चिन्तन - आपसी फूट का परिणाम



हमारे कार्यों को संपादित करने में जहां विचारों की विशेष भूमिका रहती है, वहीं हमारे विचार ही हमें शुभ और अशुभ कार्यों को निष्पादित करने के लिए बाध्य करते हैं। ये विचार ही हैं जो हमारे ऋषियों-मुनियों ने अपने जीवन के आनुभूतिक भावों को मानव कल्याण के लिए कहे हैं। विवेक पूर्वक विचार करके ही हमें निर्णय लेना चाहिए।


एक विशेष शब्द है फूट । इसको आगे अपने जीवन में कोई स्थान नहीं देना चाहिए। इस शब्द के व्यवहार से जीवन नष्ट हो सकता है। फूट का शाब्दिक अर्थ तो होता है विरोध, बैर, बिगाड़ या फूटने की क्रिया का भाव । साथ ही फूट का एक और अर्थ होता है ऐसा फल जो पकने पर और धूप के प्रभाव से स्वयमेव ऊपर से फटने लगता है, ककड़ी की प्रजाति का एक फल । यद्यपि इस फल को बड़े चाव से खाया जाता है। लेकिन यही फूट फल के रूप में न होकर जब परिवार में होती है तो परिवार बिखर जाता है, बर्बाद हो जाता है। एक कहावत है- वन में में उपजे सब कोई खाय, घर में उपजें घर बह जाय।।

इस शब्द को परिवार के साथ जोड़ने का अच्छी तरह पकने से नहीं अर्थ होता है बल्कि अध-कच्चे सम्बंधो ओर
तालमेल के अभाव से है। वैचारिक कच्चेपन और टुच्चेपन के भाव से है। जिसके बिना परिवार में फूट पड़ना सम्भव नहीं होता। फल के फूट का फटना उसकी पक्कावस्था के चरमोत्कर्ष का द्योतक है। जबकि परिवार में फूट पड़ना सम्बंधो, विचारों और आपसी तालमेलों में पतन और विनाश प्रकट करता है। यह छोटा सा शब्द फूट न केवल परिवार को बल्कि बड़े-बड़े राष्ट्रों को कलह, संघर्ष और अंहिसा के मार्ग से विनाश की ओर ढकेलता है। अस्तु हमें आपस की फूट से दूर रहकर संगठित होकर परिवार ओर समाज के संगठित कार्यों को पूरा करना चाहिए । अंग्रेजी कहावत है हम संगठित ओर एक साथ रहेंगे तो हर प्रकार की प्रगति और उन्नति को प्राप्त करेंगे और यदि हम विभाजित हुए अलग-अलग हुए, परस्पर मतैक्य रखकर न चले तो पतन अवश्यम्भावी है। तुलसी बाबा ने कहा है कि- जहां सुमति तॅहजहां सुमति तॅह सम्पति नाना, जहां कुमति तॅह विपति निदानां ।

अपने धर्म शास्त्रों में कहा गया है ‘‘संघे शक्ति कलौ युगे’’ कलियुग में अर्थात आज के समय में संगठन में ही असीमित शक्ति होती है। पराधीन काल में चतुर अंग्रेज हमारी इस संगठित शक्ति को तहस-नहस करते हुए उन्होनें अपनी स्वार्थ पूर्ति के कारण निर्णय किया Divide and Rule अर्थात विभाजित करो और राज्य करो। अंग्रेज अपनी इसी बात के अंतर्गत इस देश के हिंदुओं और मुसलमानों में बांट कर राज्य करते रहे। क्योंकि हम संगठित होकर शक्ति के रूप में खड़े नहीं हुये है। अतः पराधीन हुए । हमें इस आपसी फूट से दूर रहकर अपने विवेकपूर्ण विचारों के कार्य निष्पादन कर अपना, समाज का और राष्ट्र का कल्याण करना चाहिए । तभी हम अपने लक्ष्य को पूरा कर सकेंगे।



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जीवन परिचय स्वर्गीय ठाकुर गुरुजन सिंह जी



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठतम स्वयंसेवकों में एक स्वयंसेक तथा विश्व हिन्दू परिषद के वरिष्ठ कार्यकर्ता ठाकुर गुरुजन सिंह जी (20 नवम्बर, 1918 - 28 नवम्बर, 2013) अपनी आयु के 95 वर्ष पूरे करके 28 नवम्बर, 2013 को ब्रह्मलीन हो गये। उनका जन्म 20 नवम्बर, 1918 को ग्राम खुरुहुँजा (बबुरी बाजार, जिला चन्दौली, उत्तर प्रदेश) में हुआथा। उनके पिता का नाम स्व0 शिवमूरत सिंह था। दादा जी का नाम भृगुनाथ सिंह। ठाकुर साहब दो भाई थे। बड़े भाई का नाम डाॅ0 बब्बन सिंह था। कालांतर में डाॅ0 बब्बन सिंह ने गढ़वा घाट मठ में जाकर सन्यास दीक्षा ले ली और वहीं रहने लगे। डाॅ0 बब्बन सिंह के एक पुत्र था, उनके तीन पुत्र हैं। ठाकुर साहब के पुत्र का नाम नरेन्द्र है, नरेन्द्र का विवाह 1971 में हुआ, उनके भी एक पुत्र और एक पुत्री हैं।
बनारस तथा मिर्जापुर जिले में गढ़वा घाट मठ है। हरिद्वार में भी इसकी शाखा है। इस मठ की स्थापना खुरूहुँजा गांव में जन्मे संत स्वामी आत्म विवेकानंद जी महाराज ने की थी। इसी गढ़वा घाट मठ में ठाकुर साहब के बड़े भाई डाॅ0 बब्बन सिंह सन्यासी बनकर रहने लगे थे। मठ में वे डाॅ0 बाबा के नाम से आज भी जाने जाते थे।

प्रसिद्ध संत तेलंग स्वामी के समकालीन भी शंकरानंद जी महाराज बनारस में रहते थे। स्वामी भास्करानंद जी महाराज के संपर्क में आकर एक गृहस्थ राय साहब रामवरण उपाध्याय जी सन्यासी हो गये थे। संन्यास के बाद उनका नाम सीताराम आश्रम पड़ा। इन्हीं सीताराम आश्रम के शिष्य ठाकुर गुरुजन सिंह जी थे। ठाकुर साहब अपनी पूजा की मेज पर दो चित्र तथा एक प्रति रामचरित मानस रखते थे। एक चित्र अपने गुरु स्वामी सीताराम आश्रम जी महाराज का तथा दूसरा चित्र अपने दादा गुरु दिगम्बरी संत स्वामी भास्करानंद जी महाराज का, रामचरितमानस की प्रति उन्हें अपने गुरु से प्राप्त हुई थी, वहीं प्रति पूजा की मेज पर रहती थी। वे नित्य उसका पारायण करते थे तभी शयन करते थे।

ठाकुर साहब की प्रारम्भिक शिक्षा बनारस के जय नारायण इंटर कॉलेज में हुई थी। परन्तु उनका मन पढ़ाई में लगता नहीं था। बनारस में उनके परिवारजनों की ‘‘शीला रंग कंपनी’’ थी उसमें ठाकुर साहब काम करने लगे, बनारस के जिस मोहल्ले में कंपनी थी उसके पास एक अहाते में संघ शाखा लगती थी। ठाकुर साहब शाखा जाने लगे। सम्भवतः यह काल 1933 से 1935 के बीच का है। स्व0 भाऊराव देवरस से बनारस में ही परिचय हुआ, मित्रता बढ़ने लगी। ठाकुर साहब और भाऊराव बनारस में एक ही साइकिल पर घूमते थे। संघ के कार्य में अधिक समय लगने लगा तो रंग फैक्टरी के प्रमुखों से कहा कि अब मैं कार्य छोड़ना चाहता हूँ क्योंकि मेरा अधिकतम समय संघ के काम में लगता है और फैक्टरी में नहीं आ पाता हूँ। फैक्टरी प्रमुखों ने उत्तर दिया कि आप संघ का काम करिये, फैक्टरी में आपका नाम चलता रहेगा, हम आपको धन देते रहेंगे, अनेक वर्षों तक ऐसा ही चला।

1948 के संघ पर लगे प्रतिबंध के समय ठाकुर साहब को गंगा में स्नान करके वापस आते समय काशी में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। वे श्री भाऊराव देवरस, अशोक सिंघल, दत्तराज कालिया आदि के साथ काशी जेल में बंद रहे। 
1955-56 में वे बनारस में नगर कार्यवाह थे। कालान्तर में संघ के प्रचारक हो गये। 1964 में वे बनारस में विभाग प्रचारक का दायित्व संभालते थे। ठाकुर साहब संघ के कार्य में इतने तल्लीन हो गये कि अपने एकमात्र पुत्र नरेंद्र के विवाह में भी समय पर नहीं पहुंचे। उनके बड़े भाई डाॅ0 बब्बन सिंह एवं उनके एक घनिष्ट सहयोगी सोमनाथ सिंह ने ही नरेंद्र के विवाह की सब जिम्मेदारी निर्वाह की। घर से बारात जब जाने को तैयार थी तब ठाकुर साहब घर पहुंचे और बोले ‘‘ऐ सोमनाथ तुम्हारे लड़के के ब्याह की तैयारी पूरी हो गई।’’ सोमनाथ सिंह ने उत्तर दिया ‘‘हाँ ठाकुर साहब बारात चलने के लिए तैयार है।’’ वे परिवार के प्रति ऐसे निर्मोही हो चुके थे। ठाकुर साहब अच्छी, बड़ी जमीन वाले किसान थे, परन्तु जीवन में कभी खेती की ओर ध्यान नहीं दिया, किसी से चर्चा नहीं की, वे पूर्ण विरक्त हो चुके थे।

बनारस में ठाकुर गुरुजन सिंह जी का सम्बन्ध क्रांतिकारी श्री शचीन्द्रनाथ सान्याल से आया। सान्याल जी के बीमारी के समय ठाकुर साहब ने उनकी सेवा की, सान्याल जी के पुत्र ठाकुर साहब की वृद्धावस्था के समय अपने पास से उन्हें कुछ धन भेजा करते थे। स्वयं ठाकुर साहब के शब्दों में- जब सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस से निष्कासित कर दिये गये तब वे बनारस आये थे। बनारस का कोई भी व्यक्ति उन्हें अपने घर ठहरने के लिए तैयार नहीं था। तब ठाकुर साहब ने उनको बनारस में ठहराने की जिम्मेदारी स्वयं स्वीकार कर ली और रामकृष्ण मिशन में व्यवस्था भी कर दी। तभी बनारस से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र ‘‘आज’’ के सम्पादक शिव प्रसाद गुप्ता जी को ये जानकारी मिली। तो उन्होंने ठाकुर साहब से कहाँ कि मैं सुभाष चन्द्र बोस को अपने घर में ठहराऊँगा। चाहें कांग्रेस के लोग मुझे कांग्रेस से निकाल दें। गुप्ता जी उस समय कांग्रेस को धन की व्यवस्था करते थे।

ठाकुर साहब कई संगठनों में रहकर देश की सेवा करते रहे। सन् 1971 से 1978 तक किसानों का संगठन कार्य किया। ‘भारतीय किसान संघ’ के विधिवत गठन से पूर्व ही वे किसानों के बीच काम करने लगे थे। आपातकाल में वे साधु वेश में भूमिगत रहकर काम करते रहे। वर्ष 1979 से विश्व हिन्दू परिषद का दायित्व संभाला, जनवरी, 1979 में प्रयागराज में संगम तट पर सम्पन्न हुये द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन की तैयारियों के वे स्तम्भ थे। विश्व हिन्दू परिषद में उनका केन्द्र प्रयागराज हो गया। प्रयागराज के कीटगंज मोहल्ले में विश्व हिन्दू परिषद के पास कार्यालय के रूप में भार्गव जी का एक पुराना भवन था। ठाकुर साहब यहीं रहते थे, वे कीडगंज कार्यालय से नित्य संगम स्नान को जाया करते थे। ठाकुर साहब बड़े गोभक्त थे। पिछले 20 वर्षों से निरंतर गौशाला चला रहे थे।ठाकुर साहब किसी को अपने पैर नहीं छूने देते थे।

ठाकुर साहब के पास जो भी व्यक्ति आता था (दिन हो या अर्धरात्रि) ठाकुर साहब उसे अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाते थे तभी उसे सोने देते थे। बीमारों की सेवा वे स्वयं सारी-सारी रात जगकर करते थे। अशोक जी के गुरुदेव की सेवा बड़ी तन्मयता से उनकी आयु पर्यन्त की। अनेकों विद्यार्थियों को उन्होंने योग्य शिक्षा की प्रेरणा दी, पढ़ने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ निर्माण की। परन्तु जिसकी सेवा की कभी उससे कोई कामना नहीं की। उन्हें आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, जड़ी-बूटियों के रोग निवारक गुणों की जानकारी बहुत थी। ठाकुर साहब सदैव मोटी खादी का तीन चैथाई बाहों का कुर्ता तथा ऊँची बंधी मोटी खादी की धोती पहनते थे। सर्दियों में भी अधिक कपड़े नहीं पहनते थे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक परमपूजनीय श्री गुरु जी के पास एक कमंडल रहता था। एक बार उसकी मरम्मत कराने की आवश्यकता थी। बनारस आने पर श्री गुरु जी ने ठाकुर गुरुजन सिंह जी से पूछा ‘‘ठाकुर ये क्या है’’ ? ठाकुर साहब ने उत्तर दिया कि ‘‘है तो यह लौकी की तूम्बड़ी परन्तु महत्व इसका है कि यह किसके हाथ में हैं’’ तब श्री गुरु जी बोले ‘‘अच्छा तो तुम इस कमण्डल की मरम्मत करा दो।’’ श्री गुरु जी ने उनका परिचय कराते समय यह कहा था कि यह ‘‘महात्मा है, महात्मा’’। ठाकुर साहब के जन्म के समय उनका नाम दुर्जन सिंह रखा गया था। श्री गुरु जी ने ही उनका नाम गुरुजन सिंह रखा था। बनारस में गोदौलिया चौराहे पर घटाटे राम मंदिर में संघ कार्यालय प्रारंभिक दिनों से है। ठाकुर साहब यहीं रहा करते थे। कार्यालय के सामने एक मुसलमान बैठा रहता था। ठाकुर साहब उसको भोजन दिया करते थे।

