Breaking News : हैंडग्रेनेड और एके 47 का जखीरा मुसलमान के घर में



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आज हमारे पड़ोस के मुस्लिम घर में हैंड ग्रेनेड, एके-47, तमंचा, बंदूक, गोला बारूद और तेजाब का भारी जखीरा मिला, गौरतलब हो कि यह व्यक्ति काग्रेस का स्थानीय नेता है। यह मामला प्रकाश में यों आया कि पिता और पुत्र के बीच भारी विवाद हुआ और इस विवाद की गंभीरता इस कदर बढ़ी कि नौबत तेजाब फेंकने तक आ गई। पिता ने पुत्र पर तेजाब फेकने का प्रयास किया। लेकिन यहां कहावत सिद्ध करते हुये बेटे ने मियाँ की जूती मियाँ पर ही दे मारी और यह विवाद थाने जा पहुँचा। बेटे ने अपने मामला अपने ऊपर आता देख घर में चल रहे पिता के सारे आतंकवादी कारनामों को उजागर कर पिता के नाम को रोशन करने में कोई कसर नही छोड़ी।

पुलिस द्वारा मारे गये छापे में इस प्रकार की घातक खतरे से आस-पास के लोग दहशत में थे। लोग आतंकवाद का चेहरा इतने नजदीक से देखकर हतप्रभ थे और उन्हें भय भी व्याप्त था कि ये औजार किस लिये और किस षड़यंत्र को अंजाम देने के लिये एकत्रित किये जा रहे थे?


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हम भी बन गये चर्चित चिट्ठाकार



बहुत दिनों के बाद हमारे दिन भी आखिर फिर ही गये, जब एक महीने में 2 दर्जन से ज्‍यादा पोस्‍टे ठेलते थे तो कोई फूछता ही नही था और आज दिन यह है महीने में 2-4 पोस्‍टें लिखने पर हमें चर्चित चिट्ठाकार की श्रेणी मे लाकर खड़ा कर दिया गया है।

जैसा की आपने पढ़ा ही होगा कि मैने कुछ दिनों पूर्व मेरी और श्री आलोक जी के मध्‍य इलाहाबाद जक्‍ंशन पर एक लघु मुलाकात हुई थी जिसकी पोस्‍ट मैने लिखी और आपने पढ़ी थी। अब यही से हिन्‍दी फिल्‍मो की तरह रोमांचक मोड़ आ जाता है। बहुत दिनों बाद जंग खाये ब्‍लाग राईटर का उपयोग कर पोस्‍ट लिख रहा था। उसमें महाशक्ति के दो एकान्‍ट लिख रहे थे, पहला वो जिस पर मै नियमि‍त लिखता हूँ दूसरा वो जिस पर मै टेम्‍पलेट आदि का टेस्‍ट करता हूँ। भूल वश वह दूसरे खाते चली गई और प्रकाशित भी हो गई। सबसे बड़ी बात ये कि ये भी भी पढ़ी गई और टिप्‍प्‍णी भी बटोरे में सफल रही है। ये सब कुछ हो रहा था और मुझे इसका पता ही नही चला और मै बाट के बटोही महाशक्ति पर की पोस्‍ट पर टिप्‍पडियों की बाट जोह रहा था।

मुझे अपनी इस पोस्ट की जानकारी आज चिट्ठाचर्चा के जरिये हुई। जब चिट्ठाचर्चा पर गया तो नये चिट्ठाकार के रूप में महाशक्ति का एक और नाम पाया। आश्‍चर्य हुआ की हमारी ब्‍लाग के हेडर पर लिखी पंचलाईन पढ़ने के बाद भी हमसे टकराने की हिम्‍मत कौन कर रहा है। मन कह रहा था कि शेर बूढ़ा क्‍या हुआ, सियारो की लोय लग गई। चिट्ठाचर्चा से लिंक खोला लिंक काम नही कर रहा था। और भी सस्‍पेस जागृत हुआ कि लेख लिखा गया और डीलिट भी होगा गया, और हमें पता नही। लिंक में सुधार किया तो पता चला कि ये तो हम ही है। खोदा पहाड़ निकला चूहिया।

काफी दिनो बाद चिट्ठाचर्चा में अपनी चर्चा होते देख चर्चित होने का भी अनुभव प्राप्‍त कर लिया। मुझे खेद है कि उस नये ब्‍लाग पर आई प्रतिक्रियाओं का जवाब नही दे सका। चिट्ठाचर्चा का भी आभार की मुझे मेरे ही लेख की सूचना दी। :)



चलते चलते : आज किसी ब्‍लाग पर पढ़ा की हमारे श्री समीर लाल जी के सु्पुत्र का शुभ विवाह आगामी हफ्ते में है। हमारी तरफ से बहुत बहुत शुभ कामनाऍं।


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हिन्‍दी के प्रथम चिट्ठाकार से मुलाकात



काफी दिनो से मुझे समय नहीं मिल रहा था किंतु काफी लोग कहते है कि समय निकाला जाता है, उनमें से मै भी एक हूँ। अपनी व्‍यस्‍तताओं के आगे मुझे बहुत कुछ सूझ नहीं रहा था। हिन्दी के प्रथम चिट्ठकार श्री आलोक जी का प्रयाग आने के कार्यक्रम का मेल मुझे दो दिन पूर्व ही मिल गया था। किन्तु मै मेल का प्रतिउत्‍तर न दे सका और न ही काल के द्वारा कोई सूचना ही किन्तु उनकी आई मेल को मैने तारांकित कर लिया था। 14 दिसम्बर को करीब 11 बजे मैंने श्री आलोक जी से सम्पर्क किया और उन्होंने बताया कि वो करीब 2 बजे की ट्रेन से वापसी कर रहे है, इसी पर एक और इलाहाबाद जंक्शन पर ब्लॉगर मीट की रूपरेखा तैयार हो गई।
किंतु यही पर एक दिक्कत हो गई, करीब 12.45 पर मेरे मोबाइल की बैटरी काफी काम हो गई थी मुझे भय था कि कहीं यहां मिलने के समय पर समय यह खत्म न हो जाये। मैंने उसे स्विच ऑफ करके चार्जिंग पर लगा दिया। जो करीब 1.05 तक चार्जिंग पर लगा रहा। जैसे ही मैने उसे चर्जिग से हटाया तो आलोक जी का मिस्‍ड काल की सूचना और उनका SMS दोनो से मिली और मैने उन्‍हे फोन लगाया और 5 मिनट पर स्‍टेशन पर पहुँचने की बात कही। इस बार मै काफी जल्‍दी में था, दूध का जला छांछ भी फूँक फुँक भी पीता है। जब समीर लाल जी आये थे वो दिन हमें याद था अब रिस्‍क लेने के मूड में नही था। हमने प्‍लेट फार्म टिकट भी नही लिया, जबकि मेरे भइया बार बार लेने के लिये कह रहे थे। टिकट न लेने का भी कारण था जो मेरे और भइया के बीच रहस्‍य है।
स्‍टेशन पर चाय का जिक्र तो श्री आलोक जी कर ही चुके है, पर उन्होने बिस्‍किट का जिक्र नही किया वो हम कर देने है। आलोक जी ने चाय की कै‍न्‍टीन से ग्लूकोस बिस्किट की मॉंग ही किन्‍तु दुकादार ने कहा कि नही है, मैने उसे प्रियागोल्‍ड का CnC देने को कहा जो स्‍वाद में 50-50 और Parle Krack Jack की तरह ही था। इस बार मेरे साथ मेरे भइया मानवेन्‍द्र प्रताप सिंह भी थे कुछ समय पूर्व मेरे ब्‍लाग पर मेरी अनुपस्थिति में ब्‍लाग लेखन किया था। अगर हम लोगों में काफी चर्चाऍं आयोजित हुई, जिसका ज्‍यादा जिक्र करना समय व्‍यर्थ करना ज्‍यादा होगा। क्‍योकि जब ब्लागर आपस में बात करते है तो बहुत कुछ बातें गोपनीय होती है। :)
अन्‍तोगत्‍वा 2 बजे हमारी ब्‍लागर मीट समाप्‍त हुई। आलोक जी ने हमें एक बहुत अच्‍छी पुस्‍तक भेंट की जो मेरे उपयोगी है। हम जल्दबाजी में ठीक से मेहमान नवाजी न कर सके उसका हमें अफसोस है। जल्द ही मिलने के वायदे के साथ हमें ब्‍लागर भेंट वार्ता समाप्त हो गई।


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अल्‍लाह ने दिये अबाध बिजली अपूर्ति की गांरटी



आज बकरीद के मौके पर बिजली कटौती नहीं होगी। खबर है कि कल प्रदेश सरकार की मुखिया ने अल्लाह से एक दिन के अल्लाह मियां से उनके पास रखे जनरेटर की मांग की थी जिसे अल्लाह मियां ने धर्मनिरपेक्ष सरकार के समर्थन में बिजली के सीमित अतिरिक्त उत्पाद की मॉंग को स्वीकार कर लिया। जिसे आज संपूर्ण उत्तर प्रदेश के 24 घंटे आबाध बिजली की आपूर्ति की जायेगी।

यहां तो 10 बजे बिजली कटनी चाहिए थी अभी तक 10.30 तक कटी नहीं, क्‍या आपकी सरकारो ने भी ऐसी कोई मांग अल्लाह मियां से की हो जो टिप्पणी के माध्यम से जरूर सूचित कीजिए। काश हमारे भगवान के पास भी कोई अतिरिक्त जनरेटर होता, तो हमारे भी त्यौहार उजाले में मनाये जाते।


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श्रद्धांजली - अमर शहीद मेजर संदीप उन्‍नीकृष्‍णन



जुलाई 2008 में हम्‍पी यात्रा के दौरान के चित्र



भारत माता को भी नाज होगा कि उसके रक्षा की खतिर देश में सपूतों की कमी नही है, उन्‍ही में से एक है मेजर संदीप उन्‍नीकृष्‍णन जो मुम्‍बई हमले मे देश की रक्षा करते हुयेबीर गति को प्राप्‍त हुये। धन्‍य होगी वह मॉं की कोख और पिता की गोद जिसने इस महान सपूत को जन्‍म दिया और पाला होगा। भले ही आज मेजर हमारे बीच नही है किन्‍तु उनका जज्‍बा और यादे हमारे बीच जरूर है।

मेजर आज भी हमारे बीच है, एक प्रेरणा स्‍त्रोत के रूप में, आतंकवाद की लड़ाई में प्रखर योद्धा के रूप में। उनके परिवार को उन नाज होगा कि उनका पुत्र देश के लिये शहीद हुआ किन्‍तु उनके शहीद होने से माता पिता ने अपना पुत्र, बहन-भाईयों ने भाई, पत्नि ने पति और पुत्र-पुत्रियों ने अपना पिता खोया है। अमर शहीद से बना शून्‍य ताजिन्‍दगी उनके परिवार वालो को उनकी याद दिलाता रहेगा।

इस राष्‍ट्रीय दुख की घड़ी में हम सब यही प्रार्थना कर सकते है कि उनके परिवार जनो को इस आपर छति से लड़ने का साहस प्रदान करें।


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हे भगवान जी हमारी नानी को वापस बुला लो'



कुछ दिन पूर्व अदिति की नानी का हमारे यहॉं आने का कार्यक्रम हुआ। किन्‍तु अद‍िति से पुरानी दुश्‍मनी थी, करीब जब अदिति ढ़ेड साल की थी और नानी के यहॉं गई थी तभी से उसकी नानी से नही पटती थी। दुश्‍मनी की हद इस तरह तक की थी, वह नानी को अपने घर से भगाने के लिये भगवान से प्राय: प्रार्थना भी करती थी, जब तक की नानी चली नही गई। प्रार्थना की अपनी स्‍टाईल भी थी '' हे भगवान जी हमारी नानी को वापस बुला लो'' एक न दिन तो उनकी नानी को वापस जाना ही था और वह दिन भी आ गया और भोर में ही नानी अदिति के उठने से पहले चली गई। जब अदिति उठती है तो नानी को नई पाती है, घर में पूछती है कि नानी कहॉं है उसे पता चलता है नानी चली गई तो वह बोली है - भले भई चली गई, भगवान जी हमार सुन लीहिन।
अदिति के चित्र अन्‍य चित्रों के लिये क्लिक करें




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कामोत्तजक पुरूष और अम्‍बूमणि रामदौस



आज खबर पढ़ रहा था तो पढ़ने में आया कि कोई हालीवुड स्टार ह्यूं जैकमैन 2008 के सबसे कामोत्‍तेजक अर्थात Sexy पुरुष चुने गए है। भारतीय के लिये शर्म की बात यह की भारत का को नंग धडग आदमी इस दौड़ में शामिल नही हो पाया। जॉन अब्राहम, सलमान, हासमी पता नही कितने कपड़ा उतारू एक्‍टरों की मेहनत पर बट्टा लग गया। ये भारतीय एक्‍टर कितनी मेहनत करते है कमोत्तेजक कहलाने में किन्‍तु हो गया ढ़ाक के तीन पात, देश की बात होने पर सिर्फ इन्‍ही के चर्चे होते है किन्‍तु जहॉं विदेश की बात आती है, दुनिया में इनका नामो निशान नही होता है, बिल्‍कुल क्रिकेट खिलाडियों की तरह भारत में जो खेलने आता है उसे पटक के हरा देते है, किन्‍तु जब विदेश दौरे में हार जाते है तो कहते है कि बेईमानी कर के जीत लिये, खिसियानी बिल्‍ली खम्‍भा नोचे, ऐसे है भारतीय एक्‍टर और भारतीय क्रिकेट टीम।
 
आज कल तो सेक्‍स और सेक्‍सी दोनो ने समाज में बहुत गंदा वातावरण फैला दिया है। इसी में रामदौस भी अड़ गये है कि अब मर्द की शादी मर्द से करा के ही दम लेगे, चाहे मनमोहन साहब कितने खफा क्‍यो न हो ? मनमोहन साहब भी करे तो करे क्‍या चार दिन के मेहमान जो ठहरे पता नही अगली बार कुर्सी मिले भी कि न मिले, गे मामले में उनकी रुचि देख कर लगता है कि शायद कही साहब अपने लिये नये पार्टनर तो नहीं खोज रहे है, अब पता चला कि Sexy Man ऐसे लोगो के लिये चुना जाता है अब तो उन्‍हे सबसे कमोत्तजक पुरूष ह्यूं जैकमैन पंसद आ ही जाएंगे सूत्रों से पता चला है कि उन्‍हे पीएम इन वेटिंग से जितना खतरा नही है उससे ज्यादा राहुल बाबा से है। चुनाव का समय है सुनाई दे रहा था कि राहुल बाबा को 84 के सिख दंगों का खेद है, मुस्लिम इंदिरा दादी ने सिखों पर दंगा करने में कसर नहीं छोड़ी थी अब ईसाई पुत्र राहुल हिन्दुओं पर दंड़ा किये पड़े है। चुनाव आ रहा है तो राजनीति खेली ही जायेगी, वो चाहे अच्छी हो या गंदी राजनीति तो राजनीति होती है, आज कल केन्द्रीय खजाने में कमी की खबर आ रही है, जांच करने में पता चला कि कुछ मनमोहन साहब मैडम के आदेश पर अमेरिका के गरीब में बाँट आये और जो कुछ बचा वो मुस्लिम अनुदान आयोग में चला गया, मुस्लिम छात्रों को वजीफा।
 
