है
पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-
"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !! "

चित्रों की प्रमाणिकता में शिव लिंग और मक्का
मक्का स्थित प्रचीन शिव लिंग


 मक्का की आन्तरिक संरचना और भगवान शिव लिंग
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जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा



जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा
ब्राह्मी एक परिचय (Brahmi An Introduction) - ब्राह्मी का एक पौधा होता है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियॉं मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। ब्राह्मी हरे और सफेद रंग की होती है। इसका स्वाद फीका होता है और इसकी तासीर शीतल होती है। ब्राह्मी का पौधा पूरी तरह से औषधीय है। यह पौधा भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियां मुलायम, गूदेदार और फूल सफेद होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है। ब्राह्मी के फूल छोटे, सफेद, नीले और गुलाबी रंग के होते हैं। -यह पौधा नम स्‍थानों में पाया जाता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है। इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्‍दी में सफेद चमनी, संस्‍कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आद‍ि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी(Bacapa monnieri) है। इस पौधे में हायड्रोकोटिलिन नामक क्षाराभ और एशियाटिकोसाइड नामक ग्लाइकोसाइड पाया जाता है।यह पूर्ण रूपेण औषधी पौधा है। ब्राह्मी कब्‍ज को दूर करती है। इसके पत्‍ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होता है। ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं क्योंकि यह प्रधानतः जलासन्न भूमि में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसका बहुत बड़ा नाम है।
औषधीय गुण - यह पूर्ण रूपेण औषधी पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है।
  • दिल का दोस्त (Heart Friendly) - ब्राह्मी बुद्धि और उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती है। यह बुखार को खत्म करती है, याददाश्त को बढ़ाती है। सफेद दाग, पीलिया, खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। यह मानसिक रोगों में भी लाभकारी है और दिल के लिए भी फायदेमंद। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं, क्योंकि यह प्रधानत: जलासन्न भूमि में पाई जाती है। ब्राह्मी में रक्तशोधक गुण भी पाये जाते हैं। यह हृदय के लिए भी पौष्टिक होती है।
  • कार्य क्षमता संवर्धक (Work Capacity Extenders)- ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यत: मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
  • स्मृति बढ़ाए (Memory Enhancer)- मिर्गी के दौरों तथा उन्माद में भी ब्राह्मी बहुत लाभकारी होती है।सही मात्रा में इसका सेवन करने से याददाश्त दुरुस्त होती है। अल्पमंदता में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी या मिसरी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए।ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है।बच्चों को खांसी या छोटी उम्र में क्षयरोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए, लाभ होता है। 200 ग्राम शंखपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ते) के चूर्ण में इतनी ही मात्रा में मिश्री और 30 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन 1 कप दूध के साथ सेवन करते रहने से स्मरण शक्ति (दिमागी ताकत) बढ़ जाती है।
  • कब्ज और गठिया में फायदेमंद (Beneficial in Arthritis and Constipation) - यह कई तरह के रोगों में फायदेमंद साबित होती है। यह कब्ज को दूर करती है। इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होती है। 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी के रस को लेने से शौच साफ आती हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को 3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी की जड़ का सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर हो जाती है।
ब्राह्मी के अन्य औषधीय उपयोग

ब्राह्मी के अन्य औषधीय उपयोग
  • ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है।यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है।यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है।
  • लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
