घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज



आपके घुटनो में कैसा भी दर्द हो इसे मात्र सात दिनों में दूर करने की अचूक घरेलु औषधि मौजूद है। आज के समय में घुटनो का दर्द उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ता रहता है और कई बार घुटनो में दर्द चोट लगने की वजह से या फिर गठिया रोग के होने की वजह से भी होता है। लेकिन कई लोग ये कहते है की घुटनो की ग्रीस ख़त्म हो गए इसलिए हमें दर्द हो रहा है या फिर यूरिक एसिड का शरीर में जयादा बढ़ जाना भी इसकी दर्द की वजह है। कई बार तो घुटनो का दर्द इतना जयादा बढ़ जाता है की वो सहन भी नहीं होता है और व्यक्ति का बुरा हाल हो जाता है। व्‍यायाम करने से हम इस दर्द से कुछ हद तक मुक्त हो सकते है क्योकि इससे एक तो घुटनो की जकड़न खत्‍म हो जाती है और दूसरे घुटनो की गति को आसान कर देती है जिससे दर्द भी कम हो जाता है।
घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज
जब हमारे घुटने सही काम नहीं करते तो हमें चलने फिरने आदि में दिक्कत हो जाती है और घुटनो को मोड़ने और सीधे करने में भी बहुत दिक्‍कत होती है। घुटनो पर लालिमा व सूजन बनी रहती है। इस कारण से घुटनो को मोड़ते समय चटकने व टूटने जैसी आवाज आने लगती है। जिससे घुटने में दर्द होता है उन पैरो में झुनझुनी होने लगती है। आर्युवेद मे घुटनो में होने वाले दर्द से बचने के लिएअनेक अचूक उपाय मौजूद है। जिससे आपके घुटनो के दर्द को कम ही नहीं करता बलिकी आपके दर्द को जड़ से ख़त्म कर देता है। तो आइये जानते है वो कौन सा उपाय है। इसके लिए जो सामान चाहिए वो बहुत ही आसानी से आपकी किचन में मिल जायेगा : एक छोटा चम्मच हल्दी जोकि एक एंटीसेप्टिक व एंटीबायोटिक का काम करती है, एक चम्मच शहद और चुटकी भर चुना इन तीनो सामान मात्रा को आपस में अच्छे से मिला कर थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट जैसा बना लेना है। आप इस सामान को थोड़ा ज्‍यादा भी ले सकते अगर आपके घुटने पर ये कम पड़ रहा हो। अब इस पेस्ट को अपने घुटनो पर हल्‍के हल्‍के दस मिनट तक मालिश करना है और ये उपाय आपके रात को सोते समय करना है। अब जब आप मालिश कर ले तो इस पर कोई सूती कपडा या फिर बैंडेज बांधकर सो जाये और सुबह गुनगुने पानी से घुटने को धो दे। इस उपाय से आपका दर्द कहला जायेगा और ये उपाय आपको लगातार सात दिनों तक करना है और आपका दर्द कैसा भी हो जड़ से ख़तम हो जायेगा। आपको कुछ बातो का ध्‍यान रखना है जैसे वसा युक्त व प्रोटीनयुक्त खाना खाने से परहेज करे। जैसे-
  1. आलू, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, लाल मिर्च, अत्‍यधिक नमक, बैगन आदि न खाये।
  2. घुटनो की गर्म व बर्फ के पैड्स से सिकाई करे।
  3. घुटनो के निचे तकिया रखे।
  4. वजन कम रखे इसे बढ़ने न दे।
  5. ज्‍यादा लम्बे समय तक खड़े न रहे।
  6. आराम करे दर्द बढ़ाने वाली गति विधिया न करे इससे आपका दर्द और बढता जायेगा और आप इसे सहन नहीं कर पाएंगे।
  7. सुबह खली पेट तीन से चार अखरोट खाये, विटामिन इ युक्त खाना खाये धुप सेके।
इन बातो को ध्‍यान रखने के साथ साथ इस उपाय को करे तो आपके घुटनो का दर्द जड़ से ख़त्म हो जायेग।

गठिया रोग के लक्षण और उसका सरल घरेलू उपचार Gathiya Bai Ka Ayuvedic Upchar
गठिया को आयुर्वेद में संधि शोथ यानि "जोड़ों में दर्द" नाम दिया कहा जाता है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार खून में यूरिक एसिड की अधिक मात्रा होने से गठिया रोग होता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है गठिया की समस्या भी बढ़ती चली जाती है। आज कल हमारी दिनचर्या हमारे खान-पान से गठिया का रोग 45 -50 वर्ष के बाद बहुत से लोगो में पाया जा रहा है। गठिया में हमारे शरीर के जोडों में दर्द होता है, गठिया के पीछे यूरिक एसीड की बड़ी भूमिका रहती है। 
गठिया के प्रकार - संधिशोथ दो प्रकार के होते हैं :
  1. तीव्र संक्रामक संधिशोथ - किसी भी तीव्र संक्रमण के समय यह शोथ हो सकता है।
  2. जीर्ण संक्रामक (chronic invective) संधिशोथ - यह शोथ प्राय: शरीर के अनेक अंगों पर होता है। पाइरिया, जीर्ण उंडुक शोथ, जीर्ण पित्ताशय शोथ, जीर्ण वायुकोटर शोथ, जीर्ण टांसिल शोथ, जीर्ण ग्रसनी शोथ (pharyngitis) इत्यादि।

घुटनों के दर्द को ठीक करने के आसान घरेलू उपाय
घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज घुटने के दर्द के लिए राज का रामबाण इलाज़

घुटनों के दर्द का कारण
  1. मानव शरीर में पैर जितने ही महत्त्वपूर्ण हैं, उतने ही उनके बीच में बने घुटने। इन्ही से पैरों को मुड़ने की क्षमता मिलती है और घुटनों में कई कारणों से दर्द होने लग जाता है। शरीर के जोड़ों में सूजन उत्पन्न होने पर गठिया होता है या कहे कि जब जोड़ों में उपास्थि (कोमल हड्डी) भंग हो जाती है। शरीर के जोड़ ऐसे स्थल होते हैं जहां दो या दो से अधिक हड्डियाँ एकदूसरे से मिलती हैं जैसे कि कूल्हे या घुटने। उपास्थि जोड़ों में गद्दे की तरह होती है जो दबाव से उनकी रक्षा करती है और क्रियाकलाप को सहज बनाती है। जब किसी जोड़ में उपास्थि भंग हो जाती है तो आपकी हड्डियाँ एक दूसरे के साथ रगड़ खातीं हैं, इससे दर्द, सूजन और ऐंठन उत्पन्न होती है।
  2. सबसे सामान्य तरह का गठिया हड्डी का गठिया होता है। इस तरह के गठिया में, लंबे समय से उपयोग में लाए जाने अथवा व्यक्ति की उम्र बढ़ने की स्थिति में जोड़ घिस जाते हैं जोड़ पर चोट लग जाने से भी इस प्रकार का गठिया हो जाता है। हड्डी का गठिया अक्सर घुटनों, कूल्हों और हाथों में होता है। जोड़ों में दर्द और स्थूलता शुरू हो जाती है। समय-समय पर जोड़ों के आसपास के ऊतकों में तनाव होता है और उससे दर्द बढ़ता है।
  3. गठिया उस समय भी हो सकता है जब प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली, जो आमतौर से शरीर को संक्रमण से बचाती है, शरीर के ऊतकों पर वार कर देती है। इस प्रकार की गठिया में रियुमेटायड गठिया सबसे सामान्य गठिया होता है। इससे जोड़ों में लाली आ जाती है और दर्द होता है और शरीर के दूसरे अंग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं, जैसे कि हृदय, पेशियाँ, रक्त वाहिकाएँ, तंत्रिकाएं और आँखें।
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गठिया क्या होता है?
गठिया एक लंबे समय तक चलने वाली जोड़ों की स्थिति होती है जिससे आमतौर पर शरीर के भार को वहन करने वाले जोड़ जैसे घुटने, कूल्हे, रीढ़ की हड्डी तथा पैर प्रभावित होते हैं। इसके कारण जोड़ों में काफी अधिक दर्द, अकड़न होती है और जोड़ों की गतिविधि सीमित हो जाती है। समय के साथ साथ गठिया बदतर होता चला जाता है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो घुटनों के गठिया से व्यक्ति का जीवन काफी अधिक प्रभावित हो सकता है। गठिया से पीडि़त व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की गतिविधियां करने में समर्थ नहीं हो पाते और यहां तक कि चलने-फिरने जैसा सरल काम भी मुश्किल लगता है। इस प्रकार के मामलों में, क्षतिग्रस्त घुटने को बदलने के लिए डॉक्टर सर्जरी कराने के लिए कह सकता है।

क्यों होता है गठिया
अनहेल्दी फूड, एक्सरसाइज की कमी और बढ़ते वजन की वजह से घुटनों का दर्द भारत जैसे देशों में एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है। 40-45 की उम्र में ही घुटनों में दिक्कतें आने लगी हैं। सर्वेक्षण कहते हैं कि दुनिया में करीब 40 प्रतिशत लोग घुटनों में दर्द से परेशान हैं। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत आर्थराइटिस जैसी बीमारियों से भी जूझ रहे हैं। इनमें से 80 फीसदी अपने घुटनों को आसानी से मोड़ तक नहीं सकते। घुटनों की खराबी के शिकार 25 फीसदी लोग अपने रोजमर्रा के कामों को भी आसानी से नहीं कर पाते हैं। भारत में यह समस्या काफी गंभीर है। घुटनों का दर्द काफी हद तक लाइफ स्टाइल की देन है। यदि लाइफ स्टाइल और खानपान को हेल्दी नहीं बनाया तो यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है। घुटने पूरे शरीर का बोझ सहन करते हैं। इन्हें बचाने का तरीका हेल्दी लाइफ स्टाइल, एक्सरसाइज और हैल्दी खानपान है। खाने में कैल्शियम वाला भोजन सही मात्रा में लें, सब्जियाँ जरूर खायें, फैट और चीनी से परहेज करें और मोटापे का पास भी न फटकने दें।

क्या वजन कम करने से गठिया में लाभ मिलता है?
  1. घुटनो के गठिया से पीडि़त व्यक्ति के लिए निर्धारित वजन से अधिक वजन होना या मोटापा घुटनों के जोड़ों के लिए हानिकारक हो सकता है। अतिरिक्त वजन से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, मांसपेशियों तथा उसके आसपास की कण्डराओं (टेन्डन्स) में खिंचाव होता है तथा इसके कार्टिलेज में टूट-फूट द्वारा यह स्थिति तेजी से बदतर होती चली जाती है। इसके अलावा, इससे दर्द बढ़ता है जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति एक सक्रिय तथा स्वतंत्र जीवन जीने में असमर्थ हो जाता है।
  2. यह देखा गया है कि मोटे लोगों में वजन बढ़ने के साथ साथ जोड़ों (विशेष रूपसे वजन को वहन करने वाले जोड़) का गठिया विकसित करने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि मोटे लोगों को या तो अपने वजन को नियंत्रित करने अथवा उसे कम करने केलिए उचित कदम उठाने चाहिए।
  3. गठिया से पीडि़त मोटापे/अधिक वजन से पीडि़त लोगों में वजन में 1 पाउंड (0.45 किलोग्राम) की कमी से, घुटने पर पड़ने वाले वजन में 4 गुणा कमी होती है। इस प्रकार वजन में कमी करने से जोड़ पर खिंचाव को कम करने, पीड़ा को हरने तथा गठिया की स्थिति के आगे बढ़ने में देरी करने में सहायता मिलती है।
गठिया रोग में रामबाण है अदरक का
हम सब अदरक के गुणों का कई सालों से भरपूर फयदा उठाते आ रहे है। अदरक बहुत सारी बीमारियों से हमारी रक्षा करता है और बहुत सारी शारीरिक समस्‍याओं मेरामबाण की तरह काम करता है। यह हम भली भांति जानते है, अदरक से गठिया रोग को जड़ से खत्म किया जा सकता है। अदरक के इस पानी से मसाज करने से रक्‍त प्रवाह (blood circulation) में भी सुधार आता है। गठिया जैसे जटिल रोगों को जड़ से खत्म करने के लिए अदरक के दो प्रयोग है-
  1. पहले ½ चम्मच अदरक ले और इसको पीस लें और अब इसमे 150 ml गर्म पानी डाल कर अच्छी तरह से मिक्स कर लें और ठंडा होने के बाद इस मिश्रण का सेवन करें। दिन में दो बार लगातार 1 महीने तक इस मिश्रण का सेवन करें इससे इस रोग आपको बहुत अधिक लाभ होगा और आराम की साँस ले पाएंगे।
  2. 30-40 ग्राम सूखा हुआ अदरक ले और अब इसको कपड़े में लपेट कर थैली बना लें अब गर्म पानी ले और इस अदरक की थैली को गर्म पानी में 5 मिनटों तक रखें। इस प्रयोग को करने से पहले ध्यान रखे के पानी गर्म हो। अब इस मिश्रण में सूती कपड़ा भीगों लें और निचोड़ कर कपड़े को प्रभावित जगह पर लगा कर रखें। इस कपड़े को गर्म रखने के लिए उपर से किसी सूखे कपड़े से कवर कर लें। 5 मिनटों के बाद इस कपड़े को फिर से भीगों कर प्रभावित जगेह पर लगा कर रखें इस प्रकिया को 3 बार रिपीट करें ऐसा करने से इस रोग में लाभ होगा।