जब परमपूजनीय श्री गुरु जी बनारस आये तो कुछ स्थानीय कार्यकर्ताओं ने शिकायत के लहजे में यह बात श्री गुरु जी को बता दी। श्री गुरु जी ने पूछा ‘‘कहों ठाकुर क्या बात है’’ ? ठाकुर साहब ने उत्तर दिया ‘‘गरीब है, अशक्त है, चल-फिर नहीं सकता,’’ श्री गुरु जी बोले ‘‘ठीक है ! ठीक है !’’ वर्ष 2000 के आस-पास ठाकुर साहब को फेफड़े की बीमारी ने घेर लिया। माननीय अशोक जी उन्हें इलाहाबाद के कीडगंज कार्यालय से अपने पैतृक भवन ‘‘महावीर भवन’’ में रहने के लिए ले आये। नैनी निवासी बजरंग दल के युवा कार्यकर्ता मिथिलेश पांडेय 1990 से कीडगंज कार्यालय पर आते थे। युवक मिथिलेश का लगाव ठाकुर साहब से बढ़ता गया। मिथिलेश ठाकुर साहब का पूरा ध्यान रखने लगा। इलाहाबाद मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर डाॅ0 एस0के0 जैन को ठाकुर साहब की चिकित्सा के लिए मिथिलेश अशोक जी के पास ले आया। अशोक जी बोले! डाॅ0 साहब ये हमारे संरक्षक हैं, संत हैं, हमारे कार्यकर्ता हैं, इन्हें आप स्वस्थ कर दीजिए। डाॅ0 जैन ठाकुर साहब को अपने हॉस्पिटल ले गये, 6 महीने रखा, ठाकुर साहब स्वस्थ हो गये और वापस महावीर भवन में ही रहने लगे। डाॅ0 जैन नित्य स्वयं अथवा अपने व्यक्ति को भेजकर ठाकुर साहब की चिन्ता करने लगे। डाॅ0 जैन ने ठाकुर साहब की देखभाल अपने पिता समान की। ठाकुर साहब दिनभर कॉपी पर राम, राम शब्द लिखते रहते थे। विगत् ढाई वर्षों से उनके पुत्र नरेन्द्र ठाकुर साहब की सेवा में रहते थे। अन्तिम दिनों वे अपने पुत्र नरेन्द्र से मानस सुनने लगे। वे पूर्ण भक्त थे, अनासक्त थे।

ठाकुर साहब ने शायद ही कभी किसी को अपना जन्मदिन बताया हो, शायद उन्हें याद भी नहीं था। 10 अक्टूबर, 2013 को सायंकाल के समय इलाहाबाद में ही अनायास पूछने पर उनके पुत्र नरेन्द्र ने कहा कि गाँव के कागजों से मैं पिता जी की जन्मतिथि खोज कर लाया हूँ, 20 नवम्बर 1918 (मार्गशीर्ष कृष्ण त्रयोदशी, मृगशिरा नक्षत्र) है। सब चौंक गये। आपस में विचार-विमर्श हुआ कि आगामी 20 नवम्बर, 2013 को ठाकुर साहब की आयु 95 वर्ष पूर्ण हो जायेगी। ठाकुर साहब ने कभी किसी को अपना जन्मदिन नहीं बताया, नहीं मनाया, अतः इस बार हम महामृत्युंजय मंत्र जप तथा कुछ होम, नगर और आस-पास के उनके परिचय के व्यक्तियों/कार्यकर्ताओं को बुलाकर सहभोज करेंगे। 20 नवम्बर, 2013 को यह किया गया। 28 नवम्बर को रात्रि 9 बजे के लगभग उन्हाेंने नित्य के समान भोजन किया। रात्रि में उनका रक्तचाप नापने के लिए डाॅ0 एस .के. जैन के चिकित्सालय का व्यक्ति अमित सदैव के समान उनके पास आया। ठाकुर साहब के मुँह से लार गिर रही थी। उसे कपड़े से साफ किया, उन्हें आवाज दी, जब कोई उत्तर नहीं मिला तो हिलाया और अनुभव हुआ कि ठाकुर साहब नहीं रहे। रात्रि के लगभग 9.20 बजे समय था। ठाकुर साहब ने जीवन भर जिनकी उपासना की उसी में वे विलीन हो गये।


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भारत-भारी एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल



सिद्धार्थनगर जनपद में मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर डुमरियागंज तहसील में ग्राम-भारत-भारी में स्थित शिव
मन्दिर और उसके सामने स्थित तालाब, जो लगभग 16 बीघे क्षेत्रफल में है और यह सागर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा भगवान शिव के नाम से घोषित हो चुका है। तालाब के किनारे हनुमान, रामजानकी और दुर्गा जी के मन्दिर स्थित है। कार्तिक पूर्णिमा को यहां बहुत बडा मेला लगता है, जो लगभग एक सप्ताह चलता है, जिसमें लाखों दर्शनार्थी भाग लेते है। इसके अतिरिक्त चैतराम नवमी और शिवरात्रि के पर्व पर भी यहां मेला लगता है। यूनाइटेड प्राविसेंज आफ अवध एण्ड आगरा के वाल्यूम 32 वर्ष 1907 के पृष्ठ-96 और 97 में इस स्थल का उल्लेख है कि वर्ष 1875 में भारत भारी के कार्तिक पूर्णिमा मेले में 50 हजार दर्शनार्थियों ने भाग लिया था। इस स्थल का ऐतिहासिक महत्व भी है। महाराज दुष्यंत के पुत्र भरत ने भारत भारी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय भारत भारी का नाम भरत भारी था। यह कहा जाता है कि जब पांडव अपने अज्ञातवास में आर्द्रवन से गुजर रहे थे तो उनसे मिलने भग्वान श्रीकृष्ण भारत-भारी गांव से ही गुजरे थे। यहां उन्होंने शिव मन्दिर देखा तो रूक गये और पास के सागर में स्नान करने के बाद मन्दिर में जाकर पूजा अर्चना की।
 भारत-भारी  एक ऐतिहासिक पर्यटक स्थल

यह भी किवदन्ती है कि जब राम और रावण के बीच युद्ध हुआ तो राम के भाई लक्ष्मण जब मुर्छित हो गये थे तो हनुमान जी संजीवनी बूटी भारत-भारी होकर ले जा रहे थे, जिन्हें देखकर भरत ने उन्हें राम का कोई शत्रु समझकर तीर मारा और हनुमान पर्वत लेकर वहीं गिर पडे, वहां गड्ढा हो गया जो तालाब के रूप में परिवर्तित हो गया। हनुमान को देखकर भरत को पछतावा हुआ है उन्होंने यहां शिव मंदिर की स्थपना करायी।

 यह भी जनश्रुति है कि महाराज दुष्यन्त के पुत्र भरत ने इसे अपनी राजधानी बनाया था जिससे इसका नाम भारत भारी पडा, जो एक बहुत बडे नगर के रूप में स्थापित हुआ था। 

बनारस हिन्दू विश्व विद्यालय के प्राचीन इतिहास पुरातत्वविद श्री सतीश चन्द्र ने भारत भारी का स्थलीय निरीक्षण करके मूर्तियों, धातुओं, पुरा अवशेषों के अवलोकन के बाद इसके ऐतिहासिक स्थल होने की पुष्टि की
है। प्राचीन टीले और कूंए के नीचे दीवालों के बीच में कहीं-कहीं लगभग 8 फीट लम्बे नरकंकाल मिलते हैं, जो इतने पुराने होने के कारण इस स्थिति में हो गये हैं कि छूने पर राख जैसे विखर जा रहे है। भूमिगत पुरावशेषों से इसके आलीशान नगर होने की पुष्टि इससे भी होती है कि किले के नीचे तमाम ऐसी नालियां हैं, जो आपस में जुडकर अन्त में जलाशय से जुड़ गयी है। 

पुरातत्व विभाग ने कुषाण काल के ऐतिहासिक स्थल के रूप में 10 वर्ष पहले इसे सूचीबद्ध किया है। भारत-भारी एक ऐतिहासिक पौराणिक स्थल है, जिसे एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है।



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हिस्टीरिया (Hysteria) : कारण और निवारण



हिस्टीरिया का उपचार,लक्षण और कारण | Treatment Of Hysteria | Hysteria
यह रोग कोमल स्वभाव वाली स्त्रियों में अधिकतर देखा जाता है। पुरुष स्वभाव से ही थोड़े कठिन होते हैं किन्तु कोमल स्वभाव के भी कुछ पुरुष देखे जाते हैं। उनमें भी यह रोग का होना पाया जाता है। यह रोग मुख्यता उन नवयुवतियों को होता है जिनमें अपने प्रति असुरक्षा की भावना होती है एवं अत्यधिक मानसिक अवसाद में जीती हैं। जिन जवान स्त्रियों की समभोग इच्छा तृप्त नहीं होती उनको ही यह रोग अत्यधिक देखा जाता है। मानसिक अवसाद, भय, चिन्ता, शोक, पारिवारिक कष्ट, अचानक मानसिक आघात, मासिक रोग की गड़बड़ी, मंदाग्नी एवं अजीर्ण, घरेलू कलेश इत्यादि रोगों से भी यह रोग बनता है। इस बीमारी का सबसे घनिष्ठ सम्बन्ध दीमाग से है। दीमागी परेशानी अधिक बढ़ने पर रोग का रूप बढ़ता है। कम परेशानी होने पर रूप कम दिखाई देता है। एक रोगी में जो लक्षण होते हैं दूसरे में भिन्न प्रकार से लक्षण होते हैं। सबमें लक्षण का एक रूप नहीं होता इस रोग की चिकित्सा उसी कुशल वैद्य या डाक्टर करानी चाहिए जो मनुष्यों की मानसिक संवेदना एवं स्थिति को भलीभांति समझता हो। दीमागी गड़बड़ी के कारण ही ज्ञानेन्द्रियों में गड़बड़ी पैदा होती है। इस कारण हिस्टीरिया रोग में देखने, सुनने, बोलने, सूंघने या छूने में विकार पैदा होता है। इस प्रकार के रोगी में या तो सामने की दृष्टि में या बगल की दृष्टि में दोष आ जाता है। कोई ऊंचा सुनने लगता है, कोई कम सुनने लगता है या बिल्कुल नहीं सुनता। इसी प्रकार बोलने में भी फर्क आ जाता है और किसी-किसी की बोली बंद हो जाती है। किसी की छूने की शक्ति मारे जाने के कारण कांटा चुबना या चिंटी-मकोड़े के काटने का कुछ भी मालूम नहीं होता। संवेदन शक्ति भी इस प्रकार के रोगी की लोप हो जाती है। स्नायु मण्डल के विकार के कारण लकवा के लक्षण भी पैदा हो जाते हैं। हिस्टीरिया का प्रधान लक्षण मूर्छा या बेहोशी है। किसी-किसी को यह 1-2 दिन तक निरन्तर होता देखा गया है एवं बहुत से रोगियों में बार-बार और जल्दी-जल्दी दौरा होता है। ऐसी अवस्था में होश आते ही कुछ समय पश्चात् रोगी को फिर मूर्छा आती है। बेहोशी की अवस्था में रोगी के दांत भीच जाते हैं एवं शरीर अकड़ जाता है। किसी-किसी रोगी को मृगी की तरह मुंह से झाग भी आने लगती है। हिस्टीरिया रोग में मृगी रोग की तरह शरीर का नीलापन या आंखों की पुतली नहीं फिरती एवं दौरे की स्थिति तक बन जाती है।

कारणः-
  • तनावः- हिस्टीरिया रोग का खतरा रोगी के चेतन व अचेतन मन में चल रहे तनाव के कारण ही होता है। ये लक्षण रोगी द्वारा बनावटी तौर पर जानबूझ कर तैयार नहीं किए जाते। तनाव से अधिक ग्रस्त हो जाने के बाद बहुत कोशिशों के बाद भी जब व्यक्ति इससे बाहर नहीं आ पाता, तो रोगी को हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं। यह रोग उन महिलाओं को अपनी गिरफ्त में लेता है, जिन्हें तनाव से बाहर निकलने में पारिवारिक व सामाजिक कहीं से भी कोई जरिया नहीं मिलता। 10 में से 9 बार महिलाओं को यह रोग होता है।
  • कमजोर व्यक्तित्वः- ऐसे स्वभाव वाले रोगी बहुत जिद्दी होते हैं, जब इनके मन के अनुरूप कोई कार्य नहीं होता तो ये बहुत परेशान हो जाते हैं। कभी-कभी अपने मन की बात को पूरा करने के लिए जिद्द करने लगते हैं, जिस कारण चीजें फेंकने लगते हैं और स्वयं को नुकसान पहुंचाते हैं। कभी-कभी रोगी विपरीत परिस्थितियों में बदहवास हो जाते हैं, सांस उखड़ने लगती है और रोगी अचेत हो जाते हैं।
लक्षणः-
  • दौरे पड़नाः- रह-रहकर हाथ-पैरों व शरीर में झटके आना, ऐंठन होना व बेहोश हो जाना।
  • अचानक आवाज निकलना बदं हो जानाः- हिस्टीरिया से ग्रस्त रोगी के गले से आवाज निकलना बंद हो जाता है और रोगी इशारों व फुसफुसा कर बातें करने लगता है। कभी-कभी तो रोगी को दिखाई देना भी बंद हो जाता है। यह लक्षण दौरे के रूप में एक साथ या बदल-बदल कर कुछ मिनटों से लेकर कुछ घण्टों तक रहते हैं, कुछ समय पश्चात् स्वतः ही बंद हो जाते हैं। यदि रोगी को उपचार नहीं मिलता तो 1 दिन में 10 बार दौरे पड़ने लगते हैं तो कभी 2-3 माह में 1-2 बार ही हिस्टीरिया के दौरे पड़ने लगते हैं।
  • उल्टी सांसें चलनाः- रोगी जोर-जोर से गहरी-गहरी सांसें लेता है। रह-रह कर छाती व गला पकड़ता है और ऐसा महसूस होता है जैसा कि रोगी को सांस आ ही नहीं रही हैं और उसका दम घुट रहा है।
  • हाथ-पैर न चलनाः- रोगी की स्थिति गम्भीर होने पर हाथ-पैर फालिज की तरह ढीलें पड़ जाते हैं और कुछ समय तक रोगी चल-फिर भी नहीं पाता।
  • अचेत हो जानाः- रोगी अचानक या धीरे-धीरे अचेत होने लग जाता है। इस दौरान रोगी की सांसें चलती रहती हैं और शरीर बिल्कुल ढीला हो जाता है मगर दांत कसकर भिंच जाते हैं। यह अचेतन अवस्था कुछ मिनटों से लेकर कुछ घण्टों तक बनी रहती है। कुछ समय बाद रोगी खुद ही उठकर बैठ जाता है और उसका व्यवहार ऐसा होता है जैसे उसे कुछ हुआ ही न हो।
सारस्वत घृत
पाढ़ लोध वच सहजना धाय सेंधव आन।
पल पल सब ले लीजिये गौघृत प्रस्थ प्रमान।।
सारस्वत घृत छाग पय डारि सिद्ध कर लेय।
गदगद मिनमिन मूकता रोग नष्ट करि देय।।
तर्क शक्ति मेधा स्मृति बढ़ै मधुर स्वर होय।
कुपित कण्ठ गतवात कफ गदहि नष्ट करि देय।।

