पश्चिमोत्तानासन योग विधि, लाभ और सावधानी



How To Do Paschimottanasana
How To Do Paschimottanasana

पश्चिमोत्नासन प्राणायाम
पश्चिमोत्तनासन  करने में पीठ खिंचाव उत्पन्न होता है, इसीलिए इसे पश्चिमोत्तनासन कहते हैं। पश्चिमोत्तनासन से शरीर के सभी माँसपेशियों में खिंचाव होता है, इसलिए इसे बैठकर किये जाने वाले आसनों में एक महत्वपूर्ण आसन माना गया है। पश्चिम का अर्थ होता है पीछे का भाग- पीठ। शीर्षासन की भांति इस आसन का महत्वपूर्ण स्थान है। पश्चिमोत्तनासन नियमित करने से मेरूदंड में मजबूती एवं लचीलापन आता है, जिसके कारण कुण्डलिनी जागरण में लाभ मिलता है और बुढ़ापे में भी व्यक्ति  की रीढ़ की हड्डी झुकती नहीं है। इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर की चर्बी और मोटापा दूर किया जा सकता है तथा मधुमेह का रोग भी ठीक किया जा सकता है। पश्चिमोत्तनासन के माध्यम से स्त्रियों के योनिविकार, मासिक धर्म सम्बन्धी समस्या तथा प्रदर आदि रोग दूर किया जा सकता हैं। पश्चिमोत्तनासन गर्भाशय से सम्बन्धी समस्या को ठीक करता है। पश्चिमोत्तनासन आध्यात्मिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण आसन होने के साथ-साथ मेरूदंड के सभी समस्या जैसे- पीठदर्द, पेट के रोग, यकृत रोग, तिल्ली, आंतों के रोग तथा गुर्दे के रोगों को ख़त्म करता है। पश्चिमोत्नासन (Paschimottanasana) बैठकर किया जाने वाला योग है।यह योग जानू शीर्षासन से मिलता जुलता है। इस योग में मेरूदंड, पैर, घुटनों के नीचे के नस और कमर मूल रूप से भाग लेते हैं।यह आसन उस स्थिति में बहुत ही लाभप्रद होता है जब शरीर थका होता है। 
 (Benefits of Paschimottanashana
पश्चिमोत्नासन के लाभ (Benefits of Paschimottanashana)
इस आसन से शरीर के पिछले हिस्से में मौजूद तनाव दूर होता है। यह योग मुद्रा मेरूदंड एवं पैरों के मांसल हिस्सों के लिए बहुत ही लाभप्रद होता है। जब आप बहुत थके होते हैं अथवा अस्वस्थ होते हैं उस समय इस योग मुद्रा का अभ्यास शरीर में मौजूद तनाव और थकान को कम करता है एवं ताजगी का एहसास दिलाता है। इस आसन के अनेक लाभ है लेकिन कुछ महत्वपूर्ण लाभ नीचे दिए गए है।
  1. इस आसन का अभ्यास करने से व्यक्ति को सही तरीके से नींद आती है और अनिद्रा की समस्या दूर हो जाती है।
  2. उच्च रक्तचाप, बांझपन और डायबिटीज की समस्या को दूर करने में भी यह आसन फायदेमंद होता है।
  3. इस आसन के नियमित अभ्यास से शरीर की चर्बी और मोटापा दूर किया जा सकता है तथा मधुमेह का रोग भी ठीक किया जा सकता है।
  4. इस आसन से क्रोध, सिरदर्द, साइनस के साथ-साथ अनिद्रा के उपचार में भी लाभ मिलता है।
  5. डिलीवरी के बाद पश्चिमोत्तानासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से महिलाओं का शरीर फिर से अपनी प्रारंभिक आकृति में आ जाता है और पेट और कूल्हों की चर्बी कम हो जाती है। इसके अलावा यह आसन करने से मासिक धर्म भी सही तरीके से होता है।
  6. नितम्बों और माहिलाओ को सुडौल बनाता है।
  7. पश्चिमोत्तानासन करने से पाचन क्रिया बेहतर होती है और खाना न पचने के कारण अक्सर कब्ज एवं खट्टी डकार आने की समस्या दूर हो जाती है। इसके अलावा प्रतिदिन इस आसन का अभ्यास करने से किडनी, लिवर, महिलाओं का गर्भाशय एवं अंडाशय अधिक सक्रिय होता है।
  8. पश्चिमोत्तानासन करने से पूरे शरीर के साथ सिर और गर्दन की मांसपेशियों में खिंचाव उत्पन्न होता है जिसके कारण यह आसन तनाव, चिंता, और मस्तिष्क से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में बहुत सहायक होता है। इसके अलावा यह क्रोध और चिड़चिड़ापन को भी दूर करता है और दिमाग को शांत रखता है।
  9. पश्चिमोत्तानासन रीढ़ की हड्डी में खिंचाव उत्पन्न करता है और उन्हें लचीला बनाने का काम करता है। इसके अलावा इस आसन का अभ्यास करने से व्यक्ति की लंबाई भी बहुत आसानी से बढ़ने लगती है।
  10. पश्चिमोत्तानासन एक ऐसा आसन है जिसका प्रतिदिन अभ्यास करने से नपुंसकता दूर हो जाती है और व्यक्ति के यौन शक्ति में वृद्धि होती है। इसके अलावा पेट और श्रोणि अंग भी अच्छे तरीके से टोन हो जाते हैं।
  11. पश्चिमोत्नासन से आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
  12. पश्चिमोत्तानासन से वीर्य दोष, नपुंसकता और अनेक प्रकार के योंन रोगों को भी दूर किया जाता है।
  13. पुरे शरीर में खून संचार सही रूप से काम करता है, जिससे शारीरक दुर्बलता दूर होकर शरीर सुदृढ़, फुर्तीला और स्वस्थ बना रहता है।
  14. बहुमूत्र, गुर्दे की पथरी और बवासीर आदि रोगों में भी लाभकारी आसन है।
  15. बौनापन दूर होता है।
  16. सफेद बालों को काले व घने बनाता है।
  17. सही तरीके से पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास करते समय पेट की मांसपेशियों खिंचती हैं जिसके कारण पेट और उसके आसपास की जगहों पर जमी चर्बी दूर हो जाती है 
  18. पश्चिमोत्तानासन एक ऐसा आसन है जो क्रियात्मक आसन के साथ ही आध्यात्मिक आसन भी है। इसे करने से जहां मन शांत होता है, वहीं ब्रह्मचर्य का आचरण भी जागृत होता है। बच्चों को अगर यह आसन करवाया जाए तो उनकी लंबाई बढ़ती है।

