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मदरसों में तिरंगा फहराना जरूरी - इलाहाबाद उच्च न्यायालय
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उत्तर प्रदेश सरकार को तगड़ा झटका पुलिस उपनिरीक्षक व प्लाटून कमांडर भर्ती 2011 रद्द
- यह भर्ती प्रकिया मई 2011 में बसपा सरकार के कार्यकाल में प्रारम्भ हुई थी! प्रारम्भिक लिखित परीक्षा से एक माह पूर्व भर्ती बोर्ड ने परीक्षा के लिए अनुदेश जारी किये, जिसके अनुसार हर विषय में40% व कुल 50% अंक लाने वाले अभ्यार्थी ही सफल घोषित किये जायेंगे, जिसके आधार पर 11 दिसम्बर 2011 को प्रारम्भिक परीक्षा सम्पन्न हुई। प्रारम्भिक लिखित परीक्षा का परिणाम 1 जनवरी2013 को घोषित किया गया।
- प्रारम्भिक लिखित परीक्षा के विरूद्ध हर विषय में 40% अंक लाने में विफल परन्तु कुल50% अंक लाने वाले अभ्यार्थियों ने माननीय उच्च न्यायालय उत्तर प्रदेश की लखनऊ खण्डपीठ में याचिका संख्या S.S. 91/2013 दायर की, जिस पर माननीय न्यायाधीश महोदय ने 23/1/13 को निर्णय दिया कि आपको पूर्व ही सूचित किया जा चुका था कि 40%प्रत्येक खण्ड में प्राप्त करना अनिवार्य है और आपने परिणाम घोषित होने के पश्चात याचिका दायर की है इसलिए आपकी अपील ख़ारिज की जाती है।
- इस भर्ती प्रकिया के लिए शारीरिक, दक्षता परीक्षा 5 फरवरी 2013 को शुरू हुई, परन्तु 18 फरवरी को दौड़ लगते समय एक अभ्यार्थी की मृत्यु हो जाने से इसे रोक दिया गया।
- इस भर्ती प्रकिया में भर्ती बोर्ड द्वारा शारीरिक दक्षता परीक्षा में संसोधन कर 10किमी० की दौड़ को 4.8 किमी० कर दिया गया और प्रकिया पुनः 5 जुलाई 2013 को प्रारम्भ गयी जिस पर माननीय उच्च न्यायलय इलाहाबाद द्वारा रोक लगाये जाने के कारण दिनांक 7 जुलाई 2013 को प्रकिया रोक दी गयी।
- इसके पश्चात भर्ती बोर्ड द्वारा इस भर्ती को रद्द कर दिया गया जिसके विरूद्ध अभ्यार्थियों ने माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में याचिका संख्या WRIT-A- 5576/2013 दायर की जिस पर माननीय न्यायाधीश महोदय ने दिनांक 9/12/2013 को मूल विज्ञप्ति के अनुसार भर्ती प्रक्रिया को शुरू करने का आदेश दिया।
- इस भर्ती प्रकिया में दिनांक 25/07/13 को माननीय उच्च न्यायालय की एक सदस्यीय पीठ ने याचिका संख्या WRIT-A-1476/2013 व 62 अन्य में आदेश दिया कि प्रारम्भिक लिखित परीक्षा में कुल50% अंक प्राप्त करने वाले अभ्यार्थी सफल घोषितकिये जाये और प्रत्येक विषय में न्यूनतम 40% प्राप्तकरने की बाध्यता को समाप्त कर दिया गया जबकि यह मुद्दा याचिका संख्या S.S 91 /2013 द्वारा निस्तारित किया जा चुका था! दोनों ही याचिका पर सुनवाई माननीय उच्च न्यायलय की एक सदस्यीय पीठ द्वारा ही की गयी।
- याचिका संख्या WRIT-A-1476/2013 के निर्णय के अनुपालन में 49702 अभ्यार्थियों को भर्ती बोर्ड द्वारा सफल घोषित किया गया, इस आदेश के अनुपालन में भर्ती बोर्ड द्वारा उन अभ्यार्थियों को भी चयन किया गया जिन्होंने कुल 50% अंक प्राप्त नही किये।
- प्रारम्भिक लिखित परीक्षा में घोषित (सफल)49702 अभ्यार्थियों के सापेक्ष 46578 अभ्यार्थियों के लिए शारीरिक दक्षता परीक्षा हेतु बुलावा पत्र भेजा गया। 2524 अभ्यर्थियों को उत्तीर्ण होते हुए भी बुलावा नही भेजा गया जिससे वे अपने रोजगार के अधिकार से वंचित हो गये।
- याचिका संख्या WRIT-A-57576/2013 के अनुपालन में शारीरिक दक्षता परीक्षा 10 किमी० की बाध्यता के साथ दिनांक 04/08/2014 को शुरू हुई और 3/09/2014 समाप्त हुई जबकि उपनिरीक्षक भर्ती नियमावली के अनुसार शारीरिक दक्षता परीक्षा अधिकतम एक सप्ताह की समय सीमा में पूरी की जानी थी।
- शारीरिक दक्षता परीक्षा में आई एस आई प्रमाणित उपकरण का प्रयोग नहीं किया गया जबकि उपनिरीक्षक भर्ती नियमावली 2008 के अनुसार उपकरण केवल आई एस आई प्रमाणित ही प्रयोग किये जाने थे, इस संबंध में माननीय उच्च न्यायालय में याचिका संख्या WRIT A 613/2015 व अन्य 47 याचिकाएं लंबित है और भर्ती बोर्ड बार बार इस मुद्दे पर माननीय न्यायालय को गुमराह कर रहा है।
- शारीरिक दक्षता परीक्षा में 15777 अभ्यर्थी सफल घोषित किये गये जिनकी मुख्य लिखित परीक्षा 14 सितम्बर 2014 को संपन्न हुई।
- मुख्य लिखित परीक्षा में 14256 अभ्यार्थी सफल घोषित किये गये।
- भर्ती प्रकिया के अगले चरण समूह परिसंवाद के लिये विज्ञप्ति के अनुसार 4010 रिक्तियों के सापेक्ष तीन गुना अभ्यार्थियों को अर्थात 12030 अभ्यार्थियों को बुलाया जाना था परन्तु भर्ती बोर्ड द्वारा सभी सफल अभ्यार्थियों अर्थात 14256 अभ्यार्थियों को बुलाया गया।
- मुख्य लिखित परीक्षामें जमकर नकल व व्हाइटनर का प्रयोग किया गया जिसके विरूद्ध याचिका संख्या WRIT-A-67782/2014 व 20 अन्य माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद में दायर की गयी परन्तु इस याचिका पर निर्णय होने के पूर्व ही दिनांक 16/03/2015 को परीक्षा परिणाम घोषित कर दिया गया।
- याचिका संख्या WRIT-A-67782/2014 व 20 अन्य में माननीय न्यायधीश महोदय ने दिनांक 29/05/2015 को आदेश दिया कि व्हाइटनर, ब्लेड आदि का प्रयोग करने वाले अभ्यार्थी नियमावली अनुसार अयोग्य घोषित किये जाते है।
- याचिका संख्या WRIT-A-67782/2014 व 20अन्य के आदेश के अनुपालन में भर्ती बोर्ड ने संसोधित परीक्षा परिणाम घोषित किया परन्तु इस याचिका में भर्ती बोर्ड द्वारा माननीय उच्च न्यायालय को बताया कि 3038 अभ्यार्थियों ने व्हाइटनर, ब्लेड आदि का प्रयोग किया परन्तु संसोधित परीक्षा परिणाम में ऐसे अभ्यार्थियों का भी चयन किया गया जिन्होंने माननीय उच्च न्यायालय में स्वीकार किया था कि हमने व्हाइटनर, ब्लेड आदि का प्रयोग किया है और हमारा अभ्यर्थन निरस्त न किया जाये ! भर्ती बोर्ड द्वारा माननीय उच्च न्यायलय के सम्मुख बतायी गयी संख्या 3038 के सापेक्ष 2880 अभ्यार्थियों को ही सूची प्रस्तुत की।
- याचिका संख्या WRIT-A-67782/2014 के निर्णय के विरूद्ध याचिका संख्या SPECIAL APPEAL 437/2015 व 6 अन्य उच्च न्यायालय इलाहाबाद की दो सदस्यीय पीठ ने एक सदस्यीय पीठ के निर्णय को बराबर रखा।
- याचिका संख्या SPECIAL APPEAL 437/2015 के निर्णय के विरूद्ध माननीय उच्चतम न्यायलय में S.P.L (CIVIL) 21843-21844/2015 दायर की गयी जिस पर माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा माननीय उच्च न्यायलय के निर्णय पर कोई आदेश नही दिया और भर्ती बोर्ड द्वारा अयोग्य घोषित किये गये 810अभ्यार्थियों के समायोजन का प्रस्ताव यह कह कर पेश किया गया कि ये बहुत पढ़े लिखे और योग्य है, जिसे माननीय उच्चतम न्यायालय ने स्वीकार कर लिया, याचिका के मूल मुद्दे पर कोई निर्णय नहीं किया गया।
- इस भर्ती में नकल, व्हाइटनर, ब्लेड आदि का प्रयोग करने व असफल अभ्यार्थियों को मुख्य लिखित परीक्षा में शामिल करने के कारण मुख्य लिखित परीक्षा पुनः कराने के लिए याचिका संख्या S.S. 5158/2015 दायर की गयी। जिसमे माननीय न्यायधीश महोदय ने दिनांक 2 सितम्बर 2015 को न्यायलय की अनुमति के बिना नियुक्ति पत्र जारी करने पर रोक लगा दी परन्तु भर्ती बोर्ड द्वारा सफल अभ्यार्थियों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया, जो स्पष्ट रूप से माननीय उच्च न्यायालय की अवहेलना है।
- इस भर्ती प्रक्रिया में आरक्षण को भी गलत तरीके से लागू किया जिसके विरूद्ध याचिका संख्या WRIT-A-37599 /2015 दायर की गयी, इस पर माननीय न्यायधीश महोदय ने दिनांक 16/03/2015 को आरक्षण को सही तरीके से लागू करने तथा जिम्मेवार अधिकारियो पर जुर्माना लगाने का आदेश दिया।
- भर्ती बोर्ड ने अन्य राज्यों की निवासी महिला अभ्यर्थियों को सामान्य पुरूष अभ्यर्थी में शामिल कर दिया जिससे अन्य राज्यों की महिला अभ्यर्थी योग्य होते हुए भी चयन से वंचित हो गयी। जिसके विरूद्ध माननीय उच्च न्यायालय में याचिका संख्या WRIT A - 27845/2015 लम्बित है।
- रिट संख्या 5158/2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने परीक्षा परिणाम रद्द किया।
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बदलती सिद्धांत और विचारधारा, बदलते सत्ता के दौर में
- मुख्य अतिथि/वक्ता और इस विषय के मंत्री होने के बावजूद राजनाथ जी ने इस पर कोई बात नहीं की, यहाँ तक लोगो ने इस बात पर हूटिंग भी की जब राजनाथ जी ने कहा की मुझे नहीं लगता अब कोई बात कहने को बची है तो दर्शक दीर्धा से आवाज आई कि मंत्री जी अभी विषय पर चर्चा बाकी है..
