जहां पति उस समय रह रहा हो।जहां प्रतिवादी हाल तक आवेदक के साथ रहता रहा हो,
जहां आवेदक रहता हो/जहां प्रतिवादी का स्थाई निवास हो,
जहां पति-पत्नी याचिका से पहले (चाहे अस्थाई रूप से) रह रहे हों।
- धारा 125 सी0आर0पी0सी0 की कार्यवाही की प्रणाली
खर्चे के लिए दी गई याचिका-आरोप पत्र न होकर एक याचिका होती है इसलिए प्रतिपक्षी को अभियुक्त नहीं बल्कि प्रत्यार्थी माना जाता है। यह कार्यवाही पूर्णतया फौजदारी नहीं होती बल्कि अर्ध-फौजदारी होती है। याचिका अदालत में प्रत्यार्थी को सम्मन जारी किये जाते हैं। अगर प्रत्यार्थी सम्मन लेने से जान बूझकर इन्कार करे या सम्मन मिलने के बावजूद अदालत में उपस्थित न हों तो उनके खिलाफ एक तरफा कार्यवाही के आदेश दिये जा सकते हैं। एक तरफा फैसले का आदेश उचित कारण साबित किये जाने पर तीन महीने के अन्दर रद्द करवाया जा सकता है। प्रार्थी या प्रत्यार्थी दोनों पक्षों को अपने आरापों को साबित करने के लिए गवाही देने का अधिकार है। दोनों पक्ष स्वयं अपने गवाह के तौर पर अदालत के समक्ष पेश होने का अधिकार रखते हैं। केस व अनुमान सावित्री बनाम गोबिन्द सिंह रावत,1986(1) सी.एल.आर.पेज नं0 331 में उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश दिया गया है कि जब तक 125 सी0आर0पी0सी0 के तहत कारवाई पूरी होने तक गुजारा भता बारे कोई अन्तिम फैसला नहीं होता तब तक अन्तरिम आदेश के तहत 125 सी0आर0पी0सी0 की दरखास्त दायर होते ही गुजारा भता दिया जा सकता है। यहां यह भी बताना उचित होगा कि केस व अनुमान श्रीमती कमला वगैरा बनाम महिमा सिंह, 1989(1) सी.एल.आर.पेज न0 501 में दर्ज, उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले के मुताबिक ऐसी हर दरखास्त जेर धारा 125 सी0आर0पी0सी0 दुबारा चालू हो सकती है जो प्रार्थीय के न आने के कारण खारिज कर दी गई हो। यहां यह भी बताना उचित होगा कि केस व अनुमान पवित्र सिंह बनाम भुपिन्द्र कौर, 1988 एस.एल.जे. पेज न0 164 में दर्ज उच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक ऐसी दरखास्त जेर धारा 125 सी0आर0पी0सी0 जो राजीनामा की वहज से वापिस ले ली गई हो दुबारा चलाई जा सकती है अगर उस केस का राजीनामा टूट जाये।
- धारा 125 सी0आर0पी0सी0 के अधीन खर्चा प्राप्त करने की पात्रता हर उस व्यक्ति पर जो साधन सम्पन्न है, यह कानूनी दायित्व है कि वहः
अपनी पत्नी जो अपना, खर्चा स्वयं वहन न कर सकती हों,अपने नाबालिग बच्चों (वैध व अवैध) जो स्वयं अपना खर्चा चलाने में असमर्थ हो,अपने बालिग बच्चों (वैध व अवैध) सिवाय विवाहित पुत्री के) जो शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम होने पर अपना खर्चा स्वयं वहन न कर सकते हों,अपने वृद्ध व लाचार माता पिता जो स्वयं अपना खर्चा उठाने में असमर्थ हो, कि वह उनका खर्चा व पालन पोषण का व्यय उठाएं।ध्यान रहे कि केवल कानूनन व्याहिता पत्नी ही खर्चा लेने की अधिकारिणी है।दूसरी (पत्नी जो विवाह कानून द्वारा मान्य नहीं है, या रखैल, खर्चा प्राप्त करने की हकदार नहीं है लेकिन वैध या अवैध सन्तानें इस धारा के अन्तर्गत खर्चा लेने की हकदार है।) - खर्चा प्राप्त करने हेतू साक्ष्य
खर्चा प्राप्त करने के लिए प्रार्थी को निम्नलिखित बातें साबित करना आवश्यक हैः-
- कि प्रार्थी के पास खर्चा देने के पर्याप्त साधन हैं।