    Paschimottanashana

    योग अवस्था – Paschimottanashana Posture and Technique
    जब आप पहली बार इस योग को करते हैं उस समय हो सकता है कि घुटनों के नसों में तनाव के कारण अपने पैरों को सीधा जमीन से टिकाना आपको कठिन लगे।इस स्थिति में घुटनों पर अधिक बल नहीं लगाना चाहिए। आप चाहें तो इस स्थिति में सहायता के लिए कम्बल को मोड़कर उस पर बैठ सकते हैं।योग अभ्यास के दौरान जब आप आगे की ओर झुकते हैं उस समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पेट और छाती आगे की ओर झुके। मेरुदंड की हड्डियों में खिंचाव हो इस बात का ख्याल रखते हुए जितना संभव हो आगे की ओर झुकने की कोशिश करनी चाहिए।
    Paschimottanashana Posture and Technique
    पश्चिमोत्तनासन करने की योग विधि - Paschimottanasana Steps
    1. सबसे पहले स्वच्छ वातावरण में चटाई, योगा मैट या दरी बिछाकर पीठ के बल लेट जाएं और अपने दोनों पैरों को फैलाकर आपस में परस्पर मिलाकर रखें तथा पूरे शरीर को पूरा सीधा तना हुआ रखे।
    2. अपने दोनों हाथों को धीरे धीरे उठाते हुए सिर की ओर ऊपर जमीन पर टिकाएं।
    3. उसके बाद दोनों हाथों को ऊपर की ओर तेजी से उठाते हुए एक झटके में कमर के ऊपर के भाग को उठाकर  बैठने की स्थिति में आते हुए धीरे-धीरे अपने दोनों हाथों से अपने पैरों के अंगूठों को पकड़ने की कोशिश करें।
    4. इस क्रिया को करते समय पैरों तथा हाथों को बिल्कुल सीधा रखें और अपनी नाक को पैर के घुटने से छूने की कोशिश करें।
    5. अब आप पश्चिमोत्नासन की स्थिति में है।
    6. यह क्रिया को 10-10  सेकंड का आराम लेते हुए 3 से 5  बार करें। इस आसन को करते समय सांसों की गति सामान्य रखें।
    7. जिस व्यक्ति को लेटकर अचानक उठने में परेशानी हो, वह व्यक्ति इस आसन को बैठे बैठे ही करने का प्रयास करें।
    पश्चिमोत्नासन करने के लिए सावधानियां - Paschimottanasana Precaution
    किसी भी आसन का अभ्यास करने पर फायदों के साथ साथ कुछ नुकसान भी होते हैं। आमतौर पर नुकसान तब होता है जब शरीर में कोई विशेष परेशानी हो और हम उसकी अनदेखी कर किसी आसन का अभ्यास कर रहे हों। इसी प्रकार पश्चिमोत्तानासन में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए वह निम्न है- 
    1. गर्भवती महिलाओं को पश्चिमोत्तानासन करने से बचना चाहिए।
    2. घुटने, कंधे, पीठ, गर्दन, नितम्ब, हाथ और पैर आदि में ज्यादा समस्या हो तो यह आसन न करें।
    3. जब कमर में तकलीफ हो एवं रीढ़ की हड्डियों में परेशानी मालूम हो उस समय इस योग का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
    4. पीठ एवं कमर में दर्द के साथ ही डायरिया से पीड़ित व्यक्ति को यह आसन नहीं करना चाहिए।
    5. यदि पेट के किसी अंग का ऑपरेशन हुआ हो तो पश्चिमोत्तानासन का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
    6. यदि शरीर में किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो तो यह आसन करने से बचना चाहिए।
    7. यह आसन करते समय कोई भी समस्या हो तो योग विशेषज्ञ से सलाह लें।
    8. रीढ़ की हड्डी में कोई गंभीर समस्या हो तो इस योग को बिल्कुल भी न करें।
    9. स्लिप डिस्क, साइटिका, अस्थमा और अल्सर जैसे रोगों से पीड़ित लोगों को यह आसन करने से परहेज करना चाहिए। 
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    सालम मिश्री के आयुर्वेदिक गुण और कर्म



    सालम पंजा (Salam Panja) गुणकारी बल वीर्य वर्धक, पौष्टिक और नपुंसकता नष्ट करने वाली जड़ी -बूटी है। इसका कंद उपयोग में लिया जाता है। यह बल बढ़ाने वाली, भारी, शीत वीर्य, वात पित्त का शमन करने वाली, वात नाड़ियों को शक्ति देने वाली, शुक्र वर्धक व पाचक है। अधिक दिनों तक समुद्री यात्रा करने वालों को होने वाले रक्त विकार, कफ जन्य रोग, रक्त पित्त आदि रोगों को दूर करती है। इसकी पैदावार पश्चिमी हिमालय और तिब्बत में 8 से 12 हजार फीट ऊंचाइयों पर होती है।

    सालम मिश्री (Salam Mishri) को संस्कृत में बीजागंध, सुरदेय, द्रुतफल, मुंजातक पंजाबी में सलीबमिश्रि, इंग्लिश में सालब, सालप, फ़ारसी में सालबमिश्री, बंगाली सालम मिछरी, गुजराती में सालम और इंग्लिश में सैलेप कहते हैं। यह पौधों के भेद के अनुसार देसी (देश में उगने वाला) और विदेशी माना गया है। देशी सैलेप का वानस्पतिक नाम यूलोफिया कैमपेसट्रिस तथा यूलोफिया उंडा है। विदेशी या फ़ारसी सैलेप का लैटिन नाम आर्किस लेटीफ़ोलिया तथा आर्किस लेक्सीफ्लोरा है। इसे भारत में फारस आदि देशों से आयात किया जाता है।
     
    सैलेप मुंजातक-कुल यानिकी आर्कीडेसिऐइ परिवार का पौधा है और सम शीतोष्ण हिमालय प्रदेश में कश्मीर से भूटान तक तथा पश्चिमी तिब्बत, अफगानिस्तान, फारस आदि देशों में पाया जाता है। हिमालय में पाए जाने वाले सैलेप के पौधे 6-12 इंच की ऊँची झाडी होते हैं जिनमें पत्तियां तने के शीर्ष के पास होती हैं। यह पत्तियां लम्बी और रेखाकार होती हैं। इसके पुष्प की डंडियाँ मूल से निकलती हैं और इन पर नीले-बैंगनी रंग के पुष्प आते हैं।
    पौधे की जड़ें कन्द होती है और देखने में पंजे या हथेली की तरह होती हैं। यह मीठी, पौष्टिक और स्वादिष्ट होती हैं। दवाई या टॉनिक के रूप में पौधे के कन्द जिन्हें सालममिश्री या सालमपंजा कहते हैं, का ही प्रयोग किया जाता है। बाजारों में मुख्य रूप से दो प्रकार के सालममिश्री उपलब्ध है, सालम पंजा और लहसुनी सालम/ सालम लहसुनिया। सालम पंजा के कन्द गोल-चपटे और हथेली के आकार के होती हैं जबकि लहसुनि सालम के कन्द शतावरी जैसे लंबे-गोल, और देखने में लहसुन के छिले हुए जवों की तरह होते हैं। इसके अतिरिक्त सालम बादशाही (चपटे टुकड़े), सालम लाहौरी और सालम मद्रासी (निलगिरी से) भी कुछ मात्रा में बिकते हैं। बाज़ार में पंजासालम का मूल्य सबसे अधिक होता है और गुणों में भी यह सर्वश्रेष्ठ है।

    सालम मिश्री को अकेले ही या अन्य घटकों के साथ दवा रूप में प्रयोग करते हैं। सालम मिश्री के चूर्ण को दूध में उबालकर दवा की तरह से दिया जाता है। इसे अन्य घटकों के साथ पौष्टिक पाक में डालते हैं। यूनानी दवाओं में इसे माजूनों में प्रयोग करते हैं। इसका हरीरा भी बनाकर पिलाया जाता है।