- अधिवक्ता परिषद् की तरफ से राष्ट्रीय संरक्षक लाल बहादुर जी, सस्थापक महामंत्री रमेश कुमार जी, प्रदेश अध्यक्ष शशि प्रकाश सिंह जी और प्रदेश महामंत्री चरण सिंह त्यागी ने भी कार्यक्रम की विषयवस्तु संबधित कोई बात और चर्चा प्रस्तुत नहीं की. यह जरूर है कि स्वाभिमान के साथ लाल बहादुर जी विषय से हट कर संविधान पर चर्चा जरूर और श्रोताओं को सम्मोहित किया मुझे कहने में कोई शिकयत नहीं कि लाल बहादुर जी को मंच पर यह बात कहने से रोकने की असफ़ल कोशिश की गयी किंतु लाल बहादुर जी के कद के आगे उन्हें कोई रोक नहीं सका और उन्होंने अपनी पूरी बात रखी..
- सिद्धांत और विचारधारा के संरक्षकों पर सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब प्रस्तवित विषय पर परिषद के पदाधिकारियों की कोई तैयारी नहीं है तो ऐसे विषय पर चर्चा आयोजित कर प्रदेश भर से भीड़ बुलाने की आवश्यकता और औचित्य क्या है? ऐसे विषय को रख कर उस पर चर्चा न करना कही न कही हम अपने उन कार्यकताओं को ठगने का प्रयास करते है जो सैकड़ो किमी की यात्रा करके लखनऊ पहुचे थे.
- मैंने कई बार महसूस किया है कि प्रासंगिक विषयों पर कोई चर्चा नहीं होती और सिवाय महिमामंडन और महिमामंडन के प्रतिफल की इच्छा के राष्ट्रवादी वैचारिक संगठनों के लिए ऐसे कार्यक्रमों का औचित्य क्या? किसी भी वैचारिक संस्था के कार्यक्रम की सफलता की पैमाना भीड़ नहीं होती है, अपितु लगनशील विचारवान 4 कार्यकर्ता होते है जो संस्था की के सिद्धांतों और विचारधारा के ध्वजवाहक होते है. इतिहास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आगे बढ़ाने वाले कोई भीड़ नहीं अपितु पूज्य डॉ. साहब के प्रारम्भिक 5 स्वयसेवक थे उन्होंने संघ को आगे ले गए और उसे विशालकाय वट वृक्ष बनाया. भीड़ विचारधारा का नहीं अपितु अराजकता का पर्याय होती है.
- एक बात यह देखने में आया कि कार्यक्रम में पहुचने वाले अधिवक्ता परिषद् के बाहरी सदस्यों जिसमे काफ़ी महिलाये भी थी, जो काफ़ी 400-500 किमी की यात्रा करके आई थी उनकी शिकायत थी कि उनके ठहरने की व्यवस्था नहीं थी. परिषद की तरफ से के सफ़ेद पत्रक कार्यकर्ताओ को दिया गया था जिसमे सूचना थी कि किसी कार्यकर्ताओ के लिए ठहरने की व्यवस्था नहीं की गयी है. वास्तव में प्रदेश स्तर के किसी भी कार्यक्रम में जिसका समापन शाम 6 बजे के बाद हो रहा हो उसमे उन कार्यकर्ताओ के ठहरने की व्यवस्था होनी चाहिए थे जिन्होंने अपने आने की सूचना देनी ही चाहिए थी. अगर ऐसा था तो कम से कम कार्यक्रम स्थल के आस-पास के कुछ होटलों की सूची तो दे देनी चाहिए थी. ताकि जो व्यक्ति इतनी दूर दूर से आया उसे आवास के लिए भटकना तो नहीं पड़ता. कार्यक्रम स्थल पर ऐसा कोई मंच नहीं था जहाँ पर प्रदेश के अन्य हिस्सों से आने वाले अधिवक्ताओं जानकारी पंजीकृत की जाती जिससे कम से कम यह आकडे तो रहते कि कौन अधिवक्ता कार्यकर्ता कहाँ से आया है.
- किसी भी संघठन या संस्था का मुख्य कार्यकारी अधिकारी संस्था का अध्यक्ष और महामंत्री (महा-सचिव) होते है, जो संस्था के कार्यों को अपने अन्य पदाधिकारियों के माध्यम से संचालित और सम्पादित करते है. मेरे अनुभव के आधार पर किसी संस्था की ओर से होने वाले किसी भी कार्यक्रम का आमंत्रण पत्र इन्ही दोनों के नाम से निर्गत किये जाते है या सम्पूर्ण कार्यकारिणी का जिक्र होता है. किंतु अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश की ओर से जो आमंत्रण पत्र निर्गत हुआ उस पर अध्यक्ष और महामंत्री के अतिरिक्ति संगठन मंत्री और कोषाध्यक्ष का नाम पदनाम सहित उल्लेखित था. अधिवक्ता परिषद उत्तर प्रदेश में 5 प्रदेश उपाध्यक्ष जो वरीयता क्रम में अध्यक्ष के बाद आते है और अन्य कार्यकारिणी सदस्य भी है. जब उपाध्यक्षों से गैरजरूरी कनिष्ठ पदाधिकारियों के नाम आमंत्रण पर आ सकते है तो उपाध्यक्षों और अन्य कार्यकारिणी सदस्यों के नाम आने पर क्या दिक्कते थे उसे सार्वजानिक करना चाहिए.
- बंगलौर के राष्ट्रीय अधिवेशन की अनियमितताओं पर लोगो ने बंगलौर में तो आपतियां दर्ज की ही थी और कल भी बंगलौर का राष्ट्रीय अधिवेशन पर कार्यकताओ ने कहा कि इस अधिवेशन से ख़राब राष्ट्रीय अधिवेशन अब तक नहीं हुआ. इस पर एक कार्यकता ने अधिवक्ता परिषद् का बचाव करते हुए कहा कि बाबा (श्रीश्री रविशंकर) ने 50 लाख रूपये लिए पर उन्होंने सुविधाए नहीं दी. ऐसे ही बगलोर में ख़बर उडी थी कि परिषद् ने राज्यसभा की सीट के एवज में फ्री में बाबा के संसाधन ले रहे है. अपने बचाव में किसी बड़े संत को बदनाम करना कहाँ तक उचित है क्या यह बाते बाबा के कानो में नहीं पहुची होगी. ऐसे में भविष्य में कौन देगा? किसी भी कार्य की सफलता या असफलता बाहरी के नहीं अपितु अपनों अच्छे बुरे काम पर निर्भर करती है. ऐसी बहुत सी बाते है जिसे कहना उचित नहीं है और पिछले 8-9 से कहा भी नहीं किंतु कभी कभी मौन तोडना आवश्यक होता है.
