महार्षि अरविन्‍द का जन्‍मोत्‍सव- भाग तीन



महर्षि अरविन्‍द ने कहा है - 
समस्‍म विश्‍व शक्ति इस विराट पुरूष की प्रकृति या सक्रिय सचेतन शक्ति है। इस विराट पुरूष को हम प्राप्‍त की सकते है तथा यहीं बन भी सकते है तथा यही बन भी सकते हैं। पर इसके लिये हमें अहं की दीवारों को अपने चारों ओर से तोड़कर मानो एकमेव सर्वभूतों के साथ तादात्‍म्यता स्‍थापित करनी होगी अथवा इन्‍हो ऊपर की ओर से तोड़कर शुद्ध आत्‍मा या निरपेक्ष सत्‍ता का उसके आविर्भावशील अंतर्यामी, सर्वग्राही तथा सर्वनियमक ज्ञान से एवं आत्म-सर्जन की शक्ति से सम्‍पन्‍न रूप में साक्षात्‍कार करना होगा। - श्री अरविंद साहित्‍य समग्र, खण्‍ड-3, योग-समन्‍वय, पूर्वार्द्व, पृष्‍ठ 469-470 सें


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विजेन्‍द्र एस. विज को जन्‍मदिन शुभकामनाए



हिन्‍दी ब्‍लाग के प्रशिद्ध चित्रकार विजेन्‍द्र एस. विज को महाशक्ति परिवार की ओर से ह‍ार्दिक शुभकामनाऐं। विज भाई के बारें में ज्‍यादा कुछ बताना सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा। इनके बारें में मै सिर्फ इतना ही बताऊँगा कि आज जिस महानगर में मै रहता हूँ उस इलाहाबाद में ही इन्‍होने शिक्षा प्राप्‍त की और अपने जीवन के नये आधार की शुरूवात की। इन्‍होने कई प्रशिद्ध लेखको के अवरणों के लिये चित्र बनाऐं है। जिसमें कुमार विश्‍वास की पुस्‍तके शामिल है।

विज जी के जन्‍म दिन के अलावॉं आप सभी पाठकों को भाई-बहन के प्‍यार तथा राष्‍ट्र एकता के प्रतीक पर्व रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाऐं।


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देवाशीष जी यह रही हिंदी की पहली पूर्ण कोरी पोस्‍ट



हाल में ही उत्‍तर भारत भ्रमण के दौरान देबाशीष जी की चिट्ठाचर्चा पर पोस्‍ट पढ़ने को मिली, जिसमें उन्‍होने अशोक चक्रधर जी की एक पोस्‍ट को ऐसी पहली पोस्‍ट करार दिया जिसमें बिना कुछ लिखे टिप्‍पणी मिली है।

मुझे लगता है कि देवाशीष जी जल्‍दबाजी में घोषणा कर गये और उन्‍होने अपने साथी चिट्ठाकारों से सलाह तो दूर खुद भी हिन्‍दी चिट्ठाकारी इतिहास खगहालने की कोशिस नही जिसमें वे खुद कतिपय लोगों के द्वारा पितामह की संज्ञा को प्राप्‍त कर चुकें है।

अशोक चक्रधर जी की उक्‍त पोस्‍ट से क‍रीब आठ महीने पहले मेरी एक पोस्‍ट अदिति फोटों ब्‍लाग आई थी। जिसमें कुछ भी नही लिखा था यहॉं तक कि शीर्षक भी नही था। तब पर भी टिप्‍पणियॉं मिली थी।
मैं ऐसा नही कह सकता कि यह मेरी पोस्‍ट पहली पोस्‍ट है किन्‍तु देबाशीष जी पोस्‍ट कों पहली कह रहे है मेरी पोस्‍ट उससे 8 माह पुरानी है। चक्रधर जी की पोस्‍ट में कुछ तो लिखा था किन्‍तु मेरी पोस्‍ट इतिहास की पहली पूर्ण कोरी पोस्‍ट हो सकती है।

देबाशीष जी आपके द्वारा किसी प्रकार की असत्‍य जानकारी अच्‍छी नही लगती है, वैसे आप बेकार में शोध कर रहे है जो काम नीलिमा जी का उन्‍हे ही करने दी‍जिऐ क्‍यों किसी के पेट पर लात मार रहे है ?

क्‍यों फुरसतिया जी मै ठीक कह रहा हूँ कि नही ? ;)


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बंसत आर्य जी - आरोप लगाया है तो प्रमाण दीजिए



मित्र तारा चन्‍द्र द्वारा प्रकाशित कालेज की लडकियॉं कविता पर बंसत आर्य जी की टिप्‍पणी आई कि उक्‍त कविता किसी अंजुम रहबर की है। उनकी टिप्‍पणी निम्‍न है-

Basant Arya ने कहा…
ये भी जिक्र कर दिया होता कि ये गजल अंजुम रहबर की है तो वे कितनी खुश होती?

इस बारे में जब मैने तारा चन्‍द्र जी से पूछा कि क्‍या जो बंसत जी कह रहे है वह ठीक है? इस पर उनका कहना था कि यह कविता पूर्ण रूप से मेरी है, और अधूरी है। अभी इसकी चंद पक्तिंयॉं ही प्रकाशित किया है क्‍योकि मेरी पुरानी डायरी नही मिल रही है जिस पर मैने लिख रखा है।

श्री बंसत जी किसी पर आक्षेप लगाना ठीक नही है। अगर आपके पास प्रमाण हो तो प्रस्‍तुत कीजिए अगर आप प्रमाण देते है तो हम मानने को तैयार है कि यह कविता/गजल जैसा आप कह रहे है सही है।

एक कविता की दूसरे से समानता होना स्‍वाभाविक है, हो सकता है कि कुछ पक्तिं में समानता हो सकती है। और यह हिन्‍दी के शुरवाती दिनों से होता चला आया है। कई ऐसी रचनाऐं है जिनमें सूर और तुलसी के पद्यों में समानता मिलती है। यह कहना कि तुलसी ने सूर को टीप कर लिखा है ठीक नही।


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महार्षि अरविन्‍द का जन्‍मोत्‍सव- भाग दो







महर्षि अरविन्द ने कहा था-
इसमें सदेह नही कि प्रत्‍येक विघटनकारी आक्रमण का प्रतिकार हमें पूरे बल के साथ करना होगा, परन्‍तु इससे भी कहीं अधिक महत्‍वपूर्ण बात यह है कि अपनी अतीत की उपलब्धि, वर्तमान स्थित और भावी संभावनाओं के संबंध में, अर्थात हम क्‍या थे, क्‍या है, औ क्‍या बन सकते है ? इस सबके सम्‍बन्‍ध में हम अपनी सच्‍ची और स्‍वतंत्र सम्‍मति निश्चित करें। हमारे अतीत में जो कुछ महान, मलौक, उन्‍नतिकारक, बलदायक, प्रकाशदायक, जयशील एवं अमोघ था उस सबका हमें स्‍पष्‍ट रूप से निर्धारण करना होगा। औरा उस‍में से जो कुछ हमारी संस्‍कृतिक सत्‍ता की स्‍थायी मूल भावना एवं उसके अटल विधानके निकट था उसमें से भी लो कुछ हमारी सांस्‍कृति सत्‍ता की स्‍थाई मूल भावना एवं उसके अटल विधान के निकट था उसे साफ-साफ जानकर उसे अपनी संस्‍कृति के सामयिक बाह्य रूपों का निर्माण करनके वाली अस्‍थायी वस्‍तुओं से पृथक कर लेना होगा। (श्री अरविंद साहित्‍य समग्र, खण्‍ड-1, भारतीय संस्‍कृति के आधार, पृष्‍ट 43 से उद्धृत)


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महार्षि अरविन्‍द का जन्‍मोत्‍सव- भाग एक






महर्षि अरविन्द ने कहा था-


विनाश जितना बड़ा होगा, सृजन के अवसर उतने ही मुक्‍त होगे, किन्‍तु विनाश प्राय: लंबा, धीमा और उत्‍पीड़क होता है, सृजन अपने आगमन में मंद गति और विजय में बाधित होता है। रात्रि बार-बार लौटकर आती है और दिवस उगने में देर लगाता है अथवा ऐसा भी लगता है कि कहीं भोर का मिथ्‍या आभास तो नहीं। इसलिये निराश मत हों बल्कि ता‍क और कर्म कर जो उतावले होकर आशा करते है, वे निराश भी जल्‍दी ही हो जाते हैं- न आशा कर न भय, किन्‍त ईश्वर का उद्देश्य और उसे पूरा करने का अपना संकल्‍प सुनिश्चित कर लें। (श्री अरविंद के लेख, वार्तालाप और भाषण संकलन- भारत का पुनर्जन्‍म, पृष्‍ठ 136-137 से उद्धृत)


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महाशक्ति मनाऐगा महार्षि अरविन्‍द का जन्‍मोत्‍सव




महाशक्ति मनाऐगा महार्षि अरविन्‍द का जन्‍मोत्‍सव 
15 अगस्‍त को स्‍वतंत्रता दिवस के साथ-साथ महर्षि अरविन्‍द जी की जायंती भी थी। मुझे भी याद नही था पर कही पढ़ा तो दुख भी हुआ। किन्‍तु अब महाशक्ति उनका जन्‍म दिवस तो नही मना सकी पर अब जन्‍म माह मनने की तैयारी है। इसके लिये महाशक्ति पर महर्षि अरविन्‍द से सम्‍बन्धित लेख और उनके कथन प्रकाशित किये जायेगें। यह को‍ई बहुत बड़ा काम तो नही होगा किन्‍तु निश्चित रूप से एक सच्‍ची श्रद्धाजंली देने की कोशिस होगी ताकि आज की युवा पीढ़ी उनके विचारों से सीख ले सके।


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कालेज की लड़कियॉं



खामोश हैं उदास है पागल हैं लड़किया।
देखों किसी के प्‍यार में घायल है लडकिया।।
ऐ कालेज के लड़कों नज़र से इनको समझों।
पैरो की बेडि़यॉं नही, पायल है लड़कियॉं।।
समझे तेरे दिल जज्‍बात को फिर भी।
अपने मंजर जिन्दगी की कायल है लड़कियॉं।।
बे खौफ़ तेरे जीवन में, यूं साथ न छोड़े।
हर जिन्‍दगी में नदियों की साहिल है लड़कियॉं।।


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कविता- एक आनोखा टेनिस का मैच



देखा एक शाम टीवी खेल , चल रहा था ,
टेनिस का एक मैच बेगाना।
रिमोट बटन की बढ़ती गति को कुछ नया देख,
मैने इस न्‍यारें खेल को रोकने समझना चाहा।
थोड़ी देर बाद पता चला कि यह तो बिबंडन का फाइनल है।
जहॉं फेडरर मुकाबला स्‍पेन के नाडल से होने वाला है।
क्रिकेट वर्ड कप से हार कर मेरा मन भी गया था क्रिकेट से ऊब,
अन्‍तत: मुझे भी इस खेल में लगी रोचकता खूब।
कुछ ही देर में इस खेल ने पकड़ लिया।
फिर मैने भी उसको अपनी बाहों में जकड़ लिया।
फेडरर के एक एक फोरहैन्‍ड शॉट का नही था कोई जवाब,
पर शायद दूसरे सेट के बाद चढ़ना था अभी नडाल का शबाब।
मै भी कभी नाडाल तो कभी फेडरर की तरफ से आवाज लगाने लगा,
इसी बीच हॉक आई ने भी की नाडाल की वकालत,
पर तभी फेडरर ने खुद की गलतियों से खिलाफत,
मै में अब सर्विस फाल्‍ट की गललियों का नाडाल का था कारोबार
जिसके कारन विबलंडल की ट्राफी से हुआ फेडरर का साक्षात्‍कार
पर क्ले कोर्ट के बादशाह ने ग्रास कोर्ट पर भी जीता सबका दिल,
और मुझे क्रिकेट का विकल्‍प गया था मिला।
कवि - विवेक कुमार मिश्र, इलाहाबाद विवि के स्‍नातक छात्र है।


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संस्‍कार:भारतीय दर्शन (Sanskar: Indian Philosophy)