    संग्रह और भण्डारण इन्हें दवा की तरह प्रयोग करने के लिए छाया में सुखा लिया जाता है। इनका भंडारण एयर टाइट कंटेनर में ठन्डे-सूखे-नमी रहित स्थानों पर किया जाता है।

    उत्तम प्रकार की सालम यह मलाई की तरह कुछ क्रीम कलर लिए हुए होती है। यह देखने में गूदेदार-पारभासी और टूटने पर चमकीली सी लगती हैं। सालम में कोई विशेष प्रकार की गंध होती और यह लुआबी होता है।

    सालम कन्द का संघटन
    सालम मिश्री के कंडों में मूसिलेज की काफी अच्छी मात्रा होती है। इसमें प्रोटीन, पोटैशियम, फास्फेट, क्लोराइड भी पाए जाते है। 

    सालम मिश्री के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
    • सालम मिश्री स्वाद में मधुर, गुण में भारी और चिकनाई देने वाली है। स्वभाव से यह शीतल है और मधुर विपाक है।
    • यह मधुर रस औषधि है। मधुर रस, मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है। लेकिन मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है। यह मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, प्रमेह, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।
    • वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
    • विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।
    सालम मिश्री के लाभ
    • सालम मिश्री को मुख्य रूप से धातुवर्धक और पुष्टिकारक औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है।
    • यह टी बी / क्षय रोगों में लाभप्रद है।
    • इसके सेवन से बहुमूत्र, खूनी पेचिश, धातुओं की कमी में लाभ होता है।
    • इसके सेवन से वज़न बढ़ता है।
    • सालम पंजा या सालम मिश्री ताकत बढ़ाने वाला व शीतवीर्य होता हे।
    • यह पाचन में भारी, तृप्तिदायक होता है।
    • सालम पंजा मांस की वृद्धि करने वाला होता है।
    • यह रस में मीठा व वीर्य की वृद्धि करने वाला होता है।
    • इसकी तासीर शीतल होती है।
    • सालम स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ करने वाली होती है।
    • यह एसिडिटी, पेट के अल्सर व पेट से सम्बन्धित अन्य रोगों में लाभदायक है।
    • यह बलकारक, शुक्रजनक, रक्तशोधक, कामोद्दीपक, वीर्यवर्धक, और अत्यंत पौष्टिक है।
    • यह मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं के लिए उत्तेजक है।
    • पाचन नलिका में जलन होने पर इसे लेते हैं।
    • इसे तंत्रिका दुर्बलता, मानसिक और शारीरिक थकावट, पक्षाघात और लकवाग्रस्त होने पर, दस्त और एसिडिटी के कारण पाचन तंत्र की कमजोरी, क्षय रोगों में प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
    • यह शरीर के पित्त और वात दोष को दूर करता है। 
    सालम मिश्री के औषधीय उपयोग 
    सालममिश्री को मुख्य रूप से शक्तिवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक, और कामोद्दीपक दवा के रूप में लिया जाता है। इसके चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से इसके स्वास्थ्य लाभ लिए जा सकते हैं। इसे अन्य द्रव्यों के साथ मिला कर लेने से इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है। यौन कमजोरी / दुर्बलता, कम कामेच्छा, वीर्य की मात्रा-संख्या-गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, वीर्य के अनैच्छिक स्राव को रोकने के लिए सालममिश्री के चूर्ण को इससे दुगनी मात्रा के बादाम के चूर्ण के साथ मिलाकर रख लें। रोजाना 10 ग्राम की मात्रा में, दिन में दो बार, सेवन करें।
    • मांसपेशियों में हमेशा रहने वाला पुराना दर्द : बराबर मात्रा में सालम मिश्री और पिप्पली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार बकरी के दूध के साथ सेवन करें।
    • प्रमेह, बहुमूत्रता : बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली और काली मुस्ली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार सेवन करें। 
    • यौन दुर्बलता : 100 ग्राम सालम पंजा, 200 ग्राम बादाम की गिरी को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 10 ग्राम चूर्ण मीठे दूध के साथ सुबह खाली पेट तथा रात को सोते समय सेवन करने से दुबलापन दूर होता है वह यौन शक्ति में वृद्धि होती है।
    • शुक्रमेह : सालम पंजा सफेद मूसली व काली मूसली 100-100 ग्राम बारीक पीस ले। प्रतिदिन आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम मीठे दूध के साथ लेने से शुक्रमेह ,शीघ्रपतन ,स्वप्नदोष आदि रोगों में लाभ होता है।
    • जीर्ण अतिसार : सालम पंजा का चूर्ण एक चम्मच दिन में 3 बार छाछ के सेवन करने से पुराना अतिसार की खो जाता है। तथा आमवात व पेचिश में भी लाभ होता है।
    • प्रदर रोग : सालमपंजा ,सतावर, सफेद मूसली को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण मीठे दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पुराना श्वेत रोग और इससे होने वाला कमर दर्द दूर हो जाता है।
    • वात प्रकोप : सालम पंजा व पिप्पली को बारीक पीसकर आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम बकरी के मीठे दूध के साथ सेवन करने से व श्वास का प्रकोप शांत होता है।
    • धातुपुष्टता : सालम पंजा, विदारीकंद, अश्वगंधा , सफेद मूसली, बड़ा गोखरू, अकरकरा 50 50 ग्राम लेकर बारीक पीस ले। सुबह -शाम एक चम्मच चूर्ण मीठे दूध के साथ लेने से धातु पुष्टि होती है तथा स्वप्नदोष होना बंदों होता है।
    • प्रसव के बाद दुर्बलता : सालम पंजा व पीपल को पीसकर आधा चम्मच चूर्ण सुबह-शाम मीठे दूध के साथ सेवन करने से प्रसव के बाद प्रस्तुत आपकी शारीरिक दुर्बलता दूर होती है।
    • सफ़ेद पानी की समस्या : बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली, काली मुस्ली, शतावरी और अश्वगंधा के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में एक बार सेवन करें।
    सावधानियां/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें
    • इसका अधिक प्रयोग आँतों के लिए हानिप्रद माना गया है।
    • हानि निवारण के लिए सोंठ का प्रयोग किया जा सकता है।
    • इसके अभाव में सफ़ेद मुस्ली का प्रयोग करते हैं।
    • पाचन के अनुसार ही इसका सेवन करें।
    • इसके सेवन से वज़न में वृद्धि होती है।
    • यह कब्ज कर सकता है।
    सालम मिश्री के चूर्ण की औषधीय मात्रा
    सालम मिश्री के चूर्ण को 6 ग्राम से लेकर 12 ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं। दवा की तरह प्रयोग करने के लिए करीब एक या दो टीस्पून पाउडर को एक कप दूध में उबालकर लेना चाहिए।