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विभिन्न राज्यों के प्रमुख लोकनृत्यों के नाम
- अरूणाचल प्रदेश - मुखैटा, मोपिन, सोलुंग, लोस्सार, द्रीरेह, सी – दोन्याई, चोकुम
- असम - बिहू, बैशाख, खेल गोपाल, कलिगोपाल, बोई राजू, राखललीला , नट पूजा, बगुरूम्बा
- आंध्र प्रदेश - घंटामर्दाला, बतकम्मा, कुम्मी, छड़ी नृत्य
- उड़ीसा - चंगुनाट, गरूडवाहन, डंडानट, पैका, जदूर, मुदारी, छाऊ
- उत्तर प्रदेश - झोरा, छपेली, करण, कजरी, रासलीला, नौटंकी, दीवाली थाली
- उत्तराखण्ड - चांचरी / झोड़ा, छपेली, छोलिया, झुमैलो
- कर्नाटक - यक्षगान, भूतकोला, डोलू कूनीथा नृत्य
- केरल - कैकोट्टिकली, चाक्यरकुयु, मद्रकली, पायदानी, कुड़ी अट्टम, कालीअट्टम,मोहिनीअट्टम ,मरविल्लुकू(सबरीमाला का अय्यपा मंदिर ), मारामोन, मिलादे शरीफ
- गुजरात - गरबा, घेरिया रास, गोफे, जेरियन, डांडियारास, पणिहारी, रासलीला, लास्या, गणपति भजन, टिपप्णी.
- छतीसगढ़ - मांदरी नृत्य, गंडी नृत्य, गौरा नृत्य, सुआ, पंथी, राऊत, चन्दैनी, कर्मा, कक्सार, फुलकी पाटा, पंडवानी, डोरला, सरहुल, शैला, एवं दमनच
- जम्मु – कश्मीर - डमाली, हिकात, डांडी नाच, कुद, राउ, भाखागीत, मेराज आलम, हेमिस गोप्पा उत्सव (लद्धाख)
- झारखण्ड - बौंग, मगाह, नटुआ, छऊ, सरहुल, कर्मा, गुण्डारी, जदुर
- तमिलनाडु - कोल्लटम, कारागल, कावड़ी, कुम्मी, जल्लीकट्टी,चितिरै, आदिपेरूक, कीर्तिग दीपम
- त्रिपुरा - राश, बंगाली नववर्ष, गरिया, धामेल, बिजू, होजगिरि, सबरूम, मुरासिंग
- दादरा एवं नागर हवेली - दिवसो, भावड़ा, कालीपूजा
- नागालैण्ड - कुमीनागा, रेंगमनागा, लिम, चोंग, युद्ध नृत्य, खैवा, मोआत्सु, सेकरेन्यी, तुलनी, तोक्कू एमोंग
- पंजाब - भांगड़ा, गिददा
- पश्चिमी बंगाल - करणकाठी, गंभीरा, जलाया, बाउल नृत्य, कथि, जात्रा
- बिहार - जट – जाटिन, घुमकडिया, कीर्तनिया, पंवारियां, सोहराई, छाउ, लुझरी, सामा, जात्रा, चकेवा, जाया, माघी, डांगा, चेकवा आदि
- मणिपुर - योशांग (होली), संकीर्तन, लाईहरीबा, धांगटा की तलम, बसंतराम, राखल, रामलीली, लाई हारोग, निंगोल, चाक कुबा, चिराओवा, इमोइनु, रथयात्रा, गाननागी, लुई नगाई नी, कुट, होचोंगबा
- मध्यप्रदेश - दीवाली, फाग, सुआ, चैत, रीना, टपाड़ी, सैला, भगोरिया, हुल्कों, मुंदड़ी, संगमाडिया
- महाराष्ट्र - तमाशा ,डाहीकल, लेजिम, गोधलगीत, बोहरा, लावनी, कोली, मौनी ( गणेश चतुर्थी )
- मिजोरम - चेरेकान, पाखुलिया नृत्य
- मेघालय - पाबलांग नोंगक्रेम (खासी जनजाति)
- राजस्थान - गणगौर, झुमर, घूमर, तेरह ताली, सूसिनि, गोपिका लीला, झूलन लीला, कालबेलिया नृत्य, चरी नृत्य
- सिक्किम - दसई, माघे संक्राति, सोनम, लोसूंग, नामसूंग, तेनदोग हलो रूमाफाट, लोसर (तिब्बती नववर्ष) बराहम जोग (मागर), सोनम लोचर (गंरूग), साकेवा (राय)
- हरियाणा - छोरेया, डफ, धमाल, खेरिया, फाग
- हिमाचल प्रदेश - डंडा नाच, सांगला, छपेली, चम्बा, नाटी, महासु थाली, झेंटा, जद्धा , छारबा
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सरदार पटेल के नेतृत्व में हैदराबाद का विलय और नेहरू द्वारा जनित कश्मीर समस्या
सरदार पटेल के नेतृत्व में हैदराबाद का विलय
भारतीय शासकों में सबसे अधिक महात्वाकांक्षी हैदराबाद के निजाम मीर उस्मान अली खां बहादुर थे। जिन्होनें 12 जून 1947 को घोषित किया कि निकट भविश्य में ब्रिटिश सर्वोच्च सत्ता के हटने के साथ हैदराबाद एक स्वतन्त्र राज्य की स्थिति प्राप्त कर लेगा। उन्होनें 15 अगस्त 1947 के पश्चात् एक तीसरे अधिराज्य की कल्पना की जो ब्रिटिश कामनवेल्थ का सदस्य होगा। ब्रिटिश सरकार के राजनीतिक सलाहकार सर कानरेड कारफील्ड उन्हें लगातार प्रोत्साहित कर रहे थें।
यथास्थिति समझौते की स्याही सूख भी न पाई थी कि निजाम की सरकर ने दो अध्यादेषों को जारी करके समझौते का उल्लंघन किया। भारत सरकार को सूचना मिली की हैदराबाद सरकार ने पाकिस्तान को 20 करोड़ रुपये का ऋण दिया। हैदराबाद सरकार विदेशों में अपने प्रतिनिधि नियुक्त करना चाहती थी तथा उसमें बिना भारत सरकार को सूचित किये पाकिस्तान में एक जनसम्पर्क अधिकारी भी नियुक्त कर दिया सरदार पटेल के अस्वस्थ्य होने के कारण 15 मार्च 1948 को एन0 वी0 गाडगिल ने संसद को सूचित किया की हैदराबाद समझौते की शर्तों का पालन नहीं कर रहा हैं तथा सीमावर्ती घटनाओं से पूरा दक्षिण और मध्य पश्चिमी भारत संकटापन्न बन गया है।
16 अप्रैल 1948 को लायक अली ने सरदार पटेल से भेंट की। सरदार ने कासिम रिजवी के उस भाषण पर आपत्ति की जिसमें रिजवी ने कहा था कि ‘‘यदि भारतीय संघ हैदराबाद में हस्तक्षेप करेगा तो उसे वहाँ 150 हिन्दुओं की हड्डियों और राख के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा।’’ चेतावनी देते पटेल ने कहा-‘‘मैं आपको असमंजस की स्थिति में नहीं रखना चाहता। हैदराबाद की समस्या उसी प्रकार हल होगी जैसी कि अन्य रियासतों की। कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं। हम कभी भारत के अन्दर एक अलग स्वतन्त्र स्थान के लिए सहमत नहीं हो सकते जिससे भारतीय संघ की एकता भंग हो जिसे हमने अपने खून तथा पसीने से बनाया है। हम मैत्रीपूर्ण ढंग से रहना तथा समस्याओं को सुलझाना चाहते हैं, पर इसका अभिप्राय यह नहीं है कि हम कभी भी हैदराबाद की स्वतन्त्रता पर सहमत हो जायेगें। हैदराबाद का स्वतन्त्र अस्तित्व प्राप्त करने का प्रत्येक प्रयास असफल होगा।’’
जून 1948 में निजाम के संवैधानिक सलाहकार सर वाल्टर मांकटन तथा लार्ड माउण्टबैटन के मध्य समझौते का प्रारूप तैयार हुआ जिसे निजाम के प्रधान मंत्री लायक अली की भी स्वीकृति प्राप्त थी। इस समझौते से सरदार पटेल सहमत न थे पर माउण्टबैटन की सलाह पर पटेल ने अपनी स्वीकृति दे दी। निजाम ने उस समझौते को भी अस्वीकार कर दिया। ब्रिटिश कामन सभा में विरोधी दल के नेता चर्चिल ने हैदराबाद के समर्थन तथा भारत विरोधी बयान दिये। 29 जून 1948 को पटेल ने संसद में चर्चिल पर सदैव भारत विरोधी प्रचार करने का आरोप लगाया। सरदार पटेल ने कहा-‘‘चर्चिल एक निर्लज्ज साम्राज्यवादी हैं और उस समय जब साम्रज्यावाद अपनी अन्तिम सांसे ले रहा हैं उनकी हठधर्मीपूर्ण, बुद्धिहीनता, तर्क ,कल्पना या विवेक की सीमा को पार कर रही है।’’ सरदार पटेल के अनुसार इतिहास साक्षी है कि ‘‘भारत तथा ब्रिटेन के बीच मैत्री के अनेक प्रयास चर्चिल की अडिग नीति के कारण असफल रहे।’’
ब्रिटिश नेताओं को भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के विरूद्ध चेतावनी देते हुए सरदार ने कहा-‘‘हैदराबाद का प्रश्न शान्ति के साथ सुलझ सकता हैं। यदि निजाम अल्पसंख्यक लड़ाकू वर्ग में से चुने गये शासक वर्ग द्वारा राज्य करने की मध्यकालीन प्रथा को त्याग दें। जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों के सुझावों और परामर्श पर प्रजातंत्रात्मक रीति से चले और हैदराबाद तथा भारत की भौगोलिक, आर्थिक तथा अन्य बाध्यकारी शक्तियों द्वारा दोनों पर पड़ने वाले अनिवार्य प्रभाव को समझे।’’