 
भारतीय दर्शन में संस्‍कार शब्‍द किसी परिचय का मोहताज नही है। भारतीय दर्शन में 16 संस्कारों की बात की गई है। संस्‍कारों से तात्पर्य व्यक्ति के जीवन में अपनाए जाने वाले सद्गुणों से होता है।
आचार्य चरक ‘’चरक संहिता’’ में संस्कार की व्याख्या करते हुऐ कहते है -संस्‍कारो ही गुणन्‍तरराधानतुच्‍यते अर्थात पहले से विद्यमान दुर्गुणों को हटाकर सद्गुणों को धारण करना ही संस्कार है। इसी प्रकार शंकराचार्य ने गुणधान या दोषापनयन को संस्कार मानते हुए वेदान्त सूत्र शांकरभाष्य में कहते है कि- संस्कारों हि नाम गुणाधानेन वास्‍य दोषायनयनेन वा।
सर्वप्रथम यह प्रश्‍न उठना स्वाभाविक हो जाता है कि व्यक्ति के अन्दर संस्‍कारों का समावेश होता है कैसे है? मानव में संस्‍कारों के निर्माण के दो वर्ग विभाजित है प्रथम है वंशक्रम तथा द्वितीय है पर्यावरणीय। वंश क्रम का अध्ययन करने पर पता चलता है कि जिस प्रकार पूर्वजों का वीर्य व रजस होगा उसी प्रकार की संतान होगी। निश्चित रूप से आम के पेड़ से आम ही उत्पन्न होता है इमली नही उसी प्रकार खट्टे आम के पेड़ से सदैव खट्टा आम ही उत्पन्न होगा। ठीक उसी प्रकार जिस संस्कारों के माता-पिता या पूर्वज होते है उसी संस्‍कारों की संताने भी होती है। कभी कभी इसका अपवाद भी उत्पन्न हो जाता है कि कुछ राक्षसों के यहां धर्म मार्ग पर चलने वाली संतानों ने जन्म कैसे ले लिया ? प्रश्‍न का उठना भी सार्थक है। राक्षसी गुणों वालों के यहां भी संत पैदा हो जाते है। प्रह्लाद की माता के गुण धार्मिक थे इस कारण प्रह्लाद धार्मिक प्रवृत्ति के हुए। इसकी प्रकार प्रह्लाद के पौत्र भी प्रह्लाद की तरह धार्मिक हुये, आज वैज्ञानिक भी मानते है कि ऊंचाई, मोटाई, गोरा या काला होना वंश पर निर्भर करता है कभी कभी देखने में आता है कि गोरे माता-पिता की संतान भी काली उत्पन्न होती है या संतान का चेहरा मॉ-बाप दोनों से नही मिलता है। कारण है कि इनके पूर्वजों में कभी यह गुण रहे होगें जो आज परिलक्षित हो रहे है। इसी प्रकार यह बात संस्कारों पर भी लागू होती है कि पूर्वजों के उत्‍ताधिकारी के रजोवीर्य कसे जन्‍म लेने वाली उनके संस्कारों को धारण करती है। सुसंस्कारित पूर्वजों की संताने संस्कारवान तथा कुत्सित पूर्वजों की संताने कुत्सित होती है।
आधुनिक वैज्ञानिकों गाल्टन तथा ब्रिजमैन के अनुसार प्राणी जो कुछ भी है वह वंशानुक्रम का परिणाम है, और इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नही किया जा सकता है। इस बात की पुष्टि भर्तहरि नीतिशतक में भी मिलती है- भूयोSपि सिक्‍त: पयसा घृतेन न निम्‍बवृक्षों मधुरत्‍वमेति। अर्थात दूध-घी के निरंतर घोने से भी नीम्‍ब के वृछ में मधुरता नही लाई जा सकती है।
गाल्टन तथा ब्रिजमैने के विपरीत डा. नेफाख जैसे पर्यावरणवादी के अनुसार वंशानुगत गुणें को भी पर्यावरण द्वारा बदला जा सकता है इस तर्क के समर्थन में भर्तृहरि नीतिशतक में एक श्लोक है-
सन्‍ताप्‍तायसि संस्थितस्‍य पयसों नामपि न लक्ष्‍यते,
मुक्‍ताकारताया तदेव नलनि पत्रस्थितं राजते।
स्‍वात्‍या सागरशुक्तिसम्‍पुटगतं तज्‍जायते भौक्तिकं,
प्रायेणाधर्ममध्‍यभोक्‍तगुण: संसर्गतो जायते।।
अर्थात जिस प्रकार जल की एक बूँद गर्म आग के गोले पर पड़ कर नष्‍ट हो जाती है, कमल पत्र पर पड़ने पर वह मोती सदृश्‍य प्रतीत होती है और वही बूँद अगर सीपी में पढ जाती है तो वह मोती बन जाती है। चूकिं जल की प्रकृति पीने की है किन्तु सद्गुणों के सानिध्‍य से वह संस्कारित होती है। जीन्‍स पर शोध कर रहे डाक्‍टर खुराना जो भारतीय मूल के अमेरिकी नोबेल पुरस्कार विजेता है कहते है कि किसी विशेष गुण वाले जीनस को प्रजनन तत्‍व में से निकाल कर अभीप्सित गुण वाले जीन्स के आरोपण द्वारा मन चाहे गुणों वाली संतान प्राप्‍त की जा सकती है वह दिन अब दूर नही जब गांधी, सुभाष, टैगोर तिलक फिर से पैदा किये जायें।
संस्‍कार वादी व्‍यवस्‍था में समन्‍यवादी विचार का दर्शन होता है। समन्‍यवादी से तात्‍पर्य वंशाक्रम या पर्यावरण के बीच द्वंद की समाप्ति से है। साम्यवादी विचारधारा में माता-पिता द्वारा प्रदत्‍त वंशानुगतगुणों पर संदेह नही किया जाता फिर भी पर्यावरण के द्वारा नवीन गुणों से पुराने गुणों को परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता हैं। उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि सर्वथा अभिनव मानव का निर्माण तो नहीं किया जा सकता किन्तु मानव का नव निर्माण तो नहीं किया जा सकता किंतु मानव का निर्माण जरूर किया जा सकता है।
स्वामी रामतीर्थ के शब्दों में- समाज कि उन्नति बड़े लोगों के छोटे विचारों से न होकर छोटें लोगों बड़े विचारों से है। यही कारण है कि कबीर रैदास आज सर्वत्र पूजे जाते है और भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण स्‍वर्णमायी लंका नष्ट हो जाती है। हमारे ऋषियों ने उक्त तथ्यों को समझा और ‘मानव’ में संस्कार पद्धति को जन्‍म दिया और निम्‍न 16 संस्कारों की रचना की—
1. गर्भाधान, 2. पुंसवन, 3. सीमान्‍तोन्‍नयन, 4. जातकर्म, 5. नामकरण, 6. निष्‍क्रमण, 7. अन्‍नप्राशन, 8. चूड़ाकर्म, 9. कर्णवेध, 10. उपनयन, 11. वेदारम्‍भ, 12. समावर्तन, 13. विवाह, 14. वानप्रस्‍थ, 15. सन्‍यास, 16. अन्‍येष्ठि या अन्तिम संस्कार।
संस्‍कारों के हमारे जीवन में समावेश के दो पक्ष है पहला है सैद्धान्तिक दूसरा व्यवहारिक। व्यावहारिक पक्ष देश काल की प्रवृत्तियों के अनुरूप परिवर्तित हो सकता है परन्तु सिद्धान्त वही रहता है। प्राचीन काल में संस्कारों का समावेश जीवन में वैदिक मंत्रों तथा यज्ञों का आयोजन कर किया जाता था और आज परिवार जनों व इष्‍ठ मित्रों को बुलाकर सामान्‍य पूजा पाठ करके पूरा किया जाता है। निश्चित रूप से भारतीय जीवन दर्शन व मूल्यों मे संस्कार अभिन्न अंग है।

सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का आविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है।मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक सोलह पवित्र संस्कार सम्पन्न किये जाते हैं:-
  1. गर्भाधान: हमारे शास्त्रों में मान्य सोलह संस्कारों में गर्भाधान पहला है। गृहस्थ जीवन में प्रवेश के उपरान्त प्रथम कर्तव्य के रूप में इस संस्कार को मान्यता दी गई है। गार्हस्थ्य जीवन का प्रमुख उद्देश्य श्रेष्ठ सन्तानोत्पत्ति है। उत्तम संतति की इच्छा रखने वाले माता-पिता को गर्भाधान से पूर्व अपने तन और मन की पवित्रता के लिये यह संस्कार करना चाहिए। वैदिक काल में यह संस्कार अति महत्वपूर्ण समझा जाता था।
  2. पुंसवन : गर्भस्थ शिशु के मानसिक विकास की दृष्टि से यह संस्कार उपयोगी समझा जाता है। गर्भाधान के दूसरे या तीसरे महीने में इस संस्कार को करने का विधान है। हमारे मनीषियों ने सन्तानोत्कर्ष के उद्देश्य से किये जाने वाले इस संस्कार को अनिवार्य माना है। गर्भस्थ शिशु से सम्बन्धित इस संस्कार को शुभ नक्षत्र में सम्पन्न किया जाता है। पुंसवन संस्कार का प्रयोजन स्वस्थ एवं उत्तम संतति को जन्म देना है।
  3. सीमन्तोन्नयन : सीमन्तोन्नयन को सीमन्तकरण अथवा सीमन्त संस्कार भी कहते हैं। सीमन्तोन्नयन का अभिप्राय है सौभाग्य संपन्न होना। गर्भपात रोकने के साथ-साथ गर्भस्थ शिशु एवं उसकी माता की रक्षा करना भी इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है। इस संस्कार के माध्यम से गर्भिणी स्त्री का मन प्रसन्न रखने के लिये सौभाग्यवती स्त्रियां गर्भवती की मांग भरती हैं। यह संस्कार गर्भ धारण के छठे अथवा आठवें महीने में होता है।
  4. जातकर्म : नवजात शिशु के नालच्छेदन से पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। इस दैवी जगत् से प्रत्यक्ष सम्पर्क में आने वाले बालक को मेधा, बल एवं दीर्घायु के लिये स्वर्ण खण्ड से मधु एवं घृत वैदिक मंत्रों के उच्चारण के साथ चटाया जाता है। यह संस्कार विशेष मन्त्रों एवं विधि से किया जाता है। दो बूंद घी तथा छह बूंद शहद का सम्मिश्रण अभिमंत्रित कर चाटने के बाद पिता यज्ञ करता है तथा नौ मन्त्रों का विशेष रूप से उच्चारण के बाद बालक के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घ जीवी होने की प्रार्थना करता है। इसके बाद माता बालक को स्तनपान कराती है।
  5. नामकरण : जन्म के ग्यारहवें दिन यह संस्कार होता है। हमारे धर्माचार्यों ने जन्म के दस दिन तक अशौच (सूतक) माना है। इसलिये यह संस्कार ग्यारहवें दिन करने का विधान है। महर्षि याज्ञवल्क्य का भी यही मत है, लेकिन अनेक कर्मकाण्डी विद्वान इस संस्कार को शुभ नक्षत्र अथवा शुभ दिन में करना उचित मानते हैं।
  6. नामकरण संस्कार का सनातन धर्म में अधिक महत्व है। हमारे मनीषियों ने नाम का प्रभाव इसलिये भी अधिक बताया है क्योंकि यह व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। तभी तो यह कहा गया है राम से बड़ा राम का नाम हमारे धर्म विज्ञानियों ने बहुत शोध कर नामकरण संस्कार का आविष्कार किया। ज्योतिष विज्ञान तो नाम के आधार पर ही भविष्य की रूपरेखा तैयार करता है।
  7. निष्क्रमण : दैवी जगत् से शिशु की प्रगाढ़ता बढ़े तथा ब्रह्माजी की सृष्टि से वह अच्छी तरह परिचित होकर दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करे यही इस संस्कार का मुख्य उद्देश्य है।
  8. निष्क्रमण का अभिप्राय है बाहर निकलना। इस संस्कार में शिशु को सूर्य तथा चन्द्रमा की ज्योति दिखाने का विधान है। भगवान भास्कर के तेज तथा चन्द्रमा की शीतलता से शिशु को अवगत कराना ही इसका उद्देश्य है। इसके पीछे मनीषियों की शिशु को तेजस्वी तथा विनम्र बनाने की परिकल्पना होगी। उस दिन देवी-देवताओं के दर्शन तथा उनसे शिशु के दीर्घ एवं यशस्वी जीवन के लिये आशीर्वाद ग्रहण किया जाता है। जन्म के चौथे महीने इस संस्कार को करने का विधान है। तीन माह तक शिशु का शरीर बाहरी वातावरण यथा तेज धूप, तेज हवा आदि के अनुकूल नहीं होता है इसलिये प्राय: तीन मास तक उसे बहुत सावधानी से घर में रखना चाहिए। इसके बाद धीरे-धीरे उसे बाहरी वातावरण के संपर्क में आने देना चाहिए। इस संस्कार का तात्पर्य यही है कि शिशु समाज के सम्पर्क में आकर सामाजिक परिस्थितियों से अवगत हो।
  9. अन्नप्राशन : इस संस्कार का उद्देश्य शिशु के शारीरिक व मानसिक विकास पर ध्यान केन्द्रित करना है। अन्नप्राशन का स्पष्ट अर्थ है कि शिशु जो अब तक पेय पदार्थों विशेषकर दूध पर आधारित था अब अन्न जिसे शास्त्रों में प्राण कहा गया है उसको ग्रहण कर शारीरिक व मानसिक रूप से अपने को बलवान व प्रबुद्ध बनाए। तन और मन को सुदृढ़ बनाने में अन्न का सर्वाधिक योगदान है। शुद्ध, सात्विक एवं पौष्टिक आहार से ही तन स्वस्थ रहता है और स्वस्थ तन में ही स्वस्थ मन का निवास होता है। आहार शुद्ध होने पर ही अन्तःकरण शुद्ध होता है तथा मन, बुद्धि, आत्मा सबका पोषण होता है। इसलिये इस संस्कार का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। हमारे धर्माचार्यों ने अन्नप्राशन के लिये जन्म से छठे महीने को उपयुक्त माना है। छठे मास में शुभ नक्षत्र एवं शुभ दिन देखकर यह संस्कार करना चाहिए। खीर और मिठाई से शिशु के अन्न ग्रहण को शुभ माना गया है। अमृत: क्षीरभोजनम् हमारे शास्त्रों में खीर को अमृत के समान उत्तम माना गया है।
  10. चूड़ाकर्म : चूड़ाकर्म को मुंडन संस्कार भी कहा जाता है। हमारे आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। इस संस्कार के पीछे शुचिता और बौद्धिक विकास की परिकल्पना हमारे मनीषियों के मन में होगी। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। नौ माह तक गर्भ में रहने के कारण कई दूषित किटाणु उसके बालों में रहते हैं। मुंडन संस्कार से इन दोषों का सफाया होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस संस्कार को शुभ मुहूर्त में करने का विधान है। वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यह संस्कार सम्पन्न होता है।
  11. विद्यारम्भ : विद्यारम्भ संस्कार के क्रम के बारे में हमारे आचार्यों में मतभिन्नता है। कुछ आचार्यों का मत है कि अन्नप्राशन के बाद विद्यारम्भ संस्कार होना चाहिए तो कुछ चूड़ाकर्म के बाद इस संस्कार को उपयुक्त मानते हैं। मेरी राय में अन्नप्राशन के समय शिशु बोलना भी शुरू नहीं कर पाता है और चूड़ाकर्म तक बच्चों में सीखने की प्रवृत्ति जागने लगती है। इसलिये चूड़ाकर्म के बाद ही विद्यारम्भ संस्कार उपयुक्त लगता है। विद्यारम्भ का अभिप्राय बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परंपरा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। माँ-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथायें आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है। शास्त्र की उक्ति है सा विद्या या विमुक्तये अर्थात विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।
  12. कर्णवेध : हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है। यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर।
  13. 11. यज्ञोपवीत : यज्ञोपवीत अथवा उपनयन बौद्धिक विकास के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। धार्मिक और आध्यात्मिक उन्नति का इस संस्कार में पूर्णरूपेण समावेश है। हमारे मनीषियों ने इस संस्कार के माध्यम से वेदमाता गायत्री को आत्मसात करने का प्रावधान दिया है। आधुनिक युग में भी गायत्री मंत्र पर विशेष शोध हो चुका है। गायत्री सर्वाधिक शक्तिशाली मंत्र है। यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं अर्थात् यज्ञोपवीत जिसे जनेऊ भी कहा जाता है अत्यंत पवित्र है। प्रजापति ने स्वाभाविक रूप से इसका निर्माण किया है। यह आयु को बढ़ाने वाला, बल और तेज प्रदान करने वाला है। इस संस्कार के बारे में हमारे धर्म शास्त्रों में विशेष उल्लेख है। यज्ञोपवीत धारण का वैज्ञानिक महत्व भी है। प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी उस समय प्राय: आठ वर्ष की उम्र में यज्ञोपवीत संस्कार सम्पन्न हो जाता था। इसके बाद बालक विशेष अध्ययन के लिये गुरुकुल जाता था। यज्ञोपवीत से ही बालक को ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती थी जिसका पालन गृहस्थाश्रम में आने से पूर्व तक किया जाता था। इस संस्कार का उद्देश्य संयमित जीवन के साथ आत्मिक विकास में रत रहने के लिये बालक को प्रेरित करना है।
  14. वेदारम्भ : ज्ञानार्जन से सम्बन्धित है यह संस्कार। वेद का अर्थ होता है ज्ञान और वेदारम्भ के माध्यम से बालक अब ज्ञान को अपने अन्दर समाविष्ट करना शुरू करे यही अभिप्राय है इस संस्कार का। शास्त्रों में ज्ञान से बढ़कर दूसरा कोई प्रकाश नहीं समझा गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल में यह संस्कार मनुष्य के जीवन में विशेष महत्व रखता था। यज्ञोपवीत के बाद बालकों को वेदों का अध्ययन एवं विशिष्ट ज्ञान से परिचित होने के लिये योग्य आचार्यों के पास गुरुकुलों में भेजा जाता था। वेदारम्भ से पहले आचार्य अपने शिष्यों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने एवं संयमित जीवन जीने की प्रतिज्ञा कराते थे तथा उसकी परीक्षा लेने के बाद ही वेदाध्ययन कराते थे। असंयमित जीवन जीने वाले वेदाध्ययन के अधिकारी नहीं माने जाते थे। हमारे चारों वेद ज्ञान के अक्षुण्ण भंडार हैं।
  15. केशान्त : गुरुकुल में वेदाध्ययन पूर्ण कर लेने पर आचार्य के समक्ष यह संस्कार सम्पन्न किया जाता था। वस्तुत: यह संस्कार गुरुकुल से विदाई लेने तथा गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का उपक्रम है। वेद-पुराणों एवं विभिन्न विषयों में पारंगत होने के बाद ब्रह्मचारी के समावर्तन संस्कार के पूर्व बालों की सफाई की जाती थी तथा उसे स्नान कराकर स्नातक की उपाधि दी जाती थी। केशान्त संस्कार शुभ मुहूर्त में किया जाता था।
  16. समावर्तन : गुरुकुल से विदाई लेने से पूर्व शिष्य का समावर्तन संस्कार होता था। इस संस्कार से पूर्व ब्रह्मचारी का केशान्त संस्कार होता था और फिर उसे स्नान कराया जाता था। यह स्नान समावर्तन संस्कार के तहत होता था। इसमें सुगन्धित पदार्थो एवं औषधादि युक्त जल से भरे हुए वेदी के उत्तर भाग में आठ घड़ों के जल से स्नान करने का विधान है। यह स्नान विशेष मंत्रोच्चारण के साथ होता था। इसके बाद ब्रह्मचारी मेखला व दण्ड को छोड़ देता था जिसे यज्ञोपवीत के समय धारण कराया जाता था। इस संस्कार के बाद उसे विद्या स्नातक की उपाधि आचार्य देते थे। इस उपाधि से वह सगर्व गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने का अधिकारी समझा जाता था। सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करता था तथा आचार्यों एवं गुरुजनों से आशीर्वाद ग्रहण कर अपने घर के लिये विदा होता था।
  17. विवाह : प्राचीन काल से ही स्त्री और पुरुष दोनों के लिए यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक ब्रह्मचर्य व्रत के पालन का हमारे शास्त्रों में विधान है। वेदाध्ययन के बाद जब युवक में सामाजिक परम्परा निर्वाह करने की क्षमता व परिपक्वता आ जाती थी तो उसे गार्हस्थ्य धर्म में प्रवेश कराया जाता था। लगभग पच्चीस वर्ष तक ब्रह्मचर्य का व्रत का पालन करने के बाद युवक परिणय सूत्र में बंधता था। हमारे शास्त्रों में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है- ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गंधर्व, राक्षस एवं पैशाच। वैदिक काल में ये सभी प्रथाएं प्रचलित थीं। समय के अनुसार इनका स्वरूप बदलता गया। वैदिक काल से पूर्व जब हमारा समाज संगठित नहीं था तो उस समय उच्छृंखल यौनाचार था। हमारे मनीषियों ने इस उच्छृंखलता को समाप्त करने के लिये विवाह संस्कार की स्थापना करके समाज को संगठित एवं नियमबद्ध करने का प्रयास किया। आज उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि हमारा समाज सभ्य और सुसंस्कृत है।
  18. अन्त्येष्टि : अंत्येष्टि को अंतिम अथवा अग्नि परिग्रह संस्कार भी कहा जाता है। आत्मा में अग्नि का आधान करना ही अग्नि परिग्रह है। धर्म शास्त्रों की मान्यता है कि मृत शरीर की विधिवत क्रिया करने से जीव की अतृप्त वासनायें शान्त हो जाती हैं। हमारे शास्त्रों में बहुत ही सहज ढंग से इहलोक और परलोक की परिकल्पना की गयी है। जब तक जीव शरीर धारण कर इहलोक में निवास करता है तो वह विभिन्न कर्मो से बंधा रहता है। प्राण छूटने पर वह इस लोक को छोड़ देता है। उसके बाद की परिकल्पना में विभिन्न लोकों के अलावा मोक्ष या निर्वाण है। मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार फल भोगता है। इसी परिकल्पना के तहत मृत देह की विधिवत क्रिया होती है।


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पैमानों पर तो चिट्ठाजगत ही आगें, सचाई भी यही है?



आज एक और ऐसी साइट मिली जो साईट/ब्‍लाग की लोकप्रियता बताती है। इन आकडों को देखने पर लग रहा है कि चिट्ठाजगत ही सर्वश्रेष्‍ठ है किन्‍तु मैने कई ब्‍लागों के आकड़ों का निरीक्षण किया तो देखता हूँ कि पाठक भेजने के मामले में यह बहुत पीछे है। वास्‍तव में जो पाठकों को ब्‍लाग पर भेजें वह सर्वश्रेष्‍ठ होगा या जो अपनी भीड़ बढ़ाये वो सर्वश्रेष्‍ठ है? वास्‍तव में अब ब्‍लाग लेखक ही तय करेंगें कि सर्वश्रेष्‍ठ कौन है ? पाठक भेजने वाला या खुद की भीड़ बटोरने वाला!

मेरे किसी भी ब्‍लाग पर चिट्ठाजगत प्रथम तीन स्‍थान पर नही है। और भी कुछ ब्‍लागों को देखत हूँ तो वहॉं भी ऐसी कोई स्थिति स्‍पष्‍ट नही है जो चिट्ठाजगत को नम्‍बर एक घोषित करता हों।





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निराला जो "निराला" ही रहा



 

सूर्य कान्‍त्र त्रिपाठी निराला हिन्‍दी छाया काव्‍य के एक दिदिप्‍तमान स्‍तम्‍भों में से एक थें। इनका जन्‍म 21 फरवरी 1898 ई0 को मेदिनीपुर पश्चिम बंगाल में हुआ था। इनके पिता का नाम राय सहाय तिवारी स्‍थानीय रियासत में कर्मचारी थे। प्रारम्‍भ में निराला का नाम सूर्ज कुमार तेवारी था। (चूकिं बंगाल में सूर्य को सूर्ज कहा जाता था इसलिये इनका नाम सूर्ज पड़ा) इनकी प्रारम्‍भिक शिक्षा-दीक्षा बंगाली में ही होती है। सूर्ज कुमार के 14 वर्ष के होने के बाद इनका विवाह 11 वर्षीय मनोहरा देवी के साथ हो जाता है। शादी के 6 साल बाद ही इनकी पत्‍नी का देहान्‍त हो जाता है और कुछ दिनों के बाद माता-पिता-भाई आदि भी स्‍वर्ग सिधार जाते है। अपनी दो संतानों स‍हित भतीजे और भतीजी का पालन पोषण का जिम्‍मा इन पर आ जाता है। रोटी के तलाश मे ये कलकत्‍ता पहुँच कर पिता के स्‍थान पर नौकरी कर लेते है। किन्‍तु सूर्ज कुमार को कुछ और ही मंजूर था इस प्रकार जहाँ चाह वहॉं राह की उक्ति की सार्थकता सिद्ध करते हुऐ इन्‍होने मैट्रिक हासिल करने के बाद स्‍वाध्‍ययन के द्वारा बंगाली और दर्शनशास्‍त्र की शिक्षा ग्रहण की और बाद में स्‍वामी विवेकानंद और रामकृष्‍ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर रामकृष्‍ण मिशन के लिये कार्य करने लगें। सूर्ज कुमार में प्रतिभा की कोई कमी नही थी, मात्र 17 वर्ष की आयु में उन्‍होने पहली कविता लिखी और लेखन कार्य को सम्‍पादित करते हुऐ महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के सम्‍पर्क में आ गये। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी के बारे विख्‍यात था कि वे हर किसी की रचना को सरस्‍वती में जगह नही देतें थे, और सरस्‍वती से जोड़ने की बात तो दूर थी किन्‍तु द्विवेदी जी ने इन्‍हे सरस्‍वती के प्रकाशन कार्य में भी सम्मिलित किया। इस प्रकार सरस्‍वती के कार्य को देखते हुऐ सूर्ज कुमार का पूरा जीवन साहित्‍य साधना में लग गया।
साहित्‍य से लगाव के कारण इन्‍हे अपना नाम काव्‍य परिपाटी के अनुरूप नही लगा तो इन्‍होने ने अपना नाम सूर्ज कुमार तेवारी से बदल कर सूर्य कान्‍त त्रिपाठी कर लिया, और निराला उपाख्‍य के साथ साहित्‍य सृजन करने लगें। यह कहना गलत न होगा कि स्‍वाभिमान का दूसरा नाम निराला है। निराला का जो भी अतीत था निश्चित रूप से संघर्षमय था। बाल्यकाल से लेकर काव्य जीवन के अन्तिम पड़ाव के तक संघर्ष ही किया। जीवन के प्रारम्भिक 8 साल कलकत्‍ता और फिर 14 साल तक लखनऊ में रहकर गंगा पुस्तक माला और सुधा प्रकाशन में काम करने लगे। फिर आगे के सफर में इन्‍हे जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत की मित्रता प्राप्त होती है और सबसे बड़ी बात यह कि एक बहुत बड़ा पाठक वर्ग मिला जो निराला के लिये संजीवनी का काम किया। निराला छायावाद के महत्वपूर्ण स्तम्भ कहे जाते थे। इन्‍होने अनामिका, परिमल, अप्सरा, अलका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता अपरा, आराधना तथा नये पत्ते आदि की रचना भी की।
निराला के जीवन के कुछ अमूल्य प्रसंग भी याद आ जाते है। एक बार निराला जी काफी ठंड में एक शाल ओढ़कर चले जा रहे थे कि उन्होंने देखा कि एक भिखारी काँप रहा था। और वो अपने वो शॉल उस भिखारी को देकर आगे बढ जाते है। वह शॉल उनके लिये कोई मामूली शॉल नही थी वह शॉल वेशकिमती शॉल उन्‍हे एक सम्‍मान समारोह में मिली थी वरन निराला के वश में कहॉं था इतनी महँगी शॉल को खरीदना। दूसरी घटना वो याद आती है‍ कि जब पंडि़त नेहरू इलाहाबाद के प्रवास पर थे, और वे निराला से मिलने की इच्‍छा प्रकट करते है। एक वाहक निराला के पास संदेश लेकर आता है कि पंडि़त नेहरू ने आपसे मिलने की इच्‍छा प्रकट की है। किन्‍तु अपनी बात कह लेने के बाद वह संदेश वाहक निराला का उत्‍तर पाकर ठगा सा रह गया। निरला का उत्‍तर था कि पंडि़त जी को मिलने से मना किसने किया है। वाहक को लगा था कि निराला पं‍डित जी का नाम सुन कर दौड़ पड़ेगें किन्‍तु निराला कि फितरत में यह न था। पं नेहरू भी एक समझदार व्‍यक्ति थे और निराला का उत्‍तर सुन कर वे स्‍वयं उनसे मिलने आते है। यह गलत न होगा कि निराला का जीवन सदा निराला ही था।