    सालम पंजा से निर्मित दो उत्तम आयुर्वेदिक दवा/योग :
    1. विदार्यादि चूर्ण – विदार्यादि चूर्ण के घटक द्रव्य और बनाने की विधि – विदारीकंद, सालम पंजा, असगन्ध, सफ़ेद मुसली, बड़ा गोखरू, अकरकरा सब 50-50 ग्राम खूब महीन चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें।
      विदार्यादि चूर्ण के फायदे – इस चूर्ण को 1-1 चम्मच सुबह व रात को कुनकुने मीठे दूध के साथ सेवन करने से पौरुष शक्ति और स्तम्भन शक्ति बढ़ती है, धातु पुष्ट होती है जिससे शीघ्रपतन और स्वप्नदोष होना बन्द हो जाता है। यह योग बना-बनाया इसी नाम से बाजार में मिलता है।
    2. रतिवल्लभ चूर्ण – रतिवल्लभ चूर्ण के घटक द्रव्य और बनाने की विधि – सालम पंजा, बहमन सफेद, बहमन लाल, सफ़ेद मूसली, काली मूसली, बड़ा गोखरू- सब 50-50 ग्राम। छोटी इलायची के दाने, गिलोय सत्व, दालचीनी और गावजवां के फूल- सब 25-25 ग्राम । मिश्री 125 ग्राम। सबको अलग-अलग खूब बारीक कूट पीस कर महीन चूर्ण करके मिला लें और शीशी में भर लें।
      रतिवल्लभ चूर्ण के फायदे – इस चूर्ण को 1-1 चम्मच,सुबह व रात को, कुनकुने मीठे दूध के साथ दो माह तक सेवन करने से धातु-दौर्बल्य और जननांग की शिथिलता एवं नपुंसकता दूर हो कर यौनोत्तेजना और पौरुष बल की भारी वृद्धि होती है। शीघ्रपतन, धातु स्राव, धातु का पतलापन आदि विकार नष्ट होते हैं। शरीर पुष्ट और बलवान बनता है तथा मन में उमंग और उत्साह पैदा करने वाली स्थिति निर्मित होती है।ग कोई भी एक प्रयोग पूरे शीतकाल तक नियमपूर्वक सेवन करना चाहिए। पथ्य और अपथ्य का पालन करते हुए तेज़ मिर्च मसालेदार एवं तले हुए पदार्थों, इमली व अमचूर की खटाई का सेवन नहीं करना चाहिए । आचार विचार शुद्ध रखना चाहिए।

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    सत्‍ता के दौर में भाजपा कार्यकर्ता का दर्द भरा अंत




    स्‍व. रमेश शर्मा इलाहाबाद के बाहर भले हम जैसे सामान्‍य कार्यकर्ताओं के लिये सामान्‍य नाम हो किन्‍तु इलाहाबाद जिले शर्मा जी की ऐसे धाक रही है कि शायद ही कोई ऐसा राष्‍ट्रीय नेता रहा हो जो इलाहाबाद से संबंध रखता हो शर्मा जी को नही जानता था। इलाहाबाद जिलें मे भाजपा की कोई बैठक या रैली रही हो जहां उनकी उपस्थिति न होती हो। ऐसे ही भाजपा के वरिष्‍ठ नेता श्री शर्मा जी का हृदय गति रूक जाने के कारण पिछले दिनों मे स्‍वर्गवास हो गया।

    स्‍व. शर्मा जी की इस असमयिक मृत्‍यु को भाजपा के शीर्ष नेताओं द्वारा की गई राजनैतिक हत्‍या कहा जाये तो अतिशयोक्ति नही होगा। सत्‍ता सिर्फ नेताओं और उनके चाटुकारों की होती है कार्यकार्ताओं की नही यह शिद्ध हो गया है। उत्तर प्रदेश के सरकार बने लगभग 14 माह होने को रहे थे। आश्‍वासनों के दौर मे श्‍ार्मा जी की सरकारी वकील आस जब टूट गई जब उत्‍तर प्रदेश के सरकारी वकीलों की अन्तिम सूची मे भी उनका नाम नही आया। स्‍व. शर्मा जी उस शीशे की भातिं टूट गई जिसका जीवन भर खूब उपयोग किया और जब नया दौर आया तो उस शीशे को अपनों द्वारा ही पत्‍थर मार कर तोड़ दिया जाता है।

    मै स्‍व. शर्मा जी का हंसता हुआ चेहरा भुला नही पा रहा हूं। संगठन से जुडाव और अधिवक्‍ता होने के नाते स्‍व. शर्मा जी से घर पर, हाईकोर्ट परिसर और कार्यक्रमों मे अक्‍सर बात होती थी और संगठन की ओर से हाईकोर्ट मे सरकारी वकील न बनाये जाने की उपेक्षा की चर्चा करते थे कि आखिर अपना संगठन हम जैसे पुराने लोगों को इग्‍नोर कर के कैसे ऐसे लोगो को मौज करने दे रहा है जिनका न कभी संघ से तालुकात रहा है और न ही भाजपा संगठन से, कौन सी योग्‍यता लेकर वो पैदा हुये जो हम लोगों के पास नही है। शर्मा जी की यह बातें झकझोर कर रख देती है उनका इशारा कही न कही सरकारी वकीलों की नियुक्तियों मे धन के प्रभाव की ओर रहा था।

    कोई भी व्‍यक्ति ऐसा बतायें कि शर्मा जी के अंदर सरकारी वकील बनने की कौन सी योग्‍यता नही थी कि सरकार की 3 लिस्‍ट आई और तीनों लिस्‍ट मे उनका नही नही था। यह तो कार्यकर्ता के मुंह पर तमाचा है कि संगठन मे दर्री और कुर्सी लगाने वालों की औकात नही होती है, सरकारी वकील की।

    हाईकोर्ट के अवकाश के बाद मेरा एक चैम्‍बर मे जाना हुआ जो मे विश्‍वविद्यालय के समय के मित्र रहे है और वो और उनका परिवार सपा मे काफी प्रभावी राजनीति करते है। उनका कहना कि इस बार जीए की लिस्‍ट मेरे चैम्‍बर के 4 लोग आपकी सरकार मे पैसे के दम शासकीय अधिवक्ता नियुक्त हुये है और आप अपनी सरकार की छवि और सुसाशन की बात करते हो, फिर बोला कि तुम सबकी छोड़ो सबसे बड़े संघी बनते हो खुद कहा हो आपनी भगवा सरकार मे।

    कुछ भी ऐसे तानों से शर्मा जी भी अछूते नही रहे होगे, वों तो बड़े नेता थे और विरोधियों से उनके कई गुना ज्‍यादा अच्‍छे सम्‍बन्‍ध रहे होगें और मुझे तो एक ताने से रूबरू होना पड़ा उन्‍हे तो उनके कद के हिसाब से बहुत कुछ सुनना पड़ा होगा। कही न कही उनका हर ताने का एक जवाब रहा होगा कि अभी जीए ही लिस्‍ट आने दो देखना एजीए-1 से कम नही मिलेगा किन्‍तु जी की लिस्‍ट पर‍िस्थितियां हृदयाघाती थी ही और वह इस सदमे से निराशा थे ही और अंतोगत्‍वा अपनी पार्टी को सैंकडों लाईयां जितवाने वाले शर्माजी अपनी पार्टी से अपनी ही लड़ाई हार बर्दास्‍त न कर सकें और अचानक हृदयाघात के कारण प्राण त्‍याग दिये।

    समाचार पत्रो मे पढ़ने को मिला कि क्‍या राज्‍यपाल तो क्‍या मंत्री-उपमुख्‍यमंत्री सभी ने शर्मा को जी मृत्‍योंपरांत श्रद्धांजंली देते हुये क्‍या क्‍या उपधियां नही दी किन्‍तु शर्मा जी के जीवित रहते सरकारी वकील नही बनवा सके। कारण स्‍पष्‍ट है कि अपनी सरकार मे उनसे पैसा मांगने की औकात किसी मे थी नही और जैसा सुनने मे आ रहा है और हकीकत भी प्रतीत हो रही है कि अपनी सरकार मे बिना पैसा सरकारी वकील बनना सम्‍भव था भी नही।
    स्‍व. शर्मा जी आज अपने मध्‍य नही है किन्‍तु हम सब के समक्ष बहुत से अनुत्‍तरित प्रश्‍न छोड गये है !