चिकित्सा:- जिस कारण से रोग हो उस कारण को ज्ञात कर उसकी चिकित्सा करनी चाहिए।
  1. कामवासना के कारण यदि यह रोग बने तो कामवासना शान्त करने के लिए प्रयास करना चाहिए। शरीर की उत्तेजना शान्त करने के लिए 1 ग्राम कपूर प्रातःकाल जल के साथ सेवन करने से भी उत्तेजना शान्त होती है।
  2. केले के तने का रस आधी कटोरी सेवन करने से भी शरीर की उत्तेजना शान्त होती है।
  3. जटामांसी 10 ग्राम, अश्वगंधा 3 ग्राम, अजवायन 1.5 ग्राम जौकूट कर 100 ग्राम पानी में पकाकर चैथाई भाग रहने पर छानकर सेवन करने से हिस्टीरिया रोग शान्त होता है। इस क्वाथ का नाम मांस्यादि क्वाथ है। इसके सेवन से निद्रा नाश भी होती है।
  4. घी में भूनी हुई हींग 10 ग्राम, कपूर 10 ग्राम, भांग का सत (गांजा) 5 ग्राम, अजवायन 20 ग्राम, तगर 20 ग्राम सबको बारीक कर जटामांसी के क्वाथ के साथ घोटकर 250 मिली ग्राम की गोली बनाकर सूखाकर 2 गोली उपरोक्त मांस्यादि क्वाथ या सारस्वतारिष्ट के साथ 2-3 बार सेवन करने से चमत्कारिक लाभ मिलता है।
  5. सारस्वत चूर्ण 1 चम्मच 2 बार भोजन बाद अश्वगंधा रिष्ट के साथ सेवन करने से भी हिस्टीरिया एवं मृगी रोग में बहुत लाभ मिलता है।
  6. ब्राह्मी घृत भी इस बीमारी में बहुत लाभ देती है।
  7. ब्राह्मी की ताजी हरी पत्तियां 3 ग्राम (सूखी 1 ग्राम), कालीमिर्च 15 नग मिलाकर, पीसकर जल के साथ सेवन करने से भी इस रोग में शान्ति मिलती है।
  8. बाह्मी स्वरस 10 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से भी हिस्टीरिया, मृगी एवं पागलपन में लाभ मिलता है व दिमाग दुरुस्त रहता है।
  9. सर्पगंधा चूर्ण 2-3 ग्राम 2 बार जल के साथ सेवन करने से भी लाभ मिलता है।
  10. जटामांसी चूर्ण 2-3 ग्राम 2 बार जल के साथ सेवन करने से भी लाभ मिलता है एवं दीमाग शान्त रहता है।
  11. मकरध्वज, कालीमिर्च एवं शुद्ध मेनसिल समभाग लेकर पान के रस में घोटकर गोला बनाकर सुखाकर धान के अन्दर 15 दिन दबाकर, निकालकर 125 मिली ग्राम शहद के साथ 2 बार सुबह-शाम चाटने से बहुत लाभ मिलता है। यदि कस्तूरी उपलब्ध हो तो इसमें मिलाकर सेवन करने से यह बीमारी नष्ट होती है।
  12. 40 किलो नेत्रबाला, 1 किलो बालछड़ लेकर दोनों की भस्म बनाकर राख को पानी में भिगो कर एवं क्षार विधि से उसका क्षार निकाल लिया। यह क्षार आधा-आधा ग्राम अश्वगंधारिष्ट एवं सारस्वतारिष्ट के साथ सेवन करने से अथवा जल के साथ भी सेवन करने से हिस्टीरिया रोग में बहुत लाभ मिलता है।
  13. ब्राह्मी वटी का सेवन अश्वगंधारिष्ट एवं सारस्वतारिष्ट के साथ सेवन करने से भी बहुत लाभ मिलता है।
  14. वातकुलांतक रस भी इस रोग की प्रधान दवा है।
  15. हींग 20 ग्राम, बच 20 ग्राम, जटामासी, काला नमक, कूठ, बायविडंग 40-40 ग्राम लेकर, कूटकर 1-1 चम्मच दिन में 2-3 बार जल के साथ सेवन करने से हिस्टीरिया रोग में लाभ मिलता है एवं नींद भी आने लगती है।
  16. केसर, जावित्री 4-4 ग्राम, असगन्ध, जायफल, पीपली (गाय के दूध में उबाली हुई) 1-1 ग्राम, अदरख 20 ग्राम, पान 10 नग समस्त औषधियां कूटकर 250 मिली ग्राम की गोली बनाकर 1-1 गोली दिन में 3-4 बार पान के साथ चबाकर खाने से हिस्टीरिया रोग में बहुत लाभ मिलता है। साथ ही साथ मस्तिष्कजन्य विकार भी दूर होते हैं।
  17. पीपल के पिण्ड में जो पतले-पतले तन्तु निकलते हैं उसे दो तोला लेवें व कूट पीसकर उसमें जटामासी एक तोला, जावित्री एक तोला, कस्तूरी एक तोला, माशे का चूर्ण मिलाकर खूब खरल करके एक-एक रत्ती की गोली बना लें। 
  18. हिस्टीरिया रोगी को दो-दो गोली सवेरे, दोपहर, शाम को खिलाने और आधा घण्टे के बाद गुनगुना दूध पिलावें। इस प्रयोग को 29 दिन तक करने से हिस्टीरिया का रोग मिट जाता है। हल्का एवं बलदायक भोजन सेवन करना लाभप्रद है। 
  19. चीनी की जगह शहद का सेवन उत्तम है। दीमागी तनाव दूर रखना चाहिए एवं उत्तेजक खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए। लाल मिर्च, खटाई, तले पदार्थ, चाट-पकौड़ी, जंक फूड, बैंगन, गुड़, चाय-काफी, मांस-मदिरा इत्यादि का परहेज हितकारी है। कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे मस्तिष्क में विकार हो। हरी सब्जियां, हरी सब्जियों का सूप, फल एवं फलों का रस बहुत लाभ देता है।
महत्वपूर्ण लेख 


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    जनहित याचिका / Public Interest Litigation



    Public Interest Litigation
    जनहित याचिका/Public Interest Litigation (जिसे संक्षेप में PIL/पीआईएल कहते है)  वह याचिका है, जो कि जन (लोगों) के सामूहिक हितों के लिए न्यायालय में दायर की जाती है। कोई भी व्यक्ति जन हित में या फिर सार्वजनिक महत्व के किसी मामले के विरुद्ध, जिसमें किसी वर्ग या समुदाय के हित या उनके मौलिक अधिकार प्रभावित हुए हों, जनहित याचिका के जरिए न्यायालय की शरण ले सकता है।

    जनहित याचिका किस न्यायालय के समक्ष दायर की जा सकती है। जनहित याचिका निम्नलिखित न्यायालयों के समक्ष दायर की जा सकती है:-
    1. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय के समक्ष।
    2. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अन्तर्गत उच्चन्यायालय के समक्ष।
    जनहित याचिका कब दायर की जा सकती है
    जनहित याचिका दायर करने के लिए यह जरूरी है, कि लोगों के सामूहिक हितों जैसे सरकार के कोई फैसले या योजना, जिसका बुरा असर लोगों पर पड़ा हो। किसी एक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है।

    जनहित याचिका कौन व्यक्ति दायर कर सकता है
    कोई भी व्यक्ति जो सामाजिक हितों के बारे में सोच रखता हो, वह जनहित याचिका दायर कर सकता है। इसके लिये यह जरूरी नहीं कि उसका व्यक्तिगत हित भी सम्मिलित हो।
    जनहित याचिका किसके विरूद्ध दायर की जा सकती है
    जनहित याचिका केन्द्र सरकार, राज्य सरकार, नगर पालिका परिषद और किसी भी सरकारी विभाग के विरूद्ध
    दायर की जा सकती है। यह याचिका किसी निजी पक्ष के विरूद्ध दायर नहीं की जा सकती। लेकिन अगर किसी निजी पक्ष या कम्पनी के कारण जनहितों पर बुरा प्रभाव पड़ रहा हो, तो उस पक्ष या कम्पनी को सरकार के साथ प्रतिवादी के रूप में सम्मिलित किया जा सकता है। उदाहरण के लिये कानपुर में स्थित किसी निजी कारखाने से वातावरण प्रदूषित हो रहा हो, तब जनहित याचिका में निम्नलिखित प्रतिवादी होंगे -
    1. उत्तर प्रदेश राज्य / भारत संघ जो आवश्यक हो अथवा दोनों भी हो सकते है।
    2. राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड और
    3. निजी कारखाना।
    जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
    जनहित याचिका ठीक उसी प्रकार से दायर की जाती है, जिस प्रकार से रिट (आदेश) याचिका दायर की जाती
    है।
    उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
    उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिए निम्नलिखित बातों का होना जरूरी है।
    प्रत्येक याचिका की एक छाया प्रति होती है। यह छाया प्रति अधिवक्ता के लिये बनाई गई छाया प्रति या अधिवक्ता की छाया प्रति होती है। एक छाया प्रति प्रतिवादी को देनी होती है, और उस छाया प्रति की देय रसीद लेनी होती है। दूसरे चरण में जनहित याचिका की दो छाया प्रति, प्रतिवादी द्वारा प्राप्त की गई देय रसीद के साथ न्यायालय में देनी होती है।

    उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने की प्रक्रिया क्या है
    उच्चतम न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर करने के लिये याचिका की पाँच छाया प्रति दाखिल करनी होती हैं। प्रतिवादी को याचिका की छाया प्रति सूचना आदेश के पारित होने के बाद ही दी जाती है।

    क्या एक साधारण पत्र के जरिये भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
    जनहित याचिका एक खत या पत्र के द्वारा भी दायर की जा सकती है लेकिन यह याचिका तभी मान्य होगी जब यह निम्नलिखित व्यक्ति या संस्था द्वारा दायर की गई हो।
    1. व्यथित व्यक्ति द्वारा,
    2. सामाजिक हित की भावना रखने वाले व्यक्ति द्वारा,
    3. उन लोगों के अधिकारों के लिये जो कि गरीबी या किसी और कारण से न्यायालय के समक्ष न्याय पाने के लिये नहीं आ सकते।
    जनहित याचिका दायर होने के बाद न्याय का प्रारूप क्या होता है
    जनहित याचिका में न्याय का प्रारूप प्रमुख रूप से दो प्रकार का होता है।
    1. सुनवाई के दौरान दिये गये आदेश, इनमें प्रतिकर,औद्योगिक संस्था को बन्द करने के आदेश, कैदी को जमानत पर छोड़ने के आदेश, आदि होते हैं।
    2. अंतिम आदेश जिसमें सुनवाई के दौरान दिये गए आदेशों एवं निर्देशों को लागू करने व समय सीमा जिसके अन्दर लागू करना होता है।
    क्या जनहित याचिका को दायर करने व उसकी सुनवाई के लिये वकील आवश्यक है
    जनहित याचिका के लिये वकील होना जरूरी है और राष्ट्रीय/राज्य या जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अन्तर्गत सरकार के द्वारा वकील की सेवाएं प्राप्त कराए जाने का भी प्रावधान है।

    निम्नलिखित परिस्थितियों में भी जनहित याचिका दायर की जा सकती है
    1. जब गरीबों के न्यूनतम मानव अधिकारों का हनन होरहा हो।
    2. जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्यों एवं दायित्वों की पूर्ति न कर रहा हो।
    3. जब धार्मिक अथवा संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा हो।
    4. जब कोई कारखाना या औद्योगिक संस्थान वातावरण को प्रदूषित कर रहा हो।
    5. जब सड़क में रोशनी (लाइट) की व्यवस्था न हो, जिससे आने जाने वाले व्यक्तियों को तकलीफ हो।
    6. जब कहीं रात में ऊँची आवाज में गाने बजाने के कारण ध्वनि प्रदूषण हो।
    7. जहां निर्माण करने वाली कम्पनी पेड़ों को काट रही हो, और वातावरण प्रदूषित कर रही हो।
    8. जब राज्य सरकार की अधिक कर लगाने की योजना से गरीब लोगों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़े।
    9. जेल अधिकारियों के खिलाफ जेल सुधार के लिये।
    10. बाल श्रम एवं बंधुआ मजदूरी के खिलाफ।
    11. लैंगिक शोषण से महिलाओं के बचाव के लिये।
    12. उच्च स्तरीय राजनैतिक भ्रष्टाचार एवं अपराध रोकने के लिये।
    13. सड़क एवं नालियों के रखरखाव के लिये।
    14. साम्प्रदायिक एकता बनाए रखने के लिये।
    15. व्यस्त सड़कों से विज्ञापन के बोर्ड हटाने के लिये, ताकि यातायात में कठिनाई न हो।
    जनहित याचिका से संबन्धित उच्चतम न्यायालय के कुछ महत्वपूर्ण निर्णय
    1. रूरल लिटिगेशन एण्ड इंटाइटलमेंट केन्द्र बनाम् उत्तर प्रदेश राज्य, और रामशरण बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय के कहा कि जनहित याचिकाओं की सुनवाई के दौरान न्यायालय को प्रक्रिया से संबन्धित औपचारिकताओं में नहीं पड़ना चाहिए।
    2. शीला बनाम भारत संघ में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जनहित याचिका को एक बार दायर करने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता।
    भारतीय विधि से संबधित महत्वपूर्ण लेख


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    भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा बैंकों के लिए निर्धारित आचार संहिता