  • ब्राह्मी और बादाम की गिरी की एक भाग ,काली मिर्च का चार भाग लेकर इनको पानी में घोटकर छोटी- छोटी गोली बनाकर एक-एक गोली नियमित रूप से दूध के साथ सेवन करने पर दिमाग की स्फूर्ति बनी रहती है।
  • ब्राह्मी 2.5 ग्राम, शंखपुष्पी -2.5 ग्राम ,बादाम क़ी गिरी पांच ग्राम, छोटी इलायची का पाउडर -2.5 ग्राम, इन सब को पानी में अच्छी तरह घोलकर छान लें और मिश्री मिलाकर सुबह शाम आधा से एक गिलास पीएं...इससे खांसी, बुखार में लाभ तो मिलता ही है साथ ही स्मरण शक्ति भी तीव्र होती है।
  • नींद न आने क़ी समस्या है तो आप ब्राह्मी का ताजा रस निकाल लें और इसे आधा लीटर गाय के कच्चे दूध में मिला लें और सात दिनों तक नियमित सेवन कर के देखें, आप तनावमुक्त होकर अच्छी नींद लेने लग जाएंगे।
  • ब्राह्मी के पांच मिलीग्राम स्वरस को 2.5 ग्राम कूठ के पाउडर और शहद के साथ सात दिनों तक सेवन कराने से पागलपन की बीमारी में भी लाभ मिलता है।
  • ब्राह्मी की ताजी पत्तियों का रस, बालवचा, शंखपुष्पी और कूठ को समान मात्रा में लेकर पुराने गाय के घी के साथ लगातार लेने से भी मानसिक रोगों में लाभ मिलता है।
  • यदि आपको बालों से सम्बंधित कोई समस्या है जैसे बाल झड़ रहे हों तो परेशान न हों बस ब्राह्मी के पांच अंगों का यानी पंचाग का चूर्ण लेकर एक चम्मच की मात्रा में लें और लाभ देखें।
  • बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए सौ ग्राम की मात्रा में ब्राह्मी, पचास ग्राम की मात्रा में शंखपुष्पी के साथ चार गुना पानी मिलाकर इसका अर्क निकाल लें और नियमित प्रयोग करें। बस ध्यान रहे कि खट्टी चीजें न खाएं आपको जल्द ही फायदा होगा।
  • यदि पेशाब में तकलीफ हो या पेशाब रूक रहा हो तो बस ब्राह्मी के दो चम्मच स्वरस में मिश्री मिलाकर दें। इससे पेशाब खुल कर आएगा।
  • यदि उच्च रक्तचाप का कोई विशेष कारण न हो तो ब्राह्मी की ताजी पत्तियों का स्वरस 2.5 मिलीग्राम मात्रा में शहद लेकर सेवन करें, इससे भी रक्तचाप नियंत्रित रहेगा। ये हैं इसके कुछ सामान्य नुस्खें, इसके अलावा भी ब्राह्मी का कई रोगों में उपयोग किया जा सकता है ।
  • यह बहुपयोगी नर्व टॉनिक है जो मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है । यह कमज़ोर स्मरण शक्ति वालों तथा दिमागी काम करने वालों के लिए विशेष लाभकारी है।
  • ब्राह्मी का पावडर अल्प मात्रा में (२ ग्राम) दूध में मिलाकर छानकर लेने से अनिद्रा के रोग में फायदा होता है।
  • ब्राह्मी का शरबत उन्माद रोग में लाभकारी होता है तथा गर्मियों में दिमाग को ठंडक प्रदान करता है। 4. शहद के साथ इसके पत्तों का रस प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप में लाभ मिलता है।
  • बच्चों में दस्त लगने पर तीन अथवा चार पत्तियां जीरा तथा चीनी के साथ मिलाकर देने से तथा इसके पेस्ट को नाभि के चारों ओर लगाने से आराम मिलता है।
  • त्वचा सम्बन्धी विकारों जैसे एक्जीमा तथा फोड़े फुंसियों पर इसकी पत्तियों के चूर्ण को लगाने से फायदा होता है।
  • हाथीपाँव की शिकायत में सूजे हुए अंग पर इस पौधे के तने तथा पत्तियों का रस लगाने से सूजन कम करने में मदद मिलती है।
  • चटनी बनाते समय ब्राह्मी के कुछ पत्ते चटनी में डाल कर इसका लाभ उठाया जा सकता है।
  • रहमी को वास्तु की दृष्टि से भी महत्पूर्ण माना जाता है। जिस घर में ब्रहमी का पेड़ लगा होता है, उस परिवार के बच्चों की स्मरण शक्ति अच्छी होती है और घर में अचानक दुर्घटना होने की आशंका भी नहीं रहती है।
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भारतीय इतिहास में अकबर की महानता का सच



यह विडंबना ही है कि विश्व को ज्ञान देने वाले भारत को ही दुनिया का सबसे झूठा इतिहास पढ़ाया जा रहा है। महाराणा प्रताप और भगत सिंह को आतंकी तो विश्व के सबसे क्रूर और अतातई में से एक अकबर की महानता के गीत गए जा रहे है। भारत की इतिहास की किताबों में अकबर पर पूरे अध्याय होते है और अन्दर कही दो पंक्तियाँ महाराणा प्रताप पर भी होती है। मसलन वो कब पैदा हुए, कब मरे, कैसे विद्रोह किया, और कैसे उनके ही राजपूत उनके खिलाफ थे।
 
इतिहासकार महाराणा प्रताप को कभी महान न कह सके ठीक ही तो है। अकबर और राणा का मुकाबला क्या है? कहाँ अकबर पूरे भारत का सम्राट, अपने हरम में पांच हज़ार से भी ज्यादा औरतों की जिन्दगी रोशन करने वाला और उनसे दिल्लगी कर उन्हें शान बख्शने वाला, बीसियों राजपूत राजाओं को अपने दरबार में रखने वाला, और कहाँ राणा प्रताप, क्षुद्र क्षत्रिय, अपने राज्य के लिए लड़ने वाला, सत्ता का भूखा, सत्ता के लिए वन वन भटक कर पत्तलों पर घास की रोटियाँ खाने वाला, जिसका कोई हरम ही नहीं है। इस तरह का छोटा और निष्ठुर हृदय, सब राजपूतों से केवल इसलिए लड़ने वाला कि उन्होंने अपनी लड़कियाँ, पत्नियाँ, बहनें अकबर को भेजी, अकबर “महान” का संधि प्रस्ताव कई बार ठुकराने वाला घमंडी, और मुसलमान राजाओं से रोटी बेटी का सम्बन्ध भी न रखने वाला दकियानूसी, इत्यादि।