गठिया रोग के लक्षण
घुटनों के दर्द के निम्नलिखित कारण हैं-
  1. आर्थराइटिस- लूपस जैसा- रीयूमेटाइड, आस्टियोआर्थराइटिस और गाउट सहित अथवा संबंधित ऊतक विकार
  2. बरसाइटिस- घुटने पर बार-बार दबाव से सूजन (जैसे लंबे समय के लिए घुटने के बल बैठना, घुटने का अधिक उपयोग करना अथवा घुटने में चोट)
  3. टेन्टीनाइटिस- आपके घुटने में सामने की ओर दर्द जो सीढ़ियों अथवा चढ़ाव पर चढ़ते और उतरते समय बढ़ जाता है। यह धावकों, स्कॉयर और साइकिल चलाने वालों को होता है।
  4. बेकर्स सिस्ट- घुटने के पीछे पानी से भरा सूजन जिसके साथ आर्थराइटिस जैसे अन्य कारणों से सूजन भी हो सकती है। यदि सिस्ट फट जाती है तो आपके घुटने के पीछे का दर्द नीचे आपकी पिंडली तक जा सकता है।
  5. घिसा हुआ कार्टिलेज (उपास्थि)(मेनिस्कस टियर)- घुटने के जोड़ के अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर दर्द पैदा कर सकता है।
  6. घिसा हुआ लिगमेंट (ए सी एल टियर)- घुटने में दर्द और अस्थायित्व उत्पन्न कर सकता है।
  7. झटका लगना अथवा मोच- अचानक अथवा अप्राकृतिक ढंग से मुड़ जाने के कारण लिगमेंट में मामूली चोट
  8. जानुफलक (नीकैप) का विस्थापन
  9. जोड़ में संक्रमण
  10. घुटने की चोट- आपके घुटने में रक्त स्राव हो सकता है जिससे दर्द अधिक होता है
  11. श्रोणि विकार- दर्द उत्पन्न कर सकता है जो घुटने में महसूस होता है। उदाहरण के लिए इलियोटिबियल बैंड सिंड्रोम एक ऐसी चोट है जो आपके श्रोणि से आपके घुटने के बाहर तक जाती है।
  12. अधिक वजन होना, कब्ज होना, खाना जल्दी-जल्दी खाने की आदत, फास्ट-फ़ूड का अधिक सेवन, तली हुई चीजें खाना, कम मात्रा में पानी पीना, शरीर में कैल्सियम की कमी होना।
गठिया/घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज
  1. किसी चोट का दर्द हो या घुटने का दर्द आप इस दर्द निवारक हल्दी के पेस्ट को बनाकर अपनी चोट के स्थान पर या घुटनों के दर्द के स्थान पर लगाइए इससे बहुत जल्दी आराम मिलता है। दर्द निवारक हल्दी का पेस्ट कैसे बनाएं इसके लिए आप सबसे पहले एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर लें और एक चम्मच पिसी हुई चीनी और इसमें आप बूरा या शहद मिला लें, और एक चुटकी चूना मिला दें और थोड़ा सा पानी डाल कर इसका पेस्ट जैसा बना लें। इस लेप को बनाने के बाद अपने चम्मच के स्थान पर यार जो घुटना का दर्द करता है उस स्थान पर स्लिप को लगा ले और ऊपर से किराए बैंडेज या कोई पुराना सूती कपड़ा बांध दें और इसको रातभर लगा रहने दें और सुबह सादा पानी से इसको धो ले इस तरह से लगभग 7:00 से लेकर 1 सप्ताह से लेकर 2 सप्ताह तक ऐसा करने से इसको लगाने से आपके घुटने की सूजन मांसपेशियों में खिंचाव अंदरुनी चोट होने वाले दर्द में बहुत जल्दी आराम मिलता है और यह पृष्ठ आप के दर्द को जड़ से खत्म कर देता है।
  2. सौंठ से बनी दर्द निवारक दवा सौंठ भी एक बहुत अच्छा दर्द निवारक दवा के रूप में फायदेमंद साबित हो सकता है, सौंठ से दर्दनिवारक दवा बनाने के लिए एक आप एक छोटा चम्मच सौंठ का पाउडर व थोड़ा आवश्यकतानुसार तिल का तेल इन दोनों को मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट जैसा बना ले। दर्द या मोच के स्थान पर या चोट के दर्द में आप इस दर्द निवारक सौंठ के पेस्ट को हल्के हल्के प्रभावित स्थान पर लगाएं और इसको दो से 3 घंटे तक लगा रहने दें इसके बाद इसे पानी से धो लें ऐसा करने से 1 सप्ताह में आपको घुटने के दर्द में पूरा आराम मिल जाता है और अगर मांसपेशियों में भी खिंचाव महसूस होता है तो वह भी जाता रहता है।
  3. सर्दियों के मौसम में रोजाना 5-6 खजूर खाना बहुत ही लाभदायक होता है, खजूर का सेवन आप इस तरह भी कर सकते हैं रात के समय 6-7 खजूर पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट इन खजूर को खा ले और साथ ही वह पानी भी पी ले जिनको जिसमें आपने रात में खजूर भिगोए थे. यह घुटनों के दर्द के अलावा आपके जोड़ों के दर्द में भी आराम दिलाता है।
घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज 
गठिया के रोग में अचूक आयुर्वेदिक घरेलू एवं सामान्य उपचार
  1. खाने के एक ग्रास को कम से कम 32 बार चबाकर खाएं। इस साधरण से प्रतीत होने वाले प्रयोग से कुछ ही दिनों में घुटनों में साइनोबियल फ्रलूड बनने लग जाती है।
  2. पूरे दिन भर में कम से कम 12 गिलास तक पानी अवश्य पिए। ध्यान दीजिए, कम मात्रा में पानी पीने से भी घुटनों में दर्द बढ़ जाता है।
  3. भोजन के साथ अंकुरित मेथी का सेवन करें।
  4. बीस ग्राम ग्वारपाठे अर्थात् एलोवेरा के ताजा गूदे को खूब चबा-चबाकर खाएं साथ में 1-2 काली मिर्च एवं थोड़ा सा काला नमक तथा ऊपर से पानी पी लें। यह प्रयेाग खाली पेट करें। इस प्रयोग के द्वारा घुटनों में यदि साइनोबियल फ्रलूड भी कम हो गई हो तो बनने लग जाती है।
  5. चार कच्ची-भिंडी सवेरे पानी के साथ खाएं। दिन भर में तीन अखरोट अवश्य खाएं। इससे भी साइनोबियल फ्रलूड बनने लगती है। अनुभूत प्रयोग है।
  6. एक्यूप्रेशर-रिंग को दिन में तीन बार, तीन मिनट तक अनामिका एवं मध्यमा अंगुलि में एक्यूप्रेशर करें।
  7. प्रतिदिन कम से कम 2-3 किलोमीटर तक पैदल चलें।
  8. दिन में दस मिनट आंखें बंद कर, लेटकर घुटने के दर्द का ध्यान करें। नियमित रूप से अनुलोम-विलोम एवं कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करें। अनुलोम-विलोम धीरे-धीरे एवं कम से कम सौ बार अवश्य करें। इससे लाभ जल्दी होने लगता है।

मुद्रा-चिकित्सा
  1. तर्जनी अंगुलि (इंडेक्स-फिंगर)को अंगूठे के नीचे गद्दी पर लगाएं और अंगूठे से हल्का दबाएं। यह प्रयोग आध-आध घंटा दिन में दो बार करें।
  2. नाभि में अरंड के बीज को छीलकर लगाएं और प्लास्टिक की टेप से चिपका दें। दूसरे दिन नहाने से पहले हटा दें। यह प्रयोग नहाने के लगभग दो घंटे बाद करें।
  3. घुटनों में दर्द होना, साइनोबियल फ्रलूड खत्म होना इत्यादि रोगों से पीडि़तों को दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि दूध में लैक्टिक-एसिड पाया जाता है, जो कि घुटनों में दर्द को बढ़ाता है। हाँ, दूध को ठंडा करके उसमें शहद, सोंठ मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। सौंठ से अभिप्राय ड्राई-जिंजर है।
  4. स्टेरॉयड के इंजेक्शन भूलकर भी नहीं लगाएं। इनके ढेरों साइड इफेक्ट होने के साथ साथ एक स्थिति ऐसी पैदा हो जाती है-‘‘मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यूं-ज्यूं दवा की’’।

गठिया रोग के घरेलू उपचार
एलोवेरा 
त्रिफला जूस, एलोवेरा जूस, एलोवेरा गार्लिक जूस, इनमें से कोई एक रोग के लक्षणों के अनुसार सेवन करने से अवश्य ही रोग से मुक्ति मिल जाती है। पूर्ण धैर्य के साथ तीन-चार महीनों तक नियमित रूप से खाली पेट सेवन करना चाहिए।
 
आयुर्वेद के अनुसार सेवनीय अन्य औषधियां
अमृता सत्व, गोदंती भस्म, प्रवाल पिष्टी, स्वर्ण माक्षिक भस्म, महावत विध्वंसन रस, वृहद वातचितामणि रस, एकांगवीर रस, महायोगराज गुग्गुल, चंद्रप्रभावटी, पुनर्नवा मंडुर इत्यादि औषधियों का कुछ दिनों विशेषज्ञ के परामर्श से सेवन करने से बिना किसी साइडइपैफक्ट के ही आशातीत लाभ मिलता है।
 
सेवन करने से बचें
दही, लस्सी, अचार, दूध्, चाय तथा रात के समय हलका व सुपाच्य आहार लें। रात के समय चना, भिंडी, अरबी, आलू, खीरा, मूली, दही राजमा इत्यादि का सेवन भूलकर भी नहीं करें।

गठिया के दौरान क्या न करें/ गठिया रोग मे परहेज
  1. ऐसे जूतों का प्रयोग करने से बचिए जिनकी पीडि़त ऊंची हैं तथा बहुत ही कठोर हैं तथा सेण्डल पहनने से बचें इसके स्थान पर ऐसे जूतों का प्रयोग करें जिनकी एड़ी नीची है या जिनके फीते बांधे जा सकते हैं तथा जिनसे पैरों को उचित सहायता प्राप्त होती है।
  2. खड़ी ढ़लानों पर चलने तथा बहुत ही नर्म तथा असमान तल या जमीन पर चलने से बचें।
  3. सीढि़यां का प्रयोग करने से बचें जहां संभव हो वहां पर एलेवेटर का प्रयोग करें यदि आपको सीढि़यां का प्रयोग करना ही पड़ता है।
  4. तो एक बार में एक सीढ़ी चढ़ें तथा हैंड रेल को पकड़ कर चलिए।
  5. हमेशा स्वस्थ पैर को आगे रखें।
  6. भारी वस्तुओं को लेकर चलने से बचें भारी वस्तुओं से घुटनों पर अतिरिक्त तनाव या भार पड़ता है।
  7. कुर्सी के पीछे टांगों को मोड़ने से बचें, अपनी टांगों को आराम से फैलाएं तथा बार बार उनकी स्थिति को बदलते रहें।
  8. लंबे समय तक निरन्तर खड़े रहने से बचिए इसके बदले में हर घंटे के बाद एक ब्रेक लें।
  9. बिस्तर या कुर्सी से उठते समय प्रभावित घुटने पर दबाव डालने से बचिए। इसके अलावा उठने के लिए दोनो हाथों के साथ नीचे की ओर बल लगाते हुए उठिए।
  10. कम ऊंचाई वाली कुर्सियों पर बैठने से बचें ऐसी कुर्सियों को चुनें जिनकी सीट ऊंची हैं और उन पर आर्मरेस्ट लगी हुई हैं।
  11. घुटनों को मोड़ने से बचिए अनेक ऐसे कार्य जिनके लिए घुटनों को मोड़ने की जरूरत होती है, उन्हें कम ऊंचाई की कुर्सियों या स्टूल का प्रयोग करके किया जा सकता है।

आपके घुटनो में कैसा भी दर्द हो इसे मात्र सात दिनों में दूर करने की अचूक घरेलु औषधि मौजूद है। आज के समय में घुटनो का दर्द उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ता रहता है और कई बार घुटनो में दर्द चोट लगने की वजह से या फिर गठिया रोग के होने की वजह से भी होता है। लेकिन कई लोग ये कहते है की घुटनो की ग्रीस ख़त्म हो गए इसलिए हमें दर्द हो रहा है या फिर यूरिक एसिड का शरीर में जयादा बढ़ जाना भी इसकी दर्द की वजह है। कई बार तो घुटनो का दर्द इतना जयादा बढ़ जाता है की वो सहन भी नहीं होता है और व्यक्ति का बुरा हाल हो जाता है। व्‍यायाम करने से हम इस दर्द से कुछ हद तक मुक्त हो सकते है क्योकि इससे एक तो घुटनो की जकड़न खत्‍म हो जाती है और दूसरे घुटनो की गति को आसान कर देती है जिससे दर्द भी कम हो जाता है।