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    विलोम या विपरीतार्थक Antonyms in Hindi



    किसी शब्द का विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्द को 'विलोम शब्द' कहते हैं। दूसरे शब्दो में कहा जाए तो एक - दूसरे के विपरीत या उल्टा अर्थ देने वाले शब्द विलोम कहलाते हैं। अत: विलोम का अर्थ है - उल्टा या विरोधी अर्थ देने वाला।

    1. अंकुश - - - - - - - - - निरंकुश
    2. अंत - - - - - - - - - प्रारंभ
    3. अंतर - - - - - - - - - बाह्य
    4. अंतिम - - - - - - - - - प्रारंभिक
    5. अंधेरा - - - - - - - - - उजाला
    6. अंशतः - - - - - - - - - पूर्णतः
    7. अकलुष - - - - - - - - - कलुष
    8. अकाल - - - - - - - - - सुकाल
    9. अक्रुर - - - - - - - - - क्रुर
    10. अगम - - - - - - - - - सुगम
    11. अगला - - - - - - - - - पिछला
    12. अग्रज - - - - - - - - - अनुज
    13. अग्राह्य - - - - - - - - - ग्राह्य
    14. अग्रिम - - - - - - - - - अन्तिम
    15. अचल - - - - - - - - - चल
    16. अच्छा - - - - - - - - - बुरा
    17. अच्छा - - - - - - - - - बुरा
    18. अच्छाई - - - - - - - - - बुराई
    19. अजल - - - - - - - - - निर्जल
    20. अज्ञ - - - - - - - - - विज्ञ
    21. अज्ञान - - - - - - - - - ज्ञान
    22. अतल - - - - - - - - - वितल
    23. अति - - - - - - - - - अल्प
    24. अतिवृष्टि - - - - - - - - - अनावृष्टि
    25. अतिवृष्टि - - - - - - - - - अनावृष्टि
    26. अतुकान्त - - - - - - - - - तुकान्त
    27. अथ - - - - - - - - - इति
    28. अथ - - - - - - - - - इति
    29. अथ - - - - - - - - - इति
    30. अथ - - - - - - - - - इति
    31. अदेय - - - - - - - - - देय
    32. अदोष - - - - - - - - - सदोष
    33. अधम - - - - - - - - - उत्तम
    34. अधर्म - - - - - - - - - सध्दर्म
    35. अधिक - - - - - - - - - न्यून
    36. अधिक - - - - - - - - - न्यून
    37. अधुनातन - - - - - - - - -पुरातन
    38. अनंत - - - - - - - - - अंत
    39. अनजान - - - - - - - - - जाना-पहचाना
    40. अनभिज्ञ - - - - - - - - - भिज्ञ
    41. अनागत - - - - - - - - - आगत
    42. अनातुर - - - - - - - - - आतुर
    43. अनाथ - - - - - - - - - सनाथ
    44. अनाहूत - - - - - - - - - आहुत
    45. अनित्य - - - - - - - - - नित्य
    46. अनिवार्य - - - - - - - - - वैकल्पिक
    47. अनिष्ट - - - - - - - - - इष्ट
    48. अनुकूल - - - - - - - - - प्रतिकूल
    49. अनुकूल - - - - - - - - - प्रतिकूल
    50. अनुग्रह - - - - - - - - - विग्रह
    51. अनुज - - - - - - - - - अग्रज
    52. अनुज - - - - - - - - - अग्रज
    53. अनुपस्थिति - - - - - - - - - उपस्थिति
    54. अनुरक्त - - - - - - - - - विरक्त
    55. अनुरक्ति -विरक्ति
    56. अनुराग - - - - - - - - - विराग
    57. अनुराग - - - - - - - - - विराग
    58. अनुर्तीण - - - - - - - - - उर्तीण
    59. अनुलोम - - - - - - - - - विलोम
    60. अनैतिहासिक - - - - - - - - - ऐतिहासिक
    61. अन्तरंग - - - - - - - - - बहिरंग
    62. अन्तरंग - - - - - - - - - -बहिरंग
    63. अन्धकार - - - - - - - - - प्रकाश
    64. अन्धकार - - - - - - - - - प्रकाश
    65. अपकार - - - - - - - - - उपकार
    66. अपकार - - - - - - - - - उपकार
    67. अपचार - - - - - - - - - उपचार
    68. अपमान - - - - - - - - - सम्मान
    69. अपेक्षा - - - - - - - - - उपेक्षा
    70. अपेक्षित - - - - - - - - - अनपेक्षित
    71. अभिज्ञ - - - - - - - - - अनभिज्ञ
    72. अभिज्ञ - - - - - - - - - अनभिज्ञ
    73. अभिमान - - - - - - - - - नम्रता
    74. अभ्यस्त - - - - - - - - - अनभ्यस्त
    75. अमर - - - - - - - - - मर्त्य
    76. अमावस्या - - - - - - - - - प्रूर्णिमा
    77. अमीर - - - - - - - - - ग़रीब
    78. अमृत - - - - - - - - - विष
    79. अमृत - - - - - - - - - विष
    80. अमृत, - - - - - - - - - अमि, (अमिय)
    81. अरुचि - - - - - - - - - रुचि
    82. अरूचि - - - - - - - - - सुरूचि
    83. अर्जित - - - - - - - - - अनर्जित
    84. अर्थ - - - - - - - - - अनर्थ
    85. अर्थ - - - - - - - - - अनर्थ
    86. अर्पण - - - - - - - - - ग्रह्र्ण
    87. अर्वाचीन - - - - - - - - - प्राचीन
    88. अर्वाचीन - - - - - - - - - प्राचीन
    89. अल्प - - - - - - - - - अधिक
    90. अल्प - - - - - - - - - अधिक
    91. अल्पकालीन - - - - - - - - - दीर्घकालीन
    92. अल्पज्ञ - - - - - - - - - बहुज्ञ
    93. अल्पायु - - - - - - - - - दीर्घायु
    94. अल्पायु - - - - - - - - - दीर्घायु
    95. अल्पायु - - - - - - - - - दीर्घायु
    96. अवनत - - - - - - - - - उन्नत
    97. अवनति - - - - - - - - - उन्नति
    98. अवनि, - - - - - - - - - पृथ्वी
    99. अवनी - - - - - - - - - अंबर
    100. अवर - - - - - - - - - प्रव
    101. अवरोह - - - - - - - - - आरोह
    102. अवलम्ब - - - - - - - - - निरालम्ब
    103. असली - - - - - - - - - नकली
    104. अस्त - - - - - - - - - उदय
    105. अस्ताचल - - - - - - - - - उदयाचल
    106. अस्पृश्य - - - - - - - - - स्पृश्य
    107. आकर्षण - - - - - - - - - विकर्षण
    108. आकर्षण - - - - - - - - - विकर्षण
    109. आकाश - - - - - - - - - नभ
    110. आकाश - - - - - - - - - पाताल
    111. आगामी - - - - - - - - - गत
    112. आगामी - - - - - - - - - गत
    113. आग्रह - - - - - - - - - दुराग्रह
    114. आग्रह - - - - - - - - - दुराग्रह
    115. आज़ादी - - - - - - - - - ग़ुलामी
    116. आदर - - - - - - - - - अनादर
    117. आदर - - - - - - - - - अनादर
    118. आदर्श - - - - - - - - - यथार्थ
    119. आदर्श - - - - - - - - - यथार्थ
    120. आदान - - - - - - - - - प्रदान
    121. आदान - - - - - - - - - प्रदान
    122. आदि - - - - - - - - - अंत
    123. आदि - - - - - - - - - अंत
    124. आदि - - - - - - - - - अनादि
    125. आधुनिक - - - - - - - - - प्राचीन
    126. आध्यात्मिक - - - - - - - - - भौतिक
    127. आनंद - - - - - - - - - शोक
    128. आना - - - - - - - - - जाना
    129. आमिष - - - - - - - - - निरामिष
    130. आय - - - - - - - - - व्यय
    131. आय - - - - - - - - - व्यय
    132. आयात - - - - - - - - - निर्यात
    133. आरंभ - - - - - - - - - अंत
    134. आर्द्र - - - - - - - - - शुष्क
    135. आर्य - - - - - - - - - अनार्य
    136. आलस्य - - - - - - - - - स्फूर्ति
    137. आलस्य - - - - - - - - - फुर्ती
    138. आलस्य - - - - - - - - - स्फूर्ति
    139. आवश्यक - - - - - - - - - अनावश्यक
    140. आविर्भाव - - - - - - - - - तिरोभाव
    141. आशा - - - - - - - - - निराशा
    142. आश्रित - - - - - - - - - निराश्रित
    143. आस्तिक - - - - - - - - - नास्तिक
    144. आहार - - - - - - - - - निराहार