अकबर “महान” की महानता बताने से पहले उसके महान पूर्वजों के बारे में थोड़ा जान लेना जरूरी है। भारत में पिछले तेरह सौ सालों से इस्लाम के मानने वालों ने लगातार आक्रमण किये। मुहम्मद बिन कासिम और उसके बाद आने वाले गाजियों ने एक के बाद एक हमला करके, यहाँ लूटमार, बलात्कार, नर संहार और इन सबसे बढ़कर यहाँ रहने वाले काफिरों को अल्लाह और उसके रसूल की इच्छानुसार मुसलमान बनाने का पवित्र किया। आज के अफग़ानिस्तान तक पश्चिम में फैला उस समय का भारत धीरे धीरे इस्लाम के शिकंजे में आने लगा। आज के अफग़ानिस्तान में उस समय अहिंसक बौद्धों की निष्क्रियता ने बहुत नुकसान पहुंचाया क्योंकि इसी के चलते मुहम्मद के गाजियों के लश्कर भारत के अंदर घुस पाए। जहाँ जहाँ तक बौद्धों का प्रभाव था, वहाँ पूरी की पूरी आबादी या तो मुसलमान बना दी गयी या काट दी गयी। जहां हिंदुओं ने प्रतिरोध किया, वहाँ न तो गाजियों की अधिक चली और न अल्लाह की। यही कारण है कि सिंध के पूर्व भाग में आज भी हिंदू बहुसंख्यक हैं क्योंकि सिंध के पूर्व में राजपूत, जाट, आदि वीर जातियों ने इस्लाम को उस रूप में बढ़ने से रोक दिया जिस रूप में वह इराक, ईरान, मिस्र, अफग़ानिस्तान और सिंध के पश्चिम तक फैला था अर्थात वहाँ की पुरानी संस्कृति को मिटा कर केवल इस्लाम में ही रंग दिया गया पर भारत में ऐसा नहीं हो सका। परन्तु बीच बीच में लुटेरे आते गए और देश को लूटते गए।
तैमूर लंग ने कत्लेआम करने के नए आयाम स्थापित किए और अपनी इस पशुता को बड़ी ढिटाई से अपनी डायरी में भी लिखता गया। इसके बाद मुगल आये जो हमारे इतिहास में इस देश से प्यार करने वाले लिखे गए हैं! बताते चलें कि ये देश भक्त और प्रेम पुजारी मुग़ल, तैमूर और चंगेज खान के कुलों के आपस के विवाह संबंधों का ही परिणाम थे। इनमें बाबर हुआ जो अकबर “महान” का दादा था। यह वही बाबर है जिसने अपने काल में न जाने कितने मंदिर तोड़े, कितने ही हिंदुओं को मुसलमान बनाया, कितने ही हिंदुओं के सिर उतारे और उनसे मीनारें बनायीं। यह सब पवित्र कर्म करके वह उनको अपनी डायरी में लिखता भी रहता था ताकि आने वाली उसकी नस्ल इमान की पक्की हो और इसी नेक राह पर चले क्योंकि मूर्ति पूजा दुनिया की सबसे बड़ी बुराई है और अल्लाह को वह बर्दाश्त नहीं। इस देश भक्त प्रेम पुजारी बाबर ने प्रसिद्ध राम मंदिर भी तुड़वाया और उस जगह पर अपने नाम की मस्जिद बनवाई। यह बात अलग है कि वह अपने समय का प्रसिद्ध नशाखोर, शराबी, हत्यारा, समलैंगिक (पुरुषों से भोग करने वाला), छोटे बच्चों के साथ भी बिस्मिल्लाह पढकर भोग करने वाला था। पर वह था पक्का मुसलमान! तभी तो हमारे देश के मुसलमान भाई अपने असली पूर्वजों को भुला कर इस सच्चे मुसलमान के नाम की मस्जिद बनवाने के लिए दिन रात एक किये हुए हैं। खैर यह वो “महान” अकबर का महान दादा था जो अपने पोते के कारनामों से इस्लामी इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों से लिखवा गया।ऐसे महान दादा के पोते स्वनामधन्य अकबर “महान” के जीवन के कुछ दृश्य आपके सामने रखते हैं। इस काम में हम किसी हिन्दूवादी इतिहासकार के प्रमाण नहीं देंगे क्योंकि वे तो खामखाह अकबर “महान” से चिढ़ते हैं! हम देंगे प्रमाण अबुल फज़ल (अकबर का खास दरबारी) की आइन ए अकबरी और अकबरनामा से और साथ ही अकबर के जीवन पर सबसे ज्यादा प्रामाणिक इतिहासकार विन्सेंट स्मिथ की अंग्रेजी की किताब “अकबर- द ग्रेट मुग़ल” से। हम दोनों किताबों के प्रमाणों को हिंदी में देंगे ताकि सबको पढ़ने में आसानी रहे। यहां याद रहे कि ये दोनों लेखक सदा इस बात के लिए निशाने पर रहे हैं कि इन्होने अकबर की प्रशंसा करते करते बहुत झूठ बातें लिखी हैं, इन्होने बहुत सी उसकी कमियां छुपाई है। पर हम यहां यह दिखाएँगे कि अकबर के कर्मों का प्रताप ही कुछ ऐसा था कि सच्चाई सौ परदे फाड़ कर उसी तरह सामने आ जाती है जैसे कि अँधेरे को चीर कर उजाला।
अकबर महानता का आगाज़ कब और कैसे हुआ इसके बारेे मे विन्सेंट स्मिथ ने अपनी एक किताब को यहाँं से शुरू किया कि “अकबर भारत में एक विदेशी था, उसकी नसों में एक भी बूँद खून भी भारतीय नहीं था…. अकबर मुग़ल से ज्यादा एक तुर्क था” परन्‍तु हमारे इतिहासकारों और कहानीकारों ने अकबर को एक भारतीय के रूप में पेश किया है। जबकि हकीक़त यह है कि अकबर के सभी पूर्वज बाबर, हुमायूं, से लेकर तैमूर तक सब भारत में लूट, बलात्कार, धर्म परिवर्तन, मंदिर विध्वंस, आदि कामों में लगे रहे. वे कभी एक भारतीय नहीं थे और इसी तरह अकबर भी नहीं था और इस पर भी हमारी हिंदू जाति अकबर को हिन्दुस्तान की शान समझती रही।