जब हमारे घुटने सही काम नहीं करते तो हमें चलने फिरने आदि में दिक्कत हो जाती है और घुटनो को मोड़ने और सीधे करने में भी बहुत दिक्‍कत होती है। घुटनो पर लालिमा व सूजन बनी रहती है। इस कारण से घुटनो को मोड़ते समय चटकने व टूटने जैसी आवाज आने लगती है। जिससे घुटने में दर्द होता है उन पैरो में झुनझुनी होने लगती है। आर्युवेद मे घुटनो में होने वाले दर्द से बचने के लिएअनेक अचूक उपाय मौजूद है। जिससे आपके घुटनो के दर्द को कम ही नहीं करता बलिकी आपके दर्द को जड़ से ख़त्म कर देता है। तो आइये जानते है वो कौन सा उपाय है। इसके लिए जो सामान चाहिए वो बहुत ही आसानी से आपकी किचन में मिल जायेगा : एक छोटा चम्मच हल्दी जोकि एक एंटीसेप्टिक व एंटीबायोटिक का काम करती है, एक चम्मच शहद और चुटकी भर चुना इन तीनो सामान मात्रा को आपस में अच्छे से मिला कर थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट जैसा बना लेना है। आप इस सामान को थोड़ा ज्‍यादा भी ले सकते अगर आपके घुटने पर ये कम पड़ रहा हो। अब इस पेस्ट को अपने घुटनो पर हल्‍के हल्‍के दस मिनट तक मालिश करना है और ये उपाय आपके रात को सोते समय करना है। अब जब आप मालिश कर ले तो इस पर कोई सूती कपडा या फिर बैंडेज बांधकर सो जाये और सुबह गुनगुने पानी से घुटने को धो दे। इस उपाय से आपका दर्द कहला जायेगा और ये उपाय आपको लगातार सात दिनों तक करना है और आपका दर्द कैसा भी हो जड़ से ख़तम हो जायेगा।
अब आपको कुछ बातो का ध्‍यान रखना है जैसे वसा युक्त व प्रोटीनयुक्त खाना खाने से परहेज करे। आलू, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, लाल मिर्च, अत्‍यधिक नमक, बैगन आदि न खाये। घुटनो की गर्म व बर्फ के पैड्स से सिकाई करे। घुटनो के निचे तकिया रखे।वजन कम रखे इसे बढ़ने न दे। ज्‍यादा लम्बे समय तक खड़े न रहे। आराम करे दर्द बढ़ाने वाली गति विधिया न करे इससे आपका दर्द और बढता जायेगा और आप इसे सहन नहीं कर पाएंगे। सुबह खली पेट तीन से चार अखरोट खाये, विटामिन इ युक्त खाना खाये धुप सेके। इन बातो को धायण रखने के साथ साथ इस उपाय को करे तो आपके घुटनो का दर्द जड़ से ख़त्म हो जायेगा।

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नोट - चिकित्सीय परामर्श अवश्य ले, यह केवल ज्ञान वर्धन के लिए है।



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रससिंदूर बहु उपयोगी एक सर्वश्रेष्ठ रसायन है, जो औषधि प्रयोग करने पर शारीरिक तथा मानसिक रोगों को दूर करे, जिससे शीघ्र आने वाला बुढ़ापा रुक जाए, जिससे बुद्धि का विकास हो, जो शारीरिक धातुओं की पुष्टि करें उसे रसायन औषधि कहते हैं, रसायन औषधियों में रससिंदूर एक प्रमुख औषधि है, अनेक रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है जो अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है।
Baidyanath ras sindoor is more beneficial for sexual & general debility as well as asthma, urinary problems.
रससिंदूर शरीर के सभी रोगों को नष्ट करता है, मधुमेह के लिए यह चमत्कारिक औषधि है, प्रबल शूल को नष्ट करता है, कुछ दिनों तक रससिंदूर के सेवन से भगंदर- बवासीर का समूल नाश हो जाता है। किसी भी ज्वर के लिए यह संजीवनी का काम करता है, सभी प्रकार की सूजन की यह अचूक औषधि है। इसके सेवन से बुद्धि का विकास और शरीर में अत्यंत आनंद का अनुभव होता है।
Ras Sindur (Shadguna Jarit), Health and Medicine Dabur India Ltd.
रति शक्तिवर्धक रससिंदूर वीर्य विकारों को दूर करने वाला तथा कामोद्दीपक है। अनेक प्रकार की कामोद्दीपक औषधियां टॉनिक आदि सब रससिंदूर के आगे व्यर्थ हैं। यह गुल्म रोगहर (पेट में वायु का गोला) तथा रमण इच्छा को अत्यंत तीव्र करने वाला है। पांडुरोग, मोटापा, व्रण, शरीर की रूक्षता तथा अग्निमांद्य को दूर करता है। कुष्ठ रोगों को नाश करने वाला एवं रतिकला में चतुर स्त्री को प्रसन्नता प्रदान करने वाला है।
रससिंदूर वायु दोष शामक और उसे सम अवस्था में रखने वाली उत्तम औषधि है। इससे धमनियों में रक्त का संचार का काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियों अपना काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियां अपना काम विशेष दक्षता पूर्वक करती हैं। इससे रससिंदूर का सेवन करने वाले सदैव स्वस्थ और रोग रहित रहते हैं।
विविध रोगों में रससिंदूर का प्रयोग
  1. नये ज्वर में रससिंदूर को उचित मात्रा में लेकर फूल वाली तुलसी के पत्ते के रस के साथ अथवा अदरक के रस के साथ या पान के स्वरस के साथ प्रयोग करना चाहिए।
  2. पुराने ज्वर में रससिंदूर का प्रयोग करना हो तो गिलोय, पित्तपापड़ा तथा धनिया के चतुर्थांश अवशेष काढ़े के साथ देना चाहिए। 
  3. प्रमेह (मधुमेह) में रससिंदूर को गिलोय के स्वरस के साथ देना चाहिए। 
  4. प्रदर रोग में इसको अशोक, खरेंटी, लोध्र आदि ग्राही और शोथहर द्रव्यों के कषाय के साथ सेवन करना चाहिए। 
  5. रक्त प्रदर रोग में वसाकषाय अथवा लोध्र कषाय के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तुरंत लाभकारी होता है। 
  6. पुराने प्रमेह में इसे वंग भस्म मिलाकर शहद के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से आराम मिलता है। 
  7. अपस्मार (हिस्टीरिया) में वचचूर्ण के साथ रससिंदूर का सेवन करना चाहिए। 
  8. उन्माद रोग में पेठे के स्वरस के साथ सेवन करना गुणकारी होता है। 
  9. मूर्च्छा रोग में रससिंदूर को एक रत्ती मात्रा में लेकर दो रत्ती पिप्पली चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करें और रोगी को ठंडे जल से स्नान कराएं ऐसा करने से कुछ ही दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाता है। 
  10. श्वास रोग में बहेड़ा क्वाथ अथवा अडूसा के स्वरस के साथ रससिंदूर का सेवन तुरंत लाभ पहुंचाता है। 
  11. कामला (पीलिया) रोग में रससिंदूर को दारूहल्दी क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए। 
  12. पांडुरोग में रससिंदूर को लौह भस्म के साथ सेवन करना चाहिए। 
  13. मूत्र विकारों में रससिंदूर को मिश्री, छोटी इलायची बीज के चूर्ण तथा शिलाजीत - प्रत्येक संभाग के साथ ठंडे दूध से सेवन करना चाहिए। 
  14. पेट दर्द होने पर रससिंदूर को त्रिफला क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए। 
  15. अजीर्ण होने पर रससिंदूर को मधु के साथ देना चाहिए। 
  16. वमन अधिक होने पर बड़ी इलायची के क्वाथ से अथवा मधु के साथ सेवन करना चाहिए। गुल्म में सौंफ और छोटी हरड़ के क्वाथ के साथ अजवाइन चूर्ण या विड लवण के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 
  17. शरीर में सूजन होने पर रससिंदूर को पुनर्नवा क्वाथ के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। 
  18. गर्भाशय के रोगों में रससिंदूर में एक माशा काकोली चूर्ण मिलाकर इसे नारियल के तेल के साथ सेवन कराना चाहिए। 
  19. भगंदर रोग में रससिंदूर का सेवन आंवला, हरड़, बहेड़ा और वायविडंग क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए। 
  20. पुराने घावों में इसका सेवन कण्टकारी, सुगंधबाला, गिलोय तथा सोंठ के क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए। 
  21. पुराने गठिया रोग में रससिंदूर को गुडूची, मोथा, शतावरी, पिप्पली, हरड़, वच तथा सोंठ के कषाय के साथ सेवन अत्यंत गुणकारी होता है। 
  22. काम शक्ति (वाजीकरण) को बढ़ाने के लिए रससिंदूर का सेवन सेमल की कांपल, मूसली चूर्ण के साथ दुग्धानुपान से सेवन करना चाहिए। 
  23. धातु वृद्धि के लिए अभ्रक भस्म अथवा स्वर्ण भस्म के साथ रससिंदूर का सेवन करना उत्तम है। 
  24. स्वप्नदोष को दूर करने के लिए इसमें जायफल, लौंग, कपूर तथा अफीम का चूर्ण मिलाकर जल अथवा शीतल चीनी के कषाय अनुपान से सेवन करने से स्वप्नदोष से कुछ ही दिनों में छुटकारा मिल जाता है। 
  25. साइटिका के भयानक दर्द में लौह भस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक वटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम, इन सबको अदरक के रस के साथ घोंटकर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिए और दो-दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिए। 
  26. कमर दर्द में रससिंदूर को जवाखार और सुहागा मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
रससिंदूर की सेवन मात्रा - एक वर्ष की उम्र वाले बच्चों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का सोलहवां हिस्सा, दो वर्ष की आयु वाले रोगी के लिए रत्ती का सातवां भाग, छह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का तीसरा भाग होना चाहिये। बारह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की आधी रत्ती और इससे अधिक उम्र वालों के लिए एक रत्ती की मात्रा दी जानी चाहिए।

रससिंदूर प्रयोग से पूर्व कर्म - रससिंदूर सेवन करने से पूर्व रोगी को पंचकर्म द्वारा शुद्ध कर लें। पंचकर्म के बाद उचित समय तक पथ्य सेवन करायें और फिर पूर्ण सोच-विचार के साथ रससिंदूर का प्रयोग करके वर्तमान रोग को दूर करें। यदि रसायन सेवन करने वाला रोगी बालक हो अथवा कृश या क्षीण हो तो उसे पंचकर्म नहीं कराएं। लेकिन उसे समय के अनुसार युक्तिपूर्वक रेचन कराना चाहिए।
 
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गुर्दे की पथरी का औषधीय चिकित्सा (Pharmacological Therapy of Kidney Stones)