खैर बहुत बेबात की बात हो गई, पर रामदौस वाली बात शत प्रतिशत सही है, तभी वे समलैंगिक (gay) संबंधों के पीछे पड़ा है, पहले से ही यह आदमी बद्दिमाग लग रहा था किन्तु आज कल चुनाव में हार के डर पता नही क्‍या क्‍या कर रहे है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें गलत क्या है तो मेरा कहना है कि हर प्रश्न का उत्तर नहीं होता है। अब भाई आका वही है तो जो करे सर आँखों में, अब वो मर्द को दर्द देना चाहते है तो हम क्या कर सकते है, हमारी Constituency से भी नही है कि हम उन्हें उनके कार्य से रोकने के लिये वोट न देने की धमकी दे सकते है। अगर वे हमारी Constituency से होते भी तो कोई फर्क नही पड़ता, वे इतना सब पड़ने के बाद स्वयं जान जाते कि बंदा हमको तो वोट नहीं ही देगा।
खैर शेष फिर .................
जॉब सम्बन्धी महत्वपूर्ण सूचना


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इलाहाबाद विश्वविद्यालय : छात्रसंघ पर प्रतिबन्‍ध अनुचित



इलाहाबाद विश्वविद्यालय और छात्र राजनीति का बहुत पुराना रिश्ता है, उस रिश्ते को आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा छात्र संद्य चुनाव न करवा कर तोड़ जा रहा है। हो सकता हो कि छात्र संद्य के चुनाव न करवाने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय को काफी फायदे मिलते है, जैसा कि कुछ छात्र नेताओं के मुँह से मैने सुना है कि छात्रसंद्य के अभाव में जो पैसा छात्रों के कल्‍याण हेतु आता है वह सब केवल विवि प्रशासन जेब तक ही सीमित हो कर रह जाता है। मुझे इस बात में काफी दम भी लगती है क्योंकि मैने स्‍वय इलाहाबाद विवि के छात्रावास और अध्‍ययन कक्ष देखे है जिनमें व्यवस्था के नाम पर आपको कुछ नही मिलेगा। आज जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय केंद्रीय दर्जा प्राप्त कर चुका है और वहॉं व्यवस्था के नाम पर सिर्फ अव्‍यवस्‍था दिखती है तो निश्चित रूप से दाल में कुछ काला है कि बात जरूर सामने आती है।
आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की अराजकता से ग्रसित है। जब यह विश्वविद्यालय स्‍वनियत्रण में आया है तब से इसके कुलपति अपने आपको विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा मानने लगे है। करोड़ो रूपये की छात्र कल्‍याण हेतु आर्थिक सहायता सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई है। जो काम छात्रों के काम छात्र संघ होने पर तुरंत हो जाता था आज कर्मचारी उसी काम को करने में हफ्तो लगा देते है। जिस छात्र संघ ने कई केन्‍द्रीय मंत्री और राज्‍य सरकार को मंत्री देता आ रहा है उस पर प्रतिबंध लगाना गैरकानूनी है। आज जबकि जेएनयू और डीयू जैसे कई केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव हो रहे है तो इलाहाबाद केन्‍द्रीय विवि में चुनाव न करवाना निश्चित रूप से विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपनी खामियों के छिपाने का प्रयास मात्र है।विश्वविद्यालय राजनीति का अखड़ा नही है किन्तु छात्रसंघ से देश को प्रतिनिधित्‍व का साकार रूप मिलता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिये कि अपनी गलती को मान कर छात्रों के सम्‍मुख मॉफी मॉंग कर जल्‍द ही चुनाव तिथि घोषित करना चाहिये। वरन युवा शक्ति के आगे प्रशासन को झ़कना ही पड़ेगा।


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इलाहाबाद का यश चला बनारस



आज भारतीय जनता पार्टी ने डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से लड़ने की घोषणा कर ही दी, जिसका अनुमान इलाहाबाद के लोगो को काफी पहले लग चुका था। इलाहाबाद से डॉक्टर जोशी का जाना इलाहाबाद और इलाहाबादियों दोनो के लिये धक्के के समान है। 2004 के आम चुनावों में जिस प्रकार डाक्‍टर जोशी पराजित हुए वह दुर्भागयपूर्ण था। डॉक्टर जोशी करीब 32 हजार वोटो से इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से चुनाव हारे थे,यह हार बेमानी थी क्योंकि करछना के मौजूदा विधायक रेवती रमण और डॉक्टर जोशी के मध्‍य करछना में वोटो का अंतर 29 हजार का था,जो चौकाने वाला परिणाम दे रहा था। खैर रात गई बात गई अब समय है कि नई परिस्थितियों के हिसाब से आयोजन किया जाये।
डॉक्टर जोशी एक बड़े राजनेता के साथ साथ एक बड़े वैज्ञानिक, अच्छे शिक्षक भी रहे है। भाजपा में उनकी छवि केसरिया छवि के नेता के रूप में जानी जाती है। शायद ही आज भाजपा के पास उनसे ज्‍यादा अच्‍छा राष्‍टवादी विचारधारा का वक्‍ता उपलब्‍ध हो। राममंदिर से लेकर कश्‍मीर यात्रा तक डा. जोशी भारतीय जनमानस में हमेशा याद किये जाते है। 1996 की 13 दिन की वाजपेई सरकार में डाक्‍टर जोशी को गृहमंत्री का दायित्‍व दिया जाना निश्चित रूप से आज भी उनकी स्थिति आडवानी जी के बाद दूसरे नम्‍बर के नेता की है। इसमें दो राय नही होनी कि अगली भाजपा सरकार में वे महत्‍वपूर्ण पद से नवाजे जायेगे।
डाक्‍टर जोशी ने इलाहाबाद के अंदर जो कुछ भी किया वह इलाहाबाद के विकास के लिये पर्याप्‍त है उतना पिछले 5 सालों में नही हुआ। शिक्षा और विकास के मामलो में जोशी ने इलाहाबाद को नये आयामो तक पहुँचाया। इलाहाबाद को डाक्‍टर जोशी कमी जरूर खलेगी। और अब भाजपा का नया विकल्‍प इलाहबाद में क्‍या होगा यह एक बड़ी चुनौती का प्रश्‍न होगा।


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साध्वी पर षड़यंत्र



कल के मेरे लेख पर आज श्री दिवाकर प्रताप सिंह की विशेष टिप्पणी मिली, जो बातें उन्होंने रखी वह विचारणीय है, इसी परिप्रेक्ष्य में मै उक्त टिप्पणी को आपके सामने रख रहा हूँ ताकि बात दूर तक जाये।
"एक बात और जिस समय मालेगांव में विस्फोट हुआ उसी समय गुजरात के मोडासा में भी विस्फोट हुआ। खुफिया एजेंसियों का तब कहना था कि इन दोनों विस्फोटों के पीछे एक ही आतंकवादी संगठन का हाथ है। जब साफ है कि मालेगांव में हुए दोनों विस्फोटों के पीछे उद्देश्य और विस्फोट करने का तरीका एक ही है तो फिर सीबीआई साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर से पूछताछ करने की कोशिश क्यों नहीं कर रही है? ये बड़ा सवाल है और इस सवाल का जवाब ढूंढने में ही साध्वी की गिरफ्तारी और कथित हिंदू आतंकवाद के खुलासे के पीछे छुपे राजनीतिक छल-प्रपंच का भंडाफोड़ हो पाएगा। फिलहाल साध्वी सभी वैज्ञानिक जांच में बेदाग निकल गई हैं और अब एटीएस (एंटी टेररिस्ट स्क्वाड) साध्वी के खिलाफ मिले सबूतों और उसकी ब्रेन मैपिंग व नार्कों टेस्ट के नतीजों को सार्वजनिक करने के बजाय अब साध्वी की साधना की आड़ लेकर अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश कर रहा है। इस मामले में बुरी तरह फंस चुकी एटीएस इसे साध्वी की साधना का कमाल बता रही है और दोबारा से परीक्षण की बात कह रहा है।"


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मुस्लिम सेक्यूलर और हिन्दू सम्प्रदायिक क्यो ?



आज देश में दहशत का माहौल बनाया जा रहा है, कहीं आतंकवाद के नाम पर तो कहीं महाराष्ट्रवाद के नाम पर। आखिर देश की नब्ज़ को हो क्या गया है। एक तरफ अफजल गुरु को फांसी के सम्बन्ध में केंद्र सरकार ने मुँह में लेई भर रखा है तो वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र की ज्वलंत राजनीति से वहां की प्रदेश सरकार देश का ध्यान हटाने के लिये लगातार साध्वी प्रज्ञा सिंह पर हमले तेज किए जा रही है और इसे हिन्दू आतंकवाद के नाम पर पोषित किया जा रहा है। यह सिर्फ इस लिये किया जा रहा है कि उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों से बड़ी एक न्यूज तैयार हो जो मीडिया के पटल पर लगातार बनी रहे।
आज भारत ही नहीं सम्पूर्ण विश्व इस्लामिक आतंकवाद से जूझ रहा है, विश्व की पॉंचो महाशक्तियों भी आज इस्लामिक आतंकवाद से अछूती नहीं रह गई है। आज रूस तथा चीन के कई प्रांत आज इस्लामिक अलगाववादी आतंकवाद ये जूझ रहे है। इन देशों में आज आतंकवादी इसलिये सिर नहीं उठा पा रहे है क्योंकि इन देशों में भारत की तरह सत्तासीन आतंकवादियों के रहनुमा राज नही कर रहे है।
भारत में आज दोहरी नीतियों के हिसाब से काम हो रहा है, मुस्लिमों की बात करना आज इस देश में धर्मनिरपेक्षता है और हिन्दुत्व की बात करना इस देश में साम्प्रदायिकता की श्रेणी में गिना जाता है। आज हिन्दुओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया गया है। इस कारण है कि मुस्लिम वोट मुस्लिम वोट के नाम से जाने जाते है जबकि हिंदुओं के वोट को ब्राह्मण, ठाकुर, यादव, लाला और एससी-एसटी के नाम से जाने जाते है। जिसने वोट हिन्दू मतदाओं के नाम पर निकलेगा उस दिन हिन्दुत्व और हिन्दू की बात करना साम्प्रदायिकता श्रेणी से हट कर धर्मनिरपेक्षता की श्रेणी में आ जायेगा, और इसे लाने वाली भी यही सेक्युलर पार्टियां ही होगी।


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अखंड भारत के असली नायक पुष्यमित्र शुंग



बात आज से 2100 साल पहले की है। एक निर्धन ब्राह्मण के घर एक पुत्र ने जन्म लिया। उसका नाम रखा गया पुष्यमित्र और जिसे बाद में नाम पुष्यमित्र शुंग कहा गया और वो बना एक महान हिन्दू सम्राट जिसने भारत को बौद्ध देश बनने से बचाया। यदि ऐसा कोई राजा कम्बोडिया, मलेशिया या इंडोनेशिया में जन्म लेता तो आज भी यह देश हिन्दू होते। जब सिकन्दर राजा पोरस से मार खाकर अपना विश्व विजय का सपना तोड़ कर उत्तर भारत से शर्मिंदा होकर मगध की ओर गया था। उसके साथ आये बहुत से यवन वहां बस गए। अशोक सम्राट के बौद्ध धर्म अपना लेने के बाद उनके वंशजों ने भारत में बौद्ध धर्म लागू करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा इस बात का सबसे अधिक विरोध होने पर उनका सबसे अधिक कत्लेआम हुआ। हजारों मन्दिर गिरा दिए गए। इसी दौरान पुष्यमित्र के माता पिता को धर्म परिवर्तन से मना करने के कारण उनके पुत्र की आँखों के सामने काट दिया गया। बालक चिल्लाता रहा, मेरे माता-पिता को छोड़ दो। पर किसी न नहीं सुनी। माँ-बाप को मरा देखकर पुष्यमित्र की आँखों में रक्त उतर आया। उसे गाँव वालों की संवेदना से नफरत हो गयी। उसने कसम खाई कि वो इसका बदला बौद्धों से जरूर लेगा और जंगल की तरफ भाग गया।


एक दिन मौर्य नरेश बृहद्रथ जंगल में घूमने को निकला। अचानक वहां उसके सामने शेर आ गया। शेर सम्राट की तरफ झपटा। शेर सम्राट तक पहुंचने ही वाला था कि अचानक एक लम्बा चैड़ा बलशाली भीमसेन जैसा बलवान युवा शेर के सामने आ गया। उसने अपनी मजबूत भुजाओं में उस मौत को जकड़ लिया। शेर को बीच में से फाड़ दिया और सम्राट को कहा कि अब आप सुरक्षित हैं। अशोक के बाद मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। यवन लगातार मगध पर आक्रमण कर रहे थे। सम्राट ने ऐसा बहादुर जीवन में ना देखा था। सम्राट ने पूछा ” कौन हो तुम”। जवाब आया ”ब्राह्मण हूँ महाराज”। सम्राट ने कहा “सेनापति बनोगे”? पुष्यमित्र ने आकाश की तरफ देखा, माथे पर रक्त तिलक करते हुए बोला “मातृभूमि को जीवन समर्पित है”। उसी वक्त सम्राट ने उसे मगध का उपसेनापति घोषित कर दिया। जल्दी ही अपने शौर्य और बहादुरी के बल पर वो सेनापति बन गया। शांति का पाठ अधिक पढ़ने के कारण मगध साम्राज्य कायर हो चुका था। पुष्यमित्र के अंदर की ज्वाला अभी भी जल रही थी। वो रक्त से स्नान करने और तलवार से बात करने में यकीन रखता था। पुष्यमित्र एक निष्ठावान हिन्दू था और भारत को पुनः हिन्दू देश बनाना उसका स्वप्न था।

