Breaking News : हैंडग्रेनेड और एके 47 का जखीरा मुसलमान के घर में
आज हमारे पड़ोस के मुस्लिम घर में हैंडग्रेनेड, एके-47, तंमाचे, बन्दूख, गोला बरूद और तेजाब का भारी जखीरा मिला, गौरतलब हो कि यह व्यक्ति काग्रेस का स्थानीय नेता है। यह मामला प्रकाश में यों आया कि पिता और पुत्र के बीच भारी विवाद हुआ और इस विवाद की गम्भीरता इस कदर बढ़ी कि नौबत तेजाब फेकने तक आ गई। पिता ने पुत्र पर तेजाब फेकने का प्रयास किया। लेकिन यहॉं कहावत शिद्ध करते हुये बेटे ने मियॉं की जूती मियाँ पर ही दे मारी और यह विवाद थाने जा पहुँचा। बेटे ने अपने मामला अपने ऊपर आता देख घर में चल रहे पिता के सारे आतंकवादी कारनामे को उजागर कर पिता के नाम को रौशन करने में कोई कसर नही छोड़ी।
पुलिस द्वारा मारे गये छापे में इस प्रकार की घातक जखीरे से आस-पास के लोग दहशत में थे। लोग आतंकवाद का चेहरा इनती नजदीक से देखकर हतप्रभ थे और उनमें भय भी व्यप्त था कि ये औजार किस लिये और किस षड़यंत्र को अंजाम देने के लिये एकत्र किये जा रहे थे?
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हम भी बन गये चर्चित चिट्ठाकार
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हिन्दी के प्रथम चिट्ठाकार से मुलाकात
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अल्लाह ने दिये अबाध बिजली अपूर्ति की गांरटी
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श्रद्धांजली - अमर शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन

भारत माता को भी नाज होगा कि उसके रक्षा की खतिर देश में सपूतों की कमी नही है, उन्ही में से एक है मेजर संदीप उन्नीकृष्णन जो मुम्बई हमले मे देश की रक्षा करते हुयेबीर गति को प्राप्त हुये। धन्य होगी वह मॉं की कोख और पिता की गोद जिसने इस महान सपूत को जन्म दिया और पाला होगा। भले ही आज मेजर हमारे बीच नही है किन्तु उनका जज्बा और यादे हमारे बीच जरूर है।
मेजर आज भी हमारे बीच है, एक प्रेरणा स्त्रोत के रूप में, आतंकवाद की लड़ाई में प्रखर योद्धा के रूप में। उनके परिवार को उन नाज होगा कि उनका पुत्र देश के लिये शहीद हुआ किन्तु उनके शहीद होने से माता पिता ने अपना पुत्र, बहन-भाईयों ने भाई, पत्नि ने पति और पुत्र-पुत्रियों ने अपना पिता खोया है। अमर शहीद से बना शून्य ताजिन्दगी उनके परिवार वालो को उनकी याद दिलाता रहेगा।
इस राष्ट्रीय दुख की घड़ी में हम सब यही प्रार्थना कर सकते है कि उनके परिवार जनो को इस आपर छति से लड़ने का साहस प्रदान करें।
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हे भगवान जी हमारी नानी को वापस बुला लो'
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कामोत्तजक पुरूष और अम्बूमणि रामदौस
खैर शेष फिर .................