    ग्राहकों के प्रति बैंकों की कुछ प्रतिबद्धताएं होती हैं जिसे सुनिश्चित करते हुए बैंकों को अपने ग्राहकों के साथ निष्पक्ष एवं न्यायसंगत व्यवहार करना चाहिए। भारतीय बैंकिंग बोर्ड एवं मानक बोर्ड द्वारा निर्धारित आचार संहिता प्रतिबद्धताएं निम्नलिखित हैं:
    1. बैंक के काउंटर पर नकदी एवं चेक की प्राप्ति तथा भुगतान की न्यूनतम बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।
    2. बैंकों द्वारा प्रस्तुत उत्पादों एवं सेवाओं के लिए तथा बैंकों के स्टाफ द्वारा अपनायी जा रही क्रिया विधियों तथा प्रथाओं में इस कोड की प्रतिबद्धता तथा मानकों को पूरा कराना।
    3. यह सुनिश्चित करना कि बैंक के उत्पाद तथा सेवाएं संबंधित कानूनों तथा नियमों का पूरी तरह से पालन करती हैं।
    4. ग्राहक के साथ बैंक के व्यवहार ईमानदारी तथा पारदर्शिता के नैतिक सिद्धांत पर आधारित होना चाहिए।
    5. बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी शाखाओं में सुरक्षित तथा भरोसेमंद बैंकिंग तथा भुगतान प्रणालियां चलती रहें।उत्पाद एवं सेवा के बारे में ग्राहकों को स्पष्ट रूप से सूचना देना। इसके लिए हिन्दी, अंग्रेजी या स्थानीय भाषा का प्रयोग किया जाना चाहिए।
    6. बैंक के विज्ञापन तथा संवर्धन संबंधी साहित्य स्पष्ट होने चाहिए। यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि विज्ञापन किसी प्रकार से भ्रामक न हों।
    7. बैंक के उत्पादों एवं सेवाओं के संबंध में, उन पर लागू शर्तों तथा ब्याज दरों और सेवा प्रभारों के संबंध में ग्राहकों को स्पष्ट सूचना दिया जाना चाहिए।
    8. ग्राहकों को कैसे लाभ हो सकता है, उसके वित्तीय निहितार्थ क्या हैं,आदि बातों की जानकारी देना तथा किसी प्रकार की समस्या होने पर ग्राहक किससे संपर्क करें, इन सब बातों की जानकारी दी जानी चाहिए।
    9. ग्राहकों के खाते तथा सेवा के उपयोग के बारे में नवीनतम जानकारी उपलब्ध कराना बैंकों का कर्तव्य है।
    10. कुछ गलत हो जाने पर शीघ्र तथा सहानुभूतिपूर्वक कार्रवाई करना।
    11. गलती को तुरंत सुधारना तथा बैंक की गलती के कारण लगाए गए बैंक प्रभारों को रद्द करना।
    12. ग्राहकों की शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई करना।
    13. तकनीकी असफलता के कारण उत्पन्न हुई किसी समस्या को दूर करने के लिए वैकल्पिक उपाय उपलब्ध कराना।ब्याज दरों, प्रभारों या शर्तों में समय-समय पर होने वाले परिवर्तनों से ग्राहकों को अवगत कराना।
    14. ग्राहकों की व्यक्तिगत सूचना को गोपनीय रखना।
    15. खाता खोलते समय ग्राहकों को उत्पाद या सेवा से संबंधित सभी नियम एवं शर्तों की जानकारी देना।

    16. बैंक की प्रत्येक शाखा में शुल्क एवं प्रभार की सूची लगाना।
    17. ग्राहक को यदि बैंक से कोई शिकायत है तो, उसे कैसे, कहाँ तथा किससे शिकायत करनी है, इसकी जानकारी उपलब्ध कराना।
    18. कोई भी बैंक बिना ग्राहक की लिखित अनुमति के, टेलीफोन,एसएमएस, ईमेल आदि द्वारा नए उत्पादों या सेवा के बारे में अतिरिक्त जानकारी नहीं देगा।
    19. बैंक को ग्राहक के जमा व ऋण खातों पर लगने वाले ब्याज की सूचना देनी चाहिए।
    20. ग्राहक की जमाराशियों पर ब्याज, कितना और कब देंगे या ऋण खातों पर प्रभार कब लगाया जाएगा इसकी सूचना बैंक को देनी चाहिए।
    21. किसी उत्पाद के ब्याज दर पर होने वाले परिवर्तनों की सूचना ग्राहक को दी जानी चाहिए।
    22. बैंक को अपनी शाखाओं में सूचना पट्ट लगाना आवश्यक है तथा उस पर निःशुल्क सेवाओं की सूची, बचत खाते में न्यूनतम जमा राशि न रखने पर लगने वाला प्रभार, बाहरी चेक की वसूली, मांग ड्राफ्ट, चेक बुक जारी करने पर, खाता विवरण, खाता बंद करने तथा एटीएम में राशि जमा करने एवं निकालने पर लगने वाले प्रभार की सूचना लिखना अनिवार्य है।
    23. ग्राहकों द्वारा चुने गए उत्पाद या सेवा की शर्तों के उल्लंघन या अनुपालन न करने पर दंड के बारे में भी बैंक को सूचित करना चाहिए।
    24. यदि बैंक किसी प्रभार में वृद्धि करते हैं या नया प्रभार लागू करते हैं, तो इसके प्रभावी होने की तारीख से एक माह पूर्व उन्हें अधिसूचित किया जाना चाहिए।
    25. बैंक ग्राहक की वैयक्तिक सूचना को गोपनीय रखने के लिए प्रतिबद्ध होता है, लेकिन कुछ अपवादात्मक मामलों में उसे छूट है, जो निम्न हैंः 1. बैंक को कानूनी तौर पर देनी पड़े, 2. सूचना देना जनहित में जरूरी हो और 3. बैंक के हितों के लिए सूचना देना आवश्यक हो।


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    बलात्कार (Rape) क्या है! कानून के परिपेक्ष में



     बलात्कार (Rape) क्या

    बलातकार किसे कहते है
    कानून की नजर में बलात्कार (Balatkar) अथवा रेप एक जघन्य अपराध है। आए दिन महिलाएं इसका शिकार हो रही हैं। महिलाएं सामाजिक रूढि़वादियों से बचने के लिए इस बात को दबा देती हैं। इसकी खास वजह पुलिस एवं कोर्ट-कचहरी है। कुछ लोग तो पुलिस थानों में सूचना भी नहीं देते हैं। कानून की नजर में -
    “किसी महिला की इच्छा के विरूद्ध यदि कोई व्यक्ति उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता है, उसे बलात्कार या रेप कहते हैं।''
    बलात्कार और यौन हिंसा के अन्य मामले विकसित और विकासशील देशों दोनों में ही देखे जाते हैं। बलात्कार भारतीय दंड संहिता (आई. पी. सी) की धाराओं 375 और 376 के तहत अपराध है। किसी महिला की स्वीकृति के बिना उसके साथ यौन हिंसा को बलात्कार के रूप में परिभाषित किया गया है। अगर महिला की उम्र १६ साल से कम है तो उसके साथ कोई भी यौनिक संबंध बलात्कार माना जाता है और उसमें स्वीकृति होने न होने से फर्क नहीं पड़ता है। अगर उसकी शादी हो गई हो तब भी। वैसे भी किसी नाबालिग लड़की से शादी करना कानूनन जुर्म है। परन्तु अनगिनत अपराधी कानूनी कार्यवाही से पहले या बाद में आसानी से बच निकलते हैं। हाल में यह एक विवाद का विषय बना हुआ है कि बलात्कार के लिए मृत्युदंड दिया जाना चाहिए। कुछ लोगों को लगता है कि यह ज़रूरी है पर अन्य बहुत से लोग, जिनमें महिला संगठन भी शामिल हैं इसे गलत मानते हैं। एक डर यह भी जताया जाता है कि प्रमाण सबूत खतम करने के लिए पीडित महिला को ही खतम कर दिया जाएगा। एक और संभावना यह है कि इस सजा का गलत इस्तेमाल किया जाएगा।
    बलात्कार के बाद गर्भधारण न हो इस पर नियंत्रण करना ज़रूरी है। पीडित महिला को चिकित्सक परीक्षण उपरान्त और कानूनी प्रकिया के तुरन्त बाद ही डाक्टर की सलाह से संभोग पश्चात गर्भ निरोधक गोली देनी चाहिये ताकि अनचाहे संभावित गर्भधारण होने से रोका जा सके। अगर इसके पश्चात गर्भधारण हो जाये तो गर्भपात पंजीकृत डाक्टर से करना चाहिये। यह सारी प्रक्रिया पीडिता के लिये शारीरिक, मानसिक और सामाजिक त्रास का कारण होती है इसलिये उसके संवेदनशील व्यवहार जरूरी है।

    भारतीय दण्ड संहिता 1860 की धारा 375 के अन्तर्गत बलात्कार कब माना जाता है -
    1. अगर कोई पुरूष महिला की सहमति के बिना उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध करता है। सहमति किसी तरह से डरा-धमका कर ली गई हो जैसे उसको मारने, घायल करने या उसके करीबी लोगों को मारने या घायल करने की धमकी दे कर ली गई हो।
    2. अगर सहमति झूठे प्रलोभन, झूठे वादे तथा धोखेबाजी (जैसे कि शादी का वादा, जमीन जायदाद देने का वादा, आदि) से ली जाती है तो ऐसी सहमति को सहमति नहीं माना जाएगा।
    3. नकली पति बनकर उसकी सहमति के बाद किया गया संभोग।
    4. उसकी सहमति तब ली गई हो जब वह दिमागी रूप से कमजोर या पागल हो।
    5. नशीले पदार्थ के सेवन के कारण वह होश में न हो तब उसकी सहमति ली गई हो।
    6. 16 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ किया गया शारीरिक सम्बन्ध बलात्कार की श्रेणी में आता है चाहेलड़की की सहमति हो तब भी।
    बलात्कार के लिए सजा
    1. सात साल का कारावास जो बढ़कर 10 साल का भी हो सकता है। कुछ मामलों में इसे उम्र कैद में भी बदला जा सकता है। इसके अलावा जुर्माना भी हो सकता है।
    2. जिस महिला के साथ बलात्कार किया गया हो वह उसकी पत्नी हो और 12 साल से कम उम्र की न हो तब उस व्यक्ति को 2 साल का कारावास या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
    3. अगर न्यायालय 7 साल से कम की सजा देता है तो उसे लिखित रूप में उसका उचित कारण देना होगा।
    विशेष परिस्थितियों में सजा -  निम्न व्यक्तियों द्वारा किए गए बलात्कार की सजा कम से कम 10 साल का सश्रम कारावास जिसको उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है अगर कोई पुलिस अधिकारी निम्न अवस्थाओं में बलात्कार करता है -
    1. उस थाने के क्षेत्र के अन्दर जिसका वह क्षेत्र अधिकारी हो।
    2. उन थानों के अन्दर जो उसके अधिकार में न हो।
    3. वह महिला जो उसकी हिरासत में या उसके अधीनस्थ अधिकारी की हिरासत में हो।
    4. लोक सेवक जो अपने अधिकारों का दुरुपयोग करके उसकी हिरासत में हो या उसके अधीनस्थ की हिरासत में होने वाली महिला के साथ बलात्कार करता है।
    5. नारी निकेतनों, बाल संरक्षण गृहों, कारावास के अधिकारियों एवं कर्मचारियों द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करते हुए उनकी हिरासत में जो महिलाएं हों उनके साथ बलात्कार करता हो।
    6. अस्पताल का प्रबन्धक और कर्मचारियों द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए उनकी हिरासत में जो महिलाएं हो उनके साथ बलात्कार करता हो।
    7. गर्भवती महिला के साथ जो बलात्कार करता हो।
    8. 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ जो बलात्कार करता हो।
    9. जो सामूहिक बलात्कार करता हो।
    निम्नलिखित परिस्थितियों में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करना अपराध माना जाता है -
    1. जो व्यक्ति कानूनी तौर पर अलग रहता हो परन्तु पत्नी की सहमति के बिना शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हो, उसको 2 साल का कारावास और जुर्माना भी हो सकता है।
    2. लोक सेवक द्वारा अपने अधिकारों का दुरूपयोग करके, नारी निकेतनों, बाल संरक्षण गृहों एवं कारावास, अस्पताल का प्रबन्धक और कर्मचारियों द्वारा उनके संरक्षण में जो महिलाएं हो उनके साथ शारीरिक सम्बन्ध स्थापित करता हो, ऐसे सभी अपराधों में 5 साल तक की सजा और जुर्माना दोनों भी हो सकते हैं।
    बलात्कार से शोषित महिला कौन-कौन सी सावधानी बरतें
    1.  अपने सगे सम्बन्धियों या दोस्तों को खबर करें।
    2. तब तक स्नान न करें जब तक डाक्टर जाँच व प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज न हो जाए।
    3. कपड़े न धोये क्योंकि यह कपड़े जाँच के आधार हैं।
    4. प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराएं।
    प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखते समय ध्यान देने योग्य बातें-
    1. घटना की तारीख
    2. घटना का समय
    3. घटना का स्थान अवश्य लिखाएं।
    4. रिपोर्ट लिखाने के बाद उसकी एक काॅपी अवश्य लें।
    5. पुलिस का कर्तव्य है कि वह पीडि़त महिला की डाक्टरी जाँच पंजीकृत डाक्टर से या नजदीकी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में करवाकर डाक्टरी जांच की काॅपी अवश्य दें।
    6. बलात्कार के समय जो कपड़े पीडि़त महिला ने पहने हैं, डाक्टरी जांच के बाद पुलिस आपके सामने उन कपड़ों को सील बन्द करेगी जिसकी रसीद अवश्य ले लें।
    बलात्कार और टू फिंगर टेस्ट (Rape and Two Finger Test) :
    1. बलात्कार हुआ है, इसे सिद्ध करने के लिये लिए डॉक्टर टू फिंगर टेस्ट करते हैं। यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनि में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है। यह भी जांचा जाता है कि दुष्कर्म की शिकार महिला सम्भोग की आदी है या नहीं। यह एक बेहद विवादास्पद परीक्षण है, जिसके तहत महिला की योनि में उंगलियां डालकर अंदरूनी चोटों की जांच की जाती है।
    2. टू फिंगर टेस्ट के दो मामले उदाहरण के लिए लिए जा सकते है। वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश हाइकोर्ट ने एक अभियुक्त यतिन कुमार को टू फिंगर टेस्ट आधार पर दोषी करार दिया क्योंकि मेडिकल रिपोर्ट से पता चलता था कि पीड़ित महिला को ‘सेक्स की आदत’ नहीं थी क्योंकि डॉक्टर अपनी दो उंगलियों को ‘मुश्किल’ से प्रवेश करा सका, जिसके कारण खून बह निकला था और कोर्ट इस टेस्‍ट के आधार पर निष्कर्ष पर पहुँचाी कि पीडिता का बलात्‍कार हुआ है किन्‍तु इसी टेस्‍ट के आधार पर 2006 में पटना हाइ कोर्ट में हरे कृष्णदास को गैंगरेप के मामले में बरी कर दिया गया क्योंकि डॉक्टर ने जांच में पाया कि पीड़िता की हाइमन पहले से भंग थी और वह सक्रिय सेक्स लाइफ जी रही थी। जज का कहना था कि महिला का कैरेक्टर ‘लूज़’ है।
    3. निश्चित रूप से टू फिंगर टेस्ट एक सभ्‍य समाज की असभ्‍य जांच प्रकिया है। भारत में 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने टू फिंगर टेस्ट को बलात्कार पीड़िता के अधिकारों का हनन और मानसिक पीड़ा देने वाला बताते हुए खारिज कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना था कि सरकार को इस तरह के टू फिंगर टेस्‍ट को खत्म कर कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
    बलात्कार के मामले की सुनवाई की प्रक्रिया
    1. बलात्कार के मामले की सुनवाई एक बन्द कमरे में होती है।
    2. किसी अन्य व्यक्ति को वहाँ उपस्थित रहने की अनुमति नहीं होती।
    अगर पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखने से मना कर दे तो आप निम्न जगहों पर शिकायत कर सकते हैं
    1. वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक/ पुलिस अधीक्षक
    2. मजिस्ट्रेट
    घटना का विवरण निम्नलिखित जगहों पर लिखकर भेज सकते हैं -
    1. कलेक्टर
    2. स्थानीय या राष्ट्रीय समाचार पत्रों में
    3. राज्य महिला आयोग
    4. राष्ट्रीय महिला आयोग, 4, दीन दयाल उपाध्याय मार्ग, नई दिल्ली-110001
    बलात्कार के मामलों में सामान्यजन से अपेक्षाएं - यदि कोई महिला बलात्कार की शिकार हुई है तो निम्नलिखित अतिरिक्त उपाय भी किए जा सकते हैंः
    1. यौन हमले के तुरंत बाद पीडि़त महिला को किसी सुरक्षित जगह पर ले जाना सबसे महत्वपूर्ण होता है। यह जगह पीडि़ता का घर, उसकी दोस्त अथवा पारिवारिक सदस्य का घर हो सकता है।
    2. पीडि़त महिला के प्रति सहयोग पूर्ण रवैया अपनाएं और उसे विश्वास दिलाएं कि इसमें उसकी कोई गलती नहीं है।
    3. उसके साथ विनम्रता पूर्ण और समझदारी के साथ व्यवहार करें।
    4. पीडि़त महिला से यह पता करें कि क्या वह बलात्कार करने वाले की पहचान कर सकती है और बलात्कार की परिस्थितियों एवं अपनी चोटों के बारे में बता सकती है।
    5. महिला को तुरंत डाक्टरी सहायता मिलना ज़रूरी है और तत्काल चिकित्सकीय/फ़ोरेंसिक (बलात्कार के मामलों में की जाने वाली खास जांच) जांच कराए जाने पर खास जोर दिया जाना चाहिए।
    6. सबूतों को सुरक्षित रखना (पीडि़त के शरीर में रह गई जैविकी सामग्री) महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इन्हीं से यौन हमला करने वाले उत्पीड़क की पहचान होती है, खासतौर से उन मामलों में जिनमें उत्पीड़क कोई अजनबी हो। इसलिए महिला को जांच से पहले नहाना या अपनी साफ़-सफ़ाई नहीं करनी चाहिए।
    7. महिला और उसके परिवार वालों को पुलिस की सहायता लेने में मदद करें और उन्हें समुदाय में काम करने वाले ऐसे अन्य संगठनों से मिलवाएं जो बलात्कार की शिकार हुई महिला को सहायता मुहैया कराने का काम करते हैं।
    8. महिला द्वारा अपराध की रिपोर्ट अभी दर्ज न कराने का फैसला करने पर भी, फ़ोरेंसिक (कानूनी कार्यवाही में मदद के लिए की जाने वाली जांच) चिकित्सा जांच कराना एवं रिपोर्ट और सबूतों को सुरक्षित रखना ज़रूरी है। आवश्यक होता है ताकि पुलिस बाद में उन्हें मामले की कार्रवाई और जांच के लिए प्रयोग कर सके।
    9. गर्भ ठहरने से बचाने के लिए महिला को आपात कालीन गर्भ निरोधक गोलियां दें। अगर गंभीर चोटें लगी हों तो तत्काल अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए।
    10. महिला की मदद करें, जिससे अगर उसने अभी तक इस घटना के बारे में अपने परिवार वालों को न बताया हो तो वह उन्हें बता सके। पारिवारिक सदस्यों को भी बलात्कार की घटना के बारे में अपनी भावनाओं से उबरना होता है।
    11. महिला और उसके परिवारवालों का हौसला बढ़ाए और बताएं कि बेशक यह एक दिल दहला देने वाली घटना है किंतु इससे बाहर निकलकर आगे बढ़ना ही होगा और इस घटना से जीवन रुकता नहीं और हर चीज़ का अंत नहीं हो जाता।
    12. महिला को विशेष मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता पड़ सकती है और इस बारे में उसे जिला अस्पताल में ले जाने के लिए सहयोग दिया जाना चाहिए।
    भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