आखिर वो दिन भी आ गया। यवनों की लाखों की फौज ने मगध पर आक्रमण कर दिया। पुष्यमित्र समझ गया कि अब मगध विदेशी गुलाम बनने जा रहा है। बौद्ध राजा युद्ध के पक्ष में नहीं था। पर पुष्यमित्र ने बिना सम्राट की आज्ञा लिए सेना को जंग के लिए तैयारी करने का आदेश दिया। उसने कहा कि इससे पहले दुश्मन के पाँव हमारी मातृभूमि पर पडे़ हम उसका शीश उड़ा देंगे। यह नीति तत्कालीन मौर्य साम्राज्य के धार्मिक विचारों के खिलाफ थी। सम्राट पुष्यमित्र के पास गया। गुस्से से बोला ”यह किसके आदेश से सेना को तैयार कर रहे हो”। पुष्यमित्र का पारा चढ़ गया। उसका हाथ उसके तलवार की मूंठ पर था। तलवार निकालते ही बिजली की गति से सम्राट बृहद्रथ का सर धड़ से अलग कर दिया और बोला ”ब्राह्मण किसी की आज्ञा नही लेता”। हजारों की सेना सब देख रही थी। पुष्यमित्र ने लाल आँखों से सम्राट के रक्त से तिलक किया और सेना की तरफ देखा और बोला “ना बृहद्रथ महत्वपूर्ण था, ना पुष्यमित्र, महत्वपूर्ण है तो मगध, महत्वपूर्ण है तो मातृभूमि, क्या तुम रक्त बहाने को तैयार हो?” उसकी शेर सी गरजती आवाज से सेना जोश में आ गयी। सेनानायक आगे बढ़ कर बोला “हाँ सम्राट पुष्यमित्र। हम तैयार हैं”। पुष्यमित्र ने कहा” आज मैं सेनापति ही हूँ। चलो काट दो यवनों को।”

जो यवन मगध पर अपनी पताका फहराने का सपना पाले थे वो युद्ध में गाजर मूली की तरह काट दिए गए। एक सेना जो कल तक दबी रहती थी आज युद्ध में जय महाकाल के नारों से दुश्मन को थर्रा रही थी। मगध तो दूर यवनों ने अपना राज्य भी खो दिया। पुष्यमित्र ने हर यवन को कह दिया कि अब तुम्हें भारत भूमि से वफादारी करनी होगी नहीं तो काट दिए जाओगे। यवनों को मध्य देश से निकालकर सिन्धु के किनारे तक खदेड़ दिया और पुष्यमित्र के हाथों सेनापति एवं राजा के रूप में उन्हें पराजित होना पड़ा। यह पुष्यमित्र के काल की सबसे महत्वपूर्ण घटना थी। इसके बाद पुष्यमित्र का राज्यभिषेक हुआ। उसने सम्राट बनने के बाद घोषणा कि अब कोई मगध में बौद्ध धर्म को नहीं मानेगा। हिन्दू ही राज धर्म होगा। उसने साथ ही कहा “जिसके माथे पर तिलक ना दिखा वो सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा”।

उसके बाद पुष्यमित्र ने वो किया जिससे आज भारत कम्बोडिया नहीं है। उसने लाखों ‘देशद्रोही’ बौद्धों को मरवा दिया। मगध साम्राज्य के केन्द्रीय भाग की विदेशियों से रक्षा की तथा मध्य भारत में शान्ति और सुव्यवस्था की स्थापना कर विकेन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को कुछ समय तक रोके रखा। मौर्य साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर उन्होंने वैदिक संस्कृति के आदर्शों की प्रतिष्ठा की।

बुद्ध मन्दिर जो हिन्दू मन्दिर गिरा कर बनाये गए थे, उन्हें ध्वस्त कर दिया। बुद्ध मठों को तबाह कर दिया। चाणक्य काल की वापसी की घोषणा हुई और तक्षशिला विश्विद्यालय का सनातन शौर्य पुनः बहाल हुआ। शुंग वंशावली ने कई सदियों तक भारत पर हुकूमत की। पुष्यमित्र ने उनका साम्राज्य पंजाब तक फैला लिया। इनके पुत्र सम्राट अग्निमित्र शुंग ने अपना साम्राज्य तिब्बत तक फैला लिया और तिब्बत भारत का अंग बन गया। वह बौद्धों को भगाता चीन तक ले गया। वहां चीन के सम्राट ने अपनी बेटी की शादी अग्निमित्र से करके सन्धि की। उनके वंशज आज भी चीन में “शुंगवंश नाम ही लिखते हैं।


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पिपिहरी तो नही मिली, भोपा लिया था



मैने पिछली पोस्ट में मेला और गॉंव यात्रा का वर्णन किया था, उस लघु मेला और यात्रा वर्णन को आप सभी ने काफी पंसद और मुझे प्रोत्साहित भी किया। आठ तारीख को लिखे इस वर्णन में 14 अक्टूबर तक टिप्पणी मिली। आज कल समयाभाव के दौर से गुजर रहा हूँ किन्तु एक दम से लिखना छोड़ देने की अपेक्षा गाहे बगाहे ही लिख पाता हूँ।

14 अक्टूबर को भाई अभिषेक ओझा ने कहा कि - मेला में पिपिहरी ख़रीदे की नहीं? उस पर एक और टिप्पणी सोने पर सुहागा साबित हुई और मै इस लेख को लिखने पर विवश हो गया। दूसरी टिप्णी सम्‍माननीय भाई योगेन्द्र मौदगिल ने कहा कि - अभिषेक जी ने जो पूछा है उसका जवाब कब दे रहे हो प्यारे। भाई Anil Pusadkar, श्री अनूप शुक्ल जी,श्री डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर तथा प्रखर हिन्‍दुत्‍व का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ। उसी के आगे थोड़ा वर्णन और सही ........

इसके आगे से ......... गॉंव से लौट कर मै बिल्कुल थक चुका था, 5 अक्टूबर की थकावट बदस्तूर कई दिनों तक जारी भी रही, चलिये उसका वर्णन भी कर ही देता हूँ, हमेशा हम मित्र मंडली बना कर दशहरा चौक का मेला घूमते थे, किन्तु इस बार गांव से लौटते ही बहुत तेज बुखार पकड़ लिया, जो एकादशी तक जारी रहा, मित्र शिव को पहले ही मै मना कर चुका था कि अब कोई मेला नही जायेगे, रात्रि को सभी लोग चले गये। हम तो बेड रेस्ट करते हुए फिल्‍म गोल देख रहे थे। रात्रि पौने 12 बजे गोल खत्म होते ही मैंने सभी को दशहरे की बधाई देने के लिए फोन किया। सभी तो प्रसन्न थे किन्तु मेरे न जाने से सभी निराश भी थे। अगले दिन एकादशी को प्रयाग के चौक में बहुत धांसू रोशनी का पर्व होता है, उसका आमंत्रण भी मिला किन्तु मै अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहता क्योंकि मुझे 12 अक्टूबर को परीक्षा भी देना था। इस तरह तो मेरा दशहरा का मेला रसहीन ही बीता। जिसका मुझे मलाल रहेगा, क्योंकि साथियों के साथ घूमने का अपना ही मजा होता है।
 
5 अक्टूबर के बाद किसी मेले में जाना नहीं हुआ, किन्तु 5 अक्टूबर को ही मैंने अभिषेक भाई की शिकायत दूर कर दिया था, 5 तारीख को मेरी इच्छा के विपरीत आइसक्रीम खिला दिया गया जो आगे के मेला के लिये नासूर साबित हुई। मेला में मुझे पिपीहरी तो नहीं मिली किन्तु 5 रूपये का भोपा जरूर खरीदा था था, जो शानदार और जानदार दोनो था। जो घर पहुँचे पर सुबह का सूरज भी नही देख सका। कारण भी स्पष्ट था कि अदिति ने सभी खिलौनों के साथ ऐसा खेला कि तीन चार गुब्बारे और भोपा क्रय समय के 12 घंटे के अंदर अंतिम सांसे गिन रहे थे। खैर जिसके लिये खरीदा था उसने खेल लिया मन को बहुत अच्छा लगा। सारे गुब्बारे और भोपा नष्‍ट होते ही अदिति की स्थिति देखने लायक थी, जब अन्तिम गुब्‍बारा फूटा तो अदिति बोली- हमारे छोटे चाचा मेला जायेगे, और गुब्बारा लैहिहै। गुब्बारा तो बहुत आये किन्तु हम मेला नहीं जा सके।
 
आज मैने एडब्राइट लगाया है, पता नहीं इससे कोई फायदा पहुंचेगा भी या नहीं अभी तक एडब्राइट के ही विज्ञापन आ रहे है तो उम्‍मीद कम ही है। खैर महीने भर इसे भी देख ही लेते है। गूगल एडसेंस ने तो रंग दिखाये ही थे अब देखना है कि एडब्राईट का रंग चोखा होता है कि नहीं। :) अभी इतना ही फिर मिलेगे फिल्म 1920 की कहानी थोड़े मेरे विचार के साथ, जो मैने इन दिनों देखी थी। मेला के चित्र जल्‍द ही आदिति के ब्‍लाग पर।


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दशहरे का मेला और हमारी नींद



रविवार को इलाहाबाद के सिविल लाइन्स में दशहरे के मेले का आयोजन था, मेरी इस मेले में घूमने की कोई इच्छा नहीं थी, किंतु मित्रों के आग्रह को मै टाल नही सका, सर्वप्रथम मेले के लिये घर से अनुमति जरूरी थी, जो मुझे मिल गई थी। यह पहली बार मेरा ऐसा मेला था जिसमें मैंने रात्रि 1 बजे के बाद तक घूमता रहा। सर्वप्रथम मै पहुँचा तो मित्रों का प्रश्न था कि घर से कितने बजे तक समय लेकर आए हो ? मैंने 1 बजे तक का समय दे दिया था। रात्रि भर हम घूमते रहे, काफी मजा आया। हम कुछ मित्र करीब 1 महीने बाद मिल रहे थे, विभिन्न प्रकार के चर्चाओं में हमने भाग लिया।

रात्रि ढाई बज रहे थे तब मैंने कहा कि अब इस कार्यक्रम को समाप्त किया जाना चाहिए,कुछ की ना नुकुर के बाद कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हुई। मुझे घर पहुँचते और सोते सोते 3.30 बज गये थे। करीब 5 बजे थे कि मेरी आंख खुल चुकी थी। मेरी आदत है कि मै एक बार 5 बजे जरूर उठ जाता हूँ। वैसा मेरे साथ उस दिन भी हुआ, कुल मिलाकर मै दो घंटे भी नही सो पाया था। सुबह पापा जी और दोनो भैया को गांव जाना था, किंतु पिछले दिन भइया रायबरेली गये थे तो उन्होंने जाने में असर्मथता व्यक्त कर दिया। पापा जी ने मुझे कहा मै भी असमर्थ ही था किन्तु जाने के लिए हामी भर दिया। गाड़ी और प्रतापगढ़ में मुझे काफी तेज नींद आ रही थी किन्तु मै सो पाने में सक्षम नही था। गॉंव पहुँचते 4 बज गये, और शाम 6 बजे पापा जी ने कहा कि आज रूका जाये कि चला जाये। मैने इलाहाबाद जाने के पक्ष में राय जाहिर की। क्योकि मै इतना थका हुआ था कि कुछ भी काम करने की स्थिति में नही था।

हम लोग करीब 6.30 गांव से इलाहाबाद की ओर चले और 9 बजे घर पहुँच गये, मेरी थकावट और नींद चरम पर था किन्तु गांव से लौटने के बाद 56 प्रकार की चर्चा शुरू हो गई और सोते सोते बज गए 12 और फिर सुबह 5 बजे जग गया। .........


शेष फिर


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क्योकि भगवान बिजली पैदा नही करते



पिछले दो दिनों से बिजली कटौती चरम पर है, त्यौहार का मौसम होने के बाद भी अनियमित कटौतियों की तो मानो बाढ़ सी आ गई है। कल शाम को करीब 3 घंटे की कटौती हुई और आज भी यह बदस्तूर जारी है। दुर्गा पूजा और नवरात्रि का महत्वपूर्ण पर्व होने के बाद भी इस प्रकार की कटौती निश्चित रूप से आस्था पर कुठाराघात है। 1 और 2 अक्टूबर को ईद पड़ी थी उन दिनों लगातार 48 घंटे विद्युत आपूर्ति की गई किन्तु आज जब हिंदुओं का पर्व आया तो सरकार की बिजली देने में नानी मर रही है, ऐसा क्यों ?

ऐसा तो है नहीं कि ईद और मुहर्रम में खुदा बिजली पैदा करने की इकाई लगा देते है, और जहां दीपावली, होली और दशहरा आता है भगवान जी बिजली पैदा करने की इकाई बंद हो जाती है। सरकार की इस सेक्युलर छवि की हमें चिंता करनी चाहिये। आखिर हिन्दू पर्वों पर ही बिजली क्यों काटती है ?

आज सरकार की यह दोहरी नीति हिन्दुओं को इस देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना रखा है, अमरनाथ में हिंदुओं को अपने विश्राम की भूमि नहीं मिल सकती है, रामसेतु को सिर्फ इसलिये तोड़ने का प्रयास किया गया क्योंकि यह हिंदुओं के आराध्य श्री राम का स्‍मृति चिन्‍ह है। आज हिंदुओं को अपनी अस्तित्व की लड़ाई में चारों तरफ से संघर्ष करना पड़ रहा है।आखिर कब तक यह चलता रहेगा, कब तक हिन्दुओं के की अस्मिता को ललकारा जायेगा ?