हैदराबाद की समस्या दिन-प्रतिदिन बिगड़ती जा रही थी। पाकिस्तान से चोरी छिपे शस्त्र आ रहे थे, सीमाओं पर गड़बड़ी पैदा की जा रही थी तथा रेलगाड़ियों को लूटा जा रहा था। हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया गया तथा कांग्रेस संगठन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया। रजाकारों ने साम्यवादियों से सांठ-गाँठ कर ली। 28 अगस्त, 1948 को दिल्ली में हैदराबाद समस्या को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने की सूचना दी।
अगस्त के अन्त तक हैदराबाद की स्थिति इतनी विस्फोटक हो गई थी कि सरदार पटेल ने निश्चय किया कि यह उचित होगा कि निजाम को आभास करा दिया जाए कि भारत सरकार के धैर्य की सीमा समाप्त हो गई है। 09 सितम्बर 1948 को यह तय हुआ कि शान्ति और व्यवस्था बनाये रखने तथा सीमावर्ती राज्यों में सुरक्षा की भावना पैदा करने हेतु हैदराबाद में पुलिस कार्यवाही की जाये। अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मेजर जनरल जे0 एन0 चैधरी के कमान में सेनाओं ने हैदराबाद की ओर कूँच किया जिसे ‘‘आपरेशन पोलो‘‘ का नाम दिया गया। 17 सितम्बर 1948 को हैदराबाद की सेनाओं ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा 18 सितम्बर को भारतीय सेनाओं ने हैदराबाद नगर में प्रवेश किया। पुलिस कार्यवाही के नियत समय के पूर्व भी ब्रिटिश सेना उच्च अधिकारी द्वारा प्रयास हुआ कि कार्यवाही को स्थगित कर दिया जाये पर सरदार पटेल अपने निर्णय पर अडिग रहे।
1 अक्टूबर 1948 को भारती सेना अधिकारियों को सम्बोधित करते हुए सरदार पटेल ने इस आरोप से इन्कार किया कि भारत सरकार ने हैदराबाद पर आक्रमण किया। सरकार का तर्क था कि इस प्रकार की भ्रान्ति फैलाने वाले आक्रमण शब्द के सही अर्थ नहीं जानते हैं। ‘‘हम अपने ही लोगों पर कैसे आक्रमण कर सकते हैं?.........हैदराबाद की जनता भारत का हिस्सा हैं।’’ हैदराबाद में पुलिस कार्यवाही के नेहरू पक्ष में न थे। उन्होनें एक बैठक में अपना रोष भी प्रकट किया। के0 एम0 मुंशी ने लिखा हैं-‘‘यदि जवाहरलाल की इच्छानुसार कार्य होता, तो हैदराबाद एक अलग राज्य के रूप में भारत के पेट पर दूसरा पाकिस्तान होता, एक पूर्ण भारत विरोधी राज्य जो उत्तर और दक्षिण को अलग करता, यद्यपि पुलिस कार्यवाही की सफलता के पश्चात् जवाहरलाल प्रथम व्यक्ति थे जो हैदराबाद मुक्तिदाता के रूप में स्वागत हेतु गये।’’
यदि शेख अब्दुल्ला के प्रभाव से जवाहरलाल नेहरू कश्मीर विभाग सरदार पटेल के रियासत विभाग से न ले, तो कश्मीर कभी भी एक समस्या न बनती जैसा कि अब बन गयी। कश्मीर की समस्या भारत-पाकिस्तान के मध्य सबसे अधिक उलझी समस्या रही है। भारत के उत्तर-पष्चिम सीमा पर स्थित यह राज्य भारत तथा पाकिस्तान दोनों को जोड़ता है। सामरिक दृष्टि से कश्मीर की सीमा अफगानिस्तान तथा चीन से मिलती है तथा सोवियत रूस की सीमा कुछ ही दूरी पर है कश्मीर का बहुसंख्य भाग लगभग 79 प्रतिशत मुस्लिम धर्मी था पर वहां के अनुवांषिक शासक हिन्दू थे।32 कैबिनेट मिषन के जाने के बाद पटेल ने कश्मीर समस्या पर विशेष रुचि ली। 03 जुलाई 1947 को कश्मीर के महाराजा हरीसिंह को पत्र लिखकर सरदार ने नेहरू की कश्मीर में गिरफ्तारी तथा शेख अब्दुल्ला व नेशनल कान्फ्रेंस के कार्यकताओं को लगातार बन्दी बनाये रखने पर क्षोभ प्रकट किया। अपने पत्र में सरदार पटेल ने कहा- ‘‘मैं आपकी रियासत की भौगोलिक दृष्टि से नाजुक स्थिति को समझता हूँ कि कश्मीर का हित अविलम्ब भारतीय संघ तथा संविधान सभा में सम्मिलित होने में ही है।’’ सरदार पटेल ने निराशा प्रकट की कि लार्ड माउण्टबैटन को समय देकर भी महाराजा ने बीमारी का सन्देश भेजकर उनसे भेंट नहीं की। 4 व 5 जुलाई को पटेल की कश्मीर के प्रधानमंत्री पं0 रामचन्द्र किंकर से भेंट हुई।
ब्रिटिश सत्ता के स्थानान्तरण के समय कश्मीर नरेश महाराजा हरीसिंह ने एक स्वतंत्र कश्मीर राष्ट्र की कल्पना की थी तथा दुविधापूर्ण नीति अपनाकर भारत तथा पाकिस्तान दोनों से ‘‘यथास्थिति समझौता‘‘ करना उचित समझा। पाकिस्तान ने कश्मीर में सरकार के ‘‘यथास्थिति समझौता‘‘ को स्वीकार कर लिया तथा यातायात, डाक और तार व्यवस्था को ज्यों का त्यों बनाये रखने का वचन दिया। इसके पूर्व की भारत से वार्तालाप हो सके, पाकिस्तान कश्मीर पर शक्ति के बल पर सम्मिलित होने के दबाव डालने लगा, कबायलियों को बहुत बड़ी जनसंख्या को कश्मीर में घुसपैठ के लिए प्रोत्साहन करने लगा। पाकिस्तान ने अन्न, पेट्रोल व अन्य आवश्यक वस्तुओं का कश्मीर भेजा जाना बन्द कर दिया तथा कश्मीर जाने के मार्ग भी बन्द कर दिये। रेडक्लिफ एबार्ड के पूर्व भारत से कश्मीर जाने का स्थल मार्ग भी पाकिस्तान होकर ही था। कश्मीर रियासत के सेनापति मेजर जनरल स्काट की रिपोर्ट: दिनांक 31 अगस्त, 4 व 12 सितम्बर 1947 रियासत की परिस्थिति तथा पाकिस्तान द्वारा हस्तक्षेप की विस्तृत जानकारी देती है। सितम्बर तथा अक्टूबर 1947 की घटनाओं से स्पष्ट था कि बड़ी संख्या में आधुनिक षस्त्रों से लैस कबायली कश्मीर में हस्तक्षेप कर रहे थे। श्रीनगर में महोरा बिजली घर जला दिया गया। समस्त राज्य पर अधिकार करने के उदेश्य से आक्रमणकारी श्रीनगर पर कब्जा करना चाहते थे।
24 अक्टूबर 1947 को कश्मीर रियासत ने प्रथम बार भारत सरकार से सहायता की मांग की। उसी दिन भारत सरकार को ज्ञात हुआ कि मुजफ्फराबाद छिन गया है। 24 अक्टूबर को प्रातः ही लार्ड माउण्टबैटन की अध्यक्षता में सुरक्षा समिति की बैठक हुर्ह। तथा वास्तविक जानकारी हेतु वी0 पी0 मेनन को श्रीनगर भेजा गया। 26 अक्टूबर को महाराजा हरी सिंह ने लार्ड माउण्टबैटन को पत्र भेजा जिसमें कश्मीर की विस्फोटक स्थिति की चर्चा करते हुए कहा-‘‘राज्य की वर्तमान स्थिति तथा संकट को देखते हुए मेरे सामने इसके अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है कि भारतीय अधिराज्य से सहायता माँगू। यह स्वभाविक है कि जब तक कश्मीर भारतीय अधिराज्य में शामिल नहीं हो जाता भारत सरकार मेरी सहायता नहीं करेगी। अतएव मैने भारत संघ में शामिल होने का निर्णय कर लिया है और मैं प्रवेश पत्र को आपकी सरकार की स्वीकृति हेतु भेज रहा हूँ।’’ पत्र मे अन्त में महाराजा ने कहा कि -‘‘यदि राज्य को बचाना है कि श्रीनगर में तत्काल सहायता पहुँच जानी चाहिए।
श्री वी0 पी0 मेनन स्थिति की गम्भीरता को भलि-भांति जानते थे। मेनन ने लिखा था कि "पटेल हवाई अड्डे पर मेरी प्रतिक्षा कर रहे थे। उसी दिन सायंकाल सुरक्षा समिति की बैठक हुई। लम्बी वार्तालाप के पश्चात् यह तय हुआ कि जम्मू कश्मीर के महराजा की प्रार्थना को इस शर्त के साथ स्वीकार कर लिया जाये कि शान्ति और व्यवस्था स्थापित होने को बाद जम्मू कश्मीर में विलय पर जनमत संग्रह कराया जाये।"