पथरी रोग आधुनिक जीवन-शैली और खानपान की देन है यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषो में अधिक पाया जाता है। बच्चे और वृद्धों में मूत्राशय की पथरी ज्यादा होती है, जबकि वयस्कों में अधिकतर गुर्दो और मूत्रनली में पथरी बनजाती है, गुर्दे की पथरी अत्यधिक पीड़ादायक होती है, यदि समय पर इसका इलाज नहीं हुआ तो यह गुर्दे को क्षतिग्रस्त कर देती है जिससे जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
Urinary calculi/ kidney stone and its Ayurveda management
गुर्दे की पथरी पीडि़त रोगी को चाहिए कि वह प्रतिदिन 2-3 लीटर पानी पीएं जिससे मूत्र खुलकर आता रहे। गुर्दे की पथरी का एक मुख्य कारण ऑक्जेलेट है। इसलिए यदि आपको कभी गुर्दे में पथरी की समस्या रही हो तो कम ऑक्जेलेट युक्त खाद्य लेना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति गुर्दे में पथरी काली या गहरी भूरी, खुरदरी, कठोर, कांटेदार तथा वेदनायुक्त होती है। कैल्शियम ऑक्जेलेट तथा कैल्शियम फास्फेट की मिश्रित पथरी भी होती है। सरसो का साग, करी पत्ता, सहजन की पत्तियां बथुआ, गोगू (पिटवा या अंबाड़ी), कमल नाल, काजू, आवला, बादाम, फालसा, स्ट्राबेरी, प्लम, खेंदचीनी, लालमिर्च, चाकलेट, चाय, कोको, पालक, चैराई में ऑक्जेलेट की अधिक मात्रा पाई जाती है। इसलिए भोजन में इससे परहेज करना चाहिए।
My brother once caught up with the pain of Kidney due to kidney stone. It was the first time I saw my elder brother screaming in the pain.
गुर्दे की पथरी के लिए कुछ उपयोगी आयुवेदिक नुस्खे निम्न प्रकार है जो अत्यन्त लाभकारी है:-
  1. कुलत्थ क्वाथ: 25 ग्राम क्वाथ में सेंधा नमक मिलाकर दिन में एक बार पिलाएं।
  2. शुठादि क्वाथ: शुठादि क्वाथ 25 ग्राम में यवक्षार, सेंधा नमक मिलकार दो रत्ती हींग के साथ देने से लाभ होता है।
  3. पाषाणभेदादि क्वाथ: 25 ग्राम क्वाथ में गुड़ डालकर उसे शिलाजीत 3-4 रत्ती के साथ पिलाएं।
  4. गोखरू चूर्ण: गोखरू के चूर्ण को स्वल्प स्वर्णमाक्षिक भस्म के साथ, 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रतिदिन दें, अथवा गोक्षुर चूर्ण और यवक्षार मिलाकर जल से दें।
  5. शिलाजतु योग: शिलाजीत 4 से 6 रत्ती की मात्रा में शहद के साथ मिलकार चटाएं या दूध के साथ दें।
  6. हरिद्रा योगः हल्दी चूर्ण 3 ग्राम तथा गुड़ 10 ग्राम एक साथ मिलकार रोगी को खिलाएं।
  7. तिलादिक्षारः तिलनाल के क्षार या तिलनाल, अपामार्ग, पलाशकाष्ठ, यवकाण्ड और कदलीपत्र में से 2-4 द्रव्यों के क्षार को दूध के साथ दें, मात्रां 1 ग्राम, दिन में दो बार अथवा तिलनाल, अपामार्ग, करेले की बेल, जौ के डंठल आदि की भस्म को कपडे से छान कर रख लें, इसे 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सात दिन तक दूध के साथ दें।
  8. कुलत्थादि घृतः इसे 10 ग्राम की मात्रा में दिन में एक साथ दें।
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पानी पीने के फायदे और नुकसान



 
 

पानी पीने के फायदे और नुकसान 

थकान दूर करने में सहायक 

सुबह खाली पेट पानी पीने के अनेको फायदे हैं। अगर आप अपनी बीमारियों को काबू में करना चाहते हैं तो रोज सुबह उठ कर ढेर सारा गुनगुना पियें। खाली पेट पानी गुनगुना पीने से पेट की सारी गंदगी दूर हो जाती है और खून शुद्ध होता है जिससे आपका शरीर बीमारियों से दूर रहता है। हमारा शरीर 70% पानी से ही बना हुआ है इसलिये पानी हमारे शरीर को ठीक से चलाने के लिये कुछ हद तक जिम्‍मेदार भी है। क्या आप जानते हैं कि सुबह खाली पेट पानी पीने का चलन कहां से शुरु हुआ? यह चलन जापान के लोगों ने शुरु किया था। वहां के लोग सुबह होते ही, बिना ब्रश किये 4 गिलास पानी पी जाते हैं। इसके बाद वे आधा घंटे तक कुछ भी नहीं खाते। अगर आपको हमेशा थकान महसूस होती है, तो सुबह की शुरुआत एक गिलास गुनगुने पानी से ही करें।इससे आप दिन भर तरोताज़ा महसूस करेंगे। इसके इलावा गर्म पानी पीने से बॉडी के टॉक्सिन्स बाहर निकलते हैं और बॉडी के फ्कंशन्स भी हैल्दी होते हैं।

पानी पीने के फायदे और नुकसान

सर्दी जुकाम से राहत दिलाने में सहायक
यदि बेमौसम ही आपको छाती में जकड़न और जुकाम की शिकायत रहे तो ऐसे में सुबह सुबह गुनगुना पानी पीना आपके लिए किसी रामबाण दवा से कम नहीं। गौरतलब है, कि गर्म पानी पीने से गला भी ठीक रहता है। इससे गले की नसे खुलती हैं और ख़राश आदि में भी आराम मिलता है। 3। कब्ज दूर करने में सहायक।। सुबह सुबह एक गिलास गुनगुना पानी, कब्ज़ को जड़ से खत्म कर देता है। इससे पेट साफ होता है और डाइजेशन सुधरता है। खाली पेट, गर्म पानी का सेवन करने से शरीर के टोक्सिन बाहर निकल जाते हैं।


वजन घटाने में मददगार
यदि आपका वज़न लगातार बढ़ रहा है और लाख कोशिशों के बावजूद भी कुछ फर्क नहीं पड़ रहा तो यह उपाय आपके लिए बिलकुल सही है। ऐसे में गुनगुने पानी में शहद और नींबू मिलाकर लगातार तीन महीने तक पीए, इससे आपको फर्क ज़रूर महसूस होगा। इससे वज़न घटता है और प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। ऐसा इसलिए क्योंकि जब हम गुनगुना पानी पीते हैं, तो हमारे शरीर का तापमान सामान्य से कुछ अधिक हो जाता है। ऐसा करने से मेटाबोल्जिम की दर बढ़ जाती है और साथ ही यह एक ज़ीरो केलोरी की ड्रिंक की तरह भी काम करता है। यह आपकी भूख को कम करता है और वज़न को कण्ट्रोल करता है।


स्किन को हेल्थी रखने में सहायक
यदि आप भी स्किन प्रॉब्लम्स से परेशान हैं और ग्लोइंग स्किन के लिए तरह तरह के कॉस्मेटिक्स उपयोग करके थक चुके हैं, तो आप रोजाना एक गिलास गर्म पानी पीना शुरू कर दें। इससे आपकी स्किन प्रॉब्लम फ्री हो जाएगी और चमकने लगेगी। इसके इलावा अगर स्किन पर रैशेज़ पड़ जाये या त्वचा सिकुड़ जाये तो रोज़ सुबह गुनगुना पानी पीएं। वो इसलिए क्योंकि गर्म पानी पीने से पिंपल्स और ब्लैक हैड्स की समस्या दूर होती है। इससे आपकी त्वचा के रोमछिद्र खुल जाएंगे और त्वचा खुलकर सांस ले सकेगी।


आंतरिक अंगों के लिए लाभकारी
इसके इलावा गर्म पानी का सेवन आपके शरीर के आन्तरिक अंगो के लिए भी लाभदायक होता है। इससे आपके शरीर की त्वचा की कोमलता बढ़ती है। साथ ही गुनगुना पानी पीने से शरीर के अंदरूनी अंगो में विषैले पदार्थों को बाहर निकालने की दर भी बढ़ जाती है। इससे आपका शरीर पहले के मुक़ाबले कईं अधिक योग्यता से काम करने लगता है।


बालों के लिए फायदेमंद

गर्म पानी का सेवन बालों और त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद है। इससे बाल चमकदार बनते हैं और यह उनकी ग्रोथ के लिए भी बहुत फायदेमंद है। दरअसल सिर की त्वचा सूखने पर बालों को सही पोषण नहीं मिल पाता। इसलिए यह आवश्यक है, कि सुबह उठकर गुनगुने पानी का सेवन किया जाये।


ब्लड सर्कुलेशन को सही रखने में सहायक

शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए खून का संचार पूरी बॉडी में सही तरह से होना बहुत जरूरी है। इसलिए गर्म पानी पीना बहुत फायदेमंद रहता है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि गु्र्दों के लिए ठंडा पानी हानिकारक हो सकता है। तो वही गुनगुना पानी पीने से गुर्दे ठीक रहते है। इसके साथ ही गुनगुना पानी शरीर में जमी हुई गंदगी को भी बाहर निकाल देता है। इसलिए आप भी गुनगुना पानी जरूर पीए और अपने शरीर को स्वस्थ बनाये।


निम्नलिखित दिक्कत या स्थिति में भी पानी पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिए।

  1. बुखार होने पर।
  2. ज्यादा वर्कआउट करने पर।
  3. अगर आप गर्म वातावरण में हैं।
  4. प्यास लगे या न लगे, बीच-बीच में पानी पीते रहें। इससे शरीर में पानी की कमी नहीं रहेगी।
  5. बाल झड़ने पर।
  6. टेंशन के दौरान।
  7. पथरी होने पर।
  8. स्किन पर पिंपल्स होने पर।
  9. स्किन पर फंगस, खुजली होने पर।
  10. यूरिन इन्फेक्शन होने पर।
  11. पानी की कमी होने पर।
  12. हैजा जैसी बीमारी के दौरान।

आयुर्वेद के अनुसार: आयुर्वेद के अनुसार हल्का गर्म पानी पीने से पित्त और कफ दोष नहीं होता और डायजेस्टिव सिस्टम सही रहता है। 10 मिनट पानी को उबालें और रख लें। प्यास लगने पर धीरे-धीरे पीते रहें। ऐसा करने से यह पता चलता है कि आप दिन में कितना पानी पीते हैं और कितने समय में पीते हैं। आप पानी उबालते समय उसमें अदरक का एक टुकड़ा भी डाल सकते हैं। इससे फायदा होगा।
उबालने के बाद ठंडा हुआ पानी कफ और पित्त को नहीं बढ़ाता, लेकिन एक दिन या उससे ज़्यादा हो जाने पर वही पानी नहीं पीना चाहिए, क्योंकि बासी हो जाने पर पानी में कुछ ऐसे जीवाणु विकसित हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालते हैं। बासी पानी वात, कफ और पित्त को बढ़ाता है।

क्यों नहीं पीना चाहिए खड़े होकर पानी
पानी! यह एक ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिसके बिना मानव जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए पानी को धरती का अमृत कहा गया हैं। पानी मानव शरीर के लिए अनिवार्य और आवश्यक तत्वों में से एक है। मानव शरीर पाँच तत्वों से निर्मित जीव है जिसमें 70% हिस्सा पानी से बना हुआ है। इसलिए 7-8 गिलास पानी का सेवन प्रतिदिन करना चाहिए। इससे पाचन तंत्र, बाल व त्वचा स्वस्थ रहते है। पानी शरीर से बेकार पदार्थ को बाहर निकालता है और खून को साफ रखने में मदद करता है। पीने का पानी स्वच्छ और ताजा हो, बासी पानी में कुछ ऐसे जीवाणु पैदा हो जाते है जिसे पीने से वात, कफ और पित्त बढ़ता है। आगे हम अपने लेख में यह भी बताएंगे खड़े होकर पानी पीने के क्या-क्या शारीरिक नुकसान है। लेकिन उससे पहले पानी की महत्वता को देखते हुए आइये, जानें पानी किस स्थिति में, कब और कैसे पिये।


शारीरिक दृष्टि से पानी पीने का सही समय क्या है?

  1. 2-3 गिलास पानी सुबह खाली पेट पीने से शरीर की आंतरिक ऊर्जा सक्रिय हो जाती है। सुबह खाली पेट पानी पीने की मात्रा आप अपने शरीर की क्षमतानुसार बढ़ा या घटा सकते है। लेकिन दो गिलास पानी पीने की कोशिश अवश्य करे।
  2. एक गिलास पानी स्नान के पश्चात पीने से ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।
  3. दो गिलास पानी भोजन के आधे घंटे पहले पीने से हाजमा दुरुस्त रहता है।
  4. आधा गिलास पानी सोने से ठीक पहले पीने से हार्ट अटैक से बचाता है।
  5. प्यास लगने पर घुट-घुट पानी कभी भी पिया जा सकता है। इससे पानी की कमी नहीं होगी। 

खड़े होकर पानी पीने के शारीरिक नुकसान - इस अनियमित जीवनशैली में आजकल किसी के पास स्वयं के लिए भी समय नहीं है। जिसका घातक परिणाम शरीर को भुगतना पड़ता है। आज अधिकांश लोग जल्दबाजी में खड़े होकर पानी का सेवन करते है जिसका गलत प्रभाव शरीर पर जरूर पड़ता है।

  1. पाचन तंत्र – खड़े होकर पानी पीने से यह आसानी से प्रवाह हो जाता है और एक बड़ी मात्रा में नीचे खाद्य नलिका के द्वारा निचले पेट की दीवार पर गिरता है। इससे पेट की दीवार और आसपास के अंगों को क्षति पहुँचती है। एक दो बार इस तरह से पानी पीने से ऐसा नहीं होता। लेकिन लंबे समय तक ऐसा होने से पाचन तंत्र, दिल और किडनी में समस्या की संभावना बढ़ जाती है।
  2. ऑर्थराइटिस – खड़े होकर पानी पीने की आदत से घुटनों पर दबाव पड़ता है और इस बीमारी की संभावना बढ़ जाती है। इस आदत से जोड़ों में हमेशा दर्द रहने लगता है। इसलिए पानी का सेवन बैठकर करें और आराम से धीरे-धीरे पिए।
  3. गठिया – खड़े होकर पानी पीने से शरीर के अन्य द्रव्य पदार्थों का संतुलन बिगड़ जाता है। जिससे हड्डियों के जोड़ वाले भागों में आवश्यक तरल पदार्थों की कमी होने लगती है और हड्डियां कमजोर होने लगती है। कमजोर हड्डियों के कारण जोड़ों में दर्द और गठिया जैसी समस्या पैदा हो जाती है। यह समस्या अन्य कई बीमारियों का भी कारण बनती है।
  4. किडनी – खड़े होकर पानी पीने के दौरान पानी तेजी से गुर्दे के माध्यम से होते हुए बिना ज्यादा छने गुजर जाता है। जिसके कारण खून में गंदगी जमा होने लगती है। इस गंदगी के कारण मूत्राशय, गुर्दे (किडनी) और दिल की बीमारियां होने की संभावना अधिक हो जाती हैं।
  5. पेट की समस्या – खड़े होकर पानी पीने से पानी की मात्रा शरीर में जरूरत से ज्यादा चली जाती है। शरीर में मौजूद वह पाचन रस काम करना बंद कर देता है, जिससे खाना पचता है। अधिक पानी की वजह से खाना देर से पचने लगता है और कई बार खाना पूरी तरह से डाइजेस्ट भी नहीं होता। जिसके परिणाम स्वरूप अपच, गैस, अल्सर आदि पेट की समस्या उत्पन्न हो जाती है। पानी हमेशा बैठकर ही पिए। कभी भी लेटकर या खड़े होकर पानी का सेवन ना करे।