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इलाहाबाद जनपद के औद्योगिक विकास की सम्भावनाऍं एवं समस्याऍं : एक आलोचनात्मक अध्ययन



इलाहाबाद जनपद प्राचीनतम भारतीय नगरों में प्रमुख स्थान रखता है। भारत के वे नगर ही ज्यादा उन्नति कर सके है जो किसी न किसी नदी के तट पर बसे है, उनमें से इलाहाबाद भी एक है। इलाहाबाद का अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, इस कारण यहाँ सभ्यताओं का विकास काफी तीव्र हुआ। इलाहाबाद का भौगोलिक राजनीतिक विस्तार उत्तर में प्रतापगढ़ जौनपुर, पूर्व में संत रविदास नगर और मिर्जापुर, पश्चिम में कौशांबी, चित्रकूट तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश की सीमा तक जाता है। इलाहाबाद का क्षेत्रफल 5425 वर्ग किलोमीटर है, तथा इसकी जनसंख्या 4936105 (जनगणना सन् 2001 के अनुसार) है, यह जनसंख्या इस जनपद को उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला जनपद बनाता है। इलाहाबाद जनपद का महत्व यही खत्म नही हो जाता है, इस जनपद ने मदन मोहन मालवीय, राजर्षि टंडन, पंडित नेहरू तथा अनगिनत ऐसे महान-महान विभूतियों से देश को सुशोभित किया है जिन्होंने देश की आजादी तथा देश के सर्वांगीण विकास में अद्वितीय योगदान किया है। प्रदेश के इस जनपद ने कई प्रधानमंत्री तथा अनेकों केन्दीय मंत्री दिये है, जिससे इस जनपद की विशेष स्थित का अपने आप ही पता चलता है।
अपना विशेष स्‍थान होने के कारण इलाहाबाद जनपद मुगलों तथा अग्रेजो के भी आकर्षण का केन्‍द्र रहा है। अंग्रेजों ने इस जनपद की महत्‍ता को जानते हुये ही, इसे संयुक्त आगरा-अवध प्रान्‍त की राजधानी बनाया था। आज भी इस जनपद का महत्व समाप्‍त नही हुआ है। पूर्व का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय, राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय इसी जिले में स्थित है। एशिया का सबसे बड़ा उच्‍च न्‍यायालय, माध्‍यमिक शिक्षा परिषद, महालेखाकार कार्यालय,उत्तर मध्‍य रेलवे का मुख्‍यालय, पुलिस के कई प्रदेश स्‍तरीय उच्‍च अधिकारियों के दफ्तर तथा अन्‍य कई प्रमुख केन्‍द्रीय कार्यालयों के मुख्‍यालय इसी जनपद में स्थित है, जो कि आज भी इसके वर्तमान महत्व को दर्शाता है।
इलाहाबाद औ़द्यौगिक रूप से भी काफी समृद्ध रहा है, लघु उद्योगों का जाल प्रारम्‍भ काल में घरों घरों में फैला हुआ था। अंग्रेजों की दमनकारी औद्योगिक नीतियों ने लद्यु उद्योगों को काद्यी छति पहुँचाई है। इसका यह कारण हुआ कि भारत की आजादी के समय में इस समृद्ध और सम्‍पन्‍न जनपद को कमजोर औद्योगिक आधार विरासत में मिला। आजादी के साथ ही साथ इलाहाबाद में औद्योगिक विकास बहुत सीमित था और कुशल प्रबंधन के अभाव में इसे ठीक से स्थापित करना भी कठिन था। कुशलता के अभाव में जनपद के उद्योग भी रुग्ण अवस्था में रहे और कुछ तो आज बंद होने के कगार पर भी आ चुके है।
जनपद के औद्योगिक सीमाओं का विस्तार भारतगंज, मेजा व मांडा से सीमेंट के पाउडर, ग्रेनाइट पत्थर के लघु उद्योगों से होती है, इसी क्षेत्र में शीशे की विशाल फैक्ट्री भी स्थित है। नैनी का क्षेत्र स्वदेशी कॉटन मिल तथा अन्य कारखानों के कारण औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता है, यही पर आई.टी.आई और जी.ई.सी आदि स्थिति है। शहर में शेरवानी इंडस्ट्री की काफी धाक रही है किन्तु वर्तमान समय में यह बंद हो चुका है, लूकरगंज मोहल्ले में एशिया की सबसे बड़ी आटा और दाल मिले स्थिति थी जो आज बंद हो चुकी है । जनपद की मऊआइमा तहसील में मऊआइमा सहकारी कताई मिल तथा इसी क्षेत्र में पटाखों तथा आतिशबाजी उद्योग की सम्भावना है। इफ्को फूलपुर मे यूरिया खाद का उत्‍पाद किया जा रहा है। यमुना नदी में बालू उत्खनन के क्षेत्र में इस उद्योग के विस्तार की काफी सम्‍भावनाऍं है। इसके साथ ही साथ आज के अत्‍याधुनकि आई.टी युग में सूचना प्रौद्योगिकी तथा साफ्टवेयर निर्माण उद्योग की काफी सम्‍भावनाऍं इस जनपद में है क्‍योकि आज IIIT, मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज, एग्रीकल्चर डीम्‍ड युनीवर्सिटी तथा अन्‍य तकनीकी कालेज इस इस जनपद में स्थित है।
इलाहाबाद जनपद, अन्‍यक्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थित के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी काफी चमत्‍कृत था। किन्तु सही संचालन के अभाव में कई उद्योग आज इतिहास बन गये है। आज ये उद्योग अपने अस्तित्‍व की बनाये रखने के लिये संघर्ष कर रहे है। विकास की इस दौड़ में इलाहाबाद जैसे विशाल जनसंख्‍या वाले जनपद को आज उद्योग की बहुत आवश्यकता है। आज इस जनपद की बढ़ती हुई जनसंख्‍या और बेरोजगारी के स्‍तर को, इन उद्योगों की रक्षा और नये उद्योगों के सृजन के बिना नही सम्‍भाला जा सकता है। आज जरूरत है कि जनपद के आर्थिक आधार स्‍वरूप इन उद्योगों को कुशल प्रबंन्‍धन, राज्‍य व केन्‍द्र सरकार सरकार के सहयोग द्वारा बचाया जाये। उद्योगों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवायी जायें जिससे नये उद्योगों की स्थापना हो सके और इसके औद्योगिक स्वरूप को बनाए रखा जा सके और विकसित किया जा सके।


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भोजशाला का इतिहास और सच्चाई



राजा भोज द्वारा निर्मित म.प्र. के धार जिला में माँ सरस्वती का विशाल मदिर एवं महाविद्यालय था जो भोजशाला के नाम से विख्यात था। जहाँ आज नमाज पढ़ी जाती है। हमारे देश का दुर्भाग्य रहा कि देश के प्राचीन मंदिर एवं महाविद्यालयों को आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त कर उसमें मस्जिद या दरगाह बना दिया गया। कुछ आक्रमणकारी जो बाहर से आये वो मंदिरों को तोड़कर उसमें रखी हुई धन सम्पत्ति को लूटकर चले गए तथा बहुत से सल्तनत और मुगल कालीन शासकों ने देश में मंदिर और महाविद्यालयों को ध्वस्त कर उसमें मस्जिद या दरगाह बना दिया। हिन्दुस्तान में ऐसे मंदिरों की संख्या हजारों में है। जिसमें भोजशाला भी एक है।
परमार वंश का शासक राजा भोज का 1000 से 1055 तक प्रभाव रहा। म.प्र. के धार जिला में राजा भोज का मंदिर है। राजा भोज मां सरस्वती के उपासक थे, फलस्वरूप राजा भोज ने मां सरस्वती का विशाल मंदिर और एक महाविद्यालय की स्थापना की, जो भोजशाला के नाम से विख्यात हुआ। उन दिनों राजा भोज की ख्याति दूर-दूर तक फैली थी, मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र और ओड़ीशा में ज्ञानार्जन करने हेतु आते थे। उनका प्रभाव अधिक था। भोजशाला के महाविद्यालय में देश- विदेश से विद्यार्थी अपनी राजा भोज की कृपा से विद्यार्थी वेद, योग, सांख्य, न्याय, ज्योतिष, धर्म, वस्तुशास्त्र, औषधि विज्ञान, राज व्यवहार शास्त्र सहित कई शास्त्रों का अध्ययन करते थे। हजारों की संख्या में विद्यार्थी यहाँ के विद्धानों, आचार्यों के सानिन्ध्य में आलोकिक ज्ञान प्राप्त करते थे। इन आचार्यों में भवभूति, माघ, वाणभट्ट, कालिदास, मानतुंग, भास्करभट, धनपाल, बौद्ध संत बन्सवाल, समुद्रघोष आदि विश्व विख्यात हैं। कहने का तात्पर्य यह महाविद्यालय बहुत बड़ा शिक्षा का केन्द्र था। जहाँ सभी विषयों का अध्ययन अध्यापन होता था। भोजशाला में माँ सरस्वती की आराधना के साथ-साथ विशाल हवन कुंड में हवन एवं वेद मंत्रों के उच्चारण से भोजशाला गूंजता था। भोजशाला एक खुले प्रांगण में बना है। जिसमें विशाल स्तम्भों की श्रंखला है-जिसके पीछे एक विशाल प्रार्थना घर है। नक्काशीदार स्तम्भ तथा नक्काशीदार छत भोजशाला की पहचान है। राजा भोज सरस्वती के उपासक थे इसलिए उन्होंने वाग्देवी का विशाल मंदिर बनवाया था, जिसमें राजा भोज द्वारा आराधना की जाती थी। 1902 में लार्ड कर्जन के शासन काल में वाग्देवी की प्रतिमा लंदन ले जाया गया। आज भी लंदन के संग्रहालय में वाग्देवी की प्रतिमा मौजूद है।

राजा भोज के शासन के पश्चात् 200 वर्षों तक भोजशाला में अध्ययन- अध्यापन का कार्य भोज के शासनकाल की भांति निरन्तर जारी रहा जैसे राजा में था। हजारों की संख्या में दूर दराज से विद्यार्थी अध्ययन-अध्यापन का कार्य करते थे। 1305 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर आक्रमण कर माँ वाग्देवी की प्रतिमा को खंडित कर दिया। इसके अलावा उसने भोजशाला के कुछ भाग को ध्वस्त कर करीब 1200 आचार्यों एवं विद्यार्थियों की हत्या कर हवन कुंड में डाल दिया। कहा जाय तो भोजशाला का बहुत सा भाग ध्वस्त कर दिया। उस समय वहाँ का शासक मेदनी मौलाना कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह का निर्माण करवाया क्योंकि खिलजी शासकों के समय में मौलाना कमालुद्दीन बहुत प्रसिद्ध था। मौलाना कमालुद्दीन हिन्दुओं का धर्मान्तरण कर इस्लाम कुबुल करवाता था। इस्लाम न कुबुल करने पर हिन्दुओं का कत्ल करवा देता। इसलिए कमालुद्दीन खिलजी शासकों का प्रिय मौलाना था। महमू खिलजी द्वारा कमालुद्दीन का मकबरा और दरगाह बनने के बाद भोजशाला पर मुस्लिमों का अधिकार हो गया। भोजशाला में नमाज अदा होने लगी। माँ सरस्वती की पूजा के लिए हिन्दुओं को बहुत संघर्ष करना पड़ा। अभी भी माँ सरस्वती की पूजा संघर्ष चल है।

1935 में म.प्र. के धार स्टेट का दीवान नाडकार ने भोजशाला को कमाल मौलाना का मस्जिद बताते हुए सिर्फ मुस्लिमों को नमाज अदा करने की अनुमति दे दिया। तथा हिन्दुओं को माँ सरस्वती की आराधना का अधिकार समाप्त कर दिया। 1997 में म.प्र. के कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने तो हिन्दुओं का भोजशाला में प्रवेश ही बंद करवा दिया। उसी वर्ष बहुत संघर्ष के बाद 12 मई 1997 को कलेक्टर द्वारा हिन्दुओं को बसंत पंचमी पर पूजा करने की अनुमति मिली। 2002 में शुक्रवार को बसंत पंचमी और कमाल मौलाना का जन्मदिन एक साथ पड़ा। उस दिन बहुत हंगामा हुआ। सरकारी आज्ञानुसार सुबह से 12 बजे तक सरस्वती पूजा एवं 1 बजे से 3 बजे तक नमाज अदा करने की अनुमति मिली। उस दिन 12 बजते ही पूजा बंद करवा दी गयी, हवन कुंड में पानी डाल कर मंदिर परिसर खाली करा दिया गया। मंदिर परिसर खाली करते समय थोड़ा विलम्ब होने पर पुलिस ने लाठियां बरसाना शुरु कर दिया। पथराव होने लगा। बच्चे महिलाओं सहित 1400 लोग घायल हुए, 2 दर्जन गम्भीर रूप से घायल हुए। सारा फसाद राजनैतिक कुटिलता और तुष्टीकरण की प्रवित्ति के कारण हुआ।

इससे स्पष्ट होता है कि मस्जिद और दरगाह भोजशाला को तोड़कर ही बनाया गया है। राजाभोज के भोजशाला में अगर नमाज अदा की जाती है इसपर तर्क संगत विचार होना चाहिए। सही इतिहास पर चर्चा होना चाहिए। लेकिन आज सम्प्रदाय विशेष की तुष्टीकरण के लिए ही सही इतिहास छुपाने की परम्परा चल गयी है। मंदिर एवं स्थलों पर, जहाँ पूजा और नमाज अदा की जाती है, उसे एकता का मिसाल कह कर सेक्यूलरिस्ट अपना पल्ला झाड़ते हैं। एकता का मिसाल जब माना जाता जब आज नवनिर्मित मस्जिदों में भी एक छोटा से ही पूजा स्थल बना दिया जाता, तब हम गर्व से कहते कि भारत के मंदिरों में मस्जिद होना एकता की मिसाल है।


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सम्पूर्ण शिव तांडव स्त्रोत और इसकी रचना कैसे हुई



 
भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए रचे गए सभी अन्य स्तोत्रों में रावण रचित या रावण द्वारा गाया गया शिव तांडव स्तोत्र भगवान शंकर को सबसे अधिक प्रिय है, ऐसी हिन्दू धर्म की मान्यता है और माना जाता है कि ‘शिव तांडव स्तोत्र’ द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने से व्यक्ति को कभी भी धन-सम्‍पत्ति की कमी नहीं होती, साथ ही व्यक्ति को उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। अर्थात व्यक्ति का चेहरा तेजस्वी बनता है तथा उसके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।
 
इस ‘शिव तांडव स्तोत्र’ का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति को जिस किसी भी सिद्धि की महत्वाकांक्षा होती है, भगवान शिव की कृपा से वह आसानी से पूर्ण हो जाती है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से वाणी सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। यानी व्यक्ति जो भी कहता है, वह वैसा ही घटित होने लगता है। नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधि आदि सिद्धियां भगवान शिव से ही सम्‍बंधित हैं, इसलिए शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने वाले को इन विषयों से सम्‍बंधित सफलता सहज ही प्राप्त होने लगती हैं। इसकी इतनी महिमा है कि शनि को काल माना जाता है जबकि शिव महाकाल हैं, अत: शनि से पीड़ित व्यक्ति को इसके पाठ से बहुत लाभ प्राप्त है। साथ ही जिन लोगों की जन्‍म-कुण्‍डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष होता है, उन लोगों के लिए भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना काफी उपयोगी होता है क्योंकि हिन्दू धर्म में भगवान शिव को ही आयु, मृत्यु और सर्प का स्वामी माना गया है।
 ‘शिव तांडव स्तोत्र’ के पीछे की कहानी यह है कि कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्‍य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए। कुबेर के चले जाने के बाद इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। वह लंका का राजा बन गया और लंका का राज्य प्राप्त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधु जनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए। जब दशानन के इन अत्‍याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा, जिसने कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने उस दूत को बंदी बना लिया व क्रोध के मारे तुरन्त अपनी तलवार से उसकी हत्या कर दी। कुबेर की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक किया। चूंकि दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था, सो एक दिन पुष्‍पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा। लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई। चूंकि पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्चर्य हुआ। तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि- यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ।
 
लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी हो गया था कि वह किसी कि सुनने तक को तैयार नहीं था। उसे उसने कहा कि- कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामों-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है। इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। लेकिन भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई। फलस्वरूप क्रोध और जबरदस्त पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा, जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा। तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्‍त हो सके। दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद में उल्लिखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया। दशानन द्वारा भगवान शिव की स्तुति के लिए किए जो स्‍त्रोत गाया गया था, वह दशानन ने भयंकर दर्द व क्रोध के कारण भीषण चीत्कार से गाया था और इसी भीषण चीत्कार को संस्कृत भाषा में राव: सुशरूण: कहा जाता है। इसलिए जब भगवान शिव, रावण की स्तुति से प्रसन्न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्त किया, तो उसी प्रसन्नता में उन्होंने दशानन का नाम रावण यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा क्योंकि भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्कार करने पर विवश कर दिया था और तभी से दशानन को रावण कहा जाने लगा। शिव की स्तुति के लिए रचा गया वह सामवेद का वह स्त्रोत, जिसे रावण ने गाया था, को आज भी रावण-स्त्रोत व शिव तांडव स्‍त्रोत के नाम से जाना जाता है।
 
 
सम्पूर्ण शिव तांडव स्‍त्रोत
 
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
घन जटा मंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
 
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलास पूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।
 
धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।
 
जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।
 
सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पाद पृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
 
ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजी हम को अक्षय सम्पत्ति दें।
 
कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।
 
नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।
 
प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
 
अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌ ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारने वाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
 
जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
अत्यंत शीघ्र वेग पूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।
कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्‌
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌कदा सुखी भवाम्यहम्‌॥13॥
कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।
 
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेव जी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।
 
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥15॥
प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महा सिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देव कन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगल ध्वनि सब मंत्रों में परम श्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
इस परम उत्तम शिव तांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्त कंठ से पढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु में भक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।
 
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
 
 इति श्री रावणकृतम् शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्‌॥
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रामधारी सिंह ''दिनकर''



छायावादी कवियों में प्रमुख नामों में रामधारी सिंह दिनकर का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। 23 सितम्बर 1908 को बिहार के मुंगेर जिले सिमरिया नामक कस्बे में हुआ था। पटना विश्वविद्यालय से इन्‍होने स्नातक बीए की डिग्री हासिल की और तत्पश्चात वे एक सामान्‍य से विद्यालय में अध्यापक नियुक्त हो गये। रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते है।
दिनकर जी को सरकार के विरोधी रूप के लिये भी जाना जाता है, भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्म विभूषण से अलंकृत किया गया। इनकी गद्य की प्रसिद्ध पुस्तक संस्कृत के चार अध्याय के लिये साहित्य अकादमी तथा उर्वशी के लिये ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया। 24 अप्रैल 1974 को उन्होंने अपने आपको अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा सदा के लिए अमर हो गये।
दिनकर जी विभिन्‍न सकरकारी सेवाओं में होने के बावजूद उनके अंदर उग्र रूप प्रत्‍यक्ष देखा जा सकता था। शायद उस समय की व्‍यवस्‍था के नजदीक होने के कारण भारत की तत्कालीन दर्द को समक्ष रहे थे। तभी वे कहते है –
सदियों की ठंढी-बुझी राख सुगबुगा उठी,
मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है;
दो राह,समय के रथ का घर्घर-नाद सुनो,
सिंहासन खाली करो कि जनता आती है।
26 जनवरी,1950 ई. को लिखी गई ये पंक्तियॉं आजादी के बाद गणतंत्र बनने के दर्द को बताती है कि हम आजाद तो हो गये किन्‍तु व्‍यवस्‍था नही नही बदली। नेहरू की नीतियों के प्रखर विरोधी के रूप में भी इन्‍हे जाना जाता है तथा कर्इ मायनों में इनहोने गांधी जी से भी अपनी असहमति भी जातते दिखे है, परसुराम की प्रतीक्षा इसका प्रत्‍यक्ष उदाहरण है । यही कारण है कि आज देश में दिनकर का नाम एक कवि के रूप में नही बल्कि जनकवि के रूप में जाना जाता है।


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पंगेबाज जी महाशक्ति के शहर में



आज का दिन हमारे लिए काफी अच्छा रहा, हुआ यूँ कि अक्सर क्‍लास के समय मै अपने मोबाइल को या तो नहीं ही ले जाता हूँ या तो स्विच आफ कर देता हूँ, पर ऐसा कल मै नही कर सका। पौने सात बजे के आसपास मेरे पास कॉल आती है, जिसमें बड़े बड़े अक्षरों में पंगेबाज लिखा हुआ था, इस प्रकार की काल अकारण नहीं आती थी। काफी दिनों से नेट पर दूरी के कारण उनसे मेरी बात नहीं हो सकी थी, अचानक फोन आ जाने से खुशी का ठिकाना नही था, मै क्या बोलूं मुझे समझ नही आ रहा था। उन्होंने कहा कि मै कल आपके शहर मे रहूंगा। यह जानकर और भी खुशी हुई। उन्होंने कहा कि मैंने तुम्हें ईमेल किया था किन्तु तुम्‍हारा कोई उत्तर नहीं आया मैंने अपनी समस्या बता कर रात में दोबारा बात करने की अनुमति लेकर मैने वार्ता समाप्त किया।

रात्रि 9.30 बजे मैने बात किया और यात्रा का सम्पूर्ण विवरण लिया, पता लगा कि प्रातः 7.00 से 10.00 तक उनका कोई अपना कार्यक्रम नही था तो मैने उस समय को अपने लिये देने का अनुरोध किया, जैसा कि उन्होंने बात की दौरान यह बताया था कि शायद पूरे दिन उनके पास समय नहीं रहेगा। उन्‍होने मेरे अनुरोध को सहर्ष स्‍वीकार कर लिया। उनके इतनी बात के बाद मुझे रात्रि में ठीक से नीद नही आयी और सोने में करीब 11.30 बज गये किन्‍तु रोज की बात प्रात: 4.30 पर जगना हो गया। प्रात: काल सबसे पहले उठ कर ईमेल चेक करने बैठ गया शायद कोई अपडेट हो किन्‍तु ऐसा नही था, फिर मैने अपने विश्वविद्यालय की साईट देखी तो खुशी का ठिकाना न रहा, क्‍योकि मै परास्‍नतक की परीक्षा उत्तीर्ण कर चुका था, इसे सज्जन के चरणो का इलाहाबाद में आने का प्रभाव कहा जा सकता था। 10 मिनट की देरी के साथ प्रयागराज राईट टाईम थी, और मै स्‍टेशन पर 6.45 पर पहुँच चुका था, सवा सात बजे तक हम लोग घर पहुँच चुके थे, थोडा चाय पानी के पश्चात मैने स्‍नान की बात कही, तो अरूण जी और उनके मित्र ने हामी भरी, स्‍नान के प्रति उत्‍साह को देखते हुये मैने स्‍नान के आगे गंगा शब्‍द और जोड़ दिया तो अरूण जी के मित्र का उत्‍साह देखते ही बन रहा था, इसी के साथ गंगा स्‍नान का कार्यक्रम थी बन गया।

8.30 बजे तक हम संगम पहुँच चुके थे, और 9.30 बजे तक स्‍नान हो गया, नाव के द्वारा गंगाजी और यमुना जी के धाराओ को एक होते देखा जो एक अद्भुत दृश्‍य था। 10.10 तक हम लोग घर पर आ गये, और ड्राइवर पापाजी को उच्च न्यायालय छोड़ कर आ चुका था, मैने कहा कि आपको आपके गंतव्य तक छोड़ आएगा, जब पुन: कहेंगे तो तो वह आप को ले भी आयेगा किंतु भोजन के बाद अरुण जी ने हमें अपने साथ हमें चलने को कहा तो मुझे काफी अच्छा लगा किन्तु मै और भैया उस समय तक भोजन नहीं किए थे, जल्‍दी जल्‍दी में भोजन किया और सामान्य घरेलू वेश मै और मेरे भइया, अरुण जी और उनके मित्र करीब 11 बजे चल दिये।

गन्तव्य पर पहुँच कर इतनी बड़ी बड़ी मशीनों को नजदीक से देखने का अच्छा अनुभव था, उक्त स्थान का निरीक्षण करते करते हमें 4.30 बज गये थे जबकि श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी ने मिलने का सर्वोत्तम समय 3 से 5 बजे के मध्य था तो अचानक ही उनसे मिलने का कार्यक्रम बनाना पड़ा, समय और परिस्थिति के अनुसार हम जैसे थे वैसे ही वहां पहुँच गये। श्रीज्ञान जी के साथ मेरी दूसरी भेंट थी, उन्‍होने बड़ी गर्म जोशी के साथ हमारा स्वागत किया। श्रीज्ञान जी ने पूर्व ही तैयारी कर रखी थी, उनकी पत्नी जी ने श्री अरूण जी के स्‍वागत के लिये सेवई और ढोकला भेजा था, इससे तो हम जान ही सकते है श्रीमती जी भी प्रत्‍यक्ष और परोक्ष चिट्ठाकारी और चिट्ठाकारों में रूचि रखती है। निश्चित रूप से पाडेय जी से मिलना एक अच्‍छा अनुभव रहा। जिस समय हमने श्री ज्ञानजी से अनुमति ली, घड़ी 5.25 बजा रही थी, अर्थात उन्‍होने अपने बेस्‍ट समय से अतिरिक्‍त समय दिया, क्‍योकि 5.30 बजे पर उनकी नियमित मिटिग होती है। प्रणाम, हस्‍तमिलन व अलिंगन के साथ हमने पाड़ेय जी की चम्‍बल विहार से विदा लिये, तथा श्री अरूण जी ने श्री पाड़ेय जी को दिल्‍ली यात्रा के दौरान अपने यहॉं आने का निमंत्रण भी दिया।

जिस काम के लिये हम सुबह से निकल थे, उसे सम्‍पन करने के बाद हम घर की ओर प्रस्‍थान कर दिये, और इधर-उघर की करना प्रारम्‍भ कर दिया। करीब 6.50 पर हम घर पर थे, सर्वप्रथम मैने चाय के लिये पूछा अरूण जी ने मना कर दिया, किन्‍तु उनके मित्र ने पीने की इच्‍छा जाहिर की, फिर मैने अरूण जी की इच्‍छा की टोह ली तो उन्‍होने कम दूध की चाय की इच्‍छा जाहिर की। मैने डरते हुये ब्‍लैक टी के बारे में पूछा तो उन्होने कहा कि इससे अच्‍छा हो ही क्या सकता है।

वहां से लौटने के बाद से ही, अरुण जी मेरे घर से जल्दी प्रस्‍थान की इच्छा जाहिर कर रहे थे, जबकि मै उन्हे रात्रि 9 बजे भोजन के उपरान्‍त जाने को कह रहा था किन्तु उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए, प्रस्थान करने की बात मुझसे मनवा ही ली। 7.15 मिनट के आस-पास हमने घर छोड़ दिया, घर छोड़ने से पूर्व अरुण जी मेरे पिताजी से मिले और दिल्ली आने पर मिलने निमंत्रण दिया। हमारे चलने के बाद अरुण जी ने स्टेशन पर ही रुकने और कुछ देर घूमने की बात कही। इस पर मैंने कहा कि स्टेशन पर आपको घूमने के लिये कुछ नही मिलेगा सिवाय गंदगी के,और आप चाहे तो सिविल लाइंस छोड़ देता हूँ आप अपने आगे के 2 घंटे काफी अच्छी तरीके से घूम सकते है। उन्हें भी यह बात जच गई और मैंने उन्हें काफी हाऊस पर छोड़ कर प्रयाग में अंतिम प्रणाम लेकर अपने गंतव्य पर चल पड़ा।

सिविल लाइन्‍स में उन्हें छोड़ने के बाद, मेरा भी वहां से जाने का मन नही कर रहा था, इसे पिछले 12 घंटे के साथ-साथ रहने का प्रतिफल ही कहा जा सकता है। अत्‍मीयता अपने आप ही हो जाती है। काफी अधूरे मन से मै वहॉ से चल दिया। रात्रि करीब 9.25 पर मैंने अरुण जी के पास फोन किया, कि आप स्टेशन पहुँच गये है कि नहीं ? उन्होंने बताया कि मै स्टेशन पहुँच गया हूँ और इस समय ट्रेन में विश्राम कर रहा हूँ। कुशलता के साथ स्टेशन पहुँचने की खबर पाकर मन अति प्रसन्न हुआ। रात्रि बीत गई पता ही नहीं चला, सुबह करीब 6.45 पर मैंने हाल लेने की सोची किन्तु किसी कारणवश नहीं कर सका, करीब 9 बजे अरुण जी ने मुझे फोन कर बताया कि मै दिल्‍ली पहुँच गया हूँ।

इस दौरान जिन चिट्ठाकारों की चर्चा हुई उनके नाम निम्न है - श्री अनूप शुक्ल जी, श्री समीर लाल जी, श्री अफलातून जी, श्री ज्ञान दत्त पांडेय जी, श्री संतोष कुमार पांडेय जी, श्री अभय जी, श्री रामचन्‍द्र शुक्‍ल जी, श्री उन्मुक्त जी तथा बहुत से अन्य ब्लॉग तथा सम्मानित ब्लॉगरों के बारे में चर्चा हुई। अरुण जी की इस यात्रा के सम्बन्ध में काफी कुछ और भी लिखा जा सकता है, जल्द ही फिर लिखूँगा।


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हमारे नेट कनेक्शन पर शनि की छाया