27 अक्टूबर को तत्काल सेनायें जहाजों के द्वारा कश्मीर भेज दी गयी। उस समय आक्रमणकारी श्रीनगर से मात्र 17 मील की दूरी पर थे। श्रीनगर पहुचते ही भारतीय सैनिकों ने श्रीनगर के आसपास से आक्रमणकारी को खदेड़ दिया। 3 नवम्बर को सरदार पटेल तथा रक्षामंत्री बलदेव सिंह श्रीनगर गये। उन्होनें वहाँ राजनितिक स्थिति की समीक्षा की तथा कश्मीर मंत्री और ब्रिगेडियर एल0 पी0 सेन से सैनिक स्थिति के बारे में जानकारी ली। 8 नवम्बर को भारतीय सेनाओं ने बारामूला पर अधिकार कर लिया।
28 नवम्बर को सरदार पटेल स्वयं जम्मू गये। जनता को सांत्वना देते हुए उन्होनें कहा-‘‘मै आपको आश्वासन देता हूँ। कि हम कश्मीर को बचाने के लिए अपनी सम्पूर्ण शक्ति भर सब कुछ करेगें।’’ जनता के निडर होकर स्थिति का सामना करने की सलाह देते हुए सरदार ने कहा-‘‘मृत्यु निश्चित है वह शीघ्र या विलम्ब से अवश्य आयेगी। परन्तु लगातार भय में रहना प्रतिदिन मरने के समान है। अतः हमें निडर व्यक्ति के समान रहना है।’’
1 जनवरी 1948 को भारत सरकार ने कश्मीर का प्रश्न संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् के समक्ष प्रस्तुत किया। सरदार पटेल इससे सहमत न थे। उस काल के पत्र व्यवहार से स्पष्ट हैं कि सरदार पटेल जम्मू कश्मीर में संवैधानिक रूप से कार्य करने वाली सरकार के पक्ष में थे। साथ ही वे शेख अब्दुल्ला का महाराजा के प्रति व्यवहार तथा नेहरू द्वारा शेख अब्दुल्ला को आवश्यकता से अधिक महत्व देने से सन्तुट नहीं थे।
वास्तव में कश्मीर समस्या पर नेहरू तथा सरदार पटेल में मतभेद थे। सरदार के अनुसार "कश्मीर समस्या विभाग का अंग था, जबकि नेहरू के अनुसार उसमें अन्तराष्ट्रीय प्रश्न सम्मिलित थे। इसी पर दोनों में मतभेद थें। दिसम्बर 1947 के पश्चात् कश्मीर मामले पर सरदार का हस्तक्षेप बहुत कम हो गया।’’
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सरदार वल्लभ भाई पटेल और जूनागढ़ का भारत संघ में विलय
इधर जूनागढ़ में बाबरियाबाढ़ में सेना भेजकर हस्तक्षेप किया तथा 51 ग्रामों के मलगिरासियों को पाकिस्तान में सम्मिलित होने के लिए बाध्य किया। मंगरोल के शेख जो पहले भारतीय संघ में सम्मिलित हो चुके थे उन्हें बाध्य किया गया कि तार द्वारा भारत को सूचित करें कि उन्होनें संघ से समझौता भंग कर दिया है। जूनागढ़ के दीवान ने एक तार भेजकर भारत सरकार को सूचित किया कि बाबरियाबाढ़ तथा मंगरोल जूनागढ़ के अभिन्न भाग हैं और उनका भारत संघ में प्रवेश अवैधानिक था दीवान ने बाबरियाबाढ़ से अपनी सेनाओं केा वापस बुलाने से इन्कार कर दिया।
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भारत के सभी 29 राज्यों के स्थापना वर्ष की सूची
- अरुणाचल प्रदेश -- 20 फरवरी, 1987
- असम -- 26 जनवरी 1950
- आंध्र प्रदेश -- 01 नवंबर 1956
- उड़ीसा -- 01 अप्रैल 1936
- उत्तर प्रदेश -- 26 जनवरी 1950
- उत्तराखंड -- 09 नवंबर 2000
- कर्नाटक -- 01 नवंबर 1956
- केरल -- 1 नवंबर 1956
- गुजरात -- 1 मई 1960
- गोवा -- 30 मई 1987
- छत्तीसगढ़ -- 01 नवंबर 2000
- जम्मू और कश्मीर -- 26 जनवरी 1950
- झारखंड -- 15 नवंबर 2000
- तमिलनाडु -- 26 जनवरी 1950
- तेलंगाना -- 02 जून 2014
- त्रिपुरा -- 21 जनवरी 1972
- नागालैंड -- 01 दिसंबर 1963
- पंजाब -- 01 नवंबर 1966
- पश्चिम बंगाल -- 01 नवंबर 1956
- बिहार -- 01 अप्रैल 1912
- मणिपुर -- 21 जनवरी 1972
- मध्यप्रदेश -- 01 नवंबर 1956
- महाराष्ट्र -- 1 मई 1960
- मिजोरम -- 20 फ़रवरी 1987
- मेघालय -- 21 जनवरी 1972
- राजस्थान -- 01 नवंबर 1956
- सिक्किम -- 16 मई 1975
- हरियाणा -- 01 नवंबर 1966
- हिमाचल प्रदेश -- 25 जनवरी 1971
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सादगी की प्रतिमा भारत के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री
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अमृत फल आम के औषधीय प्रयोग
आम में जो विटामिन सी पाया जाता है वह सेब में पाए जाने वाले विटामिन सी का 6 गुना होता है। एक विख्यात पाश्चात्य विद्वान ने आम का उल्लेख करते हुए लिखा है- आम पूरा भोजन है, विश्व का कोई भी फल आम की तुलना में ठहर नहीं सकता। अमेरिका के डॉ. विल्सन के अनुसार आम में मक्खन से सौ गुना अधिक पोषक तत्व विद्यमान है। उन्होंने परीक्षण कर यह सिद्ध किया है कि आम के उचित प्रयोग से शरीर के स्नायविक संस्थान को शक्ति मिलती है, शुद्ध रक्त बहुतायत से उत्पन्न होता है तथा शोर्य वीर्य की वृद्धि होती है। चरक ने हृदय रोगों के लिए 10 औषधियाँ निर्धारित की हैं, उनमें एक आम भी है। आम के सेवन से श्रुकाल्पताजन्य, नपुंसकत्व तथा मस्तिष्क, दौर्बल्य आदि के लक्षण शीघ्र दूर होते हैं। भाव प्रकाश ने लिखा है कि आम से नया खून अधिक मात्रा में बनता है और तपेदिक के रोगियों के लिए यह रामबाण औषधि है।
- आम खाकर उपर से दूध पीना शक्तिवर्द्धक, स्फूर्तिदायक तो है ही साथ ही अनिद्रा ग्रस्त रोगियों के लिए भी यह रामबाण है।
- आम के रस में शहद मिलाकर कुछ दिनों तक पीने से बढ़ी तिल्ली ठीक हो जाती है।
- आम और जामुन का रस मिलाकर पीने से मधुमेह में लाभ होता है।
- आम में विटामिन ए भरपूर मात्रा में होता है, अतः आम नेत्र ज्योति के लिए बहुत लाभकारी है। रतौंधी के लिए चूसने वाला आम विशेष उपयोगी रहता है।
- पाचन संस्थान को सुदृढ़ करने के लिए मीठे आम के रस में थोड़ा सा नमक डालकर कुछ दिनों तक सेवन करें।
- क्षय रोगियों को चाहिए कि आम के मौसम में आम के एक कप रस में दो चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें।
- पके फल खाएं, बासी व कटे फल काम में न लें। आमों को एक घंटे पानी में भीगने दें। अधिक मात्रा में आम नहीं खाएँ मोटे।
- मधुमेह से ग्रस्त व पाइल्स रोगियों को सीमित मात्रा में सेवन करना चाहिए।
- हल्के हरे रंग के छोटे आकार के आम के पत्तों को तो़ड़ लें, उन्हें अच्छे से धोएं और छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर चबाइये।
- आम के कुछ पत्तों को तोड़िये और रात भर के लिये बर्तन में भिगो दें। सुबह इसका सेवन करें। ध्यान रखें इसका सेवन खाली पेट ही करें।
- पत्तियों को धो कर धूप में सुखाएं और पावडर बना लें। इस पावडर की एक चम्मच लें और एक गिलास पानी में मिलाकर पी लें। रोज सुबह एक चम्मच सेवन करने से ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल में रहता है।
- आम के फल के साथ-साथ पत्तों में भी विटामिन ए होता है, जो आंखों के लिये बेहद फायदेमंद होता है।
आम के पत्ते भी आंखों को खराब होने से बचा सकते हैं, साथ ही ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रखने में भी मदद करते हैं।
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महर्षि वाल्मीकि का व्यक्तित्व एवं कृत्तव
