जनहित याचिका / Public Interest Litigation



Public Interest Litigation
जनहित याचिका/Public Interest Litigation (जिसे संक्षेप में PIL/पीआईएल कहते है)  वह याचिका है, जो कि जन (लोगों) के सामूहिक हितों के लिए न्यायालय में दायर की जाती है। कोई भी व्यक्ति जन हित में या फिर सार्वजनिक महत्व के किसी मामले के विरुद्ध, जिसमें किसी वर्ग या समुदाय के हित या उनके मौलिक अधिकार प्रभावित हुए हों, जनहित याचिका के जरिए न्यायालय की शरण ले सकता है।

जनहित याचिका किस न्यायालय के समक्ष दायर की जा सकती है। जनहित याचिका निम्नलिखित न्यायालयों के समक्ष दायर की जा सकती है:-
  1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय के समक्ष।
  2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्चन्यायालय के समक्ष।
जनहित याचिका कब दायर की जा सकती है
जनहित याचिका दायर करने के लिए यह जरूरी है, कि लोगों के सामूहिक हितों जैसे सरकार के कोई फैसले या योजना, जिसका बुरा असर लोगों पर पड़ा हो। किसी एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है।

जनहित याचिका कौन व्यक्ति दायर कर सकता है
कोई भी व्यक्ति जो सामाजिक हितों के बारे में सोच रखता हो, वह जनहित याचिका दायर कर सकता है। इसके लिये यह जरूरी नहीं कि उसका व्यक्तिगत हित भी सम्मिलित हो।
जनहित याचिका किसके विरूद्ध दायर की जा सकती है
जनहित याचिका केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, नगर पालिका परिषद और किसी भी सरकारी विभाग के विरूद्ध
दायर की जा सकती है। यह याचिका किसी निजी पक्ष के विरूद्ध दायर नहीं की जा सकती। लेकिन अगर किसी निजी पक्ष या कम्पनी के कारण जनहितों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हो, तो उस पक्ष या कम्पनी को सरकार के साथ प्रतिवादी के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कानपुर में स्थित किसी निजी कारखाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा हो, तब जनहित याचिका में निम्नलिखित प्रतिवादी होंगे -
  1. उत्तर प्रदेश राज्य / भारत संघ जो आवश्यक हो अथवा दोनों भी हो सकते है।
  2. राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और
  3. निजी कारखाना।
जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
जनहित याचिका ठीक उसी प्रकार से दायर की जाती है, जिस प्रकार से रिट (आदेश) याचिका दायर की जाती
है।
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना जरूरी है।
प्रत्येक याचिका की एक छाया प्रति होती है। यह छाया प्रति अधिवक्ता के लिये बनाई गई छाया प्रति या अधिवक्ता की छाया प्रति होती है। एक छाया प्रति प्रतिवादी को देनी होती है, और उस छाया प्रति की देय रसीद लेनी होती है। दूसरे चरण में जनहित याचिका की दो छाया प्रति, प्रतिवादी द्वारा प्राप्त की गई देय रसीद के साथ न्यायालय में देनी होती है।

उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिये याचिका की पाँच छाया प्रति दाखिल करनी होती हैं। प्रतिवादी को याचिका की छाया प्रति सूचना आदेश के पारित होने के बाद ही दी जाती है।

क्या एक साधारण पत्र के जरिये भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
जनहित याचिका एक खत या पत्र के द्वारा भी दायर की जा सकती है लेकिन यह याचिका तभी मान्य होगी जब यह निम्नलिखित व्यक्ति या संस्था द्वारा दायर की गई हो।
  1. व्यथित व्यक्ति द्वारा,
  2. सामाजिक हित की भावना रखने वाले व्यक्ति द्वारा,
  3. उन लोगों के अधिकारों के लिये जो कि गरीबी या किसी और कारण से न्यायालय के समक्ष न्याय पाने के लिये नहीं आ सकते।
जनहित याचिका दायर होने के बाद न्याय का प्रारूप क्या होता है
जनहित याचिका में न्याय का प्रारूप प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है।
  1. सुनवाई के दौरान दिये गये आदेश, इनमें प्रतिकर,औद्योगिक संस्था को बन्द करने के आदेश, कैदी को जमानत पर छोड़ने के आदेश, आदि होते हैं।
  2. अंतिम आदेश जिसमें सुनवाई के दौरान दिये गए आदेशों एवं निर्देशों को लागू करने व समय सीमा जिसके अन्दर लागू करना होता है।
क्या जनहित याचिका को दायर करने व उसकी सुनवाई के लिये वकील आवश्यक है
जनहित याचिका के लिये वकील होना जरूरी है और राष्ट्रीय/राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अन्तर्गत सरकार के द्वारा वकील की सेवाएं प्राप्त कराए जाने का भी प्रावधान है।