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राजा-रंक ब्‍लागर मीट



एक दिन रामचन्द्र मिश्र जी से जीटॉक यका यक बात हुई। और फोन नंबरों का आदान प्रदान हुआ। चैट के दौरान मैने सर्वप्रथम उन्हें अपने घर पर आने के निमंत्रित किया। और उन्होंने आने का भी वादा भी किया किन्तु अभी तक वो वादा पूरा नहीं किया। फिर अचानक एक दिन उनका फोन आता है कि अगर आज शाम खाली हो तो 5:30 बजे मेरे घर पर आ जाओ यही हो जाती है ब्लॉगर मीट। मैंने भी हॉं कर दिया और समय अनुसार तैयार भी हो गया था कि मेरे सामने सबसे बड़ी समस्या थी अदिति। क्योकि जहाँ भी जाओं उसे लिये बिना जा पाना संभव नही होता है। उसे भी सभी के बाहर जाने का पूरा एहसास हो जाता है। जैसे ही मै कपड़े बदल रहा था कि उसने अपना मंत्र जपना चालू कर दिया कि ‘चाचा जाई’। फिर क्‍या था वह सामने से हटने को तैयार नहीं हो रही थी और मे उसकी नज़र बचा कर भी नहीं निकल पा रहा था तभी राम चंद्र जी का फोन आता है कि अरे प्रमेन्द्र तुम अभी तक आये नहीं मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूँ। मै अपनी समस्‍या बताई तो उन्‍होने कहा कि समस्‍या को यही ले आओं। तो फिर क्‍या था फिर अदिति भी मेरे साथ हो ली। जहॉं मुझे जाना था सायकिल से वहॉं मिल गई मोटर सायकिल।


रामचंद्र जी के यहाँ पहुँचने पर काफी जोरदार स्वागत हुआ। काफी चर्चा हुई। नाश्ता भी किया गया। चर्चाओं का दौर खत्म होने का नाम ही नही ले रहा था। अदिति भी हमारे था मीट में मस्‍त थी। और इस मीट का अभिन्‍न अंग भी बनी। बाद मे रामचंद्र जी ने फोटो भी खींचा जो उन्हीं के पास है। हम भी प्रतीक जी से ज्यादा फटीचर निकले जो उनसे पहले बिन कैमरे के मीट कर ली और रिपोर्ट आज पेश कर रहा हूँ। फिर हम लोग कुछ देर तक कंप्यूटर पर बैठना हुआ और उनका ब्रॉडबैंड कनेक्‍शन भी काम करना बंद कर दिया मैने उन्हें उसके काम न करने का कारण भी बताया कि जहाँ मै बैठता हूँ वहाँ का कनेक्शन खराब हो जाता है, देखिए कि मेरे आने के बाद उनका कनेक्‍श भी ठीक काम करने लगा। और इस प्रकार शाम 6:30 पर शुरू हुई ब्लॉगर मीट 9 बजे समाप्त हो गई।


आगे ..... की कड़ी का इंतजार कीजिए। क्योंकि इलाहाबाद के ब्‍लागर आलसी हो गये है। न रामचन्‍द्र जी ने, न ज्ञान जी ने और न ही संतोष जी से अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत किया। जबकि उनसे पास चित्र भी है। चूंकि हमारा कैमरा एक बार में 150 रुपये की बैटरी खा जाता है इस लिये हम फोटो नहीं दे पा रहे है। तो प्रतीक जी जैसा हमें भी समझ लीजिए।


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``फलाने´´ की दीवानगी और वो जल कर मर गई




आपने अक्सर देखा, सुना, पढ़ा होगा कि अमुक व्यक्ति या दो प्रेमी-प्रेमिका ने आत्म हत्या कर लिया, जल गये, जला दिया गया, नदी में कूद गये। ऐसे तमाम किस्से आपने सुने भी होंगे। इन सबसे अलग जो धीरूभाई अंबानी की तर्ज पर काम करता था-बड़ा सोचो, तेज सोचो, आगे सोचो। सो उसने इस बात पर अमल करते हुए प्रेम बाजार में उतर आया और उसका कारोबार चौपट हो गया। हुआ यूं कि फैशन परस्त और बंबईया स्टाइल में जिंदगी गुजारने वाला ऐसा शख्स जिसने छोटी सी उम्र में अंधेर नगरी गया था। पिता ने पहले वहां जाकर एक सैलून की दुकान खोली थी तो फिर इसको भी बुला लिया। अंधेर नगरी पहुंचने के बाद वहां की चकाचौंध देख भौचक रह गया। उसने भी उसी रंग में अपने को रंगना चाहा और उस ठाट को पाने के लिए हाथ-पांव मारने लगा। जल्दी ही उसने राम लाल से टैक्सी ड्राइव करना सीख लिया और विशाल सागर से सटे नगर जुहू का चक्कर काटने लगा। फिल्मों की शूटिंग देखने के लिए वह अपनी टैक्सी को एक किनारे खड़ी कहीं भी हो रही हो जाया करता था। फिर हो जाता था इंतजार करने के लिए शुरू। उसकी दीवानगी इस कदर बढ़ती चली गई कि उसको न चाहते हुए भी पिता ने उसकी शादी कर दी। उसे इसका सुरूर शादी के बाद भी छाया रहा और कई बार उससे मिलने की कोशिश की परन्तु असफल रहा। दीवाने ने घर की दीवार पोस्टरों से पाट दी। अब शुरू हुआ सौतेली बहनों का कहर। चूंकि मुबंई की रहने वाली के पोस्टरों ने उसके घर के झगड़े का अहम कारण रहा।


उक्त घटना कोई कहानी नहीं है जानकारी के अनुसार इलाहाबाद जिले के हंडिया तहसील, थाना क्षेत्र स्थित तारा चंदूपुर गांव में कमलेश कुमार शर्मा अपने परिवार के साथ रहता था। 11 अगस्त की रात घर से तेज धुंआ देख ग्रामीण महिलाएं दंग रह गयी। घर के बाहर सो रहे कमलेश शर्मा का मुंह कलेजा को आ गया। उसी के कमरे से तेज आग की लपटें आ रही थी। तत्पश्चात उसने देखा कि मेरी पत्नी तीन बच्चों सहित जल रही है। यह सब कुछ मात्र उसकी रोज-रोज के झगड़े जो मात्र कमलेश के दिल की चाहत प्रियंका चोपड़ा थी, उसने उसका घर उजाड़ दिया।


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आज छुट्टी पर हूँ



आप सभी को स्‍वतन्‍त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाऐं। आज बहुत थक गया हूँ, स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रमों में भाग लेकर के तथा मित्र के यहॉं रामचरित मानस के पाठ के बाद भंडारा खा करकें।

आज सर्वजनिक अवकाश का लाभ लेते हुऐ मै भी नई पोस्‍ट नही लिख रहा हूँ। कल फिर मिलेगें---


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धूम्रपान के शौकीनों की संख्या में इजाफा



धूम्रपान के शौकीनों की संख्या में दिनों-दिन हो रहे इजाफा आज चिंता का विषय बना हुआ हैं इसकी वजह यह है कि आए दिन जनकर्ता व धूम्रपान पर अंकुश लगाने वाले लोग अपने आप को ही नशे की लत से रोक नहीं पा रहे है। कारण यह है कि आज कल छोटी सी उम्र में ही लोग नशे के शौकीन होते जा रहे है। जब ये लोग बड़े होते है तो इनकी लत में और भी इजाफा होता जाता है और ये एक दिन बहुत बड़े नशेड़ी के रूप में जाने जाते है। अब तो धूम्रपान निषेध दिवस भी मनाया जाने लगा है। लेकिन दिवस की सबसे बड़ी विसंगति यह है कि लोग अयोजनों में धूम्रपान के खिलाफ आवाज जरूर उठाते है लेकिन आयोजन के बाद स्वयं धूम्रपान करने से अपने आप को रोक नहीं पाते है। इनकी संख्या बढ़ रही है। आज इसलिए तमाम प्रकार के रोग भी बढ़ रहे हैं। 15 वर्ष के कम आयु के बच्चों में भी आज कल कैंसर का रोग देखा जाने लगा हैं। भारत में लगभग 33 करोड़ से अधिक लोग तम्बाकू का सेवल करते हैं 55 प्रतिशत लोग सिगरेट में तम्बाकू का सेवन करते हैं। 1 करोड़ से अधिक लोग इस समय सिगरेट का सेवन कर रहे हैं।
धूम्रपान

छले कई वर्षो से धूम्रपान निषेध दिवस का आयोजन करने वालों की संख्या में कमी आने के बारे में लोग कह रहे हैं लेकिन यह बात सरासर गतल है क्योंकि आज की छोटी जनरेशन के लोग ज्यादा मात्रा में शराब नशे के आदी हो रहे है। अब तो सार्वजनिक स्थलों पर भी इस प्रकार के दृष्य दिखाई देते है। सरकार तो इस प्रकार के कारनामों पर हमेशा से रोक लगाती चली आ रही है लेकिन इसको मानने वाला ही काई नहीं हैं।

आज तम्बाकू उत्पादन में भारत में विश्व का तीसरा स्थान हैं। यहां प्रतिवर्ष 60 करोड़ किलोग्राम तम्बाकू पैदा होती है। इसकी बिक्री से सरकार को करोड़ों रूपये का राजस्व प्राप्त होता हैं जिससे सरकार की आमदनी तो बनी रहती हैं लेकिन लोगों पर इसका क्या असर पड़ेगा इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं हैं। अमेरिका में हुई खोज के अनुसार गर्भावस्था के तीन महीने से धूम्रपान करने वाली महिलाओं एवं बच्चों की आंखों में भेंगापन होने की संभावना रहती है। जो बच्चे घातक रोग के शिकार हो जाते है उनका तो उनके परिजन इजाल में काफी पैसा जला देते है। तब भी वे पूर्ण रूप से ठीक नहीं होते। आजकल तो डाक्टर जैसे लोग भी बुरी नशे के शिकार होते जा रहे हैं बहुत से ऐसे डाक्टर देखे गये है जो स्मोकिंग करना पसंद करते हैं। फिलहाल जो भी हो अब तो इस प्रकार की समस्या से लोगों को मुक्त कराने के लिए सरकार और देश की जनता दोनों को प्रयास करना होगा। तभी इस धूम्रपान जैसी समस्या से छुटकारा मिल सकता है।
लेखक ---- रजनीश चौधरी


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सबसे आगें है नारद,




जुलाई माह में मेरे महाशक्ति ब्‍लाग पर आने वालों मे जो जहॉं से जैसे आये उसका हिसाब निम्‍न है-
नारद से 167,
ब्‍लागवाणी से 49,
हिन्‍दी ब्‍लाग्स से 27,
ब्‍लगार से 24,
चिट्ठाजगत 23,
मेरे कवि मित्र से 9,
पंगेबाज से 5,
हिन्‍दी ब्‍लाग ब्‍लाग पाडकास्‍ट से 3,
तथा अन्‍य स्‍तोतों से 124
सर्च इन्‍जनों से 36 पाठक आये आये

कुल 506 यूनीक पाठकों का आवागमन हुआ।

पेज व्यू के हिसाब से 8 जुलाई 168 पाठक, विजिटर के हिसाब से 19 जुलाई 109 पाठक, तथा न्‍यू विजिटर के हिसाब से से 8-19 जुलाई सर्वश्रेष्‍ठ था इस दिन 47 पाठक रहें।


खाका
मेरें ब्‍लाग पर नारद प्रथम, द्वितीय स्‍थान पर ब्‍लागवाणी, तृतीय पर हिन्‍दी ब्‍लाग्‍स रहे।



विजेता कप


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हँसना जरूरी है - आखिर क्‍यों ?



1
रीना (राकेश से)- मैंने सुना है कि एक आदमी ने महज एक साइकिल के लिए अपनी पत्नी को मायके भेज दिया। तुम तो ऐसे नहीं हो न?
राकेश (रीना से)- नहीं डार्लिंग, हरगिज़ नहीं। मैं इतना गिरा हुआ नहीं हूं। मैं तो कार से कम पर मानूंगा ही नहीं।

2
पत्नी (पति से)- अब उठो भी, सुबह के सात बज गए और अभी तुम बेड पर पड़े-पड़े जम्हाइयां ही ले रहे हो।
पति (पत्नी से)- अरी भागवान, जम्हाइयां ही तो हम पतियों को मुंह खोलने का एक मौका देती हैं। तुम उस पर भी रोक लगा देना चाहती हो।

3
रीना (राकेश से)- मैं मायके जा रही हूं, तुम्हें तलाक की नोटिस भेज दूंगी।
राकेश (रीना से)- जाओ, जाओ मैं सब समझता हूं मीठी-मीठी बातें करके मुझे खुश करने की कोशिश मत करो।

4
पत्नी (पति से)- क्लब में आज एक दिलचस्प पार्टी है, जिसमें सदस्यों से कहा गया है कि घर से एक फालतू चीज लेकर आएं।
पति (पत्नी से)- तो तुम क्या ले जा रही हो?
पत्‍‌नी (पति से)- मुझे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है, लेकिन आप चल रहे हैं न!