हमारे इंटरनेट कनेक्शन पर लगता है कि शनि महाराज की छाया पड़ गई है। पिछली पोस्ट में मैंने करीब 100 मीटर तार चोरी किये जाने की घटना का उल्लेख किया था। काफी जद्दोजहद के बाद लूकरगंज एक्सचेंज के एस.डी.ओ. ने उसे करीब हफ्ते में लगवाया, इसके लिए भी काफी दबाव डालना पड़ा। चूंकि उनका कहना था कि लाइन को अब मै नीचे जमीन से ले जाऊँगा, इसलिये मै ठेकेदार का इंतजार कर रहा हूं जिसे खुदाई करना है। मैंने उनसे जोर देकर कहा कि महोदय करीब 7 दिन बीतने को है, किंतु हमारी समस्या का समाधान नहीं हो रहा है। अब आपका ठेकेदार महीने भर न मिले तो हम बिल भरने को क्यों तैयार रहे। प्रतिदिन के हिसाब से 33 रुपये मै इंटरनेट का देता हूँ, आज सात दिन का करीब 230 रुपये के आसपास बिल होता है। उपभोक्ता यदि एक दिन भी बिल जमा करने के देरी कर दे तो तुरंत अधिभार ठोक दिया जाता है किन्तु यहाँ हमारे 230 रुपये की कोई कीमत नहीं है ? यह कहने पर उन्होने अगले दिन पुन: तार लगवा दिया।

अभी इंटरनेट को चले 4 दिन भी नहीं हुए थे कि चोरों की कृपा हमारे तार पर फिर हो गई, इस बार हमारी लाइन ही नहीं करीब 1500 फोन लाइन पर व्यापक दृष्टिपात किया गया। इस बार टेलीफोन बाक्स के नीचे आग लगाकर कॉपर के तार को चोरी करने का प्रयास किया गया। चोर तो कामयाब न हुये किन्तु 1500 फोन का बंटाधार हो ही गया। मैंने स्वयं उस बक्से को देखा तो करीब जिसमें 5 किलो कॉपर के तार निकल सकते थे। जो कुछ भी हो 5 किलो तारे के लिये लगभग 1500 लोगों को लाखों रुपये नुकसान सहना पड़ रहा है। कल पुन: एस.डी. ओ से मिला तो उन्होंने इसे ठीक करने में दो हफ्तें का समय लगेगा यह जानकारी दी। जैसा भी हो आज देश में बेकारी इतनी हो गई है कि लोगों के पास छोटी-छोटी घटनाएं करना कोई बड़ी बात नही रह गई है। किन्तु यह छोटी छोटी घटनाएं किसी किसी पर बहुत भारी पड़ जाती है। जैसे हम पर ही, इस समय मोबाइल से नेट का उपयोग किया जा रहा है न स्पीड है न संतोष किन्तु जो पैसे लग रहे है अलग।


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गूगल एडसेंस - दो साल में अर्श से फर्श तक



हमने पहली बार अक्टूबर 2006 में एडसेंस लगाया था, जिसका पहला 169 डॉलर का भुगतान अप्रैल 2008 में निर्गत हुआ था, किन्तु हमें वो आज तक मिला ही नहीं। :( कमाई का सिलसिला यू ही जारी रहा और मई में फिर 103 डॉलर का भुगतान जारी हुआ, किन्तु यहाँ भी हमारा दुर्भाग्य हम पर हावी रहा और इसका भी पेमेंट हमें आज तक नहीं मिला। गूगल एडसेंस और हमारा दुर्भाग्य, दोनों मिल कर हम पर हावी है। पहले तो हमारा पिन ही नहीं आ रहा था, तीन रिक्वेस्ट किया तब जाकर पिन ने हमारे दरवाजे पर दस्तक दी। अब तो रही सही कसर गूगल वालों ने पूरी कर दिया और हमारे (लगभग सभी हिन्दी ब्लागों से) ब्लॉग से विज्ञापन ही गायब कर दिया।
हमारे दो भुगतानों को न मिलने से हमें बहुत निराशा हुई, क्योंकि यह अब पांच अंकों में कमाई का का मामला हो चुका था। मई जून मिला कर पुन: हमने 183 डालर अर्जित कर लिया था, पिछले भुगतान हमें न प्राप्त होने पर हमने गूगल से सम्पर्क किया और अपने पुराने भुगतानों को न प्राप्त होने की बात कहीं, और पिछले भुगतान को कैंसिल कर नये भुगतान में जोड़ कर कोरियर सर्विस द्वारा भेजने को कहा, और हमें सकारात्मक उत्तर मिला। और उन्‍होने जून तक का भुगतान 455 डालर में से कोरियर का 25 डालर काट कर 430 डालर हमें 27 अगस्त को भेज दिया है। अभी तक मुझे यह राशि भी प्राप्त नही हुई है, चूकिं 25 डालर देने के बाद आशा करता हूँ कि यह मुझे मिल जायेगे।
इस समय सबसे बड़ी समस्या यह आ गई है कि जून तक का भुगतान लेने के बाद जुलाई के मध्य से विज्ञापन दिखना बंद हो गया, जब तक एडसेंस चल रहा था मैने 48 डालर अर्जित कर चुकें थे, 15 जुलाई से लेकर आज तक 48 से 53 डालर ही हो सका है, और सही गति रही हो 100 डालर की सीमा में पहूँचने में करीब एक-ढ़ेड़ साल लग जायेगे। मुझे दुख हो रहा है कि मैने अपने पैसे मगवाने में जल्दी कर दिया, काश एक माह रूक गया होता तो मेरा 53 डालर भी क्लीयर हो गया होते। वाह री किसमत, इसे ही कहेगे कि 3 महीने में मात्र 5 डाल ही मिले, जबकि हमने दो सालों में करीब आधा दर्जन बार हमने एक दिन में 5 डालर तक प्राप्त किये थे।
जो होता है अच्छा ही होता है, यही मान के चल रहा हूँ, कि बिज्ञापन फिर से शुरू होगे और 100 डालर तक जल्दी पहुँचेगा। अभी तो मेरी गूगल के फोकट के विज्ञापन दिखाने के कोई इच्छा नहीं है, वैसे भी जब गूगल ने हमारा ध्यान नहीं रखा तो हम क्यों उसके फोकट के विज्ञापन दिखाएं। जब तक विज्ञापन नही दिखते है, तब तक के लिये मै गूगल एडसेंस को अलविदा कर रहा हूँ। चूंकि इसका कारण भी है कि जहाँ ऐड लगा होता है वहाँ ऐड की अनुपलब्धता के कारण रिक्तता आ जाती है, जिससे ब्‍लाग की शोभा ही बिगड़ती है।
गूगल के विज्ञापन हटने के बाद थोड़ा लेखन से भी रुझान कम हुआ, किन्तु जब मै आया था तो पैसे की सोच कर लिखने नही आया था। लिखना मेरी रूचि और स्वभाव था। मुझे उसे नही बदलना चाहिये। पैसे तो हम कमाते रहेंगे, क्योंकि कमाने के लिये तो पूरी ज़िन्दगी ही पड़ी है। मेरी पूरी कोशिश रहेगी कि मेरी लेखन में निरंतरता बनी रहे। मेरे कुछ नियमित पाठक मुझसे लगातार मुझे मेल करके राष्ट्रवादी विचारधारा के लेखकों को मांग करते है। मै अपने पाठको को नाराज नही करना चाहूंगा, जिस चीज के लिये महाशक्ति जानी जाती थी, आने वाले कुछ दिनों में आपको महाशक्ति उसी रूप में मिलेगी।
खैर अब तक तो मै अपने दो सालो की ब्‍लाग अर्निंग 430 डालर (18770 रूपये) की आशा कर ही सकता हूँ जो मुझे एक हफ्ते में मिल ही सकते है, इलाहाबादी बन्धु पार्टी के लिये तैयार रहे।


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क्यों परेशां हो बदलने को धर्म दूसरों का?



पोप ने उड़ीसा में हुई हिंसा पर दुख प्रकट किया और निंदा की. लेकिन यह दुख और निंदा दोनों अपने ईसाई भाई-बहनों के लिए थी. हिंदू भाई-बहनों के लिए न उनके पास दिल है और न समय. जो ईसाई इस हिंसा में मरे उनके लिए पोप ने आंसू बहाए, पर स्वामीजी और उनके चार चेलों के लिए न उनके पास आंसू हैं और न कोई सहानुभूति का शब्द.
शुरुआत किसने की? स्वामीजी और उनके चार चेलों को क्यों मारा गया? क्या यह धर्म के नाम पर हिंसा नहीं है? इन लोगों को मार कर ईसाई क्या सोच रहे थे कि हिंदुओं को दुख नहीं होगा? क्या वह चुपचाप कभी मुस्लिम आतंकवादियों और कभी ईसाईयों द्वारा मारे जाते रहेंगे और कुछ नहीं कहेंगे? क्या हिन्दुओं को तकलीफ नहीं होती? क्या जब उनकी दुर्गा माता की नंगी तस्वीर बनाई जाती है तो उनका दिल नहीं दुखता? इन सवालों का जवाब क्या है और कौन यह जवाब देगा?
अब भी कभी किसी मुसलमान या ईसाई के साथ अन्याय होता है, सारे मुसलमान, सारे ईसाई और बहुत सारे हिंदू खूब चिल्लाते हैं. हिंदुओं को गालियां देते हैं. उनके संगठनों पर पाबंदी लगाने की बात करते हैं. भारतीय प्रजातंत्र तक को गालियां दी जाने लगती हैं. पर जब हिन्दुओं के साथ अन्याय होता है तो यह सब चुप रहते हैं. कश्मीर से पंडित बाहर निकाल दिए गए, कौन बोला इन में से? जम्मू में आतंकवादियों ने कई हिन्दुओं को मार डाला, कौन बोला इन में से? मुझे लगता है कि मुसलमान और ईसाईयों से ऐसी उम्मीद करना सही नहीं है कि वह कभी किसी हिंदू पर अन्याय होने पर दुःख प्रकट करेंगे. शायद उनके धर्म में ही यह नहीं है. पर हिंदू तो हिन्दुओं को गाली देना बंद करें. जब हिंदू हिंदू को गाली देता है तो मुसलमान और ईसाइयों का हौसला बढ़ता है. मुझे यकीन है कि अगर हिंदू हिंदू को गाली देना बंद कर दे तो भारत में धर्म के नाम पर दंगे कम हो जायेंगे. हिन्दुओं का एक होना जरूरी है, मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ नहीं, बल्कि मुसलमानों और ईसाईयों को यह बताने के लिए कि भारत में हिंदुओं के साथ मिलजुल कर रहो. इसी में सबकी भलाई है.

न हिंदू बुरा है,
न मुसलमान बुरा है,
करता है जो नफरत,
वो इंसान बुरा है.
और अब एक निवेदन पोप से:
क्यों परेशान हो?
बदलने को धर्म दूसरों का,
खुदा का कोई धर्म नहीं होता.


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मेरा नेट कई दिनों से ख़राब है ppp



मेरा नेट कई दिनों से ख़राब है, काफी दिनों से ठीक करवाने के लिए दौड़ रहा हूँ पर अभी तक ठीक नही हुआ! पता चला की तर चोरी हो गया है! जल्द ही मिलते है! वैसे मई नेट का उपयोग करने के लिए कैफे में नही जाता हूँ किंतु आज जरूरी काम था सो आना पड़ा, मुझे नही लगता है की आने वंले दिनों में ठीक हो पायेगा, तब तक मई बीएसएनएल को ३५ रु के हिसाब से रोज भुगतान करता ही रहूँगा। :) देखिये आपसे कब मुआकत होती है। आज देखा ते पाया की काफी कमेन्ट मोड्रेसशन में थी!
 
भगवान तार चोरो और बीएसएनएल के अधिकारियो का भला का बाला करे!


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पंगेबाज की कंडोलेंस डायरी - पेज नं 302



दीप जो जलता रहा

मुझे पंगेबाज की अंत्येष्टि कार्यक्रम में डोम कार्य का दायित्व माननीय सुरेश जी के सानिध्य में सौंपा गया था, उस कड़ी में जारी है पंगेबाज की कंडोलेंस डायरी का पेज नं 302

पंगेबाज बहुत अच्छे आदमी थे, मुझे तो उनके लेखों में आत्मीयता झलकती थी। उनके सारे लेखों पर मैने ''अच्छा, बहुत अच्छा और सार‍गर्भित की ही टिप्पणी की।अत्यंत दुख के साथ कहना पड़ना रहा है कि पंगेबाज के जाने से मेरे लिये टिप्पणी करने का एक ब्लाग कम हो गया। अब वो स्‍थान कैसे भरेगा ? पंगेबाज भगवान तुम्हारी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।

आपको सदा याद करने वाला
तुम्हारा
समीर

''सही है'' जिसे आना है जायेगा, जिसे आना होगा आयेगा। हिन्दी ब्‍लागिंग में पंगेबाज बहुत महत्वपूर्ण स्‍थान रखते थे। ये बात भी सत्य है कि पंगेबाज के जाने के बाद पंगेबाजी खत्म होने वाली है। तुम्हारी रंगों में बह रहा खून, एक ब्‍लागर का खूर था, और पंगेबाजी तो हर ब्‍लागर के नस नस में रची बसी है। मुझे दुख है कि मेरे ब्‍लाग की एक टिप्‍पणी कम हो गई, मै अपने ब्लाग पर आये इस एक टिप्पणी के शुन्‍य को खोज रहा हूँ। ईश्वर से प्रार्थना है कि उनके एकाध प्रतिस्पर्धी को भी अपने पास बुला ले ताकि पंगेबाज की आत्मा पंगेबाजी के लिये उद्वलित करे, तो स्वर्ग में सुविधा उपलब्ध हो जाये, उनकी आत्मा को धरती की ओर रूख न करना पडे़।

तुम्हारा
फुरसतिया

उड़ी बाबा, पोगेबाज चोला गया! , कोय को गया ? , ओब मी केसे लोड़ाई कोरबो ? ओब मेरी सोंड वाली फोस्टिंग के कोरेगा ? मेरे लिखे पर के खुरपैच निकोलेगा ? अब मेरे स्वादिष्ट पुस्तचिन्ह को कौन खोयेगा ? उड़ी भोगवान हम ओब क्‍या कोरेगा ? किसके ब्‍लोग पर एनिनोमिस टिप्‍पोनी कोरेबे ? हे भोगवान, तेरे ओगे किसी की नही चोलने का, जो हुआ ठीक हुआ, प्लीज गोड जी एक कोम कोरने का, एक नेट कोनेक्सन लोगवा लो, हम पंगेबोज से स्‍वर्ग से ही पोंगा कोरेगा।

तुम्‍हारा
(पोगेबाज होमको जोनता है, हम ओपना नाम नही लिखेगा।)

बड़ा अच्छा आदमिवा रहा ई पंगेबजवा। हम राजनेतवन का ई शब्दवा तो हम मरै वाले आदमी के बदै कहै कर पड़ता है, तबै तो हमरे पेशे का नेतागीरी कहा जात है। देखा हरकिशन के मरै पर हर नेता पहुँचा रहै कंडोलेंस करै, कि ई बहुत बड़ा और अच्छा नेतावा रहै।
अब पंगेबाजवा के मरै पर तो हमरै फर्ज रहै कि ई काम हमहु काम करी, कहै कि हर आदमी का अपने भविष्‍य के चिन्ता होत है। हे ईश्वरवा एक ठो ई आत्मा जात अहै एका शान्ति दिहो, काहे कि अब एकरे पहुँचे के बाद तोहका शान्ति न मिली।

तोहार परम मित्तर,
अफलातून

आप भी पंगेबाज को अपनी शोक संवेदना देना चाहते है तो [email protected] पर अपना संदेश और नाम ईमेल करें। आज हम बहुत दुखी है इसलिये स्माईली नहीं लगा रहे है।






द्वारा
प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
क्रिया कर्म विशेषज्ञ पगेबाज,
क्रमश: जारी ...........