    145. आहार - - - - - - - - - निराहार
    146. इच्छा - - - - - - - - - अनिच्छ।
    147. इच्छा - - - - - - - - - अनिच्छा
    148. इच्छित - - - - - - - - - अनिच्छित
    149. इष्ट - - - - - - - - - अनिष्ट
    150. इहलोक - - - - - - - - - परलोक
    151. उचित - - - - - - - - - अनुचित
    152. उत्कर्ष - - - - - - - - - अपकर्ष
    153. उत्कर्ष - - - - - - - - - अपकर्ष
    154. उत्कृष्ट - - - - - - - - - निकृष्ट
    155. उत्कृष्ट - - - - - - - - - निकृष्ट
    156. उत्तम - - - - - - - - - अधम
    157. उत्तर - - - - - - - - - दक्षिण
    158. उत्तरार्द्ध - - - - - - - - - पूर्वार्द्ध
    159. उत्तीर्ण - - - - - - - - - अनुत्तीर्ण
    160. उत्थान - - - - - - - - - पतन
    161. उत्थान - - - - - - - - - पतन
    162. उदय - - - - - - - - - अस्त
    163. उदार - - - - - - - - - अनुदार
    164. उद्यमी - - - - - - - - - आलसी
    165. उद्यमी - - - - - - - - - आलसी
    166. उधार - - - - - - - - - नगद
    167. उधार - - - - - - - - - नक़द
    168. उन्नति - - - - - - - - - अवनति
    169. उपकार - - - - - - - - - अपकार
    170. उपजाऊ - - - - - - - - - बंजर
    171. उपस्थित - - - - - - - - - अनुपस्थित
    172. उर्वर - - - - - - - - - ऊसर
    173. उर्वर - - - - - - - - - ऊसर
    174. ऊंचा - - - - - - - - - नीचा
    175. एक - - - - - - - - - अनेक
    176. एक - - - - - - - - - अनेक
    177. एकता - - - - - - - - - अनेकता
    178. एकता - - - - - - - - - अनेकता
    179. ऐसा - - - - - - - - - वैसा
    180. औपचारिक - - - - - - - - - अनौपचारिक
    181. कच्चा - - - - - - - - - पक्का
    182. कटु - - - - - - - - - मधुर
    183. कठिन - - - - - - - - - सरल
    184. कठिनाई - - - - - - - - - सरलता
    185. कड़वा - - - - - - - - - मीठा
    186. कभी-कभी - - - - - - - - - अक्सर
    187. कम - - - - - - - - - अधिक
    188. कमाना - - - - - - - - - खर्च करना
    189. क़रीबी - - - - - - - - - दूर के
    190. कर्म - - - - - - - - - निष्कर्म
    191. कृतज्ञ - - - - - - - - - कृतघ्न
    192. कृतज्ञ - - - - - - - - - कृतघ्न
    193. कृतज्ञ - - - - - - - - - कृतघ्न
    194. केंद्रित - - - - - - - - - विकेंद्रित
    195. क्रय - - - - - - - - - विक्रय
    196. क्रय - - - - - - - - - विक्रय
    197. क्रिया - - - - - - - - - प्रतिक्रिया
    198. क्रुद्ध - - - - - - - - - शान्त
    199. क्रूर - - - - - - - - - दयालु
    200. क्षणिक - - - - - - - - - शाश्वत
    201. क्षणिक - - - - - - - - - शाश्वत
    202. ख़रीद - - - - - - - - - बिक्री
    203. ख़रीददार - - - - - - - - - विक्रेता
    204. ख़रीदना - - - - - - - - - बेचना
    205. खिलना - - - - - - - - - मुरझाना
    206. खुशी - - - - - - - - - दु:ख
    207. खेद - - - - - - - - - प्रसन्नता
    208. खेद - - - - - - - - - प्रसन्नता
    209. गन्दा - - - - - - - - - साफ़
    210. ग़रीब - - - - - - - - - अमीर
    211. गर्म - - - - - - - - - ठंडा
    212. ग़लत - - - - - - - - - सही
    213. गहरा - - - - - - - - - उथला
    214. गुण - - - - - - - - - दोष, अवगुण
    215. गुप्त - - - - - - - - - प्रकट
    216. घर - - - - - - - - - बाहर
    217. घाटा - - - - - - - - - फ़ायदा
    218. घात - - - - - - - - - प्रतिघात
    219. घात - - - - - - - - - प्रतिघात
    220. घृणा - - - - - - - - - प्रेम
    221. घृणा - - - - - - - - - प्रेम
    222. चर - - - - - - - - - अचर
    223. चौड़ी - - - - - - - - - संकरी, तंग
    224. छूत - - - - - - - - - अछूत
    225. छोटा - - - - - - - - - बड़ा
    226. जटिल - - - - - - - - - सरस
    227. जड़ - - - - - - - - - चेतन
    228. जन्म - - - - - - - - - मृत्यु
    229. जल - - - - - - - - - थल
    230. जल्दी - - - - - - - - - देरी
    231. जीवन - - - - - - - - - मरण
    232. ज्ञान - - - - - - - - - अज्ञान
    233. झूठ - - - - - - - - - सच
    234. ठोस - - - - - - - - - तरल
    235. ठोस - - - - - - - - - तरल
    236. डरपोक - - - - - - - - - निड़र
    237. तकलीफ़ - - - - - - - - - आराम
    238. तपन - - - - - - - - - ठंडक
    239. तुच्छ - - - - - - - - - महान
    240. दयालु - - - - - - - - - निर्दयी
    241. दाता - - - - - - - - - याचक
    242. दाता - - - - - - - - - याचक
    243. दिन - - - - - - - - - रात
    244. दिन - - - - - - - - - रात
    245. दुराचारी - - - - - - - - - सदाचारी
    246. दुर्लभ - - - - - - - - - सुलभ
    247. दुर्लभ - - - - - - - - - सुलभ
    248. देव - - - - - - - - - दानव
    249. देशी - - - - - - - - - परदेशी
    250. धनी - - - - - - - - - ग़रीब, निर्धन
    251. धर्म - - - - - - - - - अधर्म
    252. धीर - - - - - - - - - अधीर
    253. धीरे - - - - - - - - - तेज़
    254. धूप - - - - - - - - - छाँव
    255. नक़द - - - - - - - - - उधार
    256. नकली - - - - - - - - - असली
    257. निंदा - - - - - - - - - स्तुति
    258. निंदा - - - - - - - - - स्तुति
    259. निकट - - - - - - - - - दूर
    260. निजी - - - - - - - - - सार्वजनिक
    261. नियमित - - - - - - - - - अनियमित
    262. निरक्षर - - - - - - - - - साक्षर
    263. निरक्षर - - - - - - - - - साक्षर
    264. निर्दोष - - - - - - - - - र्दोष
    265. निर्माण - - - - - - - - - विनाश
    266. निश्चित - - - - - - - - - अनिश्चित
    267. नीचा - - - - - - - - - ऊंचा
    268. नूतन - - - - - - - - - पुरातन
    269. नूतन - - - - - - - - - पुरातन
    270. न्याय - - - - - - - - - अन्याय
    271. पक्ष - - - - - - - - - निष्पक्ष
    272. पतला - - - - - - - - - मोटा
    273. पतिव्रता - - - - - - - - - कुलटा
    274. पदोन्नति - - - - - - - - - पदावनति
    275. परतंत्र - - - - - - - - - स्वतंत्र
    276. परिचित - - - - - - - - - अपरिचित
    277. पवित्र - - - - - - - - - अपवित्र
    278. पसंद - - - - - - - - - नापसंद
    279. पाप - - - - - - - - - पुण्य
    280. पूर्ण - - - - - - - - - अपूर्ण
    281. पोषण - - - - - - - - - कुपोषण
    282. प्यार - - - - - - - - - घृणा
    283. प्रतिकूल - - - - - - - - - अनुकूल
    284. प्रत्यक्ष - - - - - - - - - परोक्ष
    285. प्रत्यक्ष - - - - - - - - - परोक्ष
    286. प्रभावित - - - - - - - - - अप्रभावित
    287. प्रलय - - - - - - - - - सृष्टि
    288. प्रवेश - - - - - - - - - निकास
    289. प्रश्न - - - - - - - - - उत्तर
    290. प्रसन्न - - - - - - - - - अप्रसन्न
    291. प्राकृतिक - - - - - - - - - अप्राकृतिक
    292. प्राचीन - - - - - - - - - नवीन / नया
    293. प्रारंभ - - - - - - - - - अंत
    294. प्रेम - - - - - - - - - घृणा
    295. बंधन - - - - - - - - - मुक्ति