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    मादक पदार्थों का सेवन के दुष्परिणाम - निबंध



    आज हमारा समाज बहुत व्यस्तता के कारण एक अजनबी दौर से गुजर रहा है। माता-पिता अपने-अपने व्यवसाय में इतने व्यस्त हैं कि जो समय अपने बच्चों को देना चाहिए वह नहीं दे पा रहे हैं। इससे हमारी नौजवान पीढ़ी मानसिक तनाव एवम् सही मार्गदर्शन के अभाव से मुख्य लक्ष्य से भटक रही है और क्षणिक आनन्द प्राप्ति के लिए मादक पदार्थों की तरफ आकर्षित हो रही है। यह एक सामाजिक विडम्बना है।

    Say NO to drugs | YES to Sports 
    मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्परिणामों से युवा वर्ग को अवगत करवाना ताकि यह इस बुराई में लिप्त न हो। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। इसलिए युवा वर्ग को अपने खाली समय का सदुपयोग सृजनात्मक व रचनात्मक कार्य करने में करना चाहिए। ताकि वह बुरी संगति में न पड़कर अपने अन्दर छिपी कला में निखार ला सके। और समाज के अच्छे नागरिक बन सके। अगर अब भी हम इसके प्रति सजग न हुये तो ये हमारी भावी युवा पीढ़ी को नष्ट कर देगी। पाश्चात्यीकरण का अनुसरण करते हुए व मीडिया के दबाव के प्रभाव से किशोर-किशोरियों पर तनाव, दबाव एवम् माता-पिता द्वारा आपेक्षित सफलता न मिलने पर नकारात्मक रवैया अपनाने पर वे मादक पदार्थों के संरक्षण में जाते हैं। यह मादक पदार्थ किशोरों के सम्पूर्ण विकास में बाधक हैं। ये मादक पदार्थ उसको अन्धेरों की तरफ ले जाते हैं। आज हमारे अध्यापकों, माता-पिता एवम् समाज के बुद्धिजीवियों का नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम उनको इसके दुष्परिणामों से अवगत करवाते हुए उनकी लक्ष्य प्राप्ति में किशोरों का मार्गदर्शन करें।
    यूं तो पूरे विश्व में मादक पदार्थों के सेवन से किशोर वर्ग जूझ रहा है, हमारा देश भी इससे अछूता नहीं है। यह पूरे विश्व की गम्भीर समस्या है। जिसका प्रभाव भारत जैसे आदर्श देश पर भी अत्यधिक मात्रा में पड़ा है। आज की युवा पीढ़ी मादक पदार्थों के सेवन से अपने लक्ष्य को भूल रही है और वह अपने जीवन को बर्बाद करके अपने माता-पिता को भी दुःख दे रही है। मादक पदार्थों के सेवन से किशोर माता-पिता की आशाओं के विपरीत निकलने से स्वयं को उपहास का पात्र तो बनाते ही हैं, लेकिन परिवार को भी तनाव ग्रसित करते हैं। आज किशोरों को मादक पदार्थों के सेवन के प्रति रुझान के अनेकों कारण हैं। जिन्हें दूर करने के लिए आज समाज के सभी समुदायों का कर्तव्य बनता है कि इस बुराई को जड़ से निकालने के लिए किशोरों के इन मादक पदार्थों के प्रति रुझान को खत्म करके समाज में एक अच्छा नागरिक बनाने में सम्पूर्ण मदद करने की कोशिश करें।

    मादक पदार्थ के नाम
    मादक पदार्थ कई तरह के होते हैं, जैसे- शराब, बीड़ी, सिग्रेट, तम्बाकू, खैनी, गुटका, अफीम, चरस, सुलफा, कोकीन, हेरोइन, भांग, गांजा, इत्यादि। इसके अलावा ब्राउन शूगर जैसे कई ऐसे मादक पदार्थ हैं जो कि शरीर को क्षीण करते हैं।

    मादक पदार्थ क्या होते है
    मादक पदार्थ का संक्षिप्त अर्थ है, मादकता उत्पन्न करना। अर्थात् क्षणिक सुख या खुशी के बाद पूरे जीवन को विनाशकारी बनाना, जो कि किशोरावस्था में अत्यन्त प्रबल मात्रा में स्वयं लेकर किशोर अपने जीवन को दुखदायी बनाते हैं। ऐसा नहीं है कि इन मादक पदार्थों के सेवन से किशोर वर्ग बच नहीं सकते हैं लेकिन इसका सीधा व सरल उपाय है कि स्वयं उन्हें इन आदतों में पड़ने से बचना चाहिए। प्रायः देखने में आता है कि अधिकांश किशोर कुसंगति में पड़कर मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। जिसके लिए किशोरों को आत्म नियन्त्रण रखना पड़ता है। और सही मित्रों का चुनाव स्वयं ही करना होता है। क्योंकि मादक पदार्थों के प्रति रुचि पैदा करने वाले भी अधिकांश किशोर मित्र ही होते हैं। यदि किशोरों को अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना हो तो वे अवश्य सही राह चुनें। बुरी संगत से बचें, अपने ऊपर नियन्त्रण रखें, माता-पिता या शिक्षकों का पूरा सहयोग लें। यदि किशोर ऐसा करने में सक्षम हैं तो वह निश्चय ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए अपने जीवन को सफल बनाकर माता-पिता व परिवार तथा समाज में एक अच्छी पहचान बना सकता है। तथा परिवार व अपने देश का नाम उज्ज्वल कर देश को उन्नति के रास्ते पर ले जा सकता है। मनुष्य प्राचीन काल से ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। उसका विश्वास था कि इनके प्रयोग से रोग दूर हो जाते हैं व वह तरो ताज़ा हो जाता है। पर वह इसके कुप्रभाव से अनभिज्ञ है।


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    मादक पदार्थ (द्रव्य) क्या है?
    मादक पदार्थ एक ऐसा रासायनिक पदार्थ है जो चिकित्सक की सलाह के बिना मात्रा शारीरिक एवम् मानसिक कार्य प्रणाली बदलने हेतु अपने आप ही लिया जाता है। जो अस्थायी तौर पर कुछ समय के लिए तनावमुक्त, हल्का व आनन्दित कर देता है।