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जिम में हम



सोमवार को जिम जाना शुरू किया, महादेव जी का व्रत भी था। शाम को जिम से लौटा काफी अच्छा महसूस कर रहा था। जिम में व्यायाम का काफी अच्छा अनुभव रहा किन्तु सुबह उठते ही जिम की तरावट, थकावट में बदल चुकी थी। पूरी शरीर में दर्द हो रहा था। उठे उठा नही और बैठे बैठा नही जा रहा था।

सुबह ही सुबह बुखार भी हो गया था, करीब 102 फारेनहाइट बता रहा था। अब तो जिम की हवा ही निकल चुकी थी। चूंकि हमारे जिम में जाने की खबर घर में किसी को नही थी, और यही कारण था कि सभी लोग आम बुखार समझ रहे थे। हम जान रहे थे कि हमारी क्या स्थिति उस समय रही होगी ? पर हम क्या कर ही सकते थे।

पुन: शाम होती है और जिम जाने का समय हो जाता है, हम अभी तक जो बेड पर आराम फरमा रहे थे, पूर्ण रूपेण जिम फार्म में आ चुके थे। आज जिम जाने का मन तो नहीं कर रहा था किन्तु हम कर ही क्या सकते थे। सभी दोस्तों ने कहा कि आज नहीं जाओगे तो और दर्द करेगा। हम भी मान गये किन्तु हमारा मन कह रहा था कि अगर आज मै नही जाऊँगा तो काफी हद तक तबीयत ठीक हो जायेगी। पर दोस्‍तो की ही बात मान गया।

शाम को लौटने पर हालत और गंभीर हो चुकी थी, अब अगले दिन जाने की इच्छा नही कर रही थी, और गया भी नही। मुझे लग रहा था कि आज न गया तो मै ठीक हो जाऊँगा। यही बात साथियों को बताया किंतु नहीं माने पर मेरी बात के आगे उन्हें मानना ही पड़ा। एक दिन आराम किया काफी अच्छा महसूस होने लगा। फिर अगले दिन से सब कुछ नॉर्मल हो गया। और तो रोज जाते है। :)


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प्रयाग की एक और ब्‍लागर मीट



कल अचानक एक फोन आया, कि प्रमेन्द्र जी (अपना नाम लेकर) कहा कि मै बोल रहा हूँ। प्रारम्भ में मैंने तो स्पष्ट रूप से पहचानने से इंकार कर दिया। किन्तु जब आवाज आई कि महाशक्ति जी मै बोल रहा हूँ तो दिमाग के सारे तार आपने आप खुल गये तो पता चला कि मेरा चुंतन ब्लॉग के श्री संतोष कुमार पांडेय जी बोल रहे है। उन्होंने कहा यदि आप चाहे तो ब्लॉगर मीट हो सकती है, अभी आपके मोहल्ले में ही विचरण कर रहा हूँ, हमने भी मिलने के लिये हाँ कर दिया। चूकिं वह लूकरगंज में अपने चार पहिये गाड़ी की सर्विसिंग कराने आये थे, गाड़ी सर्विस के लिये देने के पश्चात मुझे खुद उन्‍हे लेने जाना हुआ। घर ही हमारे भइया महाशक्ति समूह के श्री मानवेन्‍द्र प्रताप सिंह भी उपलब्ध थे, जो इस मिलना को द्विआयामी से त्रिआयामी बनाने के लिए उपलब्‍ध थे।
घर आकर हम लोगों ने काफी बात की, ब्‍लाग की वर्तमान दशा और दिशा पर भी हम लोगों ने चर्चा किया। उनका काफी दिनों से लेखन बंद है और मै भी काफी दिनों से कम लिख रहा था। इधर मैने उन्‍हे कुछ न कुछ लिखने के लिये कहा कि समय मिले तो जरूर लिखे और उन्‍होने जल्‍द ही सक्रिय होने की बात कहीं। उन्‍होने मेरी सक्रियता की कमी पर प्रश्‍न उठाया कि महाशक्ति की शान्ति का माहौल मजा नही दे रही है। :)
मैने स्‍पष्‍ट किया कि इधर अपनी प‍रीक्षाओं के कारण दूरी बनी रही, फिर सिर्फ लिखने के लिये लिखने की इच्‍छा नही करती है, का कारण बताया। सही बात भी है मैने इन दिनों अधिकत ब्‍लाग सिर्फ लिखने के लिये बिना उद्देश्‍य लिखा जा रहा है। इन दिनों इस तरह के लेखन से मेरा मन तो उब गया है। अन्‍त में फिर जल्‍दी मिलने के वायदे के साथ हमारी लघु चिट्ठाकार वार्ता सम्‍पन्‍न हो गई।

चित्र के लिये प्रतीक्षा करें। -


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आज का दिन जरा हट के



आज बहुत दिनों बाद सीधे ब्लॉगर अकाउंट पर कुछ लिख रहा हूँ, क्योंकि अभी तक मै लेख आदि पोस्‍ट करने के लिये विन्‍डोज लाइव राइटर का उपयोग करता था। सीधे लिखने का अपना ही मजा होता है, और मजे के साथ लिखने का अपना विशेष मजा होता है। :)

काफी दिनों से ब्लॉग की नजदीकियों से दूर था अपनी समस्याओं और समस्‍या के समाधान के निस्तारण के कारणों से, आज सूर्य ग्रहण भी दिखा, हमने आज वर्षा जी की महाशक्ति समूह पर आई पोस्‍ट के कारण हमने पूरे परिवार के साथ सूर्यग्रहण देखा, गोल्डन रिंग का विहंगम दृश्य का भी अवलोकन किया। चूँकि सूर्यग्रहण को धर्म से जोड़ कर देखा जाता है तो इस बीच में भक्ति भावना को भी कायम रखने का प्रयास किया गया। आज काफी दिनों बाद परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठे और राम चरित मानस के सस्वर पाठ का आनंद लिया।

सूर्य ग्रहण समाप्त हो गया है, अब नहाने जा रहा हूँ जल्द ही मिलूँगा, एक नई बात लेकर।


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अंतककियों का अगला निशाना भोपाल/शिमला तो नही



जयपुर, बेंगलुरु और उसके बाद अहमदाबाद, जिस प्रकार भाजपा शासित राज्यों पर लगातार हमले हो रहे है, इससे यह जान पड़ता है कि आतंकियों का अगला निशाना अब भोपाल या शिमला हो सकता है। आतंकवाद भाजपा या कांग्रेस नही देखता है किन्तु जो परिदृश्य दिख रहा है कि यह सुनियोजित तरीके से देश के ही तत्व यह कुकृत्‍य कर रहे है।

देश के भीतर पल रहे विषबीजों का काम है जो आने वाले चुनावों में भाजपा के शासन को कलंकित दिखाना चाहते है। जिस प्रकार की हरकत केन्द्र सरकार ने संसद में कि उससे तो यही लगता है कि सरकार सत्ता के लिये कुछ भी कर सकती है, अगर बम विस्फोट भी होते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि खुफिया तंत्र की विफलता के पीछे सरकार का ही हाथ होता है। राजनीति का स्तर सत्ता की भूख के लिये इतना गिरना नहीं चाहिये।

भगवान दोनों जगह हुए विस्फोट में शहीद हुए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें।


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अन्तिम संस्‍कार Antim Sanskar



अन्तिम संस्‍कार
भारतीय संस्‍कृति में सस्‍कारों की प्रधानता है। संस्‍कारों में अन्तिम संस्‍कार अन्‍तेष्टि संस्‍कार को कहा जाता है जिसे अन्तिम संस्‍कार भी कहा जाता है। अन्‍त्‍येष्टि संस्‍कार को हम परिभाषित करने के लिये अन्तिम इष्टि या कर्म भी कह सकते है। यह मनुष्‍य के जीवन का सबसे अन्तिम कर्म होता है इसके पश्‍चात कोई अन्‍य कर्म या कार्य मनुष्‍य के लिये शेष नही होता है। अन्तिम संस्‍कार का उद्देश्‍य शरीर की भौतिक सत्‍ता को परमात्‍मा में विलीन करने की होती है। हिन्‍दु धर्म में मनुष्‍य की यह अन्तिम क्रिया शरीर को जलाने से शुरू होती है। इस बात की पुष्टि करते हुये यजुर्वेद कहता है- मास्‍मातं शरीरम्।

वैदिक धर्म में मनुष्‍य की आयु 100 वर्ष निधारित की गई है- जीवेम शरद: शतम्। इस धर्म में पुर्नजन्‍म की धारणा मिलती है जिसके कारण हम यह देखते है कि मनुष्‍य अपने जीवन काल में सभी अच्‍छे कामों को करना चाहता है ताकि उसे अगले जन्‍म उच्‍च कोटि का का जन्‍म मिले अथवा परमात्‍मा उसें अपने में अंगीकृत कर ले। विद्वान बौधायन कहते है कि मनुष्‍य जन्‍म और मृत्‍यु के पश्चात हये समस्‍त संस्‍कारों से परलोक को जीतता है।

आत्‍मा अजर और अमर होती है। श्रीमद् भगवतगीता कहती है कि -

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
व्‍यक्ति अपने पुराने कपड़े त्‍याग कर नये कपड़े धारण करता है उसी प्रकार आत्‍मा भी अपने कर्मो के आधार पर अपने पुराने शरीर को त्‍यागकर नये शरीर(योनि) को धारण करता है। यह तभी सम्‍भव होता है कि जब मनुष्‍य के शरीर का उचित कियाओं द्वारा आत्‍मा की शान्ति के लिये संस्‍कार क्रिया प्रतिपादित किये जाते है। आत्‍मा का शरीर त्‍याग के बाद शवदाह, शवयात्रा, अस्थिचयन, प्रवाह, पिण्‍डदान श्राद्ध, बह्मभोज आदि शरीरान्‍त के पश्चात ऐसे किये जाने वाले अनिवार्य कर्म है, जिनकी पूर्ति के बिना आत्‍मा की शान्ति सम्‍भव नही है। इन सभी कर्मो को विधि विधान से किये जाने पर आत्‍मा प्रेतयोनि में नही भटकती है।

शरीर की इस अंतिम क्रिया के लिये मत्स्य पुराण में शव को जलाने, गाड़ने तथा प्रवाह देने की बात कहीं गई है- य: संस्थित: पुरूषो दह्यते वा निखन्‍यते वा‍Sपि निकृष्‍यते वा। सम्‍पूर्ण विश्‍व में शव को गाड़ने की प्रथा दिखती है किन्तु आज चीन समेत कई देश हिन्दू संस्कृति के दाह प्रथा को मान्यता दे रहे है। क्योंकि यह शरीर की अंतिम क्रिया का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चीन सरकार ने 14 मार्च 1985 के आदेश में कुछ जाति के लोगें को छोड़कर शेष धर्म जाति के लोगों में शव के गाड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है तथा पुरानी कब्र को पुनः जोतने का आदेश दे दिया है।

हिन्दू पद्धति में मृत्यु के बाद संस्कारों के आयोजन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में सम्बन्धियों के मध्य प्रेम के कारण ही वह मृतक के वियोग को सहन नहीं कर सकता है किन्तु मृत्यु के पश्चात होने वाले कर्मकाण्डों के फल स्वरूप वह मृत आत्मा की शान्ति के लिये लग जाता है इस व्यस्तता के कारण वह इस दुखद वेला को भूल जाता है। अन्‍त्‍येष्टि संस्‍कार में यह शोकापनयन की सर्वश्रेष्‍ठ मनोवैज्ञानकि औ व्‍यवहारिक प्रक्रिया है।
अपनी प्रतिक्रिया अवश्‍य दे ताकि संस्‍कारों की अगली श्रृंखला में सुधार कर सकूँ।
पिछली कडि़याँ - संस्‍कार:भारतीय दर्शन (Sanskar: Indian Philosophy) , हिन्दू विवाह


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हँसों जम के हँसो




1
वैलेंनटाईन डे के दिन एक प्रेमी जोड़ा एक बाग में मिलता है, प्रेमी जोड़ा पेड़ के तले बैठ जाता है. प्रेमिका की तारीफ करते हुए प्रेमी बोलता है, तुम्हारी आँखें बहुत प्यारी हैं, इनमें डूबने को मन करता है, इन आँखों में मुझे सारी दुनिया नजर आती है।
इतने में पेड़ से आवाज आती है, रे भाई कल शाम से मेरा गधा गुम है, हो सके तो देख बताओ ना कहां है।

2
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।

3
बॉस गुस्से में कर्मचारी से बोला, तुमने कभी उल्लू देखा है।
कर्मचारी ने सिर झुकाते हुए कहा, नहीं सर।
बॉस ने जोर से डांटा, नीचे क्या देख रहे हो, मेरी तरफ देखो।

4
संता बुदबुदाते हुए समाजशास्त्र के प्रश्न पत्र को हल कर रहा था, भारत में हर तीन मिनट बाद एक औरत एक बच्चे को जन्म देती है। आने वाली भयावह स्थिति पर किस प्रकार नियंत्रण पाया जा सकता है?
बंता पीछे से कहता है, पहले उस औरत को तलाश करना चाहिए।

5
शिक्षक (छात्र से) - बताओ फोर्ड क्या है?
छात्र (शिक्षक से) - गाड़ी।
शिक्षक - वेरी गुड, अब बताओ ऑक्सफोर्ड क्या है?
छात्र - बैलगाड़ी।


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जो मजा विरोध भरी टिप्‍पणी में है वो और कहाँ ?