अति करे क्षति, इस बात से सभी वाकिफ है। पानी अच्छी सेहत के लिए अनिवार्य है इसमें कोई मतभेद नहीं, लेकिन अनुचित तरीका और अनुचित मात्रा अच्छी सेहत को कब खराब कर दे पता भी नहीं चलता। जब भी प्यास लगे बैठकर पानी पीने का संकल्प ले। यह संकल्प आपकी सेहत को दुरुस्त बना के रखेगा। एक बात का विशेष ध्यान रखे, भोजन के पश्चात ठंडा पानी पीने से नुकसान होता है। दरअसल, गर्म खाने पर ठंडा पानी पीने से खाया हुआ ऑयली खाना जमने लगता है। जो धीरे-धीरे बाद में फैट में बदल जाता है। इससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसलिए भोजन के आधे घंटे पश्चात गर्म पानी पीने की सलाह दी जाती है। इस बात की पुष्टि हेल्थ विशेषज्ञों के द्वारा भी हुई है। स्वच्छ और ताजा पानी सेहत की लिहाज से दवा का काम करता है। अगर आप इसका सेवन सही तरीके से करते है तो यह आपको कई बीमारियों से बचा के रखेगा। इस लेख से आपको यह महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी की कभी भी खड़े होकर पानी का सेवन नहीं करना चाहिए। यह आदत शरीर की सेहत के लिए घातक है। आदत छोटी सी है लेकिन इसके परिणाम बहुत खतरनाक है। अगर आप किसी भी तरह की बीमारी से पीड़ित है तो उचित होगा आप अपने डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि कई ऐसी भी समस्या होती है जिसमें कुछ मामलों में कम पानी पीने की सलाह दी जाती है।



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प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व निवारक तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 (PNDT Act, 1994)



इस कानून की आवश्यकता क्यों हुई ?
यह सत्य है कि लिंग अनुपात में निरन्तर कमी के कारण या कानून बनाना जरूरी हो गया था, जिसका उद्देश्य है:
  • प्रसवधारण से पहले और बाद भ्रूण के लिंग की जाँच को रोकना।
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व निवारक तकनीक (लिंग चयन निषेध) का लिंग जाँच/निर्धारण के लिए दुरूपयोग प्रतिबन्धित करना।
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व निवारक तकनीक का सही ढंग से विधिपूर्वक प्रयोग करना।
 प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व निवारक तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 (PNDT Act, 1994)

इस कानून के अन्तर्गत अपराध क्या हैं ?
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व लिंग चयन जिसमें शामिल है, प्रयोग का तरीका, सलाह और कोई भी उपबन्ध जिससे यह सुनिश्चित होता हो कि लड़के के जन्म की सम्भावनाओं को बढ़ावा मिल रहा हो, जिसमें आयुर्वेदिक दवाईयां और अन्य कोई वैकल्पिक चिकित्सा और पूर्व गर्भधारण विधियां/प्रयोग जैसे कि एरिकशन विधि का प्रयोग, इस चिकित्सा के द्वारा लड़के के जन्म की सम्भावना का पता लगता है, शामिल है।
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व के तरीकों का दुरूपयोग चाहे किसी योग्य द्वारा लिंग निर्धारण और वैसे हालातों में इन तरीकों द्वारा किया गया हो जो कि इस अधिनियम के अन्तर्गत न आते हों।
  • जो व्यक्ति मानदेय पर कार्य कर रहा है और उसके पास अधिनियम में निर्धारित की गई योग्यता और अनुभव/प्रशिक्षण भी नहीं है उसे प्रसवधारणपूर्व का निर्धारण करना भी शामिल है।
  • प्रति या स्वयं पत्नी द्वारा, जहाँ तक कि उसको इस विधि का प्रयोग करने के लिए मजबूर न किया गया हो, के बारे में प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व की विधि के बारे में किसी महिला या पुरूष या किसी रिश्तेदार द्वारा लिंग निर्धारण के दुरूपयोग के बारे में बतलाना या उत्साहित करना।
  • किसी व्यक्ति द्वारा, जो कि प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व की तकनीक का प्रयोग कर रहा है, के द्वारा भ्रूण के लिंग के बारे में पत्नी या उसके पति या उसके रिश्तेदार को शब्दों द्वारा, इशारों द्वारा या किसी अन्य तरीके द्वारा बताना।
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व से पहले या बाद भ्रूण के लिंग में चयन की सुविधा के बारे में किसी प्रकार का इश्तहार या प्रकाशन और पत्र आदि निकालना। इस प्रकार का विज्ञापन चाहे वह किसी भी तरह का हो जैसे कि सूचना पत्र पोस्टर या अन्य कोई पत्र विज्ञापन, इन्टरनेट द्वारा या किसी अन्य इलेक्ट्रानिक प्रिन्ट मीडिया या प्रिन्ट के रूप में होर्डिंग, दीवार में छापना, इशारा, प्रकाश, ध्वनि, धुआं या गैस।
  • उन स्थानों का पंजीकरण न करना जहाँ पर प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व के प्रयोग का संचालन किया जा रहा है। जैसे कि जनन उत्पति सम्बन्धी समझौता केन्द्र (प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व, दोनों प्रकार के तरीके और प्रयोग के बारे में सलाह देना, जनन उत्पति प्रयोगशाला (प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व प्रयोग) जिसमें ऐसे वाहन भी शामिल हैं जो जनन उत्पति क्लीनिक के तौर पर प्रयोग किये जा रहे हैं।
  • ऐसे गैर पंजीकृत स्थानों जहाँ पर प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व के प्रयोग किये जा रहे हैं।
  • ऐसी मशीनों या उनके हिस्सों को किसी गैर पंजीकृत संस्था या ऐसे किसी चिकित्सा पेशेवर, जिनके द्वारा भ्रूण के लिंग का पता चलता हो, को बेचना।
  • चिकित्सा रिकार्ड (कानून के तहत फार्म डी, ई और एफ) के ब्यौरे का सही रख रखाव न रखना।
  • प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व प्रयोग करने वाले के द्वारा प्रसवपूर्व और प्रसवधारणपूर्व निवारण तकनीक (लिंग चयन निषेध) अधिनियम, 1994 (PNDT Act,1994) को उपलब्ध न करवाना।
  • इस कानून के अन्तर्गत प्रत्येक जुर्म संज्ञेय व गैर जमानती है और समझौता योग्य नहीं है।
  • अगर यह अपराध किये जा रहे हैं तो आँखें बन्द करके न बैठें और इनकी शिकायत करें।
भ्रूण हत्या से भविष्य में होने वाली घटनायें ?
  • पुरूषों के मुकाबले स्त्रियों के अनुपात में लगातार कमी।
  • स्त्रियों के विरूद्ध यौन अपराधों में वृद्धि।
  • बच्चों के प्रति यौन अपराधों में वृद्धि।
  • यौन शोषण के लिए स्त्रियों की देह व्यापार में वृद्धि।
  • स्त्रियों के विरूद्ध घरेलू और अन्य सभी तरह की हिंसा में वृद्धि।
  • स्त्रियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में कमी।
  • दुल्हन के मोलभाव और अन्य परिवर्तन जैसे सामाजिक, मातृक या परिवारिक रिश्तों की घटनाओं में बढ़ावा।
  • यह झूठ है कि जनसंख्या में स्त्रियों की कमी से समाज में स्त्रियों का रूतबा बढ़ेगा।
इस कानून के तहत क्या सुविधाएं हैं ?
यह कानून प्रसवपूर्व निवारक तकनीक केवल क्रोमोसोम्स की अनियमितता, जनन उत्पति बीमारी, हीमोग्लोबीन, यौन प्रक्रिया, जन्मजात अनियमितता/बीमारियाँ जो कि भ्रूण में इस कानून के तहत वर्णित की गई है, की जांच की अनुमति देता है। परन्तु प्रसवपूर्व निवारक तकनीक का प्रयोग इन अनियमितताओं को दूर करने के लिए केवल पंजीकृत स्थानों/शाखाओं (जिसमें वाहन भी सम्मिलित हैं) और केवल योग्य व्यक्ति द्वारा ही किया जायेगा। 
जब गर्भवती महिला या तो:-
  1. 35 वर्ष की उम्र से अधिक हो।
  2. दो या अधिक बार स्वैच्छिक तौर पर गर्भपात कराया हो।विकृतांग सृजन करने वाला जैसे औषधि, विकीरण, रसायनी, संक्रमण या शक्तिषाली घटना को अभिव्यक्त करना।
  3. जनन उत्पत्ति से सम्बन्धित बीमारी या ऐसी वंशगत बीमारी जिसमें मानसिक कमजोरी के लक्षण हों।
इस शर्त पर कि महिला कि अनुमति ली गई हो या इस कानून में वर्णित या अन्य किसी दशा में (जैसे अल्ट्रासांउंड का प्रयोग 23 प्रकार की दषाओं में करवाया जा सकता है) जो कि उक्त कानून के फार्म एफ में दर्शायें गये हैं जिसका कि सख्त तौर पर ब्यौरे का रख-रखाव जरूरी है।


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अभिभावक एवं वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007)



वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा आज समाज के लिए सर्वाधिक चिंता का विषय है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देष्य वरिष्ठ नागरिकों और अभिभावकों को समर्थता प्रदान करने वाली व्यवस्था की रचना करना है, जिससे वे एक विशेष ट्रिब्युनल (अधिकरण) के समक्ष निर्धारित 90 दिन की समय सीमा के अंदर भरण पोषण के अधिकार को सुलभता और शीघ्रता से प्राप्त कर सकें।
अभिभावक एवं वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007)
अभिभावक एवं वरिष्ठ नागरिकों के कल्याण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 2007 की मुख्य विशेषताएं
  • वे अभिभावक और वरिष्ठ नागरिक जो कि अपनी आय अथवा अपनी संपति के द्वारा होने वाली आय से अपना भरण पोषण करने में असमर्थ हैं, वे अपने वयस्क बच्चों अथवा संबंधियो से भरण पोषण प्राप्त करने के लिए आवेदन कर सकतें है। इस भरण पोषण में समुचित भोजन, आश्रय, वस्त्र एवं चिकित्सा सुविधाएं सम्मिलित हैं।
  • अभिभावकों में सगे और दत्तक माता-पिता और सौतेले माता और पिता सम्मिलित हैं, चाहे वे वरिष्ठ नागरिक हों या न हों।
  • प्रत्येक वरिष्ठ नागरिक जो कि 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का है, वह अपने संबंधियो से भी भरण पोषण की मांग कर सकता है जिनका उनकी संपति पर स्वामित्व है अथवा जो कि उनकी संपति के उतराधिकारी हो सकते हैं।
  • भरण पोषण के लिए आवेदन स्वयं वरिष्ठ नागरिकों के द्वारा किया जा सकता है या वे अन्य व्यक्ति को या किसी स्वेच्छिक संगठन को ऐसा करने के लिए अधिकृत कर सकते हैं।
  • यदि ट्रिब्युनल (अधिकरण) इस बात से संतुष्ट है कि बच्चों अथवा संबंधियों ने अपने अभिभावकों अथवा वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा की हैं अथवा उनकी देखभाल करने से इन्कार किया है तो ट्रिब्युनल (अधिकरण) उन्हें मासिक भरण पोषण, जो कि अधिकतम 10000 रू0 प्रतिमाह तक हो सकता है, देने का आदेष दे सकता है।
  • वरिष्ठ नागरिकों की उपेक्षा अथवा परित्याग एक संज्ञेय अपराध है जिसके लिए 5000 रू0 जुर्माना या तीन महीने की सजा या दोनो हो सकते है।
  • राज्य सरकारें प्रत्येक 150 परित्यक्त वरिष्ठ नागरिकों और अभिभावकों के लिए प्रत्येक जिले में कम से कम एक वृद्धाश्रम स्थापित करेंगी। इस आश्रमों 128 में वरिष्ठ नागरिकों को मूलभूत सुविधाएं जैसे भोजन, वस्त्र, और मनोरंजन की सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी।
  • सभी सरकारी अस्पतालों और उन अस्पतालों जिन्हें सरकार से सहायता प्राप्त होती है उनके जहां तक संभव हो वरिष्ठ नागरिकों को बिस्तर उपलब्ध करवाएं जाऐगें। चिकित्सालयों में वरिष्ठ नागरिकों के लिए विशेष पंक्तियों का प्रबंध किया जाएगा।