    मादक पदार्थों के सेवन से होने वाले निम्न दुष्प्रभाव अधिकतर हैं :-
    1. अल्पवधि प्रभाव: कुछ मादक पदार्थों के सेवन से उनके प्रभाव उसी समय प्रकट हो जाते हैं। इससे लेने वाला तनाव मुक्त व प्रफुल्लित महसूस करता है।
    2. दीर्घकालीन प्रभाव : मादक पदार्थों के दीर्घकालीन प्रयोग से शारीरिक एवम् मानसिक तौर पर भी रोगग्रस्त हो सकते हैं।
    चिकित्सा संबंधी दवाएँ भी मादक हो सकती हैं अगरः-
    1. अत्यधिक प्रयोग : चिकित्सक की सलाह लिए बिना दवाई की मात्रा अगर बढ़ा दी जाए तो वह मादक रूप ले लेती है।
    2. अक्सर प्रयोग : चिकित्सक की सलाह के बावजूद कोई दवा अगर लम्बे समय तक बार-बार थोड़ी-थोड़ी मात्रा में भी ली जाए तो यह दवा भी मादक हो सकती है। इसे द्रव्य निर्भरता (Drug Dependency) भी कहते हैं।
    3. गलत प्रयोग : कई बार जब कोई दवा बिना बीमारी या बिना चिकित्सक की सलाह से ली जाए तो वह भी मादक बन जाती है।
    4. गलत संयोग : अगर किसी दवा को बिना चिकित्सक की सलाह के किसी अन्य दवा के साथ मिलाकर ली जाए तो वह घातक सि˜ हो सकती है। इसके अलावा शराब, गुटका, खैनी, गांजा, भांग, चरस, अफीम, सुलफा, तम्बाकू, सिग्रेट, बीड़ी, सिगार, हुक्का, कोकीन, ब्राउन शूगर, हेरोइन, यहां तक कि ज्यादा मात्रा में चाय या काॅफी भी मादक होती हैं। तथा नशीले पदार्थ हैं। इनके सेवन से व्यक्ति के अन्दर अलग-अलग प्रकार के विकार एवम् दुष्प्रभाव दिखते हैं।
    युवा वर्ग का मादक द्रव्यों के प्रति आकर्षण के कारण : युवा वर्ग का मादक द्रव्यों के प्रति आकर्षण के विभिन्न कारण हैं जो कि पारिवारिक, सामाजिक, व्यक्तिगत एवं मनोवैज्ञानिक भी हो सकता है। हमने यहां पर किन्हीं कारणों का उल्लेख किया है। इनको पढ़कर किशोर वर्ग को अगर कभी जिन्दगी में ऐसी परिस्थितियों से गुजरना पड़े तो मादक द्रव्यों का सेवन न करके उससे बचना चाहिए।
    1. उत्सुकता वश : कई बार किशोर परिवार में मादक द्रव्यों का सेवन करते हुए अपने पिता या बड़े बुजुर्गों एवम् कुछ क्षेत्रों में माताओं को भी देखते हैं। तब भी उनमें उत्सुकता होती है कि इसका सेवन करके देखें कि कैसा अनुभव होता है। क्योंकि वह अपने माता-पिता को अपना आदर्श मानते हैं और सोचते हैं कि अगर वे ले सकते हैं तो हमारे लेने में क्या बुराई है? लेकिन वह इसके दुष्परिणामों से अनभिज्ञ रहते हैं।
    2. मित्रों वर्गों के सम्पर्क में आने से ; अपने सहपाठियों व हम उमर के दबाव में आकर भी वह मादक पदार्थों का सेवन करता है। कई बार उसके लाख मना करने पर भी उसके मित्रा उसके जबरदस्ती लेने पर मजबूर कर देते हैं। वे कहते हैं कि कभी-कभी लेने से कुछ नहीं होता। परन्तु नशा है खराब। वह बार-बार लेने पर मजबूर हो जाता है, व नशे की लत में पड़ जाता है।
    3. स्वच्छन्दता : कुछ किशोर-किशोरियां छात्रावास एवम् शहरों में अकेले अपने माता-पिता व परिजनों की निगाह से दूर अपने आप को स्वच्छन्द महसूस करते हैं। तथा वे नशे की आदत में पड़ जाते हैं।
    4. पारिवारिक वातावरण : जब परिवार में माता-पिता की व्यस्तता अधिक हो तथा बच्चों को ज्यादा ध्यान न दे पाएं तो भी किशोर इस नशे की आदत में पड़ जाते हैं। वह अपने आप को अकेला और माता-पिता के प्यार से वंचित समझकर इस ओर मुड़ता है। वह सोचता है कि शायद उसकी परिवार में कोई जरूरत नहीं है। कभी-कभी माता-पिता के परस्पर तनाव पूर्ण आपसी संबंध व उनकी कलह या उच्च सोसाइटी में शादी का अधिक मात्रा में टूटना (Broken Marriages) भी बच्चों को मादक पदार्थों के सेवन के लिए प्रेरित करता है। बच्चों में हीन भावना व असुरक्षा की भावना आ जाती हैं वे सोचते हैं कि उनके माता-पिता औरों की तरह एक साथ प्यार से क्यों नहीं रहते। पर बच्चों के मस्तिष्क परिपक्व न होने के कारण वे यह समझ नहीं सकते कि माता-पिता का व्यवसाय के लिए घर से बाहर अधिक समय तक रहना आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए जरूरी है।
    5. बाजार से बच्चों द्वारा मादक पदार्थों की खरीददारी करवाना : कई बार पिता या परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा बच्चों को बाजार से शराब, सिग्रेट, बीड़ी, गुटका, खैनी इत्यादि नशीली वस्तुएंे खरीदनें भेजा जाता है। इससे उसके अन्दर इसका सेवन करने की जिज्ञासा उत्पन्न होती है। तथा शराब की दुकान से शराब खरीदने की आदत सी हो जाती है। उसके शराब खरीदनें में कोई शर्म महसूस नहीं होती है। इसके सेवन से बचने के लिए दिल्ली सरकार ने नियम लागू किया है कि 18 वर्ष से कम उमर के बच्चों से खरीददारी पर रोक लगाई है। यदि कोई दुकानदार बेचता हुआ पकड़ा गया तो उसे दंडित किया जाएगा।
    6. मीडिया के प्रभाव से : फिल्में, टेलीविजन, रेडियो, पत्रिकाओं, इत्यादि में प्रसारित होने वाले विज्ञापनों के प्रभाव से युवा वर्ग में उत्सुकता वश व आकर्षित होकर अपने मन चाहे फिल्मी अदाकारों की नकल करते हुए इन व्यसन में फंस जाते हैं। इन विज्ञापनों में मादक द्रव्यों को इतना सुसज्जित करके दिखाया जाता है कि वह इसकी ओर आकर्षित होकर लेने के लिए प्रेरित होते हैं। क्योंकि वह उनके जैसा दिखना चाहते हैं।
    7. बच्चों में भेदभाव के प्रभाव से : कई परिवारों में बच्चों के बीच में भेदभाव करते हैं जैसे कि लड़का एवं लड़की या दो बेटों अथवा बेटियों में तुलना की जाती है। जिससे बच्चों में हीन भावना आ जाती है। इस हीन भावना से ग्रसित होकर किशोर मादक पदार्थों का सेवन करते हैं।
    8. बच्चों के प्रति अविश्वास : कई बार माता-पिता बच्चों के ऊपर अत्यधिक निगरानी रखते हैं व उन पर विश्वास भी नहीं करते। इस कारण वह विद्रोह की भावना से इस ओर कदम बढ़ाते हैं लेकिन इसके सेवन से वे अपने ही स्वास्थ्य एवं शिक्षा को नुकसान पहुंचाते हैं तथा वे हर क्षेत्र में पिछड़ जाते हैं।
    9. किशोरावस्था में आने वाले बदलाव के कारण : किशोरावस्था में होने वाले बदलाव एवं उसके बारे में पूरी जानकारी न होने के कारण वे भ्रमित होकर भी मादक पदार्थों का सेवन करने लगते हैं। माता-पिता को चाहिए कि इस बारे में वे बच्चों को सही निर्देश दें। तथा उनको बताएं कि यह स्वाभाविक परिवर्तन हैं। कई बार किशोर-किशोरियां इस उम्र में न तो बड़ों जैसा व्यवहार कर सकते हैं और न ही बच्चों जैसा। इस वक्त उन्हें अधिक प्रेम, स्नेह, लाड़-दुलार की आवश्यकता होती है। उन पर कोई भी कार्य बिना मर्जी के न थोपे जाएं। हर कार्य में उनकी भी राय ले लें जिससे वे अपने आप को परिवार के लिए कुछ कर दिखाने की क्षमता बनाऐं।
    10. अतिरिक्त समय का सदुपयोग न करने के कारण : घर में अकेलापन व पढ़ाई-लिखाई के अतिरिक्त समय में कुछ न करने से खाली दिमाग में किशोरों के मन में कई तरह की भ्रांतियां उत्पन्न होती हैं। वे सोचते हैं कि क्यों न अकेले में कुछ ऐसी चीजों का सेवन करें जिससे उसे रोकते हैं। सिग्रेट, बीड़ी, गुटका, खैनी आदि चीजों का सेवन करने के लिए वे अकेले में खाली समय में अपने आप को स्वतन्त्रा महसूस करते हैं। माता-पिता का कर्तव्य बनाता है कि वे अपने बच्चों में रूचि लें एवं खाली समय के लिए उन्हें मार्गदर्शन करें। ताकि वे अपनी अभिरूचि के अनुसार कोई न कोई सृजनात्मक व रचनात्मक कार्यों के प्रति प्रेरित हों।
    11. हीन भावना से ग्रसित होने के कारण : कुछ किशोर-किशोरियों में अपने बारे में कई बार गलत प्रश्न उठते हैं कि वे कुरूप हैं या पढ़ाई में पिछड़े हुए हैं। ऐसी भावनाओं से ग्रसित होकर वे इस ओर कदम बढ़ाते हैं। लेकिन उनको ऐसा न करने की अपेक्षा अपने अन्दर के गुणों को उजागर करना चाहिए। तथा जिस क्षेत्रा में पिछड़ रहे हों उसमें और अधिक मेहनत करनी चाहिए।
    12. प्रेम प्रसंगों (घनिष्ठता) के असफल होने के कारण : कई बार किशोर-किशोरियां एक दूसरे की तरफ आकर्षित होते हैं यह एक सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन कई बार अधिक घनिष्ठता हो जाने के कारण, तथा माता-पिता द्वारा प्रताड़ित होने पर या किशोर अथवा किशोरियों द्वारा नकारात्मक रवैये के कारण कुंठित हो जाते हैं। व मादक पदार्थों का सेवन करने लगते हैं। असल में उन्हें इस वक्त किसी की ओर अनायास आकर्षित न होकर सभी के साथ प्रेम व आदर भाव रखना चाहिए। इससे वह ऐसी नशीली वस्तुओं के सेवन के प्रति रूचि कम करके अपने भविष्य को सुधर कर परिवार तथा देश का नाम उज्ज्वल कर सकता है।
    13. बीमारियों के कारण : लम्बी बीमारी होने से कई बार किशोर वर्ग मादक पदार्थों के सेवन के लिए मादक पदार्थों के सेवन के लिए मजबूर हो जाते हैं। क्योंकि उनकी बीमारी का सही उपचार नहीं हो पाता या पैसे के अभाव के कारण वे इलाज नहीं करवा पाते हैं। उन्हें चाहिए कि धैर्य रखकर अपनी बीमारी का इलाज करवाए।
    14. बेरोजगार होकर अथवा परीक्षा में असफल होने के कारण : बेरोजगारी एक सबसे बड़ी समस्या है जो कि किशोरों को निराश करके मादक पदाथों के सेवन के प्रति प्रेरित करती है। कई बार परीक्षा में असफल होकर भी किशोर वर्ग इसके सेवन करने से बच नहीं सकते हैं। बच्चों को परीक्षा में असफलता पर निराश नहीं होना चाहिए। उन्हें निरन्तर प्रयास व परिश्रम करते रहना चाहिए। उन्हें बेरोजगारी से निरुत्साहित नहीं होना चाहिए। कोई न कोई छोटे-छोटे व्यवसाय करने में संकोच नहीं करना चाहिए। लघु उद्योग स्थापित कर अपने जीवन को ऊँचा उठाना चाहिए। ताकि वे अच्छा नागरिक बनकर अपना तथा माता-पिता व समाज का नाम रोशन कर सके। और अपने राज्य तथा देश का नाम ऊँचा करके देश को प्रगति की राह पर चला सके।
    मादक पदार्थों का सेवन करने वालों के लक्षण : मादक पदार्थों का सेवन करने वालों में विभिन्न लक्षण परिलक्षित होते हैंः-
    1. सिग्रेट : सिग्रेट पीने वाले व्यक्ति के शरीर से, श्वास से, कपड़ों से दुर्गन्ध आना, होठों का काला होना, मुंह का कैंसर, दाँतों का सड़ना व पीलापन, मसूड़ों में सूजन, व पीक, फेफड़ों का कैंसर, खाँसी, दमा व गले में खराश इत्यादि लक्षण मिलते हैं।
    2. एल्कोहल (शराब) : शराब पीने वालों के स्नायु तंत्र व मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है, आँखें लाल व सूजी हुई, जुबान का लड़खड़ाना, मुंह व शरीर से बदबू, सफाई की कमी, मुंह का कैंसर, यकृत का बढ़ना, छोटी व बड़ी आँत का सड़ना, भूख की कमी, विवेकशील निर्णय का न ले पाना, स्मृति में कमी, स्वभाव में परिवर्तन कभी अति प्रसन्न कभी अति दुःखी, कई बार बेवकूफों जैसी हरकतें, आँखों से सही न दिखना जैसे एक से दो दिखना व सही दूरी व ऊँचाई का अनुमान न लगा सकना, जिससे गाड़ी चलाते हुए दुर्घटना का शिकार होना, बेहोशी का हालत, स्नायु का शरीर का तालमेल न बन पाना, बदहाल स्थिति।
    3. हेरोइन, चरस, गांजा, कोकीन, भांग, एल-एस-डी, कोडीन, अफीम व अन्य मादक पदार्थ : शरीर पर सुइयों के निशान, कपड़ों पर खून के धब्बे, आँखें लाल व नशीली, आँखों का धुंधलापन, चिड़चिड़ापन, बेकाबू क्षीण व शिथिल शरीर, पीलापन, भूख न लगना, अनिंद्रा, हल्का व लगातार बुखार, कई लोगों द्वारा एक ही सिरिंज के इस्तेमाल से एड्स जैसी जान लेवा बीमारी को आमंत्राण।
    मादक पदार्थों का शरीर पर क्या प्रभाव होता है अथवा मादक द्रव्यों के प्रभाव
    स्वास्थ्य पर धूम्रपान के प्रभाव : आधुनिक समाज में सिग्रेट पीना या धूम्रपान सभ्यता का प्रतीक समझा जाता है। परन्तु हम सिग्रेट की प्रत्येक डिब्बिया पर लिखी हुई चेतावनी फ्सिग्रेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ("Cigarette smoking is injurious to health") की ओर ध्यान नहीं देते और सिग्रेट पीने से बाज़ नहीं आते। इससे हमारे शरीर में कई प्रकार के विकार उत्पन्न हो जाते हैं। तम्बाकू का निरन्तर सेवन करने से मनुष्य के शरीर में रोगों का प्रतिरोध करने की शक्ति क्षीण हो जाती है। अधिक सिग्रेट पीने से मनुष्य की आयु प्रति सिग्रेट 11.5 मिनट कम हो जाती है।
    तम्बाकू में निकोटिन नामक विषैला रासायनिक तत्व पाया जाता है जब रासायनिक पदार्थ सिग्रेट, बीड़ी आदि के धुंए के साथ मिलकर मनुष्य के मुंह, नाक तथा फेफड़ों द्वारा सोख लिया जाता है तब उसे अनुभव होता है कि उसे आराम मिल रहा है परन्तु जब इसका प्रभाव समाप्त हो जाता है तो मनुष्य को सिग्रेट पीने की ललक महसूस होती है। इस प्रकार मनुष्य की सिग्रेट पीने की क्षमता बढ़ती ही जाती है। धूम्रपान एक व्यसन है जो मनुष्य के शरीर की सभी प्रणालियां विकृत कर देता है।
    1. धूम्रपान के फलस्वरूप मनुष्य का पाचन तंत्र (Digestive System) बिगड़ जाता है। तथा रक्त चाप (Blood Pressure) में उतार-चढ़ाव होने लगता है। सिग्रेट पीने वालों को हृदय रोग, श्वास रोग, नाक एवं गले के रोग होने की सम्भावना अधिक रहती है। अधिक सिग्रेट पीने से कैंसर की बीमारी होने का भय भी बना रहता है।
    2. सिग्रेट पीने की आदत से छूटकारा पाने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए। दूसरे हरी सब्जियों और फलों का अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए।
    3. तीसरे सच्चे मन से धूम्रपान न करने का दृढ़ संकल्प करना चाहिए।
    स्वास्थ्य पर एल्कोहल (शराब) के प्रभाव : शराब पीने का हमारे शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे हमारे पेट में कई तरह के विकार उत्पन्न हो जाते हैं।
    1. यकृत का बढ़ना : अत्याधिक शराब पीने से एल्कोहल Acetaldehyde में बदल जाती है जो कि एल्कोहल से भी बुरी रसायन है। यह यकृत में वसा का निर्माण करती है और यकृत की कोशिकाएँ जो कि ग्लाकोजन, इनजाईम, प्रोटीन का निर्माण करती हैं को न करके सिर्फ वसा का संग्रह करती रहती हैं। इसे फेट्टी लीवर सिंडरोम यकृत द्वारा वसा का संग्रहद्ध कहते हैं। इससे यकृत धीरे-धीरे सख्त होती है और फिर सूख जाती है और उसकी कोशिकाएं धागों का रूप ले लेती है। इससे यकृत धीरे-धीरे खत्म हो जाता है। इसे सिरोसिस (Cirhosis) भी कहते हैं। अन्ततः व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।
    2. हृदय पर प्रभाव : शराब के लगातार सेवन से धमनियाँ व शिराएं जल्दी से फैल जाती हैं और उसी अवस्था में ज्यादा देर तक रहने से उनकी फैलने और सिकुड़ने की क्षमता खत्म हो जाती हैं और ये सख्त हो जाती हैं। इससे हृदय गति के संचालन में भी विघ्न पड़ता है।
    3. गुर्दों पर प्रभाव : शराब के साथ लिया जाने वाला सोडा या पानी गुर्दे पर बुरा प्रभाव डालता है क्योंकि शराब पीने वालों के गुर्दे को आदमी के गुर्दों की क्षमता से ज्यादा काम करना पड़ता है। शराब पीने से शरीर में अस्थाई रूप से गर्मी पैदा होती है। जिसको सामान्य करने के लिए शरीर से पानी भाप बन कर निकल जाता है। इससे कई बार शरीर में पानी की कमी (dehydration) नाइट्रोजिनस व्यर्थ पदार्थ ज्यादा एकत्रित हो जाते हैं जो कि सामान्य तौर पर इसके निष्कासन में बाधा बन जाती है। शराबी अक्सर अपने खाने-पीने का सही ध्यान न रख पाने के कारण प्रायः कुपोषण या प्रतिरोधक शक्ति की कमी के शिकार हो जाते हैं। इसका हमारे शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मदिरा पान से हमारा स्नायुतन्त्रा बिगड़ जाता है। मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इससे श्वास की गति बढ़ जाती है। जिस से कई रोग हो जाते हैं। रक्त संचार की गति बढ़ जाती है। कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है।
    तथ्यों तथा अनुभवों पर आधारित विश्लेषण : इस भाग में हम मादक पदार्थों के सेवन से हुए कुछ अनुभवों का तथ्यों के आधार पर विश्लेषण कर रहे हैं। मादक पदार्थों के सेवन से समाज में हुए दुष्प्रभावों को रेखांकित किया गया है। यह तथ्य सत्य घटनाओं पर आधारित है। इन तथ्यों को प्रस्तुत करने का हमारा विशेष अभिप्राय किशोरों को उनके स्वास्थ्य एवम् मनोवैज्ञानिक तरीके से शिक्षित करके समाज में एक अच्छा नागरिक बनाना है। इन तथ्यों को पढ़कर वह ध्यान रखें कि वह कभी ऐसी दुःखद परिस्थिति में न पड़े व पहले ही इससे बचें। क्योंकि नशा है अभिशाप इससे बचें
    1. समाचार पत्रों में पढ़ी सूचना के अनुसार एक करीबी सम्बन्धी ने ने शराब के नशे में धुत होकर अपने परिवार की लड़की का बलात्कार किया। जो कि एक अमानवीय, घृणित कुकृत्य है। शराब के नशे में डूबकर शराबी किसी से भी उलझ जाता है। कलह करता है, कभी-कभी तो अपने घर में चोरी करता है। परिवार की जरूरतों को नजर अन्दाज करता है। यहां तक कि अपने बच्चों की स्कूल की फीस भी अदा नहीं कर पाता। जिससे शराबी ही नहीं पूरा परिवार ही छिन्न-भिन्न हो जाता है। सही कहा है- शराब है खराब।
    2. कई शहरों के प्रतिष्ठित स्कूलों में बहुत से ऐसे उदाहरण मिले हैं जहाँ बच्चे कुसंगति में पड़कर मादक पदार्थों का सेवन करने के पश्चात् पढ़ाई से विमुख होकर माता-पिता को आँसुओं में डूबोकर अपना जीवन बर्बाद करते हैं।
    3. अपने किसी साथी द्वारा सुनाई गई बात पर आधारित एक घटना : दो विद्यार्थी आपस में परीक्षा के दिनों में बात कर रहे थे। उनमें से एक विद्यार्थी ने डेट शीट गलत उतार ली थी। जिसके हिसाब से उसने जिस विषय का पेपर देना था उसकी तैयारी न करके गलत उतारी डेट शीट के हिसाब से पेपर की तैयारी कर ली। जब वह पेपर देने के लिए स्कूल जा रहा था तो बस में उससे अन्य विद्यार्थी ने पूछा कि तुमने पाँचवाँ पाठ याद किया? तो उसे समझ आया कि मैनें तो दूसरे विषय का पाठ याद कर लिया है। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो दूसरे विद्यार्थी ने उससे कहा कि तू घबरा मत। एक ऐसी दवाई आती है जिसे लेने से तुझे इस पेपर का सारा याद आ जाएगा। उस विद्यार्थी ने सच में दवाइयों की दुकान से उस विद्यार्थी द्वारा बताई गई दवाई खाई। याद तो बच्चे ने पहले ही किया हुआ था सो उसने परीक्षा दे दी। घर जाकर जब उसने अपने माता-पिता को बताया कि आज पेपर दूसरे विषय का था व मैं दूसरे विषय का याद करके गया था। तो उसकी मम्मी डांटने लगी कि तुझे सही डेट शीटस् उतारनी चाहिए थी। इस पर बच्चे ने मां से कहा आप डांटो नहीं मैंने दवा ले ली र्थी वह मुझे सारा याद आ गया था। मैंने सारा पेपर सही कर दिया है।
    4. एक बार मैं अपनी सहेलियों के साथ एक होटल में रात के खाने पर गई थी। वहां का दृश्य जो मैनें देखा उसे बताती हूँ। एक किशोर का जन्मदिन था । वह पाँच-छः मित्रों के साथ उसी होटल में जन्मदिन मना रहा था। उन बच्चों में दो बच्चे शराब नहीं पी रहे थें जिसका जन्म दिन था वह जबरदस्ती उन दो बच्चों को शराब पीने के लिए कह रहा था। वह कह रहा था कि आप दोनों को मेरे जन्मदिन की खुशी नहीं है जो आप दोनों नहीं पी रहे हो। उनके लाख मना करने पर भी उसने उन्हें जबरदस्ती कोक में मिलाकर शराब पीला दी। ध्यान रहे कि अगर ऐसी जगह जाओ तो ध्यान रखना चाहिए कि आपके साथ कोई ऐसा तो नहीं कर रहा।
    5. प्रेम प्रसंग में असफल होकर : मैं पड़ोस में घटी एक घटना का विवरण देना चाहती हूँ। हमारे पड़ोस में एक लड़के की एक लड़की से बहुत घनिष्ठता थी। लेकिन लड़की मे माता-पिता इस बात से सहमत नहीं थे कि लड़की का किसी से मिलना जुलना हो। लड़की के माता-पिता ने लड़की को लड़के से मिलने पर पूरी पाबन्दी लगा दी। अब प्रेम में निराश होकर उसने मादक पदार्थों का सहारा लेना उचित समझा। और वह अपने अन्य मित्रों से अलग रहने लगा। इससे वह पढ़ाई-लिखाई में भी पिछड़ गया। इस प्रकार उसने मादक पदार्थों का सहारा लेकर अपने जीवन को बर्बाद कर लिया।
    6. एक बार हम अपने परिवार के साथ कहीं घूमने गए थे। वहां पर हमने दूसरे शहर से आए हुए कुछ बच्चों को पिकनिक मनाते हुए देखा। उन्होंने मौज मस्ती में धूम्रपान व शराब पी। और वापसी में जब दो लड़के स्कूटर में सवार होकर नशे में धुत होकर घर वापिस जा रहे थे तो नशे के कारण सहीं संतुलन न रख पाने के कारण मोड़ काटते हुए एक गहरी खाई में गिर गए। उनमें से एक की तत्काल मृत्यु हो गई। तथा दूसरा बूरी तरह जख्मी हो गया।
    इस प्रकार के बहुत से उदाहरण हमें प्रतिदिन देखने को मिलते हैं जो कि नशे की हालत में अपना जीवन तो खोते ही हैं लेकिन औरों का जीवन भी बर्बाद करते हैं। इसलिए हमको यह अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि नशा चाहे किसी भी तरह का हो हमारे जीवन को हमेशा घातक ही बनाता है। हमें अपने ऊपर आत्म नियन्त्रण करके इन मादक पदार्थों से दूर रहकर अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर अग्रसर होना चाहिए।