    296. बंधन - - - - - - - - - मुक्ति
    297. बाढ़ - - - - - - - - - सूखा
    298. बालक - - - - - - - - - वृद्ध / बालिका
    299. बासी - - - - - - - - - ताजा
    300. बुद्धिमता - - - - - - - - - मूर्खता
    301. बुराई - - - - - - - - - भलाई
    302. भाव - - - - - - - - - अभाव
    303. भू, -अम्बर
    304. भूलना - - - - - - - - - याद करना
    305. मंगल - - - - - - - - - अमंगल
    306. मंजूर - - - - - - - - - नामंजूर
    307. मधुर - - - - - - - - - कटु
    308. महंगा - - - - - - - - - सस्ता
    309. महात्मा - - - - - - - - - दुरात्मा
    310. मान - - - - - - - - - अपमान
    311. मानवता - - - - - - - - - दानवता
    312. मितव्यय - - - - - - - - - अपव्यय
    313. मितव्यय - - - - - - - - - अपव्यय
    314. मित्र - - - - - - - - - शत्रु
    315. मिथ्या - - - - - - - - - सत्य
    316. मुमकिन - - - - - - - - - नामुमकिन
    317. मूक - - - - - - - - - वाचाल
    318. मूक - - - - - - - - - वाचाल
    319. मृत्यु - - - - - - - - - जन्म
    320. मेहनती - - - - - - - - - आलसी / कामचोर
    321. मोक्ष - - - - - - - - - बंधन
    322. मोक्ष - - - - - - - - - बंधन
    323. मौखिक - - - - - - - - - लिखित
    324. मौखिक - - - - - - - - - लिखित
    325. यश - - - - - - - - - अपयश
    326. यश - - - - - - - - - अपयश
    327. युद्ध - - - - - - - - - शांति
    328. योग्य - - - - - - - - - अयोग्य
    329. रक्षक - - - - - - - - - भक्षक
    330. रक्षक - - - - - - - - - भक्षक
    331. राग - - - - - - - - - द्वेष
    332. राजा - - - - - - - - - रंक या रानी या प्रजा
    333. राजा - - - - - - - - - रंक
    334. रात - - - - - - - - - दिन
    335. रात - - - - - - - - - दिन
    336. रात्रि - - - - - - - - - दिवस
    337. रुग्ण - - - - - - - - - स्वस्थ
    338. रुग्ण - - - - - - - - - स्वस्थ
    339. रुचि - - - - - - - - - अरुचि
    340. रोज़गार - - - - - - - - - बेरोज़गा
    341. लाभ - - - - - - - - - हानि
    342. वरदान - - - - - - - - - अभिशाप
    343. वरदान - - - - - - - - - अभिशाप
    344. वसंत - - - - - - - - - पतझड़
    345. विकसित - - - - - - - - - अविकसित
    346. विकास - - - - - - - - - ह्रास
    347. विजय - - - - - - - - - पराजय
    348. विद्वान - - - - - - - - - मूर्ख
    349. विधवा - - - - - - - - - सधवा
    350. विधवा - - - - - - - - - सधवा
    351. विधि - - - - - - - - - निषेध
    352. विधि - - - - - - - - - निषेध
    353. विनम्रता - - - - - - - - - घमंड
    354. विरोध - - - - - - - - - समर्थन
    355. विशिष्ट - - - - - - - - - सामान्य / साधारण
    356. विशुद्ध - - - - - - - - - दूषित
    357. विश्वनीय - - - - - - - - - अविश्वनीय
    358. विश्वास - - - - - - - - - अविश्वास
    359. विष - - - - - - - - - जहर
    360. विषम - - - - - - - - - सम
    361. विस्तृत - - - - - - - - - संक्षिप्त
    362. वृष्टि - - - - - - - - - अनावृष्टि
    363. व्यवस्था - - - - - - - - - अव्यवस्था
    364. व्यावहारिक - - - - - - - - - अव्यावहारिक
    365. शयन - - - - - - - - - जागरण
    366. शयन - - - - - - - - - जागरण
    367. शीत - - - - - - - - - उष्ण
    368. शीत - - - - - - - - - उष्ण
    369. शुभ - - - - - - - - - अशुभ
    370. शुभ - - - - - - - - - अशुभ
    371. शुष्क - - - - - - - - - आर्द्र
    372. शुष्क - - - - - - - - - आर्द्र
    373. शोर - - - - - - - - - शांन्ति
    374. श्रम - - - - - - - - - विश्राम
    375. श्रोता - - - - - - - - - वक्ता
    376. श्वेत - - - - - - - - - श्याम
    377. संक्षेप - - - - - - - - - विस्तार
    378. संक्षेप - - - - - - - - - विस्तार
    379. संतुलन - - - - - - - - - असंतुलन
    380. संतुलित - - - - - - - - - असंतुलित
    381. संतोष - - - - - - - - - असंतोष
    382. संतोष - - - - - - - - - असंतोष
    383. संभव - - - - - - - - - असंभव
    384. सक्रिय - - - - - - - - - निष्क्रय
    385. सक्रिय - - - - - - - - - निष्क्रय
    386. सक्षम - - - - - - - - - अक्षम
    387. सगुण - - - - - - - - - निर्गुण
    388. सगुण - - - - - - - - - निर्गुण
    389. सघन - - - - - - - - - विरल
    390. सच - - - - - - - - - झूठ
    391. सजीव - - - - - - - - - निर्जीव
    392. सजीव - - - - - - - - - निर्जीव
    393. सज्जन - - - - - - - - - दुर्जन
    394. सज्जन - - - - - - - - - दुर्जन
    395. सफल - - - - - - - - - असफल
    396. सफल - - - - - - - - - असफल
    397. समापन - - - - - - - - - उद्घाटन
    398. सम्मान - - - - - - - - - अपमान, अनादर
    399. सरकारी - - - - - - - - - ग़ैरसरकारी
    400. सरस - - - - - - - - - नीरस
    401. सरस - - - - - - - - - नीरस
    402. सर्दी - - - - - - - - - गर्मी
    403. सस्ता - - - - - - - - - महंगा
    404. सहमत - - - - - - - - - असहमत
    405. सहमति - - - - - - - - - असहमति
    406. सहयोग - - - - - - - - - असहयोग
    407. सहायक - - - - - - - - - बाधक
    408. साकार - - - - - - - - - निराकार
    409. साक्षर - - - - - - - - - निरक्षर
    410. साधु - - - - - - - - - असाधु
    411. सावधानी - - - - - - - - - असावधानी
    412. सुख - - - - - - - - - दुख
    413. सुखान्त - - - - - - - - - दुखांत
    414. सुगंध - - - - - - - - - दुर्गन्ध
    415. सुगंध - - - - - - - - - दुर्गन्ध
    416. सुजन - - - - - - - - - दुर्जन
    417. सुन्दर - - - - - - - - - बदसूरत, कुरूप
    418. सुपुत्र - - - - - - - - - कुपुत्र
    419. सुबह - - - - - - - - - शाम
    420. सुमति - - - - - - - - - कुमति
    421. सुर - - - - - - - - - असुर
    422. सुरक्षित - - - - - - - - - असुरक्षित
    423. सुविधा - - - - - - - - - असुविधा
    424. सूर्योदय - - - - - - - - - सूर्यास्त
    425. सौभाग्य - - - - - - - - - दुर्भाग्य
    426. सौभाग्य - - - - - - - - - दुर्भाग्य
    427. स्तुति - - - - - - - - - निंदा
    428. स्त्री - - - - - - - - - पुरुष
    429. स्थाई - - - - - - - - - अस्थायी
    430. स्वतंत्र - - - - - - - - - परतंत्र
    431. स्वतंत्रता - - - - - - - - - दासता
    432. स्वदेश - - - - - - - - - विदेश
    433. स्वर्ग - - - - - - - - - नरक
    434. स्वस्थ - - - - - - - - - अस्वस्थ
    435. स्वाधीन - - - - - - - - - पराधीन
    436. स्वाधीन - - - - - - - - - पराधीन
    437. स्वीकार - - - - - - - - - अस्वीकार
    438. स्वीकार - - - - - - - - - अस्वीकार
    439. स्वीकृत - - - - - - - - - अस्वीकृत
    440. हर्ष - - - - - - - - - शोक
    441. हर्ष - - - - - - - - - शोक
    442. हानि - - - - - - - - - लाभ
    443. हार - - - - - - - - - जीत
    444. हिंसा - - - - - - - - - अहिंसा
    445. हित - - - - - - - - - अहित