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अवैध देह व्यापार से संबंधी कानून (The Illegal prostitution Related Law)



अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम (Immoral Traffic Prevention Act) 1956

परिभाषा
वेश्यावृत्ति का अर्थ-किसी भी व्यक्ति का अर्थिक लाभ के लिये लैंगिक शोषण करने का वेश्यावृत्ति कहते हैं।
वेश्यागृह का अर्थ
किसी मकान, कमरे, वाहन या स्थान से या उसके किसी भाग से है, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति के लाभ के लिये किसी का लैंगिक शोषण या दुरूपयोग किया जाय या दो या दो से अधिक महिलाओं के द्वारा अपने आपसी लाभ के लिय वेश्यावृत्ति की जाती है।
अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य अपराध हैं
  1. कोई व्यक्ति जो वेश्यागृह को चलाता है, उसका प्रबंध करता है या उसके रखने में और प्रबंध में मदद करता है तो उसे 3 साल तक का कठोर करावास व 2000 रूपये का जुर्माना होगा। यदि वह व्यक्ति दुबारा इस अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसको कम से कम 2 साल व अधिक से अधिक 5 साल का कठोर कारावास व 2000 रूपये जुर्माना होगा।
  2. कोई व्यक्ति जो किसी मकान या स्थान का मालिक, किरायेदार, भारसाधक, एजेंट है उसे वेश्यागृह के लिये प्रयोग करता है या उसे यह जानकारी है कि ऐसे किसी स्थान या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के लिये प्रयोग में लाया जायेगा या वह अपनी इच्छा से ऐसे किसी स्थान या उसके किसी भाग को वेश्यागृह के रूप मे प्रयोग करने के लिएा भागीदारी देता है तो ऐसे व्यक्ति को 2 साल तक की जेल व 2000 रूपये का जुर्माना हो सकता है यदि वह दुबारा इस अपराध का दोषी पाया जाता है तो उसको 5 साल का कठोर कारावास व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
वेश्यावृत्ति के कमाई पर रहना
कोई भी 18 साल की उम्र से अधिक व्यक्ति अगर किसी वेश्या की कमाई पर रह रहा है तो ऐसे व्यक्ति को 2 साल की जेल या 1000 रूपये का जुर्माना हो सकता है या दोनों।
अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे या नाबलिग द्वारा की गई वेश्यावृत्ति की कमाई पर रहता है तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 7 साल व अधिक से अधिक 10 सला की जेल हो सकती है।
कोई भी व्यक्ति जो 18 साल से अधिक उम्र का है: 
  1. वेश्या के साथ उसके संगत में रहता है या
  2. वेश्या की गतिविधियों पर अपना अधिकार, निर्देष, या प्रभाव इस प्रकार डालता है जिससे यह मालूम होता है कि वह वेश्यावृत्ति मे सहायता, प्रोत्साहन, या मजबूर करता है या
  3. जो व्यक्ति दलाल का काम करता है तो मान कर चला जायेगा जब तक इसके विपरीत सिद्ध न हो जायें कि ऐसे व्यक्ति वेश्यावृत्ति के कमाई पर रह रहे हैं।
    वेश्यावृत्ति के लिये किसी व्यक्ति को लान, फुसलाना या लेने की चेष्टा करना
    1. किसी व्यक्ति को उसकी सहमति, या सहमति के बिना वेश्यावृत्ति के लिये लाता है लाने की कोशिश करता है या
    2. किसी व्यक्ति को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए फुसलाता है, ताकि वह उससे वेश्यावृत्ति करवा सके तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 3 साल व अधिक से अधिक 7 साल के कठोर कारावास व 2000 रूपये के जुर्माने के दंडित किया जा सकता है और यह अपराध किसी व्यक्ति की सहमति के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी व्यक्ति को 7 साल की जेल जो अधिकतक 14 साल तक की हो सकतीर है दंडित किया जा सकता है और अगर यह अपराध किसी बच्चे के विरूद्ध किया जाता है तो दोषी को कम से कम से 7 साल की जेल और उम्र कैद भी हो सकती है।
      वेश्यागृह में किसी व्यक्ति को रोकना
      1. वेश्यागृह में रोकता है
      2. किसी स्थान पर किसी व्यक्ति को किसी के साथ जो कि उसका पति या पत्नी नहीं है संभोग करने के लिये रोकना है तो ऐसे व्यक्ति को कम से कम 7 साल की जेल जो कि 10 साल या उम्र कैद तक हो सकती है और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
        अगर कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ वेश्यागृह में पाया जाता है तो वह दोषी तब माना जायेगा जब तक इसके विपरीत सिद्ध नहीं हो जाता।
        अगर बच्चे या 18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति वेश्यागृह में पाया जाता है और उसकी चिकित्सकीय जाँच के बाद यह सिद्ध होता है, कि उसका लैंगिक शोषण हुआ है तो यह माना जायेगा कि ऐसे व्यक्ति को वेश्यावृत्ति करवाने के लिये रखा गया है या उसका लैंगिक शोषण आर्थिक लाभ के लिये किया जा रहा है।
        अगर कोई व्यक्ति किसी महिला या लड़की का
        1. सामान जैसे गहने, कपड़े, पैसे या अन्य सम्पति आदि अपने पास रखता है। या
        2. उसको डराता है कि वह उसके विरूद्ध कोई कानूनी कार्यवाही शुरू करेगा अगर वह अपने साथ गहने, कपड़े, पैसे या अन्य सम्पत्ति जो कि ऐसे व्यक्ति द्वारा महिला या लड़की को उधार या आपूर्ति के रूप में या फिर ऐसे व्यक्ति के निर्देष में दी गई हो ले जायेगी। तो यह माना जायेगा कि ऐसे व्यक्ति ने महिला या लड़की को वेश्यागृह में या ऐसी जगह रोका है जहाँ वह महिला या लड़की को संभोग के लिये मजबूर कर सके।
          सार्वजनिक स्थानों या उसके आस-पास वेश्यावृत्ति करना
          यदि कोई व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है या करवाता है ऐसे स्थानों पर-
          1. जो राज्य सरकार ने चिन्हित किये हों, या
          2. जो कि 200 मीटर के अन्दर किसी सार्वजनिक पूजा स्थल, शिक्षाण संस्थान, छात्रावास, अस्पताल, परिचर्यागृह या ऐसा कोई भी सार्वजनिक स्थान जिसको पुलिस आयुक्त या मैजिस्ट्रेट द्वारा अधिसूचित किया गया हो - तो ऐसे व्यक्ति को 3 महीने तक का कारावास हो सकता है।
          कोई व्यक्ति यदि किसी बच्चे से ऐसा अपराध करवाता है तो उसको कम से कम 7 साल या अधिक से अधिक उम्र कैद या 10 साल तक की जेल हो सकती है तथा जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।

          अगर कोई व्यक्ति जो -
          ऐसे सार्वजनिक स्थानों का प्रबंधक है वेश्याओं को व्यापार करने व वहाँ रूकने देता है।
          1. कोई किरायेदार, दखलदार, या देखभाल करने वाला व्यक्ति वेश्यावृत्ति के लिये ऐसे स्थानों के प्रयोग की अनुमति देता है।
          2. किसी स्थान का मालिक, ऐजेंट ऐसे स्थानों को वेश्यावृत्ति के लिये किराये पर देता है तो -
            1. वह तीन महीने की कारावास और 200 रूपये के जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
            2. यदि वह व्यक्ति फिर ऐसे अपराध का दोषी पाया जाता है, तो वह 6 महीने की जेल और 200 रूपये के जुर्माने से द.डित किया जा सकता है।
            3. अगर ऐसा अपराध किसी होटल में किया जाता है तो उस होटल का लाइसेंस रद्द कर दिया जायेगा।
          वेश्यावृत्ति के लिये किसी को फुसलाना या याचना करना
          अगर कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर किसी व्यक्ति को किसी घर या मकान से इशारे, आवाज अपने आप को दिखाकर किसी खिड़की या बालकनी से वेश्यावृत्ति के लिये आर्कषित, फुसलाता या विनती करता है या छेड़छाड़ आवारागर्दी या इस प्रकार का कार्य करता है, जिससे वहाँ पर रहने वाले या आने जाने वालों को बाधा या परेशानी होती है तो उसको 6 महीने की जेल और 500 के जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
          अगर वह फिर से यह अपराध करता है तो उसके 1 साल की जेल और 500 रू0 जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
          अगर यह अपराध कोई पुरूष करता है तो वह कम से कम 7 दिन तथा अधिक से अधिक 3 महीने की जेल से दंडित किया जा सकता है।

          अपने संरक्षण में रहने वाल व्यक्ति को फुसलाना
          यदि कोई व्यक्ति अपने संरक्षण, देखभाल में रहने वाल किसी व्यक्ति को वेश्यावृत्ति के लिए फुसलाता है, उकसाता है या सहायता करता है तो वह कम से कम 7 साल की जेल जो कि उम्र की कैद या 10 साल तक की हो सकती है जेल व जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

          सुधार संस्था में भेजने का आदेश
          सार्वजनिक स्थानों, या उनके आस-पास वेश्यावृत्ति करना या वेश्यावृत्ति के लिये किसी को फुसलाना या याचना करने के संबंध में दोषी महिला को उसकी शारीरिक या मानसिक स्थिति के आधार पर न्यायालय उसको सुधार संस्था में भी भेजने का आदेश दे सकता है। सुधार संस्था में कम से कम दो साल व अधिक से अधिक पांच साल के लिये भेजा जा सकता है।

          विशेष पुलिस अधिकारी एवं सलाहकार बाड़ी
          राज्य सरकार इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों के संबंध में विशेष पुलिस अधिकारियों को नियुक्ति करेगी। सरकार कुछ महिला सहायक पुलिस अधिकारियों की भी नियुक्ति कर सकती है।

          इस अधिनियम के अंदर दिये गये सभी अपराध संज्ञेय हैं:
          इस अधिनियम के अन्दर दिये गये अपराध के दोषी व्यक्ति को विशेष पुलिस अधिकारी, या उसके निर्देष से बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।

          तलाशी लेना
          विशेष पुलिस अधिकारी या दुव्र्यापार पुलिस अधिकारी बिना वारंट के किसी स्थान की तलाशी तब ले सकते हैं, जब उनके साथ उस स्थान के दो या दो से अधिक सम्मानित व्यक्तियों जिसमें कम से कम एक महिला भी साथ हो।
          वहाँ पर मिलने वाले व्यक्ति को मैजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जायेगा। ऐसे व्यक्ति की आयु, लैंगिक शोषण, यौन संबंधी बीमारियों की जानकारी के लिये चिकित्सी जाँच करायी जायेगी।
          ऐसे स्थानों पर मिलने वाल महिलायें या लड़कियों से, महिला पुलिस अधिकारी ही पूछताछ कर सकती है।

          वेश्यागृह से छुडाना
          अगर मैजिस्ट्रेट को किसी पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा नियुक्ति किसी व्यक्ति से सूचना मिलती है कि कोई व्यक्ति वेश्यावृत्ति कर रहा है या करवा रहा है तो वह पुलिस अधिकारी (जो इंस्पेक्टर के श्रेणी से उच्च का होगा) उस स्थान की तलाशी लेने और वहाँ मिलने वाले लोगों को उसके सामने पेश करने को कह सकता है।
          वेश्यागृह को बन्द करना
          मजिस्ट्रेटको पुलिस से या किसी अन्य व्यक्ति से सूचना मिलती है, कि कोई घर, मकान, स्थान आदि सार्वजनिक स्थान के 200 मीटर के भीतर वेश्यावृत्ति के लिये प्रयोग किया जा रहा है तो वह उस जगह के मालिक, किरायेदार, एजेंट या जो उस स्थान की देखभाल कर रहा है उसे नोटिस देगा कि वह 7 दिन के अन्दर जवाब दें कि क्यों न स्थान को अनैतिक काम के लिये प्रयोग किये जाने वाला घोषित किया जाये।
          संबंधित पक्ष को सुनने के बाद यदि यह लगता है कि वहाँ पर वेश्यावृत्ति हो रही है, तो मजिस्टेªट 7 दिन के अंदर उसको खाली करने या उसके अनुमति के बिना किराये पर न देने का आदेश दे सकता है।

          संरक्षण गृह में रखने के लिये आवेदन
          कोई व्यक्ति जो वेश्यावृत्ति करता है या जिससे वेश्यावृत्ति कराई जाती है वह मैजिस्ट्रेट से संरक्षण गृह में रखने या न्यायालय से सुरक्षा के लिये आवेदन कर सकता है।