    मादक पदार्थों के प्रति भ्रांतियाँ :मादक पदार्थों के प्रति अक्सर तरह-तरह की भ्रंातियाँ देखने को मिलती हैं। जिनमें निम्नलिखित भ्रांतियों की यहाँ चर्चा की गई हैः-
    1. ऐसा समझा जाता है कि प्रायः एक बार मादक पदार्थ लेने से कुछ बुरा नहीं होता व जब चाहे इसे छोड़ा जा सकता है। परन्तु जब कोई एक बार इसमें लिप्त हो जाता है तो वह इसमें फंसता ही जाता है। इसलिए हमें यह शुरू से ही दृढ़ निश्चय बना लेना चाहिए कि मादक पदार्थों को अभी नहीं और कभी नहीं लेना है।
    2. शराब से जुड़ी कुछ ऐसी भ्रांतियां है कि प्रायः यह शरीर को गर्मी प्रदान करती है तथा ठंड से बचाती है। परन्तु ऐसा नहीं है। वह जो गर्मी मिलती है वह क्षणिक होती है क्योंकि ली गई शराब आमाशय व छोटी आंत के ऊपरी हिस्से में ही अवशोषित होती है। इसका तुरन्त Oxidation शुरू हो जाता है, जिससे शरीर का तापमान बढ़ जाता है, और यह उष्मा शरीर के अन्दरूनी भाग में न जाकर सिर्फ त्वचा को गर्म करती है। इस गर्मी को कम करने के लिए शरीर के पानी का एक बहुत बड़ा हिस्सा भाप बनकर उड़ जाता है जिससे dehydration या पानी की कमी हो जाती है। यह ऊर्जा शरीर के किसी काम में प्रयोग नहीं होता बल्कि शरीर में विद्यमान ऊर्जा का भी ह्यस होता है।
    3. शराब का सेवन उत्तेजक होता है ऐसा भी कहा जाता है। पर यह मिथ्या है। शराब व्यक्ति के स्नायु तन्त्र को धीमा कर देती है। इससे व्यक्ति सोचता है कि वह जो बात होश हवास में नहीं कर सकता है, वह शराब पीकर कर सकता है, परन्तु ऐसा नहीं है। क्योंकि जितने प्रभावशाली ढंग से व्यक्ति बिना पीये काम कर सकता है उतना शराब पीकर नहीं।
    4. छोटे बच्चों को सर्दी से बचाव के लिए शराब दी जाती है। पर अगर इसकी मात्रा थोड़ी ज्यादा हो जाए तो इसका उल्टा प्रभाव भी पड़ता है, व बच्चा इसका आदी भी बन सकता है।
    5. उच्च सोसाइटी में लोग शराब को उच्च स्तर मानते हैं। पर क्या यह सही है? देखा गया है कि अच्छे भले परिवार शराब को सेवन करने से अन्धकार में डूब जाते हैं तथा पैसे का भी नाश करते हैं।
    6. कई लोग सिग्रेट को एकाग्रता बढ़ाने के लिए लेते हैं। परन्तु इससे एकाग्रता नहीं बढ़ती बल्कि कार्बनमोनोआक्साइड का परिमाण उसके रक्त में बढ़ जाने के कारण हिमोग्लोबिन के साथ जुड़ जाने से इसकी कार्यक्षमता कम हो जाती है। तथा कोशिकाओं को आक्सीजन न मिलने के कारण शरीर की सम्पूर्ण कार्यप्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाती है। इसमें निकोटिन एल्कोलायड होता है, जो स्नायुतन्त्रा को तोड़ता है व क्रिया शक्ति क्षीण हो जाती है। तथा शरीर में अलग-अलग हिस्सों के कैंसर हो जाते हैं।
    7. कई लोग सिग्रेट पीना व्यक्तित्व का निखार समझते हैं। परन्तु यह एक मात्रा भ्रम है। सिग्रेट पीने वाले के शरीर, श्वास व कपड़ों से दुर्गन्ध आती है। दांत होंठ (ओष्ठ) काले हो जाते हैं। कोई पास बैठना भी पसन्द नहीं करता।
    8. कुछ राज्यों में पान खाना व खिलाना शालीनता मानी जाती है व वैवाहिक जीवन में होठों की सुन्दरता के लिए भी लिया जाता है, परन्तु यह एक मात्रा भ्रम है। क्योंकि पान खाने वाले के होंठ, दाँत व मुंह लाल हो जाता है, व लगातार इसका सेवन करने से इसके दाग पक्के हो जाते हैं। ये दाग देखने में बहुत भद्दे लगते हैं। इससे मुंह तथा गले का कैंसर भी हो जाता है व पान में चूने के प्रयोग से मुंह का स्वाद भी खराब हो जाता है। पान खाकर जगह-2 उसका थूक फैंकने से सड़क व दीवारें, गन्दी हो जाती हैं। यह देखने में भी बहुत गन्दा लगता है। सिंगापुर व शिमला में अंग्रेजों के समय सड़क पर थूकने वालों को जुर्माना हुआ करता था।
    9. कई गांव में ऐसा परिचलन है कि एक ही हुक्के से पूरे समुदाय के लोग हुक्का पीते हैं। इससे वह अपना आपसी प्रेम दर्शाते हैं और अगर किसी को तिरस्कृत करना हो तो उसका हुक्का-पानी बंद कर देते हैं व अपने समुदाय से बाहर कर देते हैं। परन्तु वह यह नहीं समझते कि एक ही हुक्के से हुक्का पीने से एक दूसरे से होने वाली संक्रामक बीमारियां उन्हें आ घेरेंगी।
    10. शिव भक्त मानते हैं कि शिवरान्नि के दिन भंग पीने से शिव भगवान के दर्शन हो जाएंगे। पर ऐसा मानना उनका भ्रम है। इसके ज्यादा सेवन से कई बार जीवन से हाथ भी धोने पड़ सकते हैं।
    11. खिलाड़ियों में यह भ्रांति भी है कि कुछ दवाइयों के सेवन से वह अपने खेल का प्रदर्शन अच्छा कर पायेगें। पर जब रासायनिक परीक्षण में वह पकड़े जाते हैं तो उन्हें खेल से निष्कासित किया जाता है। इससे उनकी सारे वर्ष की मेहनत पर पानी फिर जाता है। उनका तथा देश का नाम भी बदनाम होता है।
    12. कई बार खिलाड़ी मादक द्रव्यों का सेवन करके खेल के मैदान में उतरते हैं क्योंकि इसके सेवन से उनके मस्तिष्क के स्नायु बोझिल हो जाते हैं। इसलिए वह खेल को खेल न समझकर लड़ाई का मैदान बना देते हैं।


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    प्रेरक प्रसंग एवं बोधकथा : समस्या बोध



    एक बहुत पुराना साम्राज्य था। उस साम्राज्य के बड़े वजीर की मृत्यु हो गयी थी। उस राज्य का यह नियम था कि देशभर में जो सबसे ज्यादा बुद्धिमान आदमी होता, उसी को वजीर बनाते थे। उन्होंने सारे देश में परीक्षाएं लीं और तीन आदमी चुने गये, जो सबसे ज्यादा बुद्धिमान सिद्ध हुए थे। फिर उन तीनों को राजधानी बुलाया गया, अंतिम परीक्षा के लिए। और अंतिम परीक्षा में जो जीत जायेगा, वही राजा का बड़ा वजीर हो जायेगा।
    वे तीनों राजधानी आये। वे तीनों चिंतित रहे, पता नहीं क्या परीक्षा होगी? जैसा कि परीक्षार्थी चिंतित होते हैं। उन्हें राजधानी में जो भी मिला, उनसे पूछा कि कुछ पता है? 

    और मुश्किल हो गयी। राजधानी में सभी को पता था कि क्या परीक्षा होगी। सारे गांव को मालूम था। सारे गांव ने कहा, परीक्षा! परीक्षा तो बहुत दिन पहले से तय है। राजा ने एक मकान बनाया है और मकान में एक कक्ष बनाया है। उस कक्ष में एक ताला उसने लगाया है। वह ताला गणित की एक पहेली है। उस ताले की कोई चाबी नहीं है। उस ताले पर गणित के अंक लिखे हुए हैं। और जो उस गणित को हल कर लेगा, वह ताले को खोलने में सफल हो जायेगा। तुम तीनों को उस भवन में बंद किया जाने वाला है। जो सबसे पहले दरवाजे खोलकर बाहर आयेगा, वही राजा का वजीर हो जायेगा। वे तीनों घबरा गये होंगे!