जॉब सम्बन्धी महत्वपूर्ण सूचना
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय : छात्रसंघ पर प्रतिबन्ध अनुचित
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इलाहाबाद का यश चला बनारस
डाक्टर जोशी एक बड़े राजनेता के साथ साथ एक बड़े वैज्ञानिक, अच्छे शिक्षक भी रहे है। भाजपा में उनकी छवि केसरिया छवि के नेता के रूप में जानी जाती है। शायद ही आज भाजपा के पास उनसे ज्यादा अच्छा राष्टवादी विचारधारा का वक्ता उपलब्ध हो। राममंदिर से लेकर कश्मीर यात्रा तक डा. जोशी भारतीय जनमानस में हमेशा याद किये जाते है। 1996 की 13 दिन की वाजपेई सरकार में डाक्टर जोशी को गृहमंत्री का दायित्व दिया जाना निश्चित रूप से आज भी उनकी स्थिति आडवानी जी के बाद दूसरे नम्बर के नेता की है। इसमें दो राय नही होनी कि अगली भाजपा सरकार में वे महत्वपूर्ण पद से नवाजे जायेगे।
डाक्टर जोशी ने इलाहाबाद के अंदर जो कुछ भी किया वह इलाहाबाद के विकास के लिये पर्याप्त है उतना पिछले 5 सालों में नही हुआ। शिक्षा और विकास के मामलो में जोशी ने इलाहाबाद को नये आयामो तक पहुँचाया। इलाहाबाद को डाक्टर जोशी कमी जरूर खलेगी। और अब भाजपा का नया विकल्प इलाहबाद में क्या होगा यह एक बड़ी चुनौती का प्रश्न होगा।
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साध्वी पर षड़यंत्र
"एक बात और जिस समय मालेगांव में विस्फोट हुआ उसी समय गुजरात के मोडासा में भी विस्फोट हुआ। खुफिया एजेंसियों का तब कहना था कि इन दोनों विस्फोटों के पीछे एक ही आतंकवादी संगठन का हाथ है। जब साफ है कि मालेगांव में हुए दोनों विस्फोटों के पीछे उद्देश्य और विस्फोट करने का तरीका एक ही है तो फिर सीबीआई साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से पूछताछ करने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? ये बड़ा सवाल है और इस सवाल का जबाव ढूंढने में ही साध्वी की गिरफ्तारी और कथित हिंदू आतंकवाद के खुलासे के पीछे छुपे राजनीतिक छल-प्रपंच का भंडाफोड़ हो पाएगा। फिलहाल साध्वी सभी वैज्ञानिक जांचों में बेदाग निकल गई हैं और अब एटीएस (एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वाड) साध्वी के खिलाफ मिले सबूतों और उसकी ब्रेनमैपिंग व नार्कों टेस्ट के नतीजों को सार्वजनिक करने के बजाय अब साध्वी की साधना की आड़ लेकर अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है। इस मामले में बुरी तरह फंस चुकी एटीएस इसे साध्वी की साधना का कमाल बता रही है और दोबारा से परीक्षण की बात कह रहा है।"
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मुस्लिम सेक्यूलर और हिन्दू सम्प्रदायिक क्यो ?
आज भारत ही नही सम्पूर्ण विश्व इस्लामिक आंतकवाद से जूझ रहा है, विश्व की पॉंचो महाशक्तियॉं भी आज इस्लामिक आंतकवाद से अछूती नही रह गई है। आज रूस तथा चीन के कई प्रांत आज इस्लामिक आलगाववादी आंतकवाद ये जूझ रहे है। इन देशों में आज आंतकवाद इसलिये सिर नही उठा पा रहे है क्योकि इन देशों में भारत की तरह सत्तासीन आंतकवादियों के रहनुमा राज नही कर रहे है।
भारत में आज दोहरी नीतियों के हिसाब से काम हो रहा है, मुस्लिमों की बात करना आज इस देश में धर्मर्निपेक्षता है और हिन्दुत्व की बात करना इस देश में सम्प्रादयिकता की श्रेणी में गिना जाता है। आज हिन्दुओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इस कारण है कि मुस्लिम वोट मुस्लिम वोट के नाम से जाने जाते है जबकि हिन्दुओं के वोट को ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, लाला और एसटी-एससी के नाम से जाने जाते है। जिस ये वोट हिन्दू मतदाओं के नाम पर निकलेगा उस दिन हिन्दुत्व और हिन्दू की बात करना सम्प्रादायिकता श्रेणी से हट कर धर्मनिर्पेक्षता की श्रेणी में आ जायेगा, और इसे लाने वाली भी यही सेक्यूलर पार्टियॉं ही होगी।
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अखंड भारत के असली नायक पुष्यमित्र शुंग
एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था कि अचानक एक लम्बा चैड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा कि अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा ” कौन हो तुम”। जवाब आया ”ब्राह्मण हूँ महाराज”। सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे”? पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है”। उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया। जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गया। शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था और भारत को पुनः हिन्दू देश बनाना उसका स्वप्न था।