          वेश्याओं को किसी स्थान से हटाना
          मैजिस्ट्रेट को सूचना मिलने पर यदि यह लगता है कि उसके क्षेत्राधिकार में कोई वेश्या रह रही है, तो वह उसको वहाँ से हटने या फिर उस स्थान पर न आने का आदेश दे सकता है।
          विशेष न्यायालयों की स्थापना
          इस अधिनियम के अंतर्गत किये गये अपराधों के लिये राज्य सरकार व केन्द्र सरकार विशेष न्यायालय की स्थापना भी कर सकती है। भारतीय द.ड संहिता के अंतर्गत भी महिलाओं एवं बच्चो को बेचने व खरीदने पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रावधान बनाये गये हैं।
          18 साल के कम उम्र के लड़की को गैर कानूनी संभोग के लिये फुसलाना (धारा-366-क)
          यदि कोई व्यक्ति किसी 18 से कम उम्र की लड़की को फुसलाता है किसी स्थान से जाने को या कोई कार्य करने को यह जानते हुये कि उसके साथ अन्य व्यक्ति द्वारा गैर कानूनी संभोग किया जायेगा या उसके लिये मजबूर किया जायेगा तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल व जुर्माने से दंडित किया जायेगा।
          महिला की लज्जाशीलता भंग करने के आशय से आपराधिक बल का प्रयोग करना या हमला (धारा - 354)
          जो कोई किसी स्त्री की लज्जा भंग करने के आशय से या यह संभाव्य जानते हुए कि एतद् द्वारा वह उसकी लज्जा भंग करेगा, उस स्त्री पर हमला करेगा या आपराधिक बल का प्रयोग करेगा वह 2 वर्ष के कारावास और जुर्माने से और दोनों से दंडित किया जा सकता है।
          विदेश से लड़की का आयात करना (धारा - 366 -ख)
          अगर कोई व्यक्ति किसी 21 साल से कम उम्र की लड़की को विदेश या जम्मू-कश्मीर से लाता है, यह जानते हुये कि उसके साथ गैर कानूनी संभोग किया जायेगा या उसके लिये उसे मजबूर किया जायेगा तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल ओर जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।

          वेश्यावृत्ति आदि के लिय बच्चों को बेचना (धारा - 372)

          अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे को वेश्यावृत्ति या गैरकानूनी संभोग या किसी कानून के विरूद्ध ओर दुराचारी काम में लाये जाने या उपयोग किये जाने के लिये उसको बेचता है या भाड़े पर देता है, तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल ओर जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
          यदि कोई व्यक्ति किसी 18 साल की कम उम्र की लड़की को किसी वेश्या या किसी व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेचता है, भाडे़ पर देता है तो यह माना जायेगा कि उस व्यक्ति ने लड़की की वेश्यावृत्ति के लिये बेचा है, जब तक के लिये इसके विपरित साबित न हो जाये।
          वेश्यावृत्ति आदि के लिये बच्चों को खरीदना (धारा - 373)
          अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चों को वेश्यावृत्ति या गैर कानूनी संभोग, या किसी कानून के विरूद्ध और दुराचारिक काम में लाये जाने या उपयोग किये जाने के लिये उसको खरीदता है या भाडे़ पर देता है तो ऐसे व्यक्ति को 10 साल तक की जेल और जुर्माने से भी दंडित किया जा सकता है।
          न्यायालों के देह व्यापार से संबंधित निर्णय:
          1. उच्चतम न्यायालय ने गौरव जैन बनाम भारत संघ में कहा है कि वेश्यावृत्ति एक अपराध है। लेकिन जो महिलाओं देह व्यापार करती है उनको दोषी कम और पीडि़त ज्यादा माना जायेगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि ऐसी परिस्थितियों में रहने वाली महिलाओं एवं उसके बच्चों को पढ़ायी के अवसर और आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिये तथा उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिये उनकी शादियाँ भी करवानी चाहिये जिससे बाल देह व्यापार में कमी हो सके।
          2. उच्चतम न्यायालय ने प.न. कृष्णलाल बनाम केरल राज्य में कहा कि राज्य के पास यह शक्ति है कि वह कोई भी व्यापार या व्यवसाय जो गैर कानूनी, अनैतिक या समाज के लिये हानिकारक है उस पर रोक लगा सकती है।
            बलात्संग/बलात्कार (धारा - 376)
            कोई पुरूष एतस्मिसन् पश्चात् अपवादित दशा के सिवाय किसी स्त्री के साथ निम्नलिखित छह भाँति की परिस्थितियों में से किसी परिस्थिति में मैथुन करता है, वह पुरूष बलात्संग/बलात्कार करता है यहा कहा जाता है:-
            1. उस स्त्री की इच्छा के विरूद्ध।
            2. उस स्त्री की की सम्मति कि बिना।
            3. तीसरा - उस स्त्री की सम्मति, उसे या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिससे वह हितबद्ध है, मृत्यु या उपहित के भय में डालकर अभिप्राप्त की गई है।
            4. उस स्त्री की सम्मति से जबकि वह पुरूष यह जानता है कि वह उस स्त्री का पति नहीं है और उस स्त्री ने सम्मति इसलिए दी है कि वह ऐसा पुरूष है जिससे वह विधिपूर्वक विवाहित है या विवाहित होने का विश्वस करती है।
            5. उस स्त्री की सम्मति से, जबकि ऐसी सम्मति देने के समय वह विकृतचित या मतता के कारण या उस पुरूष द्वारा व्यक्तिगत रूप में या किसी अन्य व्यक्ति के माध्यम से कोई सम्मति देती है, प्रकृति और परिणामों को समझने में असमर्थ है।
            6. उस स्त्री की सम्पति से या बिना सम्मति के, जबकि वह सोलह वर्ष से कम आयु की है।
            स्पष्टीकरण : बलात्संग के अपराध के लिए आवश्यक मैथुन गठित करने के लिए प्रवेशन पर्याप्त है।
            अपवाद : पुरूष का अपनी पत्नी के साथ मैथुन बलात्संग नहीं है कि जबकि पत्नी पन्द्रह वर्ष से कम आयु की नहीं है।
              अप्राकृतिक इंद्रीय भोग (धारा - 377)
              जो कोई किसी पुरूष, स्त्री या जीव जन्तु के साथ प्रकृति की व्यवस्था के विरूद्ध स्वेच्छया इन्द्रीय भोग करेगा, वह आजीवन कारावास से या दोनों में से किसी भांति के कारावास जिसकी अवधि 10 वर्ष तक की हो सकेगी और जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              मानहानि (धारा- 499/500)
              जो कोई बोले गये या पढ़े जाने के लिये आषयित शब्दों द्वारा या संकेत द्वारा या दृष्य रूपणों द्वारा किसी व्यक्ति के बारे में कोई लांछन इस आशय से लगता है या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति को अपहानि की जाये या यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए लगाता या प्रकाशित करता है कि ऐसे लांछन से ऐसे व्यक्ति की ख्याति की अपहानि होगी, अपवादित दशाओ को छोड़कर मानहानि करता है तो वह 2 वर्ष तक के साधारण कारावास या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              शब्द, अंग विक्षेप या कार्य जो किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के लिए आशयित हैं (धारा - 509)
              जो कोई किसी स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहेगा, कोई ध्वनि या अंग विक्षेप करेगा या कोई वस्तु प्रदर्षित करेगा, इस आशय से की ऐसी स्त्री द्वारा ऐसा शब्द या ध्वनि सुनी जाये या ऐसा अंग विक्षेप या वस्तु देखी जाये अथवा ऐसी स्त्री की एकंातता का अतिक्रमण करेगा, वह सादा कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
              भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


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              हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956



              समाजिक सुधार और हिन्दू महिलाओं को पूर्ण अधिकार दिलाने की दिषा में 9 सितम्बर, 2005 का दिन एक विषेष महत्व रखेगा। इस दिन से एक अधिनियम जिसका नाम है ‘‘हिन्दु उतराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005’’ अस्तित्व में आ गया है। जिसके अन्तर्गत हिन्दू महिलाओं को पुरूषों के बराबर पूर्ण अधिकार दिया गया है। क्योंकि यह नया अधिनियम हिन्दू समाज की अभी तक की प्रचलित मान्यताओं के एकदम विपरीत है और इससे हिन्दू महिलाओं को सम्पति में नए अधिकार प्राप्त हुए हैं इसलिए इस संशोधन के द्वारा हिन्दू महिलओं के अधिकारों मे जो परिवर्तन किए गए है, उसका वर्णन इस लेख में नीचे किया जा रहा है। 
              हिन्दू महिला संयुक्त परिवार में जन्म से ही सहभागी 
              इस नये संशोधन कानून से हिन्दू उतराधिकार कानून 1956 की धारा-6 के स्थान पर एक नई धारा स्थानापन्न की गई है, जिसके अनुसार 9 सितम्बर 2005 से हर हिन्दू पुत्री जन्म से ही संयुक्त परिवार में पुत्र के बराबर भागीदार गिनी जायेगी और उसे संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र के बराबर अधिकार रहेगा। इसके साथ-साथ पुत्र के बराबर ही उस सम्पति में जो देनदारियाँ होगी। उनमें भी वह सहभागिनी होगी। लेकिन यदि किसी संयुक्त परिवार का विभाजन 20 दिसम्बर 2004 से पहले हो गया है, अर्थात जो पुराने हिन्दू कानून के अन्तर्गत हो गया है, जिसके अन्तर्गत पुत्रियों को संयुक्त परिवार की सम्पति में कोई अधिकार नहीं था तो ऐसा विभाजन रदद नहीं किया जाएगा। परन्तु 9 सितम्बर, 2005 से हिन्दू परिवार के विभाजन में जो हक पुत्र को प्राप्त होगा, वही हक पुत्री को भी प्राप्त रहेगा और उसे उतना ही हिस्सा दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाएगा जैसे कि पुत्र को दिया जाता है। इसी प्रकार यदि किसी पुत्री का देहान्त पहले हो जाता है जो संयुक्त परिवार के विभाजन के समय जीवित थी और जिस प्रकार दिंवगत पुत्र की सम्पति उसके पुत्रों और उसके उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है, उसी प्रकार दिवगंत पुत्री के उतराधिकारीयों में भी वह सम्पति बांटी जाएगी।
              संशोधन के पश्चात निम्न बातें प्रमुख हैं: 
              1. वसीयत का अधिकार - हिन्दू महिला को संयुक्त परिवार की सम्पति में अपने हिस्से को अपनी वसीयत के अनुसार बांटने का पूरा हक रहेगा। इस प्रकार एक हिन्दू महिला की मृत्यु के समय संयुक्त परिवार की सम्पति का विभाजन उसी प्रकार होगा जैसे वह मृत्यु के दिन जीवित थी और उसका जो भी हिस्सा उस समय बनता था वही उसके उतराधिकारीयों में विभाजित होगा जैसे कि पुत्र का होता है।
              2. बुजुर्गो के ऋण हेतू हिन्दू जिम्मेदार नहीं - अब नये कानून के पश्चात कोई भी न्यायालय किसी भी पुत्र, पौत्र या प्रपौत्र के विरूद्ध कोई फैसला नहीं करेगी, केवल इसलिए कि ऐसा पुत्र आदि का एक पवित्र कर्तव्य था, कि वह अपने पिता के ऋणों को चुकाये। यदि कोई ऋण 9 सितम्बर 2005 से पूर्व पिता आदि ने लिया है तो पूर्व कानून के अनुसार कोई भी लेनदार पुत्र, या प्रपौत्र के खिलाफ कोर्ट में मुकद्दमा कर सकता है, जैसे कि यह नया संशोधन कानून पास ही नहीं हुआ हो।
              3. हिन्दु महिलाओं को मकान विभाजन का अधिकार - अब हिन्दू महिला संयुक्त परिवार के रिहायषी मकान का विभाजन मांग सकती है।
              4. कृषि भूमि का विभाजन हिन्दू महिला द्वारा संभव - हिन्दू उतराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 4(2) समाप्त कर दी गई है, जिसका असर यह होगा कि 9 सितम्बर 2005 से यदि हिन्दू महिलाओं को कृषि भूमि में उत्तराधिकार के रूप में कोई हक मिलेगा तो उसे कृषि भूमि के विभाजन का पूरा हक रहेगा, जैसे कि एक पुत्र को रहता है।
              5. हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह पर उत्तराधिकार की असुविधा नहीं - इस नये संशोधन अधिनियम के अनुसार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 की धारा 24 को समाप्त कर दिया गया है, जिससे पूर्व दिवंगत पुत्र की विधवा स्त्री आदि या पूर्व दिवंगत पुत्र के दिवंगत पुत्र या भाई की विधवा को पुनर्विवाह पर सम्पति उत्ताधिकार का अधिकार नहीं मिलता था। अब ऐसी विधवा को उसके पुनर्विवाह के पश्चात भी अपने पिता या संयुक्त परिवार की सम्पति में पुत्र केबराबर हिस्सा प्राप्त करने का पूरा अधिकार रहेगा।
              भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