5
पत्नी (पति से)- क्यों जी जब भी मैं आपके पास आती हूं तो आप चश्मा पहन लेते हो?
पति (पत्नी से)- डॉक्टर ने कहा है जब सिर दर्द आए तो चश्मा पहन लेना।

6
पत्नी (पति से)- बाहर निकलो, पलंग के नीचे जाकर क्यों छुप गए हो। डरपोक कहीं के। जल्दी बाहर निकलो नहीं तो सर फोड़ दूंगी।
पति (पत्नी से)- क्यों बाहर निकलूं? मेरा घर है मेरी जहां मर्जी आएगी वहां रहूंगा। तुम्हारे बाप का क्या जाता है।

7
दो दोस्त अपनी-अपनी पत्नियों के स्वभाव का रोना रो रहे थे।
पहले दोस्त ने कहा- मेरी पत्नी इतनी झगड़ालू है कि झगड़ा होते ही अपने मायके चली जाती है।
दूसरे दोस्त ने कहा- बड़े खुशनसीब हो यार, मेरी पत्नी इतनी निदर्यी है कि जब वह झगड़ा करती है तो अपने मायके वालों को यहां बुला लेती है।

8
पत्नी (पति से)- सुनो जी, जरा ये रेडियो और पंखा भीतर रख दो। मेरी सहेली आने वाली है।
पति (पत्नी से)- क्यों तुम्हारी सहेली तुम्हारा सामान चुरा ले जाएगी क्या?
पत्नी (पति से)- नहीं दरअसल वह अपना सामान पहचान लेगी।

9
पति (पत्नी से)- मेरे मरने के बाद तुम अपनी सहेलियों को बुलाना मत भूलना।
पत्नी (पति से)- ऐसा क्यों बोल रहे हो?
पति (पत्नी से)- मैंने देखा है कि लोग मुर्दे से लिपट-लिपट कर रोते हैं।

10
पत्नी (पति से)- अजी सुनते हो, कल मेरी मम्मी आ रही हैं।
पति (पत्नी से)- क्या तुम्हारे पापा भी उनके साथ आ रहे हैं।
पत्नी (पति से)- नहीं, पर ये आप क्यों पूछ रहे हो?
पति (पत्नी से)- इसलिए कि चूल्हे-चौके में मेरी मदद हो जाती।


उपरोक्‍त चुटकलों से क्या शिक्षा मिलती है-1. दुनिया का सबसे शक्तिशाली प्राणी महिला है।
2. बीवी और टीवी में कोई अन्‍तर नही है दोनों चार्ज होने पर चलती है।
3. दुनिया का सबसे दब्‍बू व्‍यक्ति पति नाम का प्राणी होता है।
4. पति अपनी बीवी से पीछा छुटाना चाहता है किन्‍तु पड़ोस की फला कि बीवी बड़ी अच्‍छी लगती है।
5. पति शादी के बाद एवन क्‍लास का नौकर होता है जो 24 घन्‍टे ड्यूटी पर होता है।
6. पति एक ऐसा प्राणी है जो पत्नी से बच कर ही अपनी मर्दानगी दिखाता है।
7. बीवी एक प्रकार का सिर दर्द होती है, और मायके जाना उस सिर दर्द की दवा।
8. हर चुटकुले में हमेशा बीवी के मॉ-बाप आते है।
9. पति एक फलतू चीज होता है।
10. हर चुटकुले में पति एक पौरूष हीन प्राणी होता है शायद इसी लिये किसी चुटकुले में बच्‍चे नही है।



उक्‍त फोटों शायद यही कहती होगी ?
तुम लाख शिक्षा दो पर हम खुश है, कम से कम अपनी संतानों पर तो निर्भर नही है । सही हम लाख झगड़ते है किन्‍तु वह हमारी मजबूरी है। इस दुनिया में समय बिताने के लिये भी कुछ करना चाहिये। वैसे तुमने बाते सही और मजाकिया लिखी है फिर लिखना।
वैसे हँसना मत भूलिऐगा :)


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नये ब्‍लाग - नये ब्‍लागर



  1. मीडिया व्यूह : नीशू तिवारी
  2. आशुतॊष मासूम : आशुतोष
  3. कालचक्र : महेन्‍द्र मिश्र
ये कुछ नये ब्‍लाग और ब्‍लागर है जिन्‍होने ने अभी अभी अपना ब्‍लाग शुरू किया है आप इनका स्‍वागत और उत्‍साहवर्धन करें।
विभिन्‍न एग्रीगेटर जो इसे अपने यहॉं जगह दे सकते है देने का कष्‍ट करें या मार्गदर्शन करने करें। कि वे इन पर कैसे स्‍थान पर सकते है।


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संघकिरण घर घर देने को



संघकिरण घर घर देने को, अगणित नंदा दीप जले,
मौन तपस्वी साधक बनकर, हिमगिरी से चुपचाप गले ॥ध्रु.॥
नई चेतना का स्वर देकर, जन मानस को नया मोड दे
साहस शौर्य ह्रदय में भरकर नई शक्ति का नया छोर दे
संघशक्ति के महाघोष से, असुरों का संसार दले ॥१॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....
 
परहित का आदर्श धारकर, पर पीड़ा को ह्रदय हार दे
निश्चल निर्मल मनसे सबको ममता का अक्षय दुलार दे
निशा निराशा के सागर में, बन आशा के कमल खिले ॥२॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....

जन-मन-भावुक भाव भक्ती दे, परंपरा का मान यहाँ
भारत माँ के पदकमलों का गाते गौरव गान यहाँ
सबके सुख दुख में समरस हो, संघ मंत्र के भाव पलें ॥३॥
मौन तपस्वी साधक बनकर....


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प्रेरक प्रसंग- ला और लीजिए



एक सेठ कुऍं में गिर पड़ा। गड्डा बहुत गहरा नहीं था। सो निकलने के लिये चिल्‍लाने लगें। एक किसान ने सुना तो पहुँचा और बोला- ला! अपना हाथ उसके रस्‍सी बाँध कर ऊपर खीच लेंगे। सेठ जी हाथ ऊपर करने को और किसी फन्‍दे में फसने को तैयार नही हो रहे थे।
झंझट देखकर एक अन्‍य समझदार किसान आदमी वहॉं पहुँच गया और हुज्‍जत को समझ गया। उसने कहा- ‘’सेठ जी रस्‍सी पकड़ लीजिए और इसे सहारे आप ऊपर आ जायेगें।‘’ 
सेठ जी ने बात मान ली और बाहर निकल आये। पहली बार किसान कह रहा था कि ला हाथ और दूसरे ने कहा कि रस्‍सी पकड़ लिजिए। दोनों की कहना एक था किन्‍तु भाव अलग अलग थे।
इससे हमें यह शिक्षा मिलती है परोपकार भी मृदुभाव से किया जाना चाहिऐ तभी फलित होता है।


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गज़ल



तुम्हारे दिल में मेरा प्यार कितना रहता है,
बताऊं कैसे कि इकरार कितना रहता है।
समन्दर हूँ लेकिन, गोते लगाने से पेश्तर,
हमारे प्यार का एहसास कितना रहता है।
न चाहते हुए भी सब्ज़ बाग में मैंने,
तेरे किरदार से तकरार किया है मैंने।
दिल के टुकड़े को एक जरीना ने देखो,
मरते दम तक दिखाया कि प्यार रहता है।


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हाल ए शहर इलाहाबाद




प्रयाग की पावन धरती महर्षियों, विद्वानों, प्रख्यात साहित्यकारों, कुशल राजनीतिज्ञों की भूमि रही है। परन्तु वर्तमान समय में इसकी भरपाई नही हो पा रही कि हम अपने शहर को उसकी खोयी हुयी प्रतिष्ठा लौटा पायें, चूंकि इसके लिए प्रयास किया जा रहा है, जिसमें हम कुछ क्षेत्रों में सफल भी हुए है। परन्तु जिस प्रतिष्ठा का हमें इंतजार है वह है भारत के मानचित्र में इलाहाबाद शहर का नाम प्रत्येक क्षेत्र में हो। शिक्षा, विज्ञान, साहित्य, खेल के साथ ही उन सभी क्षेत्रों में हमको विकास करना होगा जिसकी आवश्यकता हमें महसूस हो रही है।
यदि वर्तमान शिक्षा पद्धति और इसमें सफलता की बात करे तो वह अभी भी निराशा पूर्ण है। इसका उदाहरण है वर्ष 2006 की सभी बोर्ड के हाई स्कूल और इंटरमीडिएट में सफल छात्र-छात्राओं की । यह बात गौरतलब है कि अच्छे अंक के साथ उत्तीर्ण तो हुए लेकिन यूपी बोर्ड के छात्र-छात्रा ने मेरिट सूची मे शहर का नाम रोशन नही किया। इसे हम क्या कहें शहर का र्दुभाग्‍य या और कुछ? वहीं कानपुर के एक कालेज से कितने छात्र-छात्राओं ने मेरिट सूची में अपने नाम के साथ शहर का नाम जोड़ दिया। जो गौरर्वान्वित करने वाली बात है।
शिक्षा के साथ संस्कृति का भी बहुत गहरा सम्‍बन्‍ध रहा है। परन्तु क्या हमारी संस्कृति `संस्कृति´ रह गयी हैं? आदि काल से हमारी संस्कृति एशिया के साथ ही अन्य देशों को संस्कार प्रदान करती रही है। जिसमें प्रयाग की महत्चपूर्ण भूमिका रही है। परन्तु इस हाईटेक जमाने में हमारे विचार उलट गये है। अर्थात संस्कार देने के स्थान पर गृहण कर रहे है। जो मनोंरजन के साèानो और अन्य देशों की परम्परा के अनुसार कर रहें है। जो हमारे देश की परम्परा और स्वयं के अनुकूल नही है। शहर के कई स्थानों पर बदली हुयी संस्कृति के लोग से आप परिचित हो सकते है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आधुनिक संस्कृति के साथ पुरानी को भूलते जा रहें है। आज के युवा-युवतियां जो अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं उनमें शहर के भी शामिल हैं। इसमें केवल उनका दोष नही बल्कि अभिभावकों और माता-पिता का भी है। जरूरत बदलाव की है परन्तु, भुलाकर बदलना उचित नही होगा।
हाल शहर के शांति व्यवस्था की है जो चौपट होती जा रही है अनेक जख्म दिये जा रहे है। बढ़ते अपराधियों- छिनैती, चोरी, डकैती, हत्या, लूट के साथ ही शहर अपराधियों के चंगुल में फंस गया है जो अन्य शहरों की अपेक्षा अधिक है। दिन-प्रतिदिन यह घटनाएं आम होती जा रही है। इसके पीछे भी हाईटेक जमाने का हाथ है जो महंगे शौक को पूरा करने के लिए कुछ लोग ऐसी दुष्कृति कर खुद को सुखद महसूस कर रहे है। पर क्या किसी को कष्ट देकर कितना सुख हासिल किया जा सकता हैं? शहर की सुरक्षा के जिम्मेदार व्यक्ति भी अब सुरक्षित नहीं हैं ऐसे में शहर की सुरक्षा क्या होगी? तत्काल की कुछ घटनाएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। नगर के प्रमुख स्थानों पर जहां हमारी सुरक्षा की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, अक्सर वहां ऐसी घटनाएं होती है।
साहित्य समाज का दर्पण होता है। वह सामाजिक सरोकारो को पाठकों के बीच पहुंचाता है और सिखाता भी है। हमारे शहर में साहित्यकारों की कमी नहीं है, कमी है तो सिर्फ उनके लिखे गये मनोभावों को लोगों को पढ़ने की, चूंकि बदलते दौर में लोग अपना रिश्ता किताबों से कम कर दिया है। ऐसी क्या कमी है कि हम अपने पाठकों को उनकी रूचि के अनुसार पुस्तकें प्रदान नहीं कर पा रहें है? कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद आज भी प्रासंगिक है, उनके उपन्यास, कहानियां सब कुछ आज के दौर से मेल खा रही हैं जब कि आजाद भारत से पूर्व ही लिखा गया था। फिर आज के साहित्यकारों में ऐसी कौन सी कमी है कि वह मुंशी प्रेमचंद के जैसे उपन्यास, कहानी, निबंध या नाटक नहीं लिख सकते? यदि समाज को विकसित करना है तो हमे `दूर की सोच´ कर साहित्य लिखना होगा। साथ ही साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार दिला के शहर को गौरवान्वित करना होगा।
कहा जाता है कि शिक्षा के साथ यदि खेल न हो तो शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है इसलिए खेल का होना जरूरी है। परन्तु ऐसे खेल जिसमें हम पारंगत होकर विश्व कीर्तिमान स्थापित कर सके। पिछले वर्ष हुए एथेंस ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे निशानेबाज खिलाड़ी ने अपने देश का गौरव बढ़ाया वरना विश्व मे दूसरी आबादी वाले देश का क्या हाल होता? जब हमसे छोटे देश फेहरिस्त में आते तो उनके सामने हम बौने नजर आते। यदि शहर की बात करे तो क्रिकेट में मोहम्मद कैफ के अलावा कोई भी खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शहर का नाम विख्यात नही किया। फिर अब वर्ल्ड कप में शामिल न होना कैफ का दुर्भाग्य कहें या कुछ और ?