आखिर वो दिन भी आ गया। यवनों की लाखों की फौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया कि अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नहीं था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा कि इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पडे़ हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ”यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मूंठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला ”ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता”। हजारों की सेना सब देख रही थी। पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला “ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो मगध, महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो?” उसकी शेर सी गरजती आवाज से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र। हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ। चलो काट दो यवनों को।”
जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही थी। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया कि अब तुम्हें भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नहीं तो काट दिए जाओगे। यवनों को मध्य देश से निकालकर सिन्धु के किनारे तक खदेड़ दिया और पुष्यमित्र के हाथों सेनापति एवं राजा के रूप में उन्हें पराजित होना पड़ा। यह पुष्यमित्र के काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा कि अब कोई मगध में बौद्ध धर्म को नहीं मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा “जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा”।
उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नहीं है। उसने लाखों ‘देशद्रोही’ बौद्धों को मरवा दिया। मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना कर विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर उन्होंने वैदिक संस्कृति के आदर्शों की प्रतिष्ठा की।
बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे, उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षशिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य पुनः बहाल हुआ। शुंग वंशावली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की। पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया। इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वह बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंगवंश नाम ही लिखते हैं।
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पिपिहरी तो नही मिली, भोपा लिया था
14 अक्टूबर को भाई अभिषेक ओझा ने कहा कि - मेला में पिपिहरी ख़रीदे की नहीं? उस पर एक और टिप्पणी सोने पर सुहागा साबित हुई और मै इस लेख को लिखने पर विवश हो गया। दूसरी टिप्णी सम्माननीय भाई योगेन्द्र मौदगिल ने कहा कि - अभिषेक जी ने जो पूछा है उसका जवाब कब दे रहे हो प्यारे। भाई Anil Pusadkar, श्री अनूप शुक्ल जी,श्री डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर तथा प्रखर हिन्दुत्व का हार्दिक अभार व्यक्त करता हूँ। उसी के आगे थोड़ा वर्णन और सही ........
इसके आगे से ......... गॉंव से लौट कर मै बिल्कुल थक चुका था, 5 अक्टूबर की थकवाट बदस्तूर कई दिनों तक जारी भी रही, चलिये उसका वर्णन भी कर ही देता हूँ, हमेंशा हम मित्र मंडली बना कर दशहरा चौक का मेला घूमते थे, किन्तु इस बार गॉंव से लौटते ही बहुत तेज बुखार पकड़ लिया, जो एकादशी तक जारी रहा, मित्र शिव को पहले ही मै मना कर चुका था कि अब कोई मेला नही जायेगे, रात्रि को सभी लोग चले गये। हम तो बेड रेस्ट करते हुये फिल्म गोल देख रहे थे। रात्रि पौने 12 बजे गोल खत्म होते ही मैने सभी को दशहरे की बधाई देने के लिये फोन किया। सभी तो प्रसन्न थे किन्तु मेरे न जाने से सभी निराश भी थे। अगले दिन एकादशी को प्रयाग के चौक में बहुत धासू रोशनी का पर्व होता है, उसका आमंत्रण भी मिला किन्तु मै अब कोई रिस्क नही लेना चाहता क्योकि मुझे 12 अक्टूबर को परीक्षा भी देना था। इस तरह तो मेरा दशहरा का मेला रसहीन ही बीता। जिसका मुझे मलाल रहेगा, क्योकि साथियों के साथ घूमने का अपना ही मजा होता है।
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दशहरे का मेला और हमारी नींद
रात्रि ढाई बज रहे थे तब मैने कहा कि अब इस कार्यक्रम को समाप्त किया जाना चाहिये,कुछ की नानुकुर के बाद कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई। मुझे घर पहुँचते और सोते सोते 3.30 बज गये थे। करीब 5 बजे थे कि मेरी ऑंख खुल चुकी थी। मेरी आदत है कि मै एक बार 5 बजे जरूर उठ जाता हूँ। वैसा मेरे साथ उस दिन भी हुआ, कुल मिला कर मै दो घन्टे भी नही सो पाया था। सुबह पापा जी और दोनो भइया को गॉंव जाना था, किन्तु पिछले दिन भइया रायवरेली गये थे तो उन्होने जाने में असर्मथता व्यक्त कर दिया। पापा जी ने मुझे कहा मै भी असर्मथ ही था किन्तु जाने के लिये हामी भर दिया। गाड़ी और प्रतापगढ़ में मुझे काफी तेज नींद आ रही थी किन्तु मै सो पाने में सक्षम नही था। गॉंव पहुँचते 4 बज गये, और शाम 6 बजे पापा जी ने कहा कि आज रूका जाये कि चला जाये। मैने इलाहाबाद जाने के पक्ष में राय जाहिर की। क्योकि मै इतना थका हुआ था कि कुछ भी काम करने की स्थिति में नही था।
हम लोग करीब 6.30 गॉंव से इलाहाबाद की ओर चले और 9 बजे घर पहुँच गये, मेरी थकावट और नींद चरम पर था किन्तु गॉंव से लौटने के बाद 56 प्रकार की चर्चा शुरू हो गई और सोते सोते बज गये 12 और फिर सुबह 5 बजे जग गया। .........