अकबर महान की सुंदरता और अच्छी आदतों के बारे में हिन्दी फ़िल्मे और साहित्य भरे पड़े है। कहा जाता है कि बाबर शराब का शौकीन था, इतना कि अधिकतर समय धुत रहता था ऐसा बाबरनामा में उल्लेख मिलता है। हुमायूं अफीम का शौकीन था और इस वजह से बहुत लाचार भी हो गया था। अकबर ने ये दोनों आदतें अपने पिता और दादा से विरासत में लीं, अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हुए। परन्‍तु इतने पर भी इस बात पर तो किसी मुसलमान भाई को शक ही नहीं कि ये सब सच्चे मुसलमान थे। कई इतिहासकार अकबर को सबसे सुन्दर आदमी घोषित करते हैं किन्तु विन्सेंट स्मिथ इस सुंदरता का वर्णन यूँ करते हैं- “अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था. उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था. उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था. उसकी नाक छोटी थी जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी. उसके नाक के नथुने ऐसे दीखते थे जैसे वो गुस्से में हो. आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था. वह गहरे रंग का था” ।
जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर उसे सदा शेख ही बुलाता था भले ही वह नशे की हालत में हो या चुस्ती की हालत में, इसका मतलब यह है कि अकबर काफी बार नशे की हालत में रहता था। अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा पीनी शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करता करता भी नींद में गिर पड़ता था। वह अक्सर ताड़ी पीता था, वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलो के जैसी हरकत करने लगता।
Mughal Harem Scene

अकबर महान की शिक्षा के बारे मे जहाँगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है। अकबर महान के तथाकथित स्त्रियों के लिए आदर बारे मे अबुल फज़ल ने लिखा है कि अपने राजा बनने के शुरूआती सालों में अकबर परदे के पीछे ही रहा, परदे के पीछे वो किस बेशर्मी को बेपर्दा कर रहा था। अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और हर एक का अपना अलग घर था.” ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। आइन ए अकबरी में अबुल फजल ने लिखा है- “शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था. वहाँ इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गयीं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गयी। दरबारी नर्तकियों को अपने घर ले जाते थे। अगर कोई दरबारी किसी नयी लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेनी पड़ती थी। कई बार जवान लोगों में लड़ाई झगडा भी हो जाता था, एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया”। अब यहाँ सवाल पैदा होता है कि ये वेश्याएं इतनी बड़ी संख्या में कहाँ से आयीं और कौन थीं? आप सब जानते ही होंगे कि इस्लाम में स्त्रियाँ परदे में रहती हैं, बाहर नहीं और फिर अकबर जैसे नेक मुसलमान को इतना तो ख्याल होगा ही कि मुसलमान औरतों से वेश्यावृत्ति कराना गलत है। तो अब यह सोचना कठिन नहीं है कि ये स्त्रियां कौन थी ये वो स्त्रियाँ थीं जो लूट के माल में अल्लाह द्वारा मोमिनों के भोगने के लिए दी जाती हैं, अर्थात काफिरों की हत्या करके उनकी लड़कियाँ, पत्नियाँ आदि। अकबर की सेनाओं के हाथ युद्ध में जो भी हिंदू स्त्रियाँ लगती थीं, ये उसी की भीड़ मदिरालय में लगती थी।
अबुल फजल ने अकबरनामा में लिखा है- “जब भी कभी कोई रानी, दरबारियों की पत्नियाँ, या नयी लड़कियाँ शहंशाह की सेवा (यह साधारण सेवा नहीं है) में जाना चाहती थी तो पहले उसे अपना आवेदन पत्र हरम प्रबंधक के पास भेजना पड़ता था. फिर यह पत्र महल के अधिकारियों तक पहुँचता था और फिर जाकर उन्हें हरम के अंदर जाने दिया जाता जहां वे एक महीने तक रखी जाती थीं.” अब यहाँ देखना चाहिए कि चाटुकार अबुल फजल भी इस बात को छुपा नहीं सका कि अकबर अपने हरम में दरबारियों, राजाओं और लड़कियों तक को भी महीने के लिए रख लेता था। पूरी प्रक्रिया को संवैधानिक बनाने के लिए इस धूर्त चाटुकार ने चाल चली है कि स्त्रियाँ खुद अकबर की सेवा में पत्र भेज कर जाती थीं! इस मूर्ख को इतनी बुद्धि भी नहीं थी कि ऐसी कौन सी स्त्री होगी जो पति के सामने ही खुल्लम खुल्ला किसी और पुरुष की सेवा में जाने का आवेदन पत्र दे दे? मतलब यह है कि वास्तव में अकबर महान खुद ही आदेश देकर ज़बरदस्ती किसी को भी अपने हरम में रख लेता था और उनका सतीत्व नष्ट करता था।