महर्षि वाल्मीकि के द्विज होने, उनके आरम्भिक जीवन से ही सद्कार्य में निरत होने विषयक तथ्यों को लेकर इतना विविधतापूर्ण साहित्य उपलब्ध होता है कि मतामत का निर्धारण कर पाना प्रायः असम्भव-सा जान पड़ता है। कोई इन्हें भृगु वंशीय, कोई प्राचेतस, कोई शूद्रा का पति, कोई साहसिक आदि निकृष्ट कर्म करने वाला सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। अतः यदि महर्षि वाल्मीकि के काल-निर्धारण से पूर्व (के साथ) ही इन अनेकतः मूलक मगर विरोधी बातों का दिग्दर्षन कर लिया जाए तो अप्रासंगिक अथवा अनुचित न होगा। इस पुराण तथा मध्यकालीन आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के साहित्य में प्रचलित रामाख्यान या रामायणों के कारण हैं।
वे पूजा करके अपने आश्रम को लौटे। तत्पश्चात् ब्रह्मा उनके सामने आए। उन्होंने आशीर्वाद और आदेश भी दिया कि वे राम को शक्ति प्रदान की कि वह राम के वर्तमान भूत और भविष्यत् जीवन को साक्षात् देख सकेंगे। ब्रह्मा के जाने के पश्चात् वाल्मीकि ने काव्य की रचना प्रारम्भ की, जिसको आगे चलकर ‘रामायण’ के नाम से पुकारा गया।
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भारतीय दंड संहिता की धारा 188 (Section 188 of the Indian Penal Code)
- धारा 188 किसी लोक सेवक द्वारा वैध रूप से प्रख्यापित (जारी) किसी आदेश की अवज्ञा करने वाले कार्य को दण्डनीय अपराध उद्घोषित करती है। धारा 188 अन्तर्गत उपबन्धित अपराध के लिए निम्नलिखित बातों का होना अपेक्षित है -
- लोक सेवक का वह आदेश वैध हो,
- लोक सेवक द्वारा वह आदेश वैध रूप से जारी किया गया हो,
- लोक सेवक उस आदेश को जारी करने के लिए सक्षम हो,
- अभियुक्त को आदेश के बारे में जानकारी हो,
- अभियुक्त व्यक्ति ने उक्त आदेश की अवज्ञा की हो,
- ऐसी अवज्ञा किसी विधिपूर्ण नियोजित व्यक्ति के लिए बाधा, क्लेश या हानि पैदा करती थी अथवा पैदा करने की प्रवृति रखती थी तथा मानव जीवन के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए संकट पैदा करती थी।
- केवल आदेशों में धारा की प्रयोज्यता - भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 केवल ऐसे आदेशों के उल्लंघन के प्रति लागू होती है जो सार्वजनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए जारी किए जाते हैं। इसलिए यदि कोई व्यक्ति की अस्थायी आदेश या उल्लंघन कर ता है तो वह इस धारा के अन्तर्गत दण्डित नहीं किया जा सकता है।
- आदेश का गलत होना - जहाँ पर किसी व्यक्ति को संहिता की धारा 188 के अन्तर्गत अभियोजित किया जाता है वहाँ पर वह अपने पक्ष में यह बचाव प्रस्तुत कर सकता है कि लोक सेवक द्वारा जारी किया गया आदेश गुणदोष के आधार पर त्रुटिपूर्ण था।
- लोक सेवक के आदेश की अवज्ञा - एक मामले में यह निर्णित किया गया कि दण्ड संहिता की धारा 188 को लागू होने के लिए यह आवश्यक है कि अभियुक्त को उस देश की जानकारी अवश्य हो जिसकी उसने अवज्ञा की है।
जहाँ पर कोई व्यक्ति दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 145 के अधीन कुर्क की गई अपनी फसल को इस कुर्की के आदेश को जानते हुए भी काट लेता है वहां पर वह दण्ड संहिता की धारा 188 के अधीन दोषी होगा।
एक मामले में यह निर्णित किया गया है कि किसी विधि विरूद्ध जमाव को तितर-बितर होने के लिए दिये गए आदेश की अवज्ञा दण्ड संहिता की धारा 188 के अधीन दण्डनीय है। - धारा का लागू होना - एक मामले में यह निर्णित किया गया है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 के अधीन कर्फ्यू आदेश की अवज्ञा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 188 के अधीन दण्डनीय अपराध है। राज्य बनाम जयंती लाल, 1975 कि.ल.ज. 661 गुज.। दण्ड संहिता की धारा 188 लोक सेवकों द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य के लिए जारी किए गए आदेशों के प्रति लागू होती है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 155 के अन्तर्गत कर्फयू आर्डर की अवहेलना एक गौण अपराध होनेके कारण दंड संहिता की धारा 188 के अधीन दंडनीय है, अतः दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के अन्तर्गत जारी किया गया निषेधात्मक आदेश की अवहेलना के लिए देखते ही गोली मार देने का कार्यपालिका निदेश दंड संहिता की धारा 188 एवं संविध्ाान के अनुच्छेद 20 (1) एंव 21 के शक्ति वाहय्होगा।
भारतीय विधि से संबधित महत्वपूर्ण लेख
- आईपीसी (इंडियन पैनल कोड) की धारा 354 में बदलाव
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय का इतिहास
- RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे
- उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक आचरण नियमावली, 1956
- बलात्कार (Rape) क्या है! कानून के परिपेक्ष में
- प्रथम सूचना रिपोर्ट/देहाती नालिशी, गिरफ्तारी और जमानत के सम्बन्ध में नागरिकों के अधिकार एवं कर्तव्य
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144
- धारा 50 सी.आर.पी.सी. के अधीन हिरासत व जमानत सम्बन्धित अधिकार
- वाहन दुर्घटना के अन्तर्गत मुआवजा
- भरण-पोषण का अधिकार अंतर्गत धारा 125 द.प्र.स. 1973
- हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956
- अवैध देह व्यापार से संबंधी कानून
- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 108
- भारतीय दंड संहिता की धारा 188
- जमानतीय एवं गैर जमानती अपराध
- विवाह, दहेज और कानून
- भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 498 व 498 ए
- भारतीय दंड संहिता (I.P.C.) की महत्वपूर्ण धाराएं
- IPC में हैं ऐसी कुछ धाराएं, जिनका नहीं होता इस्तेमाल
- RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे
- क्या है आईपीसी की धारा 377 और क्या कहता है कानून
- भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत बलात्कार पर कानून और दंड
- भारतीय दंड संहिता की धारा 503, 504 व 506 के अधीन अपराध एवं सजा
- विवाह संबंधी अपराधों के विषय में भारतीय दण्ड संहिता 1860 के अंतर्गगत दंड प्रविधान
- दहेज एवं दहेज हत्या पर कानून
- भारतीय संसद - राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा
- भारतीय सविधान के अनुसार राज्यपाल की स्थिति
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 का दर्द
- भारतीय संसद के तीन अंग राष्ट्रपति, राज्यसभा और लोकसभा
- भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान के प्रश्न उत्तर
- जनहित याचिका / Public Interest Litigation
- संवैधानिक उपबंध सार
- भारत के संविधान का अनुच्छेद 243 और उसके महत्व
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बाजीराव पेशवा विश्व इतिहास का एक मात्र अपराजित योद्धा
मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्रियों को पेशवा कहते थे। ये राजा के सलाहकार परिषद अष्टप्रधान के सबसे प्रमुख होते थे। राजा के बाद इन्हीं का स्थान आता था।