शेष फिर
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क्योकि भगवान बिजली पैदा नही करते
ऐसा तो है नही कि ईद और मुहर्रम में खुदा बिजली पैदा करने की इकाई लगा देते है, और जहॉं दीपावली, होली और दशहरा आता है भगवान जी बिजली पैदा करने की ईकाई बंद हो जाती है। सरकर की इस सेक्यूलर छवि की हमें चिंता करनी चाहिये। आखिर हिन्दू पर्वो पर ही बिजली क्यो कटती है ?
आज सरकार की यह दोहरी नीति हिन्दूओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा है, अमरनाथ में हिन्दूओं को अपने विश्राम की भूमि नही मिल सकती है, रामसेतु को सिर्फ इसलिये तोड़ने का प्रयास किया गया क्योकि यह हिन्दुओं के आराध्य श्रीराम का स्मृति चिन्ह है। आज हिन्दुओं को अपनी अस्तित्व की लड़ाई में चारों तरफ से सघर्ष करना पड़ रहा है।आखिर कब तक यह चलता रहेगा, कब तक हिन्दुओं के की अस्मिता को ललकारा जायेगा ?
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इलाहाबाद जनपद के औद्योगिक विकास की सम्भावनाऍं एवं समस्याऍं : एक आलोचनात्मक अध्ययन
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भोजशाला का इतिहास और सच्चाई
परमार वंश का शासक राजा भोज का 1000 से 1055 तक प्रभाव रहा। म.प्र. के धार जिला में राजा भोज का मंदिर है। राजा भोज मां सरस्वती के उपासक थे, फलस्वरूप राजा भोज ने मां सरस्वती का विशाल मंदिर और एक महाविद्यालय की स्थापना की, जो भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। उन दिनों राजा भोज की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और ओड़ीशा में ज्ञानार्जन करने हेतु आते थे। उनका प्रभाव अधिक था। भोजशाला के महाविद्यालय में देश- विदेश से विद्यार्थी अपनी राजा भोज की कृपा से विद्यार्थी वेद, योग, सांख्य, न्याय, ज्योतिष, धर्म, वस्तुशास्त्र, औषधि विज्ञान, राज व्यवहार शास्त्र सहित कई शास्त्रों का अध्ययन करते थे। हजारों की संख्या में विद्यार्थी यहाँ के विद्धानों, आचार्यों के सानिन्ध्य में आलोकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। इन आचार्यों में भवभूति, माघ, वाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट, धनपाल, बौद्ध संत बन्सवाल, समुद्रघोष आदि विश्व विख्यात हैं। कहने का तात्पर्य यह महाविद्यालय बहुत बड़ा शिक्षा का केन्द्र था। जहाँ सभी विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था। भोजशाला में माँ सरस्वती की आराधना के साथ-साथ विशाल हवन कुंड में हवन एवं वेद मंत्रों के उच्चारण से भोजशाला गूंजता था। भोजशाला एक खुले प्रांगण में बना है। जिसमें विशाल स्तम्भों की श्रंखला है-जिसके पीछे एक विशाल प्रार्थना घर है। नक्काशीदार स्तम्भ तथा नक्काशीदार छत भोजशाला की पहचान है। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने वाग्देवी का विशाल मंदिर बनवाया था, जिसमें राजा भोज द्वारा आराधना की जाती थी। 1902 में लार्ड कर्जन के शासन काल में वाग्देवी की प्रतिमा लंदन ले जाया गया। आज भी लंदन के संग्रहालय में वाग्देवी की प्रतिमा मौजूद है।
राजा भोज के शासन के पश्चात् 200 वर्षों तक भोजशाला में अध्ययन- अध्यापन का कार्य भोज के शासनकाल की भांति निरन्तर जारी रहा जैसे राजा में था। हजारों की संख्या में दूर दराज से विद्यार्थी अध्ययन-अध्यापन का कार्य करते थे। 