निम्नलिखित परिस्थितियों में भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
  1. जब गरीबों के न्यूनतम मानव अधिकारों का हनन होरहा हो।
  2. जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति न कर रहा हो।
  3. जब धार्मिक अथवा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो।
  4. जब कोई कारखाना या औद्योगिक संस्थान वातावरण को प्रदूषित कर रहा हो।
  5. जब सड़क में रोशनी (लाइट) की व्यवस्था न हो, जिससे आने जाने वाले व्यक्तियों को तकलीफ हो।
  6. जब कहीं रात में ऊँची आवाज में गाने बजाने के कारण ध्वनि प्रदूषण हो।
  7. जहां निर्माण करने वाली कम्पनी पेड़ों को काट रही हो, और वातावरण प्रदूषित कर रही हो।
  8. जब राज्य सरकार की अधिक कर लगाने की योजना से गरीब लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़े।
  9. जेल अधिकारियों के खिलाफ जेल सुधार के लिये।
  10. बाल श्रम एवं बंधुआ मजदूरी के खिलाफ।
  11. लैंगिक शोषण से महिलाओं के बचाव के लिये।
  12. उच्च स्तरीय राजनैतिक भ्रष्टाचार एवं अपराध रोकने के लिये।
  13. सड़क एवं नालियों के रखरखाव के लिये।
  14. साम्प्रदायिक एकता बनाए रखने के लिये।
  15. व्यस्त सड़कों से विज्ञापन के बोर्ड हटाने के लिये, ताकि यातायात में कठिनाई न हो।
जनहित याचिका से संबन्धित उच्चतम न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय
  1. रूरल लिटिगेशन एण्ड इंटाइटलमेंट केन्द्र बनाम् उत्तर प्रदेश राज्य, और रामशरण बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय के कहा कि जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान न्यायालय को प्रक्रिया से संबन्धित औपचारिकताओं में नहीं पड़ना चाहिए।
  2. शीला बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका को एक बार दायर करने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता।
भारतीय विधि से संबधित महत्वपूर्ण लेख


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भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा बैंकों के लिए निर्धारित आचार संहिता