कुल मिलाकर समाज में बढ़ते आधुनिकता के दौर में हम अपने आप को संयमित नही कर पा रहे है। तथा पूरे समीकरण में सामन्जस्य बिठाना अब हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा है। अब सभी क्षेत्रों में अर्थात खेल हो या अन्य क्षेत्र सभी में राजनीति का दखल होने लगा है। जिससे प्रतिभा की प्रतिष्ठा दांव पर लग रही है। अब तो विशेष आयोजनों के लिए भी विभाग को चंदा की जरूरत पड़ती है।
पिछले महीने समाप्त हुए अर्द्धकुंभ में हमारी संस्कृति के दर्शन के लिए करीब बीस हजार से ऊपर विदेशी सैलानी आये थे। यदि फायदे की बात की जाए तो जिस तरह से हमारी संस्कृति में रची बसी दुनिया उनको भा रही है और इससे प्रभावित हो रहे है। तो आने वाले कुंभ में यह हमें आर्थिक रूप से काफी मजबूत कर सकता है क्योंकि पर्यटन क्षेत्र को बढ़ावा देकर इसके विकास के लिए कदम उठाये जा सकते है।
विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में हमारा शहर कुछ हद तक अपनी विकास गति को बढ़ाया है। और इसमें सुधार हो रहा है। इस प्रकार यदि हम शहर के विकास की बात करें तो हमें हर क्षेत्र के प्रत्येक पहलुओं पर बारीकी से अध्ययन करने के उपरान्त ही उचित कदम उठाकर विकास किया जा सकता है। वरना इस प्रयाग की गौरवमयी संस्कृति को नष्ट होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।


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बदनसीबी को कौन टाल सकता है ?



हमारे महापुरुष इतना लिख गये है कि अगर इससे हम सीख लेना चाहे तो काफी कुछ सीखा जा सकता है कि किसी व्यक्ति को ठोकर खाकर सीखने की जरूरत नहीं पड़ेगी किन्तु अगर कोई इंसान ठोकर खाकर भी न सीखे तो उससे बदनसीब कोई न होगा।
आज हृदय में यह भाव अनायास नहीं निकल रहा है, जब कभी दिल काफी भारी होता है तो यह सोचना भी मजबूरी हो जाती है। कभी कभी लोगों के र्निद्देश्‍य प्रलापो को देख कर लगता है मन यही कहता है कि हे भगवान तू इतना निष्ठुर कैसे हो सकता है कि इस दुनिया को इतने सारे रंग कैसे हो जाते है ?
कभी कभी हम किसी को कितनी भी ज्ञान की बात क्यों न बताएं, किंतु वह सुन कर भी अनसुनी कर देता है। हमें लगता है कि मैंने अपने जीवन में जितनी भी अच्छी बात सीखी है वह बता दिया किंतु सामने वाला आपको इस दृष्टि से देखे कि बोल ले बेटा बोल ले ‘कुत्‍ता भी भौंक कर शांत हो जाता है तू भी हो जायेगा’। निश्चित रूप से ऐसे लोग कभी भी जीवन में सफल नहीं हो पाते है जो दूसरों के भावों को नही समझते है और अपने को तो अंधकार में ले ही जाते है साथ में कुछ अबोध उनके साथ होते है। वे उनको भी अपनी गति पर ले जाते है।


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गहरेबाजी शुरू, देखने वालों का लगा तांता



इलाहाबाद में सावन का महीना शुरू होते ही हर सोमवार को शुरू हो जाता है घोड़ों के चाल का हुनर। जिसमें शहर के नामचीन घोड़े अपने जौहर का प्रर्दशन महात्मा गांधी मार्ग पर करतें है। सावन के चार सोमवार को शहर के एमजी मार्ग पर सायं पांच बजे से शहर के घोड़ो के शौ‍कीन अपने तांगे के साथ घोड़े के चाल और दौड़ का प्रदर्शन करने के लिए आतें है। इसी क्रम में सावन के पहले सोमवार को महात्मा गांधी मार्ग पर घोड़ों की दौड़ चाल देखने के लिए पहले से ही लोगो की काफी भीड़ इकट्ठा हो गयी थी। जैसे ही यह घोड़े अपने मालिक और तांगे के साथ तेज रफ्तार के साथ आये दर्शकों ने आवाज लगाकर उनका उत्साह बढ़ाया।

गहरे बाजी में मजरे आलम कटरा, गोपाल पंडा अहियापुर, फारूख कसाई नैनी लखन लाल ऐलनगंज ने अपने घोड़ो की चाल दिखाई। जिसमें सभी ने एक दूसरे को पछाउ़ते नजर आये। अशोक कुमार चौरसिया का टैटू और कई टैटू भी आकर्षण का केन्द्र रहे। जिसने छोटे होने के बावजूद काफी तेज गति से दौड़ लगा रहे थे। इनको देखने के लिए शास्त्री चौराहे से सीएमपी कालेज तक सड़क की दोनों पटरियों पर देखने वालों का तांता लगा रहा। तांगे के मोटर साइकिल सवार भी घोड़े को जोश देते रहें।



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क्षणिकाएँ - संवेदना




 
(1)
तस्‍ब्‍बुर है रवानी है,
ये जो मेरी कहानी है।
मै जलता हुआ आग हूँ,
वो बहता हुआ पानी है।

(2)
जिन्‍दगी के हर सफर में,
हम बहुत मजबूत थे।
अ‍ांधियों का था सफ़र,
और हम सराबोर थे।
टूट कर बिखर गये,
जाने कहॉं खो गये।

(3)

हर सफर में तुम्‍हारे साथ था,
जिधर गया तुम्‍हारे पास था।
रास्‍ते अनेक देखे,
गया जिस पर तुम्‍हारा निवास था।


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अनुगूँज - ये बाते तब पर भी न बदलेगीं।



हिन्‍दुस्‍तान अमेरिका बन जायेगा तो कोई बड़ी बात न होगी क्योंकि दिन प्रतिदिन भारत अमेरिकी नक्शेकदम पर चल ही रहा है। नारी से लेकर खिलाड़ी तक सभी अमेरिकी रंग में रगते दिख रहें। जहां नारी 8 गज की साड़ी चाहती थी वही 2 गज मे ही उसका काम चल जाता है और फिर कहती है कि मुझे अंग प्रदर्शन से परहेज नही है, जब देने वाले ने दिया है तो दिखाऊँ क्‍यो न? अर्थात कुछ स्त्री जाति का मानना है कि ईश्वर ने उन्हें अंग-प्रदर्शन के लिये है। यह वाहियात सोच अमेरिकी ही हो सकती है जबकि भारतीय मानस की सोच तो यह कि ईश्वर ने अगर अंग दिया है जो उसे ढकने के लिये वस्त्र भी।

India and USA

जितने मुँह उतनी बातें इसलिए मूल विषय पर आना जरूरी है। भारत चाहे अमेरिका बन जाये या बन जाये इराक-ईरान किन्तु कुछ बातें सदैव अपरिवर्तित रहेगी। मै उन्ही पर चर्चा करना पसंद करूँगा।

  1. अगर हिन्‍दोस्‍तान अमेरिका बन जायेगा तो भी हिन्‍दोस्‍तान, हिन्‍दोस्‍तान ही रहेगा। कारण साफ है कि कुत्ते की दुम कितनी भी सीधी की जाए वो सीधी होने वाली नहीं है।
  2. सबसे बड़ी समस्या आएगी कि नेताओं का क्या होगा और उनकी मक्कारी का ? क्योंकि यह जाति हमारे देश में काफी तेजी से बढ़ रही है तब पर भी आरक्षण की मांग की जा रही है। भारत के अमेरिकामय हो जाने पर नेताओं की नीयत में बदलाव कम ही संभव है या कह सकते है कि असम्‍भव है।
  3. शिक्षा में आरक्षण भी अपरिवर्तित रहेगा। जब भारत परतन्‍त्र से स्वतंत्र हुआ तब से लेकर आरक्षण सेठ के ब्याज की भांति बढ़ता जा रहा है। भारत में आरक्षण इसलिये लागू किया गया कि सभी को समानता दिलाई जाएगी। किंतु समानता दिलाने के नाम पर एक अच्‍छे तथा परिश्रमी वर्ग को ठगा जा रहा है। जहाँ एक विद्यार्थी 121 अंक प्राप्त करके भी उच्‍च शिक्षा के वंचित रह जाता है वही एक छात्र जो 50 से लेकर -50 अंक पाने पर भी उच्‍च शिक्षा ग्रहण करने का पात्र होता है। यह एक प्रकार से हास्‍यास्‍पद होगा कि भारत के तत्कालीन उपराष्‍ट्रपति की पुत्री भी आरक्षण का लाभ लेती है। वोटों के खेल के नाम पर आरक्षण रूपी गेंद को तब तक लात मारा जाएगा जब तक कि क्रांति का उद्गार न होगा।
  4. भारत आज सबसे बड़ा लोकतंत्र है और अमेरिका दूसरा, किन्तु हम आज भी अमेरिका जैसा बनने की कोशिश कर रहे है। हमारे देश में के नागरिक अपने अधिकार के बारे में तो जानते है कि कर्तव्य से अनभिज्ञ रहते है। भारत को अमेरिका बनने के बाद भी यह कायम रहेगा।
  5. हम भारत में रहकर भारत को अमेरिका बनाने की धारणा भी भारतीयों में बरकरार रहेगी। यह शर्म की बात है, जहां हमें सूरज बनकर पूरे विश्व को रोशनी दिया है वही हम सूरज को दिया दिखाने अर्थात भारत को अमेरिका बनने की बात कर रहे है। यह भी मानसिकता भारतीयों में नहीं बदलेगी।



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स्वामी विवेकानंद के 125 अनमोल वचन