1305 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया। इसके अलावा उसने भोजशाला के कुछ भाग को ध्वस्त कर करीब 1200 आचार्यों एवं विद्यार्थियों की हत्या कर हवन कुंड में डाल दिया। कहा जाय तो भोजशाला का बहुत सा भाग ध्वस्त कर दिया। उस समय वहाँ का शासक मेदनी मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह का निर्माण करवाया क्योंकि खिलजी शासकों के समय में मौलाना कमालुद्दीन बहुत प्रसिद्ध था। मौलाना कमालुद्दीन हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर इस्लाम कुबुल करवाता था। इस्लाम न कुबुल करने पर हिन्दुओं का कत्ल करवा देता। इसलिए कमालुद्दीन खिलजी शासकों का प्रिय मौलाना था। महमू खिलजी द्वारा कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनने के बाद भोजशाला पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया। भोजशाला में नमाज अदा होने लगी। माँ सरस्वती की पूजा के लिए हिन्दुओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा। अभी भी माँ सरस्वती की पूजा संघर्ष चल है।
1935 में म.प्र. के धार स्टेट का दीवान नाडकार ने भोजशाला को कमाल मौलाना का मस्जिद बताते हुए सिर्फ मुस्लिमों को नमाज अदा करने की अनुमति दे दिया। तथा हिन्दुओं को माँ सरस्वती की आराधना का अधिकार समाप्त कर दिया। 1997 में म.प्र. के कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो हिन्दुओं का भोजशाला में प्रवेश ही बंद करवा दिया। उसी वर्ष बहुत संघर्ष के बाद 12 मई 1997 को कलेक्टर द्वारा हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति मिली। 2002 में शुक्रवार को बसंत पंचमी और कमाल मौलाना का जन्मदिन एक साथ पड़ा। उस दिन बहुत हंगामा हुआ। सरकारी आज्ञानुसार सुबह से 12 बजे तक सरस्वती पूजा एवं 1 बजे से 3 बजे तक नमाज अदा करने की अनुमति मिली। उस दिन 12 बजते ही पूजा बंद करवा दी गयी, हवन कुंड में पानी डाल कर मंदिर परिसर खाली करा दिया गया। मंदिर परिसर खाली करते समय थोड़ा विलम्ब होने पर पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरु कर दिया। पथराव होने लगा। बच्चे महिलाओं सहित 1400 लोग घायल हुए, 2 दर्जन गम्भीर रूप से घायल हुए। सारा फसाद राजनैतिक कुटिलता और तुष्टीकरण की प्रवित्ति के कारण हुआ।
इससे स्पष्ट होता है कि मस्जिद और दरगाह भोजशाला को तोड़कर ही बनाया गया है। राजाभोज के भोजशाला में अगर नमाज अदा की जाती है इसपर तर्क संगत विचार होना चाहिए। सही इतिहास पर चर्चा होना चाहिए। लेकिन आज सम्प्रदाय विशेष की तुष्टीकरण के लिए ही सही इतिहास छुपाने की परम्परा चल गयी है। मंदिर एवं स्थलों पर, जहाँ पूजा और नमाज अदा की जाती है, उसे एकता का मिसाल कह कर सेक्यूलरिस्ट अपना पल्ला झाड़ते हैं। एकता का मिसाल जब माना जाता जब आज नवनिर्मित मस्जिदों में भी एक छोटा से ही पूजा स्थल बना दिया जाता, तब हम गर्व से कहते कि भारत के मंदिरों में मस्जिद होना एकता की मिसाल है।
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सम्पूर्ण शिव तांडव स्त्रोत और इसकी रचना कैसे हुई
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रामधारी सिंह ''दिनकर''
26 जनवरी,1950 ई. को लिखी गई ये पंक्तियॉं आजादी के बाद गणतंत्र बनने के दर्द को बताती है कि हम आजाद तो हो गये किन्तु व्यवस्था नही नही बदली। नेहरू की नीतियों के प्रखर विरोधी के रूप में भी इन्हे जाना जाता है तथा कर्इ मायनों में इनहोने गांधी जी से भी अपनी असहमति भी जातते दिखे है, परसुराम की प्रतीक्षा इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । यही कारण है कि आज देश में दिनकर का नाम एक कवि के रूप में नही बल्कि जनकवि के रूप में जाना जाता है।
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पंगेबाज जी महाशक्ति के शहर में
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हमारे नेट कनेक्शन पर शनि की छाया
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गूगल एडसेंस - दो साल में अर्श से फर्श तक
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क्यों परेशां हो बदलने को धर्म दूसरों का?