- वह जानबूझकर भरण-पोषण देने में आनाकानी या इन्कार कर रहा है।
- आवेदक प्रत्यार्थी के साथ न रहने के लिए मजबूर है, अगर पति के खिलाफ व्यभिचार (परस्त्रीगमन) निर्दयता (शारीरिक व मानसिक) दूसरी शादी या अन्य ऐसे कोई आरोप साबित हो तो पत्नी द्वारा अलग रह कर खर्चा प्राप्त करने का अधिकार मान्य होगा।
- आवदेक के पास स्वयं अपना खर्चा चलाने के लिए कोई साधन उपलब्ध न है।
- लेकिन अगर पत्नी स्वयं व्यभिचारणी का जीवन बिता रही है। या
- पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति के साथ रहने से मना करती हो
- पति-पत्नी स्वयं रजाबन्दी से अलग रह रहे हों, तो खर्चा प्राप्त करने की याचिका रद्द की जा सकती है। अदालत द्वारा प्रति माह व्यक्ति (आवेदक) 500 रूपये से अधिक खर्चे का आदेश नहीं दिया जा सकता। यह आदेश अदालत द्वारा दोनों पक्षों की आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों, उनकी जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है। किसी भी पक्ष की परिस्थितियों में फेर बदल होने पर खर्च के आदेश को रद्द या कम या ज्यादा किया जा सकता है।
- धारा 127 सी0आर0पी0सी0 के तहत खर्चे मे तबदीली
अगर खर्चा प्राप्त करने वाले व्यक्ति का समय व्यतीत हो जाने के उपरान्त अदालत द्वारा प्रदान किये हुए खर्चे से गुजारा नहीं होता या जिस व्यक्ति के विरूद्ध खर्चा लगवाया गया है उसकी आर्थिक स्थिति में खर्चे के निर्देश उपरान्त तबदीली आती है तो खर्चा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को अधिकार है कि वहा न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी की अदालत में खर्चा बढ़ाने के लिए आवेदन धारा 127 दण्ड प्राक्रिया संहिता के तहत दे सकता है। 2001 के अधिनियम 50 ने तबदीली लाई है कि खर्चे की रकम अदालत हालत के मुताबिक तय करेगी और इसकी कोई सीमा न होगी। अगर इस प्रकार के आवेदन पर पत्नी, बच्चों या माता पिता के खर्चा तबदीली करने की सुनवाई करता है तो अदालत किसी दिवानी दावे में हुए फैसले को भी मद्देनजर रखेगी। इस प्रकार अगर किसी पत्नी ने तलाक लिया है या पति ने उसे तलाक दिया है और ऐसी पत्नी तलाक लेने के उपरान्त दूसरी शादी कर लेती है तो अदालत को अधिकार है कि वह पति के आवेदन पर ऐसी पत्नी के खर्चा गुजारे के आदेश को उसके द्वारा शादी करने की तारीख से रद्द कर सकती है।
- धारा 128 सी0आर0पी0सी0 के अधीन आदेश कैसे लागू किया जाता है
अगर प्रत्यार्थी बिना किसी उचित कारण के आदेश का उलंघन करता है तो खर्चे की रकम के बारे में वारन्ट जारी किया जा सकता है। वारन्ट जारी होने के बावजूद मासिक खर्चे के भुगतान होने की स्थिति में प्रत्यार्थी को एक माह तक की कैद हो सकती है। खर्चे के आदेश को लागू करने की याचिका, देय तिथि के एक साल के भीतर दिया जाना अनिवार्य है। हमारे उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले के मुताबिक प्रत्यार्थी को उतने महीने तक लगातार जेल में बन्द रखा जा सकता है जितने महीने तक का गुजारा भता उसने नहीं अदा किया हो। यहां यह भी कहना उचित है कि किसी भी पत्नी को अपने पति से देय गुजारा वसूल करने के लिये अदालत में कोई पैसा जमा करवाने की जरूरत नहीं होती हैं। एमपरर बनाम सरदार मोहम्मद, ए.आई.आर. 1935, लाहौर, पेज 758
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