125 Quotes of Swami Vivekananda in Hindi
स्वामी विवेकानन्द के 125 अनमोल विचार
Swami Vivekananda
कलकत्ता में 12 जनवरी 1863 को स्वामी विवेकानंद का जन्म हुआ। युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत बने विवेकानंद ने दिए अनमोल विचार- स्वामी विवेकानंद ने कहा है
  1. पढ़ने के लिए जरूरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए जरूरी है ध्यान।' ध्यान के द्वारा ही हम इंद्रियों पर संयम रख सकते हैं। शम, दम और तितिक्षा अर्थात मन को रोकना, इन्द्रियों को रोकने का बल, कष्ट सहने की शक्ति और चित्त की शुद्धि तथा एकाग्रता को बनाए रखने में ध्यान बहुत सहायक होता है।
  2. मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह है, एवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी है, क्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैं–निश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैं, और यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।
  3. जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा है, उससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगा, किन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।
  4. जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं, वे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैं, जो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता है–अंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता है, जो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।
  5. आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।
  6. मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता है? देवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करते, इसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होता, अतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता है, वही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।
  7. हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
  8. मन का विकास करो और उसका संयम करो, उसके बाद जहाँ इच्छा हो, वहाँ इसका प्रयोग करो–उससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखो, और जिस ओर इच्छा हो, उसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता है, वह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।
  9. पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लो, उसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।
  10. सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।
  11. संन्यास का अर्थ है, मृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैं, परन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।"
  12. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये.
  13. उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
  14. ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हम हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है!
  15. जिस तरह से विभिन्न स्त्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
  16. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए, और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।
  17. कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
  18. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
  19. एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
  20. उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
  21. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
  22. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
  23. सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  24. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  25. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, न कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
  26. जब तक आप खुद पे विश्वास नहीं करते तब तक आप भगवान पे विश्वास नहीं कर सकते।
  27. सत्य को हज़ार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
  28. विश्व एक व्यायामशाला है जहाँ हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
  29. जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आये – आप यकीन कर सकते है की आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे है।
  30. यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते है, वे वास्तव में जीते है।
  31. एक शब्द में, यह आदर्श है कि तुम परमात्मा हो।
  32. सुख और दुःख सिक्के के दो पहलु है। सुख जब मनुष्य के पास आता है तो दुःख का मुकुट पहन कर आता है।
  33. जीवन का रहस्य भोग में नहीं अनुभव के द्वारा शिक्षा प्राप्ति में है।
  34. विश्व में अधिकांश लोग इसलिए असफल हो जाते है, क्योंकि उनमें समय पर साहस का संचार नहीं हो पाता। वे भयभीत हो उठते है।
  35. किसी मकसद के लिए खड़े हो तो एक पेड़ की तरह, गिरो तो बीज की तरह। ताकि दुबारा उगकर उसी मकसद के लिए जंग कर सको।
  36. पवित्रता, धैर्य तथा प्रयत्न के द्वारा सारी बँधाये दूर हो जाती है। इसमें कोई संदेह नहीं की महान कार्य सभी धीरे -धीरे होते है।
  37. लगातार पवित्र विचार करते रहे, बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एकमात्र समाधान यही है।
  38. जब तक लाखों लोग भूखे और अज्ञानी है तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को गद्दार मानता हुँ जो उनके बल पर शिक्षित हुआ और अब वह उसकी और ध्यान नही देता।
  39. हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिसमें चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके।
  40. मन की एकाग्रता ही समग्र ज्ञान है।
  41. देश की स्त्रियां विद्या, बुद्धि अर्जित करें, यह मैं ह्रदय से चाहता हूँ, लेकिन पवित्रता की बलि देकर यदि यह करना पड़े तो कदापि नहीं।
  42. यही दुनिया है! यदि तुम किसी का उपकार करो तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यो ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरंत तुम्हे बदमाश साबित करने में नहीं हिचकिचाएंगे।
  43. जब प्रलय का समय आता है तो समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़कर किनारों को छोड़ अथवा तोड़ जाते है, लेकिन सज्जन पुरुष प्रलय के समान भयंकर आपत्ति एवं विपत्ति में भी अपनी मर्यादा नहीं बदलते।
  44. दुनिया मज़ाक करें या तिरस्कार, उसकी परवाह किये बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य करते रहना चाहिये।
  45. 83डर निर्बलता की निशानी है।
  46. जिंदगी का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता है, स्वयं को बनाना पड़ता है, जिसने जैसा मार्ग बनाया उसे वैसी ही मंज़िल मिलती है।
  47. शुभ एवं स्वस्थ विचारो वाला ही सम्पूर्ण स्वस्थ प्राणी है।
  48. कर्म का सिद्धांत कहता है – ‘जैसा कर्म वैसा फल’। आज का प्रारब्ध पुरुषार्थ पर अवलम्बित है। ‘आप ही अपने भाग्य विधाता है’। यह बात ध्यान में रखकर कठोर परिश्रम पुरुषार्थ में लग जाना चाहिये।
  49. इंसान को कठिनाइयों की आवश्यकता होती है क्योंकि सफलता का आनंद उठाने के लिए ये जरूरी है।
  50. जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहो – उससे लोगों को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्र में प्रखर प्रतीत होती है, और उन्हें बहा ले जाती है, तो ले जाने दो – वे जितना शीघ्र बह जाए उतना अच्छा ही है।
  51. खड़े हो जाओ, हिम्मतवान बनो, ताकतवर बन जाओ, सब जवाबदारियाँ अपने सिर पर ओढ़ लो, और समझो की अपने नसीब के रचयिता आप खुद हो।
  52. जिंदगी बहुत छोटी है, दुनिया में किसी भी चीज़ का घमंड अस्थाई है पर जीवन केवल वही जी रहा है जो दूसरों के लिए जी रहा है, बाकी सभी जीवित से अधिक मृत है।
  53. आज अपने देश को आवश्यकता है – लोहे के समान मांसपेशियों और वज्र के समान स्नायुओं की। हम बहुत दिनों तक रो चुके, अब और रोने की आवश्यकता नहीं, अब अपने पैरों पर खड़े हो और मनुष्य बनो।
  54. जिस शिक्षा से हम अपना जीवन निर्माण कर सके, मनुष्य बन सके, चरित्र गठन कर सके और विचारो का सामंजस्य कर सके। वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
  55. एक नायक बनो, और सदैव कहो – “मुझे कोई डर नहीं है”।
  56. आपको अपने अंदर से बाहर की तरफ विकसित होना पड़ेगा। कोई भी आपको यह नहीं सीखा सकता, और न ही कोई आपको आध्यात्मिक बन सकता है। आपकी अपनी अंतरात्मा के अलावा आपका कोई शिक्षक नहीं है।
  57. हमारा कर्तव्य है की हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीने के संघर्ष में प्रोत्साहित करें, और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लेन का प्रयास करें।
  58. हमारा कर्तव्य है कि हम हर किसी को उसका उच्चतम आदर्श जीवन जीने के संघर्ष में प्रोत्साहन करें; और साथ ही साथ उस आदर्श को सत्य के जितना निकट हो सके लाने का प्रयास करें।
  59. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के हैं, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है।
  60. एक विचार लो। उस विचार को अपना जीवन बना लो – उसके बारे में सोचो उसके सपने देखो, उस विचार को जियो । अपने मस्तिष्क, मांसपेशियों, नसों, शरीर के हर हिस्से को उस विचार में डूब जाने दो, और बाकी सभी विचार को किनारे रख दो । यही सफल होने का तरीका है।
  61. तुम फ़ुटबाल के जरिये स्वर्ग के ज्यादा निकट होगे बजाये गीता का अध्ययन करने के।
  62. कभी भी यह न सोचे की आत्मा के लिए कुछ भी असंभव है।
  63. भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुःखों का मूल है।
  64. भगवान की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर।
  65. यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दुःख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
  66. हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमें बसेंगे।
  67. बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
  68. जिस क्षण मैंने यह जान लिया कि भगवान हर एक मानव शरीर रुपी मंदिर में विराजमान हैं, जिस क्षण मैं हर व्यक्ति के सामने श्रद्धा से खड़ा हो गया और उसके भीतर भगवान को देखने लगा – उसी क्षण मैं बन्धनों से मुक्त हूँ, हर वो चीज जो बांधती है नष्ट हो गयी, और मैं स्वतंत्र हूँ।
  69. वेदान्त कोई पाप नहीं जानता, वो केवल त्रुटी जानता है। और वेदान्त कहता है कि सबसे बड़ी त्रुटि यह कहना है कि तुम कमजोर हो, तुम पापी हो, एक तुच्छ प्राणी हो, और तुम्हारे पास कोई शक्ति नहीं है और तुम ये वो नहीं कर सकते।
  70. जब कोई विचार अनन्य रूप से मस्तिष्क पर अधिकार कर लेता है तब वह वास्तविक भौतिक या मानसिक अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
  71. भला हम भगवान को खोजने कहाँ जा सकते हैं अगर उसे अपने ह्रदय और हर एक जीवित प्राणी में नहीं देख सकते।
  72. तुम्हे अन्दर से बाहर की तरफ विकसित होना है। कोई तुम्हे पढ़ा नहीं सकता, कोई तुम्हे आध्यात्मिक नहीं बना सकता । तुम्हारी आत्मा के आलावा कोई और गुरु नहीं है।
  73. पहले हर अच्छी बात का मज़ाक बनता है, फिर उसका विरोध होता है, और फिर उसे स्वीकार कर लिया जाता है।
  74. 27दिल और दिमाग के टकराव में दिल की सुनो।
  75. किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आये – आप सुनिश्चित हो सकते हैं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
  76. स्वतंत्र होने का साहस करो। जहाँ तक तुम्हारे विचार जाते हैं वहां तक जाने का साहस करो, और उन्हें अपने जीवन में उतारने का साहस करो।
  77. किसी चीज से डरो मत। तुम अद्भुत काम करोगे। यह निर्भयता ही है जो क्षण भर में परम आनंद लाती है।
  78. प्रेम विस्तार है, स्वार्थ संकुचन है। इसलिए प्रेम जीवन का सिद्धांत है। वह जो प्रेम करता है जीता है, वह जो स्वार्थी है मर रहा है। इसलिए प्रेम के लिए प्रेम करो, क्योंकि जीने का यही एक मात्र सिद्धांत है, वैसे ही जैसे कि तुम जीने के लिए सांस लेते हो।
  79. सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव के प्रति सच्चे होना। स्वयं पर विश्वास करो।
  80. सच्ची सफलता और आनंद का सबसे बड़ा रहस्य यह है वह पुरुष या स्त्री जो बदले में कुछ नहीं मांगता, पूर्ण रूप से निस्स्वार्थ व्यक्ति, सबसे सफल है।
  81. जो अग्नि हमें गर्मी देती है, हमें नष्ट भी कर सकती है; यह अग्नि का दोष नहीं है।
  82. बस वही जीते हैं,जो दूसरों के लिए जीते हैं।
  83. शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु है । विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु है । प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु है।
  84. हम जो बोते हैं वो काटते हैं। हम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हैं। हवा बह रही है; वो जहाज जिनके पाल खुले हैं, इससे टकराते हैं, और अपनी दिशा में आगे बढ़ते हैं, पर जिनके पाल बंधे हैं हवा को नहीं पकड़ पाते। क्या यह हवा की गलती है ?…।।हम खुद अपना भाग्य बनाते हैं।
  85. ना खोजो ना बचो, जो आता है ले लो।
  86. शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से जो कुछ भी आपको कमजोर बनाता है –, उसे ज़हर की तरह त्याग दो।
  87. एक समय में एक काम करो, और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ।
  88. कुछ मत पूछो, बदले में कुछ मत मांगो, जो देना है वो दो; वो तुम तक वापस आएगा, पर उसके बारे में अभी मत सोचो।
  89. जो तुम सोचते हो वो हो जाओगे। यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे; अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे।
  90. मनुष्य की सेवा करो। भगवान की सेवा करो।
  91. मस्तिष्क की शक्तियां सूर्य की किरणों के समान हैं। जब वो केन्द्रित होती हैं; चमक उठती हैं।
  92. आकांक्षा, अज्ञानता, और असमानता – यह बंधन की त्रिमूर्तियां हैं।
  93. यह भगवान से प्रेम का बंधन वास्तव में ऐसा है जो आत्मा को बांधता नहीं है बल्कि प्रभावी ढंग से उसके सारे बंधन तोड़ देता है।
  94. कुछ सच्चे, ईमानदार और ऊर्जावान पुरुष और महिलाएं; जितना कोई भीड़ एक सदी में कर सकती है उससे अधिक एक वर्ष में कर सकते हैं।
  95. जब लोग तुम्हें गाली दें तो तुम उन्हें आशीर्वाद दो। सोचो, तुम्हारे झूठे दंभ को बाहर निकालकर वो तुम्हारी कितनी मदद कर रहे हैं।
  96. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
  97. धन्य हैं वो लोग जिनके शरीर दूसरों की सेवा करने में नष्ट हो जाते हैं।
  98. श्री रामकृष्ण कहा करते थे,” जब तक मैं जीवित हूँ, तब तक मैं सीखता हूँ ”। वह व्यक्ति या वह समाज जिसके पास सीखने को कुछ नहीं है वह पहले से ही मौत के जबड़े में है।
  99. जीवन का रहस्य केवल आनंद नहीं है बल्कि अनुभव के माध्यम से सीखना है।
  100. कामनाएं समुद्र की भांति अतृप्त है, पूर्ति का प्रयास करने पर उनका कोलाहल और बढ़ता है।
  101. स्त्रियों की स्थिति में सुधार न होने तक विश्व के कल्याण का कोई भी मार्ग नहीं है।
  102. भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है।
  103. आज्ञा देने की क्षमता प्राप्त करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को आज्ञा का पालन करना सीखना चाहिए।
  104. प्रसन्नता अनमोल खजाना है छोटी -छोटी बातों पर उसे लूटने न दे।
  105. जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी।
  106. जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता होती है वह है चरित्र। संसार को ऐसे लोग चाहिए जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत प्रेम का उदाहरण है। वह प्रेम एक -एक शब्द को वज्र के समान प्रतिभाशाली बना देगा।
  107. हम भले ही पुराने सड़े घाव को स्वर्ण से ढक कर रखने की चेष्टा करें, एक दिन ऐसा आएगा जब वह स्वर्ण वस्त्र खिसक जायेगा और वह घाव अत्यंत वीभत्स रूप में आँखों के सामने प्रकट हो जायेगा।
  108. जब तक लोग एक ही प्रकार के ध्येय का अनुभव नहीं करेंगे, तब तक वे एकसूत्र से आबद्ध नही हो सकते। जब तक ध्येय एक न हो, तब तक सभा, समिति और वक्तृता से साधारण लोगो एक नहीं कर सकता।
  109. यदि उपनिषदों से बम की तरह आने वाला और बम गोले की तरह अज्ञान के समूह पर बरसने वाला कोई शब्द है तो वह है ‘निर्भयता’
  110. अगर आप ईश्वर को अपने भीतर और दूसरे वन्य जीवों में नहीं देख पाते, तो आप ईश्वर को कही नहीं पा सकते।
  111. आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी और उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता।
  112. तुम्हारे ऊपर जो प्रकाश है, उसे पाने का एक ही साधन है – तुम अपने भीतर का आध्यात्मिक दीप जलाओ, पाप ऒर अपवित्रता स्वयं नष्ट हो जायेगी। तुम अपनी आत्मा के उददात रूप का ही चिंतन करो।
  113. संभव की सीमा जानने केवल एक ही तरीका है असम्भव से आगे निकल जाना।
  114. स्वयं में बहुत सी कमियों के बावजूद अगर में स्वयं से प्रेम कर सकता हुँ तो दूसरों में थोड़ी बहुत कमियों की वजह से उनसे घृणा कैसे कर सकता हुँ।
  115. जन्म, व्याधि, जरा और मृत्यु ये तो केवल आनुषंगिक है, जीवन में यह अनिवार्य है, इसलिये यह एक स्वाभाविक घटना है।
  116. हम जितना ज्यादा बाहर जायें और दूसरों का भला करें, हमारा ह्रदय उतना ही शुद्ध होगा, और परमात्मा उसमे बसेंगे।
  117. उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, ना ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
  118. ब्रह्माण्ड कि सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमीं हैं जो अपनी आँखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अन्धकार है!
  119. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएँ अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग, चाहे अच्छा हो या बुरा भगवान तक जाता है।
  120. किसी की निंदा ना करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें उनके मार्ग पे जाने दीजिये।
  121. कभी मत सोचिये कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
  122. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करें, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है।
  123. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिये, नहीं तो लोगो का विश्वास उठ जाता है।
  124. उस व्यक्ति ने अमरत्त्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
  125. हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं। विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।