पेशवा बाजीराव (1721-1761) मराठा साम्राज्य के शासक थे। बाजीराव, शिवाजी महाराज के पौत्र शाहूजी महाराज के पेशवा (प्रधान) थे। इनके पिता श्री बालाजी विश्वनाथ पेशवा भी शाहूजी महाराज के पेशवा थे। बचपन से बाजीराव को घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, तलवार भाला, बनेठी, लाठी आदि चलाने का शौक था। 13-14 वर्ष की खेलने की आयु में बाजीराव अपने पिताजी के साथ घूमते थे। उनके साथ घूमते हुए वह दरबारी चालों व रीतिरिवाजों को आत्मसात करते रहते थे। यह क्रम 19-20 वर्ष की आयु तक चलता रहा। जब बाजीराव के पिताश्री का अचानक निधन हो गया तब मात्र बीस वर्ष की आयु के बाजीराव को शाहूजी महाराज ने पेशवा बना दिया। पेशवा बनने के बाद अगले बीस वर्षों तक बाजीराव मराठा साम्राज्य को बढ़ाते रहे। इसके लिए उन्हें अपने अपराजित योद्धा- बाजीराव पेशवा दुश्मनों से लगातार लड़ाईयाँ करना पड़ी। अपनी वीरता, अपनी नेतृत्व क्षमता व कौशल युद्ध योजना द्वारा यह वीर हर लड़ाई को जीतता गया। विश्व इतिहास में बाजीराव पेशवा ऐसा अकेला योद्धा माना जाता है जो कभी नहीं हारा। छत्रपति शिवाजी महाराज की तरह वह बहुत कुशल घुड़सवार था। घोड़े पर बैठे-बैठे भाला चलाना, बनेठी घुमाना, बंदूक चलाना उनके बाएँ हाथ का खेल था। घोड़े पर बैठकर बाजीराव के भाले की फेंक इतनी जबरदस्त होती थी कि सामने वाला घुड़सवार अपने घोड़े सहित घायल हो जाता था।
बाजीराव ने अपने कुशल युद्ध नेतृत्व से छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित किये हुए मराठा साम्राज्य की सीमाओं का उत्तर भारत में भी विस्तार किया। ‘तीव्र गति से युद्ध करना, यह उनके युद्ध-कौशल्य का महत्त्वपूर्ण भाग था। इस समय भारत की जनता मुगलों के साथ-साथ अंग्रेजों व पुर्तगालियों के अत्याचारों से त्रस्त हो चुकी थी। ये भारत के देवस्थान तोड़ते, जबरन धर्म परिवर्तन करते, महिलाओं व बच्चों को मारते व भयंकर शोषण करते थे। ऐसे में बाजीराव पेशवा ने उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक ऐसी विजय पताका फहराई कि चारों ओर उनके नाम का डंका बजने लगा। लोग उन्हें शिवाजी का अवतार मानने लगे। बाजीराव में शिवाजी महाराज जैसी ही वीरता व पराक्रम था तो वैसा ही उच्च चरित्र भी था। जब छत्रसाल बुंदेला दिल्ली की सेना के सामने हतबल हो गये, तब उन्होंने बाजीराव से सहायता मांगी। बाजीराव ने वहां भी अपनी तलवार की गरिमा बनाए रखी। उनका उपकार चुकाने के लिए छत्रसाल बुंदेला ने 3 लाख मीट्रिक टन वार्षिक उत्पन्न करनेवाला भूभाग बाजीराव को भेंट दिया। इसके साथ ही अपनी अनेक पत्नियों में से एक पत्नी की कन्या ‘मस्तानी’ से उनका विवाह कराया।
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गर्म पानी पीना एक औषधि
आजकल सामूहिक भो जों में भोजन के पश्चात् आइसक्रीम और ठण्डे पेय पीने का जो प्रचलन है, वह स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक होता है। गर्मी स्वयं एक प्रकार की ऊर्जा है और शारीरिक गतिविधियों में उसका व्यय होता है। अतः जब कभी हम थकान अथवा कमजोरी का अनुभव करते हैं तब गरम पीने योग्य पानी पीने से शरीर में स्फूर्तिआती है। जिन व्यक्तियों को लगातार अधिक बोलने का अर्थात् भाषण अथवा प्रवचन देने का कार्य पड़ता है, जब वे थकान अनुभव करें, तब ऐसा पानी पीने से पुनः ऊर्जा का प्रवाह सक्रिय होता है। लम्बी तपस्या करने वालों के लिये ऐसा पानी विशेष उपयोगी होता है, जिससे शक्ति का संचार होता है।
गरम पानी सर्दी संबंधी रोगों में क्षीण ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने का सरलतम उपाय होता हैं। साधारणतया रोजाना पानी को उबालकर पीनेसे उसमें रोगाणुओं और संक्रामक तत्त्वों की संभावना नहीं रहती। अतः ऐसा पानी स्वास्थ्य के लिये अधिक उपयोगी होता है। खाली पेट गर्म पानी पीनेसे अम्लपित्त जनित हृदय की जलन और खट्टी डकारें आना दूर हो जाता है। गर्म जल सुखी खांसी की प्रभावशाली औषधि है।सहनीय एक गिलास गर्म जल में थोड़ा सेंधा नमक डालकर पीने से कफ पतला हो जाता है और अंत में खांसी का वेग बहुत कम हो जाता है। खाली पेट दो गिलास गर्म पानी पीने से मूत्र का अवरोध दूर होता है। जिनके मूत्र पीला अथवा लाल हो, मूत्र नली में जलन हो, उनको पीने योग्य गर्मजल पीना चाहिए।
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सूर्य नमस्कार की स्थितियों में विभिन्न आसनों का समावेष एवं उसके लाभ
- त्वचा और कमर के रोग दूर होते हैं, पीठ सशक्त बनती है और पैरों में नया जोश आता है।
- दृष्टि नासिकाग्र पर केन्द्रित होने से मन का निरोध होता है।
- चेहरा तेजस्वी बनता है ।
- विद्यार्थियों के लिए स्वास्थ्य प्राप्ति एवं व्यंिक्तत्त्व विकास का यह एक अत्यंत सरल उपाय है।
- एकाग्रचित्त होकर ध्यान करने से आत्म विश्वास में वृद्धि होती है।
- दक्ष - हाथ की उंगलिया सीधी खुली हुई।
- पैर के अंगुठे परस्पर जोड़कर समस्थिति में खड़े रहें।
- हाथ नमस्कार की स्थिति में । शरीर का भार दोनों पैरों पर समानरूप से बटा हुआ।
- एड़ियाँ और पैर के अंगुठे परस्पर सटे हो।
- पैरों की सब उंगलियाँ ऊपर उठाना जिससे उंगलियों के पीछे की गद्दियाँ तथा एड़ियाँ पूरी तरह जमीन पर हो।
- पहले दोनों पैरों की कनिष्ठिकाएं जमीन पर रखना । दोनों पैरों के कनिष्ठिकाधार पूरी तरह जमीन पर हो। बाद में अन्य उंगलियाँ भी जमीन पर रखना। इस स्थिति में दोनों तलुवों की कमानियां ऊपर उठी हुई रहेगी।
- घुटनों की कटोरियां को ऊपर तानना, घुटने के पीछे का भाग तथ जंघा के पीछे की मांसपेशियां ऊपर तनी हुई।
- मलद्वारा का संकोच करते हुए नितम्बों को सिकोड़कर कड़ा करना।
- पेट अंदर, सीना व पसलियां ऊपर उठी हुई।
- हथेलियाँ नमस्कार की स्थिति में एक दूसरे को दबाती हुई, दोनों अंगूठे के पर्व सूर्यचक्र (वक्षमध्य ) पर तथा दोनों प्रकोष्ठ जमीन से समानान्तर।
- कंधे पीछे की ओर, सिर संतुलित, गर्दन सीधी, दृष्टि सामने एवं सूर्य नमस्कार का मंत्र बोलना।
- गले के रोग मिटते हैं और स्वर अच्छा होता है।
- पैरों में रक्त गतिशील बनता है और व्यक्ति की चलने की शक्ति बढ़ती है। मेरूदण्ड में लचीलापन आता है।
- दोनों हाथ तिरछे ऊपर उठाकर सीधे तानना। कोहनी में मोड़ न हो इसलिए भुजा को अंदर से तनाव देना।
- कमर से ऊपर का भाग पीछे मोड़ना।
- सिर पीछे लटकाना तथा दोनों हाथों के तनाव को बनाये रखते हुए हथेलियों को आपस में मिलाना। हाथों को कानों से लगाने का प्रयत्न नहीं करना है। दृष्टि करमूल पर स्थिर रहेगी। करमूल को दबाकर पीछे खींचना।
- घुटने न मुड़े इसके लिए पंजों व पैर की गद्दियों को जमीन पर दबाना आवश्यक है।
- क्रमांक 3 में आयी पीठ की वक्रता को वैसी ही बनाये रखते हुए ऊरूसंधि से सामने झुकना प्रारंभ करना।
- नितम्बों को ऊपर की दिशा में घुमाना।