ग्राहकों के प्रति बैंकों की कुछ प्रतिबद्धताएं होती हैं जिसे सुनिश्चित करते हुए बैंकों को अपने ग्राहकों के साथ निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवहार करना चाहिए। भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा निर्धारित आचार संहिता प्रतिबद्धताएं निम्नलिखित हैं:
  1. बैंक के काउंटर पर नकदी एवं चेक की प्राप्ति तथा भुगतान की न्यूनतम बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।
  2. बैंकों द्वारा प्रस्तुत उत्पादों एवं सेवाओं के लिए तथा बैंकों के स्टाफ द्वारा अपनायी जा रही क्रिया विधियों तथा प्रथाओं में इस कोड की प्रतिबद्धता तथा मानकों को पूरा कराना।
  3. यह सुनिश्चित करना कि बैंक के उत्पाद तथा सेवाएं संबंधित कानूनों तथा नियमों का पूरी तरह से पालन करती हैं।
  4. ग्राहक के साथ बैंक के व्यवहार ईमानदारी तथा पारदर्शिता के नैतिक सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।
  5. बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी शाखाओं में सुरक्षित तथा भरोसेमंद बैंकिंग तथा भुगतान प्रणालियां चलती रहें।उत्पाद एवं सेवा के बारे में ग्राहकों को स्पष्ट रूप से सूचना देना। इसके लिए हिन्दी, अंग्रेजी या स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
  6. बैंक के विज्ञापन तथा संवर्धन संबंधी साहित्य स्पष्ट होने चाहिए। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि विज्ञापन किसी प्रकार से भ्रामक न हों।
  7. बैंक के उत्पादों एवं सेवाओं के संबंध में, उन पर लागू शर्तों तथा ब्याज दरों और सेवा प्रभारों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट सूचना दिया जाना चाहिए।
  8. ग्राहकों को कैसे लाभ हो सकता है, उसके वित्तीय निहितार्थ क्या हैं,आदि बातों की जानकारी देना तथा किसी प्रकार की समस्या होने पर ग्राहक किससे संपर्क करें, इन सब बातों की जानकारी दी जानी चाहिए।
  9. ग्राहकों के खाते तथा सेवा के उपयोग के बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराना बैंकों का कर्तव्य है।
  10. कुछ गलत हो जाने पर शीघ्र तथा सहानुभूतिपूर्वक कार्रवाई करना।
  11. गलती को तुरंत सुधारना तथा बैंक की गलती के कारण लगाए गए बैंक प्रभारों को रद्द करना।
  12. ग्राहकों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करना।
  13. तकनीकी असफलता के कारण उत्पन्न हुई किसी समस्या को दूर करने के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कराना।ब्याज दरों, प्रभारों या शर्तों में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों से ग्राहकों को अवगत कराना।
  14. ग्राहकों की व्यक्तिगत सूचना को गोपनीय रखना।
  15. खाता खोलते समय ग्राहकों को उत्पाद या सेवा से संबंधित सभी नियम एवं शर्तों की जानकारी देना।

  16. बैंक की प्रत्येक शाखा में शुल्क एवं प्रभार की सूची लगाना।
  17. ग्राहक को यदि बैंक से कोई शिकायत है तो, उसे कैसे, कहाँ तथा किससे शिकायत करनी है, इसकी जानकारी उपलब्ध कराना।
  18. कोई भी बैंक बिना ग्राहक की लिखित अनुमति के, टेलीफोन,एसएमएस, ईमेल आदि द्वारा नए उत्पादों या सेवा के बारे में अतिरिक्त जानकारी नहीं देगा।
  19. बैंक को ग्राहक के जमा व ऋण खातों पर लगने वाले ब्याज की सूचना देनी चाहिए।
  20. ग्राहक की जमाराशियों पर ब्याज, कितना और कब देंगे या ऋण खातों पर प्रभार कब लगाया जाएगा इसकी सूचना बैंक को देनी चाहिए।
  21. किसी उत्पाद के ब्याज दर पर होने वाले परिवर्तनों की सूचना ग्राहक को दी जानी चाहिए।
  22. बैंक को अपनी शाखाओं में सूचना पट्ट लगाना आवश्यक है तथा उस पर निःशुल्क सेवाओं की सूची, बचत खाते में न्यूनतम जमा राशि न रखने पर लगने वाला प्रभार, बाहरी चेक की वसूली, मांग ड्राफ्ट, चेक बुक जारी करने पर, खाता विवरण, खाता बंद करने तथा एटीएम में राशि जमा करने एवं निकालने पर लगने वाले प्रभार की सूचना लिखना अनिवार्य है।
  23. ग्राहकों द्वारा चुने गए उत्पाद या सेवा की शर्तों के उल्लंघन या अनुपालन न करने पर दंड के बारे में भी बैंक को सूचित करना चाहिए।
  24. यदि बैंक किसी प्रभार में वृद्धि करते हैं या नया प्रभार लागू करते हैं, तो इसके प्रभावी होने की तारीख से एक माह पूर्व उन्हें अधिसूचित किया जाना चाहिए।
  25. बैंक ग्राहक की वैयक्तिक सूचना को गोपनीय रखने के लिए प्रतिबद्ध होता है, लेकिन कुछ अपवादात्मक मामलों में उसे छूट है, जो निम्न हैंः 1. बैंक को कानूनी तौर पर देनी पड़े, 2. सूचना देना जनहित में जरूरी हो और 3. बैंक के हितों के लिए सूचना देना आवश्यक हो।


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