स्वामी विवेकानंद चित्र 

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एक साथ एक मुफ्त



आज के समय में ग्राहकों को कुछ मुफ्त देने का चलन बढ़ गया है। मसलन एक के साथ एक मुफ्त, लेकिन बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने सभी मल्टीनेशनल और नेशनल कंपनियों को अपने उत्पादों पर ज्यादा मुफ्त देने की होड़ लगी है। कुछ दिन पहले दूल्हा घर का वैवाहिक विज्ञापन आया था। जिसमें एक सूट के साथ एक सूट, बच्चे का सूट, और मेहंदी लगाना इसके अलावा भी साली के लिए एक कलाई घड़ी भी मुफ्त थी। यानी अब बाई वन गेट फॉर फोर फ्री का जमाना आ गया है। एक के साथ एक का युग जा रहा है। अब एक साथ दो या दो के साथ चार फ्री का जमाना आ गया है। आश्चर्य की बात तो तब होगी जब हमें एक के साथ दो-चार नहीं बल्कि इक्कीस मुफ्त मिलेगा। मतलब सीधे-सीधे 21 वस्तुओं का इकट्ठा फायदा होगा। यह बात अब सच होने जा रही है। अब लुभावने के नियम लागू हो चुके हैं। विदेश से समें अव्वल दर्जे के घोटाले किये है। बाद में यह भी सुना जा सकता है कि गेहूं घोटाला भी हुआ है। तो क्या होगा? इसकी उच्चस्तरीय जांच होगी फिर निष्कर्ष यही निकलेगा कि सरकार ने एक के साथ इक्कीस मुफ्त लिया था इसलिए `एक´ का तो पता नहीं पर `इक्कीस´ तो हमारे खेतों में लहलहा रहें है। तथा किसान उनसे अपरिचित की तरह मिलते हुए कहते है कि “अतिथि देवो भव:।“

इसलिए अब मुफ्त का चलन बढ़ने के साथ ही हमारी आवश्यक देशी चीजों उत्पादित करने की जरूरत नहीं, किसान को भी मुफ्त में खरपतवार मिल रहें है। और सरकार की उदारीकरण नीति को फायदा हो रहा जिसमें हमारे यहाँ कोई भी अंतरराष्ट्रीय कंपनियां आये और चाहे उधार बेचे या एक से इक्कीस नहीं बयालीस मुफ्त में दे। देश में ग्राहकों की कमी नहीं है क्योंकि सरकार भी एक `अच्छा ग्राहक´ बन गया है जिसे `सस्ता´ और आयात कीजिए और एक के साथ 21 वस्तुएं बिल्कुल मुफ्त पाइये।

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एक खबर के मुताबिक भारत अमेरिका से 50 लाख टन गेंहूँ आयात करने जा रहा है। इस गेंहूँ की खासियत के तौर पर इस आयात किया जा रहा है। पहला यह कि हमारे देश में गेंहूँ के दाम 750 से 1100 रूपये कुन्तल यानि `सस्ता´ है। दूसरा इसके साथ हमें इक्कीस प्रकार के खरपतवार बिल्कुल मुफ्त मिल रहें है। यह खरपतवार हमारे देश के उत्पादन वाली जमींनों पर राज करेंगे साथ ही हम लोगों के शरीर में कैंसर जैसे विभिन्न प्रकार के रोग पैदा करते धन्य बनाकर मोक्ष दिलाएंगे।

इससे पहले 1984 में भी हमारी सरकार ने `कांग्रेस घास´ खरीदी थी जो आज हमारे देश के काफी हिस्से पर बखूबी राज कर रही है। ऑस्ट्रेलिया ने पिछले वर्ष हमे एक के साथ 14 खरपतवार मुफ्त में दिये थे। हमारी सरकार को यह फायदेमंद साबित नहीं हुआ इसलिए इस बार अमेरिका से 14 के बदले 21 मुफ्त के आधार पर लेना ज्यादा अच्छा लगा।

बाजार में बढ़ती प्रतिस्पर्धा ने हमारी कमर तोड़ दी तभी हम अपने किसानों को 750 रूपये के साथ 100 रूपये ही मुफ्त दिये है। अच्छे ब्रांड की कीमत ज्यादा कम नहीं होती। देश की बाजार पर सभी अच्छी कंपनियों की पकड़ बन गयी है। अमेरिका द्वारा दिये गये मुफ्त खरपतवार हमारे साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे। फिर जब पता चलेगा तो उसको निकालने के किसानों के साथ सरकार को आजादी की तरह आन्दोलन छेड़ना पड़ेगा। इसका हल भी उन्हीं के पास रहेगा अर्थात दवा भी उन्हीं की रहेगी। अब `दर्द भी तुम दो, दवा भी तुम दो´ तब दर्द के बाद दवा मुफ्त नहीं मिलेगी बल्कि इसको आयात करने के लिए अच्छी कीमत अदा करनी पड़ेगी। यह दवा खरपतवार के साथ हमारी ऊर्जावान भूमि को नष्ट कर देगी। अर्थात दवा ऐसी जो खून चूस कर बुखार ठीक करती हो।

इस मुफ्त की चीजों मे वाइल्ड गार्लिक, वेस्टर्न रैंग वीड, लेैटाना, ज्लेरियस के साथ ही सबसे अधिक खतरनाक ब्रोमस रिजीडस और ब्रोमन सरेजस है जो हमारे लहलहाते खेतों में अपनी छाप बहुत तेजी से छोड़ते है। वैसे भी हमारे यहां विदेशी उत्पाद काफी पसंद किया जाता है। चाहे वह क्रिकेट का कोच हो या फिर अन्य वस्तुएं। हमें आजादी के उनकी कमी हमेशा खलती रहती है।

हमने विदेशी प्रोडक्ट के साथ उनकी संस्कृति भी मुफ्त में ले ली, और जो पूरे देश में अपनी गहरी पैठ बना ली है। इस आयात के पीछे `घोटाले´ का भी मकसद हो सकता है, क्योंकि हमारे देश में `घोटाला परियोजना´ को बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे पहले चाहे चारा घोटाला, तेल घोटाला या फिर स्टांप घोटाला रहा हो सभी में अव्वल दर्जे के घोटाले किये है। बाद में यह भी सुना जा सकता है कि गेहूं घोटाला भी हुआ है। तो क्या होगा? इसकी उच्चस्तरीय जांच होगी !



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सबसे चर्चित अनमोल वचन एवं अमृत वचन - Amrit Vachan



amrit vachan

  1. अतीत पर ध्यान केंद्रित मत करो, भविष्य का सपना भी मत देखो। वर्तमान क्षण ध्यान केंद्रित करो।
  2. आध्यात्मिकता का एकमात्र उद्देश्य आत्म अनुशासन है। हमें दूसरों की आलोचना करने के बजाय खुद का मूल्यांकन और आलोचना करनी चाहिए।
  3. आपका सबसे व्यर्थ समय वो है, जिसे आपने बिना हंसे बिता दिया।
  4. किसी से शत्रुता करना अपने विकास को रोकना है। - विनोबा भावे
  5. तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। जैसा तुम अपने प्रति चाहते हो। - जॉन लॉक
  6. दूसरों से सहायता की आशा करना या भीख माँगना किसी दुर्बलता का चिन्ह है। इसलिये बंधुओं निर्भयता के साथ यह घोषणा करो की हिंदुस्तान हिंदुओं का ही है। अपने मन की दुर्बलता को बिल्कुल दूर भगा दो।
  7. न ही किसी मंदिर की जरूरत है और न ही किसी जटिल दर्शनशास्त्र की। मेरा मस्तिष्क और मेरा हृदय ही मेरा मंदिर है और करुणा ही मेरा दर्शनशास्त्र है।
  8. परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने कहा ( अमृत वचन ) – "अपने हिंदू समाज को बलशाली और संगठित करने के लिए ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जन्म लिया है।"
  9. परम पूज्य डॉ हेडगेवार जी ने कहा ( अमृत वचन ) – "हिंदू जाति का सुख ही मेरा और मेरे कुटुंब का सुख है। हिंदू जाति पर आने वाली विपत्ति हम सभी के लिए महासंकट है और हिंदू जाति का अपमान हम सभी का अपमान है। ऐसी आत्मीयता की वृत्ति हिंदू समाज के रोम – रोम में व्याप्त होनी चाहिए यही राष्ट्र धर्म का मूल मंत्र है।"
  10. परम पूज्य श्री गुरूजी ने कहा – " छोटी-छोटी बातों को नित्य ध्यान रखें बूंद – बूंद मिलकर ही बड़ा जलाशय बनता है। एक – एक त्रुटि मिलकर ही बड़ी बड़ी गलतियां होती है। इसलिए शाखाओं में जो शिक्षा मिलती है उसके किसी भी अंश को नगण्य अथवा कम महत्व का नहीं मानना चाहिए।"
  11. बिना उत्साह के कभी किसी महान लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती। - एमर्सन
  12. मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। - प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया
  13. मनुष्य में जो संपूर्णता सुप्त रूप से विद्यमान है। उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है। - स्वामी विवेकानंद
  14. महर्षि अरविन्द ने कहा ( अमृत वचन ) – “जब दरिद्र तुम्हारे साथ हो , तो उनकी सहायता करो। लेकिन अध्ययन करो। और यह प्रयास भी करो कि तुम्हारी सहायता पाने के लिए दरिद्र लोग न बचे रहे।"
  15. महान संघ याने हिन्दुओं की संगठित शक्ति। हिन्दुओं की संगठित शक्ति इसलिए कि इस देश का भाग्य निर्माता है। वे इसके स्वाभाविक स्वामी है। उनका ही यह देश है और उन पर ही देश का उत्थान और पतन निर्भर है।
  16. मैं इस बात को लेकर चिंतित नहीं रहता कि ईश्वर मेरे पक्ष में है या नहीं। मेरी सबसे बड़ी चिंता यह है कि मैं ईश्वर के पक्ष में रहूं, क्योंकि ईश्वर हमेशा सही होते हैं।
  17. यह देश, धर्म, दर्शन और प्रेम की जन्मभूमि है। ये सब चीजें अभी भी भारत में विद्यमान है। मुझे इस दुनिया की जो जानकारी है, उसके बल पर दृढ़ता पूर्वक कह सकता हूँ कि इन बातों में भारत अन्य देशों की अपेक्षा अब भी श्रेष्ठ है।
  18. युवकों की शिक्षा पर ही राज्यों का भाग्य आधारित है। - अरस्तू
  19. रिश्वत और कर्तव्य दोनों एक साथ नहीं निभ सकते। - प्रेमचंद
  20. वास्तव में शिक्षा मूलत: ज्ञान के प्रसार का एक माध्यम है। चिंतन तथा परिप्रेक्ष्य के प्रसार का एक तरीका है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन के सही मूल्यों को आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है। - सदाशिव माधव गोलवलकर (पूजनीय श्री गुरु जी)
  21. शांति हमारे अंदर से आती है। आप इसे कहीं और न तलाशें।
  22. श्री गुरूजी ने कहा ( अमृत वचन ) – "संपूर्ण राष्ट्र के प्रति आत्मीयता का भाव केवल शब्दों में रहने से क्या काम नहीं चलेगा। आत्मीयता को प्रत्यक्ष अनुभूति होना आवश्यक है समाज के सुख-दुख यदि हमें छुपाते हैं तो यही मानना चाहिए कि यह अनुभूति का कोई अंश हमें भी प्राप्त हुआ है। "
  23. सज्जनों से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। - कालिदास
  24. स्वामी विवेकानंद ने कहा – "आगामी वर्षों के लिए हमारा एक ही देवता होगा और वह है अपनी ‘मातृभूमि’ | भारत दूसरे देवताओं को अपने मन में लुप्त हो जाने दो हमारा मातृ रूप केवल यही एक देवता है जो जाग रहा है। इसके हर जगह हाथ है , हर जगह पैर है , हर जगह काम है , हर विराट की पूजा ही हमारी मुख्य पूजा है। सबसे पहले जिस देवता की पूजा करेंगे वह है हमारा देशवासी।"
  25. स्वामी विवेकानंद ने कहा ( अमृत वचन ) – "जिस उद्देश्य एवं लक्ष्य कार्य में परिणत हो जाओ उसी के लिए प्रयत्न करो। मेरे साहसी महान बच्चों काम में जी जान से लग जाओ अथवा अन्य तुच्छ विषयों के लिए पीछे मत देखो स्वार्थ को बिल्कुल त्याग दो और कार्य करो।"
  26. स्वामी विवेकानद ने कहा ( अमृत वचन ) – "लुढ़कते पत्थर में काई नहीं लगती " वास्तव में वे धन्य है जो शुरू से ही जीवन का लक्ष्य निर्धारित का लेते है। जीवन की संध्या होते – होते उन्हें बड़ा संतोष मिलता है कि उन्होंने निरूद्देश्य जीवन नहीं जिया तथा लक्ष्य खोजने में अपना समय नहीं गवाया। जीवन उस तीर की तरह होना चाहिए जो लक्ष्य पर सीधा लगता है और निशाना व्यर्थ नहीं जाता।"
  27. हमारे निर्माता ईश्वर ने हमारे मस्तिष्क और व्यक्तित्व में विशाल क्षमता और योग्यता संग्रहित की है। प्रार्थना के जरिए हम इन्हीं शक्तियों को पहचान कर उसका विकास करते हैं।

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