शुरुआत किसने की? स्वामीजी और उनके चार चेलों को क्यों मारा गया? क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा नहीं है? इन लोगों को मार कर ईसाई क्या सोच रहे थे कि हिन्दुओं को दुःख नहीं होगा? क्या वह चुपचाप कभी मुस्लिम आतंकवादियों और कभी ईसाईयों द्वारा मारे जाते रहेंगे और कुछ नहीं कहेंगे? क्या हिन्दुओं को तकलीफ नहीं होती? क्या जब उनकी दुर्गा माता की नंगी तस्वीर बनाई जाती है तो उनका दिल नहीं दुखता? इन सवालों का जवाब क्या है और कौन यह जवाब देगा?
अब भी कभी किसी मुसलमान या ईसाई के साथ अन्याय होता है, सारे मुसलमान, सारे ईसाई और बहुत सारे हिंदू खूब चिल्लाते हैं. हिन्दुओं को गालियाँ देते हैं. उनके संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं. भारतीय प्रजातंत्र तक को गालियाँ दी जाने लगती हैं. पर जब हिन्दुओं के साथ अन्याय होता है तो यह सब चुप रहते हैं. कश्मीर से पंडित बाहर निकाल दिए गए, कौन बोला इन में से? जम्मू में आतंकवादियों ने कई हिन्दुओं को मार डाला, कौन बोला इन में से? मुझे लगता है कि मुसलमान और ईसाईयों से ऐसी उम्मीद करना सही नहीं है कि वह कभी किसी हिंदू पर अन्याय होने पर दुःख प्रकट करेंगे. शायद उनके धर्म में ही यह नहीं है. पर हिंदू तो हिन्दुओं को गाली देना बंद करें. जब हिंदू हिंदू को गाली देता है तो मुसलमान और ईसाईयों का हौसला बढ़ता है. मुझे यकीन है कि अगर हिंदू हिंदू को गाली देना बंद कर दे तो भारत में धरम के नाम पर दंगे कम हो जायेंगे. हिन्दुओं का एक होना जरूरी है, मुसलमानों और ईसाईयों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को यह बताने के लिए कि भारत में हिन्दुओं के साथ मिल जुल कर रहो. इसी में सबकी भलाई है.
न हिंदू बुरा है,
न मुसलमान बुरा है,
करता है जो नफरत,
वो इंसान बुरा है.
बदलने को धर्म दूसरों का,
खुदा का कोई धर्म नहीं होता.
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मेरा नेट कई दिनों से ख़राब है ppp
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पंगेबाज की कंडोलेंस डायरी - पेज नं 302
मुझे पंगेबाज की अन्तेष्ठी कार्यक्रम में डोम कार्य का दायित्व माननीय शुरेश जी के सानिध्य में सौपा गया था, उस कड़ी में जारी है पंगेबाज की कंडोलेंस डायरी का पेज नं 302
पंगेबाज बहुत अच्छे आदमी थे, मुझे तो उनके लेखो में आत्मीयता झलकती थी। उनके सारे लेखों पर मैने ''अच्छा, बहुत अच्छा और सारगर्भित की ही टिप्पणी की।अत्यंत दुख के साथ कहना पड़ना रहा है कि पंगेबाज के जाने से मेरे लिये टिप्पणी करने का एक ब्लाग कम हो गया। अब वो स्थान कैसे भरेगा ? पंगेबाज भगवान तुम्हारी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
तुम्हारा
समीर
''सही है'' जिसे आना है जायेगा, जिसे आना होगा आयेगा। हिन्दी ब्लागिंग में पंगेबाज बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। ये बात भी सत्य है कि पंगेबाज के जाने के बाद पंगेबाजी खत्म होने वाली है। तुम्हारी रंगों में बह रहा खून, एक ब्लागर का खूर था, और पंगेबाजी तो हर ब्लागर के नस नस में रची बसी है। मुझे दुख है कि मेरे ब्लाग की एक टिप्पणी कम हो गई, मै अपने ब्लाग पर आये इस एक टिप्पणी के शुन्य को खोज रहा हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके एकाध प्रतिस्पर्धी को भी अपने पास बुला ले ताकि पंगेबाज की आत्मा पंगेबाजी के लिये उद्वलित करे, तो स्वर्ग में सुविधा उपलब्ध हो जाये, उनकी आत्मा को धरती की ओर रूख न करना पडे़।
फुरसतिया
उड़ी बाबा, पोगेबाज चोला गया! , कोय को गया ? , ओब मी केसे लोड़ाई कोरबो ? ओब मेरी सोंड वाली फोस्टिंग के कोरेगा ? मेरे लिखे पर के खुरपैच निकोलेगा ? अब मेरे स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह को कौन खोयेगा ? उड़ी भोगवान हम ओब क्या कोरेगा ? किसके ब्लोग पर एनिनोमिस टिप्पोनी कोरेबे ? हे भोगवान, तेरे ओगे किसी की नही चोलने का, जो हुआ ठीक हुआ, प्लीज गोड जी एक कोम कोरने का, एक नेट कोनेक्सन लोगवा लो, हम पंगेबोज से स्वर्ग से ही पोंगा कोरेगा।