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              भक्ति आन्दोलन में कबीर का योगदान



              भक्ति आन्दोलन वह आंदोलन है जिसमें भागवत धर्म के प्रचार और प्रसार के परिणामस्वरूप भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। भक्ति आन्दोलन ने जन सामान्य को सम्मान पूर्वक जीने का रास्ता दिखाया, आत्मगौरव का भाव जगाया और जीवन के प्रति सकारात्मक आस्था पूर्ण दृष्टिकोण विकसित किया। देश की अखण्डता और समस्त देशवासियों के कल्याण तथा मानव के समान अधिकारों को अभिव्यक्ति दी। भक्ति आन्दोलन के सम्बन्ध में शिव कुमार मिश्र लिखते हैं - "यह भक्ति आन्दोलन, सच पूछा जाए तो अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों की अनिवार्य देन था। वह युग जीवन की ऐतिहासिक माँग बनकर आया। इस तथ्य का अनुमान महज इस बात से लगाया जा सकता है कि इससे न केवल अपने समय की राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक जड़ता को तोड़ा, चली आती हुई सांस्कृतिक जीवन की धारा के साथ विजेताओं की नई संस्कृति को घुलाते-मिलाते हुए पहली बार जाति, धर्म, वर्ग, वर्ण आदि से निरपेक्ष एक मानव धर्म तथा एक मानव संस्कृति की परिकल्पना सामने रखी। इसने शताब्दियों से कुंठित और अपमानित देश के करोड़ों-करोड़ साधारण जनों के लिए उनकी सामाजिक मुक्ति तथा आध्यात्मिकता के द्वार भी उन्मुक्त कर दिए, समाज तथा धर्म के ठेकेदारों ने जिन्हें उनके लिए कब का बन्द कर रखा था। इस आधार पर यदि यह कहा जाए कि एक स्तर पर यह भक्ति-आन्दोलन रूढि़ग्रस्त धर्म तथा उसके द्वारा अभिशप्त एक अनैतिक और अमानवीय समाज व्यवस्था के प्रति सामान्य जन के सात्विक शेष तथा उसकी दुर्दम जिजीविषा की भावात्मक अभिव्यक्ति था, तो अतिशयोक्ति न होगी।"

              Dhan Dhan Jai Satguru Kabir Ji Maharaj

              इन परिस्थितियों में कबीर के आविर्भाव को रेखांकित करते हुए शिव कुमार मिश्र लिखते हैंः  "समझौते का रास्ता छोड़कर विद्रोह का रास्ता अपनाते हुए निर्गुण भक्ति की जो धारा भक्ति-आन्दोलन की स्रोतस्वनी से फूटी कबीर उसकी सबसे ऊँची लहर के साथ सामने आए। समझौता उनकी प्रकृति में नहीं था। विद्रोह और क्रांति की ज्वाला उनकी रग-रग में व्याप्त थी सिर पर कफन बाँधकर, अपना घर फूंककर वे अलख जगाने निकले थे। उन्हें समझौता परस्तों की नहीं, अपना घर फूंक कर साथ चलने वालों की जरूरत थी वे लुकाठी लिए सरे बाजार गुहार लगा रहे थे।"

               कबीरा खड़ा बाजार में लिए लुकाठी हाथ।
              जो घर जारे आपना चले हमारे साथ।।

              भक्ति आन्दोलन के व्यापक पटल पर कबीर का मूल्यांकन और उनका योगदान रेखांकित करने के लिए हमें कबीर को अन्दर से देखना-परखना होगा, क्योंकि कबीर ऊपर से एक नजर में जो दिखाते हैं उससे कहीं अधिक वो हैं। कबीर को केवल दार्शनिक, निर्गुण ब्रह्म के प्रतिपादक, समाज सुधारक, हिन्दू-मुस्लिम एकता और समन्वय के पुरोधा तथा एक संत के रूप में देखना कबीर के साथ अन्याय करना होगा।

              कबीर का मूल्यांकन उन "मूल्यों" के आधार पर करना चाहिए जिन्हें विकसित और पल्लवित करने के लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया। उस वैचारिक पृष्ठभूमि के आधार पर करना चाहिए जिसके आधार वे अकेले इतना जबर्दस्त विद्रोह कर सके। तमाम सामन्तीय जीवन प्रणाली और पुरोहिती दंभ क े विरुद्ध जन सामान्य की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान की घोषणा कर सके। सदियों से अनुप्राणित उस कठोर जमीन को तोड़ने और एक नई उर्वर जमीन को बनाने के प्रयास के आधार पर करना चाहिए जिसे उन्होंने अपने रक्त के आँसुओ से सींचा।

              सोई आँसू साजणां, सोई लोक बिडाहिं।
              जे लोइण लोई चुवैं, तो जाणो हेत हियाहिं।।

              कबीर का मूल्यांकन उनकी इस करुणा के आधार पर करना चाहिए जो समस्त मानवता के प्रति थी। चुपचाप खा-पीकर चैन से सोने वाले इस संसार की सदियों की इस नींद पर, इस जड़ता पर अन्याय को चुपचाप सहने की आदत पर और भविष्य के प्रति उदासीनता की सोच पर कबीर रात-रात भर जागते हैं और आँसू बहाते हैं।

              सुखिया सब संसार है, खावे औ सोवे।
              दुखिया दास कबीर है, जागै औ रोवे।।

              यहाँ कबीर जाग रहे हैं और रो रहे हैं शेष सब खा रहे हैं और सो रहे हैं। कबीर का यह जागना और रोना बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में कबीर देश के सांस्कृतिक नवजागरण के अग्रदूत थे। डॉ. रामविलास शर्मा ने भक्ति युग को प्रथम नव-जागरण की संज्ञा दी है। कबीर इस नवजागरण के पुरोधा थे। कबीर ने अपने समय में जिस युग सत्य का साक्षात्कार किया था उसे देखकर कबीर जैसा संवेदनशील निष्ठावान व्यक्ति रो ही सकता है। कबीर के विद्रोही होने का एक कारण यह रुदन भी है।

              कबीर अहंकार से मुक्ति में मानव-जीवन की बृहत्तर सार्थकता देखते हैं। अहं से मुक्ति उनकी प्रखर विचारधारा से जुड़ा प्रश्न है, चूँकि मध्यकालीन समाज अहं परिचालित था। वर्ग-भेद आधारित जहाँ अमीर-गरीब का अंतर है, धर्म और जाति का अंतर है। सामन्तीय-पुरोहितवाद ने अपने को सुरक्षित करने के लिए मानव-मानव के बीच कई दीवारें खड़ी कीं। इसलिए कबीर कहते हैं- अपने से बाहर निकलो, सीमाओं का अतिक्रमण कर व्यापक समाज में पहुंचा जहाँ उच्चतर मानव मूल्यों की प्रतिष्ठा है:

              हद चले सो मानवा, बेहद चले सो साध।
              हद बेहद दोऊ तजे, ताकर मता अगाध।।

              सहजता और सहिष्णुता जैसे मानवीय मूल्य अहं के साथ नहीं चल सकते। इन मूल्यों के अभाव में न ईश्वर मिल सकता और न सांसारिक सुख। कबीर के यहाँ "राम" ईश्वरत्व की अपेक्षा उच्चतर मूल्य-समुच्च के प्रतीक हैं। कबीर ‘राम’यानि मानवीय मूल्यों को पाने का जो रास्ता बताते हैं वह है प्रेम का। कबीर के यहाँ प्रेम भी एक जीवन मूल्य के रूप में प्रतिपादित है:

              पोथी पढि़ जग मुआ, पण्डित भया न कोय।
              ढाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पण्डित होय।।

              इस प्रेम की अर्थ व्यंजना गहरी है और इसका आधार ईमानदार संवेदन है जो आचार-विचार की मत्रैी के लिए आवश्यक है। कबीर प्रेम को कई तरह से परिभाषित करते हैं:

              कबीर यह घर प्रेम का, खाला का घर नाहिं।
              सीस उतारे भुईं धरे, सो घर पैठे आहिं।।


              प्रेम के घर में बैठने के लिए जो शर्त है वह प्रेम को उस जीवन मूल्य के रूप में प्रतिष्ठित करती है जिसके बिना जीवन चल नहीं सकता। सीस काटकर जमीन पर रखने की क्षमता हो तो प्रेम को पा सकते हो।

              प्रेम न खेतो नीपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
              राजा-परजा जिस रुचै, सिर दे सौ ले जाय।।

              प्रेम के मार्ग में सम्पूर्ण समर्पण की बात कबीर बार-बार करते हैं, यह बात ध्यान देने लायक है। सम्पूर्ण भक्ति काव्य में ही नहीं हिन्दी साहित्य में बहुत कम कविताओं में प्रेम के लिए सिर काट कर रखने की शर्त मिलेगी। भक्ति काव्य में अन्य कवियों ने प्रेम में प्रिय के प्रति समर्पण की बात तो चित्रित की है, परन्तु प्रेम के लिए दुर्दम शर्त सिर्फ कबीर ही रख सकते थे। इसका कारण था यहाँ यह प्रेम व्यक्तिगत भावना या किसी एक के प्रति तरल भावनात्मक अनुभूति मात्र नहीं है। यहाँ तो वह एक ऐसी विचारधारा है, एक ऐसा दृष्टिकोण है, एक ऐसा सूत्र है जिसके आधार पर ही मानव-मानव कहा जा सकता है। आपस में मनुष्य सत्य को लेकर जी सकता है। कबीर ने एक ऐसे देश की कल्पना की जहां मनुष्य मात्र समानता के सिद्धांत पर जिये जहाँ कोई ऊंच-नीच, भेदभाव कोई विषमता और विश्रृंखलतायें न होंः

              अवधू, बेगम देश हमारा
              राजा रंक फकीर-बादशाह, सबसे कहौं पुकारा।
              जो तुम चाहो परम पद को, बसिहों देस हमारा।।

              कबीर का यह आध्यात्मिक देश उच्चतम मानव मूल्यों का देश है। सामाजिक स्तर पर जहाँ व्यक्ति का सामाजिक चेतना में पर्यवसान होना ही मानवीय मूल्यों का प्रतीक है।

              व्यक्ति के माध्यम से कबीर ने कुछ बड़ी सामाजिक-सांस्कृतिक चिंताएँ कीं और इस दृष्टि से वे अपनी अनगढ़ता में भी कुछ मूल्य स्थापनाएँ कर सके, जिसे हम उनका विशिष्ट योगदान कह सकते हैं। कबीर भक्ति काव्य की उस परम्परा के सबसे प्रखर स्वर हैं, जिसका आरंभ सिद्ध-नाथ साहित्य से हुआ। साधारण सामान्य वर्ग से आए इन कवियों ने अपने समय-समाज के प्रति तीव्र असंतोष व्यक्त किया और उन्होंने सामाजिक संस्कृति पर बल देते हुए, मध्यकाल के लिए एक नए मानववादी विकल्प का संकेत दिया।

              कबीर का सीधा आग्रह सरल जीवन पर है। सारे आडम्बर ताम-झाम से मुक्त, सामंती-पुरोहितवादी अलंकरण का निषेध। उन्होंने उन छोटी जातियों को विशेष रूप से सम्बोधित किया जिनकी कोई सामाजिक, आर्थिक पहचान नहीं थी। उन्होंने वे सामान्य विषय चुने जो मध्यकाल में उनके समक्ष मौजूद थे। वे मूलभूत प्रश्न थे - जातिवाद, पुरोहितवाद, आडम्बर, हर प्रकार का भ्रष्टाचार और शोषण-उत्पीड़न और सबसे महत्वपूर्ण जन सामान्य की प्रतिष्ठा और आत्म-सम्मान। इस प्रकार कबीर का यथार्थ ऊपर-ऊपर नहीं तैरता वे प्रश्नों की गहराई में उतरते हैं और एक संवेदनशील विचारक के रूप में सामने आते हैं।

              समय का यथार्थ महत्वपूर्ण रचना की अनिवार्यता है कबीर अपने युग सत्य से सबसे अधिक गहराई से जुड़े प्रतीत होते हैं। यह भोगा हुआ यथार्थ है जिसे वे अपनी विद्रोही वाणी में अभिव्यक्त करते हैं। उनका सर्वाधिक आक्रोश सामंतवाद में नए पनपे सम्प्रदायवाद, वर्ग-विभेद और दो मँहुेपन के प्रति व्यक्त हुआ है।

              कबीर मानवीय संवेदना के प्रत्येक स्पंदन से परिचित थे। पण्डितों, मुल्लाओं और अछूतों के कर्मकाण्ड और पाखण्ड उनके लिए ‘आँखों देखी’ प्रमाण थे। पहले से चले आ रहे बाह्याचारों से सामाजिक जड़ता का विकास हो रहा था। इ सीलिए मनुष्य को मनुष्य समझने और उसे संवेद्य बनाने की सार्थक चेष्टा कबीर का सबसे बड़ा योगदान है।

              यह भी पढ़े - कबीर दास जी का परिचय एवं उनके काव्य की विशेषताएँ



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