    एक उनमें से सीधा अपने निवास स्थान पर जाकर सो गया। उन दो मित्रों ने समझा कि उसने, दीखता है, परीक्षा देने का खयाल छोड़ दिया। वे दोनों भागे बाजार की ओर। रात भर का सवाल था, कल सुबह परीक्षा हो जायेगी। उन्हें तालों के संबंध में कोई जानकारी न थी। न तो वे बेचारे चोर थे कि तालों के संबंध में जानते, न ही वे कोई तालों को सुधारने वाले कारीगर थे, न ही वे कोई इंजीनियर थे। और न वे कोई नेता थे, जो सभी चीजों के बाबत जानते! वे कोई भी न थे। वे बहुत परेशानी में पड़ गये कि हम तालों को खोलेंगे कैसे?

    उन्होंने जाकर दुकानदारों से पूछा, जो तालों के दुकानदार थे। उन्होंने गणित के विद्वानों से पूछा। उन्होंने इंजीनियरों से जाकर सलाह ली। उन्होंने बड़ी किताबें इकट्ठी कर लीं पहेलियों के ऊपर। वे रात भर किताबों
    को कंठस्थ करते रहे, सवाल हल करते रहे। जिंदगी का सवाल था, उन्होंने कहा, सोना उचित नहीं। एक रात न भी सोयें तो क्या हर्ज है?

    परीक्षार्थी सभी यही सोचते हैं कि एक रात नहीं सोयें तो क्या हर्जा है। लेकिन सुबह उनको पता चला कि बहुत हर्जा हो गया है। रातभर पढ़ने के कारण जो थोड़ा-बहुत वे जानते थे, वह भी गड़बड़ हो चुका था। सुबह अगर उनसे कोई पूछता कि दो और दो कितने होते हैं, तो वे चौककर रात में अस्त-व्यस्त हो गया था। न मालूम कैसी-कैसी पहेलियां हल की थीं। यही तो होता है परीक्षार्थियों का। परीक्षा के बाहर जिन सवालों को वे हल कर सकते हैं, वे ही परीक्षा में हल नहीं कर पाते!

    तीसरा मित्र जो रात भर सोया रहा था, सुबह उठते उठ गया। हाथ-मुंह धोकर उन दोनों के साथ हो लिया। वे तीनों राजमहज पहुंचे। अफवाहें सच थीं। सम्राट ने उन्हें एक भवन में बंद कर दिया और कहा कि इस ताले को खोलकर जो बाहर आ जायेगा-इसकी कोई चाबी नहीं है, यह गणित की एक पहेली है। गणित के अंक ताले के ऊपर खुदे हैं, हल करने की कोशिश करो-जो बाहर निकल आयेगा सबसे पहले, वही बुद्धिमान सिद्ध होगा और उसी को मैं वजीर बना दूंगा। मैं बाहर प्रतीक्षा करता हूं।

    वे तीनों भीतर गये। जो आदमी रात भर सोया रहा था, वह फिर आंखें बंद करके एक कोने में बैठ गया। उसके दो मित्रों ने कहा, इस पागल को क्या हो गया है! कहीं आंखें बंद करने से दुनिया के सवाल हल हुए हैं? शायद इसका दिमाग खराब हो गया। वे दोनों मित्र जो होशियार थे, सोचते थे कि उनका दिमाग ठीक था, अपनी किताबें अपने कपड़ों के भीतर छिपा लाये थे। उन्होंने जल्दी से किताबें बाहर निकालीं और अपने सवाल हल करने शुरू कर दिये।

    परीक्षार्थी ऐसा न समझें कि आजकल ही परीक्षार्थी होशियार होते हैं। पहले जमाने में भी आदमी इसी तरह के बेईमान थे। बेईमानी बड़ी प्राचीन है। सब किताबें नयी हैं। बेईमानी की किताब बहुत पुरानी है। 

    उन्होंने जल्दी से किताबें निकालीं। दरवाजा बंद हो चुका था। वे फिर सवाल हल करने लगे। वह आदमी आधा घंटे तक, वह तीसरे नंबर का आदमी, आंख बंद किये बैठा रहा। फिर उठा चुपचाप, जैसे उसके पैरों में भी आवाज न हो। उन दो मित्रों को भी पता न चला। वह उठा, दरवाजे पर गया, दरवाजे को धक्का दिया, दरवाजा अटका हुआ था, उस पर कोई ताला ही नहीं था, वह बाहर निकल गया!

    सम्राट ने कहा, यहां कुछ करने की जरूरत ही न थी। दरवाजा सिर्फ अटका हुआ था। और हम यह जानना चाहते थे कि तुम तीनों में से, जो सबसे ज्यादा बुद्धिमान होगा, वह सबसे पहले यह देखेगा कि दरवाजा बंद है या नहीं। इसके पहले कि तुम सवाल हल करो, यह तो जान लेना चाहिए कि सवाल है भी या नहीं? 

    समस्या हो तो उसका समाधान हो सकता है। और अगर समस्या न हो तो उसका समाधान कैसे हो सकता है? समस्या को पहले जान लेना जरूरी है।


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    उपभोक्ता जागरूकता Consumer Awareness



    विभिन्न आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए लोग कीमतों का भुगतान करके वस्तुएं और सेवाएं खरीदते हैं। किन्तु क्या किया जाय यदि खरीदी गई वस्तुएं गुणवत्ता में बुरी, अनुचित मूल्यों वाली और मात्रा मेें कम माप वाली आदि पाई जाएं। ऐसी सभी स्थितियों में, संतुष्टि प्राप्त करने की बजाय, उपभोक्ता, विक्रेताओं द्वारा जिन्होंने वे वस्तुएं और सेवाएं बेची हैं, ठगा गया महसूस करते हैं। वे, यह भी महसूस करते हैं कि इस हानि का उन्हें उपयुक्त मुआवजा मिलना चाहिए। इसलिए ऐसे मामलों को ठीक करने के लिए कोई पद्धति होनी चाहिए। दूसरी ओर, उपभोक्ताओं को यह महसूस करना चाहिए कि उनके केवल अधिकार ही नहीं, कुछ
    उत्तरदायित्व भी हैं।
    उपभोक्ता जागरूकता Consumer Awareness

    उपभोक्ता कौन है?
    हमें उपभोक्ता की परिभाषा जाननी चाहिए। उपभोक्ता, वस्तुओं और सेवाओं का क्रेता है। क्रेता की सहमति से वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग करने वाला भी एक उपभोक्ता माना जाता है। किन्तु एक व्यक्ति, जो वस्तुएं और सेवाएं बाजार में पुनः बिक्री के लिए खरीदता है उपभोक्ता नहीं समझा जाता।

    वस्तुएं और सेवाएं क्या है?
    वस्तुएं वे उत्पाद हैं जिनका विनिर्माण या उत्पादन किया जाता है और उपभोक्ताओं को खुदरा और थोक विक्रेताओं के माध्यम से बेचा जाता है। सेवा से अभिप्राय, किसी भी प्रकार की सेवा से है जो संभावित उपभोक्ता को सुविधाओं के प्रदान करने सहित जैसे बैंकिंग, बीमा, परिवहन, बिजली या दूसरी ऊर्जा की पूर्ति, आवास, निर्माण कार्य, जल आपूर्ति, स्वास्थ्य, उत्सव, मनोविनोद आदि उपलब्ध कराई जाती है। इसमें निःशुल्क उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं या ठेके के अन्तर्गत की गई व्यक्तिगत सेवाएं शामिल नहीं होतीं।


    उपभोक्ता जागरूकता
    उपभोक्ता जागरूकता से अभिप्राय निम्न के संयोग से हैः
    • उपभोक्ता द्वारा खरीदी गई वस्तु की उसकी गुणवत्ता के विषय में जानकारी:  उदाहरण के लिए, उपभोक्ता को मालूम होना चाहिए कि वस्तु स्वास्थ्य के लिए अच्छी है या नहीं अथवा उत्पाद पर्यावरण जोखिम आदि पैदा करने से मुक्त है या नहीं।
    • विभिन्न प्रकार के जोखिमों और उत्पाद को बेचने से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा उदाहरणके लिए, किसी वस्तु की बिक्री का एक ढंग, समाचार पत्रों, दूरदर्शन आदि के माध्यमसे विज्ञापन है। उपभोक्ताओं को विज्ञापनों के बुरे प्रभावों के विषय में उचित शिक्षा मिलनी चाहिए। उन्हें विज्ञापन की अंतर्सूची की भी जांच कर लेनी चाहिए।
    • उपभोक्ता के अधिकारों के विषय में ज्ञान: पहले उपभोक्ता को यह जान लेना चाहिए कि उसे ठीक प्रकार के उत्पाद प्राप्त करने का अधिकार है। दूसरे, यदि उत्पाद किसी प्रकार दोषपूर्ण पाया जाता है तो उपभोक्ता को देश के कानून के अनुसार, मुआवजे के दावा करने  का ज्ञान होना चाहिए।
    • उपभोक्ता को अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान: इससे यह अभिप्राय है कि उपभोक्ता को किसी प्रकार का अपव्ययी और अनावश्यक उपभोग नहीं करना चाहिए।
    उपभोक्ता जागरूकता की आवश्यकता
    आजकल बाजार बहुत अधिक मात्रा में विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं से भरा पड़ा है। उत्पादकों और वस्तु के अन्तिम विक्रेताओं की संख्या भी कई गुना बढ़ चुकी है। इसलिए यह जानना बहुत कठिन हो गया है कि यथार्थ उत्पादक या विक्रेता कौन है? उपभोक्ता के लिए व्यवहारिक रूप से यह सम्भव नहीं है कि वह उत्पादक या विक्रेता से व्यक्तिगत संपर्क कर सके। इसके अलावा विकसित सूचना प्रौद्योगिकी के युग में, उपभोक्ता और उत्पादक/विक्रेता के बीच भौतिक दूरी भी बढ़ गई है क्योंकि उपभोक्ता अपनी वस्तुएं टेलीफोन पर आदेश देकर या इन्टरनेट आदि के माध्यम से घर बैठे प्राप्त करते हैं। इसी प्रकार, वस्तुओं में, यह जानना
    बहुत कठिन हो गया है कि कौन एक असली है। लोग सोचते हैं कि एक उत्पाद जिसका विज्ञापन आया है, अच्छी होनी चाहिए या उत्पादक जिसका नाम विज्ञापन के माध्यम से जाना गया है, अवश्य ही अच्छा उत्पाद बेच रहा होगा। किन्तु यह हमेशा सच नहीं हो सकता। कुछ विज्ञापनों में, उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए अधिकतर सूचना जान बूझकर छुपा दी जाती है।
    पैक किए हुए खाद्य पदार्थ, उत्पाद और दवाइयों पर समाप्ति की तारीख होती है जिसका तात्पर्य यह है कि वह विशिष्ट उत्पाद उस तारीख से पहले उपभोग कर लेना चाहिए और उस तारीख के पश्चात बिल्कुल नहीं। यह सूचना बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उपभोक्ता के स्वास्थ्य से सम्बन्धित है। कभी-कभी ऐसा होता है कि या तो ऐसी सूचना उपलब्ध नहीं कराई जाती या उत्पादक जानबूझकर यह सूचना नहीं देता क्योंकि उपभोक्ता ने इसके विषय में नहीं पूछा या उत्पाद पर लिखे हुए निर्देश पर ध्यान नहीं दिया।
    यह भी बहुत बार होता है कि उपभोक्ता वस्तुएं और सेवाएं बिना बिल के खरीदता है या विक्रेता बिल नहीं देता। यह उत्पाद पर सरकार को दिए जाने वाले कर को बचाने के लिए किया जाता है। इस प्रकार का कर मूल्य वृद्धि कर (VAT) कहलाता है। यदि इस कर को शामिल कर लिया जाता है तो उत्पाद की कीमत, कर के कारण अधिक हो जाएगी और उसके अनुसार बिल देने से वह प्रमाणित हो जायेगा। परन्तु उपभोक्ता को उत्पाद को नीची कीमत पर बेचकर, आकर्षित करने के लिए, विक्रेता कर कम कर देता है और बिल नहीं देता। क्योंकि
    कीमत कम होती है, उपभोक्ता बिल के लिए चिंता नहीं करता। ऐसा करने से दो समस्याएं पैदा होती हैं। एक तो, सरकार कर आगम से वंचित रह जाती है और दूसरे, उपभोक्ता को हानि उठानी पड़ सकती है यदि उत्पाद दोषपूर्ण है। वह न तो उत्पाद को वापस कर सकता है और न ही शिकायत कर सकता है, क्योंकि क्रय को प्रमाणित करने के लिए कोई बिल नहीं है।
    दूसरी मुख्य समस्या यह है कि उपभोक्ताओं में एकता नहीं होती। उत्पादक और व्यापारी शक्तिशाली हो गए है क्योंकि उनके हितों की रक्षा के लिए उत्पादकों और व्यापारियों के संघ हैं। किन्तु क्रेता अब भी कमजोर और असंगठित हैं। फलस्वरूप क्रेताओं को छला और धोखा दिया जाता है।
    ऊपर दिए गए तर्कों के आधार पर उपभोक्ताओं के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि वे व्यापरियों और सेवा उपलब्ध कराने वालों की अनुचित व्यापार आचरणों से स्वयं को बचाकर रखें। उन्हें अपने अधिकारों की उपभोक्ता के रूप में जानकारी और उनका तुरन्त उपयोग करने की आवश्यकता है। यह ध्यान देना चाहिए कि उपभोक्ता जागरूकता केवल उपभोक्ताओं के अधिकारों के विषय में नहीं है। यह एक भली प्रकार जानी पहचानी वास्तविकता है कि संसार में बहुत से उपभोक्ता, अपनी मौद्रिक शक्ति के कारण अविचार और अपव्ययी उपभोगों में संलग्न रहते हैं। इसने समाज को धनी उपभोक्ताओं और गरीब उपभोक्ताओं में बांट दिया है। इसी प्रकार, बहुत से उपभोक्ता, उपभोग के पश्चात बचे हुए कुडा़ करकट के सुरक्षित निपटान की चिंता नहीं करते  जिससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। उत्पाद की नीची कीमत का भुगतान करने से सहमत होकर, बिना बिल मांगे, बहुत से उपभोक्ता, अप्रत्यक्ष रूप से, सरकार को कर देने से बचने में विक्रेता की सहायता करते हैं। इसलिए उपभोक्ता जागरूकता में, उपभोक्ताओं को उनके उत्तरदायित्वों के बारे में शिक्षित करने की भी आवश्यकता है।
    उपभोक्ताओं को भी, अधिक उत्तरदायित्व के साथ सरकार के साथ हाथ मिलाकर कार्य करना चाहिए। 


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