(पोगेबाज होमको जोनता है, हम ओपना नाम नही लिखेगा।)
बड़ा अच्छा आदमिवा रहा ई पंगेबजवा। हम राजनेतवन का ई शब्दवा तो हम मरै वाले आदमी के बदै कहै कर पड़ता है, तबै तो हमरे पेशे का नेतागीरी कहा जात है। देखा हरकिशन के मरै पर हर नेता पहुँचा रहै कंडोलेंस करै, कि ई बहुत बड़ा और अच्छा नेतावा रहै।
अब पंगेबाजवा के मरै पर तो हमरै फर्ज रहै कि ई काम हमहु काम करी, कहै कि हर आदमी का अपने भविष्य के चिन्ता होत है। हे ईश्वरवा एक ठो ई आत्मा जात अहै एका शान्ति दिहो, काहे कि अब एकरे पहुँचे के बाद तोहका शान्ति न मिली।
अफलातून
आप भी पंगेबाज को अपनी शोक सम्वेदन देना चाहते है तो [email protected] पर अपना संदेश और नाम ईमेल करें। आज हम बहुत दुखी है इसलिये स्माईली नही लगा रहे है।
द्वारा
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
क्रिया कर्म विशेषज्ञ पगेबाज,
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जिम में हम
सुबह ही सुबह बुखार भी हो गया था, करीब 102 फारेनहाइट बता रहा था। अब तो जिम की हवा ही निकल चुकी थी। चूकि हमारे जिम में जाने की खबर घर में किसी को नही थी, और यही कारण था कि सभी लोग आम बुखार समझ रहे थे। हम जान रहे थे कि हमारी क्या स्थिति उस समय रही होगी ? पर हम क्या कर ही सकते थे।

चित्र साभार
पुन: शाम होती है और जिम जाने का समय हो जाता है, हम अभी तक जो बेड पर आराम फरमा रहे थे, पूर्ण रूपेण जिम फार्म में आ चुके थे। आज जिम जाने का मन तो नही कर रहा था किन्तु हम कर ही क्या सकते थे। सभी दोस्तो ने कहा कि आज नही जाओगे तो और दर्द करेगा। हम भी मान गये किन्तु हमारा मन कह रहा था कि अगर आज मै नही जाऊँगा तो काफी हद तक तबियत ठीक हो जायेगी। पर दोस्तो की ही बात मान गया।
शाम को लौटने पर हालत और गम्भीर हो चुकी थी, अब अगले दिन जाने की इच्छा नही कर रही थी, और गया भी नही। मुझे लग रहा था कि आज न गया तो मै ठीक हो जाऊँगा। यही बात साथियों को बताया किन्तु नही माने पर मेरी बात के आगे उन्हे मानना ही पड़ा। एक दिन आराम किया काफी अच्छा महसूस होने लगा। फिर अगले दिन से सब कुछ नर्मल हो गया। और तो रोज जाते है। :)
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प्रयाग की एक और ब्लागर मीट
घर आकर हम लोगों ने काफी बात की, ब्लाग की वर्तमान दशा और दिशा पर भी हम लोगों ने चर्चा किया। उनका काफी दिनों से लेखन बंद है और मै भी काफी दिनों से कम लिख रहा था। इधर मैने उन्हे कुछ न कुछ लिखने के लिये कहा कि समय मिले तो जरूर लिखे और उन्होने जल्द ही सक्रिय होने की बात कहीं। उन्होने मेरी सक्रियता की कमी पर प्रश्न उठाया कि महाशक्ति की शान्ति का माहौल मजा नही दे रही है। :)
मैने स्पष्ट किया कि इधर अपनी परीक्षाओं के कारण दूरी बनी रही, फिर सिर्फ लिखने के लिये लिखने की इच्छा नही करती है, का कारण बताया। सही बात भी है मैने इन दिनों अधिकत ब्लाग सिर्फ लिखने के लिये बिना उद्देश्य लिखा जा रहा है। इन दिनों इस तरह के लेखन से मेरा मन तो उब गया है। अन्त में फिर जल्दी मिलने के वायदे के साथ हमारी लघु चिट्ठाकार वार्ता सम्पन्न हो गई।
चित्र के लिये प्रतीक्षा करें। -
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आज का दिन जरा हट के
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अंतककियों का अगला निशाना भोपाल/शिमला तो नही
देश के भीतर पल रहे विषबीजों का काम है जो आने वाले चुनावों में भाजपा के शासन को कंलकित दिखाना चाहते है। जिस प्रकार की हरकत केन्द्र सरकार ने संसद में कि उससे तो यही लगता है कि सरकार सत्ता के लिये कुछ भी कर सकती है, अगर बम विस्फोट भी होते हे तो इसमें कोई शक नही कि खुफिया तंत्र की विफलता के पीछे सरकार का ही हाथ होता है। राजनीति का स्तर सत्ता की भूख के लिये इतना गिरना नही चाहिये।