- ऊरूसंधि के ऊपर के हिस्से से क्रमशः स्पर्श करते हुए पेट को जंघा के ऊपर के भाग से और छाती को जंघा के निचले भाग से सटाते हुए अंत में माथे को घुटने के नीचे पैरों से लगाना। दोनों हथेलियाँ पंजों के पार्श्व में पूरी तरह जमीन पर इस तरह रखी हुई कि पैरों और हाथों की उंगलियाँ एक सीध में हों। पीठ का गड्डा बना रहे, उसकी कूबड न निकले।
- उदर (पेट) के रोगों का नाश करता है, सीने को बलिष्ठ बनाता है। हाथ भी बलिष्ठ बनते हैं और शरीर सुन्दर व दर्शनीय बनता है। उदर का मोटापा (तोंद) कम होता है।
- पैरों की ऊंगलियों के रोग मिटाकर अशक्तों को नई शक्ति प्रदान करता है।
- बायां पैर सीधे पीछे ले जाना । घुटना जमीन से लगाना।
- दाहिनें पैर की एड़ी को जमीन पर दबाना और दाहिने घुटने को जितना आगे ला सके लाना। एड़ी के ऊपर की नस में तनाव का अनुभव होना चाहिए।
- दाहिना कंधा दाहिनी जंघा से सटा हुआ, सिर ऊपर की ओर। बांयी जंघा के आगे के भाग में तनाव अनुभव होना चाहिए। इस स्थिति में हाथों की कोहनियों को मोड़ना आवश्यक है। दृष्टि सामने की ओर।
- बांए पैर का पंजा मुड़ना चाहिए।
- कमर को नीचे की ओर दबाना।
- इस स्थिति में छोटी आँत पर दबाव पड़ता है, वीर्यवाहिनी नसें खीचती हैं अतः कमजोरी का नाश होता है।
- धातु क्षीणता में लाभ होता है।
- गले के रोग स्वर भेद, चुल्लिकाग्रंथि (थाइराइड), तुण्डीकेरी ( टोन्सिल) मिटते हैं।
- बायें पैर का घुटना सीधा करना।
- दाहिना पैर पीछे ले जाकर बायें पैर से मिलाना। घुटनों को तानकर सिर से पैर तक शरीर को एक सरल रेखा में रखना। दण्ड की सहायता से यह देखना कि पूरा शरीर एक सीध में है या नहीं। दोनों हाथ सीधे। दृष्टि शरीर से समकोण बनाती हुई।
- हाथ-पैरों में विशेषतः घुटनों का दर्द मिटता है।
- मोटी कमर को पतली बनाता है।
- उदर (पेट) के रोगों के लिए यह स्थिति राम-बाण है।
- दानों हाथों को कोहनी से मोड़कर पूरे शरीर को जमीन के समानान्तर करना।
- दोनों पैरों के अंगूठे व एड़ियाँ मिली हुई।
- सीना और घुटनें जमीन से लगाना।
- दोनों कंधों को पीठ की ओर उठाकर एक दूसरे के निकट लाना। जिससे सीना नीचे उभर आए व जमीन में लगे। माथा जमीन से लगाना किंतु नाक जमीन से नहीं लगनी चाहिए।
- ये आसन हाथ को बलिष्ठ बनाता है।
- यदि स्त्रियाँ सगर्भावस्था के पूर्व यह व्यायाम करें तो पयःपान करने वाले बच्चे (दूध पीत बच्चे) बाल रोगों से बच सकते हैं।
- दोनों एड़ियाँ साथ में व घुटने एक दूसरे के पास ।
- शरीर को आगे बढ़ाकर हाथों को कोहनियों से सीधे करते हुए सीने को ऊपर उठाना कमर व नाभि को हाथों के बीच में लाने का प्रयत्न करना। दोनों घुटनें जमीन से स्पर्श करते हुए। सिर पीछे की ओर दोनों कंधे पीछे की ओर खींचे हुए।
- निस्तेजस्विता दूर करके शरीर में तेज लाता हैं और आँखों का तेज बढ़ाता है।
- रज-वीर्य के सभी प्रकार के दोषों को मिटाता है।
- स्त्रियों के मासिक धर्म कीे अनियमितता दूर करता है।
- रक्त परिभ्रमण ठीक होने से मुख की कान्ति और शोभा में वृद्धि होती है।
- शरीर पीछे खींचकर नितम्बों को अधिक से अधिक ऊपर उठाना ।
- एड़ियाँ जमीन पर टिकाना और दबाना किन्तु इसके लिए पैरों को आगे नहीं लाना चाहिए। शरीर को पीछे ले जाना चाहिए।
- घुटनों के पीछे के भाग को तानना।
- हाथ सीधे और पीठ दबी हुई, कंधों के बीच में पीठ पर गड्ढा बनेगा।
- सिर नीचे लटका हुआ।
- सन्धिवात, पक्षाघात तथा अपानवायु के रोगों में लाभदायक है।
- पैरों में अश्व के समान बल उत्पन्न होता है।
- बायां पैर को पीछे से आगे दोनों हथेलियों के मध्य लाना। बायें पैर का अंगूठा तथा दोनों हाथों के अंगूठे अर्थात् तीनों अंगूठे एक सीध में पृथ्वी पर स्थापित करें।
- दाहिने पैर का घुटना, अंगुलियाँ एवं अंगूठा सीधा पृथ्वी को स्पर्श करता हुआ रहे।
- बायां कंधा बायीं जंघा से सटा हुआ, सिर ऊपर की ओर। बायीं जंघा के आगे के भाग में तनाव अनुभव होना चाहिए। इस स्थिति में हाथों की कोहनियों को मोड़ना आवश्यक है। दृष्टि सामने की ओर।
- बांए पैर का पंजा मुड़ना चाहिए।
- कमर के नीचे की ओर दबाना।
- पूर्व की स्थिति क्रमांक पंचमवत् सारे लाभ प्राप्त होते हैं।
- क्रमांक 4 में आयी पीठ की वक्रता को वैसी ही बनाये रखते हुए उरूसंधि के सामने झुकना प्रारंभ करना।
- नितम्बों को ऊपर की दिशा में घुमाना।
- उरूसंधि के ऊपर के हिस्से से क्रमशः स्पर्श करते हुए पेट को जंघा के ऊपर के भाग से और छाती को जंघा के निचले भाग से सटाते हुए अंत में माथे को घुटने के नीचे पैरों से लगाना। दोनों हथेलियां पंजों के पार्श्व में पूरी तरह जमीन पर इस तरह रखी हुई कि पैरो और हाथों की उंगलियां एक सीध में हो। पीठ का गड्डा बना रहे, उसकी कूबड़ न निकले।
- इस आसन की स्थिति एवं लाभ पूर्ववत् स्थिति क्रमांक 2 के अनुसार होते हैं।
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International Yoga Day - 21 June
"योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।" —नरेंद्र मोदी, संयुक्त राष्ट्र महासभा
जिसके बाद 21 जून को " अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को " अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस" को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।
प्रधानमंत्री मोदी के प्रस्ताव का 175 देशों ने समर्थन किया था। 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' के अध्यक्ष सैम के. कुटेसा का कहना था कि- "इतने देशों के इस प्रस्ताव को समर्थन देने से साफ है कि लोग योग के फायदों के प्रति आकर्षित हो रहे हैं।" 'संयुक्त राष्ट्र महासभा' में अपने पहले भाषण में नरेन्द्र मोदी जी ने कहा था कि- "भारत के लिए प्रकृति का सम्मान अध्यात्म का अनिवार्य हिस्सा है।" प्रधानमंत्री मोदी ने इसे विश्व स्तर पर आने की बात कही थी।
योग दिवस 21 जून ही क्यों
21 जून पूरे कैलेंडर वर्ष का सबसे लम्बा दिन है। प्रकृति, सूर्य और उसका तेज इस दिन सबसे अधिक प्रभावी रहता है। बेंगलुरू में 2011 में पहली बार दुनिया के अग्रणी योग गुरुओं ने मिलकर इस दिन 'विश्व योग दिवस' मनाने पर सहमति जताई थी।
इस दिन को किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रखकर चुना गया है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के लिए पिछले सात सालों के दौरान यह इस तरह का दूसरा सम्मान है। इससे पहले यूपीए सरकार की पहल पर वर्ष 2007 में संयुक्त राष्ट्र ने महात्मा गाँधी के जन्मदिन यानि ' 2 अक्टूबर' को ' अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस ' के तौर पर घोषित किया था।
प्राचीन आध्यात्मिक पद्धति योग 5,000 साल पुरानी भारतीय शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक पद्धति है, जिसका लक्ष्य मानव शरीर और मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।
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