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    भारतीय दंड संहिता की (IPC) धारा-509



     
    भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 509 उन लोगों पर लगाई जाती है जो किसी औरत के शील या सम्मान को चोट पहुंचाने वाली बात कहते हैं या हरकत करते हैं। अगर कोई किसी औरत को सुना कर ऐसी बात कहता है या आवाज निकालता है,जिससे औरत के शील या सम्मान को चोट पहुंचे या जिससे उसकी प्राइवेसी में दखल पड़े तो उसके खिलाफ धारा 509 के तहत मुकदमा दर्ज किया जाता है। इस धारा के तहत एक साल तक की सजा जो तीन साल तक बढ़ाई जा सकती है या जुर्माना या दोनों हो सकता है।

    ठाणे की एक अदालत ने छम्मकछल्लो शब्द को धारा 509 के तहत अपराध घोषित कर दिया है। कोर्ट ने इस शब्द को महिलाओं के प्रति अपमानजनक माना है जो आईपीसी की धारा 509 के तहत अपराध है। कोर्ट ने पड़ौसी महिला को छम्मकछल्लो पुकाने वाले व्यक्ति पर कोर्ट उठने तक साधारण कैद की सजा सुनाई एवं 1 रुपए जुर्माना भी लगाया। फैसला केस फाइल करने के 8 साल बाद आया है।

    एक मजिस्ट्रेट ने पिछले सप्ताह शहर के एक निवासी को 'अदालत के उठने तक' साधारण कैद की सजा सुनाई थी और उस पर एक रुपए का जुर्माना लगाया। आरोपी के एक पड़ोसी ने उसे अदालत में घसीटा था। पड़ोसी महिला की शिकायत के अनुसार, 9 जनवरी 2009 को जब वह अपने पति के साथ सैर से लौट रही थी, तब उसे एक कूड़ेदान से ठोकर लग गई। महिला ने कहा कि यह कूड़ेदान आरोपी ने सीढ़ियों पर रखा था। आरोपी इस दंपति पर चिल्लाने लगा और उन्हें कई चीजें कहने के बीच उसने महिला को ''छम्मकछल्लो'' कहकर पुकारा।

    इस शब्द से गुस्साकर महिला ने पुलिस से संपर्क किया लेकिन पुलिस ने शिकायत दर्ज करने से इंकार कर दिया। तब महिला ने अदालत का रुख किया। आठ साल बाद, न्यायिक मजिस्ट्रेट आर टी लंगाले ने उनके मामले को उचित ठहराते हुए कि आरोपी ने भारतीय दंड संहिता की धारा 509 (शब्द, इशारे या किसी गतिविधि से महिला का अपमान) के तहत अपराध किया है। मजिस्ट्रेट ने अपने आदेश में कहा, 'यह एक हिंदी शब्द है। जिसकी अंग्रेजी नहीं है। भारतीय समाज में इस शब्द का अर्थ इसके इस्तेमाल से समझा जाता है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल किसी महिला का अपमान करने के लिए किया जाता है। यह किसी की तारीफ करने का शब्द नहीं है, इससे महिला को चिढ़ होती है और उसे गुस्सा आता है।'


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