भगवान दोनो जगह हुये विस्फोटों में शहीद हुये लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
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अन्तिम संस्कार Antim Sanskar
शरीर की इस अन्मित क्रिया के लिये मत्स पुराण में शव को जलाने, गाड़ने तथा प्रवाह देने की बात कहीं गई है- य: संस्थित: पुरूषो दह्यते वा निखन्यते वाSपि निकृष्यते वा। सम्पूर्ण विश्व में शव को गाड़ने की प्रथा दिखती है किन्तु आज चीन समेत कई देश हिन्दू संस्कृति के दाह प्रथा को मान्यता दे रहे है। क्योकि यह शरीर की आन्तिम किया का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चीन सरकार ने 14 मार्च 1985 के आदेश में कुछ जाति के लोगें को छोड़कर शेष धर्म जाति के लोगों में शव के गाड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबन्ध लगा दिया है तथा पुरानी कब्र को पुन: जोतने का आदेश दे दिया है।
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हँसों जम के हँसो
1
वैलेंनटाईन डे के दिन एक प्रेमी जोड़ा एक बाग में मिलता है, प्रेमी जोड़ा पेड़ के तले बैठ जाता है. प्रेमिका की तारीफ करते हुए प्रेमी बोलता है, तुम्हारी आँखें बहुत प्यारी हैं, इनमें डूबने को मन करता है, इन आँखों में मुझे सारी दुनिया नजर आती है।
इतने में पेड़ से आवाज आती है, रे भाई कल शाम से मेरा गधा गुम है, हो सके तो देख बताओ ना कहां है।
2
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।
3
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।
4
संता बुदबुदाते हुए समाजशास्त्र के प्रश्न पत्र को हल कर रहा था, भारत में हर तीन मिनट बाद एक औरत एक बच्चे को जन्म देती है। आने वाली भयावह स्थिति पर किस प्रकार नियंत्रण पाया जा सकता है?
बंता पीछे से कहता है, पहले उस औरत को तलाश करना चाहिए।
5
शिक्षक (छात्र से) - बताओ फोर्ड क्या है?
छात्र (शिक्षक से) - गाड़ी।
शिक्षक - वेरी गुड, अब बताओ आक्सफोर्ड क्या है?
छात्र - बैल गाड़ी।
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जो मजा विरोध भरी टिप्पणी में है वो और कहाँ ?
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इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त के एक हिन्दू विधायक को वहाँ का मुलायम और लालू बनने का शौक चढ़ है। तभी उसे हिन्दुओं के 52 शक्ति पीठों में एक हिंगलाज मंदिर को समाप्त कर, बांध बनाने का पूरी विधान सभी में अकेला सर्मथन कर रहा था। यह हिन्दुत्वों का और उस माता का दुर्भाग्य है कि उसके कैसे जयचंद्रो को जन्म दिया।
बलूचिस्तान प्रान्त में हिन्दू के 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर का अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा है। पाकिस्तान की संघीय सरकार ने मंदिर पास बांध बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसे बूलचिस्तान प्रदेश सरकार ने संघीय सरकार से अपनी परियोजना को बदलने का अनुरोध किया है।
इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफ़ी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नि सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।
जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्तीय सरकार के सभी सदस्य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।
हे भगवान इस धरा से इन जयचन्द्रों का अंत कब होगा ?
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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया

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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया

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बहस - भारत के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार की न्यूनतम आयु कितनी है ?
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