रणथंभोर की संधि में अकबर महान की पहली शर्त यह थी कि राजपूत अपनी स्त्रियों की डोलियों को अकबर के शाही हरम के लिए रवाना कर दें यदि वे अपने सिपाही वापस चाहते हैं। बैरम खान जो अकबर के पिता तुल्य और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के तुल्य स्त्री से शादी की। ग्रीमन के अनुसार अकबर अपनी रखैलों को अपने दरबारियों में बाँट देता था और औरतों को एक वस्तु की तरह बांटना और खरीदना अकबर महान बखूबी करता था। मीना बाजार जो हर नए साल की पहली शाम को लगता था, इसमें सब स्त्रियों को सज धज कर आने के आदेश दिए जाते थे और फिर अकबर महान उनमें से किसी को चुन लेते थे।

 
भारत के इतिहास मे कहा जाता है कि नेक दिल अकबर महान था, अकबर 6 नवम्बर 1556 को 14 साल की आयु में अकबर महान पानीपत की लड़ाई में भाग ले रहा था। हिंदू राजा हेमू की सेना मुग़ल सेना को खदेड़ रही थी कि अचानक हेमू को आँख में तीर लगा और वह बेहोश हो गया, उसे मरा सोचकर उसकी सेना में भगदड़ मच गयी। तब हेमू को बेहोशी की हालत में अकबर महान के सामने लाया गया और इसने बहादुरी से हेमू का सिर काट लिया और तब इसे गाजी के खिताब से नवाजा गय। (गाजी की पदवी इस्लाम में उसे मिलती है जिसने किसी काफिर को कतल किया हो, ऐसे गाजी को जन्नत नसीब होती है और वहाँ सबसे सुन्दर हूरें इनके लिए बुक होती हैं) हेमू के सिर को काबुल भिजा दिया गया एवं उसके धड को दिल्ली के दरवाजे से लटका दिया गया ताकि नए आतंकवादी बादशाह की रहमदिली सब को पता चल सके। इसके तुरंत बाद जब अकबर महान की सेना दिल्ली आई तो कटे हुए काफिरों के सिरों से मीनार बनायी गयीजो जीत के जश्न का प्रतीक है और यह तरीका अकबर महान के पूर्वजों से ही चला आ रहा है। हेमू के बूढ़े पिता को भी अकबर महान ने कटवा डाला और औरतों को उनकी सही जगह अर्थात शाही हरम में भिजवा दिया गया।
अबुल फजल लिखता है कि खान जमन के विद्रोह को दबाने के लिए उसके साथी मोहम्मद मिराक को हथकडियां लगा कर हाथी के सामने छोड़ दिया गया और हाथी ने उसे सूंड से उठाकर फैंक दिया। ऐसा पांच दिनों तक चला और उसके बाद उसको मार डाला गया। चित्तौड़ पर कब्ज़ा करने के बाद अकबर महान ने तीस हजार नागरिकों का क़त्ल करवाया। अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया और हमजबान की जबान ही कटवा डाली। मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आँखें सीकर बंद कर दी गये और उसके 300 साथी उसके सामने लाये गए और उनके चेहरे पर गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया। विन्सेंट स्मिथ ने यह लिखा है कि अकबर महान फांसी देना, सिर कटवाना, शरीर के अंग कटवाना, आदि सजाएं भी देते थे। 2  सितम्बर 1573 के दिन अहमदाबाद में उसने 2000 दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनायी. वैसे इसके पहले सबसे ऊंची मीनार बनाने का सौभाग्य भी अकबर महान के दादा बाबर का ही था अर्थात कीर्तिमान घर के घर में ही रहा। अकबरनामा के अनुसार जब बंगाल का दाउद खान हारा, तो कटे सिरों के आठ मीनार बनाए गए थे। यह फिर से एक नया कीर्तिमान था, जब दाउद खान ने मरते समय पानी माँगा तो उसे जूतों में पानी पीने को दिया गया।


the harem of akbar
 
जैसा कि इतिहास मे यह पढ़ाया गया कि अकबर महान न्यायकारी शासक था किन्तु ऐसा नही है। एक बार की बात है थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था तब अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख आत्मघाती लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी, जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया और अंत में इसने दोनों तरफ के लोगों को ही अपने सैनिकों से मरवा डाला। हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की नीति यही थी कि राजपूत ही राजपूतों के विरोध में लड़ें, बादायुनी ने अकबर के सेनापति से बीच युद्ध में पूछा कि प्रताप के राजपूतों को हमारी तरफ से लड़ रहे राजपूतों से कैसे अलग पहचानेंगे? तब उसने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है क्योंकि किसी भी हालत में मरेंगे तो राजपूत ही और फायदा इस्लाम का होगा।
कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एकलिंग की मूर्ति तोड़ी और उस स्थान पर नमाज पढ़ी। एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को इस बात के लिए एक मीनार से नीचे फिंकवा दिया। अगस्त १६०० में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया पर मामला बराबरी का था. न तो वह किला टोड पाया और न ही किले की सेना अकबर को हरा सकी. विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा. उसने किले के राजा मीरां बहादुर को आमंत्रित किया और अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा. तब मीरा शान्ति के नाम पर बाहर आया और अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुका. पर अचानक उसे जमीन पर धक्का दिया गया ताकि वह पूरा सजदा कर सके क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था। उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गयी कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। सेनापति ने मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि उसका पिता समर्पण नहीं करेगा चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए. यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। इस तरह झूठ के बल पर अकबर महान ने यह किला जीता.यहाँ ध्यान देना चाहिए कि यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है। अतः कई लोगों का यह कहना कि अकबर बाद में बदल गया था, एक झूठ बात है। इसी तरह अपने ताकत के नशे में चूर अकबर ने बुंदेलखंड की प्रतिष्ठित रानी दुर्गावती से लड़ाई की और लोगों का क़त्ल किया।
अकबर महान और महाराणा प्रताप - ऐसे इतिहासकार जिनका अकबर दुलारा और चहेता है, एक बात नहीं बताते कि कैसे एक ही समय पर राणा प्रताप और अकबर महान हो सकते थे जबकि दोनों एक दूसरे के घोर विरोधी थे? यहाँ तक कि विन्सेंट स्मिथ जैसे अकबर प्रेमी को भी यह बात माननी पड़ी कि चित्तौड़ पर हमले के पीछे केवल उसकी सब कुछ जीतने की हवस ही काम कर रही थी। वहीँ दूसरी तरफ महाराणा प्रताप अपने देश के लिए लड़ रहे थे और कोशिश की कि राजपूतों की इज्जत उनकी स्त्रियां मुगलों के हरम में न जा सकें। शायद इसी लिए अकबर प्रेमी इतिहासकारों ने राणा को लड़ाकू और अकबर को देश निर्माता के खिताब से नवाजा है। अकबर महान अगर, राणा शैतान तो शूकर है राजा, नहीं शेर वनराज है अकबर आबाद और राणा बर्बाद है तो हिजड़ों की झोली पुत्र, पौरुष बेकार है अकबर महाबली और राणा बलहीन तो कुत्ता चढ़ा है जैसे मस्तक गजराज है अकबर सम्राट, राणा छिपता भयभीत तो हिरण सोचे, सिंह दल उसका शिकार है अकबर निर्माता, देश भारत है उसकी देन कहना यह जिनका शत बार धिक्कार है अकबर है प्यारा जिसे राणा स्वीकार नहीं रगों में पिता का जैसे खून अस्वीकार है।
अकबर इस्लाम के कितना नजदीक था यह इससे पता चलता हैै कि हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया। असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर ३६ शादियाँ करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि करके भी इस्लाम को अपने दामन से बाँधे रखा ताकि राजनैतिक फायदा मिल सके और सबसे मजेदार बात यह है कि वंदे मातरम में शिर्क दिखाने वाले मुल्ला मौलवी अकबर की शराब, अफीम, ३६ बीवियों, और अपने लिए करवाए सजदों में भी इस्लाम को महफूज़ पाते हैं। किसी मौलवी ने आज तक यह फतवा नहीं दिया कि अकबर या बाबर जैसे शराबी और समलैंगिक मुसलमान नहीं हैं और इनके नाम की मस्जिद हराम है। अकबर ने खुद को दिव्य आदमी के रूप में पेश किया, उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में “अल्लाह ओ अकबर” कह कर अभिवादन किया जाए, जबकि मुसलमान सोचते हैं कि वे यह कह कर अल्लाह को बड़ा बता रहे हैं पर अकबर ने अल्लाह के साथ अपना नाम जोड़कर अपनी दिव्यता फैलानी चाही. अबुल फज़ल के अनुसार अकबर खुद को सर्वज्ञ (सब कुछ जानने वाला) की तरह पेश करता था। ऐसा ही इसके लड़के जहांगीर ने लिखा है। अकबर ने अपना नया पंथ दीन ए इलाही चलाया जिसका केवल एक मकसद खुद की बडाई करवाना था। उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया।
अकबर को इतना महान बताए जाने का एक कारण ईसाई इतिहासकारों का यह था कि क्योंकि इसने हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों का ही जम कर अपमान किया और इस तरह भारत में अंग्रेजों के इसाईयत फैलाने के उद्देश्य में बड़ा कारण बना। विन्सेंट स्मिथ ने भी इस विषय पर अपनी राय दी है कि अकबर भाषा बोलने में बड़ा चतुर था वह मीठी भाषा के अलावा उसकी सबसे बड़ी खूबी अपने जीवन में दिखाई बर्बरता है। अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है। जो रोगों का इलाज कर सकता है, ये वैसे ही दावे हैं जैसे मुहम्मद साहब के बारे में हदीसों में किये गए हैं। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी, उसके दरबारियों को तो यह अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज न हो जाए।
इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी इस्लामी राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अगर अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से सुरक्षित रखना होता था तो उनको इसकी कीमत देनी पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। यानी इसे देकर फिर कोई अल्लाह व रसूल का गाजी आपकी संपत्ति, बेटी, बहन, पत्नी आदि को नहीं उठाएगा। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था, लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं। केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त राखी गयी थी जिसके बदले वहाँ के हिंदुओं को अपनी स्त्रियों को अकबर के हरम में भिजवाना था। यही कारण बना की इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियाँ जौहर में जलना अधिक पसंद करती थी। आखिरकार अकबर जैसा सच्चा मुसलमान जजिया जैसे कुरआन के आदेश को कैसे हटा सकता था? इतिहास में कोई प्रमाण नहीं की उसने अपने राज्य में कभी जजिया बंद करवाया हो।
भारत में महान इस्लामिक शासन की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि बादशाह के अपने बच्चे ही उसके खिलाफ बगावत कर बैठते थे। हुमायूं बाबर से दुखी था और जहांगीर अकबर से, शाहजहाँ, जहांगीर से दुखी था तो औरंगज़ेब शाहजहाँ से, जहांगीर (सलीम) ने 1602 में खुद को बादशाह घोषित कर दिया और अपना दरबार इलाहाबाद में लगाया। कुछ इतिहास कार कहते हैं की जोधा अकबर की पत्नी थी या जहाँगीर की, इस पर विवाद है। संभवतः यही इनकी दुश्मनी का कारण बना, क्योंकि सल्तनत के तख़्त के लिए तो जहाँगीर के आलावा कोई और दावेदार था ही नहीं। जहांगीर अपने अब्बूजान अकबर महान की मौत की ही दुआएं करने लगा था। स्मिथ लिखतेे है कि अगर जहांगीर का विद्रोह कामयाब हो जाता तो वह अकबर को मार डालता। बाप को मारने की यह कोशिश यहाँ तो परवान न चढी लेकिन आगे जाकर आखिरकार यह सफलता औरंगजेब को मिली जिसने अपने अब्बू को कष्ट दे दे कर मारा वैसे कई इतिहासकार यह कहते हैं कि अकबर को जहांगीर ने ही जहर देकर मारा। अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग अकबर को पसंद नहीं। अकबर महान ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब मुल्ला जो इसे नापसंद थे। जयमल जिसको मारने के बाद उसकी पत्नी को अपने हरम के लिए खींच लाया और लोगों से कहा कि उसने इसे सती होने से बचा लिया। अकबर महान को समाज सेवक के रूप मे प्रस्‍तुत किया गया किन्‍तु असलियत यह थी कि अकबर के शासन में मरने वाले की संपत्ति बादशाह के नाम पर जब्त कर ली जाती थी और मृतक के घर वालों का उस पर कोई अधिकार नहीं होता था। अपनी माँ के मरने पर उसकी भी संपत्ति अपने कब्जे में ले ली जबकि उसकी माँ उसे सब परिवार में बांटना चाहती थी।
अकबर महान और उसके नवरत्न की भी अपनी एक कहानी है अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी गड़ी है। असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था और उसने कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि इसको योग्य दरबारी नहीं मिले वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं वह खुद नहीं। प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था. इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना। टोडरमल अकबर का वफादार था तो भी उसकी पूजा की मूर्तियां अकबर ने तुड़वा दीं. इससे टोडरमल को दुःख हुआ और इसने इस्तीफा दे दिया और वाराणसी चला गया। एक और नवरत्न अबुल फजल अकबर का अव्वल दर्जे का चाटुकार था. बाद में जहांगीर ने इसे मार डाला। फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था जिसकी कलम अपने शहंशाह को प्रसन्न करने के लिए ही चलती थी. कुछ इतिहासकार कहते हैं कि वह अपने समय का भारत का सबसे बड़ा कवि था. आश्चर्य इस बात का है कि यह सर्वश्रेष्ठ कवि एक अनपढ़ और जाहिल शहंशाह की प्रशंसा का पात्र था! यह ऐसी ही बात है जैसे कोई अरब का मनुष्य किसी संस्कृत के कवि के भाषा सौंदर्य का गुणगान करता हो! बुद्धिमान बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया. बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं. ध्यान रहे कि ऐसी कहानियां दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित है. अगले रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों सबसे बड़े रत्न अकबर के आदेश पर मार डाले गए। मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बहन जहांगीर को दी. और बाद में इसी जहांगीर ने मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया. यही मानसिंह अकबर के आदेश पर जहर देकर मार डाला गया और इसके पिता भगवान दास ने आत्महत्या कर ली। इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लड़कियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें. और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है।