आज हमारी एमए की परीक्षा समाप्‍त हो गयी, मुझे पूर्ण विश्वास है कि अक्टूबर तक हम परास्‍नाकत डिग्री धारक हो जायेगे। फरवरी माह से ही परीक्षा दे दे कर थक गये थे। करीब दो माह तक अब कोई परीक्षा नही है, अगर आ गई तो परीक्षा की खैर नही, हमारी तैयारी जोरो से चल रही है। :)


इधर बहुत दिनों से कुछ गम्‍भीर लेखन नही हुआ, कुछ मजा नही आ रहा है। कहते है गर्म तावे पर पानी डालने पर जो आवाज निकलती है उसे सुन कर बड़ा मजा आता है। उसी गर्म तावे की भातिं मेरी भी स्थिति है, काफी दिनों से अन्‍दर ही अन्‍दर बहुत विषयों की का तावा बहुत गर्म हो गया है बस लिख कर पोस्‍ट करने की देर है, फिर देखिये आपके गर्मा गर्म टिप्‍पणी रूपी पानी क्‍या गुल खिलाता है। :)


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इन जयचन्‍द्रों का अंत कब होगा ?



पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्‍त के एक हिन्दू विधायक को वहां का मुलायम और लालू बनने का शौक चढ़ा है। तभी उसे हिन्दुओं के 52 शक्तिपीठों में एक हिंगलाज मंदिर को समाप्त कर, बांध बनाने का पूरी विधानसभा में अकेला समर्थन कर रहा था। यह हिन्‍दुत्‍वों का और उस माता का दुर्भाग्य है कि उसके कैसे जयचंदो को जन्म दिया।

बलूचिस्तान प्रांत में हिन्दू के 52 शक्तिपीठों में से एक हिंगलाज माता के मंदिर का अस्तित्व खतरे में नज़र आ रहा है। पाकिस्तान की संघीय सरकार ने मंदिर पास बांध बनाने का प्रस्ताव रखा है जिसे बलूचिस्तान प्रदेश सरकार ने संघीय सरकार से अपनी परियोजना को बदलने का अनुरोध किया है।

इस मंदिर के महत्व में कहा जाता है कि यह हिंगलाज हिंदुओं के बावन शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर काफी दुर्गम स्थान पर स्थित है, पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव की पत्नी सती के पिता दक्ष ने जब शिवजी की आलोचना की तो सती सहन नहीं कर सकीं और उन्होंने आत्मदाह कर लिया। माता सती के शरीर के 52 टुकड़े गिरे जिसमें से सिर गिरा हिंगलाज में। हिंगोल यानी सिंदूर, उसी से नाम पड़ा हिंगलाज। हिंगलाज सेवा मंडली के वेरसीमल के देवानी ने बीबीसी को बताया कि चूंकि माता सती का सिर हिंगलाज में गिरा था इसीलिए हिंगलाज के मंदिर का महत्व बहुत अधिक है।

जब किसी पवित्र खजू़र के पेड़ को बचाये जाने के लिये सड़क को मोड़ा जा सकता था तो 52 शक्ति पीठों में से एक हिंगलात माता के मन्दिर को क्‍यो नही बचाया जा सकता है। प्रान्‍तीय सरकार के सभी सदस्‍य इस मंदिर को बचाये जाने के पक्ष में है किन्‍तु हर जगह लालू-मुलायम जैसे सेक्‍यूलर नेता पाये जाते है। ऐसा ही उस प्रान्‍त भी है हिंदू समुदाय से संबंध रखने वाले एक विधायक ने मंदिर के पास बाँध के निर्माण की हिमायत की। बलूचिस्तान प्रांतीय असेंबली के सदस्य बसंत लाल गुलशन ने ज़ोर दे कर कहा है कि `धर्म को सामाजिक-आर्थिक विकास की राह में अवरोध बनाए बगैर' सरकार को इस परियोजना पर काम जारी रखना चाहिए।

हे भगवान इस धरा से इन जयचन्‍द्रों का अंत कब होगा ?


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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया



फेडरर होने का मतलब शानदार खेल होता है, और फेडरर इसीलिये वर्षो से नम्‍बर एक नही है। फेडरर कई वर्षो से अपने कैरियर के चरम पर थे और चरम पर होने पर गिरवाट की 100 प्रतिशत सम्‍भवन होती है, इसी गिरावट का दौर फेडरर के साथ हो रहा है। पहले विम्‍बडन के पहने दो सेट तो नाडल ने हलुआ की तरह जीत लिया मानो वह किसी गैरवरीय के खिलाफ खेल रह‍े थे लगा कि लीन सेटों मेंखेल समाप्‍त हो जायेगा, किन्‍तु खेल अभी खत्‍म नही हुआ था अगले दो सेटों में फेडरर ने वापसी की जो मेरे हिसाब से असंम्‍भव थी क्‍योकि दो सेटो में फेडरर की 80 प्रतिशत नाव डूब चुकी थी किन्‍तु फेडरर ने अपने आपको बचाया और खेल को अपनी नाम के अनुसार पाँच दौर तक ले गये।
नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्‍योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्‍म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्‍वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे।

राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्योंकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोलां गैरोस पर फेडरर ही जीतेंगे।


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फेडरर तुम हार गये पर दिल जीत लिया



 
फेडरर होने का मतलब शानदार खेल होता है, और फेडरर इसीलिये वर्षो से नम्‍बर एक नही है। फेडरर कई वर्षो से अपने कैरियर के चरम पर थे और चरम पर होने पर गिरवाट की 100 प्रतिशत सम्‍भवन होती है, इसी गिरावट का दौर फेडरर के साथ हो रहा है। पहले विम्‍बडन के पहने दो सेट तो नाडल ने हलुआ की तरह जीत लिया मानो वह किसी गैरवरीय के खिलाफ खेल रह‍े थे लगा कि लीन सेटों मेंखेल समाप्‍त हो जायेगा, किन्‍तु खेल अभी खत्‍म नही हुआ था अगले दो सेटों में फेडरर ने वापसी की जो मेरे हिसाब से असंम्‍भव थी क्‍योकि दो सेटो में फेडरर की 80 प्रतिशत नाव डूब चुकी थी किन्‍तु फेडरर ने अपने आपको बचाया और खेल को अपनी नाम के अनुसार पाँच दौर तक ले गये।
नडाल ने रविवार को विंबलडन के इतिहास के सबसे लंबे फाइनल में 6-4, 6-4, 6-7, 6-7, 9-7 से जीत दर्ज करके फेडरर का लगातार छठा विंबलडन खिताब जीतने का सपना भी तोड़ दिया। नडाल ने चार बार फ्रेंच ओपन का खिताब जीता है जबकि यह उनका पहला विंबलडन खिताब है। विंबलडन में सेंटर कोर्ट पर हुये इस ऐतिहासिक मैच को मै आधा ही देख सका, जब तक मेरा फेडरर हारता रहा। :) क्‍योकि वर्षा बाधित मैंच का यही दौर था। फेडरर की बादशाहत अभी खत्‍म नही हुई है अभी वह नाडल से 500 एटीपी प्‍वाइंट लेखकर 231वें हफ्ते दुनिया के नंबर एक बने रहेंगे जबकि नडाल भी लगातार 155वें हफ्ते दुनिया के दूसरे खिलाड़ी रहेंगे। 

राफएल नाडल, रोजर फेडरर के लिये कहते है कि मुझे पता है कि इस तरह का फाइनल हारना कितना मुश्किल होता है। वह महान चैंपियन हैं। वह हारे या जीते उनका दृष्टिकोण हमेशा सकारात्मक रहता है। हम करीबी मित्र नहीं हैं लेकिन मैं हमेशा उसका काफी सम्मान करता हूं। मैं अपने लिए काफी खुश हूं लेकिन उसके लिए दुखी भी हूं क्योंकि वह इस खिताब का भी हकदार था। हार से उनकी अहमियत कम नही होती है आल इंग्लैंड क्लब के बेताज बादशाह रहे रोजर फेडरर अब भी दुनिया के सर्वश्रेष्ठ टेनिस खिलाड़ी हैं।
नाडाल को खिताबी जीत पर मेंरी ओर से खिताब की बहुत बहुत बधाई। पर बच कर रहना अबकी बार फ्रेंच ओपन का विजेता फेडरर होगा। क्‍योकि विंबलडन में मिथक टूटा है तो अगली बार रोला गैरोस पर फेडरर ही जीतेगे।


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बहस - भारत के प्रधानमंत्री पद के उम्‍मीदवार की न्‍यूनतम आयु कितनी है ?



भारत के प्रधानमंत्री की न्‍यूनतम आयु कितनी है ? इस  प्रश्‍न पर में और कुछ मित्रों में पिछले कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है और हम सभी विभिन्‍न प्रकार की सामान्‍य ज्ञान तथा सविंधान की पुस्‍तकों का गहन अध्‍ययन कर रहे है। आपके नज़र में प्रधान मंत्री पद की न्‍यूनतम आयु पर अपनी स्‍पष्‍ट राय रखें। साथ ही साथ दाई और मतदान बोर्ड पर अपना मत अंकित करें। मै अपनी बात अगली पोस्ट में रखूँगा। :)


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चिट्ठाकारी में महाशक्ति के दो साल



बीते माह की 30 तारीख को हमारे चिट्ठाकारी जीवन 2 साल पूरे हो गये, और देखिए, मै यहीं बात भूल गया कि 30 जून को मैने अपना ब्‍लाग बनाया था। खैर देर आये दुरूस्‍त आये की तर्ज पर हम दुरूस्‍त आ गये है, और अपने चिट्ठाकारी के तीसरे साल में पहुँच कर 2 साल पूरे करने की घोषणा करते है।

हुआ यो कि मै अपने पढ़ाई लिखाई, खेल कूद जैसे विषयों पर छुट्टी में ज्‍यादा व्‍यस्‍त था। और इन दिनों मुझे याद ही नही रहा कि मै कभी चिट्ठाकार भी हुआ करता था। :) आज अचानक गाहे बगाहे ही याद आ गया कि मेरे चिट्ठाकारी शुरू किये दो साल पूरे हो गये है। थोड़ा दुख भी हुआ कि उस दिन पोस्‍ट न डाल सका, क्‍योकि खास दिन की पोस्‍ट का कुछ खास ही महत्‍व होता है।

इधर चिट्ठाकारी और कम्‍प्‍यूटर से दूरी का मुझे सकारात्‍मक परिणाम देखने को भी मिला, 2006 के ग्रेजुएशन में मेरा अब तक का सबसे खराब शैक्षिक प्रदर्शन हुआ था, और मै मात्र 0.42 प्रतिशत अंक की कमी के कारण 50 प्रतिशत अंक भी नही पा पाया था, मुझे इसकी कसक आज तक  है। कई ऐसी परीक्षाये आयोजित होती है जिसमें 50 प्रतिशत की मॉंग होती है और मै अयोग्‍य हो जाता हूँ और दिल पर सिर्फ और सिर्फ खीझ और सिर्फ निराशा ही हाथ आती है।

चूकिं मेरी इच्‍छा विधि की पढ़ाई की थी और 2006 की असफलता के ग्रहण के कारण इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में प्रवेश न हो सका था। इच्‍छा के विपरीत साल न खराब हो इस लिये राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से एम ए का फार्म भर दिया था और फिर इस बार मैने पक्‍का इरादा किया था कि परास्‍नातक में अच्‍छा प्रर्दशन करूँगा। और इसी विश्वास के कारण अर्थशास्त्र परास्‍नातक में प्रथम सेमेस्‍टर में 58, द्वितीय में 65 तथा हफ्ते भर पूर्व घोषित तृतीय सेमेस्‍टर में 76 प्रतिशत अंक लाये थे। यह मेरी अब तक की दी गई किसी भी परीक्षा का सर्वोत्‍तम अंक है। निश्चित रूप से आशा के अनुरूप सफलता पर खुशी मिलती है।
2007 के शुरू होते ही विधि की पढ़ाई की प्रबल इच्‍छा फिर जाग गई, और असमजस में था कि एमए के साथ विधि कैसे होगा, किन्‍तु कुछ मित्रों ने बताया कि मुक्त विश्वविद्यालय की पढ़ाई के साथ किसी और विश्वविद्यालय से डिग्री कोर्श कर सकते है, मुक्त विश्वविद्यालय के गुरूजनों से सम्‍पर्क किया तो उन्होने भी ऐसा ही उत्तर दिया। अक्‍टूबर माह में मैने विधि में प्रवेश ले लिया और कम समय में पर्याप्‍त तैयारी के बोझ के साथ लग गया। फरवरी में एमए तीसरे सेमेस्‍टर की परीक्षा के बाद ही 15 अप्रेल से विधि के पर्चे भी प्रारम्‍भ हो गये। मेरी बहुत अच्‍छी तैयारी नही थी, किन्‍तु जहां चाह तहाँ राह की धारण सत्‍य हुई 2 जुलाई को मेरा विधि का परिणाम हुआ, रिजल्‍ट आशा के‍ विवरीत हुआ, करीब 60 से 65 प्रतिशत की उम्‍मीद लगा कर बैठा था किन्‍तु 56 प्रतिशत पर आ कर रूक गया, तो भी परिणाम ठीक ही रहा। 7 और 9 जुलाई को मेरा एमए का अन्तिम सेमेस्‍टर होगा, और इस साल मेरे पास काफी समय होगा विधि के लिये और पूरी कोशिश करूँगा कि अगली परीक्षाऍं भी प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करूँ।

पिछले तीस जून 2007  का लेख - चिट्ठाकारी में महाशक्ति के एक साल


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इश्क



वफाओं को हमने चाहा,
वफाओं का साथ मिला।
इश्‍क की गलियो में भटकते रहे,
घर आये तो बाबू जी का लात मिला।।

घर लातों को तो हम झेल गये,
क्‍योकि यें अन्‍दर की बात थी।
पर इश्‍क का इन्‍ताहँ तब हुई जब,
गर्डेन में उसके भाई का हाथ पड़ा।।

इश्‍क का भूत हमनें देखा है,
जब हमारे बाबू जी ने उतारा था।
फिछली द‍ीवाली में पर,
जूतों चप्‍पलों से हमारा भूत उतारा था।।

इश्‍क हमारी फितरत में है,
इश्‍क हमारी नस-नस में है।
बाबू की की ध‍मकियों से हम नही डरेगें,
हम तो खुल्‍लम खुल्‍ला प्‍यार करेगें।।

अब आये चाहे उसका भाई,
चाहे साथ लेकर चला आये भौजाई।
इश्‍क किया है कोई चोरी नही की,
तुम्हारे बाप के सिवा किसी से सीना जोरी नही की।।

कई अरसें से कोई कविता नही लिखी, मित्र शिव ने कहा कि कुछ लिख डालों कुछ भाव नही मिल नही रहे थे किन्‍तु एक शब्द ने पूरी रचना तैयार कर दी, मै इसे कविता नही मानता हूँ, क्‍योकि यह कविता कोटि में नही है, आप चाहे जो कुछ भी इसे नाम दे सकतें है, यह बस किसी के मन को रखने के लिये लिखा गया।


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