अकबर ने एक ईसाई पादरी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया। इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था। कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने 1581-82 में इसकी किसी नीति का विरोध किया था, बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए। जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह सोने के पिंजरों में बंद कर दी जाती थीं। वैसे भी इस्लाम के नियमों के अनुसार युद्ध में पकड़े गए लोग और उनके बीवी बच्चे गुलाम समझे जाते हैं जिनको अपनी हवस मिटाने के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है, अल्लाह ने कुरान में यह व्यवस्था दे रखी है। अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था, उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी कबूल करे।
जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरे के किले में थीं, इसी तरह के और खजाने छह और जगह पर भी थे। इसके बावजूद भी उसने 1595-1599 की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया।अकबर ने प्रयागराज (जिसे बाद में इसी धर्मनिरपेक्ष महात्मा ने इलाहाबाद नाम दिया था) में गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का कत्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो लोग उसके इस्तकबाल करने की जगह घरों में छिप गए. यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है। एक बहुत बड़ा झूठ यह है कि फतेहपुर सीकरी अकबर ने बनवाया था। इसका कोई विश्वसनीय प्रमाण नहीं है. बाकी दरिंदे लुटेरों की तरह इसने भी पहले सीकरी पर आक्रमण किया और फिर प्रचारित कर दिया कि यह मेरा है। इसी तरह इसके पोते और इसी की तरह दरिंदे शाहजहाँ ने यह ढोल पिटवाया था कि ताजमहल इसने बनवाया है वह भी अपनी चौथी पत्नी की याद में जो इसके और अपने सत्रहवें बच्चे को पैदा करने के समय चल बसी थी। उपरोक्‍त तथ्‍य यह निर्धारण करते है कि थे अकबर “महान” के जीवन को कि उसकी वास्तविक सच्चाई क्‍या थी। भारत के नपुंसक इतिहासकारों की नजरों में अकबर को महान बनना दिया गया। आज देश की यह स्थिति है कि क्या इतिहासकार और क्या फिल्मकार और क्या कलाकार, सब एक से बढ़कर एक अपने आप को मक्कार, देशद्रोही, कुल कलंक, नपुंसक साबित करने पर तुले हुए है। जिन्हें फिल्म बनाते हुए अकबर तो झूठे कार्य को नही दिखे और उसकी महानता को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत किया जा है किंतु महाराणा प्रताप पराक्रम और देशभक्ति नही दिख रही है। आज तक अकबर पर बनी फिल्मों में बिना शोध और इतिहास की पड़ताल किये शराबी, नशाखोर, बलात्कारी, और लाखों हिंदुओं के हत्यारे अकबर के बारे में क्या दिखाया गया है और क्या छुपाया गया है।
बैरम खान की पत्नी सईदा खां जो अकबर की माता के सामान थी से इसकी शादी का जिक्र किसी ने नहीं किया। इस जानवर को इस तरह पेश किया गया है कि जैसे फरिश्ता। व्‍यवसायिकता के दौड मे लोग ऐसे अंधे हुये कि जोधाबाई से अकबर शादी की कहानी दिखा दी यह भी पता लगाने की कोशिश नही की गई कि सच क्‍या है वास्‍तव में जोधाबाई जहांगीर की पत्नी थी। फिल्‍मो और इतिहास के आइने में अकबर को इतना रहमदिल पेश किया गया कि हिंदू लड़की से शादी करके उसका धर्म नहीं बदलवाया और यहाँ तक कि उसके लिए उसके महल में मंदिर बनवाया। एक बात विचारणीय है कि बरसों पुराने वफादार टोडरमल की पूजा की मूर्ति भी जिस अकबर से सहन न हो सकी और उसे झट तोड़ दिया, ऐसे अकबर ने लाचार लड़की के लिए मंदिर बनवाया, यह दिखाना धूर्तता की पराकाष्ठा है और इसकी सत्यता सन्दिग्‍ध भी है। हमे झूठा इतिहास पढ़ाया गया कि हेमू का सिर काटने से अकबर का इनकार, देश की शांति और सलामती के लिए जोधा से शादी, उसका धर्म परिवर्तन न करना, हिंदू रीति से शादी में आग के चारों तरफ फेरे लेना, राज महल में जोधा का कृष्ण मंदिर और अकबर का उसके साथ पूजा में खड़े होकर तिलक लगवाना, अकबर को हिंदुओं को जबरन इस्लाम कबूल करवाने का विरोधी बताना, हिंदुओं पर से कर हटाना, उसके राज्य में हिंदुओं को भी उसका प्रशंसक बताना, आदि ऐसी हैं जो असलियत से कोसों दूर हैं कि मुगलों ने हिन्दुस्तान को अपना घर समझा और इसे प्यार दिया है।

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